रामायण के सभी निशानों को ढूंढने चलिए, भगवान श्री राम के ससुराल जनकपुर धाम, नेपाल, जहाँ पर माँ सीता को एक योद्धा माना जाता है, Visit Janakpur Dham Nepal

Visit Janakpur Dham Nepal

Visit Janakpur Dham Nepal: कुछ दिनों पहले हम लोग जगत जननी मां सीता की भूमि जनकपुर धाम, नेपाल पहुँचे। आज का अद्भुत, अविश्वसनीय, अकल्पनीय सफर हम यहीं से शुरू करेंगे। यहाँ के कोने कोने में जाकर अलग-अलग इलाकों में जाकर आपको ऐसी-ऐसी कहानी बताएंगे जो आपने कभी नहीं सुनी होंगी।

आज की दुनिया में महिला सशक्तिकरण की बात होती है. पर युगों युगों पहले एक ऐसी धरती थी, जहाँ एक बेटी को बेटे की तरह पाला गया था. राजकुमारी को युद्ध कला में निपुण किया गया था. उसे अपना वर चुनने की स्वतंत्रता थी. इस आर्टिकल में हम आपको वर्तमान के जनकपुर (नेपाल) में हम आपको त्रेता की मिथिला नगरी की सैर कराएंगे।

नेपाल का जनकपुर शहर, जहाँ नगर का हर नर आज भी सीता जी का भाई है, हर नारी उसकी बहन. जहाँ आज भी श्री राम, हर नगरवासी के दामाद है. वो नगर अकल्पनीय है. सीता जी के सतीत्व की कथा तो घर घर में सुनाई जाती है. इस आर्टिकल के माध्यम से आपको हम उस आंगन में लेकर चलेंगे, जहां वो बचपन में खेला करती थी. यहाँ विवाह, जो त्रेता युग में हुआ था. सीताजी चारों बहन, राम जी चारों भाई का उस दृश्य का दर्शन भी आपको करवायेंगे।

जिन राम के मात्र नाम लेने से ही जन्म-जन्मांतर के चक्र से मुक्ति मिल जाती है. क्यों सीताजी की धरती पर उन्हें ही दी जाती है, गालियाँ! इस प्रथा के बारे में भी इस आर्टिकल में बताएँगे। और जहाँ रखी गयी थी, माँ जानकी की डोली, उसके साक्ष्य की भी जानकारी देंगे। सीता जी का जीवन चरित्र रामायण के उत्तरकांड में आकर अनंत विराम ले लेता है. लेकिन शुरू होता है, Ayodhya से लगभग 550 किलोमीटर दूर Nepal के Janakpur से. रास्ते में जहाँ-जहाँ उनके चरण पड़े, वहाँ-वहाँ तीर्थ का निर्माण हो गया.

आपको लिए चलते हैं, जनकपुर, नेपाल,  सीता जी के धाम, जहां कण-कण में कथा समाहित है, सीता-राम की. Janakpur, Nepal के हिस्से में पड़ने वाले मिथिला प्रदेश का हिस्सा है. मिथिला नगरी की सीमाएँ वर्तमान के Nepal और आधे बिहार तक फैली थी. ज्ञान और संस्कृति को लेकर Mithila का बड़ा महत्व था.

“मिथिला की चौहद्दी हमारे गंगा जी के किनारे, उत्तर में हिमालय का रेंज जहाँ से शुरू होता है और कौशिकी धार जहाँ है मूल, वहाँ पूरब में पश्चिम में गंडकी, बीच में Bagmati है, Kamla जी, Vimla जी है, जो उनकी सखी है, तो ये तो पूरा क्षेत्र ही मिथिला का है.”

-महंत राम भूषण शरण, पुजारी, जनकपुर धाम

त्रेता युग का गौरव रामायण काल की भव्यता सब कुछ मन में था और हम Janakpur की तरफ बढ़ रहे थे. जब दूर कहीं कानों में सीता राम की धुन सुनाई पड़ने लगी तो अनुमान लग गया कि हम आ पहुँचे है. जनक नंदिनी मां जानकी के जनकपुर धाम.

