सिक्किम घूमने के लिए खर्चा, दिन, होटल्स, ट्रांसपोर्ट और खाने पीने की पूरी जानकारी, कानपुर से सिक्किम की मेरे यात्रा का पूरा विवरण, Best Way to Explore Sikkim in Budget

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Best Way to Explore Sikkim in Budget: सिक्किम घूमने के लिए खर्चा, दिन, होटल्स, ट्रांसपोर्ट और खाने पीने की पूरी जानकारी, कानपुर से सिक्किम की मेरे यात्रा का पूरा विवरण, Best Way to Explore Sikkim in Budget.

इस खास ट्रेवल ब्लॉग का उद्देश्य बजट में आपकी सिक्किम यात्रा को सफल बनाने का है. तो रेट्स, जगह, ट्रांसपोर्ट और खाने पीने का भी भरपूर जानकारी मिलेगा कि आप कैसे कम बजट में अपनी सिक्किम को यात्रा पूर्ण कर सकते है। हम इस यात्रा 3 एडल्ट और 2 बच्चे थे. जिनमें से एक 5 साल का और दूसरा 8 महीने का बच्चा था।

हालांकि मैं सिक्किम हो आया था एक बार पहले भी, 8 November 2016, मतलब नोटबंदी वाले दिन. कैसे मैंने खुद के खर्चे सीमित करके बहुत ही कम बजट में ही सिक्किम घूम के आया था. मैं ही जानता हूँ. कैश के नाम पे कुछ नहीं, एटीएम से निकल नहीं रहा और बैंक में बहुत लंबी लाइन। खैर वो यात्रा का संस्मरण फिर कभी।

Best Way to Explore Sikkim in Budget

इस बार की यात्रा के लिए हार्दिक धन्यवाद देवेंद्र दुबे दादा को भी, उन्होंने हर जगह मेरी मदद के लिए जानकारी दी. क्योंकि वो भी अभी ही होकर आए। हार्दिक धन्यवाद दादा!

तो प्लान ये हुआ कि पहले से ही सब बुक करके घर से निकले. हमने अपने  यात्रा का प्लान 5 रात्रि 6 दिन का बनाया था. फिर 3-4 ट्रेवल एजेंट से जानकारी ली। ट्रेवल एजेंसी से सबसे कम का कोटेशन हमे 58000 रूपए का मिला। हिम्मत यहाँ जवाब देने लगी कि इतना तो बजट हमारा है भी नही. अभी 5 मई 2022 को केदारनाथ बद्रीनाथ घूम के आए और अगस्त में Raja दादा के साथ श्रीखंड महादेव भी जाना है, तो इतना बजट हमारी जेबों को अनुमति नहीं दे रहा था।

तब विचार आया कि एक बार जा चुके हैं तो, देखते हैं चल के, ज्यादा से ज्यादा यही होगा 2 दिन में वापिस आना पड़ेगा और ये रिस्क न लेते तो इतने आनंद से वंचित रह जाते।

अब यात्रा प्रारंभ करने के लिए कानपुर रेलवे स्टेशन से दोपहर में 12505, नार्थ ईस्ट एक्सप्रेस से स्लीपर बोगी में रिज़र्वेशन। भारी गर्मी में घर का AC छोड़ के ट्रैन में बैठ गए, इस उम्मीद में कि 20-22 घण्टो बाद प्राकृतिक AC का आनंद लेंगे। कानपुर से न्यू जलपाईगुड़ी (सिलीगुड़ी नाम से भी जाना जाता है इस शहर को) स्लीपर क्लास का प्रति व्यक्ति किराया 535 ₹ है.

