Nilotpal Mrinal Bihar: बिहार की माटी संघर्ष और खुद को साबित करने की मिसाल है। यहां की राजनीति, युवाओं की मुश्किलों और संस्कृति पर नीलोत्पल मृणाल ने अपने बेबाक विचार रखे। उनकी बातें कहीं गहरी सोच की मांग करती हैं तो कहीं समाज को आईना दिखाती हैं।
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Nilotpal Mrinal Bihar
ब से बिहारी, ह से हमेशा, र से हम रंगदार
नीलोत्पल मृणाल ने कहा कि “रंगदार” शब्द का मतलब गलत न समझा जाए। रंगदार का मतलब किसी की ज़मीन हड़पने वाला या अपराधी नहीं है। इसका मतलब है एक ऐसी शख्सियत जिसमें कई रंग हों, जैसे बिहारी। ये शब्द बिहार की अलग-अलग खूबियों को बताने का जरिया है, जो हमारी मिट्टी में रची-बसी हैं। लिट्टी-चोखा खाना, गांव की सादगी और संघर्ष से भरी कहानियां ही हमारी ताकत हैं।
बिहार के छात्रों का संघर्ष और सरकारी नौकरी की दौड़
बिहार में सरकारी नौकरी युवा संघर्ष का प्रतीक बन गई है। चाहे यूपीएससी हो या बीपीएससी, हर परीक्षा दांव पर लगती दिख रही है। पेपर लीक की घटनाएं और नौकरियों में पारदर्शिता की कमी बच्चों के सपनों को कुचल रही है। बच्चे ठंड में ठिठुरते हैं, आंदोलन करते हैं, फिर भी सुनवाई नहीं होती।
नीलोत्पल मृणाल ने कहा कि सरकारी नौकरी का सपना गरीब वर्ग के लिए सम्मान और जीवन की सुरक्षा का जरिया है। जिन बच्चों के पास न संसाधन हैं, न मौके, उनके लिए ये आखिरी चारा है। क्या हम इन्हें मौके देने के बजाय निकम्मा कह सकते हैं?
मुखर्जी नगर की हकीकत: सपनों का सच
दिल्ली का मुखर्जी नगर आईएएस की तैयारी का केंद्र है। लेकिन मृणाल ने बताया कि यहां का असली सच गज भर के कमरों में तपता है। लड़ाई सिर्फ किताबों की नहीं है, बल्कि यहां जिंदगी और समय दोनों दांव पर होते हैं। किताबों में ‘डार्क हॉर्स’ के जरिए मृणाल ने इसी संघर्ष को दिखाया। लेकिन अब ये जगह अच्छी खबरों से ज्यादा बुरी खबरों के लिए जानी जाती है।
भोजपुरी गानों में गिरती गरिमा
भोजपुरी गानों के स्तर पर नीलोत्पल मृणाल ने तीखी चुटकी ली। उन्होंने कहा कि भोजपुरी की धुनें इतनी प्यारी होती हैं कि अगर कंटेंट अच्छा हो, तो ये और चमक सकती हैं। लेकिन, आज के गाने रिश्तों और गरिमा को तार-तार कर रहे हैं। “भौजी,” “ढोड़ी,” और “जीजा-साली” जैसे शब्द गानों में ऐसे चित्रित किए जाते हैं कि लोग भोजपुरी बोलने में शर्म महसूस करते हैं।
क्या ये वही भोजपुरी है जिसने भिखारी ठाकुर जैसे नाम देखे? मृणाल का कहना था कि प्रतिभाशाली गायकों को कला में गरिमा लानी होगी। भौजी और ढोड़ी तक सीमित सोच को बदलना ही होगा।
राजनीति और युवाओं की भूमिका
बिहार की राजनीति में बदलाव की बात हो और युवा नेताओं का जिक्र न हो, ऐसा कैसे हो सकता है? तेजस्वी यादव, कन्हैया कुमार और चिराग पासवान जैसे नेता संभावनाओं से भरे हैं। लेकिन मृणाल ने कहा कि बिहार की राजनीतिक ज़मीन इतनी खुरदरी है कि यहां बदलाव करना आसान नहीं।
प्रशांत किशोर जैसे नेताओं के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि हथौड़े से बिहार की ज़मीन नहीं बदल सकती। यहां की राजनीति भावुक है और यहां बदलाव लाने के लिए जुड़ाव और धैर्य दोनों चाहिए।
पलायन: रुकने का सपना
बिहार का पलायन सबसे गंभीर मुद्दा है। मुंबई, दिल्ली, गुड़गांव में बिहारी मजदूर जहां सम्मान ढूंढते हैं, वहीं बिहार में रोज़गार न होने से पीछे छूट जाते हैं। प्रशांत किशोर ने वादा किया कि उनकी सरकार पलायन रोक देगी, लेकिन क्या ऐसा हो पाना संभव है?
पलायन के समाधान के लिए नई औद्योगिक नीति और रोजगार सृजन जरूरी है। फिलहाल, बदलाव की राह लम्बी और मुश्किल दिखती है।
छात्रों के संघर्ष पर नीलोत्पल मृणाल का संदेश
नीलोत्पल मृणाल ने कहा, “लड़ते रहिए। वक्त थोड़ा सख्त है, लेकिन जीतने का हौसला रखिए।” बिहार के छात्रों को उन्होंने संघर्ष को अपनी ताकत बनाने की नसीहत दी। साथ ही कहा कि प्लान बी हमेशा तैयार रखें, चाहे वो टीचिंग हो, लेखन या कोई छोटा व्यापार।
निष्कर्ष
बिहार के युवा बेहतर भविष्य की लड़ाई लड़ रहे हैं। राजनीति में बदलाव, शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में सुधार की जिम्मेदारी सिर्फ नेताओं की नहीं, बल्कि समाज की भी है। हर बिहारी को अपनी भूमिका निभानी होगी।
नीलोत्पल का संदेश साफ है- “आप अपनी मेहनत और संघर्ष से इतिहास बदल सकते हैं। अपने सपनों के लिए लड़िए, रास्ते खुद बनेंगे।”
“लड़ते-लड़ते जीत लेंगे एक दिन।”
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