Recession 2023: यूरोप में जो अमीर लोग रहते हैं वो लोग आज के इतनी ठंडी के वावजूद ठन्डे पानी से नहा रहे हैं. इनके यहाँ जो street lights है, उसे सिर्फ जरुरत पड़ने पर ही जलाई जा रही है। घरों के अंदर लोग बिना heating के रह रहे हैं और महंगाई आसमान छू रही है. जर्मनी जहाँ पे लोग swimming pool में भी luke warm water use करते थे, वहाँ पे swimming pool के पानी को गर्म करने पर भी ban लगा दिया गया. वहीं फ्रांस की बात करें तो रात में shops के बाहर जो billboards लगे रहते हैं, फ्रांस के अंदर, उनकी लाइट्स को भी बंद करने को बोल दिया गया है.
अमेरिका के अंदर लोगों की नौकरियां बहुत ही तेजी से जा रही हैं। फेसबुक जो इतना बड़ा नाम है, उसने एक झटके में 11000 लोगों को निकाल दिया। 18 साल की हिस्ट्री में पहली बार ऐसा किया है, फेसबुक ने। फेसबुक ने अपनी total strength में से 13% employee को fire कर दिया है। अब ये नॉर्मल चीज नहीं है।
ये हिमांशु का पोस्ट है। इन्होंने काफी पैसा लगा के कनाडा relocate किया और मेटा यानी कि फेसबुक कंपनी को ज्वाइन किया और ज्वाइन करने के 2 दिन बाद ही इनको निकाल दिया गया। नीलिमा के साथ भी यही हुआ। इनकी पहले की जो जॉब थी वो भी गई और जैसे ही इन्होंने मेटा ज्वाइन किया, दो दिन के अंदर इनको भी निकाल दिया गया। ये जो फेसबुक का केस है, ये बाकी कंपनियों की comparatively थोड़ा सा अलग केस है. तो इसको मैं लास्ट में डिसकस करूँगा।
Recession 2023: Why layoffs are happening?
ट्विटर और अन्य कंपनियों में layoffs
ट्विटर की बात करें तो ट्विटर ने 3700 लोगों को निकाल दिया है। अमेजॉन ने 10000 लोगों को निकाल दिया। जेपी मॉर्गन 1000 लोगों को। एचपी ने 6000 और ये लिस्ट बहुत ही लंबी है और इंडिया के जो startups हैं. उन्होंने 2022 सिर्फ एक साल के अंदर में 17600 लोगों को fire कर दिया है। जिसमें से Byju’s, कार24, ओला, एमपीएल, उड़ान और unacademy, ऐसी बहुत सी कंपनियां हैं। ये firing का सिलसिला फिलहाल रुक नहीं रहा है। Wipro, Infosys, Tech Mahindra, ये जो बड़ी कंपनी है, इन्होंने fire नहीं किया है, लेकिन आगे की hiring रोक दी है और जो offer लेटर दिए थे, उनको भी रोक दिया है।
तो देखिए अब सबसे बड़ा question ये है कि ये सारी चीजें हो क्यों रही है? और इसको समझने के लिए हमको थोड़े से basic discuss करने होंगे। उसके बाद आगे की जो स्टोरी है बहुत ही आसानी से समझ में आ जाएगी।
जीडीपी (ग्रॉस डोमेस्टिक प्रोडक्ट)
मान लीजिए कि एक बहुत ही बड़ा मॉल है. उसके हर फ्लोर पे अलग-अलग चीजें अलग-अलग प्राइस पे बिक रही है। एक फ्लोर पे कपड़े बिक रहे हैं, एक फ्लोर पे हेयर ड्रेसर बाल काट के पैसे ले रहा है और वहीं एक फ्लोर पे कंप्यूटर बेचे जा रहे हैं. अब अगर एक दिन में दुकानों में जितनी भी चीजें बिक रही हैं. अगर उसके प्राइस को ऐड कर दिया जाए तो जो वैल्यू आएगी वो इस मॉल की एक दिन की जीडीपी होगी। ऐसे ही एक देश की बाउंड्री के अंदर जितने भी गुड्स एंड सर्विसेज produce हो रहे हैं, अगर उनकी वैल्यू को ऐड कर दिया जाए तो वो उस देश की जीडीपी होगी।
अगर मैं यूएस जाऊं और वहां जा के 50 डॉलर की एक कॉफ़ी खरीद के पी लूँ तो वो 50 डॉलर वो US की GDP में add हो जाएँगे। वैसे GDP, कई सारे अलग-अलग factors पे depend करती है. ये जो मैं बता रहा हूँ. ये इसलिए बता रहा हूँ ताकि आगे की जो कहानी है वो समझने में आसानी हो.
