Why Indian Startups are Failing: हमेशा से बिजनेस का एक ही मूल मंत्र माना जाता है और वो है profit. profit by creating and selling something valuable. अब आप चाहे एक चाय का ठेला लगाते हो या फिर आप एक multinational कंपनी के owner हों। लंबे समय से ये माना जाता रहा है कि आपकी balance sheet में दिखने वाला profit ही आपके बिजनेस की succeed और failure का आसान पैमाना है।
लेकिन बीते एक दशक में कुछ ऐसा हुआ है जिसने ना केवल इस बिजनेस के मूल मंत्र को बल्कि पूरे बिजनेस ecosystem को ही बदलकर रख दिया। इसकी शुरुआत तो innovative ideas के through आम जनता की problems और requirements को solve करने के purpose से हुई थी. लेकिन आज मानो इसने पूरे conventional बिजनेस मॉडल और ecosystem की दशा और दिशा दोनों को बदल कर रख दिया है और जिसके चलते अब focus profit making या value creation के बजाय creation of valuation की ओर शिफ्ट होता जा रहा है।
Why Indian Startups are Failing
जी हाँ यहाँ हम बात कर रहे हैं startup ecosystem की। वही ecosystem जिसने PayTM, Zomato, Grofers, Byju’s, Swiggy और Flipkart जैसे अनगिनत नामों को हमारी जिंदगी का हिस्सा बना दिया है। and this is a only reason कि आजकल हर कोई startups establish करने और Shark Tank जैसे shows में जाकर अपने ideas pitch करने की बातें करता है।
schools और colleges के बच्चों से लेकर अपना retirement enjoy कर रहे elderly people तक सब इस startup wave में शामिल होना चाहते हैं। यहाँ तक कि equity, valuation, venture capitalist, revenue share, finance के hardcore terminology भी आम बोलचाल का पार्ट बन गए हैं. यही कारण है कि चाहे कोई नया startup market से funding उठाए या one billion यूएस डॉलर का valuation achieve करके unicorn बन जाए. यह सभी खबर front page पर न्यूज़ material बन जाती है.
इसी के चलते एक रिपोर्ट के अनुसार आज यूएस और चाइना के बाद दुनिया का third largest startup ecosystem इंडिया में मौजूद है. एक ऐसा ecosystem जिसने calendar year 2022 में second highest, 23 unicorns add किए हैं.
लेकिन क्या आप जानते हैं कि भारत के ज्यादातर startups और so called unicorns जो अब तक भारत में सौ का आंकड़ा पार कर चुके हैं basic business intellect के against जाकर लगातार loss में चल रहे हैं। and you will be shocked to know कि Swiggy, Flipkart, Oyo, Unacademy, Misho, Udaan, PhonePe, Pharmeasy, भारत पे, Paytm, Byju’s इत्यादि जैसे ज्यादातर Well known Startups जो one billion US Dollar के valuation के साथ Unicorn होने का दम भरते हैं आज भी unsustainable loss making बिजनेस मॉडल में फंसे हुए हैं।
इसके चलते मार्च 2023 की एक रिपोर्ट के अनुसार इंडिया के seventy four analyse unicorns में से fifty five unicorns fiscal year 2022 में 5.9 बिलियन डॉलर के operating loss पर खड़े हैं। यही कारण है कि आज बहुत से बिजनेस analyst और expert का ये मानना है कि भारत एक स्टार्टअप valuation bubble witness कर रहा है और ये bubble इसलिए है क्योंकि ये startups market में बने रहने के लिए profit making पर नहीं बल्कि वेंचर capitalist के फंड से cash burn पर निर्भर है।
companies द्वारा cash burn से मतलब है दोस्तों उनका अपने generated profit के बजाय additional funding और investment के दम पर expenses करके मार्केट में बने रहने से है। तो ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर ये सभी स्टार्टअप्स लॉस मेकिंग है तो आखिर इस ecosystem में चल क्या रहा है? क्योंकि जब एक particular segment की economy लगातार loss register कर रही है तो उसकी valuation कैसे बढ़ सकती है? यहाँ तक कि कुछ market analyst तो स्टार्टअप के इस funding और valuation के गेम को venture capitalist का एक systematic scam भी मान रहे हैं, जो जल्द ही burst होने वाला है.
