Kaliyan Wala Kuan Massacre: जलियांवाला बाग के शहीदों की गाथा तो हम सभी जानते हैं. लेकिन क्या आप लोगों को पंजाब के अजनाला के शहीदों के बारे में पता है. यहाँ पर अंग्रेजों ने 282 विद्रोही भारतीय सैनिकों को पकड़कर, सामूहिक रूप से मौत के घाट उतार दिया था.
Ajnala Massacre: आइये अब हम आपको आजादी के उन अमर बलिदानियों के बारे में बताते हैं, जिन्हें देश और इतिहास ने बिलकुल भुला दिया है. ऐसे अमर शहीद जिन्होंने 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में देश के लिए अपने प्राणों का सर्वोच्च बलिदान दिया था. लेकिन इन सब के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं थी. अंग्रेज़ों की गलत नीति ने उन्हें अंतिम सम्मान तक सही से नसीब नहीं होने दिया. उस नरसंहार के 165 वर्ष बाद हम सभी का, इस देश का ये फर्ज बनता है कि उन UNSUNG हीरोज को भी, उनका सही सम्मान दिलाएं, जिसके वे हकदार हैं. तो आइये जानते हैं, अजनाला के नरसंहार के बारे में विस्तार से.
अमृतसर के अजनाला में भी हुआ था एक बड़ा नरसंहार
अजनाला के इस बलिदान के पीछे भी जलियांवाला बाग जैसा ही नरसंहार था. जो जलियांवाला बाग कांड से ठीक 62 साल पहले यानि की 1857 में हुआ था. उस समय ब्रिटिश सरकार से यानि की विद्रोह करने वाले 282 भारतीय सैनिकों को अमृतसर के अजनाला के एक कुएं में मिट्टी के नीचे दबा दिया गया था.
यहाँ पर अंतर बस इतना था कि 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में क्रूरता करने वाला जनरल डायर था. जबकि उससे पहले साल 1857 में वैसी ही क्रूरता करने वाले का नाम डीसी फेड्रिक हेनरी कूपर था. उस समय वो अमृतसर का जिलाधिकारी भी था. साल 1857 में हुई उस क्रूरता और नरसंहार के दौरान कुछ सैनिकों की पहले ही हत्या कर दी गई थी और कुछ को तो जिंदा ही दफन कर दिया था. इतने सारे गुमनाम शहीदों की शहादत को समेटने वाले अजनाला (Ajnala) के उस कुएं को लोग कालिया वाला कुआं भी कहते हैं.
कुएं से मिली है, 282 भारतीय सैनिकों की अस्थियां
अजनाला के इस कुएं से, अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने वाले 26 बंगाल इंफैंट्री रेजिमेंट (Bengal Infantry Regiment) के कई सारे सैनिकों की अस्थियों के साथ और दूसरी वस्तुएं भी मिली हैं. उन वस्तुओं में शामिल है, उस समय में प्रचलित सिक्के, सैनिकों को दिए गए मेडल, सोने के मोती भी वहां पर मिले हैं. उन सभी मिले वस्तुओं से इस बात की पुष्टि हो चुकी है कि ये सभी लोग अंग्रेजों के यहां ही सैनिक थे और विद्रोह के बाद इनको मारकर कुएं में फेंक दिया गया और ऊपर से मिट्टी डाल दी गई थी. लेकिन भारत के स्वतंत्रता के इतिहास में इस शहादत का कहीं कोई भी ज़िक्र नहीं किया गया है.
इतिहासकार सुरिंदर कोछड़ ने इस पर लंबी रिसर्च की है. जिससे पता चला है कि यहां जिन-जिन लोगों के अवशेष मिले हैं, वो पंजाब के नहीं थे. वो सभी लोग गंगा के किनारे बसे इलाकों से आये थे. ये सभी शहीद उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के रहने वाले ही होंगे. इसके बारे में आज तक किसी को भी पता ही नहीं चला और शायद आगे भी ये सामूहिक शहादत गुमनाम ही रहती, लेकिन एक संयोग ने जलियांवाला बाग जैसी अंग्रेजों की इस भयानक क्रूरता को सबके सामने ला दिया.
अब आपको ये भी अवश्य जानना चाहिए कि आखिर वो संयोग क्या था और जिसकी वजह से 282 शहीदों की सामूहिक शहादत का सच सामने आया है.
