Business Model of Netflix or OTT Platform: बॉलीवुड को कैसे ख़त्म कर रहा है ओटीटी प्लेफॉर्म, How Digital Media Destroyed Bollywood, Business Model of Netflix or OTT Platform पिछले 2 सालों से बॉलीवुड फिल्म इंडस्ट्री की हालत काफी खराब चल रही है। इसके पीछे कई कारण बताए जाते हैं।
लेकिन सबसे बड़ा कारण जिसे माना जाता है वो है ओटीटी platforms. कहा जा रहा है कि लोग आज के दिन सिनेमा हॉल में जाकर पिक्चर देखने की जगह अपने घर पर ही बैठकर इन OTT platforms पर फिल्में देखना prefer कर रहे हैं। इसकी वजह से फिल्म industry को भारी नुकसान हो रहा है।
हालाँकि interesting चीज ये है कि शुरुआती दिनों में ओटीटी platforms के आने से फिल्म producers को बहुत ज्यादा फायदा हुआ था। इन OTT platforms ने कई करोड़ों खर्च किए थे फिल्मों को अपने platform पर लाने के लिए। कई cases में सौ-सौ करोड़ रुपए तक दिए जाते थे। फिल्म के बजट से ज्यादा पैसे देते थे ये ओटीटी वाले कि उनके प्लेटफार्म पर ये फिल्म आ जाए।
लेकिन अब इन्होंने फिल्मों को रिजेक्ट करना शुरू कर दिया है। फिल्म प्रोड्यूसर्स को कहा जाता है कि पहले सिनेमा हॉल में फिल्म रिलीज़ करो उसके बाद हम डिसाइड करेंगे कि कितने पैसे दिए जाए इस फिल्म के लिए।
कई फिल्म प्रोड्यूसर्स जिन्होंने अपनी फिल्में ये सोचकर बनाई थी कि सीधा सिर्फ ओटीटी पर ही रिलीज़ करेंगे उन्हें अब भारी नुकसान हो रहा है। ऐसे कैसे हुआ ये सब? क्या है यहाँ पर बिज़नेस मॉडल इन ओटीटी प्लेटफॉर्म्स का. आइए आज के स्टोरी में समझने की कोशिश करते हैं।
Table of Contents
Business Model of Netflix or OTT Platform
क्या है ओटीटी प्लेटफार्म का बिज़नेस मॉडल
आपने कई बार सुना होगा कि जब लोग नेटफ्लिक्स, प्राइम वीडियो और हॉटस्टार जैसे platforms की बात करते हैं तो वो ओटीटी शब्द का प्रयोग करते हैं। ओटीटी का फुल form है over the top. लेकिन कभी आपने सोच कर देखा है कि actually में इसका मतलब क्या है? Over the top किस sense में? ये समझने के लिए हमें थोड़ा इतिहास समझना पड़ेगा television networks का.
OTT या ओटीटी या over the top का क्या है मतलब
15 अगस्त साल 1982, ये वो दिन था जब हमारे देश की television industry में एक नई revolution आयी. क्योंकि ये वो दिन था जब पहली बार Doordarshan channel को colour में broadcast किया जाने लगा. वैसे तो television का introduction इंडिया में late 1950s में ही हो गया था। लेकिन इस समय को turning point consider किया जाता है इंडियन television history का. क्योंकि दूरदर्शन को broadcast किया जाने लगा कलर में Satellite का इस्तेमाल करके। INSAT 1A सेटेलाइट द्वारा अगर आपको याद हो तो.
DTH की इंडिया में launching
इसे कुछ दशक फ़ास्ट फॉरवर्ड करो तो अगला turning पॉइंट आया साल 2000 में जब इंडियन गवर्नमेंट ने allow किया कि देश में डीटीएच satellite television हो सकता है, direct to home satellite television. इसी की मदद से ही साल 2003 में dish tv देश की पहली DTH facility बनी थी. इससे पहले cable TV के जरिए लोग TV देखते थे. cables बिछाई जाती थी जो cables आपके घर तक आती थी जिससे आपका television चलता था. लेकिन satellite TV का मतलब था कि आप अपने घर में ही antenna लगा सकते थे जिससे satellite signals आप receive कर सके.
