इंडियन शिक्षा प्रणाली की काली सच्चाई, Dark Reality of Indian Education System

Dark Reality of Indian Education System

Dark Reality of Indian Education System: अगर आप एक स्कूल या कॉलेज में पढ़ने वाले स्टूडेंट हैं और मैं आपसे पूछूं आप अपने future में कौन-सा career option choose करने वाले हैं तो मैं guarantee के साथ कह सकता हूँ कि आप में से 90% लोगों का जवाब होगा इंजीनियर, डॉक्टर, एमबीए या सरकारी नौकरी।

इन्हीं चार options में आप में से 90% लोगों की career choices छुपी है। दूसरा ये भी मैं guarantee के साथ कह सकता हूँ कि आप में से कोई भी paleontologist, bee keeper, tea tester, meterologist, art therapist, audio engineer, एथिकल हैकर, ornithologist नहीं बनना चाहता।

3 Idiots देश की all time blockbuster फिल्मों में से है जो लोगों को बहुत पसंद आयी है. बार-बार इस फिल्म में message दिया जाता है कि अपने passion के पीछे भागो।

किसी महापुरुष ने कहा है कि कामयाब होने के लिए नहीं, काबिल होने के लिए पढ़ो! success के पीछे मत भागो excellence का पीछा करो, success झक मार के तुम्हारे पीछे आएगी। – 3 Idiots फिल्म से एक संवाद।

लेकिन इस फिल्म के release होने के 12 साल भी अगर हम ground reality देखें तो यही है कि लोग वही गिने चुने 4-5 career options के पीछे भाग रहे हैं. आखिर क्या problem आ रही है इसको इम्प्लीमेंट करने में. क्या दोष है यहाँ पर हमारे इंडियन एजुकेशन सिस्टम का है? या फिर हमारे पैरेंट्स का और टीचर्स का है या फिर खुद स्टूडेंट्स का है? इस स्टोरी में आइए करते हैं इसकी गहराई से एक analysis और solutions को भी समझते हैं? 

जब हम बात Indian Education System की करते हैं. हम बात करते हैं स्कूल और colleges में पढ़ाए जाने के तरीकों की, examination के systems की, syllabus की, लेकिन असलियत में दोस्तों ये problem system से कई ज्यादा बड़ी है। ये problem है ecosystem की, पूरी environment की, example से समझाता हूँ.

साल 2021 में Indians ने करीब 5 घंटे average प्रतिदिन बिताए मोबाइल phones की स्क्रीन को देखते हुए। तो natural सी बात है, जब लोग फोन के स्क्रीन पर कुछ देख रहे हैं, वो उससे influenced होते हैं. जब पांच घंटे दिन के उस पर बिताए जा रहे हैं, तो mass media का यहाँ पर एक बड़ा impact पड़ता है. News Channels भरे पड़े है mostly चार तरीके की खबरों से politics, cinema, crime और sports. इन्हीं 4 type की खबरें mostly जनता को दिखाई जाती है. पिछले 2 सालों में बहुत से Indians बड़े ही prestigious prizes जीत कर आए देश के लिए Shaunak Sen की documentary को best documentary का award मिला। Cannes Film Festival में इस साल ये एक historic moment था. India के लिए लेकिन हमारे media में इस खबर को चलाने की जगह किस चीज पर खबर चलाई गयी कि Aishwarya Rai और Deepika Padukone जब Cannes के red carpet पर चलने लग रही थी. कैसे कपड़े पहने थे।

इसी साल गीतांजलि श्री को the prestigious bookers प्राइज मिला। उनकी novel “रेत समाधी” के लिए जिसे इंग्लिश में translate किया गया था “डेजी रॉकवेल” के द्वारा। Bookers Prize के podium पे पहुंचने वाली ये पहली Indian language की कोई novel थी. लेकिन क्या आपने इस खबर के बारे में सुना? इसके अलावा Indian Mathematics नीना गुप्ता चौथी इंडियन बनी “रामनुजन प्राइज” जीतने वाली पिछले साल लेकिन क्या आपने कोई interviews देखे होंगे किसी टीवी पर?

