Untold Story of White Revolution: खबरों में आपने अक्सर ऐसे videos देखे होंगे कि किसानों ने अपने टमाटरों को dump कर दिया सड़क पर. अभी कुछ समय बहुत सारे किसानों ने ट्रक का ट्रक लहसुन नदी में फेंक दिया. अब ऐसी चीजें हर state में देखने को मिलती है. इसके अलावा अगर आप news headline search करोगे तो यही चीज Uttar Pradesh, Chhattisgarh, Madhya Pradesh, Karnataka, Gujarat, Haryana, almost हर state में कभी ना कभी देखी गयी है. आखिर क्या कारण है कि किसान अपने टमाटरों को इस तरीके से waste कर देते है. reason है किसानों की frustration. अब टमाटर एक perishable product है. दोस्तों इसे ज्यादा देर तक store करके नहीं जा सकता, ये खराब हो जाता है। problem ये है कि ज्यादातर किसानों के पास अपनी कोई cold storage की facility नहीं है।
और किसान जब ये अपने टमाटर बेचने जाते हैं market में इन्हें ब्लैकमेल किया जाता है कि इतना ही रुपया मिलेगा। लेना है तो लो. नहीं तो निकलो यहाँ से। इन्हें दो से तीन रुपए पर किलो का प्राइज ऑफर किया जाता है। कई बारी एक रुपए पर किलो। कई-कई तो ऐसे भी केसेस देखे गए हैं यहाँ पर सिर्फ पच्चीस पैसे पर किलो ऑफर किए जाते हैं. इन लोगों को और ये चीज सिर्फ टमाटरों के साथ नहीं है। यही चीज हमें देखने को मिलती है प्याज, गार्लिक, शुगर केन, वीट, कॉर्न, किसानों को जब इतना कम पैसा मिलता है अपने produce के लिए तो ये frustration में आकर कहते हैं कि हमें बेचना ही नहीं है हमें। इसे इससे अच्छा फेंक दें, waste जाने दें और ये कोई नई problem नहीं है.
दोस्तों साल 1945 में गुजरात के dairy farmers भी same problem से सफर कर रहे थे. जब वो अपने दूध को बेचने जाते हैं market में तो milk contractors कहते हैं इतना ही रुपया मिलेगा लेना है तो लो वरना निकलो यहाँ से. लेकिन हमारी कहानी में एक twist तब आया जब इन dairy farmers ने decide किया। ये इकट्ठे होकर इस problem के against fight करेंगे। इतना ही नहीं ये खुद की एक organisation बनाएँगे जो होगी of the dairy farmer, for the dairy farmer और by the dairy farmer, एक ऐसी organisation जिसका पिछले साल turnover रहा था 61000 करोड़ रूपए।
ये कहानी है दोस्तों अमूल की! हमारी कहानी शुरू होती है 1940 के शुरुआत में. इस समय के बीच अगर आप किसी Indian घर में जाते तो आपको अमूल बटर कहीं दिखाई नहीं देता जबकि दूसरी कंपनी थी जिसका बटर पॉपुलर था इंडिया में. उस कंपनी का नाम था पॉलसन।
ये पॉलसन बटर इतना फेमस था कि लोग ये बोलने की जगह कि अपनी रोटी पर ज्यादा मक्खन मत लगा! ये बोलते थे कि अपनी रोटी पर ज्यादा polson मत लगा। इस polson कंपनी की शुरुआत करी गई थी के Pestonji Edulji के द्वारा। तब वह सिर्फ 13 साल के थे. अपनी छोटी सी दुकान में उन्होंने एक coffee grinding का business शुरू किया था. साल 1888 में 12 साल बाद 1900 में उन्होंने अपनी company खड़ी करी और एडुल जी का nick name जो था वो poly था. ब्रिटिश राज का जमाना था तो इस नाम में एक ब्रिटिश twist add किया गया. इसे polson बना दिया गया क्योंकि जो ज्यादातर customers होते थे उस समय में वो ब्रिटिश लोग होते थे या फिर बहुत ही अमीर इंडियन लोग होते थे। शुरुआत में ये polson कंपनी अपनी कॉफी के लिए काफी famous थी. कहते थे इसकी coffee french recipe के according blend करी गई है।
