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भोजपुरी सिनेमा के बड़े कलाकार संजय पांडे का प्रेरक सफर, Sanjay Pandey Life Story

Sanjay Pandey Life Story

Sanjay Pandey Life Story: भोजपुरी सिनेमा के जाने-माने अभिनेता संजय पांडे का नाम इंडस्ट्री में उनके बहुमुखी अभिनय और दमदार नेगेटिव किरदारों के लिए अलग पहचान रखता है। 500 से अधिक भोजपुरी फिल्मों, हिंदी फिल्मों और टीवी सीरियल में काम कर चुके संजय पांडे ने अपनी मेहनत, संघर्ष और अभिनय कौशल से यह मुकाम हासिल किया है। थिएटर से लेकर बड़े पर्दे तक, उनके हर किरदार ने दर्शकों पर गहरा प्रभाव छोड़ा है।

आइए, संजय पांडे के इस दिलचस्प सफर, उनके संघर्ष और उनकी सोच को जानने की कोशिश करते हैं।

Sanjay Pandey Life Story

बचपन और पढ़ाई: आजमगढ़ से कटनी तक का सफर

संजय पांडे मूल रूप से उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ के रहने वाले हैं, लेकिन उनका बचपन और शिक्षा मध्य प्रदेश के कटनी में हुई। उनके पिता डिफेंस की नौकरी में थे, जिससे परिवार का स्थान बदलता रहा। सरस्वती शिशु मंदिर से स्कूलिंग करने के बाद उन्होंने एमए (संस्कृत साहित्य) तक की पढ़ाई पूरी की।

संजय कहते हैं, “पिता का कहना था कि पढ़े-लिखे अभिनेता बनना ताकि कोई यह न कहे कि पढ़ाई नहीं कर पाया तो एक्टर बन गया।” यही वजह है कि उन्होंने कभी पढ़ाई और थिएटर के बीच समझौता नहीं किया।

मुंबई में कदम और पहला अनुभव

1990 में संजय पहली बार मुंबई आए। यह एक एक्सप्लोरेटरी विजिट थी, जहां उन्होंने इंडस्ट्री को समझने की कोशिश की। मुंबई को देखते हुए उन्होंने तय किया कि जिस ‘रणभूमि’ में उतरना है, पहले उसकी पूरी तैयारी करनी होगी।

1999 में संजय ने दूसरी बार मुंबई का रुख किया। बिना किसी गॉडफादर, अधिक पैसे या बड़े कनेक्शन के, उनके पास सिर्फ उनकी मेहनत और अभिनय का हुनर था। “मैंने 90 से 99 तक खुद को पूरी तरह तैयार किया और फिर मुंबई लौटा,” उन्होंने बताया।

संघर्ष के दिन: दोस्तों और ईमानदारी का सहारा

मुंबई जैसे महंगे शहर में शुरुआती दिन आसान नहीं थे। संजय ने चार रूममेट्स के साथ छोटे से कमरे में कई साल गुजारे। हर हफ्ते काम बांटने के लिए पर्ची निकाली जाती थी—कोई बर्तन धोता, तो कोई साफ-सफाई करता। इनमें से हर कोई एक्टर बनने का सपना देख रहा था।

सबसे खास बात यह थी कि एक दूसरे के काम में कभी बाधा नहीं बनते थे। “अगर किसी का कॉल आता तो हम उसे ईमानदारी से उस तक पहुंचाते थे। यह ईमानदारी आज दुर्लभ है,” संजय ने साझा किया।

मुंबई: भ्रम तोड़ने वाला शहर

मुंबई ने संजय का वो हर भ्रम तोड़ा जो लेकर वे यहां आए थे। उनके गुरु आशुतोष राणा का कहना था, “मुंबई मेहमानों को सिर्फ नाश्ता कराती है। अगर घर बनाना है तो इसे अपना मानो।” यह संजय के लिए बड़ा सबक साबित हुआ।

उन्होंने महसूस किया कि मुंबई कोई तैयार सिस्टम को स्वीकार नहीं करती, यहां खुद को नए सिरे से खड़ा करना पड़ता है।

थिएटर: अभिनय का असली स्कूल

संजय ने मुंबई में सत्यदेव दुबे जैसे दिग्गज थिएटर गुरु से प्रशिक्षण लिया। “दुबे साहब के निर्देशन में मैंने बहुत कुछ सीखा। थिएटर ने मुझे सिखाया कि धैर्य और अनुशासन के बिना कुछ भी संभव नहीं है।”