आपको याद होगा dish antenna लगाई जाती थी आपकी balcony पर या फिर घर की छत पर और उस signal को convert करने के लिए घर पर TV के पास में एक setup box लगाना पड़ता था। वैसे आज के दिन भी कई लोग घर में इसी का ही इस्तेमाल करते हैं। इससे हुआ क्या कि लोगों के पास suddenly और choice आ गई टीवी पर channels देखने की. ढेर सारी और variety के channels offer किए जाने लगे।
वेब 2.0 और ओटीटी का इंडिया में पदार्पण
कुछ साल अगर और fast forward करें तो introduction होती है दोस्तों वेब 2.0 की। सोशल मीडिया वेबसाइट में exponential growth देखने को मिली और साथ ही साथ ओटीटी platforms भी उभरकर आने लगे। साल 2009 वो साल था जब नेटफ्लिक्स ने partnership करनी शुरू करी स्मार्ट टीवी और gaming consoles के साथ. अब इस समय पर नेटफ्लिक्स नई कंपनी नहीं थी. नेटफ्लिक्स actually में बहुत पुरानी कंपनी थी in fact गूगल से भी पुरानी कंपनी है नेटफ्लिक्स. इसकी शुरुआत साल 1997 में हुई थी Reed Hastings or Mark Randolf के द्वारा।
शुरुआत में नेटफ्लिक्स को एक ऐसा platform बनाया गया था. जिस पर लोग movie rentals कर सके इंटरनेट के जरिए। साल 1998 में नेटफ्लिक्स डॉट कॉम एक वेबसाइट थी. अब इस वेबसाइट पर जाकर एक monthly पेमेंट देकर unlimited डीवीडी rentals करवा सकते थे। मतलब जो फिल्में आपको देखनी है अब उनकी डीवीडीस पर क्लिक कीजिये और ऑर्डर कीजिये और आपके घर में डिलीवरी होगी इन DVDs की. लेकिन एक interesting algorithm जिसका नेटफ्लिक्स आज के दिन तक इस्तेमाल करता है उसकी शुरुआत उसी जमाने में हो गई थी।
साल 2000 में नेटफ्लिक्स ने पहली बार recommendation systems का इस्तेमाल करना शुरू किया। इनके सिस्टम ने नोट डाउन किया कि किस टाइप की फिल्में किस तरीके के लोगों को पसंद आ रही है और उनकी फिल्मों के choices के basis पर और फिल्में recommend करने शुरू करी. फिल्में recommend करने का मतलब डीवीडी रेंट करने के लिए रेकमेंडेड करना शुरू किया। उस समय पर नेटफ्लिक्स एक competition में एक कंपनी थी ब्लॉकबस्टर नाम से.
इनकी actually में physical दुकानें होती थी. दुकानों पर ये सीडी डीवीडी बेचते थे जहाँ पर लोग जाकर इन डीवीडीस को रेंट कर सकते थे या खरीद सकते थे। नेटफ्लिक्स के पास एडवांटेज ये था कि वो ऑनलाइन डीवीडी का धंधा करने लग रहे थे। लोग ऑनलाइन ऑर्डर कराकर अपने घर पर डिलीवरी ले सकते थे।
ऊपर से नेटफ्लिक्स की एक मंथली सब्सक्रिप्शन सर्विस थी कि अगर आप मंथली पैसे देते रहो तो आप unlimited डीवीडी rent करा सकते हैं। जब तक blockbuster ने realize किया कि ये कितना बढ़िया बिजनेस मॉडल था वो लेट हो चुके थे। साल 2004 में जाकर blockbuster ने अपना नेटफ्लिक्स की तरह एक ऑनलाइन डीवीडी rental platform शुरू किया।
लेकिन 2006 तक नेटफ्लिक्स 6.3 मिलियन subscribers पर पहुँच चुका था और blockbuster की ऑनलाइन service सिर्फ 2 मिलियन पर थी. नेटफ्लिक्स अपनी innovation में हमेशा दो कदम आगे था. इस समय तक नेटफ्लिक्स समझ गया था कि ये सीडी, डीवीडी का धंधा ज्यादा दिन तक चलने वाला नहीं है।
ये laptops और आज के दिन तो ये सीडी डीवीडी इस्तेमाल करने लग रहे हैं. लेकिन जिस स्पीड से ये improve हो रहे हैं ज्यादा दिन तक ये चलेगा नहीं। इंटरनेट बड़ी तेजी से improve हो रहा है. आने वाले टाइम में लोग prefer करेंगे कि डीवीडी रेंट करने की जगह है वो ऑनलाइन ही stream करके देख लें फिल्म को.
