Khalistan Movement is Back:“खालिस्तान” एक ऐसा शब्द जो भारत में एक सेकंड पार्टीशन करवा सकता है. पिछले कुछ दिनों में पंजाब में कुछ ऐसी डेवलपमेंट हुई है जिससे 1980s का ये dangerous शब्द वापस उभर कर आया है। क्या है खालिस्तान? क्यों कुछ लोग सिखों के लिए एक अलग देश की मांग कर रहे हैं और इससे हमें क्या फर्क पड़ता है?
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Khalistan movement is back via Amritpal Singh in India
Chapter 1: What happened? हम ये story क्यों लिख रहे हैं?
पंजाब में पिछले कुछ हफ्तों में, कुछ ऐसा हो रहा है जो हमें हमारे dark past की याद दिलाता है। अमृतपाल सिंह, छह महीने पहले आपने ये नाम सुना भी नहीं होगा। लेकिन आज ये इंसान पंजाब का एक बड़ा लीडर बनकर उभर रहा है। जिसे लोग भिंडरानवाले 2.0 कहते हैं।
दीप सिद्धू farmers के protest के दौरान काफी controversial figure बन चुके थे। उन्होंने वारिस पंजाब दे नाम का एक सोशल organization शुरू किया। दीप सिद्धू के death के बाद अमृतपाल सिंह इस ऑर्गेनाइजेशन के head बन गए। अमृतपाल सिंह खुद को एक प्रो खालिस्तान leader कहते हैं।
हुआ ये कि उनके एक सपोर्टर लवप्रीत सिंह उर्फ़ तूफान को पंजाब पुलिस ने किडनैपिंग के केस में arrest किया था। इस arrest के against उनके सैकड़ों supporters अंजाला पुलिस स्टेशन में घुस गए और वो भी तलवारों के साथ.
अमृतपाल सिंह ने पुलिस को ही एक ultimatum दिया और situation को कंट्रोल करने के लिए पुलिस ने उनके साथ negotiate किया और ये assurance दिया कि लवप्रीत सिंह को release कर देंगे।
अमृतपाल सिंह ने openly कह दिया है कि हमारे होम मिनिस्टर (अमित शाह) का भी वही अंजाम होगा जो हमारी प्राइम मिनिस्टर इंदिरा गांधी जी का हुआ था। ये एक काफी dangerous situation है और ये हमें पंजाब के dark past की याद दिलाता है।
Chapter 2: खालिस्तान मूवमेंट का जन्म
कई लोग सोचते हैं कि खालिस्तान movement की शुरुआत 1980s में हुई. लेकिन सच तो ये है कि इसके बीज ब्रिटिशों ने बोए थे। divide and rule policy का इस्तेमाल उन्होंने सिर्फ हिंदू-मुस्लिम में दरारे डालने के लिए नहीं कि बल्कि सिख लोगों को हिंदुओं से दूर करने के लिए भी किया।
1857 के दौरान ब्रिटिश आर्मी के सोल्जर्स ने साथ मिलकर, अपने differences भुलाकर as Indians ब्रिटिशों को almost इंडिया से बाहर फेंक दिया था। सिर्फ ब्रिटिश ये जान गए थे कि भारत के लोगों को cast और religion के basis पर अलग रखना जरूरी है।
पहले जो भारतीय लोग खुद को सिर्फ इंडियन मानते थे, इस एक identity से जानते थे. उन्हें divide किया गया. भाषा के basis पर, religion के basis पर ताकि वो साथ आकर एक cause के लिए ना लड़ पाए।
1914 तक ब्रिटिश आर्मी के 75% लोग सिर्फ 3 एरिया से आते थे. नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर, पंजाब और नेपाल। भाषा के basis पर होने वाला ये division लोगों के मन में एक डर पैदा करता गया कि जो भाषा dominant होगी वही भाषा बोलने वाले लोगों को बेहतर representation मिलेगा, उन्हें ज्यादा हक़ होंगे।
1947 में आजाद भारत कैसा होगा? States किस basis पर बनेंगे? ऐसे कई सवाल हमारे सामने थे। तब पंजाबी सुब्बा movement ने एक पंजाबी speaking स्टेट बनाने की मांग की। पहले पंजाब जो कुछ ऐसा हुआ करता था वो 1966 में कई हिस्सों में बट गया. हिमाचल प्रदेश और हरियाणा जहाँ हिंदी speaking हिंदू majority थी और पंजाब जहाँ पंजाबी speaking सिख की majority थी.
