अब भारत में बनेंगे विमान, रूस ने दिया प्लान, क्या करेगें Tata और IndiGo? Sanctions-hit Russia Pitches Manufacture of Civil Jets in India

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Manufacture of Civil Jets in India: कुछ दिनों पहले ही एयर इंडिया का अमेरिका के बोईंग और फ्रांस की एयरबस के साथ 470 विमान खरीदने एक बड़ी डील हुई है. इस डील के तुरंत बाद ही इंडिया की सबसे बड़ी एयरलाइन इंडिगो द्वारा भी करीब 500 विमानों के ख़रीदे जाने की घोषणा की गयी है.

टाटा ग्रुप की एयर इंडिया के इस बड़ी डील के घोषणा के बाद अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन के राष्ट्राध्यक्षों ने भारत की प्रशंशा की है और कहा है कि इस डील के बाद उनके देशों में रोजगार के बहुत सारे अवसर पैदा होंगे.

इन सब बड़ी खबरों के बीच एक और ख़ुशी देने वाली खबर निकल के सामने आ रही है जो कि निश्चित ही आपको भारत के प्रति और ज्यादा प्रेम करने का मौका देगी और यह भारत को निश्चित रूप से आत्मनिर्भर भारत की तरफ बढ़ने का बड़ा कदम साबित हो सकता है.

Manufacture of Civil Jets in India

Manufacture of Civil Jets in India

यहाँ पर वो बड़ी बात ये है की रूस ने भारत को अपने देश में एयरक्राफ्ट निर्माण करने का एक प्लान का ऑफर दिया है. जिसके तहत भारत में ही अब सिविल एयरक्राफ्ट का निर्माण किया जा सकेगा। रूस ने जब हमें एक प्लान दिया है तो अब ऐसी स्थिति में वो जो एयर इंडिया और इंडिगो द्वारा बड़ी संख्या में विमान खरीदने की डील हुई है वो किस तरफ जाएंगे? क्या ये भारत में ही बने हुए विमान खरीदेंगे या फिर बाहर जाएंगे।

जब से Air India ने कहा है कि वो एयरबस और Boieng से 470 विमान खरीदेंगे तो यह डील विमानन के क्षेत्र में अब तक की सबसे बड़ी डील बन गयी है। इसके बाद अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन जैसे देशों ने इस बड़ी डील के लिए भारत के तारीफों के पुलिंदे बांधने लग गए है और उन्होंने कहा की इस डील से उनके देश में रोजगार के बहुत सारे अवसर पैदा होंगे।

Tata के बाद IndiGo ने भी कहा है कि भाई हम भी 500 सौ विमान का ऑर्डर already दे रखे हैं. तो दोनों मिलाकर लगभग 1000 एयरक्राफ्ट आर्डर हुआ. लेकिन इतनी बड़ी मात्रा में एयरक्राफ्ट के आर्डर की बात सुनने के बाद आप में से बहुत से लोगों के मन में एक सवाल जरूर आ रहा होगा की अगर ऐसा ही है तो भारत में क्या विमान नहीं बनाए जा सकते? 1000 विमान बनाने के लिए तो कंपनी को यहां आ जाना चाहिए, बनवाने के लिए दूसरे देश क्यों जाना चाहिए?

रोजगार अगर देना ही है तो वहाँ क्यों दे, बनाना है तो यहाँ बनाओ। companies का सारा सामान उठा के यहाँ ले आओ. इससे कम से कम भारत में रोजगार तो यहाँ के लोगों मिलेगा। रोजगार के नाम पर बस हम यही क्यों सोचे कि जब हमारे पास विमान आ जाएगा तो हम विमान चलाने की नौकरी कर लेंगे या उसमें flight attendant बन जाएंगे या उसका मतलब जो ground staff है वो बनेंगे। हम ये क्यों ना सोचे कि बनाने वाले भी हम ही हो?.