नार्थ ईस्ट एक्सप्रेस ट्रेन के नॉन-एसी डब्बे में गर्मी के थपेड़ों को झेलते हुए प्रयागराज के बाद पंडित दीनदयाल स्टेशन पहुंचे जिसे पहले मुग़लसराय स्टेशन के नाम से जाना जाता है. तकनिकी कारणों से ट्रेन यहाँ पर आधे घंटे से ज्यादा खड़ी रही. गर्मी की वजह से हम लोगों की हालत खराब हो रखी थी. हम निकले पानी लेने, पूरे प्लेटफार्म पर किसी भी शॉप ठंडा पानी नहीं था. सब सादा पानी ही दे रहे थे और वो भी 20₹ प्रति बोतल। मरता क्या न करता कि स्थिति में हम भी वही पानी ले के डब्बे में वापस आ गए. गर्मी के मौसम में बड़े स्टेशन पर अकसर ठंडा पानी नहीं मिलता है क्योंकि दुकानदारों के पास एक छोटा फ्रिज होता है और गर्मी में पानी की सप्लाई ज्यादा होती है, इसी वजह से. ट्रेन के डब्बे में ही घर से लाया हुआ भोजन किया। ट्रेन में टंकी लेके घूमने वालो से 10 ₹ वाली चाय की कप ली और गर्मी को झेलते हुए अपनी सीट पर चौड़े हो गए. थोड़ी देर में हमें निद्रा देवी ने अपने आगोश में ले लिया।
सुबह डब्बे में हो रही कोलाहल को सुनने पर लगभग 7 बजे मेरी आंखे खुली तो देखा कि न्यू जलपाई गुड़ी उतरने वाले यात्री अपना बोरिया बिस्तरा समेटे जा रहे हैं। हम भी इसी काम मे लग गए और 8 बजे के लगभग हमारी ट्रेन न्यू जलपाईगुड़ी के प्लेटफॉर्म पर लग गई. ट्रेन से उतरकर वहीं एक नम्बर प्लेटफॉर्म पर बने फ़ूड प्लाजा में घुस गए. आजकल ज्यादातर स्टेशनों पर irctc वालों ने फ़ूड प्लाजा बना रखी है. इन फ़ूड प्लाजा में नाश्ता और भोजन अच्छी गुणवत्ता का मिल जाता है और दाम भी बहुत ज्यादा नहीं चुकाने पड़ते।
पेट पूजा करके हम लोग भी स्टेशन के बाहर आ गए. स्टेशन के पार्किंग में टैक्सी (बोलेरो, आल्टो, डिजायर इत्यादि गाड़िया होती है टैक्सी में मिलती है यहाँ पर. टैक्सी वालों की यहाँ पर मारामारी मची हुई थी. एक तरफ दार्जिलिंग के लिए टैक्सी थी तो दूसरी तरफ गंगटोक के लिए। गंगटोक (सिक्किम) के लिए आपको टैक्सी वहां से मिलेगी जहां पुरानी छोटी लाइन की ट्रेन को विरासत के रूप में सहेज कर रखा गया है।
फिर मुझे याद आया कि देवेंद्र दादा ने बताया था कि 700 रूपए per person के किराया में शेयरिंग टैक्सी में ले जाएगा गंगटोक तक. तो यहाँ हमने भी सोचा कि एक बार देखते हैं. फिर थोड़ा सा ऊपर-नीचे मोलभाव करने के बाद बोलेरो वाला 600 रूपए में तैयार हुआ और कहा कि बोलेरो की पीछे वाली सीट मिलेगी। लेकिन हमें तो बस से जाना था और यात्रा बजट में करनी थी तो हमने टैक्सी वालों को मना कर दिया। यहाँ पर एक और बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि 5 साल से ऊपर के बच्चे का भी पूरा किराया लगता है. हो सकता है कि दूसरी जगह पर न लेते हों. लेकिन सिक्किम की यात्रा में हम जहाँ भी गए. वहाँ पर बच्चे का पूरा किराया ही लगा।
वैसे तो सिलीगुड़ी में 4-5 railway स्टेशन हैं. लेकिन सबसे ज्यादा ट्रेन “न्यू जलपाईगुड़ी” से चलती है और दूसरे नम्बर पर आता है, सिलीगुड़ी जंक्शन। सिलीगुड़ी जंक्शन के बाहर ही बहुत सारे प्राइवेट बस के एजेंट के ऑफिस मिल जायेंगे। वेस्ट बंगाल (West Bengal) का सरकारी बस स्टैंड है. इस बस स्टैंड से आपको पूरे भारत के लिए हर तरह की बस मिल जाएगी, AC, स्लीपर, वॉल्वो और नॉर्मल बस भी।
