British Destroyed Maratha Empire: साल 1764, Battle of Buxar (बक्सर की लड़ाई) जितने के बाद East India Company एक Dominant Power बन चुकी है. Indian Subcontinent का पूरा Bengal का region उनके control में आ चूका है. दूसरी तरफ मुग़ल का हुकूमत बहुत कमजोर पड़ चुकी है.
मैप में देखिए North India में उस समय इतनी छोटी सी territory Mughal Empire के control में था. लेकिन थोड़ा सा नीचे देखिए। इसी समय एक और empire है Indian Subcontinent में जो इन दोनों empire से कहीं ज्यादा और ताकतवर है, मराठा साम्राज्य इनकी territory कहीं ज्यादा और बड़ी है, East India Company के comparison में इनके पास ज़्यादा resources है, ज्यादा ताकत है फिर भी East India Company कैसे हरा देती है Maratha Empire को. आइए जानते हैं.
मराठा साम्राज्य की शुरुआत हुई थी साल 1674 में छत्रपति शिवाजी महाराज के द्वारा और शुरुआत से ही ये एक बड़ी ताकतवर force रहे थे। औरंगजेब के समय में भी मुगल साम्राज्य के लिए मराठा साम्राज्य एक बहुत बड़ा खतरा रहा था। तब मुगल बड़ी तेजी से कमजोर पड़ने लग जाती है, territory lose करती है और मराठाओं का इसमें एक बड़ा contribution होता है. Maratha Empire अपनी peak पर पहुँचता है, साल 1959 में जाकर। इस साल मराठाओं की जो territory थी वो उत्तर में अफगानिस्तान के हिस्सों से शुरू होती थी और दक्षिण में तमिलनाडु तक जाती थी. पश्चिम में सिंध से लेकर पूर्व में उड़ीसा तक जाती थी.
लेकिन करीब 2 साल बाद, साल 1961 में एक बड़ा झटका लगता है. मराठा साम्राज्य को पानीपत की तीसरी लड़ाई लड़नी पड़ती है। जिसमें अफगान के शासक अहमद शाह दुर्रानी आकर मराठाओं को हरा देते हैं। इस जंग में मराठाओं को काफी territory lose करनी पड़ती है मराठा empire को. लेकिन इसके करीब एक दशक बाद मराठी अपनी सकती दोबारा हासिल करते हैं और कई territories को वापस से restore कर देते हैं अपने नए पेशवा माधव राव की leadership के अंदर।
पेशवा माधव राव-1 के शासन के अंदर मराठा साम्राज्य ताकतवर बना रहता है। इतना ताकतवर कि ईस्ट इंडिया कंपनी जानती थी कि कोई तरीका नहीं है इन्हें हराने का. लेकिन इतना ही नहीं ईस्ट इंडिया कंपनी मराठाओं को अपने से दूर रखना चाहती थी. इसी reason से उन्होंने Avadh को occupy नहीं किया। साल 1965 में Treaty of Allahabad sign करी जाती है. जिसमें Avadh एक तरीके की buffer state बनकर रहता है East India Bengal के बीच में और मराठा साम्राज्य के बीच में. East India Company नहीं चाहती थी कि उनकी territories का border मराठाओं के साथ मिले।
ऐसा नहीं है कि company मराठाओं की territory पर कब्ज़ा जमाना नहीं चाहती थी. चाहते तो वो सब कुछ थे. पूरे Indian Subcontinent को अपने control में करना चाहते थे. यहाँ पर एक अतिरिक्त बात जानने योग्य है कि East India Company में patience बहुत था. वो सही मौके का इंतजार कर रहे थे. एक ऐसा मौका जब मराठा कमज़ोर पड़े और company अपनी नज़र बाकी subcontinent पर डाले। ये मौका इन्हें मिलता है.
साल 1972 में जब पेशवा माधव राव का देहांत हो जाता है tuberculosis की वजह से. इनके जाने के बाद बाकी मराठाओं के leaders में एक power struggle देखने को मिलता है कि कौन अगला पेशवा बनेगा। अब यहाँ पे ये समझना ज़रूरी है दोस्तों कि पेशवा की जो post होती थी मराठा empire में वो एक प्रधानमंत्री की position की तरह थी. इसके ऊपर जो position होती थी वो होती थी छत्रपति की जो empire के ruler हो गए.