शायद आप लोगों के इस सवाल को Russia समझ गया और Russia ने इसका सोलूशन्स सबके सामने रख दिया है. वो क्या है? आइये समझते हैं. 2021 की एक रिपोर्ट के अनुसार, दुनिया के अंदर जितना भी फ्लाइट निर्माण का market है, उसमें से 413.51 billion डॉलर का market share Boeing और Airbus कंपनी का है।

मतलब 90% market अमेरिका की और यूरोप की कंपनियों का है। ऐसी स्थिति में बड़ी बात ये है कि दुनिया के और जितने भी manufacturer companies हैं, चाहे वो चाइना की Comac हो, जापान की Mitsubishi हो और फिर रूस की UAC हो, इनका market share बहुत छोटा है.

सवाल तो वही है कि इतना सारा बिज़नेस भारत से इन कम्पनीज को मिलता है तो भारत में ही ये कंपनी विमान का निर्माण क्यों नहीं करती है और नौकरियां क्यों नहीं पैदा करती है. इनके का कारण ये है कि ये नहीं चाहते कि हमारी technology हमारे देश से बाहर कहीं जाए.

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इस बात को शायद रूस समझ गया और sanction hit Russia ने भारत को कहा है कि देखिए जेट दो तरह के होते हैं, fighter जेट जो युद्ध में काम आता है और सिविल जेट जो आम लोगों के यात्रा में काम आता है। तो उसने कहा है है की हम तो पहले से ही फाइटर जेट बना रहे हैं तो फिर सिविल जेट भी बना सकते हैं.

अंग्रेजी अखबार The Hindu के अनुसार “Sanctions – hit Russia pitches manufacture of its civil jets in India.” इसके हवाले से रूस ने भारत से कहा है कि जब आप इतने सारे देश के लोगों को इतना तरह का रोजगार दे रहे हैं और वो लोग वहाँ पर रोजगार पैदा कर रहे हैं तो मैं आपको इससे एक बेहतर डील देता हूँ और वो बेहतर डील ये है कि आपने जिस तरह से अभी स्वागत करवाया है दुनिया भर में कि हमारे यहाँ रोजगार पैदा होगा।

मैं आपको ऑफर करता हूँ कि आपके शहर में दूसरे तरीके का रोजगार भी दे दूंगा बोले कैसा? बोले manufacturing भी होगी। कहने का अर्थ ये हुआ कि अब अमेरिका क्यों जाना Boeing के पास जब मेरी company UAC, ये आपके यहाँ पर आकर आपके HAL के साथ मिलकर civil जहाज बनाने को तैयार है.

आप निर्माण अपने देश यही करिए ना. तो भारत के एविएशन market के लिए अब जो खरीदार और दावेदार लगे हुए है. उनमें रूस भी अपनी बोली लगा चुका है और कह चुका है कि मेरे साथ मिलकर के भारत में एयरक्राफ्ट का निर्माण कीजिये।

ये खबर जैसे ही आती है बहुत सारी उम्मीदें और कल्पनाएं निकल आती है. लेकिन उसके साथ-साथ एक बहुत बड़ा सवाल बनता है। क्या रशिया के अंदर ऐसा कोई भी भाव पैदा नहीं हुआ कि वो अपना product हमारे यहाँ बनने देगा? क्या उसका product copy paste नहीं हो जाएगा? तमाम बाते होंगी!

लेकिन उससे पहली बड़ी बात प्रतिबंधों से गुजर रहा है रूस और ऐसी स्थिति में उसे लगता है कि market की डील में वो कैसे वो भागीदार बन सकता है?