साल 1910 में एडुल जी को किसी ने है कि ब्रिटिश आर्मी को बटर की सप्लाई में बड़ी प्रॉब्लम हो रही है. उनके पास बटर की सख्त कमी है तो एदुल जी ने इस मौके का फायदा उठाया और गुजरात के Kaira District में जाकर उन्होंने एक dairy setup करके इस जगह को वैसे खेड़ा भी कहते हैं। खेड़ा नाम से शायद आपको याद आया आपने स्कूल में पढ़ा होगा खेड़ा सत्याग्रह के बारे में। गांधी जी और सरदार पटेल ने खेड़ा सत्याग्रह launch करी थी मार्च 1918 में. उस समय पोलसन ने बहुत पैसा बनाया पोलसन बटर बेचकर ब्रिटिश इंडियन forces को world war one के दौरान।
लेकिन उस समय जो गुजरात में किसान थे वो बड़ी ही मुश्किल परिस्थितियों से गुजर रहे थे, भुखमरी आई थी, परेशान रखा था और ब्रिटिश सरकार ने taxes भी बढ़ा दिए थे और जो taxes नहीं pay करता था, ब्रिटिश जा के उनकी properties को confiscate कर लेती थी। इन्हीं कारणों की वजह से गांधी जी और सरदार पटेल ने सत्याग्रह कर तीन महीने के protest के बाद ये Successful रही। ब्रिटिश ने दो सालो के लिए taxes को suspend कर दिया और सारी confiscated properties को वापस दे दिया गया। लेकिन पॉल्सन की कहानी पर वापस आए तो पोलसन ने as a company बहुत मुनाफा कमाया।
फिर भी साल 1930 तक आते-आते आनंद में एक highly automatic dairy setup करी. Paulson butter इस समय तक बहुत popular बन चूका था Indian घरों में. इसके अलावा वर्ल्ड war two जब आई तो फिर से मौका मिला soldiers को Polson Butter supply करने का और भरपूर तरीके से ये किया गया. साल 1945 तक इनकी record production हो चुकी थी. तीन million pounds हर साल ये बटर produce करने लग रहे थे. 1945 में ही बॉम्बे की जो गवर्नमेंट थी उन्होंने एक बॉम्बे milk scheme launch करी.
उस वक्त दोस्तों बॉम्बे state ऐसी दिखती थी. गुजरात और महाराष्ट्र combined बॉम्बे था. बॉम्बे शहर नहीं बॉम्बे स्टेट। उस समय बॉम्बे milk scheme के अनुसार दूध को कायरा से बॉम्बे तक लेकर आना पड़ता था. 400 किलोमीटर तक का distance था ये और कौन-सी कंपनी ये करे companies ने bidding करी और ये contract polson को अवार्ड किया गया. यहाँ milk transportation के business में भी polson involved हो गया और ज्यादा मुनाफा कमाने लगी है Polson कंपनी। लेकिन ये मुनाफा trickle down करके dairy farmers तक नहीं पहुंचा। किसानों को अपना दूध contractors को अभी भी एक fixed प्राइस पर बेचना पड़ता था और ये प्राइस कम होता था अक्सर। गुजरात के किसानों के अंदर frustration जाग रही थी और यहाँ हमारी कहानी में entry होती है हमारे पहले hero की! त्रिभुवन दास पटेल।
त्रिभुवन दास पटेल एक गांधी जी से inspired leader थे. जो साल 1930 में salt सत्याग्रह के लिए जेल भी जा चुके थे। इन्होंने गांधी जी के द्वारा चलाई गई बहुत सी movements में participate किया था। civil disobedience, rural development, untouchability के against जो drive थी तो इनकी guidance के अंदर जो गुजरात के किसान थे वो मिलने गए सरदार वल्लभ भाई पटेल से. साल 1945 में किसान अपनी problems के बारे में समझाया। सरदार पटेल को और उनकी बात समझने के बाद. सरदार पटेल का जवाब था farmers of Kaira district unite. basically उन्होंने कहा कि एकजुट हो जाओ इकट्ठे हो जाओ साथ में लड़ो। उन्होंने किसानों को idea दिया कि यहाँ पर एक farmers का cooperative बनाई जा सकती है. किसान अपना दूध खुद बेच सकते हैं और इस cooperative का अपना खुद का pasteurization plant हो सकता है.