हमे तो जाना था सिलीगुड़ी के सिक्किम नेशनलाइज़्ड ट्रांसपोर्ट का बस स्टैंड, जहाँ से आपको पूरे सिक्किम जाने के लिए बस मिल जायेगी। यहाँ पर आपको स्वच्छ, सुंदर, A1 कंडीशन की बस,चाहे वो ac बस हो या नॉर्मल बस. इन बस को देख के आपके अंदर सरकारी बसों को लेकर सोच बदलने वाली है. सिक्किम की ac बसें टेम्पो ट्रेवलर से बस थोड़ा ही बड़ा होता है. बस में बहुत जगह होती है,सारी सुविधाएं भी होती है, बड़े बड़े शीशे, खूब सारा थाई स्पेस, सीट आगे पीछे भी कर सकते है। मने बोले तो एकदम आनंददायक यात्रा और किराया भी काफी कम है. टैक्सी वालों की मनमानी से बचें और सुरक्षित कम पैसे में यात्रा का आनंद लें।
अब आते हैं, न्यू जलपाईगुड़ी स्टेशन के पास शुद्ध शाकाहारी भोजन कहाँ पर मिलेगा। क्योकि पश्चिम बंगाल में शाकाहारी मांसाहारी भोजन एक साथ ही एक ही होटल में मिलता तो हमारे शाकाहारी लोगों को बड़ी समस्या हो जाती। तो NJP स्टेशन पार्किंग से जहाँ गंगटोक के लिए टैक्सी मिलती है, उससे थोड़ा सा आगे निकलने पे जहाँ पुरानी ट्रेन लगी है. 10 कदम आगे चलने पर दाहिने हाथ पर एक रोड जाती है, उस रोड पे 20-25 कदम बाद ही “धर्मराज Pure Veg” भोजनालय और रेस्टोरेंट है। खाना काफी और दाम भी कम है।
तो भोजन के बाद अब चलें हम लोग बस के लिए। वहीं पर स्टेशन के पार्किंग से बाहर निकलते ही आपको बैटरी रिक्शा मिल जाएंगे। जो जंक्शन जंक्शन पुकारते हुए मिल जाएंगे। वो लोग सिलीगुड़ी जंक्शन जाते समय, किराया 25₹ प्रति व्यक्ति। तो हमने भी वो रिक्शा पकड़ा, हिल कार्ट रोड होते हुए, रास्ते में, हांगकांग मार्केट पड़ेगी, फिर महानंदा नदी का पुल पड़ेगा, पुल पार करते ही 300 मीटर बाद आप जंक्शन के चौराहे पर होंगे। वहाँ किसी से भी पूंछ कर आप SNT (sikkim nationalized transport) के बस स्टॉप पर पहुंच जाएंगे।
SNT की बस हरे रंग की बसें होती है. तो यहाँ पर हमने भी टिकट कटाया। आप इन बसों को snt की साइट पर जाकर ऑनलाइन भी बुक कर सकते हो। अपनी नियत सीट पर हम लोग बैठ गए। वाह क्या बस थी मज़ा आ गया. इस बस में किराया 300 ₹ प्रति व्यक्ति ac बस का है. हमने सुबह 10.30 AM की बस ली और अपने गंतव्य गंगटोक की तरफ चल दिए।
बस में बैठने के बाद विचार आया कि एक दिन लौट समय सिलीगुड़ी भी घूमेंगे। कोलकाता घूमने का अनुभव तो बहुत रहा है. कोलकाता में इतना घुमा हूँ कि अब वहां पर घर जैसा लगने लगा है. लेकिन बंगाल का ये कोना भी घूमने की भी मेरी इच्छा थी। बस अब सिलीगुड़ी शहर की आपा-धापी को पीछे छोड़ते हुए, सेवोके मोड़ के बाद महानंदा नदी के उपर बने पुल को क्रॉस करते हुए, हमे तीस्ता नदी के किनारे चलने वाले मनोरम रास्ते की ओर ले जा रही थी. बस की खिड़कियां बड़ी-बड़ी होने की वजह से बाहर सब साफ-साफ दिख रहा था. बस के अंदर ac चलने की वजह से ऐसा लग रहा था कि हम गर्मी में नहीं, सुहावने मौसम में अपनी ये यात्रा कर रहे हैं।
