बड़ी कंपनियां बिहार से नफरत क्यों करती हैं, सच आया सामने! बिहार में कोई उद्योग क्यों नहीं है, Why there is no big company in Bihar

Why there is no big company in Bihar

Why there is no big company in Bihar: एक बिहारी सब पर भारी। वैसे तो इस कहावत को यहाँ के top class IAS, IITianS और IIM graduate सच साबित करके दिखाते हैं। लेकिन इतना talent होने के बावजूद इस state में कोई भी अच्छी industry आना ही नहीं चाहती। वैसे तो सीएम नीतीश कुमार का कहना है कि बिहार एक land logged area है। जहाँ port ना होने की वजह से major industries state से दूर भागती है।

लेकिन क्या नीतीश कुमार का यह बयान पूरी तरह से सच को बयां करती है? बिल्कुल नहीं। क्योंकि राजस्थान, पंजाब और हरियाणा जैसे और भी कई सारे states हैं जोकि land logged होने के बावजूद companies की पहली पसंद बने हुए हैं। तो आखिर क्या है असली सच्चाई, बिहार में major industries के ना होने का चलिए detail में जानते हैं।

Why there is no big company in Bihar

इसमें कोई doubt नहीं है कि किसी भी industry के पास port मौजूद होना उसके लिए बहुत ही ज्यादा beneficial होता है। क्योंकि इससे उन्हें एक better transport facility मिलती है, जिसके जरिए वे आसानी से Marine routes को access करके हर तरह के materials को import या export बहुत कम खर्चों में कर सकते हैं। लेकिन इसके बिल्कुल विपरीत कम्पनीज आजकल उन इलाकों में भी अपनी industries establish करना पसंद कर रही है जो की port से कोसों दूर है.

उदाहरण के लिए Rajasthan, Haryana और Punjab को ले लेते है. Rajasthan, सरसों, राई, बाजरा और ऊन का सबसे बड़ा उत्पादक है तो वहीं दूध व मसालों का India में second largest. साथ ही यहाँ अलग अलग तरह के 40000 से भी ज्यादा industries है. जिनमें textile, cement, ceramic और auto जैसे कई सारे उद्योग शामिल है.

अब Haryana की बात करें तो यह राज्य सालों से automobile manufacturing का hub बना हुआ है और it के field में भी इसने काफी तेजी से grow किया है और दोस्तों वहीं अगर हम बात करें पंजाब की तो वो गेहूँ का second largest producer तो है ही लेकिन यहाँ IT companies, leather work, semi conductors और sporting goods जैसे sectors भी दिखाई देते हैं. तो ऐसे में यह कहना कि बिहार में industries इसलिए जाना नहीं चाहती क्योंकि वहां पर port नहीं है. मेरे हिसाब से ये statement बिल्कुल भी justify नहीं करती है.

पर दोस्तों एक interesting बात बताऊं बिहार हमेशा से ही industrialization से इतना दूर नहीं था बल्कि कुछ दशक पहले तो यह major ट्रेडिंग hub हुआ करता था. असल में Bihar fertile land से rich है और यहाँ धान व गेहूँ की खेती बहुत बड़ी संख्या में की जाती है. इसके अलावा Bihar के शाही लीची मखाना और अमरूद जैसे कई सारे fruits देश से लेकर विदेशों में भी काफी famous है. जिसकी supply पहले काफी बड़े level पर की जाती थी.

British शासन के समय Patna एक major trading center के रूप में भी उभरा था और आजादी के बाद जहाँ देश में industrialization लगभग ना के बराबर था. वही Bihar और West Bengal पूरे देश के industrial spot बने. actually बिहार के अंदर काफी बड़ी मात्रा में मिनरल मौजूद थे. इसलिए कंपनीज इन माइंस के करीब ही लोकेट होना चाहती थी ताकि रॉ मटेरियल या मिनरल्स के ट्रांसपोर्टेशन में उन्हें ज्यादा समय या पैसे ना खर्च करना पड़े।

अब दोस्तों क्योंकि ज्यादातर इंडस्ट्री सिर्फ बिहार की तरफ ही जा रही थी. इसीलिए उस समय के पीएम जवाहरलाल नेहरू 1952 में फ्रेट इक्विलाइजेशन पॉलिसी लेकर आए और माल ढोने में लगने वाले खर्च पर सब्सिडी देने लगी. अब जाहिर सी बात है कि सब्सिडी पाने के बाद कम्पनीज को रॉ मटेरियल या मिनरल के लिए Bihar या इसके जैसे बाकी के mines वाले states का रुख करने की जरुरत नहीं थी और industries पुरे देश में कही पर भी establish की जा सकती थी.

