Reality of Pakistan Crisis: कुछ तो रही होंगी, मजबूरियां यूं ही कोई बेवफा नहीं होता। देखिए जो सिचुएशन पाकिस्तान इस पर्टिकुलर टाइम पर फेस कर रहा है। ऐसी situation में पाकिस्तान इससे पहले कभी नहीं फंसा। शॉपिंग काम्प्लेक्स और मॉल्स को साढ़े आठ बजे से पहले बंद करने के ऑर्डर आ गए हैं, इलेक्ट्रिसिटी system collapse करने की stage पे है.
गेहूं की shortage हुई है और कई cases में तो ऐसा देखा गया है कि जो गेहूं से भरे ट्रक हैं उसके पीछे लोग बाइकों से पीछा कर रहे हैं.
सिर्फ एक साल में पाकिस्तान की currency 40% परसेंट गिर के 267 पाकिस्तानी rupees तक पहुंच गई है। वहां पर blackout इससे पहले भी होते थे. पाकिस्तान में 2015 में, 2021 में भी हुए थे. लेकिन इस लेवल के नहीं हुए थे. सिर्फ power cut से होने वाले losses की वजह से पाकिस्तान की जीडीपी 4% तक नीचे गिर गई है।
Power Cut की वजह से पाकिस्तान का टेक्सटाइल मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर भी पूरी तरीके से नीचे आ गया है. जो फॉरेन एक्सचेंज है वो 3 बिलियन डॉलर से भी कम पे आ गया और श्रीलंका के बराबर पहुँच गया है.
Reality of Pakistan Crisis
अब आपके कई क्वेश्चन होंगे कि ये सब अचानक से क्यों शुरू हो गया? बांग्लादेश पाकिस्तान से भी पीछे है. वो आगे कैसे निकल गया? लेकिन पाकिस्तान कैसे पीछे रह गया. पाकिस्तान की एक्चुअल में दिक्कत क्या है जिसको सबसे ज्यादा एड मिलती है पूरे दुनिया भर से. वो सबसे ज्यादा पीछे क्यों रह गया और दुनिया में इतनी गरीब कंट्रीज है जिनका पाकिस्तान से भी बुरा हाल है. लेकिन उसके बाद भी ज्यादा पैसा जो है वो पाकिस्तान को क्यों मिलता है?
अब देखिए इससे पहले कि मैं करंट सिचुएशन की बात करूं कि इस बार पाकिस्तान को पैसे मिलने में दिक्कत क्यों आ रही है? आईएमएफ क्यों पीछे हट रहा है? फिर US, Imran Khan और army का क्या role है? इस पूरी situation को समझने के लिए पहले आपको root cause को समझना पड़ेगा।
देखिए जब इंडिया पाकिस्तान का पार्टीशन हुआ था तो पाकिस्तान को one third मिलिट्री मिली थी और overall resource में से 17 परसेंट मिला था। ये जो details मैं बता रहा हूँ ये पाकिस्तान के एक author है, हुसैन हकानी, इन्होंने भी ये चीज कंफर्म कर रखी है। जो मेजर इंडस्ट्रीज थी वो total 921 थी उसमें से सिर्फ 34 पाकिस्तान के हिस्से में आई थी तो उस particular टाइम पे जब पार्टिशन हुआ था तो जो economic कंट्रोल था वो इंडिया के पास था।
आरबीआई उस टाइम पे पाकिस्तान का भी सेंट्रल बैंक था और इंडिया का भी. लेकिन कंट्रोल इंडिया के हाथ में था। इंडिया का जो टोटल कॅश बैलेंस था वो 400 करोड़ था और ये decide हुआ था कि इस 400 करोड़ में से 75 करोड़ पाकिस्तान को दिए जाएंगे।
75 करोड़ में से 20 करोड़ जो थे वो पाकिस्तान को 15 अगस्त 1947 को ही दे दिए गए थे और बाकी का जो 55 करोड़ था. उसको बाद में देने की बात की गई थी. उस समय पाकिस्तान के सामने जो सबसे बड़ी दिक्कत थी वो थी कि ये जो refugee आए थे उनको settle करना उसमें काफी पैसा चाहिए था।
लेकिन उस टाइम पे कश्मीर को लेकर काफी issues हो रहा था। तो नेहरू जी और पटेल जी ने ये माना कि जो 55 करोड़ है इसको रोक लेना चाहिए वरना ये इस पैसे से हथियार खरीदेंगे और हमारे खिलाफ ही use करेंगे। हालांकि ये जो पैसा था ये आगे चल के महात्मा गांधी जी ने दिलवा दिया था.
लेकिन उस particular टाइम तक जब तक ये पैसा मिला था। उससे पहले भी पाकिस्तान की जो economic कंडीशन थी वो काफी ख़राब थी. economic condition भले ही थोड़ी सी weak थी लेकिन military strong थी. क्योंकि इंडिया agree कर गया था one third army split करने के लिए.
इंडिया की जो political लीडरशिप थी वो ज्यादा स्ट्रांग थी. पाकिस्तान के मुकाबले इंडिया की तरफ से नेहरू जी, गांधी जी, सरदार पटेल जी multiple strong leader थे. वहीं मुस्लिम लीग में सिर्फ जिन्ना के बाद कोई और strong leader आया ही नहीं। जिन्ना की death के बाद ना तो जिन्ना के level का कोई पावरफुल नेता आया और ना ही मिलिट्री ने आने दिया। क्योंकि जो टेम्पररी कंट्रोल मिला था पाकिस्तान की आर्मी को वो काफी एन्जॉय कर रही थी.
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पाकिस्तान आर्मी को इस टेम्पररी कंट्रोल की ऐसी आदत लगी कि उसके बाद 29 पीएम बने आज की डेट तक एक भी पीएम ऐसा नहीं है जिसने 5 साल का कार्यकाल अपने पूरे किए हो। किसी को मार दिया गया, किसी का तख्ता पलट कर दिया गया, इतने बड़े-बड़े पॉलिटिशियन को मारा गया. आज तक इनकी एक भी एजेंसी ये नहीं पता लगा पाई कि पीएम को मारा किसने है?
