News4Life

Life Changing News & Views

कहानी उस रंगा-बिल्ला की जिन्होंने नेवी अफसर के बेटे-बेटी की रेप और हत्या की, Gita Chopra and Sanjay Chopra Dhaula Kuan Murder Case

Gita Chopra and Sanjay Chopra Dhaula Kuan Murder Case

Gita Chopra and Sanjay Chopra Dhaula Kuan Murder Case: तारीख 20 फरवरी 2022, दिल्ली के पंजाबी बाग का इलाका, यहाँ पर 22 साल के मोहन सिंह राठौड़ ने अपने ही बहन की ननद के दो बच्चों को किडनैप कर लिया। उसके ननद के घर खुद ही फोन करके 10 लाख फिरौती की मांग भी कर डाली। धमकी भी दी की, ‘पैसा नहीं दिया गया तो बच्चों को खत्म ही कर दूंगा।’ दिल्ली की पुलिस ने थोड़ी तेजी दिखाई और मोहन सिंह राठौर को गिरफ्तार कर लिया।

Table of Contents

Gita Chopra and Sanjay Chopra Dhaula Kuan Murder Case

Gita Chopra and Sanjay Chopra Dhaula Kuan Murder Case

मर्डर मिस्ट्री वाली ये कहानी भी बिलकुल ऐसी है। हालांकि, जिस कहानी की बात आज हम करने वाले जिसमे न फिरौती मांगने का वक्त ही मिला और न जान ही बच सकी। हमारी आज की कहानी है रंगा-बिल्ला की। आइए, हमारे साथ आप भी एकदम शुरू से शुरू कीजिये।

हमारी इस कहानी की शुरुआत  होती है मुंबई से

बात सन 1975 के आसपास की है। कुलजीत सिंह उर्फ रंगा, पहले एक ट्रक चलाता था और ट्रक चलाने में मन नहीं लगा तो मुंबई में टैक्सी चलाने का काम करने लगा। उसका मन तो यहां भी नहीं लग रहा था। उसी समय रंगा ने, शाम सिंह नाम के एक आदमी से कुछ अलग करने बात कही। शाम ने रंगा को जसबीर सिंह के बारे में बताया।

उसने बताया की जसबीर ऐसा है, जसबीर वैसा है। जसबीर के बारे शाम ने रंगा को यह भी बताया की वह दो विदेशियों की भी हत्या कर चुका है। जसबीर बहुत सारा पैसा कमाता है। यह सब सुनकर रंगा का काफी मजा आने लगा उसने शाम से कहा कि हमें भी जसवीर से मिलवाओ। बस क्या थी, शाम सिंह ने जसबीर सिंह उर्फ बिल्ला से रंगा की मुलाकात करवा दी और यहीं से बन गई रंगा और बिल्ला की जोड़ी।

किडपैनिंग और कार चोरी को ही रंगा-बिल्ला ने अपना काम मान लिया था

रंगा और बिल्ला मुंबई में साथ मिलकर कार की चोरी करते और फिर उसे बेच देते थे। छोटे बच्चों को किडनैप करके, उसके घर वालों से पैसा लेकर छोड़ देते। एक तो बार बिल्ला पकड़ा भी गया। पुलिस ने पकड़कर, बिल्ला को ठाणे की जेल भेज दिया। कुछ ही दिन के बाद बिल्ला ठाणे के जेल से ही भाग गया।

बिल्ला के जेल से भागने के बाद, रंगा और बिल्ला ने मुंबई के बजाय दिल्ली और आसपास के इलाकों में अपराध करना शुरू कर दिया। साल 1978 के जून के महीने में, अशोक शर्मा की कार, रंगा-बिल्ला ने अशोका होटल के सामने से चोरी कर ली। इसी गाड़ी से इन दोनों सबसे बड़े अपराध को अंजाम दे दिया।