तस्वीर में जो दिख रहा है, ये जानकी मंदिर है, जहां पर माता सीता और श्री राम की उपासना की जाती है. लेकिन स्थानीय मान्यता के अनुसार यही है, वो जनक महल जो कभी जनकपुर और पूरे मिथिला इलाके की समृद्धि और वैभव का प्रतीक हुआ करता था. मान्यता है कि जब सीता मां छोटी थी. यही पर उनकी परवरिश हुई थी. इसी जगह पर वो खेलती कूदती थी. आज जहाँ हिन्दू राजपूत वास्तुकला का प्रतीक, जनक महल बना हुआ है. वहाँ पहले कभी राजा जनक का अपना महल हुआ करता था. जहां से वो मिथिला पर राज किया करते थे.

विवाह से पहले राजकुमारी सीता, उसी महल में रहा करती थी. सीता जी के बारे में वर्णन मिलता है कि जब वो छोटी थी तब से ही उनमें आध्यात्मिक शक्ति बहुत थी. उनके पिता राजा जनक के पास भगवान शिव का एक धनुष था. जिसे हिला पाना किसी के बस की बात नहीं थी. लेकिन वो बचपन से ही उसे बाएँ हाथ से उठाकर दूसरी तरफ रख दिया करती थी. राजा Janak को तभी से उनकी दिव्यता पर विश्वास था.

सीता जी कौन थी? कैसी थी?  इसे लेकर अलग-अलग ग्रंथों में अलग अलग वर्णन है और ये बहुत दिलचस्प भी है क्योंकि यहाँ पर स्थानीय मान्यताओं के अनुसार उन्हें एक योद्धा के तौर पर भी देखा जाता है. जो बिल्कुल भी दुर्बल नहीं थी, बिल्कुल भी कमजोर नहीं थी और उस तरीके से लोग उनकी आराधना भी करते है, उनकी प्रार्थना भी करते है. सीता जी के जीवन चरित्र का वर्णन अधिकांश श्री राम के साथ ही मिलता है. इसकी वजह से उनको लेकर बहुत रिसर्च नहीं की गयी.

आज के तारीख में भारत में जो सीता माँ का जो दृश्य है, उनको लेकर जो perception है. वो ज्यादातर एक 1980 की  television serial के ऊपर आधारित है और वो अच्छी serial थी. मैं उसको criticize नहीं कर रहा हूँ. लेकिन जो 1980 की  television serial थी. वो ज्यादातर Ramcharitmanas पर आधारित है. जो एक sixteen सेंचुरी में  modernization थी original Valmiki Ramayana की. आप original Valmiki Ramayana पढ़े तो उसमें Sita माँ काफी strong character है. योद्धा नहीं है लेकिन काफी strong character है. उन्हें जो सही लगता है वो वही करती है.

-अमिश त्रिपाठी, लेखक, Sita-Warrior of Mithila

जो बात त्रेता युग की थी. उसका मान आज कलयुग में भी रखा जाता है. मिथिला के हर नर-नारी के लिए सीता जी आज भी किशोरी रूप में बहन की तरह मान्य है.

बहन है, वो किसी की माँ है, किसी की बेटी है और किसी की बुआ भी है। राम जी तो मेहमान है, बेटी तो सीता है. यहाँ पर सब लोग जानकी जी नहीं बुला के, किशोरी जी बुलाते हैं सब। बेटी है यहाँ की, हम लोग मैथिली में मिथिलावासी उनको धिया कहकर बुलाते हैं। सिया धिया कह के और यहाँ पर हम लोग एकदम गर्व से उनको उनका अनुसरण करते हैं सीता जी का, सीता जी के जिस तरह पली बढ़ी, सीता जी जिस तरह ससुराल गई, जिस तरह उनको सहनशीलता में है। जिस तरह सेवा की देवर का, सास ससुर का, सबका, हम समस्त मैथिली नानी उनका अनुसरण करते हैं

आचरण में, आस्थाओं में! यहाँ तक की जनकपुर के मन मंदिर में सीता जी का जीवन चरित्र, त्याग, बलिदान और तपस्या का सर्वोच्च स्वरूप है और हर मिथिला वासी उसे धर्म की तरह धारण करना अपना कर्तव्य समझता है. सीता जी का बचपन और किशोरावस्था जनक महल में ही बीता था.

