ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन दुर्घटना का जिम्मेदार कौन है, क्या इससे बचा जा सकता है? Who caused Odisha Train Tragedy

Who caused Odisha Train Tragedy

Who caused Odisha Train Tragedy: रेलवेज को भारत की जीवन रेखा और जीवनदायिनी कहा जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि इंडियन रेलवेज हर रोज 12500 से ज्यादा trainsसबसे पहले हम उड़ीसा के बालासोर में हुए ट्रेन accident के पीछे का असल कारण जानते हैं.

ओडिशा में हुए ट्रेन एक्सीडेंट की सबसे बड़ी वजह, Who caused Odisha Train Tragedy

Who caused Odisha Train Tragedy
Who caused Odisha Train Tragedy

रेलवे बोर्ड की मेंबर जया वर्मा ने अपने बयान में बताया कि जिस जगह ये हादसा हुआ उस जगह दो मेन लाइन्स थी up और down up line से कोलकाता के शालीमार स्टेशन से चलने वाली ट्रेन नंबर 12841 यानी कोरोमंडल एक्सप्रेस चेन्नई की ओर जा रही थी. दूसरी तरफ डाउन लाइन पर यशवंत एक्सप्रेस आ रही थी जो बेंगलुरु से निकलती थी up line पर जा रही कोरोमंडल एक्सप्रेस को 130 किलोमीटर पर hour की limit मिली हुई थी और ट्रेन के स्पीडोमीटर की details के हिसाब से जिस समय ये हादसा उस समय ये ट्रेन 128 किलोमीटर per hour की स्पीड से दौड़ रही थी.

तभी अचानक कोरोमंडल एक्सप्रेस up line से uploop लाइन की तरफ मुड़ गई और उड़ीसा के भंगा बाजार स्टेशन के पहले नंबर प्लेटफार्म पर खड़ी एक आयरन ओर से भरी freight ट्रेन से टकरा गई. जिस कोरोमंडल एक्सप्रेस को up line से गुजरना था वो signaling सिस्टम के failure की वजह से uploop लाइन पर आ गई। इस जबरदस्त टक्कर ने कोरोमंडल एक्सप्रेस को derail कर दिया और उसके कुछ कोचेस डाउन लाइन पर आ गए और जब ये टक्कर हुई उस समय बेंगलुरु के एम विश्वेश्वरैया से चलकर हावड़ा तक जाने वाली ट्रेन नंब 12864 यानी यशवंत एक्सप्रेस डाउन लाइन से गुजर रही थी.

कोरोमंडल एक्सप्रेस की derail कोचेस की यशवंत एक्सप्रेस के last दो कोचेस के साथ टक्कर हुई जिसके चलते ये ट्रेन भी derail हो गई। हालांकि वैसे तो कोरोमंडल एक्सप्रेस में एलएचबी कोचेस लगे हुए थे। जो काफी light weight होते हैं और इन्हें ऐसे डिजाइनकिया जाता है जैसे एक्सीडेंट के दौरान ये टॉपल ना हों। पर आयरन ओर जैसी भारी चीज से लदी भारी भरकम ट्रेन से टक्कर होने के कारण create हुए massive force से इस ट्रेन के coaches topple हो गए।

कोरोमंडल एक्सप्रेस का ड्राइवर अभी भी serious कंडीशन में है। जिन्होंने अपने बयान में कहा है कि उस लाइन पर आगे बढ़ने के लिए उन्हें एक ग्रीन सिग्नल मिला था। इसके अलावा जिस आयरन और फ्रेट ट्रेन से कोरोमंडल एक्सप्रेस टकराई उसके guard accident के समय inspection के लिए फ्रेट ट्रेन से नीचे उतरे हुए थे. जिससे उनकी जान बच गई और इसलिए आयरन और फ्रेट ट्रेन के guard का स्टेटमेंट भी रिकॉर्ड कर लिया गया है। लेकिन अभी भी काफी सारी official information का बाहर आना बाकी है।

फिलहाल ऐसा बताया जा रहा है कि कोरोमंडल एक्सप्रेस के loco pilot और असिस्टेंट लोको पायलट का ट्रीटमेंट isolation में किया जा रहा है और safety reasons की वजह से उनके ट्रीटमेंट की लोकेशन को reveal नहीं किया गया है। दोनों को काफी major injuries हुई है और दोनों इस वक्त आईसीयू में अपनी जिंदगी के लिए लड़ रहे हैं।

इस हादसे ने कई जिंदगियों को ऐसा जख्म दिया है जिसे शायद वो ताउम्र ना भूल पाए. लेकिन यहाँ सवाल ये खड़ा होता है कि क्या ये कोई once in a blue moon होने वाला event है? क्या ये हादसे देश की एक बड़ी कमजोरी को दर्शाते है?

