The Lost City of Dwarka: यूं तो श्री कृष्ण का साम्राज्य सिर्फ इस धरती पर ही नहीं बल्कि हर मनुष्य के दिल में है. लेकिन आज हम आपको कृष्ण के उस अदृश्य साम्राज्य के दर्शन कराने वाले हैं जो धरती की सतह पर नहीं बल्कि समुद्र की गहराइयों की रेत में लिपटा है. जहां कभी श्री कृष्ण ने अपनी सत्ता की शुरुआत की थी. जहां का कण-कण कृष्ण लीलाओं का साक्षी था. आज वहां सिर्फ समुद्र की लहरों का शोर सुनाई देता है. गोमती नदी और अरब सागर के संगम पर बसा विश्वास और इतिहास को जोड़ता यह नगर आज भी श्रद्धालुओं के लिए देव भूमि है.
भारत के पश्चिमी तट पर लगभग 6500 स्क्वायर किलोमीटर तक फैले गुजरात में सौराष्ट्र जिले की तरफ जब बढ़ते हैं तो दूर से ही आसमान को चीर कर सनातन धर्म का बखान करती धर्म ध्वजा यह संदेश देती हुई दिखती है कि यहां से साक्षात मोक्ष का पवित्र धाम शुरू होता है. यहां से हिंदू धर्म का तप तीर्थ शुरू होता है और यहीं से शुरू होता है द्वारकाधीश का साम्राज्य! जिसका कुछ हिस्सा आज समुद्र की गहराइयों में कहीं गुम सा हो गया है.
हम आपको श्री कृष्ण के द्वारका शहर की खोज के विषय में बताने वाले हैं जो अद्भुत है, अकल्पनीय है, अविश्वसनीय है. जिसे स्वयं श्री कृष्ण ने बसाया था. जहां पर वह अपनी प्रजा के साथ रहते थे. जहां उनका राजपाट था. लेकिन आखिर ऐसा क्या हुआ था कि यह पूरा साम्राज्य समुद्र की अनंत गहराइयों में समा गया? तो चलिए जानते हैं, इसके पीछे के रहस्य को.
The Lost City of Dwarka
The Sunken City of Dwarka: A Legend or a Myth
कई द्वारों का शहर द्वारका, भारत के सात पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक है. यह ना केवल धार्मिक रूप से बल्कि पुरातात्विक रूप से भी महत्वपूर्ण है. गुजरात राज्य में सौराष्ट्र प्रायद्वीप के पश्चिमी सिरे पर स्थित द्वारका चार धामों में से एक और यात्रा के लिए सप्तपुरी शहर यानी सात पवित्र शहरों में से एक के रूप में जानी जाती है. हालांकि द्वारका की पौराणिक और ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि रहस्य में डूबी हुई है. इसकी पौराणिक पृष्ठ भूमि को देखें तो हम पाएंगे कि भगवान विष्णु के आठवें अवतार कृष्ण ने इसे बसाया था.
श्रीमद् भागवत के पवित्र ग्रंथ के अनुसार कृष्ण का जन्म मथुरा की जेल में हुआ था. लेकिन उनके पिता वासुदेव उनकी सुरक्षा को देखते हुए उन्हें गोकुल ले आए, जहां उनका पालन पोषण हुआ. जहां वो गोपियों और राधा के साथ रासलीला रचाते बड़े हुए. वहीं पर उन्होंने अपने मामा और मथुरा के क्रूर राजा कंस का वध किया. कंस के ससुर जरासंध के 18 बार मथुरा पर आक्रमण करने के कारण वह सारी प्रजा को लेकर पश्चिम की ओर निकल गए. जहां पर भगवान श्री कृष्ण ने एक द्वीप शहर स्थापित करने का निर्णय लिया.
