1990 के कोलकाता का मशहूर हेतल पारेख-धनंजय चटर्जी केस जिसमें सजा मिली एक निर्दोष को, Hetal Parekh Murder Case

Hetal Parekh Murder Case

Hetal Parekh Murder Case: निर्भया कांड ऐसा पहला केस नहीं था जहां और हत्या के दोषियों को फांसी की सजा दी गई. बल्कि इससे कुछ साल पहले भी एक ऐसी ही भयावह घटना को अंजाम दिया गया था और इसके भी दोषी को फांसी की सजा मिली थी. मरते वक्त मरने वाले शख्स के आखिरी शब्द थे “आमी निर्दोष” यानी “मैं बेगुनाह हूं”. फांसी की सजा के बाद लोगों ने भी तथ्यों को परखने के बाद कहना शुरू कर दिया कि फांसी पर चढ़ने वाला व्यक्ति असल में निर्दोष था. तो क्या वास्तव में देश की अदालतों से तथ्यों को परखने में गलती हुई और एक निर्दोष व्यक्ति को फांसी पर चढ़ा दिया गया. आखिर क्या है पूरा मामला चलिए जानते हैं सब कुछ एक सिलसिलेवार तरीके से. 

यह अपने आप में अजीब केस था. जहां पहले तो आरोपी को फांसी पर चढ़ाने के लिए लोगों ने प्रदर्शन किया और फिर बाद में फांसी के फंदे पर झूल चुके व्यक्ति को इंसाफ दिलाने के लिए रैलियां निकली.

Hetal Parekh Murder Case

दोस्तों हम कोलकाता के मशहूर धनंजय चैटर्जी-हेतल पारेख केस की बात कर रहे हैं. इस केस का सबसे अहम किरदार है-धनंजय चटर्जी। धनंजय चटर्जी का जन्म 14 अगस्त 19 6 को पश्चिम बंगाल के कुलू दिही में हुआ था. धनंजय 1986 से 87 के आसपास नौकरी की तलाश में कोलकाता आकर एमएस सिक्योरिटी एंड इन्वेस्टिगेटिंग ब्यूरो नाम की एक कंपनी तक पहुंचता है. इस कंपनी में धनंजय को सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी मिल जाती है और उसकी पोस्टिंग साउथ कोलकाता के भवानीपुर में स्थित आनंद अपार्टमेंट में होती है. 

यहां धनंजय चटर्जी की शिफ्ट सुबह 6 बजे से दोपहर 2 बजे तक थी. इसी आनंद अपार्टमेंट के थर्ड फ्लोर पर नागर दस पारेख का परिवार भी रहता था. नागर दस पारेख मूल रूप से गुजरात के रहने वाले थे. मगर काम के सिलसिले में यह कोलकाता आ जाते हैं और यहीं मेहनत करते हुए अपनी सोने चांदी की दुकान बना लेते हैं. बिजनेस चमक जाता है और फिर यह पूरे परिवार के साथ कोलकाता में ही रहने लगते हैं. 

नागर दस पारेख के परिवार में इनके अलावा उनकी पत्नी यशोमती पारेख, इनकी एक बेटी हेतल पारेख और बेटा भावेश पारेख था. 1990 में बेटी हेतल पारेख वैलेंड गोल्डस्मिथ स्कूल में 10थ क्लास की स्टूडेंट थी. 2 मार्च 1990 को हेतल अपनी मां यशोमती से कहती है कि जब वह स्कूल से वापस आ रही थी तो धनंजय ने उससे कुछ ऐसी बातें कही जो उसे अच्छी नहीं लगी. 

इससे पहले भी कई बार हेतल ने अपनी मां से धनंजय की टीजिंग के बारे में शिकायत की थी. हेतल अपनी मां को यह भी बताती है कि धनंजय ने उसे साथ में फिल्म देखने जाने के लिए भी कहा है. यशोमती अपनी बेटी की शिकायत के बारे में अपने पति नागर दस पारेख को बताती हैं और फिर नागर दस 4 मार्च 1990 को धनंजय चटर्जी के खिलाफ एक लिखित शिकायत उस कंपनी को देते हैं जिसके जरिए धनंजय चटर्जी को सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी मिली थी. 