मराठा साम्राज्य में छत्रपति की position ज्यादा powerful होती थी पेशवा के comparison में. लेकिन जब से छत्रपति शाहू का देहांत हुआ था तब से पेशवा का जो रोल था वो और ज्यादा ताकतवर बन चुका था. छत्रपति के comparison में तो पेशवा को ही actually में मराठा साम्राज्य का leader consider किया जाने लग चुका था और छत्रपति का रोल एक तरीके से नॉमिनल head का बन गया था। ये वैसे ही हो गया जैसे कि इंडिया में जो president है ज्यादा power नहीं होती इनके पास।
अब conflict पर आए तो माधव राव के देहांत के बाद उनके छोटे भाई नारायण राव को नया पेशवा बनाया गया। लेकिन ये चीज उनके अंकल रघुनाथ राव को बिल्कुल पसंद नहीं आई। रघुनाथ राव actually में साल 1761 से ही अगले पेशवा बनना चाह रहे थे. जब उनके भाई बालाजी बाजीराव का देहांत हुआ था। लेकिन साल 1761 में हुआ क्या कि रघुनाथ राव को पेशवा बनाने की जगह बालाजी बाजीराव के बेटे माधव राव को अगला पेशवा बना दिया गया. इसी कारण से माधव राव के पूरे शासन के दौरान उनके अंकल रघुनाथ राव का उनके साथ constantly conflict बना रहा था। उन्होंने बार-बार कोशिश करी माधव राव को overthrough करने की.
लेकिन वो इस कोशिश में असफल रहे और अब जब पेशवा माधव राव का देहांत हो जाता है. रघुनाथ राव को दिखता है कि अब तो मुझे मौका मिलना चाहिए कम से कम. लेकिन अभी भी गद्दी उनके हाथों से फिसल जाती है और नारायण राव बन जाते हैं अगले पेशवा। रघुनाथ राव से ये सब देखकर सहा नहीं गया. सत्ता के लालच में आकर वो actually में पेशवा का assassination करवा देते हैं, 1773 में वो नारायण राव को मरवा डालते हैं और उसके बाद finally वो नए पेशवा बन जाते हैं मराठा empire के.
लेकिन ये ख़ुशी इनकी ज्यादा दिन चलने वाली नहीं थी पता चलता है कि नारायण राव को जब इन्होने मरवाया था, उनकी वाइफ़ pregnant थी. अगले साल 1774 में नारायण राव के बेटे माधव राव-2 का जन्म होता है और जैसे ही वो बच्चा पैदा होता है, मराठा council declare कर देता है माधव राव-2 actually में legitimate पेशवा है. यहाँ पर सही मायने पेशवा का दर्जा रघुनाथ राव को नहीं बल्कि माधव राव-2 को दिया जाएगा।
अगर आप सोच रहे हो ये कौन decide कर रहा था ये सब? तो ये मराठा council actually में 12 मिनिस्टर से बनता था। इस council को lead किया जा रहा था by the famous नाना फड़नवीस द्वारा। अब क्योंकि माधव राव-2 का just जन्म हुआ था वो बिलकुल ही new born baby थे। तो एक new born baby तो यहाँ पर पूरे मराठा empire को नहीं संभाल सकता। इसलिए ये decide किया गया कि जब तक ये पेशवा बड़े नहीं हो जाते तब तक नाना फाड़नमिस मराठा empire पे राज करेंगे पेशवा के behalf पर.