पिछले साल ही इमरान खान जो प्राइम मिनिस्टर थे, इनको रैली में गोली मार दी गई, ये आज तक नहीं पकड़ पाए कि गोली चलाई किसने? बिना किसी बड़े हाथ के ऐसा possible ही नहीं हो सकता की किसी के बारे में पता ही नहीं चल रहा कि इनके PMs को मार कौन रहा है. इनके बड़े-बड़े नेताओं को मार कौन रहा है?
कुछ cases में तो law amend किया गया है ताकि जो पूरा control है वो Pakistan की army के हाथ में आ जाए. इन कुछ चीजों की वजह से Pakistan की जो army है उसका control Pakistan के ऊपर शुरू से ही रहा है और ये आगे चलके बहुत ही बड़ी problem बनी है वो भी आपको आगे समझ में आ जाएगा।
देखिए किसी भी कंट्री को grow करने के लिए पैसा तो चाहिए ही होता है। पाकिस्तान के सामने भी यही दिक्कत थी कि उसको grow तो करना ही था. लेकिन सीधे-सीधे economic डेवलपमेंट मुश्किल था. क्योंकि उसके लिए political stability और patience चाहिए होता है। प्रोडक्शन और export करना होता है तो पाकिस्तान की leadership ने इसके लिए नए-नए जुगाड़ निकाले.
इसी efforts में उसको दिखा यूनाइटेड स्टेट ऑफ अमेरिका और उसकी military needs. पाकिस्तान को उस पर्टिकुलर टाइम पे ही realize हो गया था कि यूएस का साउथ एशिया में कोई दोस्त नहीं है और उसको सोवियट यूनियन को कंट्रोल करना है और इसके लिए उसको पाकिस्तान की जरूरत पड़ सकती है। तो इसमें उसको एक मौका दिखा।
पाकिस्तान ने अपने-आप को यूएस का फ्रेंड दिखाया और इसके बदले में उसको मिली foreign aid. लेकिन question है कि ये foreign aid दी क्यों गई? देखिए आज की date में आप देखते होंगे कि इंडिया के अंदर बहुत सारे यूएस के कॉल centers हैं। यूएस के employers वहां के employees को छोड़ के इंडिया से बंदे hire करते हैं.
ऐसा इसलिए क्योंकि एक यूएस सिटीजन की सैलरी काफी ज्यादा होती है उसकी जितनी भी liability होती है वो यूएस के employer की होती है। insurance, pension जैसे तरह-तरह के benefits देने पड़ते हैं। कोई incident भी हुआ तो सारी responsibility यूएस के employer की बनती है। infrastructure maintain करना, ऑफिस वगैरह ये काफी बड़ा खर्चा होता है इसमें। लेकिन इंडिया के अंदर सारे employees कम पैसे में मिल जाते हैं और किसी की भी liability यूएस के employer के ऊपर नहीं होती है।
Same concept यूएस अपनी मिलिट्री में भी use करता है। देखिए यूएस usually दो तरीके से war लड़ता है. अगर उसे लगता है कि stakes बहुत ज्यादा हाई है तो वो वॉर में खुद कूद जाता है जैसे उसने वियतनाम में किया या फिर इराक में किया। लेकिन जब उसको लगता है कि सीधा कूदने में फायदा नहीं है तो वो शैडो वॉर लड़ता है।
इसमें वो दुश्मन के दुश्मन को दोस्त बना के काम करता है। मान लीजिए अपने इंटरेस्ट को पूरा करने के लिए यूएस अगर अपनी खुद की army भेजने लगेगा तो पहली चीज तो अपने citizen को खतरे में डालेगा और अगर उसको कुछ हो गया तो उसका पूरा खर्चा उसको देखना होगा। प्लस country के अंदर लोगों को answer करना पड़ेगा कि क्यों भेजा, war की जरूरत क्या थी?
अगर आप अपनी military direct किसी country के against में भेजते हो तो war like situation हो जाती है। countries आमने-सामने आ जाती है। इसलिए traditional wars की जगह यूएस अलग-अलग militancy group को trend करता है, उनको arms देता है और उनकी funding करता है.
जिससे कि वो अपना मकसद पूरा कर पाए. जैसे अफगानिस्तान के अंदर मुजाहिद्दीनों से उसने अपना काम करवाया। कई ऐसे मिलिटेंसी ग्रुप होते हैं, मुजाहिदीन होते हैं जो पैसे लेकर भी लड़ाई करते हैं। अभी जो रशिया-युक्रेन वॉर चल रही है, उसमें भी आप अगर सर्च करोगे तो रशिया ने सीरियन fighters को पैसा देकर recruit किया है. जिन्हें मर्सिडीज भी बोलते हैं. ये पैसा ले के युक्रेन के खिलाफ लड़ रहे हैं और इस मॉडल में रिस्क एकदम कम होता है.
आपको भारी-भारी salaries नहीं देनी होती है. आपको बस weapons और training provide करानी होती है और इस पूरे गेम में पाकिस्तान पूरे एरिया का एक ट्रेनिंग सेंटर बन गया है और इस सेंटर को बनाया पाकिस्तान मिलिट्री ने.
जब इंडिया और पाकिस्तान आजाद हुए थे तो उस particular टाइम पे दो ही सुपर power थी. एक यूएस और दूसरी सोविट यूनियन जिसे अभी रशिया कहते हैं. सोवियत यूनियन का साउथ एशिया में बहुत ही ज्यादा influence था. इंडिया का झुकाव भी सोविट यूनियन की तरह ही था।
ऐसे में यूएस को पाकिस्तान एक ऑप्शन की तरह देखता था। यूएस अफगानिस्तान में अपना कंट्रोल पाने के लिए सोविट यूनियन के खिलाफ मुजाहिदीन तैयार करता है और इन सब की ट्रेनिंग का जिम्मा लेता है पाकिस्तान। तो जब सोवियत यूनियन और अफगानिस्तान के बीच में लड़ाई चल रही थी तो उसमें rather than यूएस ने अपनी मिलिट्री उतारने के लिए मुजाहिदीन को रेडी किया।
ना तो मुजाहिद्दीन की जान जाने पर यूएस की कोई जवाबदेही थी और ना ही भारी-भारी सैलरी देनी थी और रिस्क भी बिल्कुल खत्म हो गया था. क्योंकि अगर यूएस की मिलिट्री अफगानिस्तान में उतर के रशिया के खिलाफ लड़ती तो ये war रशिया और यूएसए की war में बदल जाती तो यूएस ने मुजाहिद्दीनों को weapons दिए.
