Joshimath Sinking:दरकते, धंसते, तबाह होते शहर के मुक़द्दर में क्या लिखा है, जोशीमठ के धसने का असली जिम्मेदार कौन है?

Joshimath Sinking

Joshimath Sinking: Imagine करो आप अपने परिवार और relatives के साथ अपने घर पर बैठे हो, नए साल का जश्न मना रहे हो और अचानक से एक बड़ा धमाका होता है. अब आम तौर पर धमाके की आवाज़ सुनकर आपको लगेगा कि कोई war की situation होगी, कोई socio political crisis हो रही हो, लेकिन यहाँ ऐसा कुछ भी नहीं था।

2 जनवरी साल 2023 की बात है. जोशी मठ में रहने वाले 52 साल के प्रकाश भोटियाल रात में सो रहे थे कि अचानक से उनकी नींद खुलती है, एक बड़े धमाके की आवाज़ से। उठकर उन्होंने देखा क्या हुआ है? तो उन्हें देखा उनकी घर की दीवारों में बड़े-बड़े cracks जैसी दिखने वाली दरारें जो कि किसी एक कमरे में नहीं बल्कि उनके घर के 11 में से 9 कमरों में थी.

Prakash अपने पूरे परिवार के 11 members को उन बचे हुए 2 कमरों में shift करवा देते हैं. तब से लेकर आज तक उनका पूरा परिवार इन्हीं दो कमरों में रह रहा है. चिंता इस बात की है कि आने वाले समय में ये दो कमरे भी सुरक्षित नहीं बचेंगे क्योंकि ऐसे ही cracks, Joshimath में करीब 700 buildings में देखने को मिले। ये पूरा शहर जमीन में धंस रहा है.

Joshimath Sinking

दोस्तों जोशीमठ एक इंपॉर्टेंट जगह है. उत्तराखंड के चमोली डिस्ट्रिक्ट में 1800 मीटर की हाइट पर ये शहर आपको मिलेगा। जिसकी पॉपुलेशन है करीब 23000. बद्रीनाथ श्राइन जो हिन्दुओं के लिए एक इम्पोर्टेन्ट तीर्थ स्थान है. वो इसके काफी करीब है. लगभग 45 किलोमीटर दूर.

इसके बाद इसके पास है, ओली का नगर जो कि स्कीम के लिए एक बड़ी अच्छी जगह बताई जाती है और सरकार इसे as a इंटरनेशनल स्की destination भी promote करने लग रही है। आसपास काफी ट्रैकिंग की भी जगह है और इंडो-चाइना बॉर्डर भी इससे काफी नजदीक है. इसी reason से Joshimath में एक Major Indian Army का base भी है और एक strategic road जो जाती है Indo-Tibetan border तक. इस road पर भी बड़े cracks देखे गए. लेकिन क्योंकि Joshimath की location यहाँ पर इतनी important है. पिछले कई दशकों में काफी constructions देखी गयी, इस नगर में hotels और restaurants और बाकी establishments की.

अब बताया जाता है कि ये पूरा शहर आज से करीब 100 साल पहले ही बसा था. यहाँ पास की पहाड़ी पर एक earthquake आया जिसकी वजह से एक landslide हुई और काफी सारे पत्थर आकर यहाँ गिर गए। over time वो पत्थर stabilize कर गए और इसके ऊपर ये शहर बसा। मगर problem ये है कि इसी कारण से जमीन ज्यादा construction के लिए सही नहीं थी। specially अगर इस इलाके में dams और बड़ी-बड़ी roads बनाई जाएंगी। highways बनाए जाएंगे। क्योंकि इतने बड़े infrastructure projects के लिए अक्सर explosives और drilling का इस्तेमाल करना पड़ता है। पहाड़ियों के अंदर drilling करनी पड़ती है, बम विस्फोट का इस्तेमाल करना पड़ता है और ऐसा करने से ये slope बहुत कमजोर हो जाएंगे।

Seismic Zonation Map of India के according जोशीमठ का area ऐसे भी zone 5 में आता है, earthquake के लिए highest risk zone में. जोशीमठ की बिल्डिंगों में cracks पड़ना ये कोई नई कहानी नहीं है ये चीज काफी time से देखी जा रही है.

