रतन टाटा, एक इंसान जिनकी पूरी जिंदगी ड्रीम्स, चैलेंजेस और एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी सक्सेस से भरी है, Lessons to Success from Life of Ratan Tata

Lessons to Success from Life of Ratan Tata: रतन टाटा, एक इंसान जिनकी पूरी जिंदगी ड्रीम्स, चैलेंजेस और एक्स्ट्रा ऑर्डिनरी सक्सेस से भरी है। आज वो उम्र के ऐसे पड़ाव पर है, जब हम उन्हें सक्रिय रूप से काम करते हुए तो नहीं देख पाते। लेकिन उनको चाहने वाला हर एक इंसान उनके लंबी उम्र की कामना जरूर करता है. क्योंकि उनकी जिंदगी का हर एक लम्हा हमारे लिए इंस्पिरेशन है और उनकी लाइफ को अगर गहराई से देखा जाए और उनसे जुड़े कुछ दिलचस्प किस्सों पर गौर किया जाए तो ऐसे तमाम लाइफ लेसंस है जो हमारी जिंदगी बदल सकता है और उन्हीं के बारे में ही आज हम अपने नए स्टोरी में बात करने वाले है.

Lessons to Success from Life of Ratan Tata

Lessons to Success from Life of Ratan Tata

Accept The Challenges 

जीवन में उतार चढ़ाव हमें चलते रहने के लिए बहुत ही जरूरी है। क्योंकि ईसीजी में एक सीधी रेखा का मतलब है कि हम जिंदा नहीं है. दोस्तों, आपको 2008 में मुंबई के ताजमहल पैलेस होटल की घटना याद होगी। रतन सर उस इंसिडेंट के बारे में सुनकर, खुद सिचुएशन को हैंडल करने के लिए होटल पहुंचे। खतरे के बावजूद भी उन्होंने पर्सनली रेस्क्यू ऑपरेशन को लीड किया और अपने गेस्ट और एम्प्लोयीज की सेफ्टी के लिए हर संभव कोशिश किये।

एक मिडिल क्लास इंडियन फैमिली को स्कूटर पर चलते हुए देखकर उन्होंने एक सस्ती कार बनाने का सपना देखा था। जिस प्रोजेक्ट के हर फेज में चुनौतियां थी. इतनी सस्ती कार का डिजाइन मुश्किल था. लैंड ऐक्विज़िशन और प्रोडक्शन में भी काफी विरोध हुआ, लेकिन इन सभी दिक्कतों के बाद भी टाटा नैनो को लॉन्च किया गया।

वो साल 1991 था, जब रतन सर टाटा के चेयरमैन बनाए गए और उसी दौरान सरकार ने इंडियन मार्केट को विदेशी कम्पनीज़ के लिए भी ओपन कर दिया। टाटा ग्रुप अपने सभी बिज़नेस में एक तगड़ा कॉम्पिटिशन महसूस कर रही थी। टाटा मोटर्स की कंडिशन तो इतनी खराब थी कि 1999 में रतन सर उसे बेचने के लिए फोर्ड के पास चले गए। लेकिन अमेरिका में मीटिंग के दौरान फोर्ड के चेयरमैन बिल फोर्ड ने उनका मजाक उड़ाते हुए कहा कि जब पैसेंजर कार बनाने नहीं आती तो यह धंधा शुरू ही क्यों किया था? 

रतन सर बिना कोई जवाब दिए डील कैंसिल करके इंडिया वापस आ गए और 1 साल पहले जो उन्होंने टाटा इंडिका लॉन्च की थी उसकी कमियों को दूर करके मार्केट में फिर से लांच किया और टाटा इंडिका कितनी बड़ी हिट साबित हुई है आप सबको पता है। 

साल 2008 जब पूरी दुनिया मंदी की चपेट में थी और ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री तो पूरी तरह से डूबने के कगार पर थी। उस समय रतन सर ने फोर्ड से जगुआर और लैंडरोवर का एक्विजिशन करने का फैसला किया, जो काफी नुकसान में चल रही थी। यह फैसला काफी सरप्राइजिंग था। लोगों ने भी इस डिसीजन पर सवाल उठाया और सबको ऐसा लगा की बिल फोर्ड से बदला लेने के लिए रतन सर ने एक गलत कदम उठा लिया। लेकिन यह फैसला एक लॉन्ग टर्म प्लान को सोचकर लिया गया था।

हालांकि सिचुय्शन्स फेवर में नहीं थे, लेकिन कुछ ही दिनों में रतन सर ने जगुआर और लैंडरोवर को प्रॉफिटेबल बना दिया और आज यहाँ तमाम एयरलाइन्स जब बैंक्रप्ट होकर बंद हो रही है। वहीं टाटा ग्रुप उन्हीं के नक्शेकदम पर चल कर, एयर इंडिया, एयर एशिया और विस्तारा का एक्विजिशन करके दुनिया की सबसे बड़ी एयरलाइन डील कर रही है। रतन सर ने अपनी जिंदगी में हमेशा चैलेंज को एक्सेप्ट किया है और शांत रहकर मजबूती से उसका सामना भी किया है। 