गीता और संजय सड़क किनारे खड़े थे, ठीक उसी समय, रंगा-बिल्ला की कार आ गई

धौला कुआं की अफसर कॉलोनी में नौसेना के अधिकारी मदन मोहन चोपड़ा रहते थे। उनके दो बच्चे थे. सोलह साल की बेटी, गीता चोपड़ा और 14 साल का बेटा संजय चोपड़ा। गीता, जीसस एंड मैरी कॉलेज में कॉमर्स की पढ़ाई कर रही थी। तो वही संजय, मॉडर्न स्कूल में 10वीं की पढ़ाई के साथ साथ बॉक्सिंग की भी प्रैक्टिस करता था। गीता को ऑल इंडिया रेडियो से एक ऑफर आया। 26 अगस्त 1978 को वेस्टर्न सॉन्गस के एक इन द ग्रूव प्रोग्राम में गीता को हिस्सा लेना था। उस प्रोग्राम को उसी रात 8 बजे ऑन एयर भी होना था।

आल इंडिया रेडियो पर गीता की आवाज सुनाई नहीं दी तो डर गए घर वाले

रेडियो के उस प्रोग्राम में भाग तो सिर्फ गीता को ही लेना था, लेकिन उसके साथ उसका भाई संजय भी जाने के लिए तैयार हो गया। दोनों घर से साथ निकले तो कॉलोनी के ही एक व्यक्ति ने लिफ्ट दे दी और दोनों को गोल डाकखाना तक छोड़ दिया। इस जगह से आकाशवाणी केंद्र थोड़ी ही दूरी पर स्थित था। टैक्सी के इंतजार में गीता और संजय, सड़क किनारे खड़े हो गए।

ठीक उसी समय, रंगा-बिल्ला पीले रंग की एक फिएट कार लेकर आए और इन दोनों को लिफ्ट देने के बहाने अपने कार में बिठा लिया। दूसरी तरफ घर में बैठी गीता की मां रोमा चोपड़ा ने जब 8 बजे रेडियो खोला तो वहां गीता को छोड़कर सभी पार्टिसिपेंट्स की आवाज आ रही थी। गीता की माँ को लगा कि शायद प्रोग्राम ही कैंसिल हो गया।

गीता को कुछ गड़बड़ लगा तो उसने रंगा से कहा, कहां ले जा रहे हो

पहले के सिर्फ दो मिनट में ही रंगा और बिल्ला की नजर आपस में मिली और आंखों-आंखों में ही एक दूसरे को इशारा कर दिया। गाड़ी को आकाशवाणी के बजाय दूसरे रास्ते पर मोड़ दिया दोनों ने। तभी गीता ने कहा, “कहां ले जा रहे हो?

आकाशवाणी तो दूसरे रास्ते पर आता है।” उस समय दोनों ने कुछ भी नहीं बोला और गाड़ी को भगाते रहे। गीता और संजय को पता चल चुका था कि वो दोनों फंस गए हैं। उन्होंने गाड़ी को रुकवाने की जीतोड़ कोशिश की। जिसकी वजह से बिल्ला ने धारदार हथियार से संजय के कंधे और हाथ पर जोरदार हमला कर दिया।

संजय की पूरी शर्ट खून से भीग गई, फिर गीता रंगा के बाल खींच रही थी

संजय की पूरी शर्ट खून से भीग गई थी। वहीं दूसरी तरफ गीता, गाड़ी चला रहे रंगा के बालों को जोर से पकड़कर खींचने लगी थी। रंगा गीता के हाथ हो छुड़ाने की पूरी कोशिश कर रहा था। उस समय रंगा एक हाथ से गाड़ी चला रहा था और दूसरे हाथ से गीता के हाथों पर जोर-जोर से वार भी कर रहा था। तभी अचनाक से गाड़ी आगे जाकर शंकर रोड के भीड़-भाड़ वाले इलाके में रुकी। उस संजय ने शीशे से मुंह सटाकर जोर-जोर से चिल्लाना शुरू कर दिया ताकि कोई तो मदद को आये।