October 2021 की बात है कि Joshimath के Gandhinagar और Sunil wards में रहने वाले लोगों ने अपने घरों में cracks notice करे फिर कुछ महीने बाद mid 2022 में Ravigram ward के लोगों ने भी अपने घरों में cracks देखे।

September 2022 में Uttarakhand State Disaster Management Authority ने एक रिपोर्ट पब्लिश करी और उन्होंने blame डाला ill-planned construction पर. उन्होंने रिपोर्ट में कहा कि ढंग के drainage systems नहीं है. यहाँ पर और लोग बिना planning के construction किए जा रहे हैं जिसकी वजह से प्रॉब्लम हो रही है।

मीडिया में इस issue की बात अभी recently ही देखी गई क्योंकि अब प्रॉब्लम इस हद तक बढ़ चुकी है कि हर चौथे घर पर crack आने लग रहा है। पूरा शहर ही अब धंसने लग रहा है. इस चीज को अब ignore नहीं किया जा सकता। हजारों लोग बेघर हो जाएंगे। 80 से ज्यादा परिवारों को already अपने घरों के बाहर शिफ्ट किया जा चूका है और National Disaster Response Force और बॉर्डर सिक्योरिटी फोर्सेज के द्वारा evacuation भी करी जा रही है।

सबसे बड़ा सवाल यहाँ पर ये उठता है कि आखिर गलती किसकी है? टीवी न्यूज़ चैनलों की माने तो गलती जोशीमठ के लोगों की है। वहीं ऐसी sensitive जगहों पर घर बनाओगे तो यही होगा ना. इस तरीके से unplanned construction नहीं करनी चाहिए थी। लोकल लोग सरकार पर blame डालते हैं। सरकार यहाँ पर builders और development planners पर blame डालती है और ये builders blame डालते हैं इन पहाड़ों पर कि पहाड़ियाँ ही ऐसी है। actually में देखा जाए तो वहां रहने वाले लोगों पर सबसे कम blame जाना चाहिए। अगर unplanned तरीके से hotels बनाए जाएंगे और और बिल्डिंग बनाई जाएगी तो उस construction को रोकने का काम यहाँ सरकार का है।

इसके अलावा waste water disposal को देखना और drainage system को manage करना भी सरकार का काम है. ये बात सच है कि कुछ चीजें हैं जो किसी के control में नहीं है जैसे कि natural disasters जो आते हैं। naturally अगर erosion होने लग रहा है. लेकिन natural causes के पीछे भी blame यहाँ human development और climate change पर जाता है। climate change की वजह से estimate किया गया है कि अगले दो decades में उत्तराखंड का जो temperature है average वो दो degree celsius से ज्यादा बढ़ जाएगा।

ऐसे temperature बढ़ने का मतलब है कि बर्फ पिघलेगी, rainfall के patterns बदलेंगे, flash floods और landslide जैसे natural disasters के chances बढ़ेंगे, crop seasons में बदलाव आएगा। जिसका असर किसानों पर पड़ेगा। ये चीज तो already होने भी लग रही है.

दो साल पहले का article कैसे उत्तराखंड के किसान already migrate कर रहे हैं climate change की वजह से. लेकिन climate change अपने आप में एक बहुत बड़ा separate issue है जोशीमठ की crisis पर काफी indirect और काफी कम blame ही जाता है उसका। इसलिए direct causes पर focus करते हैं।

अब बात करते हैं direct causes की. सबसे पहला direct cause बताया जाता है तपोवन विष्णुगढ़ हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को. ये एक हाइड्रोइलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट है। जिसकी construction साल 2006 में शुरू हुई थी। अभी तक इसकी construction खत्म नहीं हुई है। लेकिन इस प्रोजेक्ट की एक टनल बनाई गई थी जो जोशीमठ के नीचे से गुजरती है बताया जाता है।

जियोलॉजिस्ट एमपीएस विष्ट और पियूष रोटेला ने साल 2010 में एक पेपर publish किया था। जिसका title था Disaster Looms Large Over, Joshimath. इस research पेपर में इन्होंने mention किया था कि कैसे ये particular project single handedly जोशीमठ का landscape को बदल सकता है। पूरे जोशीमठ को खतरे में डाल सकता है। ऐसा क्यों है? इन्होंने mention किया कि दिसंबर 2009 में इस project की construction के वक्त जो equipment इस्तेमाल करी गई थी उस equipment ने construction के दौरान जोशीमठ में एक aquifer को puncture कर दिया था।

अब aquifer एक तरीके का underground structure होता है जो पत्थरों से surrounded होता है। ये basically जमीन के अंदर एक बड़ा सा गड्ढा कहलो, एक बड़ा सा कुआँ, जो naturally exist करता है और जहाँ पर naturally ग्राउंड water store होता है। इन्होंने कहा कि एक tunnel boring मशीन इस्तेमाल की गई थी. जिसने इस aquifer को puncture कर दिया। जोशीमठ से करीब 5 किलोमीटर दूर। पंचर करने का मतलब क्या हुआ कि इस aquifer में एक कोने में होल आ गया. जहाँ से सारा ग्राउंड water leak होना शुरू हो गया. इन्होंने कहा कि उसकी वजह से daily 70 मिलियन लीटर्स ग्राउंड water discharge होता है. 700-800 लीटर पर सेकंड।