साल 2018 में दानिश सिद्दीकी और अदनान अबदीदी पहले Indians बने Politzers से prize जीतने वाले photography के लिए. उसके बाद 2020 और 2022 में भी Indians ने इन price को जीता। लेकिन क्या उनमें से किसी का भी interview आपने किसी channel पर देखा। अब offcourse इन चीजों को अगर न्यूज़ पेपर के front page पर highlight किया जाता। इन winners का टीवी पर interview किया जाता, न्यूज़ channels में इनकी बात करी जाती तो offcourse और लोग inspired होते young लोग, passionate feel करते, फिल्म मेकिंग, photo journalism, literature और mathematics को as career options सुनने में लेकिन नहीं न्यूज़ चैनल्स पर क्या हेडलाइन चलती है? 

ये वीडियो हो रहा जमकर वायरल। क्या आपने कभी किसी कौवे को रैंप वॉक करते देखा है? नहीं देखा है तो इस वीडियो पर नजरें गढ़ा लीजिए। बताओ जरा इस तरीके से कुछ बेनिफिट पहुंचेगा सोसाइटी को। यही चीज हमें फिल्मों में भी देखने को मिलती है। थ्री इडियट्स जैसी जो फिल्में हैं वो एक्सेप्शन है। आमतौर पर कभी आपने नोटिस किया हो. जो फिल्मों में हीरोज होते हैं, उनकी क्या प्रोफेशन होते हैं? आर्मी ऑफिसर, पुलिसमैन, कभी-कभार गैंगस्टर बना देंगे। कुछ गन फाइट के सीन होंगे, कुछ dhishhom होगा यहाँ पर कुछ cases में बिजनेसमैन या sportsman भी दिखा देते हैं.

फिल्मों में लेकिन ज्यादा detail में नहीं जाते। किसी बिजनेस के फिल्मों में आपको कभी भी ऑर्नेथॉलिजिस्ट, बीकीपर और सितार प्लेयर जैसे प्रोफेशन नहीं दिखेंगे। एक और जरिया जिससे यूथ मोटिवेट हो सकता है। वो चला गया. सोशल मीडिया जैसे यूट्यूब और इंस्टाग्राम की बात करी जाए तो यहाँ पर आपको वो दिखाया जाता है. जो आप already देख रहे होते हैं। एल्गोरेथम जिस तरीके से डिजाइन है. अगर आपने कुछ देखा वही चीज आपको वैसी ही उससे रिलेटेड चीज और ज्यादा दिखाई जाती है कोई भी unconventional career कोई हट के job कभी भी आपको खुद से नहीं दिखेगी।

इन platforms पर जब तक आप खुद से सर्च नहीं करोगे इन चीजों के बारे में तो अगर आप इस सारे mass media के influence को account में लो तो जो carrier choice जिसे आप अपनी समझ रहे हो शायद वो आपकी career choice नहीं है बल्कि mass media की conditioning है. जो आप पर impose करी हुई है और आपका lack of exposure है.

आपको basically पता ही ना हो ना कि और क्या options available है. अब दूसरा factor यहाँ पर आता है parents का, अक्सर कई parents इस problem से बदतर बना देते हैं। बचपन से ही हमने काफी बार society से सुना है, व्हाट्सएप्प forwards में सुना है कि कैसे जो parents कहने लग रहे हैं, वो बिल्कुल सब सही है। ये emotional व्हाट्सएप फॉरवर्ड्स आपने देखे होंगे ना कि मैंने realize किया कि पापा ही सही थे। 

ऐसी society में अगर आपने अपने parents पर कोई सवाल किया या फिर उनसे किसी बात पर disagree किया तो आप पर immediately label लग जाता है, बदतमीज हो, संस्कार नहीं है क्या? लेकिन जरा सोचकर देखो अगर हर बच्चे के पैरेंट्स यहाँ पर समझदार और बुद्धिमान होते हैं तो पूरी दुनिया समझदार और बुद्धिमान लोगों से भरी होती है। तो ऐसा तो नहीं हो सकता कि हर बच्चे के हर स्टूडेंट के पैरेंट्स यहाँ पर समझदार और बुद्धिमान।

इसी रीज़न से कई पैरेंट्स अपने आप को authority figure समझते हैं कि भाई जो मैं कह रहा हूँ उसे सुनना पड़ेगा। वही सच है ये पैरेंट्स अक्सर अपने बच्चों को punish करते हैं, उन्हें मारते-पीटते हैं। छोटी-मोटी चीजों को लेकर अगर बच्चे ने disobey कर दिया तो उन्हें punish किया जाता है। ऐसे पैरेंट्स अक्सर मानते हैं कि

strict parenting होना बहुत जरूरी है तभी बच्चे अच्छे बड़े होंगे, discipline होंगे, well mannered होंगे, responsible और confident adults बनेंगे। लेकिन actually में ये चीज सच नहीं है. कई research papers ने साबित किया है कि authorities parenting actually में बच्चे के confidence और self esteem को कम कर देती है और उनकी decision making ability पर इससे एक बुरा असर पड़ता है.