इन सब की ट्रेनिंग हुई पाकिस्तान में. पाकिस्तान ने हर तरीके से मदद की मुजाहिद्दीन की. इनको ट्रेनिंग करवाई. इनको route दिया, इनको खाने-पीने और हथियार वगैरह सब सप्लाई कराए. इसमें पाकिस्तान के लिए भी फायदा था क्योंकि बिना कुछ produce करे या effort लगाए यूएस से पैसा मिलने लगा था।
यूएस ये पैसा कभी aid की form में भेचता था तो कभी ह्यूमन राइट के बहाने से भेजता था। usually आप देखोगे तो foreign aid उन देशों को मिलता है या तो जो गरीब हों या किसी crisis से गुजर रहें हों। जैसे कोई war या फिर natural disaster हो.
लेकिन पाकिस्तान को aid मिलता था उसकी strategic लोकेशन की वजह से. उसकी usefulness की वजह से. in fact साल का एक बजट भी fix कर दिया गया था. जिसमें बिलियंस of dollars आते थे पाकिस्तान को यूएस की तरफ से. लेकिन पाकिस्तान ये जो centers थे और ये जो पैसा था और ये जो मुजाहिद्दीन थे इनका use कश्मीर में भी करने लगा।
1964 तक पाकिस्तान में आने वाली जितनी भी foreign aids आती थी ये इनके जीडीपी का 5%का हिस्सा बन गई थी. लेकिन इन सबके बीच में पाकिस्तान ये भूल गया था कि इन सबके बीच में बिना मतलब किसी और की लड़ाई उसने अपने सरदर्दी पे ले ली थी. लेकिन पाकिस्तान की जो जनता थी और गवर्नमेंट थी वो यूएस के इस ऐड और पाकिस्तान का अफगानिस्तान में हेल्प करने से बिल्कुल खुश नहीं थी.
जनता का ये मानना था कि अफगानिस्तान में ये भी हमारे जैसे ही मुस्लिम हैं और हम अपने ही भाइयों को मरवा रहे हैं. वहीं गवर्नमेंट इसलिए खुश नहीं थी क्योंकि एड की वजह से मिलने वाला जो पैसा था वो बस आर्मी तक ही पहुँच पाता था क्योंकि करप्शन की वजह से पैसा नीचे तक पहुंच ही नहीं पाता था और पाकिस्तान का एक्सपोर्ट और प्रोडक्शन इतना कोई खास नहीं था।
इसलिए लोगों की जो गालियां होती थी वो पाकिस्तान की गवर्नमेंट को मिलती थी। लेकिन पाकिस्तान की economic situation फिर से खराब तब होती है जब अफगानिस्तान war 1989 में खत्म हो जाती है।
ये जो मुजाहिदीन यूएस और पाकिस्तान ने मिल के trained किए थे ये अफगानिस्तान की सरकार को गिरा के तालिबान का राज हो जाता है वहाँ पे. ये ओसामा बिन लादेन वगैरह को, ये सब यूएस ने उस टाइम पे train किए थे और सोवियत यूनियन को बाहर करके यूएस का काम almost पूरा हो गया था।
ये जो बातें मैं बोल रहा हूँ. ये जो पाकिस्तान के प्रेसिडेंट रह चुके परवेज मुशर्रफ उन्होंने भी बोली है और openly बोली है। interview अभी भी पड़ा है इनका यूट्यूब के अंदर। अफगानिस्तान war के बाद अमेरिका को पाकिस्तान की जरूरत नहीं थी अब। अब इस चीज का आप अंदाजा इस चीज से लगा सकते हैं कि 1989 में यूएस ने पाकिस्तान को सीधे-सीधे 452 मिलियन डॉलर की एड दी थी जो 1998 तक घट के 5.4 मिलियन डॉलर रह गई थी.
बांग्लादेश और इंडिया जब export करके अपनी economy को धीरे-धीरे आगे बढ़ा रहे थे. तब पाकिस्तान की मिलिट्री ऐड से खुश हो रही थी
अफगानिस्तान war खत्म होने के बाद पाकिस्तान की जो economy थी उसको काफी नुकसान हुआ और उसके बाद पाकिस्तान को यूएसए ने स्टैंड by mode पे डाल दिया। लेकिन पाकिस्तान की किस्मत फिर चमकती है जब 9/11 attack होता है, world trade सेंटर में. ये attack अलकायदा ने करवाया था और यूएस को डर था कि ये attack अगर दुबारा नहीं करवाना है तो अलकायदा को पूरी तरीके से ख़त्म करना होगा।
अलकायदा अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बॉर्डर पे operate करता था और एक बार फिर यूएस को पाकिस्तान की जरूरत पड़ी। इस बार यूएस ने coalition सपोर्ट फंड बनाया “सीएसएफ” जिसमें पाकिस्तान को काफी पैसा मिला। 2009 में us ने कैरीलुगर बिल पास किया। जिसने पाकिस्तान को 1.5 बिलियन डॉलर per year की annual असिस्टेंट देने का proposal था। लेकिन ये जो पैसा मिलता था.