तो क्या वाकई ये bubble जल्द ही burst होने वाला है? चलिए आज इस situation को हम critically examine करने की कोशिश करते हैं और जानते हैं कि ये possible कैसे हो पा रहा है? और क्या इसके कुछ positive aspects भी हैं.
दोस्तों भारत में startup कल्चर का craze ऐसा है कि economic सर्वे 2022-23 के according जहाँ एक और 2016 में भारत में four fifty two डीपी आईआईआईटी यानी department for promotion of industry and internal trade द्वारा recognized startups थे. वहीं दिसंबर दो हजार बाईस तक ये आंकड़ा बढ़कर eighty four thousand twelve हो गया है।
लेकिन अगर हम valuation के मामले में इन सभी startups में से सबसे ऊपर बैठे Unicorn Startups के recent data पर गौर करें तो हम पाएंगे कि फाइनेंसियल ईयर 2022 के लिए reported data के अनुसार Flipkart ने seventy-eight hundred करोड़, Swiggy ने three thousand six hundred twenty nine करोड़, Meesho ने three thousand two hundred forty seven करोड़, उड़ान ने three hundred thirty करोड़, Unacademy ने two thousand eight hundred forty two करोड़, Pharmeasy ने two thousand seven hundred thirty-one करोड़, PhonePe ने two thousand fourteen करोड़ का Loss register किया है.
Profit ने Loss register किया है और Losses की ये list इसी तरह आसमान छूती नजर आती है. reports के अनुसार इण्डिया की fifty five most loss making unicorns का medium expenditure to revenue ratio भी one point five रहा है यानी इन companies ने एक रुपए का revenue generate करने के लिए डेढ़ रुपए खर्च किए हैं। हालांकि इसी बीच जोहो, ज़िरोधा, billdesk, ड्रीम eleven, फिजिक्स वाला जैसे यूनिकॉर्न्स भी थे, जिन्होंने scalable profit earn किया।
लेकिन ऐसे स्टार्टअप्स की संख्या उंगलियों पे गिनी जा सकती है। वहीं इस operating loss को कम करने और cash burn को minimize करने के लिए इन स्टार्टअप से mass scale पर layoffs भी देखने को मिले हैं. startup को ट्रैक करने वाली ऑनलाइन publication आईएनसी forty two की एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2022 से अब तक इंडिया के leading unicorns ने twenty five thousand से ज्यादा employees को layoff कर दिया है. इसमें सबसे चौंकाने वाली बात ये थी कि इंडिया की most valuable startups बाइजूस ने twenty five hundred से ज्यादा employees को बाहर का रास्ता दिखाया है.
और शायद आगे ये नंबर और भी बढ़ सकता है और ऐसा ही trend ओला, मिसो, ब्लिंकिट, Unacademy, Vedantu, cars twenty-four, Denzo जैसे eighty-eight दूसरे leading startup से भी देखने को मिल रहा है. यही नहीं cash flow create ना कर पाने की वजह से बीते साल ही Anupam Mittal, Vijay Shekhar Sharma जैसे दिग्गजों द्वारा backed edtech Startup Lido Learning, Ex Flipkart card executives Anil Guteti और Mausam Bhatt और matrix partners backed SAS startup, proton, Nandan Nilekani backed shopX और ना जाने कितने ही promising माने जा रहे startups या तो bankrupt हो गए या shutdown कर दिए गए।
इस तरह अमेजॉन ने अमेजॉन academy, अमेजॉन foods और अमेजॉन distribution के रूप में अपने तीन verticals ओला ने Ola cars, Ola Dash और Ola Play के रूप में तीन verticals को बंद किया और इन सभी closure के पीछे कारण था lack of profitability या exponentially rising cash burn.