फिर आ गया तीस्ता नदी के ऊपर बना कोरोनेशन ब्रिज। यह एक रोमन वास्तुशिल्प में बना पुल है जो तीस्ता नदी पर बना है। दार्जिलिंग और जलपाईगुड़ी जिले के बीच संचार के लिए कोरोनेशन ब्रिज का निर्माण किया गया था। लेकिन अब यह ब्रिज एक एक पर्यटन स्थल बन चुका है। यह ब्रिज पुराने रोमन ब्रिज की वास्तुकला से मिलता जुलता है। भारत में इस वास्तुकला वाला कोई और दूसरा पुल नहीं है, ऐसा लोकल लोगों का कहना हैं। यहाँ का दृश्य और नजारा सुंदर और मनमोहक हैं।
तीस्ता नदी पर नौका विहार करते हुए, साहसी लोग पुल के एक अलग ही दृश्य का आनंद लेते हुए दिख जाएंगे। यह ब्रिज सिलीगुड़ी शहर में ब्रिटिश वास्तुकला के सबसे पुराने निशानियों में से एक है। कोरोनेशन ब्रिज सिलीगुड़ी से 20 किमी की दूर है।
इस पुल के प्रवेश द्वार पर बाघ की दो बड़ी-बड़ी मूर्तियां हैं जो आपका स्वागत करती है। इस क्षेत्र के लोगों ने इसे बागपूल या फिर टाइगर ब्रिज का नाम दिया हुआ है। ब्रिज सिलीगुड़ी में सेवकेश्वरी काली मंदिर के बगल में स्थित है. इसे सेवोके ब्रिज के नाम से भी जाना जाता है। कुछ लोग तो इसे आयरन पूल भी कहते हैं। अंग्रेजों ने साल 1937 में भारत के सिलीगुड़ी में किंग जॉर्ज और महारानी एलिजाबेथ की याद में कोरोनेशन ब्रिज का निर्माण करवाया था।
बस अपनी ही गति से आगे बढ़ती चली जा रही थी. इस रास्ते की हरियाली मन मोहकर जैसे कुछ देर रुकने का इशारा दे रही थी. लेकिन बस और वक़्त आपके मन के हिसाब से कब चले हैं.  कुछ समय आया melli, ये बंगाल का एक छोटा सा कस्बा है. इसी जगह से दार्जिलिंग और कालिम्पोंग जाने के लिए रास्ते अलग-अलग हो जाते हैं. आगे बढ़ने पर बस ने 20 मिनट का एक विश्राम लिया। यहां पर 3-4 रेस्टोरेंट भी हैं, स्नैक्स और चाय वगैरह की छोटी-छोटी दुकानें भी हैं. यहाँ पर रेट हमें ठीक-ठाक ही लगे.
कुछ समय के विश्राम के बाद, बस चल पड़ी अपनी मंजिल की तरफ और पहुँच गए Rongpo. इस जगह को सिक्किम राज्य का प्रवेश द्वार कहा जाता है. तीस्ता नदी के ऊपर अब एक नया और लंबा पुल बन गया है. लेकिन गाड़ियां अभी भी पुराने पुल से ही जा रही. शायद अगले साल से इस ब्रिज पर गाड़ियों का परिचालन भी शुरू भी हो जाये। जिसके बाद हमे पश्चिम बंगाल के तरफ से rangpo की भीड़-भाड़ का सामना नहीं करना पड़ेगा और दूरी भी कम हो जाएगी। साथ ही लगभग 20 से 30 मिनट समय की भी बचत होगी।
यहां पर पुल पार करते ही सिक्किम सरकार का चेक पोस्ट है. पहले यहां पर सभी यात्रियों की id चेक करते थे, और गाड़ियों के कागज भी. लेकिन इस बार ऐसा कुछ चेक नहीं किया गया. हमने बस वाले से इस बारे में पूछ भी लिया तो उसने बोला अभी-अभी कोरोना काल के बाद से चेकिंग बंद कर दिया है, शायद बाद में फिर से शुरू कर देंगे।
रांगपो में आपको वाटर राफ्टिंग करते हुए भी टूरिस्ट दिख जाएंगे। लेकिन मेरा मानना है कि ऋषिकेश में वाटर राफ्टिंग वहां से अच्छी भी है, लंबी भी और सुंदर भी. ज्यादातर यहां पर बंगाल से ही लोग रिवर राफ्टिंग करने के लिए आते है क्योंकि नजदीक है ये।