धनंजय चटर्जी के इस बिहेवियर की जानकारी अपार्टमेंट सोसाइटी को भी दी जाती है और फिर अपार्टमेंट सोसाइटी की ओर से कंपनी को गार्ड बदलने को कहा जाता है. सोसाइटी वालों की रिक्वेस्ट पर धनंजय का ट्रांसफर आनंद अपार्टमेंट के पास के ही पारस अपार्टमेंट में कर दिया जाता है और आनंद अपार्टमेंट में धनंजय चटर्जी की जगह विजय थापा नाम के एक व्यक्ति को रखा जाता है. 

धनंजय चटर्जी को आदेश दिया जाता है कि 5 मार्च 1990 से वह पारस अपार्टमेंट में नौकरी करेगा। मगर ऑर्डर को मानने की बजाय अपने रूटीन के मुताबिक 5 मार्च 1990 को भी धनंजय चटर्जी सुबह 6:00 बजे ही ड्यूटी पर आ जाता है और दिन के 2 बजे तक ड्यूटी खत्म करके चला जाता है. इधर जिस नए गार्ड की नौकरी आनंद अपार्टमेंट में लगी थी. वह भी ड्यूटी पर नहीं आता है. 

तारीख याद रखिए 5 मार्च 1990. इधर धनंजय चटर्जी रोज की तरह अपनी ड्यूटी कर रहा था. उधर पारेख परिवार भी रूटीन के मुताबिक अपनी दिनचर्या में लगा हुआ था. रोज की तरह सुबह-सुबह नागर दस अपनी दुकान के लिए निकल जाते हैं. जबकि बेटा कॉलेज चला जाता है. हेतल पारेख का उस दिन एग्जाम था. इसलिए वो भी तय समय पर एग्जाम देने निकल जाती है. 1 बजे के आसपास एग्जाम खत्म होने के बाद हेतल स्कूल से वापस आ जाती हैं. 

अब घर में हेतल और उसकी मां यशोमती थी. यशोमति पारेख रोजाना 5:00 से 5:30 बजे के बीच शाम में पास के ही लक्ष्मी नारायण मंदिर में पूजा करने जाया करती थी. रोज की तरह 5 मार्च 1990 को भी लगभग 5:20 पर यशोमती पूजा करने के लिए मंदिर की तरफ निकल जाती हैं. अब घर में सिर्फ हेतल अकेली बची थी. जैसे ही यशोमती मंदिर के लिए निकलती हैं उसके कुछ ही मिनट बाद धनंजय चटर्जी आनंद अपार्टमेंट में आता है और उस समय ड्यूटी कर रहे नाइट गार्ड दशरथ मुरमू से कहता है कि उसे बिल्डिंग के थर्ड फ्लोर के अपार्टमेंट नंबर 3a में जाना है. 

इसी फ्लैट में पारेख परिवार रहता है. फ्लैट में जाने की वजह पूछने पर धनंजय चटर्जी गार्ड को कहता है कि दरअसल मुझे आज से ही पारस अपार्टमेंट में नौकरी ज्वाइन करनी थी. मगर मैं कुछ निजी कारणों से वहां जवाइन करने की बजाय आनंद अपार्टमेंट में ही ड्यूटी करता रह गया. इसी बात की जानकारी फोन से मुझे ऑफिस में देनी है. धनंजय 5:20 के आसपास फ्लैट के अंदर गया था और अब समय हो रहा था 5:45. 

5:45 के आसपास प्रताप चंद्र पाल नाम का एक व्यक्ति आनंद अपार्टमेंट में आता है. प्रताप चंद्रपाल उसी कंपनी में सुपरवाइजर के तौर पर काम करता था जिसमें धनंजय सिक्योरिटी गार्ड था. प्रताप चंद्रपाल ड्यूटी पर तैनात गार्ड दशरथ मुरमू से पूछता है कि आज सुबह नया गार्ड विजय थापा ड्यूटी पर आया था या नहीं इस पर गार्ड कहता है कि आज विजय तो ड्यूटी पर नहीं आया बल्कि सुबह 6 बजे से 2 बजे तक धनंजय चटर्जी ने ही ड्यूटी की है. 

इतना ही नहीं इस समय भी धनंजय अपार्टमेंट के थर्ड फ्लोर पर ऑफिस में ही फोन करने गया है. इतना सुनते ही सुपरवाइजर गार्ड से कहता है कि अभी धनंजय को नीचे बुलाओ। इस पर गार्ड नीचे से धनंजय को आवाज लगाता है. मामले में आगे दिए गए घाट के बयान के अनुसार जब नीचे खड़ा गार्ड धनंजय को आवाज लगाता है तो वह फ्लैट नंबर 3a की बालकनी से नीचे की तरफ देखता है. इस पर गार्ड धनंजय से कहता है कि जल्दी से नीचे आओ सुपरवाइजर तुमसे मिलने आया है. 