जनकपुर से करीब 60 किलोमीटर दूर है, Sitamarhi का वो इलाका जहाँ बताया जाता है की माता Sita मिली थी, राजा Janak को. हालांकि अलग-अलग धर्म ग्रंथों को अगर हम देखे तो माता Sita के जन्म को लेकर उसमें अलग अलग वर्णन हमें मिलते है, ये अपने आप में अद्भुत है.

Sita जी के जन्म को लेकर सबसे प्रचलित मान्यताओं के अनुसार Mithila के राजा Janak के राज्य में जब अकाल पड़ा तो उन्हें एक ऋषि ने अपने राज्य क्षेत्र की धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया।

हमारी किशोरी जी यानि माँ सीता की जो शक्ति है ना, ये किसी माता के गर्भ में लेने की सामर्थ्य ना हुई उस समय. उन्होंने तब इसलिए मिथिला में हल के द्वारा पृथ्वी से प्रकट हुई.

-पंडित राम तपेश्वर दास, मुख्य महंत

Sita का अर्थ होता है, हल का वो हिस्सा जो धरती को चीरता हुआ चलता है. जहाँ आज Sitamarhi है, त्रेता काल में यहाँ तपोवन हुआ करता था. दस kilometre के दायरे में ऋषि मुनियों के आश्रमों के अवशेष वहाँ आज भी मिलते हैं.

सीत कहते है हल के अग्रभाग को, इसलिए उनका नाम, सीता मिला. सीता नाम पड़ा और जनक जी के यहाँ रही इसलिए जनक नंदिनी और जानकी के नाम पड़ा.

-आचार्य सत्येंद्र दास, मुख्य पुजारी, राम जन्मभूमि

बृहद विष्णु पुराण के अनुसार जब सीता जी का जन्म हुआ तो वहां तेज बरसात होने लगी. शिशु सीता जी की रक्षा के लिए तुरंत एक मढ़ी यानी कुटी का निर्माण किया गया और उसमें उन्हें रखा गया. यही वजह है कि इस स्थान को आज भी सीतामढ़ी के नाम से जाना जाता है.

Bihar के Sitamarhi में Punaura Dham नाम की जगह पर माता सीता के मंदिर को उनकी जन्मस्थली के तौर पर पावन माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि ये वही स्थान है, जहाँ राजा Janak ने हल चलाया था. मान्यता ऐसी भी है कि Sitaram विवाह के बाद राजा Janak ने ही माता सीता के प्राकट्य स्थल पर Ram Janki की प्रतिमा स्थापित करवाई थी जो समय के साथ विलुप्त हो गयी.

अयोध्या के संत बीरबल दास ने बाद में उन प्रतिमाओं की खोज की और पूजा अर्चना शुरू की. तब से ये मंदिर आस्था का अद्भुत केंद्र बन गया. एक दूसरे विवरण के अनुसार सीता जी राजा जनक की ही पुत्री थी और वाल्मीकि रामायण के बाद में जोड़ घटाओं के चलते, हल वाले प्रकरण को इसमें जोड़ा गया. सीतामढ़ी के आसपास का क्षेत्र सीता जी से जुड़ी अन्य कई मान्यताओं के लिए भी, कथा पुराणों से लेकर स्थानीय जीवन का हिस्सा है. यहीं पास में एक जगह पर पाकड़ का एक विशाल वृक्ष है. जो कई बीघा क्षेत्र में फैला हुआ है. मान्यता ये है कि जब श्री राम सीता जी को ब्याह कर वापस अयोध्या लौट रहे थे. तब इसी जगह पर सीता जी की डोली रखी गई थी.

“सीता जी द्वारा जब यहाँ दातुन की गई, ऐसा मान्यता है की तो पाकड़ का उठान हुआ और कुल्ला की तो यहाँ एक कुंड बना.”

-स्थानीय, सीतामढ़ी

मान्यता है कि ये पेड़ त्रेता युग से इस स्थान पर मौजूद है. लोगों के मन में इसको लेकर आस्था इतनी है कि जिस किसी के खेत तक इस पाकड़ की जड़े पहुँच जाती है, वो श्रद्धा के कारण उस खेत को हमेशा के लिए छोड़ देता है.