दूसरी और जहाँ दो हजार इक्कीस में Zomato, Freshworks, Paytm, Policy बाज़ार और Nykaa जैसे brands ने जोर-शोर से share market पर अपने आईपीओस यानी initial public offerings release की थी जो कुछ समय में औंधे मुंह गिर गई और लिस्ट होने के बाद से ही cumulatively इन stocks के prices fifty five परसेंट से भी ज्यादा गिर चुके हैं. नतीजा ये हुआ कि listed startups के poor performance को देखते हुए बहुत से दूसरे startups जो जल्द ही शेयर मार्केट पर लिस्ट होने की तैयारी कर रहे थे.
उन्होंने अपने हाथ खींच लिए। उदाहरण के लिए Delhivery, Mobikwik और Pharmeasy ने सेबी से स्वीकृति मिलने के बाद भी शेयर मार्किट पर लिस्ट होने का अपना फैसला बदल लिया। इसमें venture capitalist के द्वारा hyped up valuation से दूर जब रियल मार्केट में इन नामी गिरामी प्लेयर्स के स्टॉक्स गिरे तो मार्केट को भी इनकी overvalued structure की भनक लग गई और आम जनता को भी. Analyst का मानना है कि पेटीएम के शेयर्स के गिरने की वजह से अब सभी पेमेंट कंपनीज के actual valuation के बेंचमार्क को revaluate करा जा रहा है।
यही कारण है कि बीते साल ओक्टूबर में Pay U द्वारा बिल्देस्क के four point seven बिलियन डॉलर के purchase को कॉल ऑफ कर दिया गया था। ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर ये स्टार्टअप्स इतने ही valuable हैं और इनका Growth potential इतना अच्छा है कि इनके investors ने इन्हें कोई भी real profit earn करने के पहले ही unicorn status provide करवा दिया तो फिर ये earn क्यों नहीं कर पा रहे?
इसको हम multiple steps में समझते हैं। तो कई experts का मानना है कि at present इंडिया का startup market एक बबल की तरह है। इसके चलते इन firms के real value का इनके valuation से कोई इंटर connection नहीं है और इसी के example देते हुए ये experts हमें इतिहास में थोड़ा पीछे लेकर जाते हैं।
दोस्तों इस ongoing cash burn और so called startup bubble को कुछ market experts यूएस के लगभग दो दशक पुराने डॉट कॉम crisis से compare करते हैं। ऐसा ही एक bubble हमने late ninety nineteen में यूएस की newly emerging tech based startup fuel economy के दौरान भी देखा था। जिसे उस समय की newly emerging internet based डॉट कॉम startups के नाम पर डॉट कॉम bubble या डॉट कॉम boom कहा गया था।
common man के बीच internet adoption के massive growth venture capitalist की rapid progress डॉट कॉम स्टार्टअप companies के positive growth expectations के कारण इनकी बढ़ी हुई market valuation के चलते market में एक ऐसा bubble बन गया था।
इसे देखकर सबका यही मानना था कि आने वाले सा लो में ये डॉट कॉम companies किसी gold mine से कम नहीं होंगी। यही कारण है कि इन ऑनलाइन companies की demand की वजह से ही nineteen ninety five से लेकर two thousand mid तक Nasdaq composite stock market index में five hundred percent का rise देखने को मिला। लेकिन अगले एक साल में ही ये bubble ऐसा फूटा कि market से लेकर investors तक सब देखते रह गए।
रातों-रात सैंकड़ों ऑनलाइन स्टार्टअप्स पर ताले पड़ गए। उस दौरान अमेजॉन और सिस्को जैसी newly emerging companies को भी बड़ा झटका लगा और सिस्को का तो market valuation ही eighty percent से गिर गया. experts का मानना है कि इस bubble bust के पीछे ज्यादातर डॉट कॉम companies की fraud business policies थी जिसमें वो venture capitalist के invested fund से advertising और promotions पर heavily invest कर रहे थे।
