Hiralal Thakur Biography: हमारे फिल्म जगत में कई सुपरस्टार्स आए और चले गए। किसी को काम के लिए जाना गया तो किसी को गजब के अंदाज या खूबसूरती के लिए पहचान मिली। नायक बनने के लिए यहाँ सब पागल थे। पर लगभग 80-90 साल पहले एक इंसान को खलनायकी से बेइंतहा प्यार हुआ और आगे चलकर उसे भारतीय फिल्म जगत का पहला खलनायक माना गया।
Hiralal Thakur Biography
दोस्तों आप सोच रहे होंगे कि खलनायक तो 100 साल पहले भी थे। यही नहीं एक फिल्म में जहाँ नायक हो वहां खलनायक का होना जरूरी हो जाता है। पर जैसे कि मैंने पहले कहा कि लोग बस नायक या नायिका को याद रखते थे। पर 1930 के दशक के बाद खलनायकी के किरदार भी limelight में आने लगे थे।
जैसे एक फिल्म के किरदार को दुनिया लंबे समय तक याद रखती है. ठीक वैसे ही खलनायक के किरदार को भी दर्शकों ने सर पर बिठाना शुरू कर दिया था। तो यहां बात आती है, ऐसे दमदार actor की जो उस खलनायक के किरदार में जान फूंक दे। फिर क्या था। दमदार कलाकारों ने हैवानियत भरे खलनायकी के किरदार करने शुरू किए तो दर्शकों का खूब मनोरंजन होने लगा।
दोस्तों मैं इस आर्टिकल में जो कहानी लेकर आया हूँ वो हीरालाल जी की है, जिसे इंडियन फिल्म जगत का पहला खलनायक कहा जाता है।
हीरालाल ठाकुर के फिल्मी करियर की शुरुआत
हीरालाल ठाकुर उर्फ हीरालाल जी ने अपने करियर की शुरुआत साइलेंट फिल्मों से की और कलर फिल्मों तक करीब-करीब 4 दशक तक दर्शकों का मनोरंजन करते रहे। कुछ फिल्मों में वो हीरो भी थे पर ज्यादातर फिल्मों में वो खलनायक थे।
हीरालाल का जनस्थान
उनका जन्म 14 मार्च 1912 को अविभाजित भारत के लाहौर में हुआ था।
हीरालाल भी आज़ादी की लड़ाई में शामिल हुए
उस जमाने में आजादी की जंग अपने चरम सीमा पर थी। ऐसे में नौजवान हीरालाल भी आजादी के इस जंग में शामिल हुए और परम स्वतंत्र वीर भगत सिंह के साथ अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई भी की। इसके अलावा वो नाटक में भी हिस्सा लेते थे।
हीरालाल को फ़िल्म में मिली पहली ब्रेक
कई सारे फिल्मों में काम करने के बाद प्रसिद्ध फिल्म निर्माता एआर करदार साहब ने उन्हें एक फिल्म ऑफर की. एक इंटरव्यू के दौरान हीरालाल जी खुद बताते हैं कि किस तरह उन्हें पहली फिल्म ऑफर हुई. एक दिन करदार साहब ने उन्हें पठान के किरदार के लिए पूछा क्या तुम गाड़ी चलाना जानते हो? हीरालाल जी ने तुरंत हाँ कहा. क्या तुम फाइटिंग कर सकते हो इस पर हीरालाल ने कहा जी जरूर कर सकता हूँ
इस दो सवाल का जवाब मिलने बाद भी करदार साहब को यकीन नहीं हो रहा था कि जिसे उन्होंने चुना है वो ये किरदार कर भी पाएगा या नहीं। 1929 के जमाने की वो फिल्म थी सफदरजंग । इस फिल्म में हीरालाल ने सरलता से अभिनय किया। ये देख करदार साहब बेहद खुश हुए।
हीरालाल का फिल्मी करियर
ये बात उस जमाने की थी जब लाहौर फिल्म का केंद्र नहीं हुआ करता था। कोलकाता और कोल्हापुर मुंबई में ही फिल्में बनती थी। ऐसे में हीरालाल जी ने लाहौर में रहकर daughters of today और सफदरजंग इन दो फिल्मों में काम किया। इस सुपरहिट फिल्मों का अंजाम ये रहा कि लाहौर को भी लोग फिल्म जगत का केंद्र मानने लगे. आगे चलकर पंचोली पिक्चर ने कहां राज किया।
पार्टीशन के बाद हीरालाल का एक्टिंग करियर
पार्टीशन के बाद पंचोली परिवार मुंबई आ गया. इंटरव्यू में हीरालाल जी बताते हैं कि 2-3 फिल्में करने के बाद उन्हें एक्टिंग से लगाव हो गया. फिर जैसे ही टॉकीज फिल्मों का जमाना आया तब भी उन्होंने अपने करियर को नई पहचान दी.
हीरालाल की पहली टॉकी फिल्म
जब साइलेंट के कलाकारों को डायलॉग डिलीवरी में दिक्कत आती थी. तब हीरालाल जी बड़ी आसानी से डायलॉग बोल लेते थे. उनकी पहली टॉक की फिल्म थी Sacred Ganga जो 1934 में रिलीज हुई थी. उस जमाने में हीरालाल की क्रेज इस कदर थी कि सिनेमा थिएटरों के मालिक उनका सत्कार किया करते थे।
जब हीरालाल सिर्फ विलेन के किरदार निभाते थे
चालीस का दशक खत्म होते-होते हीरालाल ने हीरो के और करैक्टर किरदार निभाने बंद किए और स्टार विलेन का रास्ता अपना लिया। कानन देवी के साथ उनकी “फैसला” नाम की फिल्म आई थी. जिसमें उन्होंने सबसे पहले विलेन का किरदार निभाया। उसके बाद हीरालाल जी को यकीन हो गया कि वो खलनायक का किरदार अच्छी तरह निभा सकते हैं.
लाहौर और कोलकाता के बाद उनकी अंतिम कर्मभूमि मुंबई ही थी. आवारा, सगाई, हैमलेट, एक के बाद एक, उम्र कैद, प्रेम पत्र, लीडर और नादिर शाह जैसी सुपरहिट फिल्में करने वाले हीरालाल ने फिल्म जगत में 50 साल गुजारे थे.
हीरालाल की फैमिली कहाँ है?
उनकी शादी 1945 में तरपा रानी के साथ हुई थी. जिनसे उन्हें 5 बेटे और एक बेटी हुई. सबसे छोटा बेटा अंदर ने अस्सी के दशक में कुछ फिल्में की थी. पर एक हवाई जहाज हादसे में इंदर समेत उनकी बेटी और छोटे बेटे की जान चली गई. कहा जाता है कि हीरालाल आखरी सांस तक फिल्मों में काम करते रहे और 27 जून 1981 में इस महान कलाकार ने आखिरी सांस ली.
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