इस 2010 के पेपर के according इतना पानी था कि प्रति दिन 20 से 30 लाख लोग sustain किए जा सकते हैं उस पानी से. लेकिन क्योंकि और कोई ज्यादा scientific studies नहीं करी गई इस चीज को लेकर। इसलिए direct cause इसे for sure बताना गलत बताना। इसका कोई proof नहीं है. अभी यही reason है कि एनटीपीसी नेशनल थर्मल power corporation limited जो कंपनी इस हाइड्रो power project को बनाने लग रही है.

उन्होंने कहा है कि इस tunnel से कुछ नहीं हुआ है। इस tunnel को reason नहीं बताया जा सकता। ये जमीन क्यों धस रही है क्योंकि एनटीपीसी का कहना है उन्होंने ये tunnel जोशीमठ के नीचे नहीं बनाई। उन्होंने ये tunnel एक किलोमीटर दूर बनाई है जोशीमठ से और एक किलोमीटर जमीन के नीचे बनाई।

अच्छा दूसरी direct cause बताया जाता है एक 6 किलोमीटर लंबी सड़क हेलांग मारवाड़ी bypass जो कि currently under construction है। ये 800 किलोमीटर लंबे चार धाम project का हिस्सा है. एक ऐसा project जिसे साल 2016 में प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा inaugurate किया गया था at a cost of around 1200 करोड़।

दिसंबर 2022 में मोदी सरकार ने supreme court से दूसरी बार approval माँगा था. इस चार धाम project के अंदर एक bypass को construct करने का, चम्पावत bypass. दोनों बारी supreme court ने approval देने से मना कर दिया geologist नवीन जुयाल जो कि supreme court के द्वारा appointed high powered committee के member है. उन्होंने चार धाम project को review किया और उन्होंने कहा कि हम में से कुछ लोगों ने suggest किया था कि सड़क को नहीं बनाया जाना चाहिए। जब तक geo technical feasibility study conduct नहीं करी जाए इस जगह.

लेकिन हमारी suggestions को पूरी तरीके से ignore कर दिया गया. इस सड़क को बनने दिया गया बिना किसी scientific रिपोर्ट्स के. यहाँ पर ये हेलांग मारवाड़ी बाईपास रोड की बात कर रहे हैं। लोकल लोगों का कहना है कि उन्होंने इस रोड की construction के दौरान explosives और drilling को होते हुए देखा।

अब जब इसकी न्यूज़ इतनी मीडिया में फैल रही है तो चार धाम project की, इस सड़क की construction को अभी के लिए रोक दिया गया है। मैंने आपको बताया था जोशीमठ के बगल में एक और नगर है, औली नाम से जो कि एक ski resort भी है। वहां पर एक cable का ropeway भी है। तो इस ropeway की जो pillars है. उस पर भी damage देखा गया।

कुल मिलाकर देखा जाए तो इस problem को simply कहा जा सकता है, the problem of sustainable development एक ऐसी चीज जो स्कूल में हमें पढ़ाई जाती है। जो जमीन यहाँ धंसने लग रही है। इस चीज को इंग्लिश में कहा जाता है land subsidence. Land Subsidence के पीछे कई कारण हो सकते है, Earthquake की वजह से earth के crust का हिल जाना। ये एक natural cause हो गया. लेकिन man made causes भी हो सकते है जैसे कि ground water removal.

बात क्या है जब जमीन के नीचे से ground water खत्म हो जाता है, पानी जिन पत्थरों को और जिस ज़मीन को ऊपर hold करके रखता है वो भी नीचे धसनी शुरू हो जाती है. geologist का मानना है Indonesia में जो शहर जकार्ता है वो one of the fastest sinking cities in the world है. उसके पीछे भी 80% reason यही बताया जाता है.

दोस्तों आप ये शायद हैरान हो जाएंगे जानकर कि जोशीमठ में land subsidence की problem को. आज से almost 50 साल पहले ही identify किया जा चूका था 1976 में MC मिश्रा कमेटी बनाई गई थी जिसने इस phenomena के पीछे reasons को identify किया था इन्होंने एक रिपोर्ट निकाली थी the मिश्रा कमेटी रिपोर्ट of 1976 जोकि सबसे पुरानी रिपोर्ट है जोशीमठ की land subsidience प्रॉब्लम के ऊपर.