इसके अलावा जो industries वहाँ पर पहले से मौजूद थी वो भी खराब policies और कई दूसरी problems की वजह से बंद होती चली गयी. इस तरह Bihar की वो image जो British शासन या उससे पहले हुआ करती थी. वो वक्त के साथ खराब होती चली गयी. लेकिन ध्यान देने वाली बात ये है कि पिछले 40-50 सालों में बहुत से ऐसे state या शहरों में industrialisation हुआ है जो development के मामले में पहले काफी पीछे हुआ करते थे.

लेकिन फिर सवाल तो यही उठता है कि आखिर बिहार में ये बदलाव क्यों देखने को नहीं मिला। असल में दोस्तों इसके पीछे कई सारे major reasons है. जिसमें पहला है Zero Availability of Sufficient Land.

Zero Availability of Sufficient Land

किसी भी company को establish करने के लिए जमीन के एक बड़े टुकड़े की जरुरत होती है. लेकिन इस जमीन को Bihar में हासिल करना companies के लिए लोहे के चने चबाने जितना मुश्किल है. क्योंकि यहाँ की जमीन बहुत ही ज्यादा उपजाऊ है. जिसकी वजह से Bihar के 56% से भी ज्यादा जमीन पर होती है. इस state के लगभग 80% population agriculture पर ही dependent है और यही वजह है कि जमीनों को हासिल करने में दो major problems आती है.

पहली ये कि यहाँ के लोग खेती पर ही निर्भर है तो फिर अपनी जमीन किसी भी हाल में अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहते क्योंकि यही उनकी रोजी रोटी का एक मात्र जरिया है. दूसरा reason ये है कि यहाँ आम तौर पर लोगों के पास जमीन के छोटे छोटे टुकड़े होते है. लेकिन factory लगाने के लिए क्योंकि एक बड़ा area चाहिए ऐसे में अगर कोई company यहाँ जमीन लेना चाहे तो उसे एक दो नहीं बल्कि बहुत सारे लोगों से बात करके जमीन को बेचने के लिए agree करना पड़ता है.

अब अगर government भी किसी company को जमीन देना चाहे तो उसके लिए भी ये बहुत उलझा हुआ और मुश्किल काम हो जाता है. क्योंकि यहाँ पाँच hectare जमीन पाने के लिए भी 20 से 30 अलग-अलग लोगों से बातें करनी पड़ सकती है यानी कि Bihar के लोगों से उनकी जमीन लेना एक बहुत ही time taken process बन जाता है और इसमें कई तरह की परेशानियाँ झेलनी पड़ती है.

Bad Business History

Bihar में industries के enter ना होने का economist जो second reason देते है वो है bad business history. Bihar कुछ साल पहले तक चीनी और चावल का बहुत बड़ा उत्पादक था लेकिन आज इस state के 3000 rice mills में से 2000 तो बंद हो चुके है और दोस्तों कुछ इसी तरह से 33 rice mills में से भी 18 पर तो ताले लग चुके है और यही वजह है कि 1960 में देश का 40% sugar अकेले Bihar produce करता था जो कि अब घटकर सिर्फ 2% रह गया है.

अब इन rice mills के बंद होने के पीछे की वजह थी करोड़ों का घोटाला और illegal वसूली। वही चीनी mills government के जबरन कब्जे की वजह से बंद हो गई। example के लिए 1952 में कई किसानों ने अपनी जमीन एक private कंपनी को दी थी. जिसके बाद से वारिसलीगंज चीनी मिल establish हुआ था। 1976 में चीनी के record production की वजह से central गवर्नमेंट ने इस मिल को gold medal से भी सम्मानित किया था।

लेकिन 1977 में bihar state sugar corporation ने इस मिल को अपने कब्जे में ले लिया और इसे अगले सोलह सालो तक बहुत ही अव्यवस्थित ढंग से चलाया। जिसकी वजह से आखिरकार 1993 में इसे बंद कर दिया गया। इसके अलावा 1974 में सहरसा के बैजनाथपुर में पेपर मिल की भी शुरुआत हुई थी. जिसका गोल daily 5 टन पेपर बनाने का था. लेकिन funds की कमी की वजह से ये मिल भी 1987 में बंद हो गई. ये फैक्ट्री 50 एकड़ जमीन पर बनी थी. जहाँ पहले गरीब किसान खेती करके अपना पेट भरते थे यानी कि उनके हाथ से जमीन भी गई और मिल भी नहीं रही।

आपको जानकार हैरानी होगी कि स्कूटर्स इंडिया लिमिटेड ने भी बिहार के फतुआ में अपनी फैक्ट्री लगाई थी जहाँ विजय सुपर स्कूटर बना करता था। इसके अलावा पटना से 80 kilometer दूर Madhaura में mortan chocolate की company थी और कई सारे बनियान बनाने वाले कारखाने भी. साथ ही Bihar vegetable oil, cement और chemicals बनाने के लिए भी काफी famous था. लेकिन धीरे-धीरे इन सभी industries पर ग्रहण लगता चला गया और Bihar ने अपनी खराब व्यवस्था की वजह से अपने इन अनमोल रत्नों को खो दिया।