इस पर धनंजय कहता है कि मैं बस अभी आता हूं. फिर कुछ ही पल के अंदर धनंजय लिफ्ट के सहारे नीचे आ जाता है और फिर वो सुपरवाइजर से बात करने लगता है. अगले दिन से नई जगह ज्वाइन करने की हिदायत देने के बाद सुपरवाइजर वहां से निकल जाता है और धनंजय भी अपने रास्ते पर आगे बढ़ जाता है. अब शाम के 6:50 हो चुके थे. 

यशोमती मंदिर में पूजा करके वापस आनंद अपार्टमेंट में आती हैं और अपने फ्लैट तक जाने के लिए लिफ्ट के पास आती हैं. यहां पर यशोमति से लिफ्ट ऑपरेटर रामधन यादव कहता है कि अभी थोड़ी देर पहले ही धनंजय आपके अपार्टमेंट में गया था. इतना सुनते ही यशोमती घबरा जाती हैं क्योंकि पिछले दिनों ही धनंजय के खिलाफ उनकी बेटी हेतल ने शिकायत की थी और उसी की शिकायत के बाद धनंजय का ट्रांसफर दूसरे अपार्टमेंट में कर दिया गया था. 

घबराहट में यशोमती अपने फ्लैट तक आती हैं और बेल बजाती हैं. यशोमती लगातार बेल बजाती हैं. मगर अंदर से कोई जवाब नहीं मिलता है. इसके बाद वह दरवाजा नॉक करती हैं मगर फिर भी कोई दरवाजा नहीं खोलता है. जब वह दरवाजा खोलने की कोशिश करती हैं तो पता चलता है कि दरवाजा अंदर से लॉक्ड है. जवाब ना मिलने पर यशोमती अपार्टमेंट का इमरजेंसी अलार्म बजा देती हैं. 

इस कारण दूसरे फ्लैट में रहने वाले लोग हड़बड़ा कर बाहर निकलते हैं और यशोमती की फ्लैट की तरफ भागते हैं. यह लोग भी दरवाजे को खोलने की कोशिश करते हैं. मगर जब दरवाजा नहीं खुलता है तो अगले ही पल दरवाजे को धक्के मारकर तोड़ दिया जाता है. दरवाजा टूटते ही घर के अंदर सबसे पहले यशोमती जाती हैं उसके पीछे कुछ पड़ोसी भी घर के अंदर दाखिल होते हैं घर में जाते ही देखते हैं कि हेतल का कमरा खुला हुआ है. 

यह सभी हेतल के कमरे की तरफ भागते हैं यहां का नजारा देखकर सभी के पैरों तले जमीन खिसक जाती है. हेतल लगभग नंगी अवस्था में खून से लथपथ फर्श पर पड़ी हुई थी. उसके पूरे शरीर पर घाव के निशान थे उसके चेहरे हाथ और निजी अंग पर भी खून के धब्बे थे. हेतल का कपड़ा भी खून से सना हुआ था. कमरे के अंदर का पूरा सामान इधर-उधर बिखरा पड़ा था. कमरे में मौजूद लोग हेतल को आवाज देते हैं और उसे जगाने की कोशिश करते हैं मगर हेतल बेसुध पड़ी हुई थी. 

हेतल की इस हालत को देखते हुए उसकी मां उसे लगभग घसीटते हुए कमरे से बाहर लेकर आती है और फिर बाकी लोगों की मदद से उसे लिफ्ट में लेकर नीचे आती है. अब तक कुछ पड़ोसियों ने पास में ही रहने वाले एक डॉक्टर को भी बुला लिया था. लिफ्ट में ही डॉक्टर हेतल का परीक्षण करते हैं और उसे मृत घोषित कर देते हैं. इसके बाद फिर से कुछ लोग हेतल को कमरे में लाकर रख देते हैं और उसके शरीर पर खून से पूरी तरह भीगा हुआ चादर ही डाल दिया जाता है. 

