Crude Oil Discovery in Andman & Nicobar Island: भारत को अपने oil reserves को ले के एक बड़ी जीत मिल सकती है। पर कैसे? हम बात कर रहे हैं अंडमान और निकोबार आइलैंड में हुए एक historic survey की। जैसा कि आप जानते हैं, अंडमान और निकोबार आइलैंड को वर्ल्ड की one of the most strategically located island chains कहा जाता है। इंडिया की सिक्योरिटी और इंडियन ओशन में चाइना से डील करने के लिए ये हमें भरपूर strategic leverage provide कराते हैं।
इसलिए ये island chains सिक्योरिटी के लिहाज से भारत का एक अमूल्य treasure बन जाता है। लेकिन क्या हो यदि हम कहें कि अब यही island चेन भारत की एनर्जी जरूरतों को भी fulfill करने वाली है यानी सिक्योरिटी के साथ-साथ अब ये आइलैंड चेन भारत की economy और energy जैसे critical सेक्टर के भी केयर taker बनने जा रहे हैं। पर आज हम अचानक ऐसा दावा क्यों कर रहे हैं? चलिए इसको जानते हैं।
अंडमान एंड निकोबार में हुई इस रिसेंट डेवलपमेंट को समझने के लिए हमारे लिए उसकी लोकेशन को समझना बेहद जरूरी है। असल में अंडमान एन्ड निकोबार आइलैंड बे ऑफ़ बंगाल के साउथ में 8249 किलोमीटर में फैली 836 आइलैंड की एक लंबी चैन है। ये दो बड़े ग्रुप ऑफ़ आइलैंड से मिलकर बने है. इसमें पहला है अंडमान ग्रुप ऑफ़ आइसलैंड और दूसरा है निकोबार ग्रुप ऑफ़ आइलैंड। इन सभी आइलैंड में से केवल 38 आइलैंड के ऊपर 4.3 लाख लोगों की पापुलेशन रहती है। इन सभी को सामूहिक रूप से इंडियन गवर्नमेंट अंडमान एन्ड निकोबार एडमिनिस्ट्रेशन के द्वारा रूल करती है।
साउथ एशिया को साउथ ईस्ट एशिया से connect करने वाली इस island चेन का northernmost point म्यांमार से 22 nautical miles पर है। जबकि इसका southernmost point यानी इंदिरा पॉइंट, इंडोनेशिया से 19 nautical miles की दूरी पर मौजूद है। अगर आप मैप पर गौर करें तो अंडमान एन्ड निकोबार आइलैंड चेन State of Mallacka के western entrance पर lie करती है यानि ये दुनिया के one of the busiest और strategic trade route के एकदम नजदीक मौजूद है।
ये island chain नॉर्थ में Preparis Channel और अंडमान एन्ड निकोबार के बीच Ten Degree Channel और साउथ में Six Degree Channel जैसे important choke points lie करते हैं. जहाँ से हर दिन 6000 से भी ज्यादा commercial vessels पास होती हैं। हालांकि शुरुआत की दो sea lanes commercial shipping के लिए बहुत ज्यादा use नहीं की जाती। लेकिन जो भी vessels Mallacka Strait के through पास होती हैं. उसको सिक्स डिग्री चैनल से होकर गुजरना ही पड़ता हैं।
ये island भारत की 30% exclusive economic zone constitute करते हैं और इनकी यही exclusive economic zone valuable resources के भंडार से भरी हुई है। ये जानने के बाद क्या आप यकीन कर सकते हैं कि आजादी के इतने सालों बाद भी इस crucial लोकेशन पर मौजूद resources को देश के डेवलपमेंट के लिए use करना जरूरी नहीं समझा गया.
