Who is S Jaishankar Indian Minister for Foreign Affairs: इस समय भारत का पूरी दुनिया में एक अलग ही रुतबा देखने को मिलता है. जिसके सबसे बड़े कारणों में देश के प्रधानमंत्री और उनकी विदेश नीति ही आती है यानी कि बाकी देशों के साथ इस समय किस तरह से पेश आना है.
लेकिन इस रुतबे और नीति के पीछे जो असली चेहरा हैं. उसकी तारीफ चीन भी करता है और माहौल तो यहाँ तक बना हुआ है कि आने वाले समय में Modi जी के बाद अगर देश का कोई प्रधानमंत्री बन सकता है तो वो कोई और नहीं बल्कि वही शख्स है जो इस वक्त भारत का विदेश मंत्री है.
जी हाँ दोस्तों हम बात कर रहे है एस जय शंकर की जिनके कारण मोदी सरकार की धाक पूरी दुनिया में बनी हुई है. तो कौन है ये जयशंकर और आखिर क्यों इतने चर्चा में है इनके कारनामे। आइए आपको बताते है.
एक बात आपको और बता दे कि जयशंकर कोई और नहीं बल्कि इस समय के भारत के विदेश मंत्री है. आज भले ही ये राज्यसभा सांसद है लेकिन उससे पहले इनका कोई political background नहीं था और इसके बाद भी वो इतने बड़े मंत्री पद पर कैसे बने हुए है, इस सवाल के जवाब को समझना बहुत जरूरी है। जिसका अगर एक लाइन में जवाब दें तो ये एस जयशंकर 2014 की सरकार से ही देश के foreign affairs से जुड़े हुए थे। यानि वो देश के विदेश सचिव थे जो कि एक सरकारी नौकरी होती है। इन सब की शुरुआत को समझने के लिए आइए जानते हैं एस जयशंकर की पूरी कहानी।
तो आपको बता दें कि एस जयशंकर के परिवार का ताल्लुक तमिलनाडु से है। लेकिन उनका जन्म दिल्ली में हुआ था। जिसके बाद उन्होंने अपनी शुरूआती पढ़ाई एयरफोर्स के स्कूल से की और फिर सेंट स्टीफन्स यानी दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज से आगे की पढ़ाई पूरी की और जयशंकर काफी ज्यादा पढ़े-लिखे हैं. जयशंकर ने political science से एमए कर लिया। फिर एमफिल और पीएचडी भी किया। अब इतनी पढ़ाई के बाद उस समय job के लिए आपको भटकना नहीं पड़ता था। इसीलिए जयशंकर 1977 में भारतीय विदेश सेवा में शामिल हो गए। जिसके बाद उन्होंने अमेरिका, चीन और चेक गणराज्य में भारतीय राजदूत यानी ambassador और सिंगापुर में high commissioner के रूप में काम किया।
इसके बाद 1981 से लेकर 1985 तक वे विदेश मंत्रालय में under secretary रहे. 1885 से 1988 के बीच वे अमेरिका में भारत के पहले सचिव रहे और इसके बाद श्रीलंका में जब लिट्टे के खिलाफ विरोध चल रहा था. तब peace maintenance करने के लिए उन्हें ही भेजा गया था। इसके बाद जब वे भारत लौटे तो पूर्वी यूरोप के मामलों को देखते रहे। 1996 से 2000 तक Tokyo चले गए और फिर आखिरकार दुनिया भर की भागदौड़ करने के बाद वो भारत लौटे और तीन साल तक विदेश मंत्रालय में अमेरिकी विभाग देखते रहे। 2007 में उन्हें बतौर इंडियन हाई कमिश्नर सिंगापुर भेजा गया. फिर 2009 से 2013 तक वे चीन में भारत के राजदूत रहे।
इस तरह से आप देख सकते हैं कि जयशंकर ने दुनिया के लगभग हर उस देश में रहकर काम किया। जिसकी आज global dominance है। इसीलिए ये सारे देश जयशंकर को बहुत अच्छे से जानते हैं। अब अगर उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों की बात करें तो जयशंकर ने 2007 में यूपीए सरकार द्वारा sign भारत-अमेरिका परमाणु समझौते पर बातचीत करने में अहम role निभाया था। यानी अगर आज हम किसी रोक-टोक के atomic research पर ध्यान दे पा रहे हैं तो वो कहीं ना कहीं जय शंकर की ही देन है। इसके अलावा आप देखते ही होंगे कि चाइना भले ही भारत का विरोध करता रहा हो लेकिन जयशंकर ने लगातार चीन और भारत के बीच रिश्तों को मजबूत करने का जो काम किया है उसी की बदौलत आज भी चाइना जैसा देश भारत के खिलाफ जाने से बचता है।
ऐसा जयशंकर इसलिए कर पाए क्योंकि वो चीन में देश के लंबे समय तक राजदूत रहे हैं। इसके अलावा जयशंकर को विदेश सचिव के रूप में भारत और चीन के बीच डोकलाम विवाद को निपटाने के लिए बातचीत करने को कहा गया था और उन्होंने ही बतौर विदेश सचिव इस काम को बखूबी करते हुए झगड़े को खत्म करवाया। जयशंकर को पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