लेकिन सवाल यहाँ पर ये था कि क्या उस वक्त की British सरकार किसानों के इस cooperative से directly दूध को खरीदती। अगर सरकार ही मना करदे कि हमें इस cooperative से दूध नहीं खरीदना तो ये किसान क्या करेंगे फिर? सरदार पटेल ने suggest किया कि ये किसान फिर strike कर लें। दूध ही बेचना बंद कर दें। ऐसा करने से कुछ loss खुद किसान को उठाना पड़ेगा कुछ टाइम के लिए. लेकिन अगर सब एकजुट होकर दूध ही बेचना बंद कर देंगे तो फिर milk contractors को तो क्या करेंगे ये सब। सरदार पटेल की ये बात बड़ी convincing लगी।
इन्होंने अपने trusted deputy मोराजी भाई देसाई को कायरा district में भेजा और कहा कि किसानों की मदद करें। वो इस cooperative को बनाने में और अगर जरूरत पड़ी तो एक milk strike भी किया जाय. ऐसे स्थापना होती है दोस्तों कायरा district cooperative milk producers union limited की ये cooperative सिर्फ Kaira के district के किसानों का था. British India की सरकार के सामने जाकर demand रखते है कि हमसे directly दूध खरीदो और as expected सरकार इस offer को refuse कर देती है और फिर किसान milk strike पर चले जाते है. इन milk merchants को दूध ही बेचना बंद कर देते है. नतीजा ये होता है कि Bombay milk scheme पूरी तरीके से collapse कर जाती है एक बूँद दूध तक नहीं पहुँच पाता Bombay. पंद्रह दिन के बाद जो milk commissioner थे बॉम्बे के एक ब्रिटिश इंसान थे वो जाते हैं कायरा में और farmers की demand को फिर जाकर accept करते हैं.
इस point पर हमारी कहानी में दोस्तों किसानों को success की पहली झलक देखने को मिलती है। त्रिभुवनदास पटेल ये ensure करते है कि ये जो cooperative है कि गाँव के सारे milk producers के लिए खुला होगा। लोगों का धर्म नहीं देखा जाएगा, लोगों की जाति नहीं देखी जाएगी। दूसरी चीज ये ensure करते हैं कि इस cooperative में one person one vote का फंडा चलेगा। जितने भी किसान इस cooperative से जुड़े हुए हैं उनका economic status क्या है, सोशल status क्या है, फर्क नहीं पड़ता, हर कोई एक बराबर से vote कर सकता है. ये एक three tier structure बनाते हैं. इस cooperative का एक bottom up approach लेते हैं. गांधी जी की socialism की philosophy थी, आत्मनिर्भर ग्रामीण अर्थव्यवस्था उसी socialist ideology के around ये idea center करता है. bottom level पर होंगे village cooperative societies इसके ऊपर दूसरे level पर member unions आएँगे और top level होगी एक federation.