इस भीड़ में से कुछ लोग हेतल के भाई भावेश को इस घटना की जानकारी देते हैं और वह लगभग 7:00 बजे घर पर पहुंच जाता है. थोड़ी देर बाद इस बात की जानकारी हेतल के पिता को भी दे दी जाती है और वह 8:30 बजे घर पहुंच जाते हैं. हैरत की बात थी कि हेतल की मौत की पुष्टि लगभग 6:30 बजे के आसपास हो गई थी. इसके बाद भाई और पिता भी बाहर से घर में आ चुके थे. मगर अब तक किसी ने पुलिस को जानकारी नहीं दी थी. 

जब हेतल के पिता वापस घर आ जाते हैं तब रात के लगभग 9:10 बजे फोन के जरिए भवानीपुर पुलिस स्टेशन को घटना की जानकारी दी जाती है. घटना की जानकारी मिलते ही सब इंस्पेक्टर गुरुपाड़ा सोम कुछ और पुलिस वालों के साथ घटना स्थल पर पहुंच जाते हैं. यहां हेतल की मां के बयान के आधार पर एफआईआर दर्ज की जाती है. बयान में यशोमती बताती हैं कि इस घर में दाखिल होने वाला आखिरी इंसान इस अपार्टमेंट का गार्ड धनंजय चटर्जी था. उसी ने शायद पहले बेटी के साथ जबरदस्ती की और फिर उसकी हत्या कर दी. 

इस बयान के आधार पर धनंजय चटर्जी को प्राइम सस्पेक्ट मानते हुए उसके खिलाफ मामला दर्ज कर लिया जाता है और पुलिस धनंजय के तलाश में लग जाती है. इसके अलावा हेतल के शव को भी कब्जे में लेकर उसे पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया जाता है. इसके अलावा क्राइम सीन की भी तलाशी ली जाती है. यहां से पुलिस वालों को एक टूटा हुआ गले का चेन, एक पीले कलर का शर्ट का बटन, एक फटी हुई पैंटी इत्यादि मिलती है. जिसे सबूत के तौर पर पुलिस वाले जब्त करके अपने साथ ले जाते हैं. 

यहां कुछ गवाहों के भी बयान दर्ज किए जाते हैं. मामला दर्ज करने के बाद रात में ही पुलिस वाले प्राइम सस्पेक्ट धनंजय चटर्जी की तलाश में लग जाते हैं. मगर धनंजय उस जगह पर नहीं मिलता है जहां वह अक्सर रात में रुका करता था. 6 तारीख को भी धनंजय को ढूंढने की कोशिश होती है. मगर वह नहीं मिलता है. पुलिस एक दूसरे अपार्टमेंट में भी जाती है. जहां रात में धनंजय ड्यूटी किया करता था. मगर वहां भी धनंजय नहीं मिलता है. 

रूटीन के मुताबिक धनंजय को 6 तारीख से पारस अपार्टमेंट में ड्यूटी जवाइन करनी थी. मगर वह पारस अपार्टमेंट में भी ड्यूटी जवाइन नहीं करता है और लापता ही रहता है. पुलिस इधर-उधर तलाश में लगी रहती है. मगर कहीं भी धनंजय का पता नहीं चलता है. फाइनली पुलिस धनंजय को ढूंढते हुए उसके गांव पहुंचती है. यहां से 12 मार्च 1990 को धनंजय को गिरफ्तार कर लिया जाता है. 

धनंजय को गिरफ्तार करने के अलावा उसके घर की तलाशी ली जाती है. यहां से पुलिस को एक पेपर में लिपटा हुआ पीले कलर का शर्ट और ट्राउजर भी बरामद होता है. गवाहों के बयान के अनुसार धनंजय ने घटना वाले दिन इसी रंग का शर्ट और ट्राउजर पहना हुआ था. हेतल के परिवार वालों ने घटना वाले दिन बताया था कि उनके घर से एक रिचो कंपनी का रिस्ट वॉच भी गायब हुआ है. पुलिस को तलाशी में वह रिस्ट वॉच भी धनंजय के घर से बरामद होती है. 

धनंजय को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस उसका भी बयान दर्ज कर करती है. अपने बयान में धनंजय खुद को निर्दोष बताता है और कहता है कि उसे इन सब के बारे में कुछ भी नहीं पता और उसे फंसाया जाता है जब पुलिस धनंजय से गायब होने के बारे में पूछती है कि जब तुमने कुछ नहीं किया तो अचानक से गायब कहां हो गए तो इस पर धनंजय कहता है कि असल में उसके घर पर उसके छोटे भाई का जनेऊ संस्कार होना था. इसी में शामिल होने के लिए वह अचानक 5 मार्च को अपनी ड्यूटी खत्म करने के बाद फिल्म देखने गया और फिर वहां से निकलने के बाद फल खरीदे और वहां से अपने घर चला आया. 