अब इन सब में रघुनाथ राव का क्या किया जाए? रघुनाथ राव को exile पर भेज दिया जाता है. लेकिन वो फिर भी हार मानने को राजी नहीं होते। वो सत्ता के लालच में इतने लालची हो गए थे कि वो कुछ ऐसा कर जाते हैं की जिसके बारे में किसी ने सोचा तक नहीं होगा। रघुनाथ राव ब्रिटिश से जाकर हाथ मिला लेते हैं। specifically कहा जाए तो उस वक्त सूरत में बॉम्बे presidency थी जो ब्रिटिश के control में थे। वो साल 1775 में जाकर एक Treaty of Surat sign कर लेते हैं इनके साथ।
इस treaty के अनुसार ब्रिटिश actually में रघुनाथ राव को military assistance provide करेगी। वो अपनी आर्मी देगी रघुनाथ राव को उनके behalf पर लड़ने के लिए जिससे कि वो अगले पेशवा बन सके और इसके exchange में रघुनाथ राव को कुछ मराठा साम्राज्य के territories ब्रिटिश के हाथों देनी पड़ेंगी। वो territories होती है Salsette island और Basin ईसलैंड. वैसे fun fact यहाँ पर ये है कि Salsette Island वही जगह है जहाँ पर आज पूरा मुंबई शहर बसा हुआ है।
इस contract के अनुसार रघुनाथ राव को कुछ पैसा भी कंपनी को देना पड़ता है जो भरुत से कमाने लग रहे है। कुछ इस तरीके से दोस्तों लड़ी जाती है पहली Anglo Maratha War 1975 में. इस war में एक तरफ मराठा साम्राज्य तो दूसरी तरफ रघुनाथ राव और ब्रिटिश forces के बीच बहुत खूंखार लड़ाई होती है. दोनों साइड्स को भारी losses सहने पड़ते हैं। ये पहली बार था कि ब्रिटिश को इतने भारी losses सहने पड़े थे इंडिया में. लेकिन मराठाओं को भी उससे या उससे बदतर नुकसान हुआ था।
दोनों साइड claim करती है कि उन्होंने ये जंग जीती। इस लड़ाई को वैसे Battle of Addas कहा जाता है. इस लड़ाई के बाद ब्रिटिश ने realize किया कि मराठाओं को हराना इतना आसान नहीं है। इसके नतीजे देखकर जो Governor General of India थे Warren Hastings वो Treaty of Surat को cancel कर देते हैं। Warren Hestings के अनुसार जो Bombay Presidency की सरकार थी उनके पास कोई authority नहीं थी कोई भी treaty बनाने की। उन्होंने कहा कि मेरी permission के बिना ये सब कैसे कर दिया किसी के साथ भी जाकर allly करने लग गए।
Warren Hastings कोशिश करते हैं कि British Forces को withdraw कर लिया जाए ताकि ये war ना लड़े वो. लेकिन Bombay Presidency की सरकार Warren Hastings की सुनती नहीं है और अपनी लड़ाई जारी रखती है पेशवा के खिलाफ। फिर Warren Hastings क्या करते हैं वो पेशवा को एक लेटर लिखते हैं और अपने एक agent को भेजते हैं negotiate करने के लिए।
Treaty of Surat को cancel करके ईस्ट इंडिया कंपनी का जो कोलकाता का council था. वो नाना के साथ जाकर एक नई treaty बनाता है, इसे कहा जाता है Treaty of Purandar, साल 1776 में. इस treaty के अनुसार सालसेट आइलैंड के कुछ areas ईस्ट इंडिया कंपनी के कंट्रोल में रहेंगे। ये areas को actually में ईस्ट इंडिया कंपनी ने जंग लड़ के जीता था। इसके अलावा पेशवा को 12 लाख रूपए pay करने पड़ेंगे as expenses रघुनाथ राव की वजह से।
रघुनाथ राव अपने आप को politics से अब दूर रख लेंगे और वो एक pensioner की तरह रहेंगे। उन्हें साल भर 3 लाख रूपए दिए जाएंगे और इन पैसों के चलते वो politics में interfere नहीं करेंगे। लेकिन सबसे important चीज इस treaty में ये थी कि East India Company मान लेती है, माधव राव-2 ही actual पेशवा है और पेशवा भी ईस्ट इंडिया कंपनी की सुन लेते हैं कि वो किसी और foreign power से कोई डील नहीं करेंगे। जैसे कि फ्रेंच के साथ वो कोई और treaty या कॉन्ट्रैक्ट नहीं बनाएंगे।