मंदी (Recession)
अब देखिए जब भी लोग ज्यादा चीजें खरीदते हैं तो जीडीपी ऊपर जाता है और जब कम सामान खरीदते हैं तो जीडीपी नीचे जाता है और अगर दो क्वार्टर यानी कि सिक्स month तक जीडीपी back to back नीचे जाती है। तो उसे कहते हैं recession ये globally accepted definition है. हालांकि इसमें भी बहुत सारे factors consider होते हैं। जैसे कोविड के टाइम पे लोगों ने बाहर निकल के कम चीजें खरीदी थी तो इंडिया का जो जीडीपी था वो दो क्वार्टर, क्वार्टर वन और क्वार्टर टू में नेगेटिव चला गया था। अब ये जो पर्टिकुलर टाइम था technically आप इसको recession कह सकते हो.
लेकिन इसको इसलिए इतना नहीं माना गया क्योंकि experts कि कोविड खत्म होगा तो आगे चल के कंट्रोल में आएगा और वैसे भी जो इसके बाद वाले quarter थे. उसमें positive growth हो गई थी. अब जीडीपी back to back नेगेटिव में चला जाए दो क्वार्टर तक तो उसको recession कहते हैं और जितनी growth होनी चाहिए, अगर वो उतनी नहीं हो तो उसको slow down कहते हैं जैसे 7% growth की जगह 6% growth ही रह जाए तो उसको slow down कहते हैं और अगर 3 साल से ज्यादा टाइम तक recession रहता है तो उसको depression कहते हैं. अभी तक depression की जो situation है वो सिर्फ एक बार आई है, 1930 में.
डिमांड एंड सप्लाई
अब देखिए अगर फिर से मॉल का एग्जांपल लें तो मान लीजिए बहुत सारे लोग मॉल में सामान खरीदने आ रहे हैं तो दुकानों में भीड़ ज्यादा होगी। दुकानदार पैसा ज्यादा कमाएंगे। काम ज्यादा होगा और स्टाफ ज्यादा रखना होगा और अगर लोग कम सामान खरीदेंगे तो भीड़ कम होगी। प्रॉफिट भी कम होगा।
काम भी कम होगा और एम्प्लाइज भी कम चाहिए होंगे तो ऐसे केस में एम्प्लाइज की जॉब भी जाती है और जब दुकानों में सामान कम बिकेगा तो कंपनी भी कम सामान बनाएगी और कंपनी को भी कम प्रॉफिट होगा और कंपनी में भी फायरिंग होगी। इसलिए मार्केट में जब लोग कम सामान खरीदने लगते हैं तो रिसेशन आता है. recession आता है तो unemployment आता है.
इन्फ्लेशन
अब देखिए जीडीपी हो गया, रिसेशन हो गया, inflation और discuss कर लेते हैं। उसके बाद current situation discuss करेंगे। देखिए जब डिमांड ज्यादा होती है, सामान कम होता है, तो महंगाई यानी कि inflation बढ़ती है और जब डिमांड कम होती है और supply ज्यादा होती है, तो कीमतें गिरती है।
जैसे कोविड के टाइम पे दवाइयों की जरूरत ज्यादा लोगों को थी, तो दवाइयों के दाम बढ़ गए थे और hotels वगैरह जो थे उनकी जरूरतें कम थी तो hotels के दाम गिर गए थे। अब आप कहोगे कि अगर ये inflation वगैरह सब अपने आप हो रहा है, लोगों के खरीदने और बेचने से तो गवर्नमेंट को लोग क्यों भला-बुरा कह रहे हैं? क्या गवर्नमेंट महंगाई, inflation को कंट्रोल कर भी सकती है?