पंजाब के अमृतसर में अजनाला (Ajnala) के कुएं से निकलीं बेहिसाब अस्थियां और अन्य सामान, जलियांवाला बाग जैसी अंग्रेजों की एक और जघन्य क्रूरता का वो अनदेखा और अनसुना सच है, जो 157 साल तक इतिहास के गर्त में छिपा रहा है. साथ ही छिपी रहीं सन 1857 के पहले स्वतंत्रता संग्राम में हुई 282 भारतीय वीरों की शहादत भी.
बंगाल इंफैंट्री रेजिमेंट (Bengal Infantry Regiment) के सैनिकों का हुआ था सामूहिक कत्लेआम
ये ऐसे सैनिक थे, जो अंग्रेजों की 26 Bengal Infantry Regiment का हिस्सा थे और मंगल पांडे के नेतृत्व में किए गए विद्रोह का हिस्सा बन गए थे. वो सब दिल्ली में अंग्रेजों के खिलाफ स्वतंत्रता के बड़े संग्राम का हिस्सा भी बनना चाहते थे. इसी वजह से 500 से ज्यादा 26 बंगाल इंफैंटरी बटालियन के विद्रोही सैनिकों का जत्था अमृतसर के एक गांव में रुका हुआ था. इस बात की जानकारी अमृतसर के तत्कालीन डीसी फेड्रिक हेनरी कूपर को हो गई थी. वो अपनी पूरी टीम के साथ, रात में ही इस विद्रोह को दबाने के लिए वहां पहुंच गया. 282 विद्रोही सैनिकों को बंधक बनाकर, क्रूर कूपर इसी अजनाला (Ajnala) नमक जगह पर ले आया. उनमें से कुछ को गोली मारकर इसी कुएं में फेंक दिया गया तो वहीँ बाकी बचे सैनिकों को जिंदा ही इसी कुएं में फेंककर मिट्टी से भर दिया गया था.
जलियांवाला बाग में हुई नरसंहार जैसी, इस हैवानियत का किसी को पता भी नहीं चलता। लेकिन एक संयोग ने उन वीरों की शहादत को जिंदा कर दिया. हालांकि, इसके वाबजूद भी शहादत के इतने बड़े सच को कोई भी मानने को तैयार नहीं था. न ही प्रशासन, न ही सरकार और न ही इस गुरुद्वारे से जुड़े लोग, जिसके ये बिलकुल करीब है. क्योंकि साल 2009 तक इसी नरसंहार वाले कुएं के ऊपर गुरुद्वारा सिंह सभा साहिब विराजमान थी. कोई भी इस गुरुद्वारे के नीचे स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी इतनी बड़ी घटना और साक्ष्य को मानने को तैयार ही नहीं था. यहाँ पर इतिहासकार सुरिंदर कोछड़ अपनी बात पर कायम रहे और हार नहीं मानी. उनको समय लगा, फिर गुरुद्वारे से जुड़े लोग भी उनके साथ आए, गुरुद्वारे को बगल में शिफ्ट किया गया और फिर 28 फरवरी 2014 को शुरु हुई एक ऐतिहासिक खुदाई.
165 साल बाद सामने आया, अंग्रेजों का एक भयानक और काला सच
सबसे ज्यादा हैरानी की बात ये है कि जिस इतिहास को जानने के लिए एक इतिहासकार और पूरा अजनाला जुटा पड़ा था. वहीं प्रशासन और जिम्मेदार लोगों की नजर में वो केवल ड्रामा था. लेकिन आखिरकार 40 फीट गहरे कुएं से वही सच बाहर निकला, जिसके बारे में इतिहासकार सुरिंदर कोछड़ लगातार दावा कर रहे थे.
सबसे बड़ी दुख की बात ये है कि सरकार और प्रशासन ने स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी शहीदों की इस स्थली पर अभी तक भी कोई ध्यान नहीं दिया है. फिलहाल अजनाला की गुरुद्वारा सभा से जुड़े लोग ही शहीदों की इस अमर निशानियों की देखभाल कर रहे हैं. अब यहाँ पर सबसे बड़ा संकट, इन शहीदों को उनकी पहचान के मुताबिक सम्मान दिलाना भी है. हालांकि ये तो साबित हो गया है कि ये सभी शहीद गंगा किनारे बसे उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल के ही रहने वाले लोग थे. लेकिन वो कौन थे! उनके घर का पता क्या था! और आज उनका परिवार कहां है. इन बातों की जानकारी के लिए ब्रिटेन से मदद लेनी होगी। जिसके पास ईस्ट इंडिया कंपनी के सभी दस्तावेज आज भी सुरक्षित रखे हैं और इसीलिए ये सभी लोग केंद्र सरकार की तरफ आस में टकटकी लगाए हुए हैं.