पौराणिक ग्रंथों की माने तो श्री कृष्ण ने द्वारका बसाने के लिए समुद्र देवता से जमीन ली और महान आर्किटेक्चर विश्वकर्मा से रातों-रात द्वारका का निर्माण करवाया. विशाल दीवारों से घिरी यह नगरी वास्तुकला की बेहतरीन मिसाल थी. धन दौलत से समृद्ध इस नगर के दरवाजे सोने के थे. हिंदू पुराणों की माने तो द्वारका का निर्माण कृष्ण ने कुश स्थली नामक स्थान के निकट किया था.
शहर तेजी से उभरा इसमें लगभग 900 महलों में हजारों लोग रहते थे. शहर पूरी तरह से किले बंद था और केवल जहाज द्वारा ही यहां तक पहुंचा जा सकता था. लेकिन श्री कृष्ण ने जिस शहर को इतने प्यार से समुद्र के बीच में बसाया, वह शानदार शहर उसी समुद्र में डूब गया. द्वारका का यह खोया हुआ शहर आज दुनिया भर में चर्चा का विषय बन गया है. लेकिन सवाल अभी भी वही है कि यह डूबा कैसे?
दोस्तों द्वारका नगरी के डूबने के पीछे कई तरह की कहानियां और मिथक फैले हुए हैं. महाभारत के अनुसार श्री कृष्ण पांडवों की तरफ से महाभारत के युद्ध में शामिल हुए थे और इस युद्ध में पांडवों की जीत हुई थी और कौरवों की हार. 100 पुत्रों के शोक से दुखी गांधारी ने क्रोध में आकर श्री कृष्ण को श्राप दे दिया कि जिस तरह कौरवों के वंश का नाश हुआ है ठीक उसी प्रकार पूरे यदुवंश का भी नाश होगा.
धीरे-धीरे द्वारका में हालात तनावपूर्ण होने लगे. उसके पश्चात सभी यदुवंशी आपस में लड़ लड़कर मरने लगे थे. सभी यदुवंशियों की मृत्यु के बाद बलराम ने भी अपना शरीर त्याग दिया. बलराम के देह त्यागने के बाद श्री कृष्ण उदास होकर वन में विचरण करने लगे. घूमते-घूमते वे एक स्थान पर बैठ गए और गांधारी द्वारा दिए गए श्राप के बारे में विचार करने लगे और फिर एक पेड़ की छाव में बैठ गए.
इसी समय जरा नामक एक शिकारी का बाण उनके पैर में आकर लगा. जिसने दूर से उनके पैर के अंगूठे को हिरण का मुख समझकर बाण चला दिया था. जब वह शिकारी शिकार उठाने पहुंचा तो श्री कृष्ण को देखकर क्षमा मांगने लगा. कान्हा ने उसे अभयदान देकर देह त्याग दी.
अर्जुन को कृष्ण के देह त्याग का जब संदेश मिला तो वह बहुत दुखी हुए. इसके बाद अर्जुन ने द्वारका पहुंचकर वासुदेव जी से कहा कि वह नगर में शेष बचे सभी लोगों को हस्तिनापुर चलने की तैयारी का आदेश दें. फिर अर्जुन ने प्रभास क्षेत्र जाकर सभी यदुवंशियों का अंतिम संस्कार किया. अगले दिन वासुदेव जी ने भी प्राण त्याग दिए. उस पर उनका अंतिम संस्कार कर अर्जुन सभी महिलाओं और बच्चों को लेकर द्वारका से निकल गए. जैसे ही उन लोगों ने नगर छोड़ा द्वारका का राजमहल और नगरी समुद्र में समा गए.