वो जल्द से जल्द network effect की मदद से market share और users के बीच mind share grow करना चाहते थे। लेकिन इन सबके बीच अपने operating cost और piling losses पर ध्यान नहीं दे रहे थे। उस दौरान इन डॉट कॉम startups के फेमस मोटोस भी कुछ इस तरह थे जैसे get big फास्ट, get large और get lost. ऐसे में जल्द से जल्द अपनी popularity और consumer base बढ़ाने के लिए ये companies अपने services और products फ्री या discounted प्राइस में देने लगे।
इनका मानना था कि अगर एक बार consumer के बीच इनकी पकड़ बन गई और ब्रांड awareness develop हो तो future में ये profitable rates charge करके अपनी services provide कर पाएंगे और इससे ये अपने previous losses और future growth दोनों को ही फंड कर लेंगे। ऐसे में growth over profits की ये mentality और new economy invincibility के aura में कुछ companies ने ब्रांड promotion और engagement के नाम पर इतना laviously स्पेंड करना शुरू कर दिया कि ये बबल burst हो गया क्योंकि इन startups के लिए वो growth का दौर कभी आया ही नहीं।
ऐसे में market experts का मानना है कि इंडियन startup ecosystem भी शायद unfortunately वही स्टोरी repeat करने जा रहा है और एक बार फिर से वैसा ही crash हमें Indian startup ecosystem में देखने को मिलेगा।
लेकिन वहीं इसकी उलट market experts का एक ऐसा group भी है जो इस सोच से इत्तेफाक नहीं रखता। उनका कहना है कि आज के competitive world में business establish करने के लिए भी एक different approach की जरूरत है। ऐसे में recurring losses को cash burn की तरह नहीं बल्कि investment on future growth potential की तरह देखना चाहिए।
तो क्या है ये innovative business model? आइए जानते है. दोस्तों डॉट कॉम बबल crisis को लेकर यूएस economist रोबर्ट J श्चिल्लेर का कहना था कि nothing important as ever build without irrational exurbance यानी कुछ बड़ा build करने के लिए कुछ बड़े और irrational लगने वाले खर्चे करने ही पड़ते हैं after all आज हम अमेजॉन और गूगल जैसे जो Tech Giants देख रहे हैं वो भी इसी डॉट कॉम bubble का ही नतीजा है जिनमें मुश्किल conditions में भी innovative approach और sustainable business मॉडल create करके एक so called बबल से भी positive outcome निकाल दिया।
आज इंडियन स्टार्टअप्स भी ऐसा ही कुछ replicate करने की कोशिश कर रहे हैं। इसके बारे में serial entrepreneur और cred के founder कुनाल शाह कहते हैं common businesses के conventional business मॉडल से बिल्कुल अलग मॉडल पर वर्क करते हुए tech companies large distribution और engagement create करने के लिए शुरुआती सालों में heavy invest करती है जिसके बल पर ही वो लेटर stage पर monetization को expect कर सकती है। असल में startups किसी ना किसी सोशल problem या basic need को एक innovative solution के through solve करने की कोशिश करते हैं।
ऐसे में एक startup के लिए उसका innovative आइडिया ही प्राइम होता है। for example online cabs book करना, घर बैठे-बैठे खाना मंगवाना, अपने order package को ट्रैक कर पाना, share market में invest करना कुछ clicks से easily money transfer करना, ये सारे solution इन startups ने ही हमको दिए हैं। यही नहीं credit card bills के timely payments easy money landing जैसे complex, needs services भी हमें इन startups के through ही देखने को मिले हैं।
इस तरह के ideas को back करने वाले लोगों का मानना है कि एक Successful business establish करने के लिए सबसे जरुरी है कि इससे पहले कि कोई deep pocketted competition इन्हीं का idea use करके market में खड़ा हो जाए ये जल्द से जल्द अपना ब्रांड market में establish करें जिसके लिए इन्हें phalanthropic angel investor से लेकर systematic venture capitalist तक की जरूरत पड़ती है जो इनके उस idea में invest करते हैं वो idea जो भले ही अब तक एक successfully running business enterprise में convert नहीं हुआ हो.