आंकड़ों में जानिये ट्रेन दुर्घटनाओं को

दरअसल भारत में train accident एक harsh reality है और रेलवे casualty से related various agencies का डाटा इस बात को prove करता है। आज देश में हो रही सभी रेलवे accident के लिए तरह-तरह के reasons responsible होते हैं। जैसे ड्राइवर्स की fault, signal man की गलती, mechanical failures या sabotage यानी जानबूझकर किया गया नुकसान। लेकिन जो impacts रेलवे accidents में सबसे deadly incidences बन जाते हैं, वो हैं derailment.

भारत की सीएजी के द्वारा 2021 में ट्रेन derailment से related एक रिपोर्ट publish की गई और इस रिपोर्ट में उन्होंने कुछ हैरान करने वाले facts लोगों के सामने रखे। रिपोर्ट के according साल 2018 से 2021 के बीच होने वाले सभी train accidents में से 70% accidents derailments से हुए थे। derailments की वजह से और train के collision की वजह से हुए जान के नुकसान पर नजर डालें तो एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक, इन दो reasons की वजह से टोटल 11036 लोगों की जान गई है।

हालांकि अगर आप year by year डाटा के according देखेंगे तो लास्ट 10 साल में इस आंकड़े में काफी कमी आई है. लेकिन फिर भी अभी भी ये एक significant reason है. जिसकी वजह से ट्रेन accidents में लोग अपनी जान गंवाते हैं। scroll के द्वारा publish एक चार्ट हमें 2018 से 2021 के बीच हुए train derailments का डाटा देता है। 2017-2018 में जहाँ total 55 concidence हुए थे वहीं 2020-21 में 15 derailment incidents (ट्रेन का पटरी से उतरना) रिपोर्ट किए गए.

लेकिन उसके बावजूद अलग-अलग region से समय-समय पर इस तरह के accidents होते रहते हैं. उदाहरण के तौर पर जनवरी 2022 में West Bengal के अलीपुरद्वार में बीकानेर गुवाहाटी एक्सप्रेस derail हो गई. जिसकी वजह से 9 लोगों की मृत्यु हो गई और 36 लोग घायल हो गए। इसी तरह का एक major railway accident 2016 में उत्तरप्रदेश के कानपुर में हुआ। जब राजेंद्र नगर पटना एक्सप्रेस के derailment की वजह से 140 causalities रिपोर्ट की गई।

ऐसे में सवाल उठता है कि सरकार द्वारा modern technology पर हजारों करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद इन fatal रेलवे accidents के पीछे आखिर कारण क्या है.

सिग्नलिंग सिस्टम का एरर

जिस प्रकार से ट्रैफिक लाइट्स रोड के ट्रैफिक को कंट्रोल करती हैं, उसी प्रकार से रेलवे सिग्नल्स भी ट्रैक्स पे रेलवे ट्रैफिक को कंट्रोल करते हैं. ट्रेन सिग्नल्स के केस में अगर छोटा सा भी एरर आ जाए तो वो लोगों के लिए जानलेवा साबित हो जाता है. इसलिए प्रीकॉशन के तौर पर रेलवे ट्रैफिक का सिग्नल डिफॉल्ट वे में हमेशा रेड रहता है, जो कि डेंजर का साइन है. पुराने समय में सिग्नल्स, मैनुअल और केबल operated हुआ करते थे, लेकिन समय के साथ उन्हें automatic सिग्नल्स में convert कर दिया गया.

इंडियन रेलवेज में signaling system interlocking root relay mechanism पे काम करता है। इसके दो components होते हैं, distance signal और home signal और इस प्रकार की signaling में failure होने के different reason हो सकते हैं। जिसमें कंप्यूटर नेटवर्क के ब्रेकडाउन होने की वजह से failure या human error जैसे ड्राइवर का सिग्नल को फॉलो ना कर पाना या उसे मिस कर देना शामिल है। सिग्नल फेल होने की स्थिति में ट्रैक सर्किट भी फेल हो जाता है यानी सिग्नलर को अपनी स्क्रीन या पैनल पर ये पता नहीं चलेगा कि ट्रैक का कौन सा सेक्शन clear है और कौन सा नहीं?