“यहाँ भी पाकड़ का पेड़ श्री Janki जी के नजदीक में किसी खेत में चला जाए तो वो खेत वाला छोड़ देता है और प्रणाम करके छोड़ता है.”

-स्थानीय, सीतामढ़ी.

यहीं पर एक Janki कुंड भी है. स्थानीय लोग बताते हैं कि ये कुंड अधिक गहरा नहीं है लेकिन इसका पानी कभी नहीं सूखा।

जनकपुर धाम में विवाह मंडप:

तस्वीर में जो आप एक स्ट्रक्चर देख रहे हैं, ऐसी मान्यताएँ है कि श्री राम और सीता माँ की शादी यहीं पर हुई थी. यहीं पर विवाह हुआ था और आज भी अगर मुहूर्त न भी हो तो भी कोई भी शादी यहाँ पर कर सकता है. बिलकुल Janak महल से सटा हुआ ये इलाका. वहाँ की निर्माण शैली देखिए और आप यहाँ विवाह मंडप की निर्माण शैली देखिए बहुत अलग है. क्योंकि महल का निर्माण कराया था, टीकमगढ़ की रानी ने और विवाह मंडप का निर्माण कराया नेपाल के राजा ने.

लेकिन इस सब के बीच जो आस्था है लोगों की वो कुछ ऐसी है कि आप जगह-जगह देखेंगे कि जहाँ भी श्री राम रुके थे. वहाँ पर एक निर्माण है. जहाँ पर जयमाल हुआ था तो उसका अलग निर्माण वहाँ नजर आता है और उस सबके बीच एक शांत सी ये जगह जहां मूर्तियों के जरिए विवाह की पूरी कहानी बताई गई है. युगों पहले क्या हुआ उसे किसने देखा, पर वर्तमान में अगर कथाओं के भौगोलिक साक्ष्य हो तो बात अद्भुत हो जाती है.

इस विवाह मंडप में सबसे पहले सिंहासन में राम जी है. अब बाईं तरफ Sita जी है. दोनों बगल में खड़ी है Sita जी की सहेली नाम है, Chandrakala और Charushila. दाहिने तरफ है Janak जी के परिवार, Sita जी का परिवार, Janakpur वासी। उसमें सबसे पहले Janak महाराज और माता Sunaina बैठे हुए है. बीच में पुस्तक लिए उनके कुलगुरु सतानंद  जी महाराज है, जो कन्यादान करा रहे है और दूसरी तरफ है, Ayodhya वासी, सबसे कोने में सबसे पहले है राम जी के पिता Dasharatha. बीच में है इनके कुलगुरु Vashisht जी और ये सामने जो देख रहे है ये है विवाह वेदी।

जहाँ विवाह का कार्यक्रम संपन्न होता है. यहाँ दिन और तिथि से कोई मतलब नहीं लोग रखते है. जैसे वर्जित Hindu विवाह माना गया है. भादव, चैत्र, ये सब महीना वर्जित विवाह के लिए माना गया है. लेकिन यहाँ दिन और तिथि से कोई मतलब नहीं रखा जाता है. यहाँ हर एक दिन. हर एक तिथि में हर एक महीने में विवाह होता है. वो दूर-दूर से लोग आते हैं. Thailand से भी यहाँ लोग आते हैं और फिजी से भी यहाँ आते हैं. जहाँ-जहाँ हिन्दू हैं, उन सबों को ये पता है. तो वो अपना शादी के लिए यहाँ आते हैं और booking कराते हैं और शादी करा के जाते हैं.

Sita जी का Janakpur अगर अद्भुत है तो इस अद्भुत नगरी की आस्था अकल्पनीय है. युग बीतने के साथ बाहर से भले ही शहर काफी बदल गया हो. लेकिन लोगों के मन में जो श्रद्धा श्री Rama Janaki के लिए त्रेता में जगी थी वो आज भी कायम है. श्री राम आज भी यहाँ दामाद रूप में है.