इन सारे member unions की एक स्टेट के लेवल पर आज के दिन अगर अमूल का example लें तो इस bottom level पर अठारह हजार छह सौ village cooperative societies हैं। छत्तीस लाख से ज्यादा farmers and cooperative societies का हिस्सा है। इसके ऊपर जाकर अठारह मेंबर unions हैं. हर district level पर और फिर टॉप पर एक federation and member unions की. लेकिन ये सब तो बाद की बातें हैं।
शुरू में जब त्रिभुवन दास पटेल ने इसकी शुरुआत करी सिर्फ दो विलेज cooperative societies थी. साल जून 1946 में कायरा डिस्ट्रिक्ट cooperative milk producers union formally register किया गया. 6 महीने बाद दिसंबर 1946 में। इसके बाद 15 अगस्त 1947 देश को अपना political independence मिलता है और कायरा में रहने वाले डेयरी farmers को अपना economic independence मिलता है। फायदा यहाँ पर actually में सिर्फ किसानों को ही नहीं हो रहा था। बल्कि बॉम्बे मिल स्कीम के भी काफी पैसे बच रहे थे। क्योंकि उन्हें जो दूध किसानों से मिल रहा था वो काफी कम प्राइस पे था as compare to जो Polson से मिलता था।
टाइम के साथ-साथ ये cooperative बड़ा होता गया। जून 1948 में इन्होंने मिल्क की pasteurization भी शुरू करी। pasteurization का मतलब होता है. किसी भी food product को 100 डिग्री सेल्सियस से नीचे हीट करना ताकि कोई भी उसमें microorganisms हैं और diseases हैं तो वो मर जाएंगे। उससे दूध की shelf लाइफ बढ़ जाती है। 1948 के end तक करीब 432 किसान इन village societies में इसका हिस्सा बन चुके थे और जो मिल्क की quantity supply हो रही थी. वो 5000 लीटर प्रतिदिन हो चुकी थी। actually आगे चलकर अमूल के success के पीछे एक बड़ा कारण यही था कि ये constantly टाइम के साथ-साथ अपने आप को अपग्रेड करते रहे और नई technologies को adopt करते रहे।
अभी recently हुए कोविड pandemic के दौरान भी इनकी digitization strategy successful proof हुई। ऐसे टाइम में भी इन्होने अपनी growth बरकरार रखी। इससे हमें सीख मिलती है कि अगर हमें curve के आगे बने रहना है तो हमें constantly सीखते रहना पड़ेगा और अपने आप को upskill करते रहना पड़ेगा।
अब हमारी कहानी में एंट्री होती है. दोस्तों दूसरे बड़े हीरो की। Verghese Kurien जिन्हें हम father of the white revolution भी कहते हैं। यह बहुत ही बड़ा title है. लेकिन साल 1949 में ये सिर्फ28 साल के लड़के थे। इस age में इन्होंने फिजिक्स में अपना graduation किया था. mechanical इंजीनियरिंग भी पढ़ी थी और टाटा स्टील technical institute को join किया था जमशेदपुर में। इन्होंने सरकारी scholarship के लिए एक इंटरव्यू दिया। जहाँ पर इंटरव्यू में इनसे पूछा गया what is pasteurisation? इन्होंने जवाब दिया इसका कुछ लेना-देना है दूध की heating से उन्होंने कहा. फिर उनसे इंटरव्यू लेने वाले ने कहा thank you आपको select कर लिया गया है scholarship के लिए for the डेरी इंजीनियरिंग। ये इकलौती ही scholarship बची थी इसकी मदद से इन्होंने specialized ट्रेनिंग करी Imperial Institute of animal husbandry and dairying बैंगलोर में.
फिर ये मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी में पढ़ने चले गए अमेरिका में. हालांकि इन्हें scholarship डेरी इंजीनियरिंग पढ़ने की मिली थी. लेकिन इनके खुद के शब्दों में इन्होंने यहाँ पर थोड़ी सी चीटिंग करी और actually में metallurgy की और nuclear फिजिक्स पढ़ने लग गए। actually में इनका इंटरेस्ट न्यूक्लियर फिजिक्स में था। जब ये इंडिया वापस लौटे तो यूनियन गवर्नमेंट ने इन्हें कहा कि भाई scholarship पर पढ़े हो तो भाई अब सरकार के लिए कुछ तो करना होगा ना. सरकार की तरफ से एक bond थी तो उन्हें सरकार की सुननी पड़ी। सरकार ने इन्हें officer बना दिया dairy division का. मई 1949 में इन्हें आनंद शहर में गवर्नमेंट की एक butter making facility में भेज दिया गया 350 रूपए की salary पर.
उस वक्त इनका सिर्फ एक ही मकसद था कि भाई जल्दी से अपना ये bond खत्म करो और निकलो यहाँ से. लेकिन chance की बात थी कि ये ये जिस सरकारी building में काम करने लग रहे थे। वो एक shared building थी. जिसे कायरा cooperative union भी इस्तेमाल करने लग रहा. chance की बात थी कि एक दिन ये त्रिभुवन दास पटेल से मिलते है जो बड़े passionately काम करने लग रहे थे अपने co-operative को build up करने के लिए और Polson Company के खिलाफ fight के लिए। डॉक्टर Verghese Kurien उनके इस जज्बे को देखकर बड़े impress हो जाते हैं। त्रिभुवन दास पटेल अक्सर उनसे पूछा करते थे जब भी कोई मदद की जरूरत होती थी. जब कोई equipment टूट जाती थी तो और Verghese Kurien ये पुरानी equipment ठीक करते-करते थक गए तो एक दिन उन्होंने कहा कि भाई तुम लोग एक नया plant क्यों नहीं खरीद लेते?