ये मेरा personal opinion नहीं है बल्कि दुनिया भर की research ने ये proof किया है तो ऐसे parents जब कहते हैं भाई हम तो अपने बच्चे को engineer ही बनाएँगे। हमने तो अपने बेटे से कह दिया है जितना time लगे यूपीएससी ही निकालना है? हमने तो अपनी बेटी के लिए डॉक्टर ही सोच रखा है। ऐसी बातों को सुनकर एक already under confident बच्चा जिसका self stream already गिरा हुआ है। वो कभी सवाल ही नहीं कर पाता। इसी reason से एक unconventional career चुनना एक option ही नहीं होता क्योंकि parents unconventional career नहीं चाहते। इन parents के दिमाग में यही चलता है कि भाई हमारे जमाने में ऐसा होता था, वैसा होता था तो हमें पता है कि सही career option क्या है? Stable career choice क्या है? ये भूल जाते हैं अपने आपको समय के साथ अपडेटेड रखना और इसका नतीजा ये होता है कि इंडियन economy के liberalization होने के 30 साल बाद भी आज के दिन सरकारी नौकरी टॉप डिमांड पर है।

पिछले 8 सालों में करीब 22 करोड़ applications करी गई सरकारी नौकरियों के लिए हमारे देश में। लेकिन सिर्फ 7 लाख 22 हजार सरकारी नौकरियां actually में available थी। ये जो ratio है यहाँ पर ये one in three hundred है। यानी 300 लोग apply करने लग रहे हैं तो सिर्फ एक को नौकरी मिल पाएगी यहाँ पर और यहाँ पर मैं सिर्फ central गवर्नमेंट के jobs की बात करने लग रहा हूँ ये 22 करोड़ वाला। यहाँ पर आप एक ऐसी race दौड़ने लग रहे हो जहाँ पर starting line पर 300 सौ लोग खड़े हैं. imagine करके देखो 300 लोग दौड़ेंगे लेकिन सिर्फ first आने वाले को नौकरी मिलेगी बाकी second जो आया, third जो आया सब भूल जाओ, सब के सब race हार गए. बताओ ऐसी race क्यों दौड़ना चाहते हो? 

मैं तो जानता हूँ कि अगर मैं ऐसी race में दौड़ा होता तो मैं first नहीं आ सकता था. मुझे नौकरी नहीं मिलती इसलिए मैंने decide किया कि मैं एक ऐसी race दौड़ूँगा जहाँ पर सिर्फ 3-4 बंदे खड़े हैं starting line पर. मैं बात कर रहा हूँ जब मैंने यूट्यूब को as a career option चुना। तब कम लोग इसे as a carrier option seek आउट कर रहे थे और मैंने इस पर seriously काम किया क्योंकि कम competition था. unconventional careers का यही फायदा होता है कि competition कम होता है वो अलग बात है कि आज के दिन यूट्यूब पर भी competition बहुत बढ़ चुका है. लेकिन और बहुत से ऐसे career options है जहाँ पर ना के बराबर competition है. ऐसी race दौड़ोगे जहाँ पर आप इकलौते आदमी हो दौड़ने वाले तो पक्का first आओगे। 

बताओ किसे नहीं मजा आएगा ऐसी race दौड़ने में जब मैंने यूट्यूब पर इस तरीके की videos बनाने शुरू किए उस वक्त कोई भी इस तरीके की videos नहीं बना रहा था पुरे देश में। तो मैं अपनी race को अकेला दौड़ रहा था। यहाँ पर guaranteed था कि मैं race जीतूंगा। हाँ, वो अलग बात है, ये नहीं पता था कि finish line कहाँ पर है। uncertainty बहुत होती है कि ये stable career हो पाएगा या नहीं हो पाएगा। risk होता है। लेकिन personally मुझसे पूछो तो मैं ये risk prefer करूँगा, वो one and three hundred वाले risk के comparison में।

