Kalpana Patowary Life Story: कल्पना पटोवरी, एक ऐसा नाम जो भोजपुरी संगीत को नई पहचान देने में सबसे आगे रहा। असम की इस बेटी ने न सिर्फ भोजपुरी संगीत में अपनी जगह बनाई बल्कि इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहुंचाया। अपने सफर, संघर्ष, और अनुभवों के साथ उन्होंने संगीत की ताकत और उसकी आत्मा को दर्शाया है।
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Kalpana Patowary Life Story
असम से भोजपुरी तक की यात्रा
कल्पना पटवारी असम के म्यूजिकल परिवार से आती हैं। उनके पिता, विपिन नाथ पटवारी, न केवल उनके गुरु थे बल्कि उनके संगीत की नींव भी उन्होंने ही रखी। असम के पारंपरिक लोकगीतों और भूपेन हजारिका की संवेदनशील रचनाओं के बीच पली-बढ़ी कल्पना ने संगीत को महज मनोरंजन नहीं बल्कि एक अध्ययन के रूप में अपनाया।
मुंबई में अपने करियर की शुरुआत करने के बाद कल्पना ने कई भाषाओं में गाना गाया, लेकिन भोजपुरी ने उन्हें ऐसा अपनाया जैसे वे उसी मिट्टी से जुड़ी हों। “ए गणेश के पापा” से उनकी भोजपुरी यात्रा शुरू हुई, जो आगे चलकर एक मिशन में बदल गई।
भिखारी ठाकुर की विरासत और सामाजिक संदेश
कल्पना पटवारी का नाम आते ही भिखारी ठाकुर का जिक्र अनिवार्य हो जाता है। भोजपुरी के “शेक्सपियर” कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की लोककथाओं और भावनाओं को कल्पना ने अपनी आवाज से जीवंत किया। उनका मानना है कि ठाकुर जैसे साहित्यकारों को उस सम्मान तक नहीं पहुंचाया गया, जिसके वे हकदार थे।
विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों को अपनी कला के माध्यम से उठाने वाली कल्पना कहती हैं कि संगीत सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि जन-जन तक समाज की बातें पहुंचाने का एक असरदार जरिया हो सकता है।
भोजपुरी में अश्लीलता का सवाल
भोजपुरी संगीत में बढ़ती हुई अश्लीलता पर कल्पना की राय बिल्कुल स्पष्ट है। वे मानती हैं कि अश्लील गानों का चलन ट्रेंडिंग और व्यूज के दबाव में बढ़ गया है। उन्होंने यह भी कहा कि संगीतकारों और कलाकारों की जिम्मेदारी है कि वे इस माध्यम का सही उपयोग करें।
उनके अनुसार, दर्शकों की भी यह जिम्मेदारी बनती है कि वे ऐसे कलाकारों और गानों को प्रोत्साहन दें जो भोजपुरी की सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत को संभाल रहे हैं।
बिहार के बाहुबलियों के साथ अनुभव
संगीत के सफर में कल्पना का सामना कई बाहुबलियों और दबंगों से हुआ। उन्होंने बताया कि 2003-2004 का बिहार अलग था—किडनैपिंग, असुरक्षा का माहौल। लेकिन उन्होंने हर बार सम्मान पाया। चाहे वह मंच पर हो या ट्रेन में—जनता का असीम प्यार हर बार उनके साथ रहा।
यहां तक कि डकैतों के बीच भी उन्होंने खुद को सुरक्षित महसूस किया। उनके गानों की लोकप्रियता इतनी थी कि स्टूडेंट्स ने ट्रेन रोक दी, सिर्फ उन्हें एक झलक पाने के लिए!
भोजपुरी को अंतरराष्ट्रीय पहचान
एमटीवी कोक स्टूडियो में अफ्रीकन बीट्स के साथ भोजपुरी बिरहा का फ्यूजन हो या कॉमनवेल्थ गेम्स में भोजपुरी के छठ गीतों की प्रस्तुति, कल्पना ने हमेशा अपनी कला को नए आयाम दिए। वे मानती हैं कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भोजपुरी को रखना सिर्फ एक प्रयोग नहीं बल्कि गर्व की बात है।
शारदा सिन्हा और छठ पूजा के गाने
कल्पना पटवारी ने छठ पूजा के गानों को एक नई पहचान दी। अपनी आवाज के लिए जानी जाने वाली शारदा सिन्हा को श्रद्धांजलि देते हुए उन्होंने कहा कि उनकी कमी कभी पूरी नहीं हो सकती। छठ जैसे पवित्र पर्व के गानों को हर घर तक पहुंचाना, उनके लिए गौरव का विषय रहा है।
राजनीति में कदम
कल्पना पटवारी ने 2018 में राजनीति की ओर भी रुख किया। उनका मानना था कि भोजपुरी भाषा को संविधान में दर्जा दिलाने जैसे मुद्दे केवल राजनीति के माध्यम से ही हल हो सकते हैं। हालांकि, उन्होंने यह भी माना कि पावर की समझ और समाज सेवा के बीच एक संतुलन बनाना आसान नहीं है।
महिलाओं और कलाकारों के लिए संदेश
कल्पना पटवारी का मानना है कि कलाकारों को अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए। खासकर महिलाओं को, जो मंच पर जाती हैं, उन्हें अपनी सीमाओं और सुरक्षा का ध्यान रखना चाहिए। उनका कहना है कि बाउंसर या सुरक्षा का होना सिर्फ स्टाइल नहीं, बल्कि एक आवश्यकता है।
निष्कर्ष
कल्पना पटवारी न केवल एक गायिका हैं, बल्कि भोजपुरी की आत्मा हैं। उनके गाने, उनके विचार और उनका संघर्ष यह साबित करता है कि कला सिर्फ मनोरंजन का माध्यम नहीं बल्कि समाज को बदलने का जरिया है। गंगा स्नान जैसे उनके प्रोजेक्ट्स भोजपुरी की गहराई और उसकी संस्कृति को दुनिया के सामने लाते हैं।
कल्पना पटवारी ने असम की मिट्टी से लेकर गंगा के किनारों तक अपनी छाप छोड़ी है। उनके सफर से हमें यह सीख मिलती है कि अपनी जड़ों से जुड़े रहकर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई जा सकती है।
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