धनंजय यह भी कहता है कि जो घड़ी उसके पास से बरामद हुई है उसके बारे में उसे कुछ भी नहीं पता. धनंजय चटर्जी भले ही खुद को बेगुनाह बताता है. मगर अपनी बेगुनाही का एक भी सबूत पेश नहीं करता है. दूसरी तरफ हेतल का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टर दीपंकर गुहा बताते हैं कि हेतल के शरीर पर 21 जगहों पर चाकू के गहरे जख्म के निशान थे. यानी हेतल की हत्या बड़ी ही बेरहमी से चाकू से गोद कर की गई थी. 

पोस्टमार्टम रिपोर्ट के मुताबिक हेतल का गला भी दबाया गया था. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर डॉक्टर यह भी कहते हैं कि हत्या करने से पहले हेतल के साथ संबंध भी बनाया गया था. हेतल के चेहरे पर भी जख्म के निशान थे उसके नाखून में कुछ टिशू और बाल भी फसे हुए थे. ऐसा लग रहा था कि जैसे हेतल ने अपने हत्यारे के साथ हाथापाई की थी. 

भले ही धनंजय चटर्जी नेने इस पूरे मामले में खुद को बेगुनाह बताया था मगर जो सरकमस्टेंशियल एविडेंस थे वह इस बात की ओर इशारा कर रहे थे कि इस घटना में कहीं ना कहीं धनंजय चटर्जी का हाथ जरूर है. इस बात को और बल तब मिला जब पुलिस द्वारा हेतल के घर से बरामद बटन के शर्ट का मिलन धनंजय द्वारा पहने गए शर्ट से हो जाता है. 

इन सभी सबूतों और गवाहों के बयानों इत्यादि के आधार पर धनंजय चटर्जी को आरोपी बनाते हुए निचली अदालत में मामले की सुनवाई शुरू होती है. अदालत में सबसे पहले सवाल उठता है कि हेतल की हत्या का मोटिव क्या था. बयानों के आधार पर रिपोर्ट में बताया जाता है कि पिछले दिनों हेतल ने धनंजय की शिकायत की थी और इस शिकायत के आधार पर धनंजय का ट्रांसफर कर दिया गया. 

बस इसी कारण गुस्से में आकर धनंजय ने हेतल के साथ गड़बड़ होता की और फिर उसकी हत्या कर दी. लंबे समय तक इस मामले की सुनवाई निचली अदालत में चलती रहती है और फिर फाइनली गवाहों और सबूतों को मद्देनजर रखते हुए कोर्ट द्वारा धनंजय चटर्जी को हेतल की हत्या और बलात्कार के जुर्म में मौत की सजा सुनाई जाती है. इस फैसले के खिलाफ धनंजय चटर्जी कोलकाता हाई कोर्ट में अपील करता है. मगर यहां भी पूरी सुनवाई के बाद हाई कोर्ट द्वारा निचली अदालत द्वारा दी गई सजा को बरकरार रखा जाता है. 

कोलकाता हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ धनंजय सुप्रीम कोर्ट में अपील करता है. मगर सुप्रीम कोर्ट में भी धनंजय की फांसी की सजा बरकरार रहती है. अदालत से फांसी की सजा मिलने के बाद सजा के इंतजार में धनंजय 14 साल जेल में बिता देता है फिर फाइनली 2004 में 25 जून को फांसी का दिन तय कर दिया जाता है. मगर फांसी से ठीक एक दिन पहले 24 जून को धनंजय तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के पास मर्सी पेटीशन दायर कर देता है इस कारण 25 जून 2004 को फांसी पर लटकाने का फैसला डाल दिया जाता है. 