अब parents को convince करना obviously एक बड़ा challenge रहता है. अगर आप अपने पापा को जाकर कहोगे कि पापा मुझे palaeontologist बनना है। दूसरी तरफ से जवाब आएगा, ये क्या होता है? आप कहोगे मुझे stand up comedian बनना है तो कहेंगे ये भी कोई काम हुआ, environmentalist बनना है इसमें क्या scope है, graphic designer बनना है stability नहीं है इसमें। interior डिज़ाइनर बनना है पहले सही से नौकरी ढूंढ ले फिर hobby की तरह इसे करते रहना है. wedding planner बनना है हम लोगों में ये बिजनेस-बिजनेस नहीं चलता।

यहाँ पर actually में parents को सुधरने की जरूरत है अगर parents के पास exposure और knowledge नहीं है किसी career option के बारे में तो उन्हें अपनी knowledge बढ़ानी चाहिए। लेकिन वो उल्टा बच्चों को जवाब देंगे कि तुम वो करोगे जो हम कहेंगे। ऐसे case में आप जाकर अपने parents को वापस जवाब देकर कह सकते हो कि पापा नौकरी तो मुझे करनी है। तो काम मेरी पसंद का होना चाहिए। आप क्यों फैसला लेने लग रहे हो? सुनने में argument काफी logical argument है। लेकिन ऐसे arguments को हमारी society में बदतमीज माना जाता है। 

और एक बच्चा जो strict parenting और authority figures के under बड़ा हुआ है वो शायद से कभी courage ही ना पाई है बोलने की चाहे वो उसके दोस्त भी क्यों ना कहते हों do what you love? स्टीव जॉब्स क्यों ना कहता हो वो करो जो तुम्हें पसंद है। फिल्म 3 Idiots के characters क्यों ना कहते हो कि वो करो जो तुम्हें पसंद है लेकिन दूसरी तरफ से जवाब आएगा। अब्बा नहीं मानेंगे!

अब अगर कुछ लोगों ने courage दिखा दिया अपने parents से बात करने की, उन्हें convince करने की तो दूसरी तरफ से पेरेंट्स की तरफ से जवाब आएगा। तो करो अपनी मर्जी। हमें बाद में मत बोलना। ये चीज सुनकर एक बच्चे के मन में क्या आएगा। बहुत सारा डाउट और fear. वो एक नया रास्ता चुन रहा है और पैरेंट्स ने उसे धकेल दिया है कि चलो तुम्हें जाना है लेकिन हम पीछे हट रहे हैं यहाँ से. indecisiveness बढ़ेगी यहाँ पर, यहाँ पर सोचने वाली बात है कि ऐसी situations में डर क्यों लगता है? कई cognitive biases  है जो यहाँ पर काम कर रहे है. पहला है confirmity bias. 

एक average इंसान का दिमाग हमेशा conformity में रहना चाहता है. बाकी लोग जो कर रहे है उसके साथ इस चीज को basically peer pressure कहा जाता है. इसके पीछे एक evolutionary reason है. लेकिन इसका नतीजा ये होता है कि basically हम वही करना चाहते है जो हमारे आसपास के लोग कह रहे है और खुद से करने लग रहे है. खुद ही सोच कर देखो क्या आप इंडियन statistical institute, इंडिया के one of the top premier institutes में पढ़ना चाहेंगे? वहाँ पर average package 20 लाख per annum का है, अच्छी नौकरी मिलती है। लेकिन नहीं आईआईटी करेंगे आप। क्यों? क्योंकि हर कोई आईआईटी करना चाह रहा है। हम वही करना चाहते हैं जो बाकी सब लोग कर रहे हैं। आजकल फलाना करियर का बूम हो रहा है। आजकल ये बड़ी इन चल रही है चीज। ये ट्रेंडिंग है। ये हॉट कैरियर है। हमारे दोस्त ने अपनी बेटी का आईआईटी कोचिंग में एडमिशन कराया है। हम भी कर लेते हैं। मेरे मामा के लड़के ने डेंटल का कोर्स किया है. मैं भी डेंटल का कोर्स कर लेता हूँ. 