इसलिए already 2007 में नेटफ्लिक्स एक ऐसी service बनाना चाहता था जहाँ पर ऑनलाइन वेबसाइट पर जाकर लोग फिल्मों को stream कर सके। 2 साल बाद 2009 में इन्होंने टीवी counsels के साथ डील करी और 2010 में जाकर इन्होंने बड़ी-बड़ी फिल्म production companies के साथ डील करनी शुरू करी जैसे सोनी, पैरामाउंट और डिज्नी।
नेटफ्लिक्स ने इन बड़े production houses को पैसे दिए कि अपनी फिल्में हमें बेच दो ताकि हम इन फिल्मों को अपने streaming platform पर दिखा सके। जुलाई 2010 को incidentally वही साल होता है जब Netflix की competitor company blockbuster bankruptcy की filing करती है। समय के साथ-साथ तेजी से ना बदलने के कारण blockbuster को 1 billion डॉलर के losses उठाने पड़ते हैं।
उस साल 2010 में नेटफ्लिक्स की valuation थी around 24 million dollars. आज के दिन नेटफ्लिक्स की valuation मानी जाती है 200 biilion डॉलर्स से भी ज्यादा। ये कितना बड़ा अमाउंट है इसे इमेजिन करने के लिए आप ट्विटर से compare कर सकते हो। ट्विटर को 44 बिलियन डॉलर्स में खरीदा गया तो उसकी वैल्यूएशन 44 बिलियन डॉलर्स के आस-पास समझो। तो नेटफ्लिक्स almost 5 गुना ज्यादा valuable ट्विटर के comparison में.
2011 के आसपास नेटफ्लिक्स ने realize किया कि कब तक हम इन बड़े प्रोडक्शन हाउसेस से फिल्में खरीदते रहेंगे। इन पर rely करने की जगह थोड़े पैसे बचाए जाए और क्यों ना हम खुद की फिल्में बनाना चालू कर दें। इसी reason से दोस्तों 2013 में Netflix अपने original टीवी series launch करता है, House of Cards और Orange is the New Black इनके पहले टीवी shows में से होते हैं और ये इतने successful निकलते हैं।
Netflix realize करता है कि अपने original shows बनाना actually में एक बहुत बड़ा advantage है। हम हर तरीके के audience को खुद से ही satisfy कर सकते हैं हर genre में content बनाकर। बिना किसी बाहर के फिल्म का इंतजार करें।
आज के दिन दोस्तों 3000 से ज्यादा original content मिलेगा आपको नेटफ्लिक्स पर। जो कि actually में आधे से भी ज्यादा है। 50.17% content original है नेटफ्लिक्स पर बाकी production houses से खरीदा जाता है। वैसे आज के दिन को अगर आप केबल टीवी और डीटीएच वाले जमाने से compare करोगे तो आपको एक बहुत बड़ा difference दिखेगा। उस जमाने में हमें middle man पे dependent रहना पड़ता था। आपका लोकल केबल टीवी वाला या फिर आपकी ये set of box वाली companies.
आज के दिन आप directly फिल्मों को देख सकते हो इंटरनेट के जरिए सीधा वेबसाइट पर जाकर। क्योंकि ये directly viewer तक पहुँच जाते हैं. इसलिए इन्हें over the top कहा जाता है। ये traditional middle man के ऊपर से निकल गए और आप तक पहुँच गए।
इंडिया का पहला ओटीटी प्लेटफार्म
इंडिया की बात करें तो इंडिया में सबसे पहला ओटीटी platform launch किया गया था reliance entertainment का बिग flix साल 2008 में। लेकिन इसका मॉडल थोड़ा अलग था। ये एक वीडियो ऑन डिमांड service थी. जब आपको कोई फिल्म देखनी है आप उसे चुने और आप उसके लिए pay करें। इसे pay per view business मॉडल कहा जाता है। तो सही मायनों में इंडिया में ओटीटी platforms की growth साल 2013 के बाद ही देखने को मिली।
जब ZEE ने अपना Ditto TV launch किया और Soni Liv को launch किया गया साल 2013 में। Ditto TV पर वो टीवी shows आने लगे जो आमतौर पर टीवी पर दिखाए जाते थे जैसे कि सोनी, स्टार और कलर्स जैसे channels पर। हॉटस्टार ने अपनी entry मारी साल 2015 में जिसे आज के दिन Disney Plus Hotstar बुलाया जाता है और इसके अगले साल जनवरी 2016 में Netflix की India में entry होती है.