त्रिभुवनदास पटेल ने कहा बड़ा अच्छा idea है। Larsen & Turbo कंपनी का वो एक नया plant खरीद लेते। जिस समय उनकी equipment आने वाली थी Verghese Kurien को पता चलता है कि सरकारी service में जो उनको काम करना requirement था अब खत्म हो चुकी है. उन्हें सरकारी service से release कर दिया गया है और अब वो चाहे तो Bombay जाकर किसी बड़ी job में अच्छे से काम कर सकते है. Tribhuvan Das को भी पता चलता है तो यहाँ पर emotional हो जाते है वो कहते है तो सी जा रहे हो तुसी ना जाओ पर किसी फिल्म की कहानी की तरह Verghese Kurien वही रुक जाते है.
अगले साल 1950 में उन्हें cooperative का executive head बना दिया जाता है. अब ये कहानी सुनकर आपको लगेगा कि ये तो पूरी स्वदेश की मोहन भार्गव वाली कहानी हो गई. कितना patriotism है. कितना अच्छा moral character है. इनका कि ये वहाँ पर वापस रुक गए। लेकिन reality में Verghese Kurien अपनी autobiography में बताते हैं। I too had a dream. एक बड़ा interesting view point देते हैं वो इस चीज के regard वो कहते हैं कि वो वहां पर इसलिए नहीं रुके। क्योंकि उनका कोई बड़ा noble intention था, वो दुनिया को बदलना चाहते थे। वहां इसलिए रुके क्योंकि बस उनको ये काम करने में मजा आता था। उन्होंने realize किया कि सिर्फ पैसा कमाना ही satisfaction नहीं है। जिंदगी में satisfaction वो काम करने से मिलती है, जो काम करने में मजा आता है। जहाँ पे आपका passion है. जहाँ पर आपका interest है और अपने काम में satisfaction को ढूंढ़ते-ढूंढ़ते उन्होंने देश बदल दिया।
1953 तक आते-आते इतना दूध produce होने लग रहा था कि Bombay milk scheme इतना दूध absorb ही नहीं कर पा रही थी क्या किया जाए. उस extra दूध के साथ एक ही solution बचता है. उस extra दूध का इस्तेमाल करके उससे और milk products बनाने लग जाओ. यहाँ पर milk powder बनाने का फैसला किया गया लेकिन problem ये थी कि भैंस के दूध को इतनी आसानी से spray dry करके milk powder में नहीं बदला जा सकता था.
एक technology innovation की ज़रूरत थी ये innovation दिया Verghese Kurien के दोस्त doctor Harishchandra Megha Dalayan ने ये tech wizard थे और इनकी मदद से दुनिया का पहला milk spray dryer बनाया गया. 31st October 1995 को सरदार पटेल के birthday पर इस दिन को चुना गया कि ये वो दिन होगा। जब कायरा union का पहला milk powder plant inaugurate किया जाएगा। अपने समय में एशिया का largest plant एक लाख लीटर मिल्क हर दिन process करने की capacity और दुनिया का पहला plant जो milk powder बनाता है.