जब धनंजय चटर्जी को फांसी पर नहीं लटकाया जाता है तो बंगाल में धनंजय के खिलाफ रैलियां निकाली जाने लगती हैं और धनंजय को जल्द से जल्द फांसी पर लटकाने की मांग तेज होने लगती है. यहां तक कि बंगाल के तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्ध देव भट्टाचार्य की पत्नी मीरा भट्टाचार्य भी फांसी के समर्थन में कैंपेन चलाती हैं. इन सबके बीच धनंजय की मर्सी पेटीशन राष्ट्रपति द्वारा खारिज कर दी जाती है और तय होता है कि 14 अगस्त 2004 को धनंजय चटर्जी को फांसी पर लटका दिया जाएगा। 

फांसी का दिन तय करने के बाद एक बार फिर से लग रहा था कि फांसी को टालना पड़ेगा क्योंकि उस वक्त कोलकाता में फांसी देने के लिए नाटा मलिक नाम के एक व्यक्ति को नौकरी पर रखा गया था. मगर वह कुछ महीनों पहले ही रिटायर हो चुका था. अब जब नाटा मलिक से धनंजय को फांसी देने के लिए संपर्क किया जाता है तो नाटा मलिक कहता है कि पहले उसके बेटे को सरकारी नौकरी दी जाए तभी वह फांसी देगा। शुरुआती नानुकुर के बाद फाइनली नाटा मलिक की बात मान ली जाती है और तब जाकर नाटा मलिक धनंजय चटर्जी को फांसी पर लटकाने के लिए तैयार होता है. 

अब तारीख थी 14 अगस्त 2004 सुबह के लगभग 4 बजे थे धनंजय को फांसी पर लटकाने की सारी तैयारियां पूरी हो चुकी थी और फिर जज का इशारा मिलते ही नाटा मलिक लीवर खींचता है और अपने जन्मदिन के दिन ही धनंजय चटर्जी फांसी के फंदे पर झूल जाता है. आधे घंटे तक उसका शरीर यूं ही लटकता रहता है और फिर डॉक्टर कंफर्म कर देते हैं कि धनंजय की मौत हो गई है. धनंजय की मौत के बाद धनंजय का परिवार धनंजय के शरीर को लेने नहीं आता है. इस कारण जेल में ही उसका अंतिम संस्कार कर दिया जाता है. 

नाटा मलिक को फांसी पर लटकाने वाले जल्लाद के मुताबिक फांसी पर लटकने से ठीक पहले धनंजय चटर्जी के आखिरी शब्द थे मैं निर्दोष हूं. मुझे सब मिलकर मार रहे हैं. तो क्या सच में धनंजय निर्दोष था. इसी बात का पता लगाने के लिए इंडियन स्टेटिस्टिक्स सेन गुप्ता और प्रबल चौधरी ने इस केस के फैक्ट्स को फिर से परखने का फैसला किया और फिर 2015 में उन्होंने अपने इन्वेस्टिगेशन के आधार पर एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की.

जिसने साबित किया कि इस केस में कई खामियां थी जैसे इस केस में लिफ्ट ऑपरेटर की गवाही बहुत अहम थी. पहले पुलिस में उसने गवाही दी कि उसने धनंजय को 5:20 पर लिफ्ट में जाते देखा। मगर जैसे-जैसे अदालत की सुनवाई आगे बढ़ी तो वह अपने बयान से बदल गया और उसने कहा कि उसने धनंजय को लिफ्ट से ऊपर जाते हुए नहीं देखा था. बल्कि जब वह नीचे आया तब उसने उसे देखा। 

इसलिए वह नहीं कह सकता कि धनंजय कितने बजे अंदर गया था. क्राइम सीन से घटना वाले दिन पुलिस ने एक गले की चेन बरामद की थी पुलिस ने बताया कि यह चेन धनंजय की है. मगर आगे चलकर खुलासा हुआ कि वह चेन अपार्टमेंट के दूसरे स्टाफ का था. जिसने दावा किया कि यह गले की चेन उसने धनंजय को गिफ्ट की थी. 

दूसरे स्टाफ के दावे में कितनी सच्चाई थी इस बात को अदालत में नहीं परखा गया. हेतल के घर वालों ने दावा किया था कि उनके घर से धनंजय एक घड़ी चुराकर ले गया था. वह घड़ी पुलिस वालों ने धनंजय की गिरफ्तारी के दिन उसके घर से बरामद भी की थी. मगर क्या यह घड़ी वास्तव में वह घड़ी थी जो घड़ी हेतल के घर से गायब हुई थी इस सच्चाई का पता लगाना आसान था. 

अगर पुलिस उस घड़ी के सीरियल नंबर का मिलन उस दुकान से करती जहां से हेतल के घर वालों ने वह घड़ी खरीदी थी तो आसानी से पता लग जाता कि धनंजय के पास से बरामद घड़ी चुराई वाली घड़ी है या कोई और घड़ी है. मगर पुलिस वालों ने ऐसा कभी नहीं किया। एक और सवाल उठाया गया कि घर में कई और दूसरी कीमती चीजें थी तो धनंजय भला केवल घड़ी ही क्यों चुराई इसका जवाब किसी के पास नहीं है. 