प्रचलित कहानियों के मुताबिक माता गांधारी के अलावा दूसरा श्राप ऋषियों द्वारा श्री कृष्ण के पुत्र साम्ब को दिया गया था. दरअसल एक बार महर्षि विश्वामित्र, देव ऋषि नारद और कंब द्वारका गए. तब यादव वंश के कुछ लड़के ऋषियों के साथ उपवास करने के प्रयोजन से श्री कृष्ण के पुत्र सांब को स्त्री वेश में ले गए और ऋषियों से कहा कि यह स्त्री गर्भवती है. आप इसके गर्भ में पल रहे शिशु के बारे में बताइए कि क्या जन्म लेगा. ऋषियों ने अपना अपमान होता देख श्राप दिया कि इसके गर्भ से मुसल उत्पन्न होगा और उस मुसल से समस्त यदुवंशी कुल का विनाश होगा.
महाभारत के 23वें और 34 वें श्लोक के अनुसार जिस दिन कृष्ण 125 साल के बाद आध्यात्मिक दुनिया में शामिल होने के लिए पृथ्वी छोड़ गए थे. उसी दिन शहर अरब सागर में डूब गया था और यही वह समय था जब कलयुग की शुरुआत हुई थी.
समुद्र के देवता ने भूमि को एक बार फिर से वापस ले लिया। द्वारका के खोए हुए शहर को डुबो दिया। लेकिन भगवान कृष्ण के महल को बचा लिया। यह भी कहा जाता है कि खोई हुई द्वारका नगरी पर एक उड़ने वाली मशीन जहाज द्वारा हमला किया गया था. यह लड़ाई एलियंस सिद्धांत कारों की रुचि को बढ़ाती है. क्योंकि ऐसा लगता है कि यह लड़ाई तकनीक और शक्तिशाली हथियारों के साथ लड़ी गई थी. स्पेसशिप ने ऊर्जा हथियार का इस्तेमाल करके शहर पर हमला किया जो देखने वालों को बिजली गिरने जैसा लगा और यह इतना विनाशकारी था कि हमले के बाद शहर का अधिकांश हिस्सा खंडहर हो गया.
दोस्तों वैसे तो द्वारका आज तक एक रहस्य बना हुआ है. लेकिन आज इसके अवशेष पानी के नीचे खोजे जा रहे हैं. आइए जानते हैं इसे लेकर हमारे आर्कियोलॉजिस्ट क्या कहते हैं.
डिस्कवरी ऑफ द सबमर्जड किंगडम
दोस्तों महाभारत के अनुसार तो प्राचीन द्वारका समुद्र में डूब गई थी. जिसकी वजह से आज एक महत्वपूर्ण पुरातात्विक स्थल बन गई है. द्वारका के समुद्री अवशेषों पर सबसे पहली नजर भारत वायु सेना के पायलटों की पड़ी थी जो उस दौरान समुद्र के ऊपर से उड़ान भर रहे थे. इसके बाद ही 1970 में जामनगर के गैजेटियर में इसका उल्लेख किया गया.
इससे पहले लोगों का कहना था कि द्वारका नगरी एक काल्पनिक नगर है और काल्पनिक कहानियों का कोई इतिहास नहीं होता। लेकिन इस शहर का पहला ऐतिहासिक रिकॉर्ड छठी शताब्दी में गुजरात के भावनगर के सामंत सिम्हादित्य के पालिताना कॉपर प्लेट में पाया गया है. यह शिलालेख द्वारका के सौराष्ट्र के पश्चिमी तट की राजधानी में है और इसमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि इसमें कहा गया है कि श्री कृष्ण यहां रहते थे.
इसके बाद से ही लोगों को भरोसा होने लगा. इस पर सीएसआईआर यानी काउंसिल ऑफ साइंटिफिक एंड इंडस्ट्रियल रिसर्च के पूर्व प्रमुख और वैज्ञानिक डॉक्टर राजीव निगम महाभारत को कोट करते हैं. महाभारत में कृष्ण ने कहा है कि द्वारका शहर सागर से निकली जमीन पर बनाया गया था. लेकिन जब उसका पानी दोबारा अपनी पुरानी जगह पर आया तो शहर डूब गया.
