IPS Anand Mishra: आनंद मिश्रा, एक ऐसा नाम जो अपराधियों के लिए खौफ और जनता के लिए उम्मीद का चेहरा है। चाहे वर्दी में हों या सादे लिबास में, उनकी पहचान अलग है। एक समय में 150 से अधिक एनकाउंटर्स करने वाले इस पूर्व आईपीएस ने अब राजनीति में कदम रखा है। उनकी कहानी सिर्फ एनकाउंटर्स तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज और जनसेवा के प्रति उनकी सोच और जिम्मेदारी की झलक दिखाती है। तो आखिर क्यों उन्होंने अपनी पुलिस नौकरी छोड़ी और राजनीति का रास्ता चुना, आइए जानें।
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IPS Anand Mishra
बचपन से एनकाउंटर स्पेशलिस्ट बनने तक
आनंद मिश्रा का शुरुआती जीवन साधारण लेकिन महत्वाकांक्षी रहा। उनका नाम भी एक दिलचस्प कहानी के साथ जुड़ा है। उनके पिता ने उन्हें ‘आनंद’ नाम इसलिए दिया क्योंकि वो एक खुशमिजाज बच्चे थे। लेकिन शायद यह नाम अपराधियों के लिए ‘आनंद’ हरने वाला निकला।
आईपीएस बनने का उनका सपना समाज में स्थिरता लाने और भले लोगों को सुरक्षा देने का था। लेकिन उनकी शुरुआती पोस्टिंग मेघालय में हुई, जहां उस समय उग्रवाद चरम पर था। एक बिल्कुल नए अधिकारी के तौर पर उन्होंने असली गोलियों के बीच खुद को पाया। उनका पहला एनकाउंटर उनके लिए सही मायनों में एक बड़ा मोड़ था। डर, हिम्मत और जिम्मेदारी का वो अहसास उन्हें भविष्य में मजबूत बनाता गया।
एनकाउंटर करते वक्त का डर
आनंद मिश्रा साफ कहते हैं, “पुलिस ऑफिसर भी डरता है। गोलियां चलती हैं, तो दिल दहलता है।” लेकिन उनके डर को खत्म करने वाला उनकी ड्यूटी और धर्म परायणता का भाव था। इस भाव ने उन्हें ना केवल बहादुर बनाया, बल्कि जनता का सबसे भरोसेमंद चेहरा भी।
जंगलों में उग्रवादियों के साथ आमना-सामना, एनकाउंटर की अप्रत्याशित परिस्थितियां और हर दिन मौत का सामना करने का साहस उनकी जिंदगी का हिस्सा बन गया। वो कहते हैं, “मैं आज जो जी रहा हूं, वो एक्स्ट्रा है। मुझे तो कब का मर जाना था।”
पुलिस की सीमाएं और चुनौतियां
आनंद मिश्रा ने अपनी पुलिस सेवा के दौरान कई बार सिस्टम की जकड़न का सामना किया। एक ड्रग्स संबंधित केस में उन पर और उनकी टीम पर गलत आरोप लगाए गए, लेकिन उन्होंने कभी पीछे हटना नहीं सीखा। वो मानते हैं, “अगर पुलिस ने तय कर लिया कि किसी अपराधी को पकड़ना है, तो उसे पूरी दुनिया भी नहीं छुपा सकती।”
लेकिन सिस्टम के अंदर की राजनीति का अनुभव भी उन्होंने किया। उनके लिए सच्चाई और उनकी टीम की इज्जत ज्यादा मायने रखती थी, इसलिए उन्होंने जिम्मेदारी से किसी भी हाल में समझौता नहीं किया।
राजनीति में प्रवेश क्यों किया?