तो देखिए हर गवर्नमेंट के पास tools होते हैं। जिनका use करके वो मार्केट कंट्रोल करती है। जिस तरीके से ड्राइवर की जिम्मेदारी होती है कि कार एक सही स्पीड से चले। जब स्पीड धीरे हो तो एक्सीलेटर दबा के स्पीड तेज करे और अगर स्पीड तेज़ हो तो ब्रेक लगा के उसको धीरे करें।
ऐसे ही economy को भी एक decent स्पीड से चलाने के लिए देश का जो सेंट्रल बैंक होता है. वो एक ड्राइवर की तरह एक्ट करता है। जब growth रुक गई हो देश की या inflation ज्यादा हो गया हो तो सेंट्रल बैंक मनी सप्लाई बढ़ाता है देश में।
अभी जो मनी सप्लाई है इसके अलग-अलग तरीके जैसे currency print करी जाती है या फिर interest rate कम किया जाता है. जब RBI बाकी बैंकों के लिए interest कम कर देता है तो market में लोगों के पास पैसा ज़्यादा आता है. अब वो कैसे आता है ये आप एक छोटी सी search करोगे तो आपको पता चल जाएगा।
Current Scenario
अब बात करते है कि current scenario में क्या चल रहा है. देखिए इन सारी चीजों की शुरुआत होती है. कोविड के टाइम से जब कोविड के टाइम पे लॉकडाउन लगाया गया तो सबसे बड़ी दिक्कत ये आई कि लोग खाएंगे-पिएंगे क्या? पैसा कहाँ से आएगा क्योंकि कंपनीज बंद हो रही थी. लोगों की जॉब्स जा रही थी. इकोनॉमी पूरी तरीके से बंद थी.
इस चीज से निपटने के लिए गवर्नमेंट अलग-अलग रिलीफ पैकेज ले के आई, बिजनेस को सपोर्ट किया, लोन की इंस्टालमेंट के लिए टाइम एक्सटेंड किया। वहीं अमेरिका की बात करें तो वहाँ की गवर्नमेंट ने जो लोग unemployed थे उनके अकाउंट में पैसे डाले, टैक्स रिलीफ दिया।
ऐसे करके अलग-अलग method दुनिया भर की गवर्नमेंट ने अपनाए। इन शॉर्ट्स पैसा inject किया गया ताकि जो economy एकदम से नीचे आ गई थी. वो normal हो और जीडीपी सुधरे। जब ऐसा किया गया तो लोगों के पास पैसा आया लेकिन lockdown की वजह से खर्च फिर भी नहीं कर पा रहे थे. लेकिन जैसे ही lockdown खत्म हुआ लोगों ने पैसा खर्च करना शुरू किया। अब supply तो उतनी ही थी लेकिन demand एकदम से बढ़ गई थी और जब ऐसा होता है तो महंगाई यानी कि inflation बढ़ती है और ऐसा ही हुआ.
लेकिन ये कोई surprise नहीं था. गवर्नमेंट के लिए क्योंकि दुनिया भर की गवर्नमेंट को पता था कि महंगाई बढ़ेगी और आगे चल के उसको कंट्रोल करा जा सकता है। अगर आपने नोटिस किया हो तो मई 2020 में सेंट्रल बैंक ने रेपो रेट 4% ही रखा था और 2 साल तक इसमें कोई चेंज नहीं किए थे। लेकिन जब ये महंगाई आउट of कंट्रोल होने लगी तो मई 2022 में रेपो रेट 4.4% किया गया. फिर जून में 4.9% किया गया. अगस्त में 5.4% किया गया और सितंबर में 5.9% किया गया. अभी की बात करें तो 6.25% हो गया.