इसको पाकिस्तान यूएस के war and terror के लिए use करने की बजाय, अपनी economy को बचाने के लिए use करता था। अपनी आर्मी को strong करता था और जो ट्रेनिंग सेंटर थे जहाँ मुजाहिदीन train होते थे वहां से अफगानिस्तान के साथ-साथ कश्मीर में भी मुजाहिदीन भेजता था। ये वो टाइम था जब पाकिस्तान के दोनों हाथ घी और मुँह कढ़ाई में था।
पाकिस्तान आर्मी के ऊपर बाहर से मिलने वाले aid में corruption allegation लगते रहे। यूएस ने भी इन्होंने हमारे ऐड से मिलने वाले पैसे को मिसस्पेंड किया है और तो और इतने साल continuously एड देने के बाद भी ये पता चलता है कि ओसामा बिन लादेन पाकिस्तान में ही पकड़ा जाता है।
मुल्ला उमर जो most wanted था उसकी death भी पाकिस्तान की हॉस्पिटल में होती है। डोनाल्ड ट्रंप ने आते ही ये जो एड मिलता था पाकिस्तान को उसको पूरी तरीके से बंद कर दिया और पाकिस्तान की इकॉनमी जो बबल में थी उसको फिर से एक झटका लगता है।
इन सारी चीजों की वजह से पाकिस्तान की इमेज काफी खराब हुई और फोरन इन्वेस्टमेंट एकदम से खत्म हो गया। बाहर की कंपनीज इतनी अनस्टेबल जगह पे अपनी कंपनी नहीं लगाना थी. उनको पता था कि उनको नुकसान होना तय है. इसके अलावा टूरिज्म भी खत्म हुआ, ये बहुत ही बड़ा factor था पाकिस्तान की economy collapse होने में. देखिए पाकिस्तान और इंडिया में कई बार wars हुई हैं, लेकिन 1971 की वॉर ने पाकिस्तान को काफी weak किया, ये बहुत ही interesting कहानी है.
देखिए जब यूएस ने कुछ कदम पीछे लिए तो वहां पे एंट्री हुई चाइना की और फिर यहाँ पे चाइना ने लोन पे लोन देना स्टार्ट किया और इस वजह से पाकिस्तान की इकॉनमी जो एक बबल में थी उसका प्रॉपर टेस्ट नहीं हो पाया। दुनिया में अलग-अलग तरह के देश हैं कुछ की economy oil से चलती है, कुछ की economy manufacturing से चलती है या फिर आईटी सेक्टर से चलती है, कुछ की agriculture से भी चलती है. लेकिन पाकिस्तान की economy aid और loan से चलती है।
पाकिस्तान एक aid dependent country है, जिस तरीके से पाकिस्तान यूएस के लिए एक strategic लोकेशन है। ठीक उसी तरह से पाकिस्तान चाइना के लिए भी एक strategic लोकेशन है। इंडिया को tackle करने में चाइना को बहुत ही आसानी रहती है।
इंडिया जब तक पाकिस्तान में उलझा रहेगा, चाइना आराम से रहेगा। यही reason है कि चाइना ने पाकिस्तान के अंदर न्यूक्लियर पावर प्लांट बनाने में उसको मदद करी और कई analyst तो ये भी मानते हैं कि चाइना ने पाकिस्तान को न्यूक्लियर प्रोग्राम बनाने में भी मदद करी।
चाइना की जो dead trap strategy है वो already पता होगी। लेकिन मैं फिर भी मोटा-मोटी बता देता हूँ चाइना पहले market rate से ज्यादा इंटरेस्ट पे लोन देता है. फिर जो लोन आपको बाहर से 30 साल के tenure पे मिलता उसी को चाइना approx 15 साल के लिए देता है। उसके बाद जिस चीज के लिए चाइना लोन देता है. मान लीजिए वो कह रहा है कि आपकी कंट्री में हम पावर प्लांट बनाएंगे।
तो बनाने से ले के हर चीज में चाइनीज वर्कर और कंपनीज होती हैं। तो जो पैसा वो लोन देते हैं वो उसी देश से कमा के एक बिजनेस करके निकल जाते हैं और ऑन पेपर पे वो लोन as it is बना रहता है और लोन का जो interest है वो बढ़ता रहता है। इनके clause में ये पहले से ही mention करवाते हैं कि अगर लोन नहीं दे पाए तो वो जगह चाइना की हो जाएगी।
इसी तरीके से श्रीलंका का जो Hambantota Port था वो चाइना के पास पहुँच गया. फिर इन्हीं सारी strategic लोकेशन का use करके ये उस एरिया में रूल करते हैं. अब आपको कि ये जो strategy आप बता रहे हो ये तो बच्चे-बच्चे को पता है।
तो पाकिस्तान के जो leader हैं, military है उनको नहीं पता होगी तो देखिए आपने कहावत सुनी होगी कि कुछ तो रही होंगी, मजबूरियां यूँ ही कोई बेवफा नहीं होता, तो ये क्या-क्या मजबूरियां रही हैं इनकी, जब मैं अभी आगे आईएमएफ की बात करूंगा तो उसमें समझाना है.
देखिए चाइना ने पाकिस्तान के साथ मिल के अपने belt and road initiative बीआरआई के under चाइना, पाकिस्तान economic corridor-सीपेक 2015 में बनाना शुरू कर दिया और ये गोदर में भी एक port develop कर रहा है और जितना पैसा चाहिए, चाइना बहुत ही आराम से दे रहा है और पाकिस्तान भी खुश है कि आईएमएफ से लोन लेने में बहुत ही ज्यादा झिकझिक होती है और चाइना बहुत आराम से दे दे रहा है।
चाइना ने अभी तक 30 बिलियन डॉलर से ज्यादा पाकिस्तान को लोन दिया है और कुछ भी वापिस नहीं आया। चाइना को भी पता है कि वो पैसा वापिस नहीं आएगा। लेकिन strategic लोकेशन में एडवांटेज उसको मिल रहा है। यहाँ वही same डेथ ट्रेप वाला मॉडल चलता है। सारे workers companies वगैरह चाइना से ही आएंगे।
ये जो चीज मैं आपको बता रहा हूँ, ये इमरान खान ने भी शुरू में अपनी जनता को समझाने की कोशिश की थी और उसका जब टाइम आया था तो उस टाइम पे उसने एक काम भी रुकवा दिया था सीपेक का.