रोंगपो से आपको नेपाली, भूटिया एवं लेपचा भाषा मे लिखे साइन-बोर्ड दिखाई देने लगेंगे। आपको सफाई भी दिखने लगेगी। बस के नदी पार करते ही आपकी नजरो के सामने में बहुत कुछ बदल जायेगा। पूरा सिक्किम राज्य बहुत ही साफ-सुथरी जगह है. इसका श्रेय जाता है, वहां के लोगों को और वहां की सरकार को. यहाँ की सड़क, नाले-नाली में या कहीं भी जरा भी गंदगी(मैला) फैलाने पर सीधा 5000₹ का जुर्माना या 6 महीने की कैद का प्रावधान है. हर जगह पर cctv कैमरा लगे हुए हैं और यहाँ की पुलिस भी अमूमन मुस्तैद ही दिखी हमें।
अब Rongpo से सिक्किम की तरफ बढ़ने पर बारिश भी शुरू हो गई थी. सब कुछ धुला-धुला चमकदार और हरा-हरा नज़र आ रहा था. रास्ते के किनारे-किनारे आपको वहाँ के लोकल लोग टपरी में भुट्टे, राजमा, वहाँ की लोकल सब्जियां बेचते हुए दिखेंगे। कुछ लोग वहाँ की लोकल वेशभूषा में भी दिखेंगे, माहौल अब बदल चुका है. यहाँ पर बौद्ध लामा भी इक्के-दुक्के दिखने शुरू हो चुके थे। धीरे-धीरे हम गंगटोक शहर में प्रवेश करते जा रहे थे।
गंगटोक, इसे लैंड ऑफ़ मोनेस्ट्री के नाम से भी जाना जाता है. गंगटोक से आपको कंचनजंगा की बर्फ से लदी हुई चोटियों के विहंगम दृश्य भी देखने को मिलेंगे। हम ताजा हवा, सुंदर वातावरण और बारिश में पहुंचे थे तो हर तरफ बोले तो रोड के किनारे-किनारे तक आपको नाना प्रकार के अलग-अलग रंगों के फूल दिखते रहेंगे, शहर के अंदर भी बाहर भी।
इतिहास की बात करे तो नामग्याल वंश के थूटुब नामग्याल ने 1894 में गंगटोक को सिक्किम की राजधानी बनाया था. कालांतर में 1947 में नामग्याल वंश ने खुद को भारत मे सम्मिलित न होने का फैसला करते हुए, खुद को अलग मोनार्क बनाया था. नेपाल और भूटान से अक्सर इस वंश की लड़ाइयां होती रहती थी. फिर 1975 की लड़ाई और विवाद के बाद सिक्किम को महज आधे घंटे की कार्यवाही के दौरान, हमारी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा जी ने इंडियन स्टेट घोषित करवा लिया। वो आधे घण्टे वाला इतिहास आप गूगल पर भी पढ़ सकते हैं, नामग्याल वंश का अब अंत हो चुका है.
सिक्किम को भारत में शामिल किए जाने की सोच 1962 में भारत चीन-युद्ध के बाद शुरू हुई थी. सामरिक विशेषज्ञों ने महसूस किया था कि चीन की चुंबी घाटी के पास भारत की सिर्फ़ 21 मील की गर्दन है. जिसे सिलीगुड़ी नेक कहते हैं. यहाँ से चीन चाहें तो एक झटके में उस गर्दन को अलग कर उत्तरी भारत में एंट्री ले सकते हैं और चुंबी घाटी के साथ ही लगा है पूरा सिक्किम.
सिक्किम को भारत का 22वां राज्य बनाने का संविधान संशोधन विधेयक 23 अप्रैल 1975 को लोकसभा में पेश किया गया था. उसी दिन इसे 299-11 के मत से पास नहीं कर दिया गया था. राज्यसभा में यह बिल 26 अप्रैल 1975 को पास हुआ और 15 मई 1975 को जैसे ही तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने इस बिल पर हस्ताक्षर किए वैसे ही सिक्किम से नाम्ग्याल राजवंश का शासन समाप्त हो गया.
भारत और चीन के बीच जो सीमा विवाद है, वह भारत-भूटान और चीन सीमा के एक मिलन बिंदु से जुड़ा हुआ है. सिक्किम में भारतीय सीमा से सटी डोकलाम पठार है. जहां पर चीन को सड़क का निर्माण करना है. इसी डोकलाम सीमा का कुछ हिस्सा भूटान में भी पड़ता है.
