Flood in Bihar due to Kosi River: कोसी नदी को बिहार का शोक कहा जाता है और ये तमगा कई सदियों से कोसी नदी पर लगा हुआ है. इसका कारण ये है की ये नदी हर साल बाढ़ लेकर आती है और करोड़ों के जान-माल का नुकसान करती है. कोसी नदी से बाढ़ का आना कब से शुरू हुआ इस बात की स्पष्ट जानकारी किसी के पास नहीं है लेकिन इस बाढ़ को रोकने के जितने भी प्रयास हुए है उन प्रयासों को अब तक सफलता नहीं मिल सकी है.
Kosi River Flood in Bihar: पहली बार 1955 में सुपौल के बैरिया गांव में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद द्वारा 100 करोड़ की लागत से कोसी परियोजना (Kosi Project) द्वारा अगले 15 साल में बाढ़ पर काबू कर लेने का घोषणा किया गया था.
सन 1965 में तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री द्वारा नेपाल के सप्तकोसी नदी (Kosi River) पर बने कोसी बैराज (Kosi Barrage Nepal) का उद्घान किया गया और कोसी नदी के पानी को नियंत्रित किया गया लेकिन 68 सालों के बाद भी ये बाढ़ की समस्या ज्यों की त्यों बनी हुई है.
Flood in Bihar due to Kosi River:कोसी नदी के बाढ़ से कैसे छुटकारा मिलेगा
हकीकत ये है की सरकार द्वारा हर साल बाढ़ की समस्या पर किये गए कुल राशि का एक तिहाई हिस्सा कट ऑफ के तौर पर ठेकेदार, नौकरशाह और राजनीतिज्ञ के जेब में दूसरे रास्ते से जाने का रिवाज रहा है. इसलिए आम जनता के लिए बाढ़ जितना बड़ा समस्या आपदा का रूप लेकर खड़ा है बांकियों के लिए सालों से चली आ रही समस्या के बीच सुनहरा अवसर दिखाई देता है और इसका फायदा भी उठाया जाता है यानि परियोजनाओं के नाम पर पैसों का बंदरबाट होता है.
क्योंकि इस समस्या को सामने रखकर केंद्र से हर साल करोड़ों ऐंठा जाता है और विश्व बैंक से भारी मात्रा में कर्ज लिया जाता है. लेकिन फिर भी इस समस्या का समाधान अब तक नहीं हो पाया है.
बिहार में उद्योग-धंधे जो भी थे वो दशकों पहले बंद हो चुके हैं तो नेताओं और नौकरशाहों के पास कमाई के लिए एक ही आसरा होता है सरकारी प्रोजेक्ट्स और बाढ़ जैसी समस्या तो परमानेंट है इसलिए आमदनी भी परमानेंट है. ऊपर से आपदा आने के बाद सहानुभूति बटोरने का मौका अलग मिलता है क्योंकि कोसी और मिथिलांचल में असल राजनीती तो बाढ़ और आपदा से ही शुरू होती है.
पानी में उतरकर जिन-जिन नेताओं ने लोगों की सेवा की, दौरा किया, राहत सामग्री बांटी, उन नेताओं को अगले चुनाव में सहानुभूति मिलना तय होता है. नेता लोग जनता की इस भावना से हमेशा से खिलवाड़ करते हुए नजर आये हैं.
सरकार को जिस समस्या और चुनौती को समझकर इसका समाधान करना चाहिए था, उसे सुअवसर में बदलकर बटोरने का काम चल रहा है. कोई स्पष्ट नीति न होने के कारण बिहार सरकार की भूमिका भी संदिग्ध है. सरकार की भूमिका इसलिए संदिग्ध है क्योंकि 2004 में ही विश्व बैंक ने कोसी पुनर्वास के लिए बिहार सरकार को 220 मिलियन अमेरिकी डॉलर का फंड दिया था.
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इस फण्ड से 2 लाख 76 हजार चिन्हित विस्थापित परिवार को पुनर्वास देना था. इसमें से केवल 66 हजार पुनर्वास पहली क़िस्त में बनाया गया बाकि पैसों का क्या हुआ किसी के पास कोई जानकारी नहीं है. विश्व बैंक की वेबसाइट पर नजर डाले तो अभी भी “कोसी बेसिन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट” नाम से एक योजना चालू है जो 376 मिलियन अमेरिकी डॉलर की परियोजना है. इसका भी लेखा-जोखा कहीं उपलब्ध नहीं है.
कहने के लिए इस प्रोजेक्ट्स का उद्देश्य बाढ़ के संभावित खतरे से निपटना है तथा जल का वितरण कर कोसी क्षेत्र के किसानों के लिए सिंचाई उपलब्ध कराना है लेकिन असल में इसकी सच्चाई कुछ और ही है. बस सुपौल जिला के बीरपुर में “कौशिकी भवन” नामक एक भव्य इमारत बनाकर सारे पैसे ठिकाने लगा दिए गए है, ये खेल कई सालों से निरंतर चलता आ रहा है और बाढ़ भी हर साल लगातार कहर बरपा रहा है.
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