अंडमान और निकोबार आयलैंड की resource richness किसी से छुपी हुई नहीं है। लेकिन इसके बावजूद इसके potential को इतने लंबे समय से टैप नहीं किया गया. लेकिन ऐसा क्यों? आपको बता दें कि अंडमान और निकोबार आइलैंड में दुनिया के कुछ सबसे प्रिमिटिव और vulnerable ट्राइबल groups रहते हैं। साथ ही साथ यहाँ फ्लोरा और फोना की भी बहुत rich diversity देखने को मिलती है। यही कारण है कि आज़ादी के बाद से भारत सरकार ने इन islands को इन्हीं की अपनी setting में safe रहने के लिए छोड़ दिया।
इस तरह के approach की वजह से ये island एक तरह के benign neglect का शिकार बने रहे। हमारे governance system की orthodoxy साल दर साल बढ़ती गई और इन island का development पूरी तरह ignore किया गया। कई दशकों तक इन island का केवल 7% हिस्सा developed था और बाकी बचा हुआ सारा पार्ट protected areas के नाम पर अलग किया हुआ था। इनके development के साथ-साथ यहाँ पर छिपे रिसोर्सेज का अनूठा treasure भी टैप नहीं किया गया. लेकिन इस नेग्लेक्ट को अब और ज्यादा स्ट्रेच नहीं किया जा सका।
आज बदलते वक्त के साथ जियो पॉलिटिक्स में टेक्टोनिक्स शिफ्ट देखने को मिल रहे हैं। अगर हम इंडो पेसिफिक के लार्जर गेम को देखें तो उसका एक बड़ा portion इंडियन ओशन में ही प्ले किया जा रहा है। कोल्ड वॉर के बाद कुछ समय शांत रहने के बाद आज इंडियन ओशन स्ट्रेटेजिक कॉम्पिटिशन का एक क्रिटिकल थिएटर बनकर उभर रहा है और इंडियन ओशन में पावर प्रोजेक्शन के लिए ये island chain भारत के लिए एक key बेस बनने का huge potential रखती है।
जिसके कारण आज इन island को यूँ ignore करना भारत afford नहीं कर सकता। इसी चीज को realize करते हुए भारत की करंट गवर्नमेंट इस आइलैंड की रूपरेखा बदलने के लिए काफी सारे steps ले रही है। जब से वर्तमान सरकार ने सेंटर पर कदम रखा है, उसके बाद से इस रीजन में उस स्केल पर डेवलपमेंट देखने को मिला है, जो पिछले कई दशकों से एक complete neglect का शिकार था। for example 2015 में इस आइलैंड चेन को भारत का first maritime hub बनाने के लिए गवर्नमेंट ने 100 million rupees का एक huge project announce किया।
2018 में पीएम मोदी ने इस आइलैंड चेन पर अपनी first visit के दौरान यहाँ connectivity, energy और tourism से जुड़े बहुत से development projects launch किए। उसी तरह 2019 में पास हुई island coastal regulation zone notification के तहत यहाँ पर ports और harbours को establish करने के लिए land reclamation project शुरू किया गया. इंडियन गवर्नमेंट ने 2019 में अंडमान के लिए 5000 करोड़ का defense प्लान भी finalize किया।
इतना ही नहीं 2020 में एक लैंडमार्क स्टेप लेते हुए गवर्नमेंट ने चेन्नई, अंडमान and निकोबार अंडर सी इंटरनेट केबल announce करी। जिससे इस island चेन के seven remote आइलैंड को high स्पीड इंटरनेट connection provide किया जा सके और ऐसा ही कुछ हमें इस रीजन के resource exploration में भी देखने को मिल रहा है। भारत दुनिया की third largest energy consuming कंट्री है। लेकिन ये देश हमेशा से एक energy deficient नेशन रहा है।
भारत आज भी अपने energy needs को पूरा करने के लिए एक बहुत बड़े scale पर imports dependent है. यही कारण है कि इंडिया एनर्जी के one of the टॉप most imports में गिना जाता है। ऑइल ministry की पेट्रोलियम planning and analysis cell पीपीएसी के डाटा के मुताबिक fiscal year 2022 में imported crude पर इंडिया की रिलायंस 87.3 पर पहुंच गई है। ये fiscal year 2021 में 85.5% और fiscal year 2020 में 84.4%, fiscal year 2019 में 85% और fiscal year 2018 में 83.8% पर हुआ करती थी.
fiscal year 2022 में भारत ने 232.4 मिलियन tons crude oil import किया जो last year के comparison में 9.4% high था. अगर value के terms में बात करें तो इस साल भारत ने 158.3 billion dollar का crude oil import किया जो last year 120.7 बिलियन डॉलर्स के लेवल पर था और तो और इस current पेस पर भारत के ऑयल और गैस की requirement 2050 तक 34% बढ़ने के chances हैं। यहाँ इन नंबर से आप इम्पोर्ट की dependency का तो अंदाजा लगा ही सकते हैं। लेकिन ये इम्पोर्ट डिपेंडेंसी कोविड-19 pandemic और रशिया-युक्रेन युद्ध जैसी crisis के दौरान भारत को और भी ज्यादा vulnerable बना देती है.
साथ ही साथ imports पर इतनी high रिलायंस इंडियन economy को ऑइल के global prices की volatility का भी शिकार बनाती है. जिसका असर देश के foreign trade deficit, foreign exchange reserve, rupee exchange rate और inflation जैसे सभी critical process पर पड़ता है। यही कारण है कि आज गवर्नमेंट इन costly ऑइल imports को cut करने के लिए domestic crude oil आउटपुट को बढ़ाना चाहती है.