संजय आज भी थिएटर को अपनी प्राथमिकता मानते हैं। उनका मानना है कि सबसे पहले अभिनय का अभ्यास थिएटर में ही होता है।

भोजपुरी इंडस्ट्री में जगह बनाना

संजय पांडे भोजपुरी फिल्मों में अपनी भूमिका को लेकर खासे स्पष्ट हैं। उनके दमदार नेगेटिव किरदारों और कॉमेडी में भी उनकी खास छवि बनी है। राजा बाबू और झारखंडे जैसे किरदारों ने दर्शकों के बीच उनकी अलग पहचान बनाई।

वे मानते हैं कि एक विलन की उम्र लंबे समय तक नहीं रहती। “कॉमेडी से कलाकार अपनी उम्र बढ़ा सकता है। यह दर्शकों से जुड़ाव भी बेहतर करता है,” उन्होंने बताया।

परिवार का साथ और पत्नी का योगदान

संजय अपने थिएटर ग्रुप को चलाने में अपनी पत्नी का बड़ा योगदान मानते हैं। यूपीएससी तैयारी छोड़कर उनकी पत्नी ने अभिनय और लेखन में अपनी पहचान बनाई। संजय कहते हैं, “अगर मेरी पत्नी का साथ नहीं होता तो मैं थिएटर नहीं कर पाता। आज वह हमारे थिएटर ग्रुप की रीढ़ हैं।”

बेटी के प्रति प्यार और सपने

संजय अपनी 17 साल की बेटी को अपनी ताकत मानते हैं। वे कहते हैं, “जब वह ‘पापा’ कहती है, तो सब ठीक लगने लगता है।” वह गाना गाने में रुचि रखती है, जिससे संजय को लगता है कि वह उनके अधूरे सपने को पूरा कर रही है।

भोजपुरी इंडस्ट्री के बदलते हालात

संजय ने भोजपुरी सिनेमा में गिरते बजट और नए अभिनेताओं के आगमन पर अपने विचार रखे। “आज इंडस्ट्री में हमारा काम कम हुआ है क्योंकि चैनल्स के बजट छोटे हो गए हैं। लेकिन हम क्वालिटी से समझौता नहीं करेंगे।”

यह साफ है कि संजय सिर्फ उन्हीं प्रोजेक्ट्स में काम करना पसंद करते हैं जो उनकी कला और मानकों के अनुरूप हों।

साहित्य और कविता का प्रभाव

संजय के घर में 500 से ज्यादा किताबें हैं। उन्हें हिंदी कविता और साहित्य का गहरा शौक है। रामधारी सिंह दिनकर की ‘रश्मिरथी’ उनकी पसंदीदा कविताओं में से एक है। संजय लिखते भी हैं और लॉकडाउन के दौरान उन्होंने कई कविताएं तैयार कीं।

सोशल मीडिया और रील्स में दिलचस्पी

संजय सोशल मीडिया के जरिए अपने प्रशंसकों से जुड़े रहते हैं। वे मानते हैं कि रील्स बनाने से उन्हें दर्शकों के करीब आने का मौका मिलता है। पुराने फिल्मी गाने और मजेदार आइडियाज उनकी रील्स को खास बनाते हैं।

भविष्य की योजनाएं और सपने

संजय बॉलीवुड में और हिंदी वेब सीरीज में अधिक काम करना चाहते हैं। उनका सपना है कि वे अभिनय के लिए गंभीर छात्रों के लिए एक बड़ा संस्थान खोलें। “मैं चाहता हूं कि भारतीय सिनेमा को बेहतर प्रतिभाएं मिलें।”

निष्कर्ष

संजय पांडे की कहानी सिर्फ एक संघर्ष की नहीं, बल्कि यह दिखाती है कि सच्ची मेहनत और जिद आपके सपनों को हकीकत बना सकती है। वे नए कलाकारों को यही संदेश देना चाहते हैं कि तैयारी और ईमानदारी आपका सबसे बड़ा हथियार है। भोजपुरी से लेकर हिंदी सिनेमा तक, संजय पांडे का सफर अपने आप में प्रेरणा है।

भविष्य में उनके और शानदार प्रोजेक्ट्स देखने की उम्मीद के साथ, हम यही कह सकते हैं—वे केवल अभिनेता नहीं, बल्कि एक सच्चे कलाकार हैं।

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