लेकिन 1971 एक काफी interesting साल था जब वेस्ट पाकिस्तान और ईस्ट पाकिस्तान अलग हुए और बांग्लादेश बन गए। बांग्लादेश का स्वतंत्र देश बनना पाकिस्तान के लिए बड़ा humiliation था. उस समय जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के प्रेसिडेंट बन गए और उन्होंने ये शपथ ली कि वो भारत से बांग्लादेश का बदला जरूर लेंगे। भारत की धरती से भी एक बांग्लादेश काट कर रहेंगे।
ये बात मैंने नहीं तारक फ़तेह नाम के एक कनाडा based journalist ने खुद रिपोर्ट की है। 1971 में पहली बार खालिस्तान शब्द का internationally इस्तेमाल हुआ, न्यूयॉर्क times की एक advertisement में. इंडियन intelligence ने ये रिपोर्ट किया कि ये ad वाशिंगटन में पाकिस्तान की embassy ने ही दी थी.
लेकिन logic क्या है? पाकिस्तान के लिए खालिस्तान strategically important क्यों है? पाकिस्तान के लिए खालिस्तान important है क्योंकि वो पाकिस्तान और भारत के बीच एक buffer का काम करता है। पाकिस्तान में आने वाले नदियां पंजाब से होकर गुजरती है। तो खालिस्तान से negotiate करना, इंडिया से negotiate करने से ज्यादा आसान होगा, ऐसा पाकिस्तान को लगता है।
प्लस ये पाकिस्तान के लिए एक victory होगी क्योंकि भारत ने भी बांग्लादेश की मदद की। खालिस्तान movement को पाकिस्तान सपोर्ट करता है। ऐसा बार-बार इसलिए लगता है क्योंकि जब भी आप खालिस्तान का मैप देखते हैं तो वो कभी भी पाकिस्तान side के पंजाब को उसमें include नहीं करते।
Chapter 3: खालिस्तान movement और violence
Meanwhile इंडिया में क्या हो रहा था? पंजाब एक separate constitution की मांग कर रहा था। पाकिस्तान की involvement से पहले ही 1967 में अकाली दल ने जम्मू और कश्मीर के article 370 की तरह पंजाब के सिख लोगों के लिए भी स्पेशल स्टेटस की मांग रखी।
1973 में उन्होंने आनंदपुर साहिब resolution पास किया। जिसमें कई socio economic reforms के साथ-साथ सिख supremacy की भी डिमांड थी और तभी एक नया leader सामने आया जरनैल सिंह भिंडरानवाले।
उन्होंने पंजाब के यूथ को radicalize करना स्टार्ट किया और एक सिविल disobedience movement की शुरुआत हुई। नाम था धर्म युद्ध मोर्चा। शुरुआती दिनों में उन्होंने फोकस आनंदपुर साहिब resolution की demands पर किया। लेकिन आगे जाकर उनके actions extremist होने लगे. उन्होंने एक militant और radical version of Sikhism को promote किया और पंजाब के सबसे violent period को शुरू किया।
उन्होंने खालिस्तान liberation force को शुरू किया, kidnapping, killings,बॉम्बिंग, पंजाब में common हो गए थे। कई सिख लोग थे, जो इस खालिस्तान movement को oppose करते थे। लेकिन उन्हें इन एक्सट्रेमिस्ट ने नहीं छोड़ा। 1980s में इस movement की वजह से 22000 जाने गई. जिसमें 12000 civilians शामिल थे। भिंडरांवाले वाले ने जबरदस्ती golden temple को अपना base बनाया था और यहाँ हथियार और गोलियां भी छुपाई थी.