अब देखिए अगर आपको मार्केट का idea लेना है कि market किस तरफ जा रहा है तो रेपो रेट को closely observe करना जरूरी है कि गवर्नमेंट किस तरह से बढ़ा रही है। इससे आपको कोई भी बड़ा decision लेने से पहले, मार्केट का आईडिया लगता है। जैसे कोविड जैसी situation हो या फिर recession हो. ये हमारे कंट्रोल में नहीं होती है. लेकिन हम अपने लिए कुछ safety nets बना सकते हैं। जैसे कि insurance लेना। इंडिया में लोग insurance कम लेते हैं।
mainly because उन्हें समझ में नहीं आता, उनके लिए कौन-सी policy सही रहेगी। सिर्फ 17 millions के पास ही term plans हैं और 55% को तो पता तक नहीं है कि ये होता क्या है। इंडिया में medical inflation हर साल 14% से ज्यादा बढ़ रहा है। एफडी पे मिलने वाले rates हैं double तो एक हॉस्पिटल की visit आपके बैंक अकाउंट को खाली कर सकती है।
अब देखिए pandemic की वजह से गवर्नमेंट struggle तो कर ही रही थी. लेकिन सबसे बड़ा disaster तब हुआ जब युक्रेन-रशिया war start हुई। कोविड से निपटने के लिए जो भी plans बनाए थे गवर्नमेंट ने वो सब धरे के धरे रह गए और पूरी दुनिया जो कोविड से उबरने में लगी थी. वो एक बड़ी economic crisis में आके खड़ी हो गई।
रशिया और युक्रेन war की वजह से western देशों ने रशिया के ऊपर back to back sanctions लगाए। अब देखिए globalization का जमाना है. जब एक देश के ऊपर sanction लगता है तो वो देश अकेला सफर नहीं करता है। इससे बाकी देशों को भी नुकसान होता है। देखिए इसके बाद भी sanctions रुके नहीं। रशियन बैंकों को swift network से बाहर कर दिया गया. Russian बैंको के जो assets थे उनको freeze कर दिया गया.
अब देखिए यूक्रेन और रशिया ये दोनों ही countries world के सबसे बड़े wheat exporters में से है। इसलिए जैसे ही वॉर स्टार्ट हुई दुनिया भर में जो food prices थे उनको झटका लगा। इसके साथ-साथ रशिया ऑइल and गैस का सबसे बड़े exporters में से एक है। पूरी दुनिया में second नंबर का exporter है रशिया और दुनिया का लगभग 12% crude ऑइल रशिया में ही produce होता है।
लेकिन यूएस, कनाडा, यूरोप इन सबने मिल के रशिया को सबक सिखाने के लिए रशिया के ऑइल and gases import पे भी बैन लगा दिया कि अगर कोई देश रशिया से ऑइल और गैस खरीदेगा तो उसके ऊपर sanction लगेंगे।
हालांकि इंडिया अभी भी import करता है वो एक अलग discussion है। तो जब ये बैन लगाया गया तो countries को रशिया से छोड़ के बाकी देशों से ऑइल and gas import करना पड़ा। अब देखिए इससे हुआ क्या कि demand तो वही थी, ऑइल and gas की. लेकिन जो देश supply कर रहे थे वो कम हो गए। इसकी वजह से पूरी दुनिया में ऑइल and gas के prices बढ़ गए।
मार्च के पहले हफ्ते में ऑइल के prices 25% तक बढ़ गए थे और जब ऑइल के प्राइस बढ़ते हैं तो हर एक चीज पे फर्क पड़ता है और जैसे-जैसे ये sanctions लग रहे थे ये समझना बहुत ही मुश्किल हो रहा था कि यूरोप, रशिया को परेशान कर रहा है या खुद को दिक्कत में डाल रहा है।
ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि इन सब reasons की वजह से यूरोप खुद मुसीबतों में फंस गया है। यूक्रेन-ऱशिया war यूरोप के लिए एक बहुत ही बड़ा disaster बन के सामने आया. इसके पीछे सबसे बड़ा reason था natural gas. Natural gas जो है, वो यूरोप की लाइफ line है। winters के टाइम पे यूरोप में इतनी ज्यादा ठंड रहती है, कि बिना गैस के रहना बहुत ही मुश्किल हो जाता है, वहां के लोगों के लिए। natural गैस ही है जो यूरोप को गरम रखती है winters में. लेकिन नेचुरल गैस से पहले ये लोग coal पे depended थे.
लेकिन ये काफी पुरानी बात है। आज की डेट में पूरा यूरोप गैस पे dependent है। लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि ये खुद produce नहीं करते natural गैस बल्कि बाहर से लेते हैं. जिनमें से रशिया इनका सबसे बड़ा supplier है। यूरोप को चाहे winters में अपना घर गर्म करना हो, electricity generate करनी हो, transports factories run करनी हो, हर चीज के लिए natural गैस चाहिए होती है, 34% से भी ज्यादा एनर्जी गैस से आती है यूरोप में.