अब सुनने में काफी happy ending सी लगती है. लेकिन बॉम्बे में जो ब्रिटिश सरकार है, वो इस नयी treaty को मानने से मना कर देती है। वो openly इस treaty के against जाते हैं और रघुनाथ राव को अपनी पूरी protection दे देते हैं। नाना फड़नवीस को ये चीज बिल्कुल पसंद नहीं आती कि बॉम्बे ने इस तरीके से treaty को breach कर दिया है. इसके response में वो 1777 में जाकर अपनी territory का एक port फ्रेंच को दे देते हैं। ऐसा इसलिए कि ब्रिटिश लोगों को फ्रेंच बिल्कुल पसंद नहीं है। इन्होंने हमें धोखा दिया है। हम फ्रेंच के साथ जाकर अब थोड़ा हाथ मिलाते हैं।
अब कोलकाता में जो ईस्ट इंडिया कंपनी बैठी थी वो भी देखती है कि ये क्या है? मतलब बॉम्बे में हुआ वो मेरे कंट्रोल में नहीं था. लेकिन इन्होंने तो फ्रेंच के साथ हाथ मिलाना शुरू कर दिया। अब बॉम्बे में जो ब्रिटिश थी और कोलकाता में जो ब्रिटिश थी ये दोनों साथ में मिलकर पुणे पर हमला करती हैं. इस वॉर का सेकंड फेस शुरू होता हैं बॉम्बे की ब्रिटिश forces clash करती हैं मराठाओं की ब्रिटिश forces के साथ और इससे पहले की कोलकाता से मदद पहुँच पाती मराठास already हरा देते हैं, ये होता हैं वडगाव में और इसलिए इस बैटल के बाद जो treaty sign करी जाती हैं उसे कहा जाता हैं Treaty of Wadgaon.
साल 1779, इस treaty के अनुसार बॉम्बे सरकार ने जितनी भी मराठा की territories capture करी हैं वो वापस कर दें और जो बंगाल से additional forces आने वाली हैं मदद करने के लिए उन्हें उल्टा रास्ता तय करने को बोल दो। कोलकाता में बैठे Warren Hastings फिर से परेशान हो जाते हैं ये देखकर। वो कहते हैं अभी बॉम्बे में बैठी सरकार तुम्हें किसने हक दिया ये सब treaty साइन करने का. मैंने तो authorization नहीं दी. मैं हूँ गवर्नर जनरल इंडिया का. मैं क्या करूँ? फिर job छोड़ दूँ? इस तू-तू-मैं-मैं के बीच में नाना फड़नवीस, एक चीज जरूर realize कर लेते हैं। उन्हें पहली बार एहसास होता है कि ब्रिटिश का यहाँ पर असली मकसद क्या है?
ब्रिटिश यहाँ पर मराठाओं को हराकर पूरे indian subcontinent पर कब्जा जमाना चाहती है। नाना फड़नवीस ने इस खतरे को टाइम पर realize कर लेते हैं और आस-पास बाकी जो किंगडम थे Indian Subcontinent में उनके साथ जाकर alliance बनाते हैं। हैदराबाद के निजाम, मैसूर के हैदर अली और अरकोट के नवाब और मुगल शहंशाह शाह आलम-2 सब जुड़ जाते हैं मराठा empire के साथ.
इस समय ब्रिटिश को हराने के लिए ये लड़ाई अब अलग-अलग territories में continue है अभी तक ये वैसे First Anglo-Maratha War ही चलने लग रही है। कुछ territories पर ईस्ट इंडिया कंपनी और कब्ज़ा जमा लेती है जैसे कि अहमदाबाद और ग्वालियर।
साल 1781 में कुछ जगहों पर मराठा कब्ज़ा जमा लेते हैं. कई सालों तक ये war चलती रहती है. लेकिन एक तरीके की steelwart situation बनी रहती है। अब ना तो ब्रिटिश और areas को occupy कर पा रहे थे, ना ही मराठा इस तरीके से हरा पा रहे थे ब्रिटिश को उन्हें पूरा ही बंगाल से खत्म कर दिया जाए।
finally दोनों side decide करती हैं कि इस war को खत्म किया जाए और साल 1782 में जाकर ये war खत्म होती है और treaty of salbai sign करी जाती है. अब क्योंकि इस पूरी war में मराठाओं का एक upper hand रहा था. इसलिए First Anglo Maratha War के winners मराठा को ही बताया जाता है. मोटे-मोटे तौर पर देखा जाए तो मराठा empire अपनी territories को defend करने में successful रहते है Treaty of Salbie के according कुछ territories को मराठाओं के पास वापस दे दिया जाता है.