लेकिन उस idea में वो potential हो कि यदि उसे सही funding और सही guidance दी जाए तो आने वाले समय में वो एक profitable और मार्केट changing बिजनेस establish कर पाएगा।
यही कारण है कि initial स्टेज पर ये स्टार्टअप्स profits को priority देने के बजाय advertisements के through अपने ब्रांड establishment और growth of user base और market equity को priority देते हैं। अक्सर ये expenses और profit का difference इसलिए भी होता है क्योंकि मार्किट और आम जनता एक आईडिया को एक्सेप्ट करने में कुछ वक्त लेते हैं। for example जब पेटीएम या गूगल पे जैसे ऑनलाइन पेमेंट ऐप्स आए थे तब हम में से ज्यादातर लोग के पैरेंट्स इनके through पेमेंट्स करने से बचते थे.
उनका मानना था कि इससे फ्रॉड या राँग पेमेंट होने की आशंका है। उनके नजरिए से ये खतरा इसलिए भी था क्योंकि वो इस टेक्नोलॉजी और मोबाइल ऐप्स को use करने के लिए तैयार नहीं थे। इसके चलते उन्हें इस पेमेंट सिस्टम को एक्सेप्ट करने में कुछ टाइम लगा। साथ ही इन services को ग्रास रूट तक पहुंचाने के लिए भी इंटरनेट penetration और affordability बढ़ाए जाने की जरूरत थी, जिसमें कुछ वक्त लगना काफी obvious था।
ऐसे में इस मेन टाइम में जहाँ एक स्टार्टअप का user भी धीरे-धीरे grow हो रहा होता है उस वक्त पर इन्हें funding की requirement ज्यादा होती है। अक्सर competing companies users को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए better service और user experience के साथ-साथ lucrative offers से भी attract करने की कोशिश करती है। इसे आप अक्सर स्विग्गी, जोमाटो, अर्बन कंपनी या पेटीएम जैसे एप्स के स्क्रैच कार्ड्स या discount coupons या फिर फ्री डिलीवरी जैसे offers में देख सकते हैं।
या कुछ इसी तरह का approach जियो के सिम के launch के दौरान भी देखने को मिला। जहाँ आपने user base को consolidate करने के लिए जिओ ने शुरू के कुछ साल अपनी service almost free में provide की थी जबकि इसके बाद इसी strategy को follow करके Jio का user base ना केवल बढ़ा बल्कि Jio की services के लिए लोग habitual भी हो गए। वहीं दूसरी ओर इस extreme प्राइस war के market में उसका competition कम हो गया।
और तब जिओ ने अपने profits earn करने के लिए strategy में भी बदलाव कर दिया। ऐसे strategy सिर्फ जिओ ने ही नहीं बल्कि past में ओला और उबर जैसी companies ने भी इस्तेमाल की है। आपको याद होगा कि एक समय था जब हमें taxis pick करने के लिए टैक्सी स्टैंड जाना पड़ता था। लेकिन फिर टैक्सी hiring companies आ गई जिन्होंने मोबाइल के through comparatively lesser prices और higher discount offers में ही हमें ये services provide कर दी.
अब समय के साथ जब OLA और Uber जैसी companies ने ना केवल प्राइस hike कर दिए हैं. बल्कि एक time surge pricing जैसे models यूज़ करने लगते हैं. फिर भी user के habitualization की वजह से हम आज भी इन्हीं services पर dependent हैं।
initial stage पर अपने network digital infrastructure और company fundamentals को strong करने के लिए भी इन startups को mass skill hiring करनी पड़ती है। इसमें आईटी इंजीनियर से लेकर marketing PR तक शामिल होते हैं।
वहीं advertising, ब्रांड ambassadors event जैसे marketing tactics के लिए भी पैसे की जरूरत होती है। ऐसे में इस बिजनेस मॉडल और इन startups के future growth को देखते हुए इनके investors भी इन्हें ऐसे करने की खुली छूट देते हैं। ये कुछ-कुछ वैसा ही है जैसे हम share market में किसी कंपनी के stocks में invest करते हैं। जहाँ एक कंपनी की growth को anticipate करते हुए हम उसमें अपना पैसा लगाते हैं।
बिल्कुल उसी तरह ये venture capitalist और बाकी बड़े investors भी इन startups के future potential और growing user base को देखकर ही इनमें invest करते हैं और एक limit तक cash burn भी allow करते हैं।
अब देखने में तो ये logic ठीक ही लगता है after all बिजनेस को grow करने के लिए initial investment तो करना ही पड़ेगा ना. लेकिन बहुत से market analyst का मानना है कि ये कोई innovative बिजनेस मॉडल नहीं बल्कि venture capitalist और investors का रचाया हुआ scam है. जो startup कल्चर के mass appeal और company valuation के inflation से एक ऐसी pyramid scheme चला रहे हैं जिसमें at the end नुकसान रिटेल investors का होने वाला है। तो चलिए अब हम startup कल्चर के इस डार्क साइड को भी समझ लेते हैं.