अब अगर बात करें मोदी सरकार में आखिर जयशंकर का रोल इतना अहम कैसे हो जाता है? तो आपको बता दें कि मोदी जय शंकर के काम करने के तरीके के मुरीद हैं। जयशंकर और मोदी की जान-पहचान उनके पीएम बनने से पहले से है। अगर मोदी से उनकी पहली मुलाकात की बात करें तो वो तब की है जब मोदी प्रधानमंत्री भी नहीं थे। 2012 में जब मोदी गुजरात सीएम के रूप में चीन के दौरे पर थे. उसी दौरान जय शंकर उनसे मिले थे। कहा जाता है कि मनमोहन सिंह 2013 में ही उन्हें विदेश सचिव बनाना चाहते थे. लेकिन फिर उन्होंने सुजाता सिंह को चुना। लेकिन मोदी ने पीएम बनने के बाद सुजाता के बाद जयशंकर को ही उस पोस्ट के लिए चुना। जिसके बाद एस जयशंकर जनवरी 2015 से जनवरी 2018 तक विदेश सचिव रहे।
जिसके बाद अगले term में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में उनका आना बतौर विदेश मंत्री काफी अच्छा साबित हुआ। मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल की शुरुआत में neighbourhood first यानी पड़ोसी पहले की नीति पर अमल शुरू किया। दोबारा प्रधानमंत्री बनते ही मोदी ने अपना पहला विदेश दौरा मालदीव का किया और उसके बाद वे श्रीलंका और भूटान भी गए। विदेश मंत्री बनते ही जयशंकर ने भी पहले भूटान, मालदीव, बांग्लादेश, नेपाल और फिर म्यांमार, श्रीलंका और अफगानिस्तान का दौरा कर संबंधों को नया आयाम दिया।
लेकिन जय शंकर पूरी दुनिया की नजर में तब आये जब कश्मीर से 370 हटाया गया और पूरी दुनिया में उसका विरोध हो सकता था. लेकिन जयशंकर खुद उन देशों का दौरा करके आए और उन्होंने सबको समझाया कि कश्मीर भारत का इंटरनल मामला है और उसमें कोई दखल ना दें तो बेहतर होगा। जयशंकर के इस प्रयास और कूटनीति ने ही कश्मीर से 370 को बिना किसी विवाद के हटाने में मदद की है। अब अगर एक और पहलू की बात करें तो राष्ट्रीय सुरक्षा में विदेश मंत्रालय का कोई रोल नहीं रहा है। लेकिन मोदी सरकार की विदेश नीति की सबसे बड़ी खासियत ये कि इसने राष्ट्रीय सुरक्षा को देश नीति से जोड़कर इसकी एक अलग ही तस्वीर बना दी है। मोदी सरकार की विदेश नीति का ही परिणाम है कि एक और हम इजरायल और फिलिस्तीन दोनों जो आपस में सालो से लड़ रहे हैं. उन दोनों के साथ एक ही समय में बेहतरीन संबंध रखते हैं तो दूसरी ओर हम अमेरिका, ईरान और अमेरिका, रूस के साथ भी अच्छे संबंध रखते हैं। महाशक्तियों के साथ अपने संबंधों को भारत ऐसे balance करके चल रहा है कि international level पर कई देश आज भारत की इन foreign policy पर रिसर्च कर रहे हैं.
इन सब का श्रेय अगर किसी को जाता है तो वो कोई और नहीं बल्कि जयशंकर ही हैं. इसके अलावा पिछले दिनों अपने एक बयान के कारण पूरी चीनी मीडिया में छा जाने वाले जयशंकर ने एक इंटरव्यू में सबके सामने ये बात साफ कह दी है कि पश्चिमी देशों की परेशानी पूरी दुनिया की परेशानी नहीं है. इस बयान को देने के बाद से ही उनके बारे में और उनकी नीतियों का बखान करते बड़े-बड़े आर्टिकल चाइनीस मीडिया ने छापे। अपने इसी क्लियर और अटैकिंग रवैये के कारण आज जयशंकर ने अपने दम पर भारत को पूरी दुनिया में front foot पर लाकर खड़ा कर दिया है। जिसका example ये है कि जिस पोखरण को पूरा करने के लिए पूरी दुनिया से छुप के एक मिशन के तौर पर इसे पूरा किया गया. आज वही भारत पाकिस्तानी इलाके में missile दाग देता है और पूरी दुनिया उसे कुछ नहीं कह पाती है। भले ही वो एक missile testing ही क्यों नहीं थी? लेकिन इस बात से आप समझ सकते है कि आज भारत को किसी दूसरे देश का डर नहीं है। यही कारण है कि आज इस बात पर चर्चा की जा रही है कि आने वाले सालो में अगर देश को जय शंकर जैसा प्रधानमंत्री मिल जाता है तो शायद भारत की तस्वीर और भी बदल जाए. आपका इस बारे में क्या कहना है हमें comment करके बताइए।