यूरोप पूरे वर्ल्ड में सबसे ज्यादा गैस import करता है, लेकिन सबसे बड़ी दिक्कत तब हुई जब अगस्त के month में रशिया ने nord stream pipeline one बंद कर दी और कहा ये तब तक नहीं खुलेगी। जब तक sanctions हटेंगे नहीं। अब इस चीज की वजह से इनकी economy के साथ-साथ लोगों को भी बहुत दिक्कत होने लगी। फिलहाल के लिए तो ये लोग power cut कर रहे हैं और जितना use कम हो सके उतना कम कर रहे हैं। लेकिन जैसे-जैसे winter आया. यूरोप के लिए चीजें बहुत ही मुश्किल होती जा रही है।
कोविड को संभालने की वजह से जो inflation हुआ था वो तो था ही. रशिया-युक्रेन war की वजह से और महंगाई बढ़ गई। यही reason है कि आप देखोगे कि यूएस और यूरोप के देशों में inflation हर month डबल डिजिट में बढ़ने लगा है। अर्जेंटीना जो अभी वर्ल्ड कप जीता है इन्होने महंगाई में सबका रिकॉर्ड तोड़ दिया। ये देख के कोई कहेगा कि इस पर्टिकुलर देश में 92% के inflation rate है. ये बहुत ही ज्यादा inflation rate होता है
Unemployment
अब देखिए पूरे वर्ल्ड में ये जो situation बनी हुई है पिछले एक साल से जितनी भी गवर्नमेंट्स हैं पैसा इंजेक्ट कर-कर के इसको संभालने की कोशिश कर रही है और जो economist है उनका ये कहना है कि अभी तो गवर्नमेंट फिर भी कोशिश कर रही है। लेकिन एक टाइम पर ऐसा आने वाला है 2023 में जब गवर्नमेंट भी कुछ नहीं कर पाएगी।
economist नोरियल रूबीनी इनको डॉक्टर डून भी बोला जाता है क्योंकि 2008 में जब recession आया था पूरी दुनिया में तो इन्होंने पहले ही predict कर दिया था और अब इनका कहना है कि 40% तक share market गिरने वाला है और इस बार का जो recession आएगा वो 2008 वाले recession से ज्यादा बड़ा होगा और ज्यादा लंबे टाइम तक होगा।
लोगों की काफी नौकरियां जाएंगी। यूरोपियन यूनियन का कहना है कि इस विंटर में ही यूरोप के 19 देश रिसेशन में चले जाएंगे। यूएस में जो बेरोजगारी है वो हिस्टोरिकल लो पे है. इतना बुरा हाल एम्प्लॉयमेंट का आपने यूएस के अंदर पहले नहीं देखा होगा।
लेकिन एक्सपर्ट जो हैं वो ये कह रहे हैं कि फेडरल रिजर्व, ये जो बेरोजगारी से निपटने के लिए जो स्टेप्स उठा रहा है। ये पूरे वर्ल्ड की इकॉनमी को खतरे में डाल सकता है। जैसे हमारे यहां आरबीआई होता है. वैसे यूएस के अंदर फेडरल रिजर्व है। bloomberg के प्रोजेक्शन के हिसाब से 2024 तक रिसेशन रहेगा।
developed countries हैं उनमें लगभग 33 lakhs नौकरियां जाएंगी। लेकिन इसका सबसे बड़ा जो effect पड़ेगा वो पड़ेगा आईटी सेक्टर पे. आज की डेट में आप नोटिस करोगे जितनी भी tech companies हैं. ये layoff announce कर रही हैं. इसके पीछे कोविड बहुत ही बड़ा reason है. देखिए कोविड के टाइम पे जब हर तरफ दिक्कत थी तो उस टाइम पे टेक् सेक्टर में बहुत ही मुनाफा बनाया।
हर कोई डिजिटली कनेक्ट कर रहा था एक दूसरे से और उस टाइम पे बहुत ही bulk में hiring करी. इन tech companies ने हालत ये थी कि employees को double-double salary offer करके रखा जा रहा था, डिमांड की वजह से.
लेकिन जब pandemic खत्म हुआ और मार्केट में slow down आया. उसके बाद से इन टेक कंपनीज ने जो जरूरत से ज्यादा hiring करी थी. उनको हटाना शुरू कर दिया। लेकिन अभी ये layoff चल रहा है. ये basically जूनियर लेवल के जो आईटी professionals हैं उनका चल रहा है और कंपनी जो layoff नहीं कर रही है उन्होंने hiring बंद कर दी है.