लेकिन इन सब के लिए अब काफी देर हो गई है. देखिए सीपैक से पाकिस्तान के अंदर खूब infrastructure develop हुआ पैसा भी आया इन सब चीजों से पाकिस्तान खुश होता है और सड़के भी बन रही है, विकास भी हो रहा है लेकिन actual में ये एक dead based economy है जो सिर्फ aids और loan के भरोसे चल रही है.
आईएमएफ ने भी multiple time समझाया पाकिस्तान को कि सीपैक से दूर रहना ही पाकिस्तान के लिए ठीक है. कोई नया नेता आके अगर ये सारी चीजें सही भी करने लगे तो वो हो नहीं सकता तो ये बहुत ही पहले से चल रहा है और अब aid लेना इनकी मजबूरी बन गया है। जनता वरना पीएम को ही गाली देने लगेगी।
इसको ऐसे समझ लीजिए किसी के पास multiple card है वो बस इस credit card की payment उस card से कर दे रहा है। कभी दूसरे card की payment किसी तीसरे card से कर दे रहा है। इससे EMI तो बचा ले रहा है वो लेकिन actual में उसकी problem solve नहीं हो रही है। कर्जा उसके ऊपर उतना ही है।
बल्कि interest और बढ़ रहा है। same इसी concept पे पाकिस्तान की economy भी चल रही है। कुछ produce नहीं कर रहे हैं, export नहीं कर रहे हैं। बस loan लेते हैं और उस loan को चुकाने के लिए एक और loan लेते हैं। यही reason है कि आप देखोगे कि किसी और country के लिए beggar word use नहीं होता है।
पाकिस्तान के केस में use किया जाता है। इनके खुद के पीएम ने ऑन रिकॉर्ड बोला है कि beggars can’t be choosers! देखिए पाकिस्तान का जो करंट क्राइसिस है उसने दशकों से जो financial मिस मैनेजमेंट हो रहा है उसके ऊपर फोकस वापिस से ला दिया है और इस मैनेजमेंट का सबसे इंपॉर्टेंट प्लेयर है पाकिस्तान आर्मी और ये मैं इसलिए नहीं कह रहा हूँ क्योंकि मैं इंडियन हूँ तो बुराई करूंगा ही.
अब दुनिया के किसी भी न्यूज़ आउटलेट में पाकिस्तान के बारे में पढ़िएगा आपको पाकिस्तान आर्मी का exactly रोल क्या है वो आपको पता चल जाएगा। पाकिस्तान अपने डिफेंस बजट में जरूरत से ज्यादा खर्च करती है। पिछले साल का पाकिस्तान का टोटल बजट 9502 बिलियन rupees का था। जिसमें 1523 billion rupees खाली डिफेंस पे गया है।
यानी कि टोटल बजट का fifteen परसेंट से भी ज्यादा लोन का इंटरेस्ट पेमेंट करने के बाद पाकिस्तान की इकॉनमी का सबसे बड़ा हिस्सा जो है वो डिफेंस में जाता है। पाकिस्तान आर्मी ने नाइनटीन forty seven के बाद आधे से ज्यादा टाइम पाकिस्तान को रूल किया है। और इनके पास सिक्योरिटी और foreign पॉलिसी में बहुतज्यादा पावर है। ये लोग उसको ही पीएम बनाते हैं जो इनके हिसाब से चलता है।
इनके बिना पाकिस्तान में कोई भी इलेक्शन नहीं जीत सकता। इसीलिए आपने एक वो कहावत जरूर सुनी होगी बहुत ही फेमस है पाकिस्तान आर्मी के लिए कि जंग कभी जीती नहीं और इलेक्शन करेहारे या नहीं ये देखिए इतने सारे मैडल इन्होने लगा रखे हैं लेकिन उन्होंने आज तक एक भी जंग नहीं जीती। पाकिस्तान की एक author है आयशा सिद्दिका उनकी एक किताब है military आईएनसी अगर मौका आपको लगेगा तो उसको पढ़िएगा जरूर.
पाकिस्तान की आर्मी पूरे देश का पैसा कैसे घुमा रही है इकोनॉमी को कैसे कंट्रोल कर रही है बहुत ही बढ़िया तरीके से उसमें बताया आपने कभी सुना है कि कोई आर्मी कपड़े, साबुन, तेल ये सब बेचती हो ये दुनिया की अकेली आर्मी है जो सीमेंट, कपड़े, मीट, इंश्योरेंस रियल स्टेट ये सब बेचती है इनकी आर्मी पाकिस्तान की रियल स्टेट को कंट्रोल करती और हर जनरल को रिटायरमेंट के बाद प्लॉट पे प्लॉट मिलते हैं।
पाकिस्तान आर्मी की net worth एक लाख करोड़ से भी ज्यादा की है। इनकी आर्मी के अगर टॉप hundred officers की wealth का अंदाजा लगाया जाए तो thirty five thousand करोड़ से भी ज्यादा की wealth है। इनके बच्चे सब बाहर पढ़ते हैं। यूके में इनके घर हैं जबकि एक आम पाकिस्तानी ये सब सपने में भी नहीं सोच सकता जो ये लोग करते हैं।
पाकिस्तान आर्मी ने फाउंडेशन और ट्रस्ट का एक नेटवर्क बना रखा है। जो पाकिस्तान के अंदर सारी चीजें own करते हैं। जैसे फौजी, शाहीन और बाहरिया फाउंडेशन, जिनको आर्मी, एयरफोर्स और नेवी चलाते हैं।
इनमें से फौजी foundation सबसे बड़ी है। पाकिस्तान के अंदर ब्रेड तक भी military कंट्रोल बैकरी से बनती है। पाकिस्तान के बैंक को भी आर्मी own करती है। और heavy industry का one third और total private assets का seven percent हिस्सा आर्मी own करती है। पहले कमाते हैं और फिर लॉ में amendment करा के अपना फायदा करवाते हैं।
