Maithili Thakur Life Story: लोकगायिका मैथिली ठाकुर ने अपनी आवाज़ और कला से न केवल बिहार बल्कि पूरे भारत का दिल जीत लिया है। उनका सफर गांव की गलियों से होते हुए अंतरराष्ट्रीय मंच तक पहुंचा है। उनके गीत, उनके संघर्ष, उनका परिवार, और उनकी जुबान मैथिली भाषा—ये सब उनकी कहानी को और गहराई देते हैं।
उनके गानों में सिर्फ संगीत नहीं, बल्कि संस्कृति की मिट्टी की महक है। मैथिली ठाकुर ने हाल ही में बिहार तक के साथ खास बातचीत में अपने जीवन, सफर, और लोकसंगीत को लेकर खुलकर बात की।
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Maithili Thakur Life Story
शुरुआती सफर और परिवार का साथ
मैथिली ने हारमोनियम पर पहली बार मीरा का भजन ‘ऐसी लागी लगन’ गाया था। उनके संगीत की शुरुआत उनके बाबा के साथ हुई, जो धार्मिक गीतों के बड़े जानकार थे। बचपन में घर पर राम-सीता विवाह की कहानियां सुनते-सुनते उन्होंने संगीत सीखा। उनके बाबा सिर्फ दादा नहीं, बल्कि उनके पहले संगीत-गुरु भी हैं।
जब उनका परिवार दिल्ली आया तो जीवन का असली संघर्ष शुरू हुआ। मैथिली को अपनी बिहारी पहचान पर शुरू में स्कूल में ताने सुनने पड़े। लेकिन उनके माता-पिता ने उनका हौसला बढ़ाया। उनकी स्कूलिंग के दौरान, बाल भवन इंटरनेशनल स्कूल ने उन्हें और उनके भाई-बहनों को स्कॉलरशिप दी, जिससे उनका संगीत और पढ़ाई दोनों जारी रह सके।
सोशल मीडिया और रियलिटी शो: सफर का नया मोड़
सोशल मीडिया ने मैथिली को एक अलग पहचान दी। उन्होंने यूट्यूब पर वीडियो अपलोड करना शुरू किया और जल्द ही उनकी आवाज़ ने लाखों दिल छू लिए। चाहे वह रियलिटी शो का मंच हो या अपने लोकगीतों को री-क्रिएट करना, मैथिली ने हर जगह अपनी छाप छोड़ी।
उन्होंने शेयर किया कि रियलिटी शो में रनर-अप रहना उनके लिए वरदान जैसा था। विनर बनने के ट्रेंड से हटकर उन्होंने अपने लोकगीतों और मैथिली भाषा को बढ़ावा देना चुना। यही वजह है कि आज वे बिहार की आवाज़ के तौर पर पूरी दुनिया में जानी जाती हैं।
लोकसंगीत और बिहार की मिट्टी से जुड़ाव
मैथिली ने अपने पिता के सुझाव पर पारंपरिक गीतों को बचाने की ठानी। वे उन गीतों को गाती हैं जो अब सुनाई नहीं देते। जैसे ‘हम तो पाती लेके आवत बनी,’ जो राजा दशरथ और राम-सीता विवाह पर आधारित लोकगीत है।
उनका मानना है कि लोकसंगीत सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति का अटूट हिस्सा है। आज मैथिली ने अपने गीतों से न केवल बिहार की संस्कृति को बचाया, बल्कि उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई।
पर्सनल लाइफ और बिहारी पहचान
मैथिली की सादगी उनके व्यक्तित्व का हिस्सा है। वे साड़ी पहनने की शौकीन हैं और मंच पर भी अपनी परंपरा को दिखाने से हिचकिचाती नहीं। उनके भाई ऋषभ और अन्य परिवार के सदस्य भी उनके साथ हर कदम पर खड़े रहते हैं।
बचपन में उन्हें अपनी पतली काया को लेकर तानों का सामना करना पड़ा, लेकिन अब यही तानें तारीफों में बदल चुके हैं। वे कहती हैं कि बिहारी होना उनके लिए गर्व की बात है।
बिहार का गौरव, भारत का सम्मान
मैथिली ठाकुर को हाल ही में बिहार का ब्रांड एम्बेसडर बनाया गया। जितने भी बड़े मंचों पर वे जाती हैं, वहां वे खुद को बिहारी कहने में गर्व महसूस करती हैं। उनके गीतों ने यह साबित कर दिया कि अश्लीलता के बिना भी कला को ऊंचाइयों पर पहुंचाया जा सकता है।
पिता का योगदान और गीतों का महत्व
मैथिली के पिता सिर्फ गुरु नहीं, बल्कि उनकी प्रेरणा हैं। वे हमेशा मैथिली को कड़े शब्दों में सुधार सलाह देते हैं। उनका एक पसंदीदा गीत, ‘बंसी वाला’ मैथिली अक्सर गाती हैं और यह उनके परिवार की सबसे प्यारी धरोहरों में से है।
लोकगीतों के प्रति प्रतिबद्धता
मैथिली ठाकुर ने साफ किया कि वे बॉलीवुड में गाना नहीं चाहतीं क्योंकि उनका दिल लोकसंगीत में बसता है। उनकी प्राथमिकता हर उस गीत और परंपरा को संरक्षित करना है, जिसके बिना हमारी संस्कृति अधूरी है।
आदर्शवादी सोच और भविष्य की योजना
मैथिली कहती हैं कि समाज में बदलाव लाने के लिए संगीत एक सशक्त माध्यम है। उन्होंने शराबबंदी के समर्थन में ‘अब ना जाओ दारू की दुकान’ जैसे गीत गाकर सामाजिक संदेश दिया।
निष्कर्ष
मैथिली ठाकुर सिर्फ एक कलाकार नहीं, बल्कि बिहार की परंपराओं की संरक्षक हैं। उनके गीतों में एक ऐसा अपनापन है, जो हर दिल को छूता है। उनकी कहानी हमें सिखाती है कि जड़ों से जुड़े रहकर भी आसमान की ऊंचाई छूई जा सकती है।
आप मैथिली ठाकुर के सफर के बारे में क्या सोचते हैं? अपने विचार साझा करें और उनके गीतों को सुनना न भूलें। बिहार का यह गौरव हर संगीत प्रेमी के लिए एक प्रेरणा है।
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