अगर आप आज की date में job देखने जाओगे तो पहले के comparatively ज्यादा मुश्किल हो रही है जॉब ढूंढने में अगर आप आईटी सेक्टर में जॉब करते होंगे तो आपको पता होगा कि इंडिया की भी जो टेक कंपनीज है वो मोस्टली यूएस और यूरोप में अपनी सर्विसेज आउटसोर्स करती हैं. अब जब वहाँ पे डाउनसाइजिंग हो रही है तो इंडिया की जो टेग कंपनीज हैं उनके revenue पे भी असर पड़ेगा और जब revenue पे असर पड़ेगा और तो firing होगी।
इन सब वजह से ये जो स्टार्टअप का बूम आया था उस पे भी असर पड़ रहा है। इनकी valuation कम हो रही है और अपने businesses को reorganize करने की बात कहते हुए cost cutting शुरू कर दी है इन्होंने। जिसका असर आने वाले टाइम में और दिखेगा। पहले जैसे funding आराम से मिल जाती थी। current scenario की वजह से funding में भी दिक्कत आने लगी है।
जिन companies ने expansion करने के लिए loans लिए थे interest rate बढ़ने की वजह से उनकी भी मुसीबतें और बढ़ गई हैं। नौकरी जॉब स्पीक जो hiring trend measure करती है उसके डाटा के हिसाब से इंडियन टेक इंडस्ट्री में इसी एक साल में percent तक कम hiring हुई है.
जनवरी 2022 में Indian startups ने 4.6 billions dollar की जो funding थी वो बहुत ही आराम से उठा ली थी. लेकिन अभी नवंबर की बात करें तो ये घट के 73% हो गई है यानी कि 1.1 billion dollar
फेसबुक
अब बात करते हैं फेसबुक की। फेसबुक के case में और भी बहुत से factors involve हैं। जिनकी वजह से ऐसा पहली बार हुआ कि फेसबुक में 11000 लोगों को एक झटके में निकाल दिया। ये यूएस का इस साल का सबसे बड़ा layoff है. फेसबुक के 18 साल के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ, कभी फेसबुक loss में नहीं गया. ये पहली बार हुआ है इनके साथ, इन्होंने layoff तो करे ही हैं और इन्होंने ये भी कहा है कि अगले quarter में hiring भी नहीं करेंगे। यहाँ तक कि cost cutting भी शुरू कर दी है।
फेसबुक के साथ 2 चीजें हुई हैं, एक तो इन्होंने जो metaverse के project में invest करने का जो announcement किया था, उसमें हद से ज्यादा invest कर रहे हैं. दूसरी तरफ इनकी जो earnings हैं वो डे by डे कम होती जा रही हैं। जिस तरह से फेसबुक metaverse में invest कर रहा है, ये चीज फेसबुक के investors को बिल्कुल पसंद नहीं आ रही है।
जितना विश्वास Mark Zuckerberg को metaverse में है, उनके investor को उतना नहीं है। ऐसा इनके shares के प्राइस को देख के कहा जा सकता है। क्योंकि डे by डे इनके शेयर्स के प्राइस गिर रहे हैं।
अगर इस particular year की बात करें, तो metaverse की वजह से फेसबुक को billions में loss हुआ है। फेसबुक जो mainly पैसा कमाता है, वो ads से कमाता है, जैसे बीएमडब्ल्यू का ad अगर कोई करवाएगा फेसबुक में, तो फेसबुक जो है, वो बीएमडब्ल्यू वाले customer वो ऐड दिखाएगा। ऐसे ही अगर पेंटिंग का ऐड होगा तो वो पेंटिंग वाले customer को ही दिखाएगा या painters को दिखाएगा।
फेसबुक ऐसा इसलिए कर पाता है क्योंकि वो आपकी details track करता है लेकिन apples ने अपने phones में एक feature दे दिया है कि अगर आप चाहो तो अपने data को track होने से रोक सकते हैं और इसकी वजह से फेसबुक का जो ad revenue है वो भी down चला गया है।
हालांकि फेसबुक का ये मानना है कि meta में ये जो invest कर रहे हैं ये long run में इनको benefit करेगा। अब ये होगा कि नहीं ये तो टाइम बताएगा। लेकिन जब तक situation कंट्रोल में नहीं है financial market पे नजर रखिए और अपने आपको insurance के through secure रखिए।