ये पता ना होने की वजह से train गलत tracks पर आ जाती है और ऐसे में accident की संभावना प्रबल हो जाती है। अभी तक की reports के मुताबिक उड़ीसा के बालासोर में हुए train derailment के case में signaling system failure को ही reason माना जा रहा है। हालांकि जाँच अभी भी जारी है।

मौसम की खराबी की वजह से ट्रैक में गड़बड़ी

derailment का दूसरा बड़ा कारण है, ट्रैक्स में fault या फिर cracks. इंडिया एक tropical country है और काफी extreme weather conditions का सामना करती है। ऐसे में स्टील के रेलवे ट्रैक्स को भी मौसम की मार झेलनी पड़ती है और extreme summer conditions का के दौरान ये रेलवे ट्रैक्स अपने original साइज and position से ज्यादा expand हो जाते हैं और इसी तरह extreme winter conditions के दौरान ये रेलवे ट्रैक अपने original साइज और position से ज्यादा कॉन्ट्रैक्ट हो जाते हैं। ये हर साल में एक बार ट्रैक्स को expand होना पड़ता है और एक बार कांट्रैक्ट।

multiple times कॉन्ट्रैक्शन और expansion होने की वजह से स्टील ट्रैक्स कमजोर हो जाते हैं और इस कारण with टाइम इनमें cracks develop हो जाते हैं। रेलवे ट्रैक्स के इन cracks को अगर रेलवे employees स्पॉट नहीं कर पाते तो ये गलती रेलवे accidents को दावत देती है। इंडियन रेलवेज में ट्रेन की संख्या population के साथ grow करती जाती है।

इस चार्ट को देखिए। ये इंडियन रेलवेज में growing ट्रेन डिमांड के बारे में एक क्लियर पिक्चर देता है। 200 से 700 किलोमीटर के average distance की needs को cater करने के लिए 2021 में इंडियन रेलवेज को सिर्फ 70 ट्रेन्स की need थी. वहीं 2031 में ये डिमांड बढ़कर 144, 2041 में 214 और 251 में ये need 306 ट्रेन sets तक पहुंचने वाली है। यानि ट्रेन सेट्स की डिमांड ever growing है। पर जिस स्पीड से ट्रेन के नंबर बढ़ रहे हैं, उस स्पीड से ट्रैक्स का maintenance नहीं होता।

दिसंबर 2022 में ट्रैक maintenance प्रोब्लेम को identify करने के लिए सीएजी ने एक रिपोर्ट तैयार की. इसका नाम था derailment in indian railways। इस रिपोर्ट ने कई सारे issues को cover किया था. जैसे derailment को रोकने के लिए इंस्पेक्शन और maintenance of ट्रैक्स, derailments और collision पर इन्वेस्टिगेशन, preventive recommendations का implementation और राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोच फंड का proper utilization।

सीएजी की रिपोर्ट में ये observe किया गया कि ट्रैक्स का इंस्पेक्शन करने वाली ट्रैक रिकॉर्डिंग कार्ड के इंस्पेक्शन में 30 से 300 % की कमी है यानी अधिकतर समय ये सारी मशीन आउट of use रहती है और उनके use को concern डिपार्टमेंट द्वारा properly प्लान नहीं किया जाता। इसके अलावा ट्रैक रिन्यूअल वर्क के लिए allot किए जाने वाले फंड और राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष के expenditure में 2017 से 2021 के बीच भारी कमी देखी गई।

ट्रैक रिन्यूअल के कामों के लिए जो भी funds locate किए गए थे उन्हें फुली utilize नहीं किया गया और ट्रैक रिन्यूअल के काम में इसी कमी की वजह से 2017 से 2021 के बीच हुई 1127 डिरेलमेंट में से 29 डिरेलमेंट्स लैक ऑफ ट्रैक maintenance की वजह से हुई।

ट्रैक maintenance की need को साल 2016 में स्टैंडिंग कमेटी ऑन रेलवेज ने पहचान लिया था और बताया कि ट्रैक्स को सेफ और फिट कंडीशन में maintain किया जाना चाहिए। इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में ये भी बताया कि ट्रैक रिन्यूअल के लिए जो टारगेट सेट किए गए हैं वो ऑन ग्राउंड एक्चुअल रियलिटी से काफी दूर हैं। साथ ही 2017 से लेकर 2020 के बीच कम्पलीट ट्रैक रिन्यूअल का जो टारगेट रखा गया था वो भी achieve नहीं किया जा सका है। भारत में ट्रैक्स के maintenance का स्टेटस इतना poor है कि ट्रेन अपनी maximum स्पीड capacity पर नहीं चल पाती।

for example वंदे भारत एक्सप्रेस जिसे 180 किलोमीटर per hour की स्पीड से चलाने के लिए बनाया गया है। ट्रैक्स की poor quality की वजह से इसकी operational स्पीड मात्र 123 किलोमीटर per hour की है। सिर्फ इतना ही नहीं भारत को न्यू ट्रैक्स की भी need है और इसी प्रोब्लेम को identify करते हुए इंडियन रेलवेज एक प्लान लेकर आई थी जिसके जरिए गुड्स एंड फ्रेट ट्रेन्स के लिए एक सेपरेट रेल कॉरिडोर बनाए जाने का प्लान था। इस कॉरिडोर को dedicated फ्रेट कॉरिडोर का नाम दिया गया. इस freight कॉरिडोर के पूरी तरह से शुरू होने के बाद उम्मीद की जा रही है कि पुराने ट्रैक्स पर से लोड को कम किया जा सकेगा

दूसरे देशों के रेलवे नेटवर्क अपनी सेफ्टी कैसे करते हैं

इंडियन रेलवे जितनी बड़ी पॉपुलेशन को कैटर करता है उसे देखते हुए इसका किसी developed देश के साथ comparison करना पूरी तरह शायद justifiable नहीं है। अमेरिका के पास भारत से कई गुना बड़ा रेलवे नेटवर्क है. लेकिन उस रेलवे नेटवर्क को use करने वाली population काफी कम है। हालांकि टेक्नोलॉजी के terms में इंडियन रेलवेज को दूसरे इंटरनेशनल रेलवेज के साथ compare करके हम इंडियन रेलवेज की shortcomings को पता लगा सकते हैं और दूसरे देशों से सीख सकते हैं।

तो देखिए आज जब वर्ल्ड में safest रेलवे system की बात है तो उसमें यूरोपियन रेलवे सिस्टम का नाम सबसे ऊपर आता है। 2019 में जारी एक रिपोर्ट ये बताती है कि यहाँ पिछला रेलवे accident 12 साल पहले हुआ था और उसके बाद से यूरोपियन रेलवे में एक भी रेलवे accident रिपोर्ट नहीं किया गया. पर यूरोपियन रेलवेज हमेशा से safest नहीं थे।

इस रेलवे system ने 1980 और 1990 का भी वो समय देखा है. जब train crashes और deadly रेलवे accidents लगभग हर साल होते थे। फिर चाहे वो 1988 का Clapham Junction Crash हो या फिर 1999 का Ladbroke Grove rail crash. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर यूरोपियन रेलवेज ने ऐसा क्या किया जो आज ये world के safest रेलवे system है?

यूरोपियन trains की safety की तरफ इस जबरदस्त journey में सबसे बड़ा रोल निभाया है। ईटीसीएस यानी यूरोपियन ट्रेन कंट्रोल सिस्टम ने? ये एआरटीएमएस यानी यूरोपियन रेल ट्रैफिक मैनेजमेंट सिस्टम का signaling और कंट्रोल component है? इस अकेले सिस्टम ने यूरोपियन रेलवे में use होने वाले सभी safety equipments को replace कर दिया। असल में यूरोपियन train कंट्रोल system में 2 तरह के components का use किया जाता है. जहाँ एक component tracks के साथ लगाया जाता है और दूसरा component ड्राइवर cabin के अंदर फिट किया जाता है।

आसान भाषा में अगर इस process को समझे तो tracks की पूरी information को wireless के माध्यम से ट्रेन ड्राइवर्स को पहुंचाया जाता है। यानी drivers को ट्रैक के किनारे लगे signals को देखने की और उसे follow करने की कोई भी need नहीं है। क्योंकि उसे सारी information cabin के अंदर ही पहुंचा दी जाती है। इसके अलावा यूरोपियन रेलवेज में TPWS यानी ट्रेन protection and warning system का भी use किया
जाता है।

system का use करके किसी भी खतरे को भापने पर ट्रेन्स automatic breaks लगा देती है. जिससे accident को prevent किया जा सकता है। ऐसी किसी भी स्थिति में जब ट्रेन बिना authority किसी danger सिग्नल को पार कर जाए या फिर किसी danger सिग्नल को तेजी से अप्रोच करे या फिर ट्रैक्स पर परमिट स्पीड से ज्यादा तेजी से भागे तो टीपीडब्लूएस काम में आता है और इस प्रकार के dangers को sense करके automatic breaks को apply करता है.

इंडियन रेलवे सिस्टम में ऐसी कोई भी टेक्नोलॉजी फिलहाल मौजूद नहीं है। लेकिन 2022 में इंडियन रेलवेज ने अपना खुद का एंटी collision सिस्टम develop कर लिया है जिसे कवच का नाम दिया गया. कवच high frequency radio waves का use करके dangers को sense करता है और ड्राइवर के respond ना करने पर automatic breaks को apply करता है. research डिजाइन and standard organization द्वारा develop किए गए इस system का aim है जीरो accident.

ये anti collision system safety integrity level four को अचीव कर चुका है जो highest certification है। इस level का certificate मिलने का मतलब है कि कवच system में 10000 साल में सिर्फ एक error होने के chances है। गवर्नमेंट ने aim किया था कि साल 2022-23 तक 2000 किलोमीटर का ट्रैक कवच के under लाया जाए। लेकिन उड़ीसा के जिस ट्रैक पर ये mishappening हुई वो ट्रैक कवच से equipped नहीं था।

हालांकि इस रेलवे accident को लेकर जब रेलवे मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव से ये सवाल पूछा गया कि क्या कवच इस accident को रोक सकता था? तो उनके जवाब में उन्होंने बताया रेलवे ट्रैक configuration में changes के कारण हुए हैं और कवच सिस्टम इस चीज को detect करने के लिए नहीं बना है। भले ही इस पर्टिकुलर एक्सीडेंट के केस में कवच का implication ना हो पर भारत में ट्रेन कॉलेजंस को रोकने के लिए कवच के साथ-साथ सरकार को और भी टेक्नोलॉजिकल और नॉन टेक्नोलॉजिकल रिफॉर्म्स introduce करने की जरूरत है। जिससे इन accidents को avoid किया जा सके और इसके लिए यूरोपियन रेलवे सिस्टम से काफी इंस्पिरेशन ली जा सकती है।

पॉसिबल सोलूशन्स

इंडियन रेलवे सिस्टम में सेफ्टी को इंश्योर करने के लिए कवच एक important dimension हो सकता है पर पूरे रेलवे network में इसे implement करना फिलहाल दूर की बात लगती है। इसलिए कवच के अलावा इंडियन रेलवेज को कुछ basics को सुधारने पर ध्यान देना चाहिए ताकि ऐसे रेलवे accidents को prevent किया जा सके।

इनमें सबसे पहला स्टेप है ट्रैक्स का प्रॉपर और स्पीडी maintenance. इसके लिए इंडियन रेलवेज में employees को बढ़ाए जाने की need है ताकि smaller सेक्शन पर ऑन ग्राउंड ज्यादा employees को लगाया जा सके. जो ट्रैक्स के प्रॉपर maintenance को ensure कर सके।

दूसरा स्टेप है पुराने ट्रैक्स को हटाकर नए ट्रैक्स को बिछाना। extreme weather conditions की वजह से ट्रैक्स में जो fractures होते हैं वो पुराने ट्रैक्स में ज्यादा देखे जाते हैं। ऐसे मे नए ट्रैक्स इन weather condition को sustain करने के लिए better होंगे। साथ ही साथ नए ट्रैक्स की मदद से इंडियन रेलवेज की trains को उनकी maximum स्पीड पर भी safely से चलाया जा सकेगा और ट्रैक्स के लोड को भी कम किया जा सकेगा।

तीसरा स्टेप है इंडिया के signaling system को बेहतर करना। इसके लिए इंडिया यूरोपियन train कंट्रोल system जैसा एक indigenous system develop कर सकता है। ताकि ड्राइवर्स को ट्रैक के किनारे लगे सिग्नल्स के real time information केबिन के अंदर ही provide कराई जा सके। complex technique होने के कारण अगर इसे develop करना इंडिया के लिए अभी feasible ना हो या फिर इसको बनाने में टाइम लगे तो फिलहाल के लिए भारत इसे outsource भी कर सकता है।

इसके अलावा गोवेर्मेंट को रेलवे से जेनेरेट होनेवाले ravenue पर डिपेंडेंट ना रहकर रेलवे सेक्टर में इन्वेस्टमेंट को बढ़ाना चाहिए। क्योंकि रेलवे infrastructure की cost काफी high होती है और इसे अकेले इंडियन रेलवे organisation bear नहीं कर सकता यानी इसमें इंडियन गवर्नमेंट का साथ जरूरी है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए फरवरी में यूनियन फाइनेंस मिनिस्टर निर्मला सीतारमण ने रेलवे के लिए 240000 करोड़ का बजट announce किया था। जो आज तक की डेट का highest बजट था।

साथ ही हम बेहतर technologies को adopt कर सकते हैं, जो इंडियन रेलवे की सेफ्टी को further enhance करें। इन technologies का जिक्र रेलवे मिनिस्टर अश्विनी वैष्णव खुद भी कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि information technology automation और artificial intelligence का इस्तेमाल करके रेलवे accidents को रोका जा सकता है।

इनमें पहला स्टेप है रेलवे की bogies में इंटरनेट of things की चिप्स को इस्तेमाल करना ताकि किसी भी dangerous situation में automatic emergency break apply किये जा सके।

दूसरा स्टेप है कि automatic emergency break supply होने पर एसओएस emergency service और जियो टैगिंग का इस्तेमाल करके आसपास मौजूद सभी trains के automatic break apply हो जाए।

तीसरा स्टेप है कि रेलवे इंजन्स पर एक artificial intelligence कैमरा ultra high स्पीड पर सामने आ रहे objects को detect करें और साथ ही साथ रेलवे ट्रैक्स में किसी भी प्रकार के fracture को भी detect कर सके। ऐसे किसी भी प्रोब्लेम को detect करने पर ये सिस्टम automatic emergency breaks को apply कर सकता है।

चौथा स्टेप ये है कि एक auto route navigation. ज्यादातर सभी ट्रैक roots फिक्स होते हैं और इन ट्रैक roots को auto root navigator में फीड किया जा सकता है। अगर ट्रेन का ड्राइवर गलती से किसी और route पर ट्रेन को ले जाए तो automatic alarm beep करने लगेंगे और समय रहते किसी मिस happening को रोका जा है.

फिफ्थ स्टेप है ड्रोन से रेलवे ट्रैक्स को मॉनिटर करना। ड्रोन का use करके ट्रेन में पहुंचने से काफी समय पहले ही रेलवे ट्रैक्स में किसी भी तरह की प्रॉब्लम को डिटेक्ट किया जा सकता है. रेलवे मिनिस्टर के मुताबिक ये सोल्यूशन काफी एक्सपेंसिव हो सकता है. लेकिन ये सबसे बेस्ट पॉसिबल सोल्यूशन है.

लास्ट स्टेप है डीरेलमेंट का डिटेक्शन। जिस प्रकार से किसी कार के collision पर उसके एयर बैग्स डिप्लाई हो जाते है और अपने पैसेंजर्स को सेफ्टी प्रोवाइड करते है उसी प्रकार अगर डीरेलमेंट को डिटेक्ट कर लिया जाए तो किसी मैकेनिज्म का यूज करके इससे होने वाली डेथ्स को रिड्यूस किया जा सकता है.

उड़ीसा में जो हुआ वो शायद सरकार, प्रशासन और व्यक्तिगत गलतियों का एक मिला-जुला रिजल्ट है। इस तरह के हादसों को ना तो भुलाया जा सकता है और ना ही नजरअंदाज किया जा सकता है. ऐसे में सरकार और रेलवे प्रशासन को जल्द से जल्द अपने human और mechanical दोनों error को एलिमिनेट करने की जरूरत है, ताकि इस तरह की घटनाएं दोबारा ना घटित हों.

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