उदाहरण के लिए सबको मालूम है कि जेलेंस्की और पुतिन के बीच का चल रहा यह युद्ध कुछ ही दिनों में पूरा एक साल complete कर लेगा। ऐसी स्थिति में इस war के अंदर बहुत सारे sanctions रूस के ऊपर लगे हैं. अगर numbers की बात करें तो 11300 से ज्यादा sanctions रूस पर लगे हैं. इन sanctions की वजह इस समय रूस दुनिया का सबसे अधिक प्रतिबंधों को झेलने वाला देश बना हुआ है।

इसमें अधिकांश प्रतिबंध देशों के द्वारा इनके व्यक्तियों पर लगाए गए हैं. लेकिन कुछ sectors भी हैं जिन पर प्रतिबंध लगा है और उन सेक्टर्स में रशिया का aviation सेक्टर भी है जिस पर प्रतिबंध लगाया है इन विदेशी कंपनियों ने. टोटल 24 प्रतिबंध जो हैं वो इनके aircrafts पर लगे हुए हैं.

रूस जो भी सिविल एयरक्राफ्ट अपने यहाँ पर use करता है, सिविल एयरक्राफ्ट उसे कहते हैं जिस पर आम जनता ट्रेवल करती है. इनके अधिकांश सिविल एयरक्राफ्ट Boeing और Airbus के द्वारा ही निर्मित होते हैं। ऐसी स्थिति में एक प्रकार की dependency रूस की अमेरिका और यूरोप पर थी.

लेकिन प्रतिबंधों की आड़ में Russians को परेशान करने के लिए इन दोनों companies ने रूस को सहायता देने से इंकार कर दिया। कहने का अर्थ ये है कि sanction करके Russia को airbus और Boeing ने अपनी मदद देने से इंकार कर दिया। जब रूस अपने aircraft के लिए इस पूरे साल में service के लिए नए-नए instrument मांग रहे थे.

यदि आप घर में एक simple bike भी रखते हैं तो साल भर के लिए उसमें भी कुछ wear and tear का खर्चा तो आता ही है। आप जब फ्लाइट रख रहे हैं तो हो सकता है कि उसका भी कोई ना मेंटेनेंस का खर्च तो आएगा ही।

इसके भी कुछ पार्ट्स नए डलेंगे। लेकिन कंपनियों के द्वारा इस पूरे युद्ध काल के अंदर रशिया को अपनी तरफ से मदद नहीं दी गई और एयरक्राफ्ट के मेंटेनेंस के लिए कोई भी स्पेयर पार्ट्स उपलब्ध नहीं कराया गया।

The Moscow Times में छपी खबर के अनुसार। रूस और यूक्रेन के युद्ध शुरू होने के कुछ दिनों बाद ही Boeing और airbus के वजह से Russia के aircraft के जो पार्ट हैं वो बुरी तरह प्रभावित हुए थे.

इसका मतलब ये हुआ कि युद्ध शुरू हुआ और airbus और Boeing ने यह decision ले लिया अपनी market में कि मैं रूस को किसी प्रकार की मदद नहीं भेजूँगा। लेकिन इसी चीज का जब रूस ने नुकसान भुगता तो फिर Russia ने target किया कि कोई बात नहीं आपदा में अवसर ही सही.

रूस ने खुद से अपनी कंपनियों से कहा कि आप लोग जब fighter jet बना सकते हो, Sukhoi जैसे, MiG जैसे तो फिर civil aircraft क्यों नही बना सकते और इसी को ध्यान में रखते हुए इस युद्ध काल के अंदर रूस ने निर्धारित किया कि यदि ये दोनों कंपनी हमारे साथ नहीं आ सकते, तो कोई बात नहीं। हम अपना aircraft खुद चलाएंगे, हम अपनी कंपनियों से कहेंगे कि वो खुद का aircraft बनाएं।

आपको मैं याद दिला दूँ प्रथम विश्व युद्ध के बाद बड़ी मात्रा में इसी प्रकार के प्रतिबंध जर्मनी पर लाद दिए गए थे। उस समय हिटलर नहीं हुआ करता था। प्रथम विश्व युद्ध के बाद में जब जर्मनी पर बड़ी मात्रा में प्रतिबंध लगाए गए थे तो जर्मंस ने इसे अपने आत्मसम्मान से जोड़ लिया था और इस वजह से प्रथम विश्व युद्ध 1918 में खत्म हुआ. प्रतिबंधित जर्मनी अपना बहुत बड़ा हिस्सा गवा चूका था फ्रांस और ब्रिटेन के समक्ष।