Janki आज भी Janakpur की किशोरी जी कहलाती है. अद्भुत ये भी है कि Ayodhya और Janakpur के बीच का जो रिश्ता राजा Janak और राजा Dasharatha ने बाँधा था, उस रिश्ते की परंपराएँ आज भी कायम है. हर बरस यहाँ विवाह की वो सारी रस्में निभाई जाती है जो कभी त्रेता में निभाई गयी थी. आज भी Ayodhya से Janakpur बारात आती है.

विवाह का आयोजन धूमधाम से किया जाता है. तिलक समारोह होता है. समधी  मिलन किया जाता है. मंगल गान होता है. Mithila के क्षेत्र की शादियों में एक अकल्पनीय परंपरा होती है. विवाह समारोह के दौरान लड़की वाले लड़के वालों को गीत के ज़रिए गालियाँ देते हैं. अब रिश्ते के अनुसार श्री Ram Janakpur के दामाद हैं so विवाह समारोह में उन्हें और पूरे वर पक्ष को आज भी गालियां दी जाती हैं.

“बखान बखान के गालियाँ देती है, महिला लोग और लोग हँस हँस के पाते रहते है. जब गालियाँ बंद हो जाए. फिर भोजन बंद कर देते है तो ये Mithila का एक परंपरा है ना तो ये बहुत बड़ा रहस्यमय है कि जो दूल्हा Thakur के रूप में हजारों हजार वर्ष वेद मंत्र के साथ पाठ करे, पूजा करे और तपस्या करे तो प्रसन्न नहीं होते है जो भगवान वो Mithila की स्त्री के गाली से ही प्रसन्न हो जाते है.”

-पंडित राम तपेश्वर दास, मुख्य महंत, राम जानकी मंदिर

Mithila की इस परंपरा का कारण स्पष्ट रूप से कोई नहीं जानता, लेकिन हर ब्याह में गाली गाने का चलन है. हर जगह भक्ति की झलक मिलती है.

धनुषा में शिव धनुष का साक्ष्य: 

धनुषा Janakpur से करीब तीस kilometre दूर है. श्रद्धा वश इस स्थान का नाम ही धनुषा पड़ गया. यहाँ की परंपरा और मान्यताओं के अनुसार, खंडित धनुष का एक हिस्सा यही रह गया था. जिसकी पूजा आज भी श्रद्धा और आस्था के साथ की जाती है. युगों की धरोहर धनुष का वो हिस्सा अब पत्थर जैसा दिखता है.

श्री राम और सीता के विवाह के साथ-साथ भारत  का Mandvi से Laxman का Urmila से और Shatrughan का Shubhkirti से विवाह हुआ. Urmila राजा Janak की पुत्री थी. जबकि मांडवी और Shubhkirti उनके छोटे भाई Kushdhwaj की बेटियां थी. Janak महल और विवाह स्थल का पुनर्निर्माण तो कुछ सौ वर्षों पहले हुआ. लेकिन जो चीज अद्भुत है वो ये कि Valmiki Ramayana में जो प्राकृतिक चीज़ें वर्णित है वो भी हूबहू उसी जगह पर मौजूद है.

“गंगा और सोनभद्र पार करने के बाद राम जी अहिल्या जी के आश्रम में पहुंचते हैं तो वो दरभंगा के पास अह्यारी नाम का गाँव है. आज भी बहुत मान्यता है उस मंदिर की. अहिल्या माँ का वो मंदिर माना जाता है.”

-राम अवतार शर्मा, श्री राम पर शोध करने वाले

विवाह के बाद बारात जिस रास्ते से लौटी थी. उसके भी प्रमाण मौजूद है. बारात ने जहाँ जहाँ विश्राम किया था. वो सारी जगह वर्णन के हिसाब से समय के साक्ष्य संजोए खामोशी से खड़ी है. Bihar में Motihari से लगभग बीस kilometre दूर Sitakund है, जो बारात के रात्रि विश्राम की पहली जगह थी. Uttar Pradesh के Gorakhpur में एक गाँव है Derwa, क्योंकि बारात ने यहां डेरा डाला था, इसलिए आज भी गाँव का नाम यही है.

जिस रास्ते से होकर बारात Ayodhya पहुँची, वो अब पक्की सड़क बन गयी. पर आज भी लोग इसे श्री Ram Janaki मार्ग के नाम से जानते है. इन सारी जगहों को अब Ramayan circuit के हिसाब से जोड़ने का प्रयास है.

जो तस्वीर आप स्क्रीन पर देख रहे हैं, इसे Janak महल कहा जाता है. लेकिन दिलचस्प ये है कि Ram Janaki मंदिर जो महत्वपूर्ण स्थल के तौर पर आपको आगे के हिस्से में नजर आएगा और इसके पीछे के हिस्से में एक छोटा सा मंदिर है, वो राजा Janak और उनकी पत्नी रानी Sunaina को समर्पित है.

इन मंदिरों के अलावा यहाँ Bharata, Lakshmana और Shatrughan के भी मंदिर है. करीब एक सौ पैंतीस साल पहले Ayodhya के एक महंत Sitaram Das को इस बात पर गुस्सा आया कि भाइयों के लिए इतनी श्रद्धा और ससुर राजा Dasharatha को कुछ भी नहीं। उन्होंने Sita जी पर मुकदमा ठोक दिया और आखिरकार Nepal के राजा ने उनके पक्ष में फैसला सुनाते हुए राजा Dasharatha को Janakpur में पाँच बीघा जमीन दी. जिस पर उनके मंदिर का निर्माण किया गया. दरअसल Janakpur ने Ayodhya के साथ बेटी दामाद का रिश्ता जोड़ा तो उसमें देवत्व का भाव कम रिश्तों का जोर ज्यादा था.

हाल ही में मिथिला क्षेत्र का जो हिस्सा बिहार में पड़ता है. वहाँ के एक वकील ने अयोध्या के राजा राम पर केस कर दिया था. उनकी शिकायत ये थी कि अयोध्या के राजा राम ने सीता जी को वनवास देकर उनके साथ अन्याय किया और उन्हें अब मिथिला की बेटी माता सीता के लिए न्याय की दरकार है.

मिथिला की बेटी के साथ अयोध्या ने इंसाफ नहीं किया। ये बातें हमें आपको अकल्पनीय लग सकती है. लेकिन त्रेता के विश्वास को कलयुग में भी इतनी निष्ठा से निभाना भी तो अविश्वसनीय है.

स्थानीय मान्यता है कि इसी जगह कभी राजा Janak का महल हुआ करता था. उसी को अब परिवर्तित करके Janaki मंदिर के तौर पर, यहाँ पर श्री राम और सीता की पूजा की जाती है. Ayodhya और Janakpur के बीच एक अद्भुत रिश्ता है. दोनों क्षेत्रों में जुड़वाँ महल है. अगर ध्यान से देखिए तो Janakpur का Janak महल और Ayodhya का Kanak Bhavan वास्तु और स्थापत्य के लिहाज़ से एक जैसा बना हुआ है.

मूल Kanak भवन रानी Kaikeyi ने Sita जी को मुँह दिखाई में दिया था. ऐसी मान्यता है कि Kanak महल पूरी तरह सोने से निर्मित था. इसीलिए इसका नाम Kanaka Bhavan पड़ा। मान्यताओं के अनुसार ये Kanak भवन ही श्री Ram Janaki का निवास बन गया था. Ayodhya का Kanak Bhavan और Janakpur का Janak महल अगर एक समान दीखते है तो उसकी बड़ी वजह ये है कि दोनों का पूर्ण उद्धार Tikamgarh की राजपूत महारानी Brish Bhanu Kumari ने कराया था.

रानी की आस्था श्री राम और Janki में इतनी गहरी थी कि उन्होंने Madhya Pradesh के Orchha में भी श्री राम का मंदिर स्थापित करवाया, जो दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है, जहां राम जी की पूजा भगवान की तरह नहीं बल्कि एक राजा की तरह की जाती है. एक साथ इन तीनों तस्वीरों को देखे तो एक सा ही निर्माण आपको नजर आएगा। एक बात होती है, ईश्वर के सामने हाथ जोड़कर उनसे कुछ मांगना और दूसरी बात होती है अपने आराध्य को समझना और उनके जीवन दर्शन से सीखना। इसी वजह से आज भी लोग भगवान राम और माता सीता के जीवन से प्रेरणा लेते है. जय श्री राम!

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