वह बताते हैं पानी के नीचे खुदाई का काम मौजूदा द्वारकाधीश मंदिर के पास से शुरू हुआ था. जहां कई मंदिरों की एक श्रृंखला मिली। जिसका मतलब यह है कि जैसे-जैसे पानी चढ़ता गया. मंदिरों की जगह आगे सरकती गई. इस अवलोकन ने भारत के चर्चित आर्कियोलॉजिस्ट डॉक्टर एस आर राव को आश्वस्त किया कि क्यों ना समुद्र के किनारे खुदाई की जाए ताकि पता चल सके कि यहां इस डूबे हुए शहर के वास्तविक सबूत हैं या नहीं?
इसके बाद साल 1979 में आर्कियोलॉजिस्ट डॉक्टर एस आर राव और उनकी टीम ने इसकी खोज शुरू की. उन्होंने मिलकर तथ्यों के सबूत तलाशने शुरू कर दिए. बता दें कि एस आर राव कहते हैं कि जिस बात ने उन्हें द्वारका में अनिश्चित उत्खनन के लिए सबसे ज्यादा प्रेरित किया वह था महाभारत की तिथि और उसके ऐतिहासिक तथ्यों को लेकर उठ रहा विवाद।
इसी खोज में समुद्र से हजारों फीट नीचे उसकी गहराइयों में द्वारका के महत्त्वपूर्ण अवशेष मिले। जिसमें 560 मीटर लंबी द्वारका की दीवार मिली जिसकी बनावट महाभारत के द्वारका विवरण से मिलती जुलती है. पौराणिक ग्रंथों में मिले विवरण के अनुसार द्वारका में कुल 50 खंभे थे. आर्कियोलॉजिस्ट को इस खोज में करीब 30 खंभे मिले थे. इसके साथ ही उन्हें वहां पर उस समय के बर्तन भी मिले जो लगभग 1528 से लेकर 3000 ईसा पूर्व के थे.
साइट से 500 से अधिक प्राचीन वस्तुएं प्राप्त हुई. कुछ नमूने तो 2000 साल के सांस्कृतिक उत्तराधिकार को मजबूती से स्थापित करते हैं. पत्थर के ब्लॉक, खंभे और सिंचाई प्रणालियों की खोज की गई. हालांकि इन खोजों की वास्तविक तारीख पर अभी भी विवाद चल रहा है. लेकिन यह सभी सबूत इस बात को प्रमाणित करते हैं कि कृष्ण नगरी द्वारका कोई काल्पनिक कहानी नहीं है, वो असल में मौजूद थी.
इस खोज को लेकर भारतीय समुद्र वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत के पश्चिमी तट पर मिले पुरातात्विक अवशेष 9000 साल से भी अधिक पुराने हो सकते हैं. 2005 में द आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा द्वारका नगरी की खोज फिर से आरंभ की गई. भगवान श्री कृष्ण की नगरी से जुड़े दावों और अनुमानों के वैज्ञानिक कसौटी पर कसने का समय आया साल 2007 में. जब कच्छ की खाड़ी के पास समुद्र तटीय क्षेत्र में पुरातत्व विशेषज्ञों ने नौसेना के गोताखोरों की मदद से समुद्र के भीतर उत्खनन कार्य किया और वहां पड़े चूना पत्थरों के खंडों को भी ढूंढ निकाला।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के समुद्री पुरातत्व विशेषज्ञों ने इन दुर्लभ नमूनों को देश विदेशों की पूरा प्रयोगशालाओं को भेजा मिली। जानकारी के मुताबिक यह नमूने सिंधु घाटी सभ्यता से कोई मेल नहीं खाते। लेकिन यह इतने प्राचीन थे कि सभी दंग रह गए. नौसेना के गोताखोरों ने 40000 वर्ग मीटर के दायरे में यह उत्खनन किया और वहां पड़े भवनों के खंडों के नमूने एकत्र किए जिन्हें आरंभिक तौर पर चूना पत्थर बताया गया था.
