Kalipurush Birth Mystery: मित्रों पुराणों की माने तो एक बार ऋषि दुर्वासा इंद्रदेव से मिलने के लिए स्वर्ग लोक गए हुए थे, किंतु उस समय इंद्रदेव वहां पर नहीं थे. वह किसी राक्षस का वध करने के लिए गए थे. कुछ समय के बाद वह जब स्वर्ग लोक आ रहे थे तभी ऋषि दुर्वासा ने उनके स्वागत के लिए उन्हें फूलों की माला दी और उन्होंने वह माला अपने ऐरावत हाथी के मस्तक पर रख दी.
उस पुष्प का स्पर्श होते ही इरावत सहसा विष्णु भगवान के समान तेजस्वी हो गया. उसने इंद्र का परित्याग कर दिया और उस दिव्य पुष्प को कुचलते हुए वन की तरफ चल दिया. जब दुर्वासा ऋषि ने यह दृश्य देखा तो वह क्रोधित हो गए और उन्होंने इंद्रदेव को श्राप दिया कि जिस ऐश्वर्य में तुमने मेरा उपहार का अपमान किया है वह तुमसे छिन जाएगा.
जिसके बाद देवता कमजोर होने लगे और तब सभी मिलकर विष्णु जी के पास पहुंचे तो भगवान ने उन सभी को समुद्र मंथन के लिए कहा और बोले आप लोगों को पुनः पहले जैसा होने के लिए छीर सागर की अमृत की आवश्यकता पड़ेगी ताकि सब ठीक हो जाए. अब क्योंकि देवता भी कमजोर थे इसलिए इंद्रदेव ने असुरों के राजा बलि से समुद्र मंथन के लिए मदद मांगी।
दोस्तों पहले तो राजा बलि ने देवताओं को मना कर दिया क्योंकि वे जानते थे कि देवता असुरों के साथ छल करेंगे परंतु शुक्राचार्य के कहने पर वे इस शर्त के लिए तैयार हो जाते हैं और कहा जो भी समुद्र मंथन से निकलेगा उसका बंटवारा होगा।
तब मंदराचल पर्वत को गरुड़ देव ने अपनी चोंच से उखाड़कर शिव सागर में रख दिया और सर्प राज वासुकी को उस पर्वत में लपेटकर रस्सी बना दिया गया. तत्पश्चात एक रास्ते के रूप में राक्षस गण वासुकी नाथ के मुख की तरफ और देवता गण उसकी पूंछ की ओर खड़े थे परंतु मंथन हो नहीं पा रहा था. क्योंकि मंदराचल पर्वत का आधार घूम ही नहीं रहा था.
तब भगवान विष्णु ने कछुए का अवतार लेकर मंदराचल पर्वत को अपनी पीठ पर रखकर इस प्रकार मंथन की शुरुआत की थी. सहसा तभी समुद्र में से कालकूट नामक भयंकर विष निकला उस विष की अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगी. विष की ज्वाला से सभी देवता और दैत्य जलने लगे तथा उनकी कांति फीकी पड़ने लगी. जिसके बाद इस पर सभी ने भगवान शंकर से मिलकर प्रार्थना की.
उनकी प्रार्थना पर भोलेनाथ ने उस विष को हथेली पर रखकर उसे पी लिया किंतु उसे कंठ से नीचे नहीं उतरने दिया। उस कालकूट विष के प्रभाव से शिवजी का कंठ नीला पड़ गया. इसलिए उन्हें नीलकंठ भी कहा जाता है. उनकी हथेली से थोड़ा सा विष पृथ्वी पर गिर गया. जिससे इसकी कुछ बूंदे कली पुरुष के मुंह में जा गिरी और उसका शरीर नष्ट हो गया.