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक हेतल के शरीर पर चाकुओं के वार के 21 निशान थे मगर पुलिस ने ना तो कभी मर्डर वेपन बरामद किया और ना ही कभी कोई भी मर्डर वेपन अदालत में पेश किया गया. मतलब विना मर्डर वेपन के ही धनंजय को फांसी दे दी गई. जबकि यह अहम सबूत था. जिसने भी हेतल को उस शाम पहली बार देखा सभी ने गवाही दी कि हेतल का पूरा शरीर लहूलुहान था. कमरे में चारों तरफ खून बिखरा हुआ था. चादर भी खून से लथपथ थी. 

मगर दूसरी तरफ उस शाम धनंजय चटर्जी को देखने वाले लिफ्ट ऑपरेटर गार्ड या फिर सुपरवाइजर में से किसी ने भी यह नहीं कहा कि धनंजय के शरीर पर खून के एक भी निशान थे. यहां तक कि पुलिस ने जो शर्ट और ट्राउजर धनंजय के घर से बरामद की थी उस पर भी खून का कोई निशान नहीं पाया गया. फॉरेंसिक जांच में धनंजय के कपड़ों से भी हेतल के ना तो फिंगरप्रिंट्स मिले और ना ही किसी तरीके का कोई डीएनए सैंपल बरामद किया गया तो आखिर यह कैसे संभव है कि खून पूरे कमरे में बिखर गया मगर हत्या करने वाले धनंजय चटर्जी के शर्ट पर खून का एक भी कतरा नहीं आया. 

एक्सपर्ट्स ने यह भी कहा कि यह भी नहीं कहा जा सकता है कि धनंजय ने कत्ल करते समय कोई और कपड़ा पहना था क्योंकि गवाहों के मुताबिक धनंजय जो कपड़ा पहनकर अंदर गया था वही कपड़ा पहनकर बाहर आया था. एक्सपर्ट्स के मुताबिक अगर धनंजय ने वास्तव में हत्या की होती तो आखिर वह उस शर्ट और ट्राउजर को संभाल कर क्यों रखता। जबकि इस मामले में शर्ट और ट्राउजर अहम सबूत होते। पूरे घर में या हेतल के शरीर पर कहीं भी धनंजय के फिंगरप्रिंट्स नहीं मिले थे. 

आईएसआई की रिपोर्ट में पुलिस की लापरवाही भी सामने आई. रिपोर्ट के मुताबिक पुलिस ने जो एविडेंस रिपोर्ट बनाई थी उस पर परिवार के किसी सदस्य का सिग्नेचर नहीं था. बल्कि उस अपार्टमेंट में जो चाय पहुंचाने का काम करता था उसका सिग्नेचर करवाया गया था. 

शुरू में धनंजय के खिलाफ जिस रिटन कंप्लेंट की बात सामने आई थी वह कंप्लेंट कॉपी भी कभी सामने नहीं आई. पुलिस और अदालत के सामने शाम के वक्त ड्यूटी कर रहे गार्ड ने गवाही दी थी कि उसने सुपरवाइजर के कहने पर 5:45 पर धनंजय को आवाज लगाई। इस पर धनंजय ने अपार्टमेंट के बालकनी से नीचे झांका था. मगर आगे चलकर पता चला कि उस बालकनी से कोई नीचे की तरफ झांक ही नहीं सकता था क्योंकि उस बालकनी में लोहे का सरिया लगा हुआ था और नीचे खड़ा व्यक्ति बालकनी में खड़े व्यक्ति को देख नहीं सकता था तो गार्ड का यह बयान फर्जी था. मगर अदालत ने इस बात पर भी ध्यान नहीं दिया। 

आईएसआई की रिपोर्ट में हेतल की मां पर भी कई गंभीर सवाल उठाए गए जैसे कि हेतल की मां ने दावा किया कि वह 5:20 पर मंदिर के लिए निकलती थी. मगर लिफ्ट ऑपरेटर ने कोर्ट में गवाही दी कि वह 5:20 पर नहीं बल्कि उस दिन 4:10 पर ही घर से मंदिर के लिए निकल गई थी. इस जल्दबाजी का कारण क्या था किसी को नहीं पता. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कहा गया कि मरने से पहले हेतल ने संभवत अपने मडरर के साथ हाथापाई की थी. इसी कारण हेतल के नाखून में से टिशू के सैंपल और बाल के नमूने बरामद किए गए थे. 