दोस्तों अब तक हमने regulated cash burn की strategy को तो समझ लिया लेकिन इसमें सवाल ये उठता है कि आखिर किस point पर जाकर इन cash burning businesses को profitable बनाया जाएगा। क्योंकि जैसा हमने देखा कि हमारी list में कुछ companies तो ऐसी भी है जो कई साल से business कर रही है लेकिन अभी भी वो profitable होने के बजाय cash burn stage पर ही फंसी हुई है?
ऐसा इसलिए भी है क्योंकि market में ना तो नए similar service provide करने वाले startups की कमी है और ना ही discount offers करने का कोई end. जैसे ही एक कंपनी अपने discount ऑफर्स बंद करती है उसके users दूसरी similar कंपनी के app पर switch कर लेते हैं। इसका prime example हम zomato और सुईगी के रूप में देख सकते हैं। यही कारण है कि अपना user base बढ़ाने के लिए companies को recurring cash burn करते रहना पड़ता है।
तो आखिर ऐसे startup में startup founders और इनके investors पैसा कमा कैसे रहे हैं? दोस्तों यहाँ पर सब एक simple strategy को use कर रहे हैं। जो है strategy of finding of bigger fool. market experts का कहना है कि आज इंडियन startup system के असली players बड़े venture capitalist बनते जा रहे हैं। obviously investors किसी startup में invest के बदले equity लेते हैं और यही equity उनकी lottery ticket बनती है क्योंकि यहाँ से खेल शुरू होता है
company valuation का जैसे ही कोई बड़ा नाम या venture capital firm किसी startup के साथ जुड़ती है तो market में उसके future growth के expectation और in turn उसका valuation बढ़ने लगता है। हर passing round of funding के साथ startup में invested money और उस startup का anticipated valuation बढ़ता चला जाता है इस rising wave के बीच ये venture capitalist और startups के owner उसमें अपनी equity dissolve करते चले जाते है,
इसके बदले उन्हें inflated value पर अपने actual invested amount का high premier मिलता जाता है और company में उनकी जगह ले लेता है next fool एक ऐसा फूल जो इस idea में believe करता है that this startup is still going to grow लेकिन ना तो कभी वो startup profitable बन पाता है और ना ही उसका actual success graph किसी को दिख पाता है दीखता है तो बस pumped money से inflate होता है user base market reach और valuation और startup equity के रूप में equity ownership के साथ ये sinking ship बस एक हाथ से दूसरे हाथ transfer होती रहती है,
mean while जो भी player सही time पर अपना investment over turn करता जाता है वही मुनाफे में रहता है लेकिन ये खेल यही नहीं रुकता अपनी इस inflated image को भूनाने के लिए ये companies stock markets में भी list हो जाती है लेकिन जब वहाँ इनका असल litmus test होता है तब तक बहुत देर हो जाती है और इस पूरे सर्कस में असल full बन जाता है वो retail investor जिसने इनके ब्रांड ambassadors, advertisements, ब्रांड promotions और स्टार investors को देखकर इन startups में invest कर दिया था।
वहीं अगर आप देखें तो कोई भी startup market space का poll star बने या failed shooting star इनके prime investors और startup founders कभी भी घाटे में नहीं रहते। वरना आप भी सोचकर देखिए कि loss making startup से अलग हुए इनके founders भी करोड़ों rupees का settlement amount कैसे achieve कर लेते हैं। ऐसे में जाहिर सी बात है कि जहाँ एक और स्टार्टअप कल्चर की शुरुआत सोशल problems के innovative solution provide करने के लिए हुई थी उसका focus अब innovation से हटकर valuation की गेम की ओर शिफ्ट हो चुका है।
जिसके founders higher valuation और market attention की limelight achieve करने के लिए पानी की तरह पैसा बहा रहे हैं। क्योंकि अब बिजनेस का prime motive value creation नहीं बल्कि creating valuation की ओर शिफ्ट हो चुका है। हालाँकि इन सभी intications के बाद भी इंडियन स्टार्टअप ecosystem track record यही शो करता है कि global level पर आज भी इस पर भरोसा बरकरार है.