ऐसी भेड़ चाल वाली सोच का actually में evolutionary advantage होता था। आज से कई हजारों साल पहले जब इंसान जंगलों में रहते थे, tribes में रहते थे और अपने tribal लोगों को आप कुछ करते हुए देखते हैं कि वो लोग अपने घर के बाहर पत्थरों से boundary बना रहे हैं ताकि कोई शेर आकर उन्हें ना खा जाए तो आपके लिए फायदेमंद होता, उन्हें कॉपी करना और अपने घर के बाहर भी पत्थरों की एक दीवार बना लेना। लेकिन आज के जमाने में ये चीज फायदेमंद नहीं है, कॉपी करने वाली। इसके अलावा एक और bias होता है ambiguity effects. आपको दो option दिए जाए चुनने के लिए एक option में probability आपको पता है क्या है? दूसरे option

में probability आपको नहीं पता क्या है? For example पहला option है सरकारी नौकरी करना जहाँ पे आपको पता है success की probability one आउट of three hundred है और दूसरा option है graphic designer बनना जहाँ पे आपको probability of success नहीं पता क्या है? Research ने दिखाया है कि इंसान ज्यादातर उस option को चुनना prefer करते हैं जहाँ पर उन्हें पता हो कि क्या probability है। हमारा दिमाग prefer करता है कि एक estimates और guesses ना लगाना पड़े। जो ambiguities चॉइस है वो हम ना चुने। हम ऐसा ऑप्शन चुने जिससे हम ज्यादा familiar हों। जिसे ज्यादा सुन रहे हों जिसकी ज्यादा बात करी जा रही हो और जिसका success rate हमें पता हो।

यही कारण है कि ऐरे-गैरे इंजीनियरिंग colleges आपको देश के कोने-कोने में मिल जाएंगे। सोनीपत से लेकर मेरठ से लेकर जोधपुर तक. ये colleges को placement नहीं promise करते इनका salary package भी बहुत कम होता है. लेकिन फिर भी लोग इनमें जाना prefer करते हैं क्योंकि भाई दिख रहे हैं. ये वैसे इन सारे low quality इंजीनियरिंग colleges में ये भी दिक्कत रहती है कि ढंग से skills ही नहीं सिखाई जाती enginers और graduates को. अगर skills ही नहीं होंगी तो कहाँ से ढंग की नौकरियां मिलेंगी उन्हें? 

same चीज कही जा सकती है सरकारी नौकरियों के exams को लेकर भी 2019 की एक रिपोर्ट के according 20 लाख कैंडिडेट्स ने दस हजार एसएससी एमडीएस jobs के लिए apply किया। ये वो jobs है जो मल्टीटास्किंग स्टाफ की है। जॉब मिलने का chance जीरो point जीरो जीरो five और अगर जॉब मिल भी जाए तो यहाँ पर salary कितनी मिलेगी? 20 हजार रूपए per महीना की इसे आप compare करो एक video editor या graphic designer की salary से जिन्होंने अगर अच्छा काम किया तो उन्हें सत्तर अस्सी हजार रुपए per महीना मिल जाएगा आसानी से.

लेकिन फिर भी लोग इन सरकारी नौकरियों को prefer करते हैं graphic designer बनने की जगह क्यों? Ambiguity Effect तो इस पूरे system में सबसे पहले mass media की conditioning. दूसरा हमारे parents और तीसरा हमारे खुद के cognitive biases. ऐसी situation में अगर उम्मीद ढूंढते हुए कहीं पर हम जा सकते हैं तो वो एक ही जगह बची जो कि है हमारे schools और कॉलेजेस। लेकिन क्या हमारे schools और colleges इस situation से डील करने में मदद करते हैं?

देश की ज्यादातर states में सरकारी स्कूलों का standard बहुत ही खराब है। basic immunity भी वहां पर नहीं मिलती। कुछ महीने पहले की ही खबर है हरियाणा सरकार ने 300 स्कूलों को बंद करा दिया। 20 हजार teacher post को abolish कर दिया गया और 38000 teacher post vacant पड़ी है। आसाम की सरकार ने हाल ही में decide किया कि 34 schools को बंद कर देंगे। क्योंकि सारे के सारे students उन schools में 10th class के board exams fail कर गए. मतलब हमारी सरकारें यहाँ पर स्कूलों को ठीक करने की जगह उन्हें बंद करने लग रही है. लेकिन anyways private स्कूलों में आप पढ़ने जा सकते हो अगर सरकारी school खराब है तो private schools का क्या हाल है. 