पुरातत्त्व विशेषज्ञों ने बताया कि यह खंड बहुत ही विशाल और समृद्धशाली नगर और मंदिर के अवशेष हैं. भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के निदेशक ए के सिन्हा के अनुसार द्वारका में समुद्र के भीतर ही नहीं बल्कि जमीन पर भी खुदाई की गई थी और 10 मीटर गहराई तक किए गए इस उत्खनन में सिक्के और कई कलाकृतियां भी प्राप्त हुई.
डॉक्टर आलोक त्रिपाठी कहते हैं कि साल 2007 में विस्तृत खुदाई की गई है. मैं इस प्रोजेक्ट का निदेशक था. यहां हमें 10 मीटर की एक जगह में खंडहर मिले जिन्हें समंदर ने तबाह कर दिया था. हमने तकरीबन दो नॉटिकल मील गुना, एक नॉटिकल मील इलाके का हाइड्रोग्राफिक सर्वे करवाया। इस इलाके के हाइड्रोग्राफिक सर्वे के डटा से पता चलता है कि नदी का प्रवाह बदल रहा है. नौसेना के साथ चलाए गए इस तीसरे अभियान के शुरुआती नतीजों की जानकारी देते हुए भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के समुद्री पुरातात्विक विशेषज्ञों ने बताया कि इन दुर्लभ नमूनों को देश में ही नहीं बल्कि विदेश की प्रयोगशालाओं को भेजा गया और वहां से मिली जानकारी और कार्बन डेटिंग शोध के मुताबिक यह नमूने 9500 साल पुराने हैं. विदेशी वैज्ञानिक भी इस बात को जानकर हैरान थे.
इन सैंपल्स को विदेशी प्रयोगशालाओं में भेजने का असली मकसद यही था कि इन पर किसी भी तरह का कोई शक ना रहे. इस स्थान पर बड़ी संख्या में लंगर पाए गए. जिससे पता चलता है कि द्वारका एक ऐतिहासिक बंदरगाह था और उसने 15वीं से 18वीं शताब्दी तक भारतीय और अरबी क्षेत्रों के बीच व्यापारिक संपर्कों में भूमिका निभाई होगी।
संस्कृत में द्वारका शब्द का अर्थ द्वार या दरवाजा है जो संकेत देता है कि यह प्राचीन बंदरगाह शहर भारत आने वाले विदेशी नाविकों के लिए एक पहुंच बिंदु के रूप में कार्य करता होगा। पुरातत्वविद अब प्राचीन शहर की दीवारों की नींव की खोज के लिए पानी के नीचे खुदाई की तैयारी कर रहे हैं. भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण के निदेशक ए के सिन्हा के अनुसार द्वारका में समुद्र के भीतर ही नहीं बल्कि जमीन पर भी खुदाई की गई थी और 10 मीटर गहराई तक किए गए उस उत्खनन में सिक्के और कई कलाकृतियां भी मिली हैं.
उन्होंने माना कि जमीन पर मिले अवशेषों की समुद्र में मिले अवशेषों से समानता मिलती है. इस विषय पर जानकारी देते हुए भारत के समुद्र तकनीकी विभाग के मंत्री रहे मुरली मनोहर जोशी ने बताया था कि ध्वनि चित्रों से मानव निर्मित शिल्प का पता तो चला ही है साथ ही एक प्राचीन नदी का भी पता लगाया गया है जो 9 किलोमीटर तक लंबी है और इसके किनारे पर ही इस प्राचीन सभ्यता के अवशेष और शिल्प पाए गए हैं.
समुद्र तल से जो शिल्प निकाले गए उनका भी कार्बन डेटिंग शोध किया गया. जिससे यह पता चला कि वह भी करीब 9000 साल पुराने हैं. यह शिल्प लकड़ियों के हैं और इसमें दरार पढ़ने के चिन्ह हैं.