लेकिन East India Company Salsette Island और कुछ और छोटे-छोटे islands रख सकती है. British अब promise करते है कि Raghunath Rao को support नहीं करेंगे और finally दोनों sides agree कर लेती है कि रघुनाथ राव politics से दूर रहेंगे। उन्हें pension देंगे हम और वो चुपचाप बैठे रहेंगे। तीन लाख रूपए हरेक साल की pension promise करी जाती है उन्हें।
Marathas भी promise करते हैं कि वो किसी भी और European देश को support नहीं करेंगे। जैसे उन्होंने फ्रेंच को वो port दे दिया था. अब वो नहीं करेंगे और finally जाकर अगले 20 सालों तक ब्रिटिश और मराठों के बीच में शांति बनी रहती है। लेकिन कहानी में यहाँ पर एक twist है। इन बीस सालो में शांति जरूर बनी रहती है, मराठाओं और ब्रिटिश के बीच में. लेकिन मैंने ये नहीं कहा कि मराठाओं और बाकी और जो empires थे इंडिया में उस वक्त बाकी और जो kingdoms थे उनके बीच शांति बनी रहती है, जैसा मैंने बताया था.
साल 1779 में Maratha Empire ने हैदराबाद के निजाम और मैसूर के हैदर अली के साथ alliance बनाई थी ब्रिटिश को हराने के लिए लेकिन ये alliance सिर्फ 1780 तक बनती है। ये 20 साल जितने शांति बनी रही थी मराठा और ब्रिटिश के बीच में. इस बीच में ये दोनों actually में साथ में मिलकर मैसूर kingdom के खिलाफ जंग छेड East India Company मराठाओं का इस्तेमाल करती है.
Mysore को हारने के लिए इस बीच इन 20 सालों में एक बड़ा खतरा eliminate हो जाता है East India Company के लिए. लेकिन अभी आते है हम साल 1801 में इस साल एक बार फिर से मराठाओं के बीच में जबरदस्त infighting देखने को मिलती है. इस infighting को समझने के लिए पहले हमें ये समझना होगा कि मराठा confederacy कैसे काम करती थी.
मराठा empire को एक समय के बाद मराठा confederacy बुलाया जाने लगा क्योंकि ये confederacy 5 अलग-अलग fractions से बनी थी। इन पांचों fractions का अपना एक अलग-अलग leader था। कौन से थे ये 5 fractions? ये थे बड़ौदा के गायकवाड़, नागपुर के भोसले, इंदौर के होल्कर, ग्वालियर के सिंधिया और पुणे के पेशवा।
पूरी confederacy का head actually में पेशवा को माना जाता था। कुछ minor conflicts तो काफी समय से ही रहे थे. इन सारे अलग-अलग fractions के बीच में लेकिन more or less ये united ही रहे अपने पूरे इतिहास में। specially नाना फडणवीस actually में गद्दी पर बैठे थे। लेकिन साल 1800 में फडणवीस का देहांत हो जाता है। इन अलग-अलग fractions के बीच में internal conflict बढ़ने लगता है। एक बार फिर से जहाँ पर कोई internal conflict होने लग रहा है.