इसके लिए एक्सप्लोरेशन और प्रोडक्शन कॉन्ट्रैक्ट्स को और ज्यादा लुकरेटिव बनाने की पहल की जा रही है और इसी दिशा में ऑइल एंड गैस एक्सप्लोरशन के लिए नए वेन्यूज एक्सप्लोर किए जा रहे हैं. ऐसा ही एक रेमार्केबल और हिस्टोरिक एफर्ट अंडमान निकोबार आइलैंड में हुआ है.
इंडिया अपने exclusive economic जोन का एक exhaustive सर्वे कम्पलीट करने जा रहा है. इसके तहत अंडमान का ऑफशोर एरिया का पहला प्रॉपर सर्वे किया जा रहा है. 2355 किलोमीटर का डेटा collection करने के साथ ये सर्वे अपने अंतिम चरण पर पहुँच चुका है। उसी तरह western सेक्टर में 38711 LANE किलोमीटर और सेक्टर में 8235 line किलोमीटर का सर्वे अपनी completion के फेस में है. ये सर्वे ईस्टर्न और वेस्टर्न ऑफ shore men Shear water Jio services limited और अंडमान region में See Bird Exploration के द्वारा किया जा रहा है।
Next Step में भारत के extended contental shelf का deep explanation किया जाने वाला है। ये सर्वे last year नवंबर में शुरू हुआ। जब central गवर्नमेंट ने directorate general of hydrocarbons ministry of defence और space department को align किया और इन सभी के combined effort से सिक्योरिटी reasons की वजह से oil exploration और protection के लिए prohibited areas के 99% हिस्से को release कर दिया गया.
एक coordination committee ने इस पूरे process को govern किया और national maritime सिक्योरिटी council secretariat के national maritime सिक्योरिटी coordinator ने सिक्योरिटी clearances का पास कराने में एक अहम रोल प्ले किया। हालांकि इसका exact potential सर्वे के complete होने के बाद ही सामने आ पाएगा। लेकिन broad estimate के मुताबिक भारत के special economic zone में लगभग seventeen बिलियन टन ऑइल equivalent ऑइल and गैस मौजूद है. जिसमें से 7.4 billion टन oil equivalent इस सर्वे के पहले ही discover हो चुका है.
आसान शब्दों में कहें तो ये इतना ऑइल है कि इससे भारत की अगले 70 साल की डिमांड को पूरा किया जा सकता है। अब आप सोच रहे होंगे कि क्या इस abundance का अंदाजा पहले किसी को नहीं था. तो ऐसा नहीं है। इस रीजन की resourceness किसी से छिपी हुई नहीं थी.
लेकिन पास में 2.3 सिक्स मिलियन square की इंडियन स्पेशल economic जोन का 42% हिस्सा एक नोगो जोन के under था। लेकिन इंडियन नेवी कोस्ट गार्ड और डीआरडीओ के साथ exhaustive consultation के बाद इस नोगो जोन को घटाकर 24833 square किलोमीटर तक सीमित कर दिया गया है और यहाँ मौजूद ऑइल and गैस resources का exploration और प्रोडक्शन से होने वाली किसी भी potential damage को compensate करने के लिए नेसेसरी सेवगार्ड भी इंश्योर किए जा रहे हैं।
अब ये सवाल भी उठता है कि आखिर यहाँ इस क्वांटिटी में रिसोर्सेज पाए जाने के पीछे क्या खास बात है। तो दोस्तों इस रीजन का ये immense पोटेंशियल इसकी geographical लोकेशन के द्वारा explain किया जा सकता है। आपको बता दें कि अंडमान का ऑफ शोर एरिया एक पेट्रोल liferours बेसिन है। जैसा कि हम
जानते हैं अंडमान ग्रुप ऑफ आयरलैंड बे ऑफ बंगाल में लाइ करते हैं। इनकी geographical लोकेशन मिडल ईस्टर्न ऑइल रिजर्व से काफी सिमिलर है।
दूसरे शब्दों में कहें तो मिडिल ईस्ट के huge ऑइल reserves के पीछे जो geological concept लागू होता है। वहीं same concept हम अंडमान के शोर्स पर भी लगा सकते हैं। साउथ अरेबिया की क्रिस्टल प्लेट ईरान की क्रिस्टल प्लेट के बीच subduct यानी enter करती है। इस subduction से यहां 1200 डिग्री सेल्सियस का मैगमा create होता है. इतने हाई टेम्परेचर पर जो केमिकल रिएक्शन्स होती है. उस रीजन में ऐसी कंडीशंस क्रिएट करती है.