Trust, Values & Commitment – टाटा है तो अच्छा ही होगा

दोस्तों यह भरोसा पैदा करने में टाटा कंपनी को सदियाँ लग गयी और उसको एक लेवल ऊपर ले जाने का काम रतन सर ने किया है। उनका कहना है कि उन्होंने पावर और पैसे के लिए कभी भी काम नहीं किया। लोगों का भरोसा, कंपनी की वैल्यूज और कमिटमेंट ही टाटा ग्रुप की बुनियाद है। 

आपको शायद 2016 की वो ब्रेकिंग न्यूज़ याद होगी। जब रतन सर ने साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया था। वो पूरे कॉर्पोरेट जगत के लिए एक झटका था. क्योंकि जिस इंसान को रतन सर ने खुद चेयरमैन पद के लिए चुना था. उसकी कैपेबिलिटी पर कोई शक नहीं किया जा सकता और पर्सनली भी साइरस मिस्त्री रतन सर के काफी करीब थे। उनके बीच जीजा और साले का रिश्ता था, लेकिन इतना सख्त डिसीजन लेने के पीछे की वजह क्या थी? 

दरअसल वजह तो कई थे, लेकिन अगर एक्सपर्ट्स की मानें तो इसका मेन रीज़न ये था कि साइरस मिस्त्री टाटा के वैल्यूज़ और कमिटमेंट से ज्यादा प्रॉफिट पर फोकस कर रहे थे। अगर एक एग्जाम्पल से इसे समझें तो 2009 में जब एक जापानीज कंपनी डोकोमो इंडिया आयी तो उन्होंने टाटा ग्रुप से लगभग 13,000 करोड़ में 26% हिस्सेदारी खरीदी थी और डील के टाइम टाटा ने डोकोमो से प्रॉमिस किया कि वे जब चाहें जा सकते हैं और उस समय की ये मार्केट वैल्यू के हिसाब से उनका पैसा वापस कर दिया जाएगा और अगर ऐसा नहीं भी हो सका तो कम से कम उनका हाफ इन्वेस्टमेंट वापस कर दिया जाएगा। 

लेकिन साइरस मिस्त्री जब चेयरमैन बने तो टेलीकॉम सेक्टर मंदी के दौर में था और टाटा डोकोमो भी नुकसान में चल रही थी। लॉस को बढ़ता हुआ देखकर डोकोमो ने एक्जिट करने का मन बना लिया और टाटा से उनके शेयर खरीदने के लिए रिक्वेस्ट किया, जैसा कि उनके बीच हुई डील मैं ऑलरेडी अग्रीड था। लेकिन एक्स्पर्ट बताते है की उस समय साइरस मिस्त्री ने आरबीआई के गाइडलाइंस का हवाला देते हुए पैसे वापस देने से मना कर दिया और डोकोमो के खिलाफ़ लीगल ऐक्शन लेना भी शुरू कर दिया। 

क्योंकि साइरस मिस्त्री को लगता था कि डोकोमो को पैसे वापस देना टाटा के बिज़नेस के लिए अच्छा नहीं था और इस फैसले ने एक जापानी कंपनी को निराश ही नहीं किया बल्कि टाटा ग्रुप के ऊपर और भी कम्पनीज़ के भरोसे को कम कर दिया था। लेकिन रतन सर के रहते कंपनी के भरोसे पर आंच कैसे आ सकती थी? साइरस मिस्त्री को चेयरमैन पद से हटा दिया गया और 2017 में डोकोमो को 1.27 बिलियन डॉलर्स का पेमेंट किया गया।

Visionary Leadership  

मैं राइट डिसीजन लेने में विश्वास नहीं करता। मैं डिसीजन लेता हूँ और फिर उन्हें सही बनाता हूँ। कहते हैं कि टाटा ने देश को बनाया है, जो जमशेदजी ने टाटा ग्रुप की नींव रखी थी। उनका सपना देश को आत्मनिर्भर बनाने के साथ ही लोगों को अच्छी शिक्षा और रोजगार दिलाने का था। शुरुआत तो उन्होंने की लेकिन उनके बड़े बेटे दोराब जी ने उनके सपने को हकीकत में बदलना शुरू किया और उनके बाद जेआरडी टाटा ने इस ग्रुप को देश का सबसे बड़ा बिज़नेस ग्रुप बना दिया। लेकिन रतन सर ही वो शख्सियत हैं जिनकी दूरदर्शिता और भविष्य को देखने की क्षमता ने टाटा समूह को सफलता की बुलंदियों तक पहुंचाया है। 