आर्मी welfare trust और फौजी foundation को इनकम टैक्स से भी छूट मिलती है और इस वजह से इनके सामने जो private companies है वो इनके सामने टिक नहीं पाती है। इनकी आर्मी के पास power और पैसा दोनों है आप कभी नहीं देखोगे एक गरीब देश की आर्मी इतनी अमीर है।
हर देश की एक आर्मी होती है लेकिन यहाँ पे आर्मी का ही एक देश है। आप बोल सकते हो कि मैं गलत बता रहा हूँ लेकिन आप खुद से भी एक बार चेक करिएगा कि पाकिस्तान आर्मी चीफ जो इससे पहले थे जावेद बाजवा इनकी वाइफ की जो 2016 में वेल्थ थी वो जीरो थी।
जब जनरल साहब रिटायर हुए तो उनकी वाइफ की वेल्थ दो सौ बीस करोड़ हो गई। उनकी वाइफ इतने टाइम में ऐसा कौन सा बिजनेस कर रही थी कि उनकी वेल्थ इतनी हो गई और अगर पूरी बाजवा फैमिली की वेल्थ को देखा जाए तो 1270 करोड़ हो गई।
ये लोग ऐसा कौन सा खजाना खोद रहे हैं? जो वेल्थ इतनी ज्यादा हो गई है। सैलरी जोड़ दो आप उसके हिसाब से इतनी वेल्थ नहीं बैठती है। लेकिन उसके बाद भी इतना पैसा आ कहाँ से रहा है? आप थोड़ा सा भी common sense लगाओगे तो आपको पता चल जाएगा कि कुछ तो गड़बड़ है इसमें।
लेकिन ये सारी चीजें क्वेश्चन तब हो पाएंगे जब मीडिया ये सारे क्वेश्चन ले के आए। लेकिन मीडिया और सुप्रीम कोर्ट वगैरह हर जगह इनका कंट्रोल है। मल्टीपल observers का ये मानना है कि अगर पाकिस्तान की इकॉनमी को grow करना है तो इकोनॉमी में पाकिस्तान आर्मी का रोल जो है वो खत्म करना होगा।
लेकिन इस direction में अगर कोई छोटा सा भी effort होता है तो उसको वहीं पे फेल कर दिया जाता है। उसको वहीं रोक दिया जाता है। क्योंकि इसकी वजह से businesses globally competition में नहीं आ पा रहे हैं और इनका जितना भी profit होता है.
वो सारा army के generals, retired generals को transfer होता रहता है. पाकिस्तान आर्मी, पाकिस्तान के सबसे बड़े real estate developer हैं, इनके पास 50 से ज्यादा housing project हैं, जिसमें इस्लामाबाद में 16000 एकड़, कराची में 12000 एकड़ की जमीन है. जो इनको पाकिस्तान गवर्नमेंट से free of cost में मिली है.
Higher authority में कोई भी हो, जो भी इनके हिसाब से नहीं चलता, उसको ये लात मार के निकाल देते हैं. पाकिस्तान के अंदर आर्मी की हेल्प से ही पीएम बनता है और जब पीएम बन जाता है तो वो आर्मी चीफ के हिसाब से ही चलता है। जनरल बाजवा ने इमरान खान को पीएम बनाया।
इसके बदले में इमरान खान ने जनरल बाजवा का tenure extend करवाया. लेकिन दिक्कत तब हुई जब जनरल बाजवा का tenure खत्म हो रहा था और जनरल बाजवा अपने हिसाब से ही अपना आर्मी चीफ रखना चाहते थे। वो सैयद असीम मुनीर को अपना आर्मी चीफ बनाना चाहते थे।
लेकिन इमरान खान के सामने भी दिक्कत थी उनको ये पता था कि अगर सैयद असीम मुनीर आर्मी चीफ बनेंगे तो अगले इलेक्शन में वो उनको सपोर्ट नहीं करने वाले हैं। इसलिए जनरल बाजवा के खिलाफ जा के इमरान खान ने जनरल फैज को आर्मी चीफ बनाने की वकालत करी।
इस सब के बीच में जनरल बाजवा ने इमरान खान को हटा के शरीफ को पीएम बनवा दिया और शरीफ ने आसिम मुनीर को आर्मी चीफ बना. ये सारी चीजें जो बता रहा हूँ ये पिछले साल ही हुई है. इन सब चीजों की वजह से political instability आ गई है पाकिस्तान में और ऊपर से 2022 में flood भी आ गया था।
one third पाकिस्तान पूरा डूब गया था। करीब thirty billion डॉलर के around नुकसान हुआ था। जिसने पाकिस्तान की कमर तोड़ दी थी। पाकिस्तान में जो blackouts हो रहे हैं उसके पीछे भी चाइना ही है। इन्होंने सीपेक पे जब काम रुकवा दिया था तो चीन थोडा सा नाराज हो गया था और चाइना ने सीपेक प्लान में जो पॉवर प्लांट्स थे उनको बंद करा दिया था क्योंकि पेमेंट का कुछ issue हो गया था।
अगर सीपेक पे काम चल रहा होता तो चाइना कभी ऐसा नहीं करता। अब क्योंकि पावर प्लांट की shortage है. इसलिए बचे हुए पावर प्लांट पे load बढ़ गया और power cut हो रहा है। अब बिना electricity के तो देश नहीं चल सकता है।
अब या तो बाहर से लोन डे by डे जो पाकिस्तान की situation है वो कंट्रोल से बाहर जा रही है। पाकिस्तान के अंदर subsidies गेहूं लेने के लिए अफरा-तफरी मची हुई है। तो लोग लंबी-लंबी लाइनें लगा के खड़े हुए हैं। गेहूं के trucks के पीछे भाग रहे हैं. और इस वजह से काफी जगहों पर भगदड़ मच गई है।
हालत ऐसे हो गए हैं की कई लोगों की जान चली गयी है. पिछले साल जब रूस और उक्रैन की वार शुरू हुई थी तो दुनिया भर के अंदर फ़ूड क्राइसिस आ गया था. रूस और उक्रैन मिलकर दुनिया भर का ३०% गेंहू का सप्लाई कण्ट्रोल करती है.