मुरली मनोहर जोशी ने कहा कि उनके मंत्रालय ने इस खोज का अध्ययन करने के लिए एक दल बनाया था. जिसका काम इस खोज को आगे बढ़ाना और यह पता लगाना था कि इस इलाके के प्राचीन स्थानों से क्या संबंध है.
दोस्तों पुराणों और धर्म ग्रंथों में में वर्णित प्राचीन द्वारका नगरी और उसके समुद्र में समा जाने से जुड़े रहस्यों का पता लगाने का कार्य पिछले कई सालों से रुका पड़ा था. आर्कियोलॉजिस्ट ए के सिन्हा ने कहा कि पानी में खोज के कार्यों के लिए बड़े आधारभूत संरचना की जरूरत है. प्राचीन द्वारका नगरी की खोज जैसी बड़ी परियोजना के लिए समुद्र में प्लेटफार्म और काफी एक्सपीरियंस वाले गोताखोरों की जरूरत होती है जो पानी में गहराई तक जा सके.
द्वारका नगरी के समुद्र में समा जाने के र के बारे में पूछे जाने पर ए के सिन्हा का कहना है कि द्वारका नगरी का एक बड़ा हिस्सा समुद्र में डूब गया था. लेकिन इसके कारण को लेकर पूरे दावे के साथ कुछ भी नहीं कहा जा सकता द्वारका नगरी के नष्ट होने के मत पर कई सवाल उठते हैं. कोई कहता है कि यह कोई प्राकृतिक घटना का काम हो सकता है. लेकिन कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि 9000 साल पहले जब हिम युग समाप्त हुआ तो समुद्र का जल स्तर इस कदर बढ़ा कि उसमें देश दुनिया के कई बड़े शहर डूब गए. उन्हीं शहरों में से एक द्वारका भी था.
एक सिद्धांत के अनुसार खोया हुआ द्वारका शहर लगभग 3500 साल पहले पुनः प्राप्त भूमि पर बनाया गया था और समुद्र का स्तर बढ़ने पर पानी में डूब गया था. वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चला है कि 1000 ईसवी में अपने वर्तमान स्तर तक पहुंचने से पहले क्षेत्र में समुद्र का स्तर कई बार बढ़ा और घटा है समुद्र के स्तर में यह परिवर्तन भूवैज्ञानिक गड़बड़ी से लेकर तटीय कटाव तक किसी भी कारण से हो सकता है.
हालांकि इस मामले पर आज भी शोध जारी है और अब तक जो भी सबूत मिले हैं उससे सिद्ध होता है कि यह एक असली घटना है. हमारे बीच एक और सबूत यह भी है कि महाभारत में जिन 35 शहरों के बारे में लिखा हुआ है वह आज भी हमारे बीच मौजूद हैं. आर्कियोलॉजिकल डिपार्टमेंट को इसके कई प्रमाण मिले हैं. भारत और इसके आसपास के कई देशों का महाभारत में उल्लेख हुआ है. इंद्रप्रस्थ भारत की राजधानी दिल्ली है. हस्तिनापुर आज उत्तर प्रदेश राज्य का मेरठ जिला है. कुरुक्षेत्र हरियाणा का एक जिला है. वहीं गांधार आज अफगानिस्तान में स्थित है तो वहीं श्री कृष्ण की द्वारका भी गुजरात का एक शहर है.
कंक्लूजन
दोस्तों इस रिसर्च से इतना कहा जा सकता है कि द्वारका एक छोटा शहर नहीं था बल्कि एक विस्तृत और समृद्ध राज्य था. यह सभी साक्ष्य और सबूत जब भविष्य में भारत के समृद्ध और प्राचीन इतिहास को बताने के रूप में पेश किए जाएंगे तो यह हमारी सभ्यता के लिए बड़े ही गर्व की बात होगी। आप द्वारका के डूबे शहर के बारे में क्या सोचते हैं कमेंट करके जरूर बताएं.