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1990 हेतल पारेख मर्डर केस: क्या वाकई निर्दोष को मिली थी फांसी? Hetal Parekh Murder Case

Hetal Parekh Murder Case: 1990 में एक ऐसा मर्डर केस सामने आया जिसने पूरे देश को झकझोर दिया। कोलकाता के भवानीपुर इलाके में हुए हेतल पारेख मर्डर केस में सुरक्षा गार्ड धनंजय चटर्जी को फांसी की सजा दी गई। लेकिन सालों बाद इस मामले में उठे सवालों ने इसे भारत के न्यायिक इतिहास में विवादित बना दिया। क्या जो अपराध धनंजय ने किया, वह दोषसिद्धि तक सही ढंग से साबित हुआ? या वह सच में निर्दोष था? आइए, इस केस की पूरी कड़ी की जांच करते हैं।

Hetal Parekh Murder Case

प्रारंभिक कहानी: हेतल पारेख की हत्या

5 मार्च 1990 को, हेतल पारेख अपने कोलकाता स्थित अपार्टमेंट में मृत पाई गईं। वह महज 14 साल की स्कूल छात्रा थीं। उनकी मां मंदिर गई थीं, और भाई व पिता घर से बाहर थे। जब उनकी मां लौटीं, तो घर का दरवाजा अंदर से बंद था। अंततः पड़ोसियों की मदद से दरवाजा तोड़ा गया, और अंदर हेतल का निर्वस्त्र शव खून से लथपथ फर्श पर मिला। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक, उनके शरीर पर चाकू के 21 वार के निशान थे।

धनंजय चटर्जी, जो पहले उसी अपार्टमेंट में गार्ड के रूप में काम करता था, उस शाम अपार्टमेंट में नजर आया था। इस आधार पर, पुलिस ने उसे मुख्य संदिग्ध माना। शुरुआत में, पुलिस को कई चीज़ें फायदा पहुंचाती लगीं, जैसे विषम परिस्थिति वाले सबूत। गवाहों और परिजनों के बयान के आधार पर धनंजय पर आरोप लगाया गया।

मुख्य सबूत और पुलिस की जांच

पुलिस द्वारा तलाशी के दौरान निम्न बातें सामने आईं:

  • हेतल के घर से टूटा हुआ सोने का चेन, पीले रंग की शर्ट का बटन और फटी हुई पैंटी मिली।
  • धनंजय के घर से एक घड़ी और पीली शर्ट-ट्राउजर मिली, जिसे घटना वाली शाम उसने पहनने का दावा किया गया।
  • पोस्टमॉर्टम में हेतल पर चाकू के वार और गला घोंटने के निशान पाए गए।
  • धनंजय ने खुद को निर्दोष बताया, लेकिन गायब होने की वजह कमजोर बताई – वह भाई के जनेऊ संस्कार के लिए गांव गया था।

अदालत में सुनवाई और फैसले

निचली अदालत में केस को परिस्थितिजन्य सबूतों के आधार पर मजबूत माना गया। हेतल की शिकायत से धनंजय का ट्रांसफर हुआ था, जिसे हत्या का मोटिव बताया गया। अदालत ने उसे दोषी मानते हुए मौत की सजा दी।

कलकत्ता हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील के बावजूद यह सजा बरकरार रही। अंततः 14 अगस्त 2004 को धनंजय को फांसी दी गई। मृत्युदंड से पहले उसने आखिरी शब्द कहे, “मैं निर्दोष हूं। मुझे फंसाया जा रहा है।”

क्या न्याय प्रक्रिया में हुई थी चूक?

साल 2015 में इस केस पर इंडियन स्टैटिस्टिक्स इंस्टीट्यूट (ISI) ने रिपोर्ट तैयार की। इसमें न्याय प्रक्रिया पर कई सवाल खड़े किए गए:

  1. डीएनए जांच की कमी: हेतल के नाखूनों और कपड़ों से लिए गए नमूने के डीएनए परीक्षण नहीं हुए।
  2. मर्डर वेपन का अभाव: हत्या में इस्तेमाल चाकू कभी बरामद नहीं हुआ।
  3. सबूतों की सटीकता पर सवाल: बरामद घड़ी का वैधता प्रमाण नहीं मिला।
  4. गवाहों के बयान बदले: लिफ्ट ऑपरेटर ने पहले धनंजय को ऊपर जाते देखा, फिर बयान से पलट गया।
  5. परिवार की भूमिका संदेहास्पद: हेतल की मां ने पुलिस को सूचना देने में तीन घंटे की देरी की।

ऑनर किलिंग की संभावना?

ISI रिपोर्ट में ऑनर किलिंग की आशंका भी जताई गई। रिपोर्ट के मुताबिक, पुलिस ने इस एंगल की जांच नहीं की। ऐसे कई सवाल छोड़े गए जिनका उत्तर कभी नहीं मिला।

निष्कर्ष: सबक और सवाल

धनंजय चटर्जी की फांसी एक मिशाल बनी, लेकिन इसके साथ कई सवाल भी खड़े हुए। यह मामला हमें न्याय प्रणाली में सटीक और निष्पक्ष जांच के महत्व की ओर इशारा करता है।

क्या सच में उस शाम हेतल की हत्या धनंजय ने की? या वह इंसाफ के नाम पर हुई एक भूल का शिकार था? ये सवाल आज भी अनुत्तरित हैं।

आप इस केस के बारे में क्या सोचते हैं? हमें अपने विचार नीचे कमेंट में जरूर बताएं।

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