गंगटोक सिटी में बहुत तरह के भाषा या धर्म के लोग आपको मिल जायेंगे। बौद्ध, चीनी, तिब्बतियों के साथ हिंदुओं की उपस्थिति, गंगटोक को एक रंगीन माहौल देता है और हर त्योहार एक ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। लोसम और लोसर यहां के फेमस त्योहारों में से आता है। गंगटोक की इकोनॉमी टूरिस्ट पर निर्भर करता है। यहां पर टूरिस्ट के लिए कई रुट्स पर ट्रेकिंग भी करवाई जाती।
गंगटोक शहर शिवालिक की पहाड़ियों पर लगभग 5500 फिट की ऊंचाई पर स्थित है. यहाँ तिब्बती, बौद्ध, हिन्दू और नेपाली सब रहते हैं, तो यहां पर सांस्कृतिक विविधता भी आपको बहुत ज्यादा देखने को मिलेगी।
चीन ने 2006 में मनमोहन सिंह के शासनकाल में सिक्किम को भारतीय भूभाग के रूप में न्यता दी थी इसके बदले में तीब्बत को भारत द्वारा चीन का एक हिस्सा मन गया. नाथुला पास जो कई दशकों से बन्द था. इस समझौते के बाद खोल दिया गया. हालांकि चीन अभी भी सिक्किम के कई क्षेत्रों पे अपना दावा करता रहता है।
लगभग 5 घंटे के लम्बे सफर के बाद हम गंगटोक के SNT बस स्टैंड पहुँच चुके थे. यह बस स्टैंड प्रसिद्ध MG रोड से मात्र 300 मीटर की दुरी पर है। टैक्सी से गंगटोक आने पर आपको टैक्सी रांगपो टैक्सी स्टैंड पर उतारेगी और आप टूरिस्ट हैं तो आपको शहर के अंदर जाने के लिए टैक्सी लेनी ही पड़ेगी जिसका कम से कम किराया 300 से लेके 500 तक है. तो बस से आने पर आपको ये फालतू 300-500 नही देने पड़ेंगे। SNT बस स्टैंड के मेन गेट से ही बाहर निकलें। सामने ही snt टैक्सी स्टैंड है. जहाँ से आपको पूरे गंगटोक में जाने के लिए शेयरिंग टैक्सी मिल जाएगी। जिसका किराया प्रति व्यक्ति 10 ₹ से शुरू होकर अधिकतम 50₹ है। लेकिन बैठने से पहले किराया जरूर पूंछ ले. जानकारी के लिए चाहे तो आस पास जो पुलिस वाले खड़े रहते उनसे पूंछ ले. यहाँ की पुलिस बहुत ही अच्छी और सहायता करने में बहुत आगे हैं. आप प्राइवेट टैक्सी भी बुक कर सकते है अगर आपका बजट है तो।
हमने गंगटोक के लिए कोई होटल बुक नहीं किया था, तो हम स्टैंड से नीचे की तरफ उतर गए. ढलान वाली रोड पर, ये डाउनटाउन है शहर का. लगभग 200 मीटर बाद चिल्ड्रन पार्क है, बहुत सुंदर सा, वहां से 200 मीटर आगे चलते ही हम upper sichey road पर थे. यहाँ पर कई होटल हैं, hotel dilchen, hiland, hotal downtown, इत्यादि। यहीं पर zostel भी है, जो लोग zostel में रुकना चाहते उनको भी यहीं आना चाहिए। होटल तो MG रोड में भी हैं. लेकिन इधर के होटल MG रोड से सस्ते हैं और केवल 1 km दूर हैं वहाँ से.
शेयरिंग टैक्सी से अपने होटल के सामने से ही आप 10₹ देकर, 5 मिनट के अंदर mg रोड पर होंगे। हम यहाँ रुके थे होटल dilchen में. पहले दिन oyo से बुक किया, 1500 का बुक हुआ 1 रूम. फिर होटल वाले भाई से बात करके 1300 रोज के हिसाब से बात हो गई अगले दिन से.
अब यहाँ पे एक बिन मांगी सलाह! अगर आप किसी मीडियम या लो बजट होटल में हैं और आपको फ़ास्ट और अच्छी सर्विस चाहिए तो किसी वेटर को अपने पाले में ले लें। तो हमे भी मिला कानू रॉय भाई, बंगाली बाबू, बस किया इतना कि हर रोज होटल से घूमने निकलते टाइम भाई को 100 की 1 पत्ती दे के बोल देता था. चादर, तकिया के कवर, ये सब बदल देना। अगला खाना, चाय, गर्म पानी सब खुशी खुशी देता था रूम पे।

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