वहां पर ब्रिटिश की आँखे खुल जाती है। उन्हें अपना मौका दिखता है यहाँ पर वो देखो दो लोग एक दूसरे से लड़ने लग रहे हैं। मेरे लिए ये golden opportunity है उन दोनों का फायदा उठाने की। साल 1800 में governor general थे Lord Wellesley. पांचों factions के मराठा leaders को invitation देते हैं कि आओ subsidiary alliance करो हमारे साथ। लेकिन सारे leaders ने इस ऑफर को thankfully रिजेक्ट कर दिया। बात क्या थी साल 1795 में माधव राव-2 का देहांत हो गया था और रघुनाथ राव के बेटे वही रघुनाथ राव उनके बेटे बाजीराव-2 अगले पेशवा बने।
अब बाजीराव-2 की relationship बिल्कुल भी अच्छी नहीं होलकर के leader यशवंत राव होलकर के साथ। बाजीराव-2 actually में उनके भाई को मरवा दिया था। इसलिए साल 1802 में यशवंत राव decide करते हैं कि मैं यहाँ पर बदला लूंगा अपने भाई की मौत का। वो जंग छेड़ देते हैं पेशवाज और सिंधियाज के खिलाफ। नतीजा इसका ये होता है कि पुणे के पेशवाज को अपना पुणे छोड़कर भागना पड़ता है और अब बाजीराव-2 को दिखता है अपने आस-पास कोई मदद के लिए नहीं है उनके। तो वो किसके पास जाते हैं मदद लेने के लिए। वो जाते हैं ब्रिटिश के पास।
वो जाकर ईस्ट इंडिया कंपनी से कहते हैं कि मेरी मदद करो मुझे पेशवा फिर से बनना है. ये कहानी सुनकर ब्रिटिश की आँखों में डॉलर्स के साइन आ जाते हैं और मुँह से लार टपकने लग जाती है. उन्हें दीखता है कि ये तो बहुत ही आसान तरीका है पुणे का कंट्रोल लेने का. वो बाजीराव-2 कहते हैं कि इधर आओ इस treaty को साइन करो हमारे साथ, subsidiary alliance बनाओ हम मदद दे देंगे और पेशवा फिर इस subsidiary alliance में चले जाते हैं।
इस treaty के अनुसार करीब 6000 लोगों की ब्रिटिश आर्मी स्टेशन रहेगी पुणे में. लेकिन पेशवा को अपनी territory सूरत में surrender करनी पड़ेगी और जैसा बाकी subsidiary alliances के था. अब पेशवा कभी भी war नहीं afford कर सकते और alliances नहीं बना सकते ईस्ट इंडिया कंपनी की permission के बिना।
अब ऐसा होता देखकर सिंधिया और भोसले बड़े गुस्से में आ जाते हैं. ये क्या कर दिया पेशवा ने. हमसे बिना पूछे यहाँ पर एक डील कर ली इनके साथ. वो इस treaty को recognize करने से ही मना कर देते हैं और फिर शुरू होती है. Second Anglo Maratha War साल 1803 में इस war में सिंधिया और भोसले अपनी पूरी कोशिश करते हैं मराठा को independent रखने की. बाद में holkers भी इनके support में आते हैं लेकिन दूसरी तरफ ब्रिटिश को ना सिर्फ पेशवा से support मिलने लग रहा था बल्कि गायकवाड़ से भी. literally इस point of time पर मराठा जो empire था वो अपने बीच में ही पूरी तरीके से split हो गया. एक तरफ सिंधिया, भोसले और होल्कर लड़ाई कर रहे हैं. दूसरी तरफ पेशवाज और गायकवाड़ ब्रिटिश के साथ alliance कर रहे हैं।
अब आप पूछोगे यहाँ पर गायकवाड़ क्यों? लेकिन ब्रिटिश के साथ allly कर रहे हैं. इसके पीछे reason था साल 1802 में ब्रिटिश ने actually में मदद करी थी गायकवाड़ के एक leader को leader बनने में. internal conflicts चल रहे थे स्टेट में. फिर से ब्रिटिश ने आ के interrupt किया, मदद करी एक की और गद्दी पर बिठा दिया उन्हें। साल 1803 में Battle of Asai और Battle of Argaon में ब्रिटिश फोर्सेज सिंधिया और भोसले को हरा देती है। सिंधिया से एक treaty साइन करवाई जाती है, भोसले से एक treaty साइन करवाई जाती है।