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6 जून 1984 को हमारी प्राइम मिनिस्टर इंदिरा गांधी जी ने operation ब्लू स्टार conduct किया और इस आतंकवादी को मार गिराया। लेकिन इसमें कई civilian casualties भी हुई। कुछ experts का मानना है कि total casualties 3000 से भी ज्यादा थी। कुछ ही महीनों बाद इंदिरा गांधी जी को assassinate कर दिया गया और इसके बाद नॉर्थ इंडिया में anti सिख riots हुए जिसमें में जो official figure कहता है कि इन riots में 3500 जाने गई।
लेकिन independent researchers कहते हैं कि ये नंबर 8000 से 17000 है. 2011 में human rights watch ने ये रिपोर्ट किया कि भारत ने उन लोगों पर अभी तक एक्शन नहीं ली है जो इन rights के लिए जिम्मेदार थे। हुआ ये कि इन turbulent का दौरान सालों में कई सिख लोग displace हो गए। कई लोग भारत छोड़कर दूसरे देशों में बस गए और उन्हें ये विश्वास हो गया कि भारत में उन्हें justice नहीं मिलेगा।
ये भारत के लिए एक बड़ी हार था। आज ऐसे कई organizations हैं जो देश के बाहर से देश के अंदर लोगों को भड़का रहे हैं और सपोर्ट के नाम पर उन्हें खालिस्तानी supporter बनाने की कोशिश कर रहे हैं. उनका objective एक ही है कि खालिस्तान की मांग को revive करो।
Chapter 4: आज का context
अब भिंडरानवाले को गुजर कर 40 साल हो गए। खालिस्तान movement भी ठंडी पड़ गई थी तो आज क्यों हम इसके बारे में वापस discussion कर रहे हैं क्योंकि सच तो यही है कि कुछ सवाल जो 1970s में उभर कर आए थे। वो आज भी उभर कर आ रहे हैं। आपने आजकल के कई स्पीच में ये term सुनी होगी।
union of states मतलब कई बुद्धिजीवी कहते हैं कि भारत एक देश नहीं, भारत एक union of states है, वो करना ये चाहते हैं कि state और center दोनों power divider होनी चाहिए।
center के हाथ सारी power concentrated नहीं होनी चाहिए। इस point को लोगों तक पहुंचाने का तरीका इससे गलत नहीं हो सकता। क्योंकि इससे कई states को यह मैसेज मिलता है कि आप violent बनो। आपको भारत कभी भी आपके हक़ नहीं दे पाएगा तो आप उसके लिए लड़ो। क्योंकि 1970s में अकाली दल ने भी same बातें की थी. जब उन्होंने आनंदपुर साहिब resolution में पंजाब के लिए और autonomy की मांग की थी।
Chapter 5: History Does Not Repeated Self But Man Do
आज सोचने जैसी बात है कि दुबई आने वाला एक 29 साल का बंदा अचानक से सिख leader कैसे बन जाता है? कैसे वो अचानक से इतनी बड़ी following पाता है? और कैसे पुलिस उसके against कोई भी action नहीं ले पाती। ये सारी बातें बिना किसी सपोर्ट के possible नहीं है।
सरकार कोई भी हो भारत को एक बुरी आदत है कि हम किसी भी tough problem को solve करने की बजाय उसे अनदेखा कर देता है। delay कर देता है। देश में जो कचरा है उसे साफ करने की बजाय उसे bed के नीचे खिसका देते है।
फिर सालों गुजर जाता है और ये कचरा सड़ जाता है और problem बड़ा बन जाता है और उसकी heavy प्राइस हम सब को चुकानी पड़ती है। पंजाब एक bordering state है जो भारत के लिए बहुत ज्यादा important है। पंजाब के लोग भारत के लिए बहुत ज्यादा important है। सिख community भारत के लिए बहुत ज्यादा important है।
आज हमें स्टेट और सेंटर में कोऑपरेशन की जरुरत है. यहाँ हमें फालतू के blame game को छोड़कर पंजाब में लॉ & आर्डर बनाने की जरुरत है. 1990s में पंजाब में लॉ & आर्डर को establish करने में पंजाब के पुलिस ने काफी काम किया था.
भारत के नागरिक होने के नाते हमें ये समझने की जरुरत है कि 99.9% सिख लोग खालिस्तान को सपोर्ट नहीं करते हैं. वो खुद को भारत का हिस्सा मानते हैं और वो भारत का ही हिस्सा है. जो भारत के टुकड़े करना चाहते हैं वो तो यही चाहते हैं कि पंजाब में होनेवाले वायलेंस की वजह से एंटी सिख सेंटीमेंट फैलाया जाय ताकि दूसरे कम्युनिटी सिख कम्युनिटी को दूर धकेले.
उन्हें खालिस्तानी बुलाना स्टार्ट करें. फिर उन्हें radicalize करना आसान हो जाए. हमें उन्हें उनके ऑब्जेक्टिव में बिलकुल सक्सेस नहीं होने देना है. हमें सिख और हर धर्म और पंथ के लोगों को हमारे देश का एक equal हिस्सा मानकर ही आगे बढ़ना है । हर इंसान को protect करने के लिए हमारे सरकार तैयार रहना होगा। जहां हमें danger सिर्फ बाहर से ही नहीं अंदर से भी होगा।