जर्मनी के लोगों के द्वारा दिन रात काम करके ऐसी-ऐसी खोज की गई, ऐसी-ऐसी discoveries की गई कि वो second world war के लिए सबसे ताकतवर देश बनकर निकला।

उस दौरान submarines, aircrafts, बहुत सारे तोप, तमंचे, बंदूक और न जाने कितने सारे technology का विकास किया गया जर्मनी के द्वारा कि वो second world war के दौरान थोड़े ही समय के बाद में युद्ध करने के लिए और तेजी से उठकर सामने आ खड़ा हुआ.

कहने का अर्थ ये है कि उस तरह के बदले की आग ने जिस प्रकार फिलहाल रूस पर इतने इतने सारे प्रतिबंध लगाए गए हैं कि वो दुनिया का सबसे ज्यादा प्रतिबंधित देश है.

तो संभव है कि ये वाली जो इनकी प्रतिज्ञा है कि हम अपना काम खुद करेंगे। इस प्रतिज्ञा के पीछे भी मैं आपको बता देता हूँ इन्होंने target हजार aircraft का आने वाले दो साल के अंदर रखा है कि हम अपने aircraft बना लेंगे। आप इससे अंदाजा लगा लीजिए तो ये ऐसा ही जूनून था जर्मनी के मामले में भी.

इतिहास अपने आप को दोहराता है. जर्मंस ने भी ऐसे ही काम किया था और सेकंड वर्ल्ड वॉर में जब हिटलर बन के निकला था वो पूरी तरह टेक्नोलॉजी से लैस था.

हम ये तो नहीं कहते कि हिटलर पनपने वाला है. लेकिन इन प्रतिबंधों से जब आदमी परेशान होगा तो कुछ नया पैदा करेगा और इसे ही आपदा में अवसर कहते हैं. ऐसी स्थिति में एयरबस और बोईंग द्वारा लगे हुए प्रतिबंध तो अपनी जगह थे यानी ये तो मदद नहीं कर रहे थे और इन्होंने इसलिए decision ले लिया कि हम अपना कुछ बनाएंगे।

इसी क्रम में रशिया के aviation सेक्टर ने अपना काम करना शुरू किया और याद आई भारत की भारत की याद क्यों आई? कि आप भी तो इन दिनों एयरबस और निर्भर होने जा रहे हैं यदि आपको वाकई में चाहिए कि आप independence रखें तो आप अपने नौ सौ से अधिक हजार के आसपास aircraft इन दोनों ही देशों से क्यों खरीद रहे हैं?

इन दोनों कंपनियों से क्यों खरीद रहे हैं? Russia ने भारत की तरफ हाथ बढ़ाया। और offer दिया कि आप जश्न तो खूब मना रहे हैं? क्यों ना हम और आप मिलकर आप ही के देश में क्योंकि आपके देश में ये demand उठी है, क्या demand उठी है कि हम इतना सारा रोजगार अमेरिका में क्यों दें? हम इतना रोजगार यूके में क्यों दें?

हमारे ही देश की जरूरत पूरे करने के नाम पर अमेरिका, यूके और फ्रांस जैसे लोगों की जिंदगी क्यों बेहतर हो? आत्मनिर्भर भारत कहाँ चला गया? आत्मनिर्भर भारत है तो मैन्युफैक्चरिंग के लिए या तो बोईंग और एयरबस को भारत बुलाओ और अगर नहीं बुला सकते तो क्यों ना इस ऑप्शन पर काम करो?

क्योंकि रूस ने भारत को ऑप्शन दिया है कि यदि आप मेरे साथ काम करेंगे तो मैं आपके हिंदुस्तान aeronautics limited के साथ मिलकर के अपने द्वारा नए aircraft बनाकर दे सकता हूँ और उन विमानों के अंदर मैं सुखोई सुपर जेट आपको बनाकर तुरंत दे सकता हूँ.