दोनों treaty में एक बड़ा हिस्सा अपनी territories का उन्हें ब्रिटिश को देना पड़ता है। इन territories में दिल्ली-आगरा का region था, बुंदेलखंड का region था. अहमदनगर था, गुजरात के कई parts थे जो ब्रिटिश के पास चले गए. सिंधिया और भोसले को रास्ते से हटाने के बाद अब holkers अकेले बचे थे। ब्रिटिश और होल्कर के बीच का conflict 1805 तक चलता रहा. जिसके बाद वो भी हार गए। उनसे भी एक treaty sign करवाई गई और इस तरीके से Second Anglo Maratha War ख़तम होती है. जिसमें ब्रिटिश को एक बड़ी जीत मिलती है। होल्कर की treaty के बाद आज के दिन के राजस्थान की कई territory भी अब ब्रिटिश के हाथों चली गई। अब क्योंकि पेशवा actually में ब्रिटिश की साइट पर थे तो बाजीराव-2 को दुबारा से पेशवा बनाया जाता है मराठा confederacy का. फर्क ये था इस बारी कि अब वो puppet ruler थे ब्रिटिश के हाथों। लेकिन puppet rulers के साथ होता क्या है वो ज्यादा टाइम तक puppet बने नहीं रहे और यही चीज इस केस में भी हुई।
साल 1817 तक पेशवा realize कर चुके थे कि ब्रिटिश उन्हें पूरी तरीके से खत्म चाहते हैं। बाजीराव-2 secretly एक war की planning कर रहे थे जिससे ब्रिटिश को बाहर निकाला जा सके। इस planning में एक बड़ा हिस्सा था कि जो उस वक्त के एक लॉर्ड एलफिंस्टन थे उनका assassination किया जाएगा। बाजीराव-2 उनका assassination प्लान कर रहे थे। इस point of time तक मराठाओं की ताकत और authority काफी कमजोर पड़ चुकी थी क्योंकि constantly जो इनकम मिलता उन्हें वो ब्रिटिश के पास जा रहा था. military power उनके पास ज्यादा बची नहीं थी. इसी बीच एक last effort किया जाता है मराठाओं की तरफ से ब्रिटिश को हराने का. पेशवा बाजीराव जाकर होल्कर और भोसले के साथ हाथ मिलाते हैं. इतना ही नहीं बल्कि वो अफगान के लीडर आमिर खान के साथ भी जाकर हाथ मिलाते हैं।
सिंधिया शुरू में पार्टिसिपेट नहीं करना चाह रहे थे लेकिन बाद में वो भी इस एलायंस को ज्वाइन कर लेते हैं। लेकिन सालों से चली infighting की वजह से किंगडम्स बहुत कमजोर हो चुके थे। Third Anglo Maratha War में ब्रिटिश इनका पूरी तरीके से सफाया कर देती है और इस बारी ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी डिसाइड करती है कि कोई पेशवा का रूल नहीं होगा। पेशवाशिप का system ही खत्म कर दिया है. बाजीराव-2 को depost कर दिया जाता है कि वो pensioner की तरह बने रहेंगे और अपनी बाकी की जिंदगी वहीं गुजारेंगे और कुछ इस तरीके से मराठा empire का अंत होता है।
जो अलग-अलग fractions के leaders थे उनसे अलग-अलग treaty sign करवाई जाती है जैसे कि treaty of Pune-1817, treaty of gwalior-1817, treaty of Mandsaur- 1818. सारी territories ब्रिटिश के हाथों चली जाती है और East India Company के पास Indian subcontinent का two thirds कंट्रोल आ जाता है।
interesting चीज यहाँ ये देखने वाली है कि अगर यूनिटी बनी रहती अलग-अलग इंडियन kingdoms के बीच में तो बहुत-बहुत मुश्किल होता ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए पूरे subcontinent पर कब्जा जमाना। लेकिन यहाँ पर हमने देखा ना सिर्फ अलग-अलग Indian kingdoms एक दूसरे से fight करने लग रहे थे बल्कि empires के अंदर भी in fighting देखने को मिल रही थी. मराठा साम्राज्य के अंदर भी अलग-अलग leaders गद्दी के लिए लड़ रहे थे. मुगल हुकूमत के अंदर भी अलग-अलग leaders गद्दी के लिए लड़ने लग रहे थे। इस चीज का यहाँ पर सबसे बड़ा फायदा उठाया ईस्ट इंडिया कंपनी ने specifically कहा जाए तो Second Anglo Maratha War से पहले East India Company के सामने एक और बड़ी ताकत थी जो उनके लिए मुसीबत बन रही थी the Mysore kingdom और उनके legendary ruler Tipu Sultan और सबसे बड़ा twist.
यहाँ पर कहानी में ट्विस्ट ये है कि Mysore kingdom को खत्म करने के लिए East India Company ने Maratha Empire के साथ alliance बनाई और उनका इस्तेमाल किया ये हुआ उस 20 साल के peaceful period में जब East India Company और Maratha’s के बीच में कोई जंग नहीं हो रही. जिसकी बात मैंने स्टोरी में पहले करी थी.