अंत में जब मंथन से अमृत निकला तो अमृत की कुछ बूंदे भी राक्षस कली के मुंह में गई. जिसके कारण वह फिर से जीवित हो गया. परंतु वह अपने भौतिक रूप में नहीं आ सका. इसके बाद इंसानों के अंदर घुसकर उन्हें बुराइयों के मार्ग पर धकेल की शक्तियां भी कली के आ गई और यह समय के साथ भौतिक स्वरूप भी ले लेगा। जिससे यह और शक्तिशाली हो जाएगा।
कली पुरुष का शक्ति स्रोत अधर्म है और वही उसे इस युग में मिलता है. बढ़ती शक्तियों के साथ उसकी सेना में इंसान ही होंगे। कली पुरुष इंसानों को भी वह शक्तियां देगा जिनकी उनको जरूरत होगी। इंसानों की बढ़ती शक्तियों से कली पुरुष भी और ताकतवर होता जाएगा। धीरे-धीरे इंसानों की शक्ति देवताओं से भी ज्यादा हो जाएगी। इन्हीं शक्तियों के लालच में लोग राक्षस की ओर खींचे चले आएंगे और एक समय ऐसा भी आएगा मित्रों जब कोई इंसान भगवान की पूजा नहीं करेगा।
कली पुरुष पूरी धरती से धर्म का नाश कर देगा और सभी लोग उसी को अपना भगवान मानने लगेंगे। वह जैसा कहेगा वही कलयुग के लोग किया करेंगे।
भविष्य पुराण में लिखा है कि आने वाले समय में सनातन धर्म पर घोर संकट आएगा। तब इंसान की सोच बहुत गिर गई होगी और संसार हर तरफ से सनातन धर्म को खत्म करने में लगा होगा। यह वह वक्त होगा जब कलयुग खत्म होने के कगार पर होगा। इतना ही नहीं महाभारत में भी कलयुग के अंत में होने वाले प्रलय का वर्णन किया गया है. महाभारत के अनुसार जैसे-जैसे घोर कलयुग आता जाएगा वैसे-वैसे धर्म, सत्य, पवित्रता, क्षमा, दया, आयु, बल और याद रखने की शक्ति में कमी आती जाएगी। प्रलय यहीं पर नहीं रुकेगा।
मित्रों महाभारत में बताया गया है कि जब घोर कलयुग आएगा तब कभी बारिश नहीं होगी। सूर्य का तेज इतना बढ़ जाएगा कि सातों समुद्र और नदियां सूख जाएंगी। मौसम में ऐसे बदलाव आएंगे जिससे समझ पाना मुश्किल हो जाएगा। कभी कड़ाके की सर्दी पड़ेगी, तो कभी पाला पड़ेगा, कभी आंधी चलेगी, कभी गर्मी पड़ेगी, तो कभी बाढ आ जाएगी। गर्मी इतनी बढ़ जाएगी कि पाताल लोक तक सब भस्म हो जाएगा। वहीं लोग दूर के तालाब को ही तीर्थ मानने लगेंगे और गंगा माता को तीर्थ की श्रेणी में ही गिनेगे।
पुराणों की माने तो कलयुग में चालाक और लोभी व्यक्ति को विद्वान माना जाएगा। ऐसे लोगों को लोग धर्मात्मा भी कहेंगे और उनके ही पद चिन्हों पर चलेंगे। भविष्य पुराण के अनुसार मित्रों ब्रह्मा जी ने नारद जी से कहा है कि हे नारद भयंकर कलयुग के आने पर मनुष्य का आचरण दुष्ट हो जाएगा और योगी भी दुष्ट चित वाले होंगे। संसार में परस्पर विरोध फैल जाएगा और विशेषकर राजाओं में चरित्रहीनता आ जाएगी।
देश-देश और गांव-गांव में कष्ट बढ़ जाएंगे। देवता होने की अवस्था भी नष्ट हो जाएगी और उनका आशीर्वाद भी नहीं रहेगा। जिसका मतलब है कि मनुष्य की बुद्धि धर्म से विपरीत चलती जाएगी। जब कलयुग में सारे पापियों का सर्वनाश हो जाएगा उसके बाद नया युग यानी सतयुग आएगा। तब कलयुग के असर को पूरी तरह से खत्म करने के लिए लगातार इस धरती पर 12 सालों तक मूसलाधार बारिश होगी। जिससे पूरी धरती जलमग्न हो जाएगी।
तब फिर एक साथ 12 सूर्य उदय होंगे और जलमग्न हुई पृथ्वी का जल सोख लेंगे। तब जाकर कहीं संसार में फिर से जीवन यापन संभव हो पाएगा। आपको यह भी बता दें मित्रों कि वेदव्यास जी ने सभी युगों में कलयुग को ही सबसे श्रेष्ठ युग बताया है. उन्होंने कहा है कि सतयुग में 10 साल के जप के बाद किसी व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है, वहीं त्रेता और द्वापर युग में एक साल के तप से ही पुण्य प्राप्त किया जा सकता है. लेकिन कलयुग में इतना ही बड़ा पुण्य मात्र एक दिन के तप से प्राप्त किया जा सकता है.
इस तरह व्रत और तप के फल की प्राप्ति के लिए कलयुग ही सर्वश्रेष्ठ समय है. सच्ची भक्ति से मनुष्य ईश्वर के करीब जा सकता है और ऐसा कहा जाता है कि जब जब धरती पर पाप और अधर्म पड़ता है भगवान विष्णु किसी ना किसी रूप में अवतार लेते हैं और पापियों का विनाश करते हैं. नरसिंह, राम और कृष्ण अवतार इस बात के सबूत हैं.