सुखोई सुपर jet 100 क्या है? सुखोई एक कंपनी का नाम है। इसके द्वारा इन दिनों एक और प्लेन बनाया जा रहा है जो सिविल एयरक्राफ्ट है. इसके अंदर सौ लोगों को बिठा के ले जाने की क्षमता है.

भारत को रूस एक और option देते है यदि आपके देश में कोई भी ऐसा व्यक्ति है या बिज़नेस ओनर है जो private partner के रूप में हमसे जुड़ना चाहता है और चाहता है कि वो भी aircraft बनाने में boing और airbus की तरह ही काम करें तो हम उसका भी welcome करते है. अगर ऐसी बात होती है तो निश्चित ही भारत के लिए बहुत अच्छी बात होगी.

जब से sanction hit Russia ने भारत को एयरक्राफ्ट बनाने की बात कही है. जिसके पीछे का कारण है कि उनके ऊपर खुद के ऊपर संकट आया हुआ है. उनके aircraft को अमेरिका और जो यूरोप है वो मदद नहीं कर रहा है और रशिया कहता है कि हम अपना खुद बनाएँगे तो इस बीच में जानकारी निकलकर आती है कि इनका असल में offer देने वाला व्यक्ति कौन है?

यूएसी (UAC) रशिया की एक कंपनी है, उसके डायरेक्टर है यूरी स्लाइसर इन दिनों इंडिया आए हुए थे aero show के दौरान। इन्ही दौरान एयरइंडिया की डील सामने आ जाती है. ये व्यक्ति रुका रहा, इसने उस चीज को analyze किया।

इन्होंने तुरंत India में HAL के सामने ये प्रस्ताव रख दिया कि आप इतना खुश किस बात पर हो रहे हैं एक civil aircraft बनाने के लिए आप दूसरे company को offer दे रहे है, हमारे साथ आइये और मिलके एयरक्राफ्ट बनाते हैं और ये व्यक्ति यूरी स्लाइसर है जो UAC के director है और ये India को offer देकर चला गया.

आपके दिमाग में अब एक प्रश्न बनना तय है. ये अचानक से रूस के समझ में आया है. जब हमने order कर दिए. इससे पहले नहीं समझ में आ सकता था या पहले ही हमसे नहीं कह सकते थे. इसके पीछे भी एक लॉजिक है. आइए मैं बताता हूँ. Russia ने नवंबर 2022 में भारत से कहा था कि हमें बड़ी मात्रा के अंदर एयरक्राफ्ट्स के parts की जरूरत है.

असल मायने में ये उस दौरान एयरबस और बोईंग के जो पार्ट थे वो रूस को supply नहीं हो रहे थे, उससे पीड़ित थे. तो इन्होंने कहा कि भारत अगर चाहे तो ये उधर से लेकर हमें भेज सकता है, हालाँकि भारत ने उस समय अपने द्वारा किसी भी प्रकार का कोई संतुष्टिपूर्ण जवाब नहीं दिया।

इस बारे में जो हमारे foreign spoke person हैं उन्होंने केवल ये कहा कि भारत और रशिया के बीच सब कुछ वैसे ही चल रहा है जैसे पहले था हमने कोई नया agreement नहीं किया है यानी हम ये दिखाना नहीं चाह रहे थे कि हम रूस की out of the box जा के मदद कर रहे हैं.

इस वजह से रूस को ये समझ में आ गया कि इंडिया फिलहाल हमारी मदद करने के लिए इस तरह से आगे नहीं आएगा कि वो प्रतिबंधों के बावजूद हमें एयरबस और बोईंग से सामान खरीद के supply मार दे. ऐसी स्थिति में इन्होंने proper से wait and watch किया और आज के दिन का इंतजार किया।

अब आकर के इन्होंने कहा कि कोई बात नहीं आप instrument नहीं दे सकते मत दो अगर कुछ कर सकते हो तो फिलहाल अपने ही देश में हमारे साथ मिलकर के manufacturing कर लो.