आनंद मिश्रा का राजनीति में आना उनके जीवन का स्वाभाविक कदम लगता है। वो मानते हैं कि लगातार एनकाउंटर्स और मुठभेड़ों के बाद उन्हें महसूस हुआ कि उनका जीवन सिर्फ गोली-बारूद और अपराध से भरा नहीं होना चाहिए।
उनका बिहार लौटना उनके बचपन के दर्द से जुड़ा है। वो बताते हैं कि कैसे व्यवस्था की खराबी ने उन्हें बिहार छोड़ने पर मजबूर किया। लेकिन अपने मिट्टी से जुड़ाव और समाज में बदलाव के प्रेरणा ने उन्हें राजनीति में हिस्सा लेने की दिशा दिखाई।
“मैंने राजनीति में इसलिए कदम रखा ताकि समाज को एक सकारात्मक दिशा दी जा सके। हर बार मुझे लगा कि सिस्टम को सुधारने का सही स्थान यही है।”
जन सुराज और बिहार का भविष्य
आनंद मिश्रा ने प्रशांत किशोर के जन सुराज अभियान से जुड़कर राजनीति में कदम रखा। वो मानते हैं कि बिहार को बदलाव की जरूरत है। पॉलिटिकल गठबंधनों के दबाव और जाति आधारित राजनीति को लेकर उनकी राय बिल्कुल साफ है।
“जन-सुराज का उद्देश्य बिहार में एक नई व्यवस्था स्थापित करना है, जहां जनता असली राजा की तरह महसूस करे। जाति से लड़ाई नहीं है, पॉलिटिकल एक्सप्लॉइटेशन से लड़ाई है,” आनंद मिश्रा कहते हैं।
उनका मानना है कि हर एक ब्लॉक, पंचायत और गांव तक पहुंचने की जरूरत है ताकि जनता से सीधा संवाद हो और उनकी समस्याओं को समझकर समाधान निकाला जा सके।
बाइक मुहिम: युवाओं को प्रेरित करने की पहल
29 दिसंबर 2024 से आनंद मिश्रा और जन सुराज एक बाइक अभियान शुरू करेंगे। यह अभियान बिहार के सभी ब्लॉक और पंचायतों तक जाएगा। इस पहल का उद्देश्य युवा शक्ति को साथ जोड़ना और समाज के हर तबके से जुड़ना है।
“रोड सेफ्टी का संदेश भी देंगे और हेलमेट पहनने की अनिवार्यता को बढ़ावा देंगे। यही नहीं, हर ब्लॉक के नेताओं को प्रमोट करेंगे ताकि क्षेत्रीय नेतृत्व मजबूत हो सके,” मिश्रा कहते हैं।
उनके इस प्रयास का मकसद सिर्फ राजनीति करना नहीं, बल्कि नई पीढ़ी में जिम्मेदारी और अनुशासन के भाव को स्थापित करना है।
क्या बिहार राजनीति में बदलाव संभव है?
आनंद मिश्रा यह मानते हैं कि बिहार में बदलाव आसान नहीं है, लेकिन असंभव भी नहीं। जनता का विश्वास जीतने के लिए वक्त, मेहनत और सही रणनीति चाहिए।
“2025 तक बिहार में जन सुराज का असर साफ दिखने लगेगा। जनता खुद बदलाव महसूस करेगी। अगर हमने वैसा बिहार न दिया, तो जनता हमें हटा सकती है,” उनका आत्मविश्वास झलकता है।
निष्कर्ष
आनंद मिश्रा की कहानी सिर्फ एक आईपीएस अधिकारी से राजनीतिज्ञ बनने की यात्रा नहीं है। यह उस इंसान की कहानी है जो बदलाव में विश्वास रखता है। उनकी प्राथमिकता न केवल अपराध को खत्म करना बल्कि समाज को बेहतर बनाना है।
बिहार के लिए उनका सपना बड़ा है। बदलाव की शुरुआत हो चुकी है। बस देखना यह है कि जनता इस बदलाव को कैसे अपनाती है और आनंद मिश्रा अपने उद्देश्य में कितना सफल होते हैं।
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