Weak Policy Implementation

अब दोस्तों Bihar सरकार industries को invite करने के लिए कई सारी नई-नई policies तो बनाती है. लेकिन जब उनको implement करने की बारी आती है तो फिर companies को निराशा के अलावा कुछ भी हाथ नहीं लगता। 2015 में Nitish सरकार ने एक policy की शुरुआत की थी जिसे post production policy का नाम दिया गया था. इसके तहत पहले owners को अपनी factory Bihar में establish करनी होगी। इसके बाद से government उन्हें subsidy या फिर इसके अलावा बाकी के benefits provide करेगी।

लेकिन सरकार के past record को देखते हुए companies को यह policy attract नहीं कर पायी। क्योंकि 2006 में Nitish Kumar ऐसी ही एक industry policy लेकर आए थे जो देखने में तो companies के लिए profitable थी.
लेकिन इस policy के तहत जिन्होंने भी बिहार में अपनी फैक्ट्री या offices लगाए उन्हें पछताने के अलावा कुछ भी हाथ नहीं लगा. actually बिहार सरकार ने जो भी subsidy provide करने वाली थी वो कभी भी उन्हें दी ही नहीं गई। इस मामले में कई सारे cases भी चले और 2010 में पटना high court ने authorities को इसके लिए काफी फटकार भी लगाई।

कई companies ने दावा किया कि court का चक्कर लगाना और subsidy के लिए लंबे समय तक case लड़ना पूरी तरह से समय की बर्बादी है। इसीलिए जहाँ की policy अच्छी हो वहीं पर जाना ज्यादा सही होगा। इस सबके अलावा बिहार startup policy 2017 के तहत नितीश कुमार ने startups को 500 करोड़ रुपए का fund देने की बात कही थी. लेकिन बहुत सारे ऐसे entrepreneurs हैं जिनकी शिकायत है कि सरकार से उन्हें कभी भी fund मिले ही नहीं।

अब subsidy मिले या ना मिले। लेकिन इन सभी reasons की वजह से business owners को इतना जरूर idea हो गया था कि अगर बिहार में अपनी industry लगानी है तो फिर गवर्नमेंट की तरफ से उन्हें कोई भी support नहीं मिलने वाला।

Dirty Casteism

अब इतिहास में झांक कर देखे तो Bihar के राजनीति में जातिवाजैसा मुद्दा हमेशा से नहीं था. लेकिन जब से RJD के प्रमुख Lalu Yadav मुख्यमंत्री पद के दावेदार हुए तब से निचली जातियों में उनके लिए खूब craze देखने को मिला और मिलता भी क्यों ना जब वो विकास की जगह सिर्फ उन्हें सम्मान दिलाने का वादा कर रहे थे.

इस राजनीति का नतीजा ये हुआ कि development लोगों के लिए कोई मुद्दा ही नहीं रहा industrialization ने दम तोड़ दिया। Bihar में crime बहुत ज्यादा बढ़ गया. जगह जगह दंगे होने लगे यहाँ तक की हालत तो ये हो गए थे कि रात सात बजे के बाद लोग अपने घर से निकलने में भी डरते थे क्योंकि रास्ते में रोक कर उनकी bike या फिर car छीन ली जाती थी.

गुंडागर्दी इतनी ज्यादा बढ़ गयी थी कि चाहे मासूम जनता. हो या फिर IAS officers उनकी हत्या करने से पहले criminals को जरा भी खौफ नहीं होता था, वहाँ social justice एक बहुत ही major problem बन गया था और ऐसे माहौल में कोई भी company अपनी factory भला क्यों establish करती है. हालांकि ये सब तो बहुत पहले की बात है जबकि आज तो खुद RJD नेता भी industrialization भरपूर सपोर्ट करते दिखाई देते हैं। even नीतीश कुमार भी आए दिन development के लिए नए-नए steps ले रहे हैं। जैसे कि कुछ समय पहले ही यहाँ पर कई नई सीमेंट फैक्ट्री लगाई गई।

साथ ही ethanol के plants भी लगाए गए हैं। इसके अलावा उधमी बिहार, समृद्ध बिहार campaign, entrepreneurship award और innovation challenges जैसे प्रोग्राम से गवर्नमेंट लगातार यूथ और entrepreneurs को support कर रही है। अब गवर्नमेंट को अपने इन सभी प्रयासों से कितनी सफलता मिलती है, ये तो आने वाले टाइम में ही पता चल पाएगा। वैसे बिहार में industries न आने के पीछे आपका opinion क्या है हमें comment करके जरूर बताइएगा.

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