दोस्तों साल भर पहले जब से यूक्रेन, रशिया war छिड़ा है तब से market experts का ये मानना था कि global instability और subsequents slowdown को देखते हुए एक funding mentor आने वाला है। जिसके investors भारत जैसे developing countries के ventures में risk based growth ढूंढने के बजाय stability और अपने asset consolidation को priority देना चाहेंगे।
ऐसे में experts का ये अनुमान था कि जहाँ इस war के पहले एक और इंडियन स्टार्टअप इको सिस्टम और मार्किट potential को देखते हुए दुनिया भर से भारत में mass scale investments देखने को मिल रही थी वहीं आने वाले समय में इसमें भारी कमी देखने को मिल सकती है जिसके चलते शायद पूरा Indian Startup ecosystem ही मुश्किल में पड़ जाए।
हालांकि इस funding winter में भारत में investment में कमी तो आई लेकिन सारी उम्मीदों के उलट Indian Startup ecosystem ने outperform करके दिखाया। startstics के मुताबिक calendar year twenty twenty two में calendar year twenty twenty one के comparison में annual investment twenty four percent कम होकर eighteen point two billion dollar तक रही। लेकिन इस गिरावट के भी ये pre pandemic year twenty nineteen के thirteen पॉइंट one billion डॉलर के आंकड़े से काफी ऊपर थी
इसका मतलब funding के लिहाज से adverse conditions में भी इंडियन startup ecosystem में global interest और investors का confidence बना हुआ है। यही नहीं slow down के बाद भी हमें दो हजार बाईस में बीते कुछ सालों का highest seed और early stage investment देखने को मिला। साथ ही इस साल total investment का sixty सिक्स percent non figures को देखकर ये साफ पता चलता है कि global stage इंडियन स्टार्टअप इको सिस्टम और उसके प्लेयर्स के growth potential पर भी भरोसा बरकरार है।
लेकिन इसी बीच कुछ और आंकड़े भी सामने आ रहे हैं। उदाहरण के लिए जनवरी और फरवरी दो हजार तेईस के available डेटा के मुताबिक जहाँ इसी बीच दो हजार इक्कीस में इंडियन स्टार्टअप्स ने eight point three billion dollar raise किए थे वहीं इस साल ये आंकड़ा केवल one point सिक्स बिलियन डॉलर का रहा। साथ ही September twenty twenty two में टाटा वन एम जी के बाद से इंडिया के किसी भी startup ने unicorn status achieve नहीं किया है।
वहीं बीते महीने तरह यूएस में banking crisis देखने को मिली जिसमें सिल्वर गेट, सिलिकॉन वेली बैंक और सिग्नेचर बैंक जैसे इंडियन startup friendly banks के नाम शामिल थे। market experts खास तौर पर Indian market के लिए funding winter और इंडियन startups के लिए funding crisis के बादल गहराने की बात कर रही हैं। और उनका यहाँ तक मानना है कि शायद ये बदलती परिस्थितियां भारत की newly emerging startup ecosystem की bubble burst की ओर इशारा करती हैं।
और अगर ऐसा है, तो क्या किसी तरह इस burst को रोका जा सकता है? है दोस्तों आज इंडियन starts अप पर छाए जिन संकट के बादलों की बात experts कर रहे हैं वो कहीं ना कहीं दो दशक पुराने डॉट कॉम crisis के in an around rotate कर रहे हैं हालाँकि इस case में situation और problems कुछ अलग है लेकिन बहुत सारी ऐसी सीख है जो हम उस डॉट कॉम bubble से ले सकते हैं ऐसे में इस bubble को बड़ा होकर burst होने से रोकने का सबसे सीधा और सटीक रास्ता cash burn को regulate, monitor और systematic redesign करने से गुजरता है.
सबसे पहले startups को अपने सभी Unnecessary overhead cost को reduce करना होगा उदाहरण के तौर पर data के according startups द्वारा किए जा रहे massive cashburn का एक बड़ा sum ब्रांड advertisement की ओर जा रहा है.
जहाँ ये startups celebrities से brand endorsement कराने के लिए television पर आईपीएल से लेकर न्यूज़ चैनल के shows तक अपने ब्रांड को promote करने के लिए लाखों करोड़ों रूपए खर्च कर रहे हैं हो सकता है कि ये कुछ हद तक important भी हो. लेकिन कई रिपोर्ट ने ये suggest किया है कि कई companies के marketing expenditure unexplanable हैं जो कहीं ना कहीं इन startups की ultimate growth और potential को कम कर रहे हैं.
Experts का मानना है कि startups अपने advertisements को minimize कर अपने product या service की quality को और बेहतर बनाने में लग सकते हैं. साथ ही इस burn को technology development product की betterment में invest किया जा सकता है. क्योंकि अगर आपके products में दम है तो minimum advertisement के साथ भी लोग उसे अपनाएँगे। companies इन advertisement पर होने वाले cash fund को एक systematic manner में carry forward कर सकती है. जहाँ initial brand को masses तक पहुँचाने के लिए ads पर पैसे खर्च किए जाए।
लेकिन वक्त के साथ जैसे-जैसे market raise बढ़ जाए उन्हें धीरे धीरे कम कर दिया जाए. advertisement या promotion की बजाय company अपने customer base को और strong और while बनाने के लिए इस cash का इस्तेमाल कर सकते है. जहाँ एक और loyalty programs को run करने और customer service को बेहतर बनाने की दिशा में काम किया जा सकता है. ऐसा करने से भले ही companies को यहाँ एक significant amount को burn करना पड़े लेकिन long run में ये आपके लिए एक ऐसा consumer base तैयार कर देगा जो किसी pension fund की तरह lifelong आपके साथ खड़ा नजर आएगा।
दोस्तों cash world का एक और small but significant scope companies के top officials या employees को भी माना जाता है. जहाँ companies का top management कभी rival companies के किसी official को अपने साथ जोड़ने के लिए या कभी किसी deserving person को अपने ecosystem का हिस्सा बनाने के लिए unreasonable salaries offer करते है. जिससे जो capital का accumulation company की growth और product growth पे चाहिए वो top of the pyramid पे बैठे लोगों पे लग जाता है. जो हो सकता है किसी हद तक important हो.
लेकिन कई बार ये expenditure काफी unreasonable होते है सिर्फ सामने वाले competition को तोड़ने के लिए और कई बार तो ऐसे officials जो higher salary पे किसी और company से लाए जाते है वो company में fit ही नहीं होते और eventually वो एक bad investment साबित होता है. इसके अलावा cash burn को regularize करने के लिए company की efficiency को भी recheck किया जा सकता है. जहाँ पे individual employee की efficiency और performance में improvement को check किया जा सकता है.
तो दोस्तों इन सभी steps को अपनाकर एक हद तक इस cash bond को regularize जरूर किया जा सकता है. लेकिन उसके लिए चाहिए होगी venture capitalist और founders की will और उनको इस दिशा में सोचना होगा कि startups सिर्फ individual wealth creation का एक platform या जरिया नहीं बल्कि problems को solve करने का एक जरिया है और उस process में अगर वो profit send करते है उसमें कोई बुरी बात नहीं है.
लेकिन अगर एक startup का soul purpose सिर्फ IPO लाना है या फिर individual लगातार बढ़ाना है तो हमें कहीं ना कहीं सोचना होगा कि हम अपने startup ecosystem के साथ कहाँ पे जा रहे हैं.