बफैलो milks से prime minister पंडित जवाहरलाल नेहरू को guest of honour के तौर पर invite किया गया inauguration बड़ी smoothly carry आउट करी जाती है और एक ये बड़ी famous picture है उस opening ceremony के दिन की जहाँ पंडित नेहरू और इंदिरा गांधी को भी देख सकते हैं। जब ये decide कर लिया जाता है कि अब dairy products भी बनाए जाएंगे तो एक ब्रांड name की भी जरूरत पड़ती है। अगर ये cooperative अपना खुद का milk powder और बटर बनाकर बेचेगा तो कोई ना कोई ब्रांड का नाम तो चाहिए होगा। जिस लेवल पर इसे बेचा जाएगा। साल nineteen fifty seven में लैब में काम कर रहे chemist नाम suggest करते हैं अमूल। अब पूछोगे ये अमूल नाम ही क्यों? ये अमूल शब्द आता है अमूल्य से एक संस्कृत शब्द है जिसका मतलब होता है priceless. लेकिन इतना ही नहीं अगर आप आनंद milk union limited का short form बनाओगे तो वो भी अमूल निकलता है। तो दोनों तरफ से नाम बड़ा अच्छा फिट बैठता है। अब अमूल बटर भी बनाने लग जाता है लेकिन Polson के butter के सामने अमूल का butter flop हो जाता है। दूध को क्रीम में बनाया जाता था same ही दिन में जिसकी वजह से उसका कलर वाइट आ जाता था। उसी तरफ Polson का जो butter होता था वो क्रीम से बनता था।
दूध को बिना refrigeration के दस दिन तक रखा जाता था ताकि थोड़ा खट्टा taste आ जाए lactic acid का जो bacteria होता है. वो भी अपना काम दिखा पाए और फिर Polson बहुत ज्यादा नमक डालता था. अपने butter में ताकि उसकी shelf life ज्यादा हो सके ताकि उसको ज्यादा time तक store किया जा सके और एक और चीज थी. Polson butter गाय के दूध से बनता था। जिसकी वजह से उसमे yellow कलर आता था तो बड़ा ही special taste जो था polls and butter का नमकीन taste और ये yellow दिखने वाला कलर लोग इससे काफी used to हो गए थे। अमूल का butter दूसरी तरफ ना ही नमकीन था और व्हाइट कलर का दिखता था।
लोगों को लगता था ये क्या है? ये butter नहीं है तो unfortunately अमूल को compete करने के लिए यहाँ पर अपने butter में भी नमक डालना पड़ा, yellow कलर करना पड़ा। कलरिंग देखकर और Verghese Kurien ऐसा करने से खुश नहीं हुए। वो काफी idealist इंसान थे। लेकिन over टाइम उन्होंने भी realize कर लिया कि consumer satisfaction यहाँ पर बहुत जरुरी है। उसके बिना ये कंपनी survive नहीं करेगी। ये strategy successful proof हुई। टाइम के साथ-साथ अमूल का butter पोलसन की butter से better perform करने लगा, ज्यादा बिकने लगा और यहाँ पर एंट्री होती है.
हमारी स्पेशल marketing strategies की। ये जो अमूल गर्ल है। इसे हर कोई जानता है आज के दिन। इसे actually में गिनीज बुक of world records में भी एंट्री मिली हुई है for the world’s longest running outdoor advertising campaign. इसे साल 1966 में बनाया गया था Silvester The Coona के द्वारा और ये actually में एक response था. Polson की butter girl के against. Marketing के लिए जिसे आज के दिन अमूल की butter girl है ऐसे ही उस समय पोल्सन की butter girl हुआ करती थी.
Union और उनके ब्रांड अमूल के success के बाद similar unions आने लगे गुजरात के और districts में जैसे कि बड़ौदा और सूरत में लेकिन ये avoid करने के लिए कि ये सारे अलग-अलग districts अपने unions बनाए और ये सब एक-दूसरे से compete करें ये सारे district unions combined होकर साथ में आ गए. इन्होंने गुजरात cooperative milk marketing federation बनाया। साल 1973 में और कायरा union ने agree कर दिया कि वो अपना ब्रांड name अमूल। इस गुजरात cooperative milk marketing federation को भी दे देगा। इसके success के बाद पंडित नेहरू important protectionism measures लिए milk cooperatives को protect करने के लिए बाकी बड़ी companies उनके बाद प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने भी उनके इस vision को continue रखा।
Polson की बात करें तो Polson already कमजोर पड़ चुकी थी कंपनी अमूल के सामने। क्योंकि अमूल की policy ज्यादा बेहतर थी लेकिन इस कंपनी को पूरी तरीके से dairy business बंद करना पड़ा। अपना जब सरकार की policy में कहा कि dairy सेक्टर सिर्फ cooperatives के लिए reserved रहेगा। ऐसा नहीं है कि ये कंपनी आज के दिन पूरी तरीके से खत्म हो चुकी है। आज के दिन ये natural tanning materials और eco friendly leather chemicals बनाती है। 1964 में प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री आनंद जाते हैं और Verghese Kurien से पूछते हैं क्या इस अमूल मॉडल को पूरे देश में replicate किया जा सकता है और इसी के तहत 1965 में national dairy development बोर्ड बनाया जाता है.