संजय की आवाज, भगवान दास को सुनाई दी। वह उस समय बंगला साहिब गुरुद्वारे से नॉर्थ एवेन्यू की ओर स्कूटर से जा रहा थे। बच्चे को जब चिल्लाते देखा तो भगवान दास ने उसे रोकने की कोशिश की। इन दोनों बचने के लिए एक अन्य व्यक्ति गाड़ी से भी लटक गया, लेकिन रंगा ने गाड़ी फिर भी नहीं रोकी। भगवान दास ने तुरंत पुलिस को सूचना दिया। उन्होंने पुलिस को बताया कि गाड़ी में दो बच्चे बंद हैं और मदद मांग रहे हैं. गाड़ी का नंबर HRK – 8930 है।

उस समय DDA के के एक जूनियर इंजीनियर इंद्रजीत ने भी उस गाड़ी को बच्चों के साथ देखा। इंद्रजीत ने बताया कि लोहिया अस्पताल के पास जब वो गाड़ी तेज रफ्तार से गुजरी और आगे जाकर थोड़ी धीमी हुई तो मैंने देखा कि गाड़ी में दो बच्चे चीख रहे हैं और मदद मांग रहे हैं। मैंने भी उस गाड़ी को रोकने की कोशिश की, लेकिन उस गाड़ी का ड्राइवर सिग्नल तोड़ते हुए वहां से भाग गया। उन्होंने भी गाड़ी का नंबर HRK-8930 बताया।

संजय की हत्या करने के बाद गीता के साथ रंगा और बिल्ला ने रेप किया

रंगा-बिल्ला गाड़ी को भगाते हुए रिज इलाके में पहुंचे। यहां पर उन्होंने गाड़ी रोक दी और सबसे पहले संजय की हत्या वहीं पर कर दिया। बाद में दोनों ने मिलकर गीता के साथ रेप किया। रेप के बाद, रंगा गीता को संजय के लाश की तरफ ले जा रहा था. ठीक उसी समय पीछे से बिल्ला ने अपनी तलवार निकाली और गीता की गर्दन पर जोर से वार कर दिया। गीता ने मौके पर ही दम तोड़ दिया। रंगा-बिल्ला ने लाश को उठाया और सड़क के किनारे फेंक कर वहां से भाग गए।

कुल 140 पुलिस वाले 30 अलग-अलग गाड़ियों से रंगा-बिल्ला को ढूंढ रहे थे

9 बजे पिता जब दोनों के पिता आकाशवाणी के कार्यालय पहुंचे तो उन्हें पता चला कि गीता और संजय तो यहां आए ही नहीं। मदन चोपड़ा हैरान और परेशान हो गए। उसी समय भागकर धौला कुआं थाने पहुंचे। पुलिस से उन्होंने शिकायत की. इनके थाना पहुंचने से पहले ही पुलिस के पास दो बच्चों की किडनैपिंग की शिकायत पहुंच चुकी थी। धौला कुआं थाना के उस वक्त के SHO गंगा स्वरूप ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की।

उस समय चोपड़ा से थाने के ही एक स्टाफ हरभजन सिंह ने कह दिया कि ये मामला हमारे थाना क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आता है.  यह मामला मंदिर मार्ग पुलिस स्टेशन में आता है, इसलिए वहां पर जाकर शिकायत करें।

मदन चोपड़ा के समर्थन में नौसेना के कई और अधिकारी भी थाने में पहुंच गए। तब जाकर पुलिस ने किडनैपिंग का मामला दर्ज किया और तलाश शुरू कर दिया। उस समय करीब 140 पुलिस वाले, 30 अलग-अलग गाड़ियों से दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में संजय और गीता को खोज रहे थे। जब वो दोनों कहीं पर नहीं मिले तो पुलिस ने जंगलों में भी तलाश शुरू की। दिल्ली में पूरा दिन पानी बरसा था, इसलिए अंधेरे में जंगल चलना मुश्किल हो रहा था। काफी कोशिशों के बाद भी पुलिस उन दोनों खोज नहीं पाई।