coincidence की बात है 2016 में ही एक ऐसी चीज़ होती है जो इस पूरी industry को हमेशा के लिए बदल डालती है. मैं नोटबंदी की बात नहीं कर रहा. यहाँ पर मैं बात कर रहा हूँ Reliance Jio की जिओ के आने से डेटा के rates बहुत सस्ते हो जाते हैं. जिसकी वजह से एक बड़ी audience मिल पाती है इन OTT platforms को.
अब जनता और ज्यादा access कर सकती है internet को और इस streaming platforms को सस्ते में. यही कारण है कि आज के दिन 40 से ज्यादा OTT platforms है इंडिया में. जाहिर सी बात है इन्हे काफी सक्सेस भी मिल रहा है इंडिया में। तो किस बिजनेस मॉडल पर ये सारे ओटीटी actually में काम करने लग रहे हैं। आइए समझते हैं।
ओटीटी प्लेटफार्म का बिजनेस मॉडल क्या है और वो पैसा कैसे कमाते हैं?
असल में 2 तरीके होते हैं ओटीटी platforms के पास content को acquire करने के. पहला है कि किसी फिल्म के broadcasting rights खरीदे जाए. अगर किसी और production house में कोई फिल्म बना रखी है उसके streaming rights कुछ पैसे देकर खरीदे जा सकते है और अपनी content library में डाले जा सकते है और दूसरा है self production. फिल्मों की या web series की production खुद से करना। खुद के पैसे invest करके। तो इस तरीके से आपके प्लेटफार्म पर फिल्में और टीवी शोज आ जाए लेकिन उनका इस्तेमाल करके अब पैसे कैसे कमाए जाएं?
ओटीटी platforms के पास basically चार तरीके हैं monetization के. जिन्हें 4 monetization के मॉडल्स बुला सकते हैं. पहला है एवीओडी (AVOD) advertising वीडियो ऑन डिमांड मॉडल। इस मॉडल के तहत आप ये सारी फिल्में और टीवी शोज फ्री में देख सकते हो. लेकिन प्लेटफार्म पर आपको ऐड्स देखने को मिलेंगे या फिर बीच-बीच में फिल्म के एडज आएंगे और अगर आपके पास एक बड़ी ऑडियंस है.
आपके प्लेटफार्म पे ये फिल्में देखने वाली तो आप कंपनी से पैसे ले सकते हो ये ऐड्स दिखाने के. यह एक एंट्री लेवल मॉडल है इसके जरिए ओटीटी प्लेटफार्म से एक बड़ी ऑडियंस तक पहुंच सकते हैं. ज्यादा से ज्यादा customers तक पहुंच सकते हैं। अपने प्लेटफार्म पर उन्हें बुला सकते हैं क्योंकि use करना basically फ्री है।
इस मॉडल का सबसे बड़ा example खुद यूट्यूब है. इसके अलावा एमएक्स प्लेयर भी एबीओडी (AVOD) मॉडल का इस्तेमाल करता था. अब उन्होंने अपना subscription ऑप्शन भी ऐड कर दिया है। एमएक्स गोल्ड के जरिए।
अब दूसरा मॉडल है यहाँ पर एसवीओडी (SVOD) subscription वीडियो ऑन डिमांड। अगर लोगों को आपके प्लेटफार्म पर कुछ देखना है तो उसके लिए subscription फीस pay करनी पड़ेगी। ये आमतौर पर एक monthly फीस होती है और जो प्लेटफार्म well established है, जाने-माने हैं. वही इसका इस्तेमाल करते हैं जैसे कि नेटफ्लिक्स प्राइम वीडियो, डिजनी प्लस हॉटस्टार। क्योंकि जो प्लेटफार्म को लोग ज्यादा जानते नहीं है, कभी नाम सुना नहीं उनके लिए pay क्यों करेंगे?