इस रिपोर्ट में warning दी गई है कि यहाँ पर पड़े पत्थरों को हिलाओ मत, यहाँ खुदाई मत करो और एक्सप्लोसिव्स का इस्तेमाल मत करो. रिपोर्ट ने ये भी point आउट किया था कि drainage facility सही नहीं थी. ड्रेनेज फैसिलिटी सही नहीं थी इस नगर में जिसकी वजह से problem और ज्यादा बढ़ रही थी और landslides भी आ रही थी. इसके बाद साल 2006 में Wadia Institute of Himalayan Geology ने एक और रिपोर्ट निकाली। जिसमें कहा गया कि eventual collapse हमें यहाँ पर देखने को मिल सकता है पूरे शहर का drainage services को ठीक करो। फिर 2013 में सुप्रीम कोर्ट के द्वारा appointed कमेटी ने हाइड्रो पावर projects को identify किया उत्तराखंड में कि एक significant hazard है. ये इस जगह पे ये हाइड्रो projects बनाना लेकिन क्या सरकार ने इन warnings को सुना? साल 2019 में सरकार ने instead कहा कि जो सारे hydro power projects हैं 25 MW से ऊपर के उन्हें faster clearance दी जाए, जल्दी से clearance दी जाए और उन्हें renewable projects का दर्जा दे दिया जाए. renewable energy अच्छी बात है, लेकिन projects को बनाया जाना चाहिए ढंग से. यहाँ research करके scientific studies conduct करके कि projects बनाना ठीक भी है या नहीं?

जोशीमठ बचाव संघर्ष समिति एक group है जो साल 2004 से ntpc के Vishnugad hydro पावर project के against protest कर रहा है. इनका मानना है कि आज जो situation Joshimath में हुई है वो इस hydro पावर project की वजह से है.

अब Joshimath के साथ जो हो रहा है इसे देखकर बाकी आसपास के बाकि नगरों के लिए, शहरों के लिए एक warning sign है. Chamoli district में इसके पास कई और towns है जैसे कि Karnaprayag, Gopeshwar इन जगहों में भी land subsidence के issues को report किया गया है. सबसे बड़ी बात ये है कि ISRO की नई report बताती है कि इस land subsidence को reverse नहीं किया जा सकता. पिछले 12 दिनों में 27 December से लेकर 8 जनवरी के बीच में total 5.5 centimeters की subsidiens हुई है Joshimath में.

इसे आप compare करो पिछले सात महीनों से, April से लेकर November के बीच में 9 centimeters की subsidence हुई थी यहाँ पर. ये photos भी release की गयी ISRO के national remote sensing center के द्वारा. देखने वाली बात ये होगी कि क्या सरकार ऐसे future disasters को रोकने के लिए action लेगी या नहीं? क्या सरकार यहाँ Joshimath से सिख लेगी या नहीं? अभी के लिए सरकार ने promise किया है 5 हजार रुपए per month per family दिए जाएँगे Joshimath के परिवारों को. इसे बाद में change कर दिया गया था जब Uttarakhand के Chief Minister visit करने आए 1.5 lac per faimily.

लेकिन लोकल लोग डिमांड कर रहे हैं 5 लाख रूपए की compensation दी जाए. जोशी मठ की evacuation अभी करी जा रही है और expert suggest करते हैं evacuation के बाद यहाँ पर replanning करी जाए drainage system की, rainwater outlets की और rock strength की. एक assessment की जाए कि यहाँ के पत्थर कितने sustain कर सकते हैं.

अगर आपको डर है कि आपके रहने वाले area में land subsidence की problem हो रही है तो इसे identify करने के लिए कुछ characteristics है. हर छोटा-मोटा crack जो आपके घर की दीवारों में आता है उससे डरने की जरूरत नहीं है। अगर जमीन धंस रही है तो जो cracks होंगे वो कम से कम 3 मिलीमीटर से ज्यादा बड़े होंगे। ये cracks अक्सर ऊपर जाकर चौड़े हो जाएंगे और नीचे थोड़े पतले होंगे।

ये cracks internally भी दिखेंगे और externally भी दिखेंगे। सिर्फ एक साइड पर दीवार के ऊपर नहीं दिखेंगे और usually ये cracks दरवाजे और खिड़कियों के पास दिखेंगे। इन differences को याद रखना क्योंकि आम तौर पर दीवारों में cracks humidity की वजह से भी पड़ सकते है. जब दीवारें swell up करती है।वो कोई ज्यादा डरने की बात नहीं है।

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