यह सैंपल किसके थे इस बात का पता आसानी से डीएनए जांच के जरिए किया जा सकता था. मगर डीएनए जांच कभी नहीं की गई. यहां तक कि हेतल के अंडर गारमेंट से सेमन के सैंपल भी कलेक्ट किए गए थे. यह सेमन के सैंपल वास्तव में धनंजय के थे या नहीं इसका पता भी डीएनए से लगाया जा सकता था. मगर यह भी नहीं किया गया. यह कितनी बड़ी लापरवाही थी. इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं. 

हेतल की मां के बयान के अनुसार जब वह थर्ड फ्लोर पर गई तो उसके फ्लैट का दरवाजा अंदर से बंद था. अब अगर मान लिया जाए कि धनंजय हेतल की हत्या करके निकल गया था तो आखिर अंदर से दरवाजा किसने बंद किया। जबकि उस समय घर के अंदर हेतल के अलावा कोई नहीं था और हेतल खुद दरवाजा बंद नहीं कर सकती थी क्योंकि उसकी हत्या हो चुकी थी. 

धनंजय के केस में दूसरे गार्ड की गवाही काफी अहम रही. लेकिन आईएसआई की रिपोर्ट में सामने आया कि दरअसल दूसरे गार्ड और धनंजय का पहले से लफड़ा चल रहा था. इसलिए कहा गया कि शायद मौके का फायदा उठाकर गार्ड ने जानबूझ पूछकर धनंजय के खिलाफ झूठी गवाही दी. यह कॉन्फ्लेट ऑफ इंटरेस्ट का मामला था. मगर अदालत ने इस बात को भी नजर अंदाज कर दिया। 

शुरुआती रिपोर्ट में यह कहा गया था कि हेतल के साथ बलात्कार किया गया है. मगर जब आगे जांच की गई तो यह कहा गया कि हेतल के साथ जबरदस्ती नहीं की गई थी. बल्कि यह मर्जी से बनाया गया संबंध लगता था क्योंकि वजाइनल एरिया में किसी तरीके की कोई चोट या जबरदस्ती करने के निशान नहीं थे जो अक्सर बलात्कार के मामलों में देखने को मिलते हैं. इन फैक्ट्स को भी पूरी सुनवाई के दौरान नजरअंदाज किया गया. 

इन सब से बढ़कर हेतल की मौत के बाद सभी को खबर दे दी गई. मगर पुलिस को खबर करने में आखिर तीन घंटे की देरी क्यों की गई. यह बात आज तक सामने नहीं आ सकी. क्या यह देरी अहम सबूतों को मिटाने के लिए हुई थी. 

हेतल की मौत के बाद जब मामले की सुनवाई अदालत में शुरू हुई तो कई बार जब गवाही के लिए हेतल की मां को अदालत में बुलाया जाता था तो तो वो अदालत में पेश नहीं होती थी. यहां तक कि कुछ ही समय बाद हेतल की मां ने कोलकाता छोड़ दिया और हेतल के पिता और भाई भी 6 महीने के अंदर-अंदर अपना जमा जमाया कारोबार बंद करके और फ्लैट बेचकर हमेशा के लिए कोलकाता छोड़कर गुजरात चले गए. 

कुल मिलाकर सरकमस्टेंशियल एविडेंस को देखा जाए तो लगता है कि धनंजय ने ही इस घटना को अंजाम दिया होगा। लेकिन दूसरी तरफ आईएसआई की रिपोर्ट में उठाए गए सवालों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि किस तरह फैक्ट्स को निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक में नजरअंदाज किया गया. यही वजह थी कि आईएसआई ने हेतल की मौत के मामले में ऑनर किलिंग की आशंका जताई। मगर इस नजरिए से कभी जांच नहीं हुई. 

यही वजह थी कि 2015 में आईएसआई की रिपोर्ट सामने आने के बाद धनंजय चटर्जी के समर्थन में रैलियां निकाली गई. यहां तक कि इस केस को फिर से खोलने की भी मांग की गई मगर उन मांगों पर कभी ध्यान नहीं दिया गया. दोस्तों जो होना था वह तो हो चुका है. हम सभी अदालत के फैसले का सम्मान करते हैं. फिर भी आपके अनुसार इस पूरे केस में क्या कुछ हुआ होगा कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं. 

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