ज्यादातर जगहों में दोस्तों आज के दिन भी ये respecting the authority की कहानी स्कूलों में भी चलती है. जहाँ पर teacher को authority figure माना जाता है. घर पे parents हमारे authority figure school में teachers authority figure. जो teacher कह रहा है वो बिल्कुल सही है। बच्चों को सीधे लाइन में खड़ा होना पड़ेगा। same तरीके की uniform पहननी पड़ेगी, बिल्कुल भी हल्ला मत मचाना। लड़कों के बाल हमेशा कटे होने चाहिए। लड़कियों के अगर लंबे बाल हैं तो उन्हें पोनीटेल्स में बांध के रखना चाहिए। आपको teachers को हमेशा impress करना पड़ेगा। आपको class monitor बनना चाहिए। आप टीचर के चमचे बनकर class monitor बन सकते हो। अपने classmates को behaviour सिखाओ और ये सब नहीं होगा तो punishment मिलेगी। एक बड़ा interesting dialogue है famous “Karate Kid” फिल्म में. जिसमें कहते हैं कि कहीं पर भी कोई खराब स्टूडेंट्स नहीं होते। सिर्फ खराब टीचर्स होते हैं।

लेकिन ज्यादातर teachers हमारे देश की क्या इस चीज को realize करते हैं? स्टूडेंट्स को punish किया जाता है homework ना करने के लिए। शोर मचाने के लिए। स्कूल में लेट आने के लिए। स्कूल बेल्ट ना पहनने के लिए। मुझे तो ये स्कूल से ये छुटकारा चाहिए एक महीने। है ना? कई जगहों पर physical punishment भी देखने को मिलती है। हालाँकि हमारे देश में illegal है लेकिन बहुत जगह पर अभी भी ये continue हो रही है। कई न्यूज़ रिपोर्ट्स और सर्विस ने इस चीज को रिवील किया है। फिजिकली मारना नहीं तो टीचर्स अक्सर mentally humiliate करते हैं स्टूडेंट्स को। पूरी क्लास के सामने खड़ा कर कर उनका मजाक उड़ाया जाता है। मैं स्कूल में से एक बार टोपी पहन के गया था. मेरे को टीचर ने इतना जलील किया। मेरी आत्मा को टोपी से नफरत हो गई। बहुत शैतान है, इसका दिमाग नहीं चलता, पता नहीं क्या करेगा ये बड़ा होकर, हम तो तंग आ चुके हैं। तो घर के अंदर strict parenting से जो हमारा self stream नीचे गिरता है स्कूल के अंदर teachers उसे और भी बचे-खुचे self estimate को खत्म कर देते हैं।

ऐसे environment पे बड़ा हुआ एक स्टूडेंट हमेशा औरों की तरफ देखता है, commands follow करने के लिए। खुद से decisions नहीं ले सकता, खुद उसके decisions में हमेशा self doubt होता है। लेकिन एक दफा के लिए अगर हम मान लें यहाँ पर parents supportive हैं, teachers भी supportive हैं, तो next problem आती है यहाँ पर स्कूल के curriculum की। स्कूल के curriculum में सबसे बड़ी problem actually में है कि अलग-अलग career options को ढंग से समझाया नहीं जाता उनका exposure नहीं दिया जाता। 

For Example आपको कितनी स्कूल textbook से स्कूल assignments में सुनने को मिला है journalism, वीडियो गेम डिजाइनर, वीडियो गेम टेस्टर, actually anthropologist, logo designer, professional, सोशल worker या event management जैसे careers के बारे में। एक geologist जैसा career ही लेकर देख लीजिए। हमारे स्कूल में subject पढ़ाया जाता है geography का. geography में chapters होते हैं जहाँ पर हमें geology ये पढ़ाई जाती है कि धरती का composition कैसा है? Volcanos क्या है। ये सारी चीजें पढ़ाई जाती है लेकिन कभी भी आपके दिमाग में ये ख्याल आया कि मैं एक geologist बन सकता हूँ या फिर पलैनटोलॉजिस्ट बन सकता हूँ या archaeologist बन सकता हूँ?

Maths की किताबों में हमें chapters देखने को मिलते हैं data, graph, histogram, spy, chart, standard, deviation, media जैसी चीजों के ऊपर लेकिन कभी भी आपके दिमाग में आया कि मैं बड़ा होकर statistician बन सकता हूँ। हमें स्कूल में एक subject सिखाया जाता है biology. लेकिन कभी आपने सोचकर देखा कि मैं बड़ा होकर botanist, horticulturist, environmentalist, zoologist या anatomist बन सकता हूँ. शायद नहीं क्योंकि teachers जो सिखाते हैं उसे बाहर की दुनिया से relate करना भूल जाते हैं स्कूल की किताबों में. actually में careers के साथ connection बनाना कहीं ना कहीं missing है। शायद से schools creativity inspire नहीं करते। 