जब वो टाटा ग्रुप में शामिल हुए तो यह भारत के बाहर मुश्किल से ही कोई बिज़नेस कर रहा था. लेकिन उन्होंने कहा कि कंपनी को वर्ल्ड लेवल पर जाना होगा और वर्तमान में टाटा का 50% से भी ज्यादा रेवेन्यू विदेशों से ही आता है। उनकी लीडरशिप में ही टाटा ने टेटली, कोरस और जगुआर, लैंड रोवर जैसे बड़े ब्रैंड्स का टेकओवर किया और साथ ही उन्होंने इन्नोवेशन और एक्सपेरिमेंट्स को मोटिवेट करने वाले कल्चर को भी डेवलप किया। 

आपको याद होगा की इंडिया में ड्रिंकिंग वाटर की समस्या को देखते हुए उन्होंने टाटा स्वच्छ नाम से एक सस्ती वाटर प्योरिफाइर को भी मार्केट में उतारा था। इंडिका और नैनो के बाद आज टाटा ग्रुप इलेक्ट्रिक वीइकल्स, रिन्यूएबल एनर्जी और सेमीकंडक्टर की फील्ड में जो नाम कमा रही हैं, वो रतन टाटा सर के विजनरी लीडरशिप का ही प्रभाव है। 

Ethical Business Practices  

दोस्तों बिज़नेस पैसा कमाने के लिए ही किया जाता है और टाटा ग्रुप ने भी खूब पैसा कमाया है, लेकिन 300 बिलियन डॉलर्स का ये विशाल बिज़नेस एंपायर खड़ा करने में टाटा ने अपने उसूलों से कभी कोई समझौता नहीं किया। रतन सर ने भी उसी लेगेसी को आगे बढ़ाया। उनके बिज़नेस करने के तरीके में हमेशा ट्रान्सपेरेन्सी और ईमानदारी रही है।

उनके रूल्स  बिल्कुल स्पष्ट थे और कभी किसी चीज़ को छुपाया नहीं गया। रतन सर के लिए उनकी एम्प्लॉईज और आम लोग ज्यादा इम्पोर्टेन्ट थे। उन्होंने कंपनी में सब रूल्स डिसाइड किये, करप्शन के खिलाफ़ सख्त नियम बनाए गए हैं। अपने वेंडर्स और सप्लायर के साथ भी वो एक अच्छे रिलेशन में विश्वास करते हैं। 

यहाँ तक कि दुनिया के अलग-अलग देशों में भी काम करते हुए भी टाटा ग्रुप ने हमेशा लोकल कल्चर और ट्रेडिशन का सम्मान किया है और यही वजह है कि दुनिया के बाकी देशों में भी टाटा ग्रुप की काफी इज्जत है और ये सारी एथिकल बिज़नेस प्रैक्टीसेस ही आज टाटा ग्रुप को दूसरी कम्पनीज़ के लिए एक मिसाल बनाती है।

Business For Philanthropy 

क्या कभी आपने सोचा है की नेट वर्थ की बात हो या प्रॉफिट की? टाटा ग्रुप का नाम रिलायंस से हमेशा आगे रहा है। लेकिन कभी भी रतन सर का नाम सबसे अमीर बिजनेसमैन की लिस्ट में क्यों नहीं दिखाई दिया? क्योंकि टाटा के पूरे बिज़नेस को टाटा संस कंट्रोल करता है और कुल प्रॉफिट का 65% से भी ज्यादा हिस्सा दान कर देता है। 

जब एक बार रतन सर से इसके बारे में पूछा गया तो उन्होंने जवाब दिया कि मुकेश अंबानी एक बिज़नेस मैन है और मैं एक इंडस्ट्रियलिस्ट हूँ। आप इस स्टेटमेंट का आप क्या मतलब समझते हैं? कमेंट करके जरूर बताइयेगा। आप जानकर हैरान होंगे कि सर दोराबजी ट्रस्ट और सर रतन टाटा ट्रस्ट, टाटा संस के दो सबसे बड़े स्टेकहोल्डर्स है। जबकि टाटा ग्रुप में रतन सर की हिस्सेदारी 1% परसेंट से भी कम है। 

हर दिवाली टाटा ग्रुप कैंसर पेशंट्स को 1000 करोड़ या उससे अधिक का दान देता है। फ्लड, अर्थक्वेक और किसी भी तरह के नैचुरल डिजास्टर की स्थिति में टाटा ग्रुप हमेशा लोगों की मदद करता है। आपने देखा होगा कि covid  19 के खिलाफ़ लड़ाई में भी टाटा ग्रुप हर जरूरत में हमारे साथ था और लगभग 1500 करोड़ का दान भी किया था. 

जहाँ दूसरी कंपनी कमाने के बाद दान करती है। वहीं टाटा ग्रुप हमारे देश की ऐसी कंपनी है जो दान करने के लिए कमाती है। दोस्तों रतन टाटा की लाइफ से जो फाइव लेसन, इस स्टोरी मैंने अभी आपको बताया है। इसके अलावा भी उनकी जिंदगी से सीखने को बहुत कुछ है। हम जितनी गहराई में उतरेंगे, कुछ और इंस्पिरेशन मिलते ही जाएंगे।

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