Aadi Kailash Yatra: हिमालय की ऊँचाइयों पर बसा आदि कैलाश, जिसे ‘मिनी कैलाश’ के नाम से भी जाना जाता है, भगवान शिव के दिव्य निवास के रूप में पहचाना जाता है। उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित यह पवित्र स्थान, रहस्यमयी कथाओं और प्राकृतिक सौंदर्य का संगम है। इस यात्रा में आपको ऐतिहासिक गाँवों, पवित्र झीलों, और अनूठे हिमालयी दृश्यों का अनुभव होगा।
Aadi Kailash Yatra
धर्चुला: यात्रा का पहला पड़ाव
आदि कैलाश यात्रा की शुरुआत धर्चुला से होती है। यह एक छोटा हिल स्टेशन है और यहीं से यात्रा के लिए परमिट जारी किए जाते हैं। धर्चुला से करीब छह घंटे की दूरी पर स्थित गूंजी गाँव तक पहुँचने के लिए हमारा सफर शुरू होता है। रास्ते में तवाघाट नामक स्थान मिलता है, जहाँ धौलीगंगा और काली नदियों का संगम होता है। हर मोड़ पर प्रकृति के अद्भुत नज़ारे आपका स्वागत करते हैं।
अद्भुत गाँव और ऐतिहासिक स्थल
रास्ते में मलपा गाँव आता है, जो एक समय आदि कैलाश यात्रा का प्रमुख पड़ाव था। लेकिन 1998 में यहाँ एक बड़ा भूस्खलन हुआ, जिसने पूरे गाँव को तबाह कर दिया। आज यह स्थान यात्रियों को उस त्रासदी की कहानी याद दिलाता है। इसके बाद बूँदी गाँव आता है, जहाँ से बर्फ से ढकी पर्वत चोटियाँ दिखाई देने लगती हैं। यहाँ बहुमूल्य शांति और आध्यात्मिकता का अनुभव होता है।
चलेक में परमिट की जाँच होती है और आसपास की पहाड़ियों के खूबसूरत नज़ारे पास आ जाते हैं। यहाँ से गूंजी पहुँचने तक, हिमालय की भव्यता दिल को मोह लेती है।
कुटी गाँव और पांडवों की कहानी
अगले दिन सुबह जल्दी सफर शुरू होता है। गूंजी से करीब 19 किलोमीटर पहले कुटी गाँव आता है, जो आदि कैलाश यात्रा में आखिरी गाँव है। यहाँ पांडवों से जुड़ी प्राचीन कथा सुनने को मिलती है। कहा जाता है कि पांडव अपनी माँ कुंती के साथ यहाँ रुके थे और गाँव का नाम कुंती के नाम पर पड़ा।
कुटी के पास ही पांडव किला स्थित है, जो इतिहास और महाभारत काल की कहानियों को जीवंत करता है।
ज्योलिंगकौंग: आदि कैलाश यात्रा का आधार शिविर
ज्योलिंगकौंग को आदि कैलाश यात्रा का बेस कैंप कहा जा सकता है। यहाँ से 1.5-2 किलोमीटर का ट्रेक करके आदि कैलाश और पार्वती सरोवर के दर्शन किए जा सकते हैं। पार्वती सरोवर एक विशाल झील है, जिसकी सतह बर्फ की परतों से ढकी रहती है। यह झील देखने में इतनी भव्य है कि यह किसी दूसरी दुनिया का नज़ारा लगता है।
पार्वती सरोवर के पास भक्त हाथ-मुँह धोने के बाद शिव-पार्वती मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं। इस मंदिर के चारों तरफ बर्फ से ढकी चोटियों और त्रिशूल की सजावट इसे और दिव्य बनाती है।
आदि कैलाश: महादेव की भव्यता के दर्शन
10:30 बजे, जब कोहरा छटा और सूरज ने अपनी पहली किरणें बिखेरीं, तब आखिरकार आदि कैलाश के दर्शन हुए। इसकी संरचना अन्य हिमालयी चोटियों से अलग है। पर्वत की ऊपरी सतह पर जो रेखाएँ हैं, वे महादेव के तिलक की तरह प्रतीत होती हैं। यह पवित्र पर्वत ऐसा लगता है, जैसे शिवस्वयं यहाँ साक्षात उपस्थित हों।
कहा जाता है कि महादेव ने पार्वती जी से विवाह के समय यहाँ विश्राम किया था और रावण ने भी यहाँ कठोर तप किया था।
ओम पर्वत: प्राकृतिक चमत्कार
आदि कैलाश यात्रा का एक अहम हिस्सा ओम पर्वत के दर्शन करना है। गूंजी से करीब 18 किलोमीटर दूर नाभिधांग से ओम पर्वत के दर्शन होते हैं। यह पहाड़ खास है, क्योंकि इसके बर्फ पर “ॐ” की आकृति प्राकृतिक रूप से बनती है। यह नज़ारा भक्तों को आध्यात्मिक ऊर्जा और अपार शांति प्रदान करता है।
ओम पर्वत की यात्रा में भी कठिन रास्ते और बर्फीले रास्ते हैं, लेकिन इस पवित्र पर्वत के दर्शन सारी थकान मिटा देते हैं।
काली माता मंदिर और नदी का स्रोत
नाभिधांग से लौटते समय काली माता का मंदिर देखने के लिए कालापानी रुकना यादगार अनुभव था। यही से काली नदी निकलती है। एक धारा के रूप में बहती यह काली नदी आगे चलकर विशाल स्वरूप लेती है।
निष्कर्ष
आदि कैलाश यात्रा सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि एक आध्यात्मिक अन्वेषण है। यह हिमालय की ऊँचाइयों में छिपी पवित्रता का अनुभव देती है। चाहे पार्वती सरोवर हो, आदिकाल से जुड़े गाँव हों, या ओम पर्वत के दर्शन—हर कदम पर यह यात्रा मन को सुकून और आत्मा को शांति प्रदान करती है।
अगर आप शिव के इस दिव्य निवास को देखना चाहते हैं, तो आदि कैलाश यात्रा आपकी जिंदगी की सबसे यादगार यात्राओं में से एक हो सकती है।
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