ये क्राइसिस इतना सीरियस था की इंडिया को भी अपने यहाँ गेंहू के एक्सपोर्ट पर ban लगाना पड़ा था. अभी भी इंडिया में गेंहू की हाई प्राइस सिरदर्द बनी हुई है. लेकिन इंडिया के पास wheat का बफर स्टॉक था. जो पाकिस्तान के पास नहीं है. जिसकी वजह से वहां पर सोशल unease पैदा हो गया है.
इनके जो फोरेक्स रिज़र्व है उसकी की बहुत जयादा हालत ख़राब है. 3 बिलियन डॉलर से भी काम पर पहुँच गए हैं. पता नहीं ये कितने दिनों तक ये टिकेगी. ये बहुत ही काम अमाउंट है लेकिन बाहर किसी country में जाते हैं तो इंडियन rupees को उस particular country के currency में change करवाते हैं। क्योंकि आपको वहां की चीज खरीदनी होती है। कोई भी country ऐसी नहीं है जो अपने देश में सारी चीजें produce करती है।
अब जैसे गाड़ियाँ चलानी है। मशीनरी use करनी है तो ऑइल की जरूरत होगी। अगर आपकी country में ऑइल produce नहीं होता है। तो आपको बाहर से export करना होगा और अगर बाहर से चीजें है तो आपको बाहर की currency की जरूरत होगी। जैसे आप जब किसी देश में जाते हैं तो वहां जाने से पहले अपने पास currency रखते हैं।
ऐसे ही country अपने forex reserve maintain करती है। जिसमें वो वो चीजें रखती है जिसकी इंटरनेशनल market में value होती है। जैसे gold, यूएस डॉलर, bounds वगैरह ये सारी चीजें रखी जाती है। अब इन सब की जगह अगर मान लो कि आप पाकिस्तानी रूपये अपने forex reserve में रखोगे तो उसका कोई फायदा नहीं होगा।
अब आप market में जा के पाकिस्तानी डॉलर दोगे तो वो कहेगा कि इसका मैं क्या करूंगा? ये पाकिस्तान के अलावा कोई लेगा नहीं और पाकिस्तान जो export करता है वो मेरे किसी काम का नहीं है। अब पाकिस्तान में और donkey जो हैं वो bulk में export होते हैं।
तो इसलिए countries अपने फोरेक्स रिज़र्व में डॉलर्स और गोल्ड वगैरह रखती हैं। जो all over वर्ल्ड में accepted हो। ताकि देश की जरूरतें daily basis पे पूरी हो सके। आप सुनते होंगे कि इतने दिन का फोरेक्स रिज़र्व बचा है तो उसका यही मतलब होता है. तो ये बहुत बड़ी दिक्कत है पाकिस्तान के लिए.
अब पाकिस्तान की हालत तो वैसे ही कमजोर थी उसके ऊपर से रशिया और युक्रेन की वॉर बीच में आ गई। अब पाकिस्तान के भी जो भी फोरेक्स रिज़र्व है उसका जो मेजर हिस्सा है वो ऑइल और गैस प्रोडक्ट खरीदने में जाता है। लेकिन जब से ये वॉर शुरू हुई है। गैस और ऑइल के प्राइसेस बहुत ही ज्यादा बढ़ गए हैं और पाक्सितान के foreign रिज़र्व एकदम से खत्म हो गए।
इंडिया इसलिए बच गया क्योंकि इंडिया को रशिया ने discounted rate पे ऑइल दिया है। लेकिन पाकिस्तान को gulf countries से महँगे में ऑइल खरीदना पड़ा। अब पाकिस्तान के पास दो ऑप्शन है या तो कोई कंट्री इनको लोन दे या फिर कोई एड दे किसी तरीके से हेल्प करे या फिर ये आईएमएफ के पास जाए।
आईएमएफ से भी ये लोग 13 बार लोन ले चुके हैं और एक बार भी नहीं लौटाया। एक गवर्नमेंट को loan देना पूरी दुनिया में सबसे safest माना जाता है। लेकिन पाकिस्तान के case में ऐसा नहीं है। यहाँ पे loan देना खतरे से खाली नहीं है क्योंकि वापिस नहीं मिलता.
अब देखिए आप ये भी कह सकते हो कि loan तो World Bank भी देता है तो IMF का नाम क्यों आ रहा है. ये World Bank से अलग कैसे है और IMF को क्या पड़ी है किसी देश की जब बुरी हालत है तो उसमें loan देने की तो इसको एक example से समझाता हूँ.
मान लीजिए हम दस दोस्त है और हमने ये decide कर लिया कि हम अपनी अपनी salary का 5% जमा करेंगे और इस fund को हम तब use करेंगे जब किसी के ऊपर दिक्कत आएगी। कोई financial दिक्कत आ गयी तो हम उसमें use करेंगे। इससे होगा ये कि हम दस के दस जो दोस्त है वो safe हो जाएँगे और कोई मुसीबत आती है कोई financial crisis आती है तो हम अब लोग सेफ हो जाएंगे।
insurance भी इसी तरीके से काम करता है। तो ऐसे ही आईएमएफ भी काम करता है। इसमें one hundred ninety countries हैं। अपनी-अपनी economy के हिसाब से पैसा contribute करती हैं और जिस country के ऊपर दिक्कत आती है उसको हेल्प की जाती है।
इंडिया top ten countries में आता है आईएमएफ के अंदर पैसा देने में. वहीं जो वर्ल्ड बैंक का जो लोन है वो इससे काफी अलग है। वर्ल्ड बैंक का जो लोन होता है वो कन्ट्रीज अपनी growth के लिए लेती है। मान लो मेरी एक कंपनी है अब मैंने सोचा कि कंपनी को grow करना है. मुझे बाकी cities में भी ले जाना है उसको आगे बढ़ाना है। तो इसके लिए जो मुझे लोन मिलेगा वो world bank से मिलेगा और अगर मैं किसी मुसीबत में फंसता हूँ तो वो IMF वाला concept चलेगा। IMF से loan मिलेगा।
कई developed देश भी world bank से loan लेते हैं. जैसे India ने लिया था लेकिन ये growth के लिए मिलता है जैसे India ने 245 million dollar का loan लिया था. world bank से लिया था इन्होंने railway के project के लिए. अब railway से जैसे जैसे India कमाएगा वो उसको वापिस कर देगा।
ये एक तरह से business के loan की तरह काम करता है. वही IMF की entry तब होती है जब किसी country का बूरा time चालू होता है और IMF जो loan देता है उससे पहले शर्तें रखता है कि तो देंगे लेकिन उससे पहले अपनी कंट्री में आपको कुछ चीजें चेंज करनी होंगी और आईएमएफ एक साथ लोन नहीं देता है.