अब यहाँ पर employment का मतलब सिर्फ job entrepreneurship भी होता है. लेकिन schools में कितना सिखाया जाता है entrepreneurship के ऊपर. इसका सिर्फ इक्का-दुक्का examples आपको मिलेंगे। हाल ही में दिल्ली के schools में entrepreneurship mind से curriculum start किया गया था. लेकिन generally बाकी देश में ये सब नहीं किया जाता है. ऐसी चीजों को वैसे दुनिया भर में आज के दिन discuss किया जाने लग रहा है. ये problem सिर्फ India specific नहीं है.

वैसे फ़िल्में भी बनायी गयी है हमारे देश में तारे ज़मीन पर, हिचकी, जिनमे दिखाया जाता है कि पढाई को कैसे बेहतर बनाया जाय। पढ़ाने को एक इंटरैक्टिव एन्जॉयबल एक्सपीरियंस बनाया जाता है. तो हाँ कुछ गिने चुने जगह है जहाँ पर इन चीजों की बात होते हुए दिखती है. लेकिन mainstream नहीं हुए है अभी तक ये ideas. अब बात करते है solutions की मैं जानता हूँ हर चीज आपके कंट्रोल में नहीं है. लेकिन जो चीज आपके कंट्रोल में है उसे जरूर influence किया जा सकता। जैसे कि सबसे पहले mass media सबसे viral videos के पीछे मत भागो यूट्यूब पर खुद से ढूंढने की कोशिश करो अलग-अलग career options के बारे में.

National Geographic Channel के videos देखो। Palaeontology के ऊपर कैसे उन्होंने dinosaurs को discover किया। archaeologist के videos देखो जहाँ पर राखीगाढ़ी साइट के excavation की discovery होने लग रही है। Netflix पर जब आप फिल्में और टीवी shows देखते हो. सबसे popular वाले देखने की जगह जिनकी हर कोई बात करने लग रहा है। थोड़ा हट के चीजें देखो। बड़ी कमाल की documentaries आपको देखने को मिलेंगी। ecology, एनाटॉमी, archaeology, history, space, investigative journalism, coding, psychology और religion जैसी चीजों पर थोड़ा सा initiative यहाँ से खुद से उठाना पड़ेगा आपको। क्योंकि जैसा मैंने बताया algorithms आपको वो दिखाएंगे जिस पर आप click करके देखोगे।

यहाँ पर parents को सुधरना पड़ेगा। पेरेंट्स को समझना पड़ेगा कि बच्चों के साथ strict तरीके से behave करने से एक impact पड़ता है बच्चों की growth पर। उन्हें खुद से initiative उठाने पड़ेंगे अलग-अलग careers के बारे में. exposure gain करें वो खुद और खुद से knowledge gain करें। ये सिर्फ बच्चों की responsibility नहीं है। parents भी ये करने की try करें ताकि उनका पुराना mindset change हो सके।

तीसरा role आता है यहाँ पर teachers और schools का same चीज उन्हें भी समझनी पड़ेगी और schools को try करना पड़ेगा कि कैसे वो creativity को और stimulate कर सकें। कैसे career counselling को schooling का एक हिस्सा बनाया जा सके। private और सरकारी schools यहाँ पर खुद से भी initiative उठा सकते हैं. अगर curriculum यहाँ पर बदल नहीं रहा है तो वो खुद से अपने स्कूल के लिए career counselor appoint कर सकते है. कुछ schools ये already करने लग रहे है जो कि बहुत अच्छी चीज है. अगर ये नहीं करना तो कम से कम एक ३ दिन की career counselling workshop करी जा सकती है 10th class के बच्चों के लिए यहाँ पर एक guests स्पीकर आए और स्टूडेंट्स को अलग-अलग careers के बारे में बताएं।

यहाँ पर बदलाव लाना बहुत जरूरी है. ये सिर्फ बच्चों की खुद की जिंदगी का सवाल नहीं है. सिर्फ उनके career और उनकी salary का सवाल नहीं है बल्कि देश की development का भी सवाल है. ज्यादातर developed देशों में आपको दिखेगा कि हर तरीके के profession और career को उतनी ही importance दी जाती है. जब देश में हर तरीके के professions में लोग काम करते हुए मिलेंगे तभी तो एक holistic तरीके से development होगी देश की. 

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