वैसे ही जब कलयुग का अंत आ जाएगा तब भगवान कल्कि जन्म लेंगे। इसके साथ ही विष्णु पुराण में कहा गया है मित्रों कि भगवान कल्कि का जन्म उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले की संभल गांव में होगा। उनके पिता का नाम विशु यश और माता का नाम सुमती होगा और तो और यह दोनों ही श्री हरि के परम भक्त होंगे। वहीं विष्णु पुराण के अनुसार प्रभु परशुराम भगवान कल्कि के गुरु होंगे। इसलिए परशुराम जी महेंद्रगिरि पर्वत पर तपस्या कर कल्कि अवतार का लंबे समय से इंतजार कर रहे हैं. जिसके बाद वह उन्हें शस्त्रों और शास्त्रों दोनों का पूरी तरह से ज्ञान दे सकें।
इतना ही नहीं विष्णु पुराण में यह भी कहा गया है कि भगवान परशुराम कल की अवतार को आज्ञा देंगे कि वह शंकर जी की तपस्या करें। जिसके बाद उन्हें दिव्य शक्तियां हासिल होंगी और फिर व उसके माध्यम से अधर्मी लोगों का संघार करेंगे। इसके साथ यह भी कहा जाता है कि कल्कि अवतार संसार के सभी राक्षस रूपी राजाओं और प्रधानों को पराजित करके उनका वध कर देंगे और वह सिर्फ धरती पर ही नहीं बल्कि समुद्र पर भी राज करेंगे और तो और भगवान कल्कि के पास शुक नाम का एक रहस्यमय तोता भी होगा जो भूतकाल वर्तमान और भविष्य काल का पूरा ज्ञान रखेगा। इसके साथ ही जो समय-समय पर अपनी शक्तियों से भगवान कल्कि की मदद करेगा और कई तरह की महत्त्वपूर्ण जानकारियां देगा।
मान्यताओं के अनुसार कल्कि अवतार 64 कलाओं में निपुण होंगे। यही कलयुग में सभी के दिलों से अधर्म को धोलकर धर्म का परचम लहराएंगे। श्रीमद् भागवत के 12वें अध्याय में भगवान कल्कि के बारे में विस्तार से कथा भी दी गई है. जिसके अनुसार यह अवतार भगवान विष्णु का दसवां और आखिरी अवतार है. जिसके बाद कलयुग का अंत और सतयुग की शुरुआत हो जाएगी और तो और आपको बता दें भगवान कल्कि श्वेत रंग के घोड़े पर सवार होंगे। इस घोड़े का नाम देव तत्व होगा। इस अवतार में श्री हरि के एक हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में तीर कमान होगा। जिससे वह दुष्टों का संहार करेंगे।
वहीं भागवत गीता में कहा गया है कि श्री राम की तरह ही कल की अवतार के भी चार भाई होंगे। वहीं उनकी दो पत्नियां होंगी। एक माता लक्ष्मी का रूप पद्मा और दूसरी पत्नी रमा होंगी। इसके साथ ही मान्यता है कि त्रेता युग में वैष्णवी नाम की स्त्री ने श्री राम से विवाह करने की इच्छा प्रकट की थी. तब श्री राम ने उन्हें विवाह करने का वचन देते हुए कल्कि अवतार के बारे में बताया था. तभी से वैष्णवी तपस्या कर रही हैं और उनकी तपस्या के बाद कल्कि अवतार के रूप में भगवान कल्कि उनसे दूसरा विवाह करेंगे।
आपको बता दें विष्णु पुराण में कहा गया है कि जब कलयुग का अंत निकट आ जाएगा तभी भगवान कल्कि आएंगे और उसी समय धरती पर हर जगह सिर्फ पाप का ही नामो निशान होगा। लोग अधर्मी होंगे जो सिर्फ अपने बारे में ही सोचेंगे। उन्हें ना तो शास्त्रों का ज्ञान होगा और ना उनमें संस्कार होंगे। वैसे आपको यह भी बता दें कि अभी कलयुग का पहला चरण ही चल रहा है. इसलिए ऐसा कहा जा सकता है कि अभी कल्कि अवतार होने में काफी समय है. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो यह दावा करते हैं कि भगवान का कल्कि अवतार हो चुका है और प्रभु कुछ समय के बाद सबके सामने आएंगे
इसके साथ ही आपको यह भी बताएं कि सनातन धर्म में काल चक्र को चार युगों में बांटा हुआ है वहीं कलयुग की शुरुआत तब हुई थी जब द्वापर युग में जब श्री कृष्ण बैकुंठ लौट गए थे. ऐसे में जब भगवान कल्कि पापियों का वध करेंगे और वह भी बैकुंठ लौट जाएंगे तब धरती पर भयंकर प्रलय आएगी जिसके चलते धरती से जीवन खत्म ही हो जाएगा। फिर लगभग 12 सालों तक लगातार मूसलाधार बारिश होगी जिसके बाद एक एक बार फिर से जन जीवन की स्थापना होगी और फिर उस युग को सतयुग कहा जाएगा। यह वही युग है जहां हर तरफ सिर्फ धर्म का बोलबाला होगा