अब यूरी स्लाइसर जो UAC के डायरेक्टर है वो एचएएल के response का इंतजार कर रहा है कि हम मिलकर के यहाँ सुखोई सुपरजेट hundred का निर्माण करेंगे। ये सुखोई सुपरजेट hundred seater सिविल aircraft है जो कि सुखोई corporation के द्वारा बनाया गया है।

UAC फिलहाल रूस की सबसे बड़ी कंपनी बन चुकी है. प्रतिबंधों की वजह से रूस की जितनी भी विमानन कंपनियां है वो फिलहाल घाटे में चल रही है। इस वजह से वो सारी companies मर्जर पर आ गई है ताकि एक रहने लगे। यूएसी के under ही सुखोई आ गई है और यूएसी के under ही mig आ गई है।

मिग भी भारत में है और सुखोई भी भारत में already है। लेकिन ये fighter जेट के रूप में थे ना कि civil aircraft के रूप में। इंडिया में सुखोई और मिग बड़ी मात्रा में use किए जाते हैं। ऐसी स्थिति में इसी यूएसी ने कहा है कि जब हम fighter जेट बना सकते हैं तो ये सिविल aircraft कौन-सी बहुत बड़ी बात है। हम civil aircraft भी मिलकर के बना लेंगे।

सुखोई की पहली सिविल एयरक्राफ्ट 2008 में बनी थी। 2011 के अंदर इसने चलना शुरू कर दिया था। ये फ्लाइट एक बार में अधिकतम 12500 मीटर की ऊंचाई तक उड़ सकती है। 3500 से 4500 किलोमीटर एक बार में ये dispatch में उड़ सकती है।

ठीक है। इतना ही नहीं फिलहाल इस यूएसी के अंदर रूस की और भी जो लोकल companies है जैसे कि टूपोलो है या फिर Elshine है ये सब मिल चुकी है और यूएसी का हिस्सा बनती जा रही है।

यूएसी जो है यह Russian Aero Space and defense corporation के अंदर है. इसके अंदर Russian गवर्नमेंट का सबसे बड़ा हिस्सा है यानी कि ये रूस की एक प्रकार की सरकारी कंपनी है और अब इसके अंदर Russian private और state होल्ड aircraft कंपनी भी शामिल हो गई हैं।

यही यूएसी अपने पास सुखोई भी रखता है, मिग भी रखता है। यही एचएएल से बात कर रहा है कि आप हमारे साथ मिलकर के aircraft का निर्माण कर लीजिए। स्लाइसर ने कहा हम निर्माण के दौरान इसमें कोई भी विदेशी सामान नहीं लगाएंगे। हम पूरी तरह से इसमें Russian सामान लगाकर आपको बनाकर देंगे।

इसी वजह से भारत के अंदर ये बात बहुत ज्यादा interest के साथ ली जा रही है. क्योंकि ये कंपनी खुद कह चुकी है कि आने वाले 2030 तक हम खुद एक हजार नए aircraft निर्माण खुद से कर लेंगे। ये सोच कर देखिए रूस ने अपने ऊपर लगे प्रतिबंधों का प्रतिकार कैसे किया कि हम अपने दम पर एक हजार नए aircraft बना लेंगे।

आप पूछेंगे क्या हमें वाकई में सौ seater की जरूरत है. जब सौ seater बन जाएगा तो डेढ़ सौ seater भी बन जाएगा, दो सौ seater भी बन जाएगा। असल मायने में ये सौ सीटर का प्लान इंडिया के लिए लेकर आए हैं। सुखोई सुपर जेट hundred, उसके पीछे का बड़ा कारण क्या है?