छह राज्यों की पुलिस दोनों को खोज रही थी, उस समय 2,000 रुपए का इनाम था

27 अगस्त को हरियाणा और UP पुलिस ने भी तलाशी अभियान शुरू कर दी। दिल्ली के अलावा, उत्तराखंड, बिहार, मध्य प्रदेश के साथ-साथ राजस्थान की पुलिस भी गीता और संजय को खोजने में लगा दी गयी। हरियाणा पुलिस ने उस गाड़ी को खोजा, जिस गाड़ी को सबसे पहले भगवान दास ने देखा था। ट्रांसपोर्ट विभाग ने छानबीन के बाद बताया कि HRK-8930 नंबर की गाड़ी के मालिक रविंद्र गुप्ता है. जो गाड़ी मिली वह फिएट नहीं थी। उस गाड़ी की हालत इतनी ज्यादा खराब थी कि दिल्ली तक तो जा ही नहीं सकती थी।

सड़क से सिर्फ 5 मीटर की दूरी पर दो दिन तक पड़ी रही थी गीता की लाश

29 अगस्त को एक चरवाहे ने लाश देखने की सूचना पुलिस को दी। दिल्ली पुलिस वहां तुरंत पहुंच गई। सड़क से महज 5 मीटर दूर पड़ी लाश को बाहर निकाला गया। उस लाश के आसपास सर्च शुरू किया तो 50 मीटर की दूरी पर एक और लाश भी मिली। पुलिस की टीम मदन चोपड़ा को लेकर वहां पर पहुंचे। मदन ने लाश देखते ही पहचान लिया और सिर पर हाथ रखकर वहीं पर बैठ गए। उनके मुंह से उस समय आवाज ही नहीं निकल रही थी। पुलिस वालों ने मदन चोपड़ा को संभाला। जब पोस्टमार्टम की रिपोर्ट आई तो उससे पता चला गीता के शरीर में 5 और संजय के शरीर में 21 गहरे घाव थे।

उस समय के विदेश मंत्री समझाने गए तो लोगों ने उन पर पत्थर फेंका 

गीता और संजय की लाश मिलने के बाद पूरी दिल्ली में हंगामा हो गया। लोकसभा में कांग्रेस के नेताओं ने जनता दल के खिलाफ हाय-हाय के नारे लगाने शुरू कर दिए। उस समय PM मोरारजी देसाई से भी इस्तीफे की मांग की गई। प्रधानमंत्री रहते हुए खुद मोरारजी देसाई, पीड़ित के घर भी गए। तत्कालीन विदेश मंत्री, अटल बिहारी वाजपेयी जब दिल्ली में प्रदर्शन कर रहे लोगों से मिलने पहुंचे तो उनमें से किसी ने उनके ऊपर पत्थर उछाल दिया। पत्थर अटल जी को लगा और उनका कुर्ता खून से पूरा लाल हो गया। सरकार की जब किरकिरी हुई तो फिर पुलिस को भी अलर्ट किया गया।

रंगा-बिल्ला घटना के बाद दिल्ली छोड़कर, मुंबई भागे और फिर आगरा आ गए

8 सितंबर 1978 के दिन रंगा और बिल्ला कालका मेल के उस डिब्बे में चढ़ गए थे जिसमें सारे फौजी सफर कर रहे थे। फौजियों ने उनसे सवाल जवाब किया तो रंगा-बिल्ला धौंस दिखाने लगे। आर्मी के ही एक अफसर लांस नायक ए.वी शेट्टी ने पिछले दिनों इन दोनों की फोटो अखबार में देखी थी. तो उन्होंने दोनों को पहचान लिया। उन्होंने तुरंत पुलिस को सूचना दी और इन दोनों को गिरफ्तार करवा दिया। रंगा-बिल्ला को गिरफ्तार करने के लिए उस समय स्टेशन पर करीब 100 पुलिसकर्मी सादी वर्दी में पहले से ही मौजूद थे।