अगर आप एग्जांपल के तौर पर मान लो कि एक लाख रूपए हैं तो उसको वो दो-तीन साल में धीरे-धीरे करके देगा और वो तब तक देगा जब आप उसके बताए हुए रूल्स फॉलो करोगे। जैसे पाकिस्तान के अंदर आईएमएफ ने ये सारे रूल्स फॉलो करने को बोले हैं. लेकिन पाकिस्तान ने ये जो रूल्स हैं वो फॉलो नहीं किए हैं और आईएमएफ इस बार इनको काफी परेशान कर रहा है.
लोन देने में दस दिन आईएमएफ की टीम इस्लामाबाद में रह के चली गई अभी तक लोन नहीं दिया है वो कह रहे हैं कि पाकिस्तान रूल्स ही फॉलो नहीं कर रहा है और इनके जो रूल्स हैं imf के पाकिस्तान के लिए उनको follow करना बहुत ही ज्यादा tough हो गया है।
IMF के rule के हिसाब से पाकिस्तान को गैस, electricity, पेट्रोल इन सब के जो प्राइज है उनको बढ़ाने चाहिए। लेकिन पाकिस्तान उल्टा कर रहा है। उनको subsidy दे रहा है। अब पाकिस्तान की मजबूरी है अगर subsidy नहीं देगा। तो जो अभी महंगाई चल रही है, उससे और ज्यादा हो जाएगी।
तो पाकिस्तान जो है, वो दोनों तरफ से फंसा हुआ है। IMF ने जो आर्मी के जो officials हैं, उनकी जो टैक्स रिपोर्ट है, वो भी मांगी है, ताकि पता चल सके कि सारा पैसा जा कहाँ से रहा है? एक गरीब देश में आर्मी कैसे अमीर हो रही है, उस पे कोई effect क्यों नहीं पड़ रहा है?
इसके साथ-साथ आर्मी का जो बजट है imf उसमें भी करने को कह रहा है और यही कुछ reason है क पाकिस्तान की आर्मी आईएमएफ की बजाय बाकी कंट्रीयों से लोन ले लेगी, उनसे aid ले लेगी, उनसे जा के पैसे मांग लेगी लेकिन आईएमएफ को avoid करती है इस बार भी देखना आपको अचानक से सुनाई में आएगा कि इस कंट्री ने relief package दे दिया क्योंकि ये जा के अंदर secret डील कर लेते हैं.
दूसरी चीज इसमें ये भी है कि जो पाकिस्तान की गवर्नमेंट है वो चाहती है कि इंडिया से relation सुधरे क्योंकि तभी trade होगा तभी political stability आएगी। लेकिन political analyst जो है वो ये मानते हैं कि पाकिस्तान आर्मी कभी नहीं चाहती कि इंडिया से relation सुधरें। क्योंकि अगर इंडिया से relation सुधर गए तो ये जो हजारों करोड़ का बजट लिया जाता है आर्मी के नाम पे उस पे question उठेंगे।
इसलिए आप नोटिस करोगे जब भी दोनों देश के बीच में कोई treaty होती है या कोई नजदीकियाँ आती हैं या कोई बातचीत शुरू होती है तो अचानक से terrorist attack हो जाता है। 2008 में पाकिस्तान के फॉरेन मिनिस्टर बातचीत करने दिल्ली आए. मुंबई में terrorist attack हो गया. 2016 में मोदी जी पाकिस्तान नवाज शरीफ से मिलने गए. उसके आते ही एक हफ्ते के अंदर पठानकोट में terrorist हमला हो गया.
पाकिस्तान के president आसिफ अली जरदारी ने कहा था कि हम इंडिया के साथ no first use policy accept करना चाहते हैं यानी कि अगर war हुई तो पहले हम nuclear weapon use नहीं करेंगे। जैसे ये बात बोली गई जैश-ए-मोहम्मद ने terrorist हमला कर दिया।
पाकिस्तान के पीएम नवाज शरीफ और इंडिया के पीएम अटल बिहारी वाजपेयी जी 1999 में जब लाहौर declaration sign किया था इन्होंने तो ये उस टाइम के आर्मी चीफ थे प्रवेश मुशर्रफ। बिना अपने पीएम को बताए कारगिल का हमला प्लान किया और उसको execute भी कर दिया और बाद में तख्ता पलट करके पीएम को हटा दिया।
पाकिस्तान की जो जनता है उसको बहुत ही अलग लेवल पे लूटा गया है. इनके जो चीफ जस्टिस है उन्होंने डैम के नाम पे पैसा इकट्ठा कराया। आतिफ असलम जो सिंगर है उन्होंने भी इसमें डोनेट किया था। वो डैम बना ही नहीं और उसका पैसा सारा जेब में चला गया. पीआईए-पाकिस्तान इंटरनेशनल एयरलाइन इनका एक सीनियर ऑफिसर था वो यूरोप में जा के इनका प्लेन ही बेचा दिया है।
तो मतलब जितने भी डिपार्टमेंट है जितनी भी पाकिस्तान की जनता है उसको हर तरफ से लूटा जा रहा है। देखिए पाकिस्तान की जो current situation है वो किसी लोन या फिर किसी aids से नहीं सुधरेगी। long run में Pakistan की जो situation है वो army से चीजें हट के जब पॉलिटिशंस के हाथ में जाएंगी तभी सुधर पाएगी