देखिए चाहे इंडिगो हो, चाहे टाटा हो, यानी ये भारत के लिए चार सौ बहत्तर और पांच सौ एयरक्राफ्ट भले ही खरीद रहे हो लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि भारत में उड़ान जो उड़ान स्कीम आई है. वो असल में बड़ी cities के लिए तो कारगर है ही, बड़ी से टाइप two और टाइप three city को कनेक्ट करने के भी काम आएगा।

उदाहरण के लिए दिल्ली को उदयपुर से कनेक्ट करना हो या जोधपुर से या जयपुर से जब आप इसे कनेक्टिविटी देंगे तो आपको एक बार में दो सौ यात्रियों को ले जाने वाले विमान की जरूरत नहीं होगी। आपको छोटे विमान चाहिए होंगे जो छोटी डेस्टिनेशन को एक दूसरे से कनेक्ट करेंगे। जैसे नेपाल में जो अभी थोड़े दिनों पहले एयरक्राफ्ट क्रैश हुआ था वो सिविल एयरक्राफ्ट था, वो असल में बहत्तर सीटर था.

आपको इंडिया में ऐसे एयरक्राफ्ट चाहिए उड़ान योजना को सफल बनाने के लिए जो sitting capacity के साथ छोटे हों. इस वजह से छोटे markets को उदाहरण के लिए अगर आपको जयपुर से उड़कर के लखनऊ जाना है तो ये बड़ा destination है लेकिन जयपुर से उड़कर के वाराणसी जाना है तो वहाँ के लिए exclusive crowd होगा कि वो वहीं के लिए जाएगा।

कम यात्री हो सकते हैं तो जहाज भी छोटा चाहिए तो fuel भी कम खपेगा और उड़ान scheme इससे बहुत अच्छे से निकल कर आएगी। तो ये-ये योजना बनाकर एक अलग तरह का दिमाग लगा रहे है।

आपको याद होगा भारत के उस फैसले के बाद जिसमें की Tata ने offer किया था बड़ी तरह से खुशियाँ लोगों ने मनाई थी. लेकिन अब ये तरीका जो रूस ने अपनाया है ये भी निश्चित ही सोचने के लिए हमें मजबूर करेगा। आने वाले समय मे संभव है कि भारत की बहुत सारी कंपनियाँ including HAL इस plan को अपने आप स्वीकार करेंगी। HAL को हलके में ना लिया जाए क्योंकि वो खुद से भी अपना एक nineteen seater विमान बना चुका है.

अब बड़ा सवाल ये बचता है कि अगर Russia को हम इतना ही मदद कर रहे हैं इस प्रतिबंध के काल में. हमने तेल भी उनका खूब खरीदा। हम उनकी सहायता के लिए aircraft बनाने के लिए भी तैयार हो जाए तो भी हमें फायदा क्या है बोले क्यों क्योंकि अभी तक भी अगर व्यापारिक संतुलन की बात देखी जाए trade balance की बात देखी जाए balance of payment की बात देखी जाए तो हम व्यापारिक घाटे में हैं.

रूस हमसे कुछ आयात नहीं कर रहा है सब कुछ निर्यात कर रहा है. कम मात्रा में हमसे import किए जा रहे हैं, जिस वजह से हमारा घाटा सत्ताईस billion dollar का हो चुका है.

अर्थात हमने भले ही तेल खरीदा हो. लेकिन रूस को हमसे खरीदना चाहिए। जिस वजह से हम व्यापारिक संतुलन create कर पाए, अभी हाल ही में भारत के enroll के द्वारा इस मुद्दे को publical domain पर रखा गया कि रूस के साथ व्यापार करके हमने बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा पहुंचा दी उन तक लेकिन उन्होंने हमसे कुछ नहीं खरीदा, व्यापारिक संतुलन बिगड़ रहा है।

खैर भारत इस opportunity को लेता है ये भारत के विचार करने वाले लोग समझे हमने आपके सामने एक विकल्प प्रस्तुत किया है जिससे आप पूरे देश के प्रति aware रहे.

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