बिल्ला ने उस समय बोला, मुझे रंगा ने फंसाया है 

दोनों की गिरफ्तारी के बाद इस केस की सुनवाई तेजी से चला। पुलिस टीम ने दोनों से अलग-अलग पूछताछ की। DNA की जांच की गयी। घटनास्थल पर मिले सारे सबूत और DNA रंगा और बिल्ला से मैच कर गए। उस वक़्त सेशन कोर्ट ने दोनों को फांसी की सजा सुनाई थी। रंगा-बिल्ला ने अपने बचाव के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में भी याचिका दायर की। 26 नवंबर 1979 को हाईकोर्ट ने भी सेशन कोर्ट के फांसी की सजा को बरकरार रखी। आगे रंगा ने सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने इस केस खारिज करते हुए कहा कि फांसी से कम कोई सजा नहीं।

रंगा-बिल्ला के पास इसके बाद राष्ट्रपति को दया याचिका भेजने का ही विकल्प था। उस वक्त के राष्ट्रपति नीलम संजीव रेड्डी को दया याचिका इन दोनों ने भेज दी। तत्कालीन राष्ट्रपति ने भी कोर्ट की तरह ही इसे तत्काल ही खारिज कर दिया। फांसी की तारीख तय होना बाकी था। सभी कार्रवाई के दौरान बिल्ला हमेशा उदास ही रहता था और रोता रहता था। सबसे कहता कि वह बिल्कुल निर्दोष है और रंगा ने उसे फंसाया है। तो वहीं रंगा कहता था, “रब सब जानता है, मैंने कुछ किया ही नहीं।”

फांसी के लिए कालू और फकीरा जल्लाद को जिम्मेदारी दी गयी

सारे विकल्प खत्म हुए तो फांसी की तारीख 31 जनवरी 1982, जेल प्रशासन द्वारा तय कर दी गई। फांसी देने के लिए मेरठ के कालू जल्लाद और फरीदकोट के फकीरा जल्लाद को बुलाया गया था। फांसी के की रस्सी बिहार के बक्सर से आई थी। जेल प्रशासन द्वारा दोनों जल्लादों को फांसी से पहले 150 रुपए में ओल्ड मोंक शराब मंगाकर पिलाई। जेल प्रशासन की मानें तो पूरी तरीके से होश में रहने वाला व्यक्ति कभी किसी की जान ले ही नहीं सकता है.

फांसी के दिन तिहाड़ जेल प्रशासन ने दोनों (रंगा-बिला) को तड़के सुबह 5 बजे जगाया। रंगा तो नहाया, लेकिन बिल्ला ने नहाने से बिल्कुल मना कर दिया। उसके बाद दोनों को फांसी के तख्त पर लाया गया। हाथ को पीछे बांध दिया गया और चेहरे को काले कपड़े से बने थैले से ढक दिया गया। फांसी के तख्त पर पहुंचने पर रंगा ने जोर से नारा लगाया था, “जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल।” उसी समय जेल के सुपरिंटेंडेंट, आर्य भूषण शुक्ल ने लाल रुमाल हिलाया और दोनों जल्लादों ने फांसी की लीवर को खींच दिया।

फांसी दिए जाने के दो घंटे बाद भी चल रही थी रंगा की साँसे

फांसी दिए जाने के दो घंटे बाद, जब डॉक्टरों ने चेक किया तो बिल्ला तो मर चुका था. परन्तु रंगा की नाड़ी तभी भी चल रही थी. ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि उसने फांसी के वक्त अपनी सांस रोक ली थी। जेल का एक कर्मचारी फांसी के तख्त से नीचे उतरा और उसने रंगा के पैर खींचे, उसके बाद रंगा की सांसे थम गई। बिल्ला और रंगा के घरवालों ने तो अंतिम संस्कार के लिए भी उन दोनों के लाश को लेने से मना कर दिया था। जेल प्रशासन की तरफ से ही उन दोनों का अंतिम संस्कार किया गया। इसी के साथ न्याय का एक चक्र पूरा हो गया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *