Nepali Plane Hijack: अमूमन विमान hijacking जैसी घटनाओं को आतंकियों द्वारा ही अंजाम दिया जाता है और पकड़े जाने पर उन आतंकियों को कड़ी से कड़ी सजा भी दी जाती है मगर आज हम आपको विमान hijacking की एक ऐसी सच्ची घटना के बारे में बताने जा रहे है जहाँ विमान का अपहरण करने वाले अपराधियों को ना सिर्फ jail से छोड़ा गया बल्कि वो अपराधी आगे चलकर देश के प्रधानमंत्री तक बने और वर्षों तक पद पर रहे इतना ही एक नहीं बल्कि हाईजैकिंग में शामिल दो दो अपराधी प्रधानमंत्री बने.
इस विमान हाईजैकिंग से भारत का भी गहरा रिश्ता था. तो आखिर ये घटना कहाँ की है. कौन विमान हाइजैकर था. जो आगे चलकर प्रधानमंत्री तक बना और इस विमान अपहरण ही वजह क्या थी. चलिए जानते हैं सब कुछ हमारे इस नए स्टोरी में.
Nepali Plane Hijack
तारिख थी 10 जून 1973, तय शेड्यूल के मुताबिक रॉयल नेपाल एयरलाइंस का एक 19 सीटर पैसेंजर एयरक्राफ्ट 19 यात्रियों को लेकर नेपाल के विराटनगर एयरपोर्ट से काठमांडू के त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट तक ले जाने के लिए तैयार था. इस फ्लाइट में 19 पैसेंजर के अलावा 3 क्रू मेंबर थे. 19 पैसेंजर में से एक पैसेंजर बेहद खास था. वो थी बॉलीवुड में उस समय खास पहचान रखने वाली माला सिन्हा।
सारा फॉर्मेलिटी पूरी हो जाने के बाद finaly 8:30 बजे फ्लाइट अपनी मंजिल की और निकल पड़ती है. फ्लाइट के टेक ऑफ के बाद कुछ मिनट बीत जाते हैं. तो फ्लाइट के अंदर मौजूद यात्री भी निश्चिंत हो जाते हैं। और अपनी मंजिल आने का इंतजार करने लगते हैं। मगर उन्हें कहाँ पता था कि उनका ये इंतजार उम्मीद से कहीं ज्यादा लंबा होने वाला है और अगले ही कुछ मिनट में जहाज में एक बड़ी अनहोनी होने वाली है।
दरअसल जब जहाज को take off किए हुए महज पांच मिनट ही होते हैं कि अचानक से तीन यात्री अपनी-अपनी seat से उठते हैं और सीधे cockpit में जाकर pilot के सर पर पिस्तौल तान देते हैं। इसके अलावा अन्य व्यक्ति हाथ में जिंदा hand grenade लेकर जहाज के अंदर खड़ा हो जाता है वो व्यक्ति चिल्लाते हुए कहता है कि अगर किसी ने जरा सी भी चालाकी की तो सब के सब मारे जाओगे इसलिए बेहतर है कि सब खामोश बैठे रहो इस स्थिति की गंभीरता को देखते हुए सभी यात्री खामोश रहते हैं
यात्रियों पर पूरी तरीके से नियंत्रण स्थापित करने के बाद अब ये hijacker pilot को डरा धमकाकर अपने हिसाब से जहाज उड़ाने का दबाव बनाने लगते हैं हालात को देखते हुए pilot भी इन hijackers की बात मानने को तैयार हो जाते है क्योंकि इन hijackers के पास बंदूक के साथ साथ बम भी था.
अगले ही पल एक hijacker अपनी pocket से कागज़ का एक टुकड़ा निकालता है और जहाज को उस कागज़ के टुकड़े पर बने नक्शे के हिसाब से उड़ाने के लिए कहता है नक्शे से समझ आ रहा था कि जहाज का रुख मोड़कर अब Viratnagar से Kathmandu की बजाय Viratnagar से Bihar की तरफ करना था आपने सही सुना Bihar के Forbisganj की तरफ.
ज्यादातर लोग समझ पा रहे थे कि आखिर इस hijacking का मकसद क्या है और flight को बिहार ले जाने का क्या मतलब है. फिर भी hijacker के कहने पर अब जहाज को कागज पर बने map के हिसाब से उड़ाते हुए Bihar की तरफ मोड़ दिया जाता है और कुछ ही समय बाद जहाज बिहार के Forbesganj के आसमान में उड़ने लगता है. इतना सब कुछ हो रहा था मगर hijacker ने अब तक अपनी कोई demand भी नहीं बताई थी और ना ही किसी यात्री को कोई नुकसान पहुँचाया था.
इसलिए लोग समझ नहीं पा रहे थे कि इस जहाज को hijack करने का मकसद क्या है. अब तक जहाज के अंदर मौजूद लोगों के सामने जहाज hijack करने के मकसद स्पष्ट भी नहीं हो पाया था कि अब उनके सामने एक नई समस्या आ गयी थी और समस्या की वजह थी hijacker की नयी demand. अब hijackers pilot पर जहाज को Forbesganj के एक घास से भरे मैदान में उतारने के लिए कहते है ये खतरे से खाली नहीं था
pilot उन लोगों को समझाने की कोशिश करते है कि अगर हम इस तरीके से जहाज को एक मैदान में उतारने की कोशिश करेंगे तो जहाज दुर्घटनाग्रस्त हो सकता है. मगर समझाने के बावजूद hijackers नहीं मानते हैं और जहाज को उसी खाली मैदान में उतारने की जिद करने लगते हैं. जब कोई रास्ता नजर नहीं आता है तो आखिरकार pilot जहाज को उसी घास वाले मैदान में उतारने के लिए राज़ी हो जाते हैं. अब जहाज मैदान में उतर चूका था.
लेकिन अब भी pilot और दूसरे लोग नहीं समझ पा रहे थे कि जहाज को यहाँ उतारने का मकसद क्या हैं और hijackers का अगला move क्या होने वाला हैं. खैर जब जहाज land हो जाता हैं तो कुछ लोग भागते हुए जहाज के पास आते हैं और जहाज के पिछले हिस्से में मौजूद तीन बक्सों को जल्द से जल्द वहाँ से उतार कर पहले से मैदान में खड़ी एक jeep पर डालते हैं और वहाँ से सभी रफू चक्कर हो जाते हैं. वो तीनों hijackers भी जहाज से उतर जाते हैं.
मतलब यहाँ जहाज को hijack करने का मकसद पूरा हो चूका था. सभी यात्री और crew members सुरक्षित थे. तो आखिर जब इन अपहरणकर्ताओं ने ना तो किसी pilot को ना ही किसी यात्री को नुकसान पहुँचाया और ना ही अपनी कोई बात मनवाई तो आखिर इस hijack का मतलब क्या था? दरअसल मतलब जहाज से उतारे गए उस तीन बक्सों से था।
जहाज से जो तीन बक्से उतारे गए थे। उसमें तीस लाख भारतीय रूपए थे। तीस लाख रूपया आज भी कोई छोटी रकम नहीं है। तब तो उसकी value और भी ज्यादा थी। तो आखिर ये तीस लाख रूपए किसके थे और जहाज में क्या कर रहे थे? ये तीस लाख भारतीय रूपए नेपाल सरकार के थे। जो भारत से नेपाल लाए जा रहे थे। पहले ये पैसा बिहार के अररिया से सड़क के माध्यम से विराट नगर पहुंचाया गया और विराट नगर से इस इसी जहाज के जरिए तीन बक्सों में रखकर काठमांडू पहुंचाना था और वहां से ये पैसा नेपाल के राष्ट्रीय बैंक में चला जाता।
मगर ऐसा कुछ हो नहीं सका क्योंकि रास्ते से ही ये पैसे उड़ा लिए गए। ये नेपाल के इतिहास की पहली hijacking और पहली इतनी बड़ी चोरी थी पूरे नेपाल में हंगामा मच चूका था। और चूँकि इतने बड़े कांड को भारत में अंजाम दिया गया था। इसलिए भारतीय सरकार भी एड़ी चोटी का जोर लगाकर जल्द से जल्द
इस अपहरण कांड में शामिल अपराधी को पकड़ना चाहती थी. इस पूरे मामले की जांच नेपाल के साथ-साथ
भारत में भी शुरू होती है.
कुछ ही investigation के बाद जहाज के अंदर मौजूद hijackers की पहचान बसंत भट्टा राय दुर्गा सुवेदी और नागेंद्र प्रसाद दुंगेल के तौर पर की जाती है. शुरुआती जांच में ही खुलासा होता है कि इस लूट कांड को नेपाल कांग्रेस से जुड़े लोगों ने अंजाम दिया है. समय के साथ जाँच आगे बढ़ती है तो इस लूटकांड कांड में शामिल अपराधियों की list भी लंबी होती चली जाती है. इस पूरी लूटकांड का mastermind गिरजा प्रसाद कोइराला को बताया जाता है.
नेपाल पुलिस के हाथ तो खाली रहते हैं. मगर भारतीय पुलिस ताबड़तोड़ छापेमारी करते हुए ही कुछ ही महीनों के अंदर कई अहम आरोपियों को गिरफ्तार कर लेती है और फिर उनसे पूछताछ का सिलसिला शुरू होता है। पूछताछ में कुछ हैरान कर देने वाले खुलासे होते हैं।
दरअसल ये वो समय था जब नेपाल में लोकतंत्र खत्म हो चुका था और सारा system नेपाल के राजा अपने हाथ में ले चुके थे. सभी तरह के राजनीतिक पार्टियों को बंद कर दिया गया था और पंचायत स्तर से शासन चल रही थी ये बात लोकतंत्र के हिमायतियों को पसंद नहीं आयी और उन्होंने नेपाली राजा के खिलाफ हथियार उठाने का फैसला किया और संघर्ष के रास्ते पर उतर आए इस movement को बड़े स्तर पर lead कर रहे थे Girija Prasad Koirala और नेपाली Congress के नेतृत्व में ये पूरा moment चल रहा था.
लंबे समय तक ये movement लोगों द्वारा दिए गए चंदे के पैसों से चल रहा था. मगर एक समय ऐसा आया जब विद्रोहियों के पास पैसों की भारी कमी हो गयी और ऐसा लगने लगा की इन लोगों का लोकतंत्र के समर्थन में चलाया जा रहा विरोध पैसों की कमी की वजह से बंद हो जाएगा. ऐसे में Girija Prasad Koirala ने पैसे जुटाने के तरीकों पर काम करना शुरू कर दिया और एक के बाद एक लोगों से मिलने लगे.
जब Girija Prasad Koirala पैसे जुटाने की कोशिश में लगे हुए थे इसी दौरान उनकी मुलाकात Durga Subedi नाम के एक व्यक्ति से हुई. Durga Subedi भी लोकतंत्र के हिमायती थे और खुलकर Nepal के Mahendra परिवार का विरोध करते थे. इसी कारण इन्हें में भी डाल दिया गया था jail में रहते हुए Durga कुछ वर्षों पहले जापान में पैसों के लिए अपहरण किए गए जहाज अपहरण कांड के बारे में पढ़ते हैं उन्हें ये idea पसंद आता है और वो यही idea Girija Prasad Koirala को भी देते हैं कि अगर हमने सरकार का पैसा लूट लिया तो फिर हमारी समस्या कम हो सकती है
Girija Prasad Koirala को भी ये idea अच्छा लगता है और अब ये दोनों मिलकर एक जहाज hijacking के जरिए पैसा निकालने की फिराक में लग जाते है इसी कोशिश के तहत इन दोनों की मुलाकात Madan Aryal नाम के एक व्यक्ति से होती है जो Viratnagar में नेपाली राष्ट्रीय bank में काम करते थे Madan भी लोकतंत्र के समर्थक थे ऐसे में Girija Prasad Koirala Madan को अपने plan के बारे में समझाते है और Madan से बैंकों में होने वाले पैसों के movement से जुड़ी जानकारी लेने लगते है क्योंकि Madan bank में ऊँचे पद पर कार्य करता था.
इसलिए उसे हर छोटे बड़े बात की information होती थी एक दिन Madan को पता चलता है कि नेपाली सरकार भारत से तीस लाख रुपए जहाज के जरिए मँगवा रही है Madan इस बात की जानकारी Girija Prasad Koirala को देता है और फिर तय किया जाता है कि अब सभी क्रांतिकारी मिलकर यही पैसा लूटेंगे और इन पैसों का इस्तेमाल नेपाल में लोकतंत्र के समर्थन में चल रहे आंदोलनों को गति देने के लिए तथा आंदोलन के लिए हथियार खरीदने के लिए किया जाएगा।
सब कुछ तय होने के बाद इस mission में बसंत भट्टा राय और नागेंद्र प्रसाद ढुंगेल को भी शामिल किया जाता है और यही दोनों दुर्गा सुवेदी के साथ मिलकर जहाज को hijack करते है।
इस plane hijacking प्लान में कुछ भारतीय लोगों को भी शामिल किया गया था। प्लान में शामिल प्रमुख भारतीयों में गणेश शर्मा नाम का भी एक व्यक्ति था। जब ये जहाज को Forbisganj के मैदान में landing करवा लेते है तो सबसे पहले Ganesh Sharma ही एक jeep लेकर जहाज के पास आता है और फिर जहाज में से पैसों से भरे तीनों बक्सों को उतारकर jeep में डाल दिया जाता है और फिर सभी hijackers तथा उनके साथी jeep से वहाँ से निकल जाते ह।
खुलासे के मुताबिक अब ये सभी पैसे को लेकर सबसे पहले Darjeeling जाते है और तीन अलग अलग गाड़ियों को बदलते हुए ये Darjeeling से Banaras पहुँचते है और Banaras के बाद ये सभी पैसे लेकर Mumbai जाते है.
finally मुंबई में पैसे को ठिकाना लगा दिया जाता है। पैसे को एक जगह से दूसरी जगह ले जाने में गिरजा प्रसाद कोइराला के अलावा चक्र प्रसाद बास्तोला ने भी अहम किरदार निभाया था। इस दौरान hijackers लगातार दिल्ली भी आ जा रहे थे। क्योंकि उन दिनों नेपाली कांग्रेस के president रहे बीपी कोयला दिल्ली में ही रह रहे थे और ये भी इस mission में जुड़े हुए थे।
दिल्ली में उन दिनों बीपी कोइराला की पहुंच पैरवी काफी ऊपर तक थी। इसलिए hijackers को छिपने के लिए भी एक safe जगह मिल गई थी। बीपी कोइराला के बारे में आपको बता दें कि ये 1959 से 1960 तक नेपाल के प्राइम मिनिस्टर भी रह चुके थे।
यही बीपी कोइराला बॉलीवुड की मशहूर अभिनेत्री मनीषा कोइराला के ग्रैंडफादर भी है इसके अलावा बीपी कोयला के बड़े भाई गिरिजा प्रसाद कोइराला और छोटे भाई मातृका प्रसाद कोइराला भी नेपाल के प्रधान मंत्री रह चुके है पुलिस पूछताछ में hijackers द्वारा किये गए खुलासे में जितने भी नाम आए पुलिस ने उन सभी को एक साल के अंदर गिरफ्तार कर लिया सिर्फ नागेंद्र ढुंगेल नाम के व्यक्ति को पुलिस नहीं पकड़ पाई सभी को गिरफ्तार करने के बावजूद पैसा recover नहीं किया जा सका क्योंकि hijacker ने उन पैसों को पहले ही ठिकाने लगा दिया था।
गिरिजा प्रसाद कोइराला समेत लगभग दर्जन भर व्यक्तियों को विमान अपहरण के आरोप में गिरफ्तार करते हुए भारत के अलग-अलग जेलों में बंद कर दिया जाता है। इस लूट कांड के mastermind गिरिजा बाबू को 3 साल की सजा होती है। हालांकि 1975 में जब भारत में आपातकाल का दौर खत्म हो जाता है। तो जेल में कैद इन सभी आरोपियों को भी धीरे-धीरे रिहा कर दिया जाता है.
ये सब भी अपने-अपने तरीके से Nepal में चल रहे mission को गति देने में लग जाते हैं। वैसे तो इन लोगों ने पैसा इसलिए चुराया था कि Nepal में लोकतांत्रिक राज वापस लाने के लिए चल रहे आंदोलनों को गति दी जाए और इन पैसों के इस्तेमाल से बड़े पैमाने पर आधुनिक हथियार खरीदे जाए।
मगर इस लूट कांड के कुछ ही समय बाद नेपाली कांग्रेस के top leaders पर ये आरोप लगने लगा कि इन लोगों ने जिस मकसद से वो पैसे चुराए थे। उस पर वो कायम नहीं रह सके और बड़े पैमाने पर पैसों का misuse किया गया। आरोप तो यहाँ तक लगा कि कई बड़े नेपाली नेताओं ने भी इस पैसे का उपयोग अपने personal use के लिए किया।
इन सभी आरोपों के बीच संघर्ष का दौर चलता रहा और finally नेपाल में एक ऐसा समय आ गया जब लोकतंत्र के लिए चल रहे आंदोलनों को कामयाबी मिलनी शुरू हो गई और देखते ही देखते नेपाल में राजशाही का अंत हो गया और एक बार फिर से लोकतांत्रिक व्यवस्था नेपाल में लागू कर दी गई।
लोकतांत्रिक व्यवस्था लागू होने के बाद जो गिरिजा प्रसाद कोइराला कभी विमान अपहरण के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेजे गए थे, वही नेपाल के प्रधानमंत्री बन गए। गिरिजा प्रसाद कोइराला एक बार नहीं बल्कि चार terms यानी 1991 से 1994 तक फिर 1998 से 1999 तक फिर 2002 से 2006 तक तथा 2006 से 2008 तक नेपाल के प्रधानमंत्री रहे।
नेपाल के इतिहास के पहले विमान अपहरण कांड में शामिल लोगों में केवल गिरिजा प्रसाद कोइराला ही ऐसे व्यक्ति नहीं रहे जो ऊँचे पद पर गए बल्कि इस अपहरण कांड में जितने भी लोग शामिल थे सभी समय के साथ नेपाल में ऊंची-ऊंची पदों पर पहुंचने में कामयाब रहे।
इस लूट कांड में सुशील प्रसाद कोयला भी बढ़-चढ़कर शामिल हुए थे और उन्होंने भी इस plane hijacking में काफी अहम भूमिका निभाई थी। समय का खेल देखिए कि अपहरण के बाद छुप-छुपकर वर्षों तक जिंदगी बिताने वाले सुशील कोयला कुछ समय तक जेल में भी रहे और फिर सब कुछ normal होने के बाद जब नेपाल वापस गए तो लोकतंत्र की वापसी के साथ ये भी सत्ता में वापस आए और अपने भाई की तरह ये भी नेपाल के प्रधानमंत्री के पद पर आसीन हुए।
सुशील प्रसाद कोइराला 11 फरवरी 2014 से 10 अक्टूबर 2015 तक Nepal के प्रधानमंत्री रहे थे जिस तरह इस plane hijacking में शामिल सभी आरोपी एक समय के बाद normal life में वापस आ गए और ऊँची ऊँची राजनीतिक पदों तक पहुँचने में कामयाब हुए
उसी तरह जिस DHC six twenty जहाज को hijack करके पैसा चुराया गया था वो जहाज भी तुरंत ही service में वापस आ गया और लंबे समय तक Royal Nepal airlines का हिस्सा बना रहा हालांकि aircraft की विदाई सुखद तरीके से नहीं हो पायी क्योंकि अपहरण की घटना के बाद भी वर्षों तक ये जहाज सेवा में लगा रहा और finally 2014 के फरवरी महीने में उस समय दुर्घटनाग्रस्त हो गया. जब इस जहाज में 18 लोग सवार थे.
aircraft के accident की वजह से सभी 18 के 18 लोग मारे गए इस विमान के crash के बाद एक बार फिर से जहाज के टुकड़ों को जमा किया गया और फिर उसे अच्छे से जोड़ते हुए इसे फिर से तैयार किया गया और फिर इसे संघर्ष का प्रतीक बनाते हुए नेपाल के एक museum में डाल दिया गया उस समय दुनिया ने इस अपहरण कांड की काफी आलोचना की थी.
मगर नेपाली कांग्रेस के लिए ये अपहरण आज भी सम्मान की बात है और नेपाली कांग्रेस से जुड़े लोग अक्सर इस अपहरण कांड के जरिए ये बताने की कोशिश करते हैं कि नेपाल में लोकतंत्र स्थापना के लिए इन लोगों ने कितना संघर्ष किया है. हाल ही में इसी plane hijacking पर एक documentary भी बनाई गई थी जिसे बड़े सम्मान के साथ नेपाल में बड़े स्तर पर दिखाया गया था।
इस विमान अपहरण कांड के बारे में एक सवाल आमतौर से लोगों पर ध्यान में आता है कि आखिर इस जहाज को घास से भरे मैदान में उतारने का बड़ा जोखिम क्यों लिया गया था? तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जब यही सवाल hijacker से पुलिस द्वारा पूछा गया तो उन्होंने बताया कि पहले प्लान था कि बिहार के किसी एयरपोर्ट पर जहाज को उतारा जाए। मगर ये प्लान बदलना पड़ा क्योंकि इसमें बहुत ज्यादा खतरा था।
अगर प्लेन किसी एयरपोर्ट पर उतरता तो वहां पर मौजूद सुरक्षा कर्मी अपहरणकर्ताओं को मार भी सकते थे. बस इसलिए plan को बदलते हुए खतरा उठाने का फैसला किया गया और जहाज को घास वाले मैदान में उतारा गया. दोस्तों विमान अपहरण की इस घटना के बारे में आपकी क्या राय है comment box में जरूर बताए।