एबीओडी मॉडल ज्यादा पॉपुलर है एसवीओडी के comparison में जो ग्लोबल ओटीटी revenue है उसका 50% revenue actually में एबीओडी मॉडल से आता है। एसवीओडी मॉडल से करीब 40% आता है। लेकिन अगर per user देखा जाए तो सबसे ज्यादा पैसे एसवीओडी मॉडल से ही कमाए जा सकते हैं।
तीसरा मॉडल है टीवीओडी (TVOD) यानी transaction वीडियो ऑन डिमांड। इसे pay पर view कहा जाता है। अगर आपको कुछ देखना है तो उसके लिए आपको fixed फीस pay करनी पड़ती है। Itunes रिलायंस का जो बिग फ्लिक्स का मैंने उदाहरण बताया था आपको और prime video पर कुछ फिल्में इसी मॉडल के जरिए दिखाई जाती है।
सलमान खान की एक फिल्म आई थी “राधे” करके पिछले साल ZEE5 पर उसने भी इस मॉडल का इस्तेमाल किया। ये basically वैसा ही हो गया कि अगर सिनेमा हॉल में आप पिक्चर देखने जाते हो उसके लिए कुछ pay करते हो. यहाँ पर अब घर बैठे-बैठे अगर आपको कोई specific पिक्चर देखनी है उसके लिए आप अलग से pay करो।
और चौथा मॉडल है यहाँ पर hybrid मॉडल जहाँ पर इन तीनों मॉडल के अलग-अलग permutation combination इस्तेमाल किए जा सकते हैं। सबसे common है एबीओडी और एसवीओडी को कंबाइन कर देना जहाँ पर फ्री कंटेंट भी है और आप subscription भी ले सकते हो. अगर आपको ऐड्स हटानी है तो यूट्यूब इसका बढ़िया example है। फ्री है यूट्यूब पर देखना ऐड्स आएंगी लेकिन अगर ऐड्स हटानी है तो आप subscription pay करो यूट्यूब प्रीमियम के जरिए।
हॉटस्टार और एमएक्स प्लेयर भी इसका इस्तेमाल करते हैं और नेटफ्लिक्स अभी तक एसवीऑडी पर चल रहा था। लेकिन अब बात करी जा रही है कि नेटफ्लिक्स भी अपना एक ऐड वाला मॉडल लेकर आएगा। दूसरा एक कॉम्बिनेशन हो गया है एसवीऑडी प्लस टीवीऑडी। जहाँ पर subscribers को एक monthly फीस pay करनी पड़ती है लेकिन अगर कोई बड़ी फिल्म आ रही है तो उसके लिए एक्सट्रा फीस पे करनी पड़ती है.
ZEE5 कई बार ये करता है और अमेज़न प्राइम वीडियो भी करता है ये. लेकिन मोटे-मोटे तौर पर देखा जाए तो दो ही जरिए हैं प्लेटफार्म के पास पैसे कमाने के. एक है advertisers के जरिए और दूसरा है लोगों के जरिए जब लोग subscription फीस पे करेंगे। लेकिन subscriptions के लिए एक अच्छी content library होनी बहुत जरूरी है।
यही कारण है कि बहुत से platforms खुद की original फिल्में बनाना चाहते हैं. original टीवी shows बनाना चाहते हैं। अब ओटीटी platforms का ये बिजनेस मॉडल बड़ा unpredictable सा है कौन सी फिल्मों को खरीदने में पैसा खर्च किया जाए? कौन-सी फिल्मों को बनाने में पैसा खर्च किया जाए? और उसके बदले कितने लोग हमारे प्लेटफार्म को actually में सब्सक्राइब करेंगे?
ये डायरेक्ट रिलेशन बताना बड़ा मुश्किल है। पता नहीं कौन सी फिल्म चलेगी, कौन सी नहीं चलेगी? किस फिल्म के बेसिस पर सबसे ज्यादा सब्सक्राइबर्स आएंगे, प्लेटफार्म पर? तो इन प्लेटफॉर्म्स को काफी रिस्क लेना पड़ता है. पहले से पैसे इन्वेस्ट करने पड़ते हैं कि कोई बड़े एक्टर की फिल्म आने लग रही है, तो इसको हम पहले से ही पैसे देकर खरीद लेते हैं, चांस काफी हाई है कि ये फिल्म चलेगी, हमारे पास ज्यादा सब्सक्राइबर्स आएंगे इसकी वजह से.
यही कारण है कि कुछ एक्टर्स की फिल्मों के लिए ये ओटीटी प्लेटफॉर्म्स बहुत पैसा देने को तैयार रहते हैं। जैसे कि कमल हसन की 2022 की फिल्म “विक्रम” जिसने रिलीज होने से पहले ही 250 करोड़ रूपए कमा लिए थे ओटीटी और सेटेलाइट राइट्स से या फिर शाहरुख खान की जो आने वाली फिल्म है “जवान” इसका बजट 200 करोड़ रूपए का है लेकिन कहा जाता है कि 120 करोड़ रूपए की डील ऑलरेडी नेटफ्लिक्स के साथ की जा चुकी है.
शुरुआती दिनों में ओटीटी प्लेटफॉर्म ने ऐसे ही कई बारी प्रीमियम प्राइजेज पे किए अपनी कॉन्टेंट लाइब्रेरी को बड़ा बनाने के लिए और अच्छा बनाने के लिए ताकि सब्सक्राइबर्स के लिए वो आकर्षित लगे. लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने रियलाइज किया कि शायद इतने ज्यादा पैसे जो हम पे कर रहे हैं इन फिल्मों को खरीदने के लिए उसका रिटर्न हमें मिल नहीं रहा है।
ऊपर से कोरोना के बाद जब सिनेमा हॉल्स दोबारा से खुले और फिल्में सिनेमा हॉल्स में लगने लगी तब दिखा ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को कि कैसे बड़े-बड़े एक्टर्स की भी फिल्में फ्लॉप हो रही हैं। जैसे कि अक्षय कुमार के तीन से 4 फिल्में हाल ही में बुरी तरीके से फ्लॉप हुई। सीके बावजूद कि वो एक बड़े एक्टर हैं उनका बड़ा नाम है। तो ओटीटी platforms ने रियलाइज किया कि शायद से ये सही आईडिया नहीं है इतना ज्यादा pay करना इन फिल्मों के लिए।
इसलिए आज के दिन ज्यादातर ओटीटी platforms कहते हैं कि अपनी फिल्मों को पहले सिनेमा हॉल में रिलीज करो और बाद में हम उसे खरीदेंगे अपने प्लेटफार्म पर दिखाने के लिए। ये जज करके कि वो फिल्म कितनी successful हुई सिनेमा हॉल में, कितनी नहीं हुई। ऐसा करने से ओटीटी प्लेटफार्म को marketing पे भी पैसा नहीं खर्च करना पड़ेगा as compare to अगर कोई फिल्म सिर्फ OTT पर दिखाई जाती तो उसकी marketing की spending का ख्याल Netflix और इन platforms को रखना पड़ता।
एक फिल्म को marketing करने की cost वैसे आम तौर पर तीन से चार करोड़ रूपए आसानी से आ जाती है. अब यही reason है कि फिल्म industry इंडिया में पूरी तरीके से उलट पुलट हो चुकी है। statista की रिपोर्ट के according financial year दो हजार उन्नीस में इंडिया में एक average पीवीआर की मूवी की टिकट का प्राइज था 207 रूपए.
यहाँ पर बाकी इंक्लूड नहीं किए जा रहे हैं जो पॉपकॉर्न खरीदने का प्राइस आएगा या फिर सिनेमा हॉल तक जाने का एक कॉस्ट पड़ेगी, उस सब को हटा दो सिर्फ फिल्म देखने का सिनेमा हॉल में कॉस्ट पड़ रही है दो सौ सात रुपए और ओटीटी प्लेटफॉर्म्स आपको पूरी कॉन्टेंट लाइब्रेरी का एक्सेस दे रहे हैं एक महीने के लिए इससे आधी कॉस्ट में.
ज्यादातर जो ओटीटी प्लेटफार्म से शुरुआत में इन्होंने बहुत से पैसे स्पेंड करके अपने लिए एक अच्छी content library बना ली. जिससे लोग आकर्षित हो इन platforms को ज्वाइन करने पर और अब इन्हें इतने पैसे spend करने की जरूरत नहीं उन नई फिल्मों को. फिल्म industry के लिए ये काफी problematic चीज है specially वो लोग जो rely करते थे सिनेमा हॉल से पैसे कमाने पर. ये बात सच है कि कुछ लोग अभी भी सिनेमा हॉल में जाकर पिक्चर देखना prefer करते हैं specially अगर कोई बड़े बजट की फिल्में जिसमें बहुत सारा VFX का इस्तेमाल किया गया है.
लेकिन छोटी-मोटी जो फिल्में होती थी जिन्हें पहले लोग आराम से देखते थे सिनेमा हॉल्स में जाकर उन्हें अब बहुत कम देखा जाने लग रहा है सिनेमा हॉल्स में. कुछ ओटीटी platforms के लिए अपना बिजनेस चलाना और भी ज्यादा आसान है जैसे कि अमेजॉन प्राइम वीडियो के लिए क्योंकि अमेज़न ने कहा है उसका कोई intention ही नहीं है prime वीडियो से profit कमाने का वो तो बस एक बोनस service है जो अमेजॉन की ecosystem में दी जाती है।
खास बात ये है कि लोग प्राइम का सब्सक्रिप्शन ले ताकि जो deliveries करी जा रही है. आप अमेज़न से जो सामान खरीद रहे हो तो वहां से वो पैसे कमाएं. प्राइम वीडियो से जो एक्स्ट्रा बेनिफिट आपको जो फ्री में मिलने लगा रहा है. उसे तो आप एन्जॉय करो. उन्हें तो प्रॉफिट भी कमाने की जरुरत नहीं है वहां से. आने वाले कुछ साल ओटीटी platforms के लिए काफी अच्छे होने वाले हैं.
Deloitte की फ़रवरी 2022 वाली एक रिपोर्ट है “all about screens” के नाम से. इन्होंने estimate किया है कि हर साल ओटीटी मार्केट में 20% growth देखने को मिलेगी और अगले दशक में 1.2 lakh करोड़ इनकी valuation हो जाएगी। statista ने estimate किया है कि आज के दिन इंडिया में 39.7 करोड़ ओटीटी users हैं 397 मिलियन और हॉटस्टार वास्तव में सबसे ज्यादा सब्सक्राइब्ड और सबसे ज्यादा देखा जाने वाला ओटीटी सर्विस है.
भारत के ओटीटी प्लेटफार्म का इन्वेस्टमेंट कितना होता है
इन प्लेटफॉर्म्स द्वारा खर्चे की बात करें तो एस्टीमेट किया गया है ओटीटी प्लेटफॉर्म्स ने लास्ट ईयर 665 मिलियन डॉलर इन्वेस्ट किये थे फिल्मों को खरीदने में और अपना ओरिजिनल कंटेंट बनाने में. सबसे ज्यादा पैसे इनमें से डिज्नी+हॉटस्टार ने ही इन्वेस्ट किये थे 380 मिलियन डॉलर.
deloitte के same रिपोर्ट के अकॉर्डिंग हर जो पेइंग कस्टमर है ओटीटी के लिए उसने 2.4 subscriptions ले रखें हैं औसत रूप से. statista के अनुसार एवरेज revenue जो per user कमाया जा रहा है 2022 में ये 520 रूपए per user है. ये एवरेज SVOD मॉडल के कहीं ज्यादा है. 1295 rupees per user कमाया जाता है on average एक आदमी से जो subscribe करता है और एबीओडी मॉडल से ये 228 rupees है और टीवीओडी मॉडल से 1996 rupees है even though per user एबीओडी मॉडल से कम revenue generate होता है.
लेकिन deloitte की रिपोर्ट के according एबीओडी मॉडल ज्यादा टोटल में revenue generate करता है। unfortunately इससे ज्यादा detail में हमारे पास numbers available नहीं है जो भी मैंने आपको ये डाटा बताया ये in general सारे ओटीटी platforms के लिए है। अगर हम ब्रेक डाउन देखें तो ये सारे platforms को ब्रेकडाउन ज्यादा देते नहीं है कि किस फिल्म पर इनको सबसे ज्यादा views मिले?
किस टीवी शो उन्होंने सबसे ज्यादा subscribers कमाए लेकिन बस दूर से देखकर ये चीजें estimate जरूर करी जा सकती है जैसे कि Netflix का अगर कहना है कि Squid Game उनके लिए दुनिया भर में सबसे popular टीवी शो रहा तो ये आप अंदाजा लगा सकते हो कि स्क्विड गेम की वजह से सबसे ज्यादा subscribers नेटफ्लिक्स को मिले। उम्मीद करता हूँ ये स्टोरी और विश्लेषण आपको informative लगा होगा। अपनी राय कमेंट में जरूर दें.