आनंद में इसके बाद एक operation flood program को launch किया जाता है. 1969-70 में दुनिया का सबसे बड़ा dairy development program इसका नतीजा क्या होता है. इंडिया actually में milk देश था nineteen fifties में। हमें 55000 टन मिल्क पाउडर इम्पोर्ट करना पड़ता था. हर साल बाहर के देशों से लेकिन 1970s तक आते-आते इंडिया self sufficient बन गया. मिल्क की प्रोडक्शन को लेकर 1998 तक इंडिया ने यूएस को पीछे छोड़ दिया और इंडिया दुनिया का largest milk producing नेशन बन गया. अमूल के success की कहानी ये सिर्फ एक कंपनी के success की कहानी नहीं है। बल्कि ये पूरे देश की success की कहानी है।
इस एक co-operative ने पूरे देश को मिल्क surplus नेशन बना दिया। लाखों किसानों को uplift किया। इसने poverty से ये इंडिया का largest self sustainable rural employment program भी है। डॉक्टर Verghese Kurien ने अमूल को protect करके रखा सरकारी बाबूज और बाकी corporates है। आज के दिन तक इस कंपनी को इस cooperative को stock exchange पर नहीं list किया गया. इसका मतलब ये है कि इस cooperative के owners actually में farmers है। 80% revenue उन्हीं के ही पास जाता है managing committee जो है village
cooperative societies की उन्हें democratically elect किया जाता है.
आज के दिन अमूल अपने managing director आर एस सोढ़ी की leadership के अंदर इतना grow कर चूका है कि इसका sales turnover 46000 करोड़ rupees cross कर चुका है। 36 लाख से ज्यादा किसान इसका हिस्सा है और इसकी collection capacity 2.63 करोड़ लीटर्स पर डे की है। अमूल की इस पूरी दास्तान को actually में बढ़िया तरीके से दिखाया गया है मंथन फिल्म में। तो सुबह के दूध के पैसे शाम को और शाम के दूध के पैसे सुबह सब जाति के लोग member बन सकते हैं और सबको बराबर के अधिकार मिलेंगे। ये बहुत ही बढ़िया फिल्म थी अपने जमाने की जिसमें नसरुद्दीन शाह और अमरीश पूरी जैसे actors भी हैं। दो national awards भी जीते थे इसने और साल 1976 जब इसे बनाया गया था ये इंडिया की official entry भी थी Oscars में. इस फिल्म को बनाने के लिए भी जो बजट चाहिए था दस लाख रूपए का उसे crowd finance किया गया था.
पाँच लाख किसानों के द्वारा तो हर किसान ने दो रूपए दिए थे इस फिल्म को बनाने के लिए इस फिल्म में दिखाई गई success story इतनी inspirational थी कि बाद में इसे united nations के development program में भी screen किया गया और अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों में भी दिखाया गया आज के दिन ये फिल्म आप फ्री में देख सकते हैं अमूल के यूट्यूब चैनल पर इसका लिंक मैं नीचे description में डाल दूंगा अगर आप देखना चाहे तो unfortunate चीज बस इतनी है कि आज के दिन जो cooperatives है इंडिया में वो बाकी और चीजों में spread नहीं कर पाए इतने successful तरीके से तभी हमें खबरें देखने को मिलती है कि टमाटरों को सड़क पर गिरा दिया गया है onions को dump किया जा रहा है तो उम्मीद है आप में से कोई inspiration लेगा इस कहानी से और हो है आप में से कोई ही अगले doctor Korean या Tribhuvandas Patel बन जाए और जैसे Amul ने अपने आपको time के साथ साथ revolve किया successful बने रहने के लिए.