जिससे यहाँ ऑइल और गैस रिसोर्स की अबेंडेंस मुमकिन हो पाती है। ऐसा ही कुछ हमें वे ऑफ बंगाल में अंडमान के पास भी देखने को मिलता है। इस रीजन में इंडो ऑस्ट्रेलियन प्लेट यूरेशियन प्लेट के अंदर सब मर्ज होती है और यहाँ भी वही सिमरन एनवायरमेंटल कंडीशन क्रिएट होती है। जो यहाँ ऑइल और गैस रिसोर्स के एक्सिस्टेंस को सपोर्ट करती है।
तो दोस्तों अभी तक शायद आपके इस सर्वे से related सभी doubts clear हो चुके होंगे। लेकिन यहाँ गौर करने वाली बात ये भी है कि अभी हम केवल सर्वे की stage पर हैं. सर्वे की stage के बाद exploration और production की stages आएँगी जो अपने आप में बेहद challenging और costly affairs हैं।
फिलहाल के लिए यहाँ ऑइल और गैस के drilling और clearances को ONGC के एक campaign के through आगे बढ़ाया जाएगा। इसको इंडियन गवर्नमेंट फंड करने वाली है। ओएनजीसी अंडमान सी में गवर्नमेंट द्वारा फंडेड इस स्पेशल प्रोग्राम में तीन से चार ड्रिल करने वाली है और हर एक वेल की ड्रिलिंग में 350 से 400 करोड़ की लागत आने वाली है।
इंडियन गवर्नमेंट ने अपने national island explanation प्रोजेक्ट के तहतो नो गो जोन में 22500 line किलोमीटर का 2D डाटा भी collect किया है और वो इस रीजन में कुछ assessment wells ड्रिल करने की भी तैयारी कर रहे हैं।
ओएनजीसी ने इस डाटा को स्टडी किया है। लेकिन उसमें deep water experience रखने वाली foreign companies के द्वारा एक third पार्टी assessment चाहते हैं। वो अंडमान बेसन के अस्सेस्मेंट पेट्रोलियम सिस्टम ड्रिलिंग की स्टडीज ड्रिलिंग से पहले सभी पोटेंशियल रिस्क को खत्म करने के लिए फॉरेन कंपनीज और कंसलटेंट के साथ एक engagement प्लान कर रहे हैं।
इस प्रोजेक्ट के प्रोस्पेस को डिसकस करने और उनको इस पे potential पार्टनर्स बनाने के लिए ओएनजीसी ने exxonmobil और shell के साथ अपना discussion शुरू कर दिया है। वहीं दूसरी ओर गवर्नमेंट ने इस प्रोजेक्ट को डिफेंस और स्पेस डिपार्टमेंट की clearances से भी फ्री कर दिया है।
इतिहास में ऐसे कई मौके आए हैं जब इन clearances के लम्बे bureaucratic process ने अंडमान waters के बहुत से exploration programs को शुरू होने से पहले ही खत्म कर दिया है। सरकार नहीं चाहती है कि license कोटा राज की ये under tones इन crucial products के potential को फिर से exploit करें। इसके अलावा यदि plant drilling program के दौरान कोई major discovery होती है तो उस operator को हमारी central गवर्नमेंट long term clearances provide करने का भी इंतजाम कर रही है।
इसके अलावा अंडमान ऑफ शोर में ओएनजीसी और ऑइल इंडिया के पास एक ब्लॉक और मौजूद है जो उनको को licensing rounds में कई सालो पहले दिया गया था। सेंटर की ओर से easy clearances इन दोनों companies को अपने blocks में स्पीडी progress करने में बेहद कारगर साबित होंगी। गवर्नमेंट के इन सभी स्टेप से आप इस project की urgency का अंदाजा लगा सकते हैं। सभी human made challenges को तो गवर्नमेंट tackle कर सकती है। लेकिन जहाँ ये products लागू होने जा रहा है वो दुनिया के highly sensitive और bio deversity rich regions में गिने जाते हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो यहाँ हमें fuel resources के साथ-साथ nature की बाकी बहुत सी अद्भुत creations भी देखने को मिलती है। इसलिए human needs को फुलफिल करने की इस जद्दोजहद के बीच हमें चाहिए कि हम नेचर की इन बाकी creations को भी उतनी ही जिम्मेदारी से हैंडल करें।
तो इस प्रोजेक्ट में आगे बढ़ते हुए इसके एनवायरनमेंटल चैलेंजेस को मैनेज करना ही शायद इस प्रोजेक्ट का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण चैलेंज होने वाला है क्योंकि लॉन्ग टर्म में ह्यूमैनिटी ऑयल की हाई कॉस्ट को भले ही अफोर्ड कर पाए लेकिन हाई एनवायरमेंट की कॉस्ट को afford करना इस धरती पर किसी के लिए मुमकिन नहीं है। इस मुद्दे पे आपका क्या opinion है? कैसे ये exploration भारत की मदद कर सकता है? कमेंट सेक्शन में जरूर बताइएगा।