गोरखपुर के इस खुनी लव स्टोरी को जानकर आपका दिमाग हिल जाएगा, शिखा दुबे ने कैसे खुद को मारा, Shikha Dubey Mystery Case

Shikha Dubey Mystery Case

Shikha Dubey Mystery Case: तारीख थी 10 जून 2011! उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के कमलेशपुरम कॉलोनी की रहने वाली एक लड़की किसी जरूरी काम से घर के बाहर निकलती है। लेकिन देर शाम तक वापस नहीं आ पाती है। घरवाले परेशान होकर पुलिस में शिकायत दर्ज करवाते हैं। एक जवान लड़की के गायब होने की खबर से शहर भर में हंगामा हो जाता है। पुलिस तेजी से काम करते हुए उस लड़की को ढूंढने निकलती है। मगर पुलिस द्वारा लड़की का शव परिवार वालों को सौंप दिया जाता है और उसका अंतिम संस्कार भी कर दिया जाता है। 

Shikha Dubey Mystery Case

Shikha Dubey Mystery Case

अब सबसे बड़ा सवाल था कि इस लड़की की हत्या किसने की है? पुलिस इसी सवाल का जवाब तलाशने के लिए दिन-रात एक कर देती है। पुलिस की मेहनत रंग लाती है और फिर एक दिन पुलिस को जवाब भी मिल जाता है। लेकिन जवाब हिला देने वाला था। दुनिया की नजर में जिसकी हत्या हुई थी असल में वही मर्डरर भी था। ऐसा कैसे संभव है कि जिसका कत्ल हुआ, वही इस केस की कातिल भी हो।

हम आपको जिस सच्ची घटना की पूरी कहानी बताने जा रहे हैं, उसमें सच में ऐसा ही हुआ था। शायद आपको अभी बातें समझ में नहीं आ रही होंगी। मगर जब आप इस वीडियो को आखिर तक देखेंगे और हिला देने वाली कहानी की पूरी सच्चाई जानेंगे तो आपके होश उड़ जाएंगे। पूरी कहानी कल्पना से परे हैं और इस पूरी कहानी को अंजाम देने के पीछे की वजह और भी भयावह है। तो आखिर क्या है रहस्यों से भरी इस मर्डर के कहानी की पूरी सच्चाई। चलिए जानते हैं सब कुछ विस्तार से.

इस पूरी कहानी की सबसे अहम किरदार हैं शिखा दुबे। शिखा दुबे उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के कमलेशपुरम इलाके में अपने परिवार वालों के साथ रहा करती थी. 2011 में शिखा दुबे की उम्र तेईस साल थी और वो इस समय दीनदयाल उपाध्याय यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई कर रही थी. शिखा देखने में बेहद ही मासूम और शरीफ थी. शिखा दस जून 2011 को कुछ जरूरी काम के लिए घर से बाहर निकलती है। 

शिखा घर वालों को कह कर जाती है कि थोड़ी देर में वापस आ जाऊंगी। मगर काफी देर हो जाती है। मगर वो वापस नहीं लौटती है। जैसे-जैसे शाम ढलती है। परिवार वालों की चिंताएं भी बढ़ने लगती हैं। ज्यादा अंधेरा हो जाने पर परिवार वाले अपने स्तर से शिखा दुबे की खोजबीन शुरू कर देते हैं। दोस्तों रिश्तेदारों तक को फोन किया जाता है। मगर शिखा की जानकारी कहीं से नहीं मिलती है।

जब शिखा का कहीं भी पता नहीं चलता है तो थक हार कर शिखा दुबे के पिता राम प्रकाश दुबे गोरखपुर के एक स्थानीय पुलिस स्टेशन में जाकर बेटी के गायब होने की शिकायत दर्ज करवाते हैं। मामला दर्ज करने के बाद पुलिस वाले राम प्रकाश दुबे से पूछते हैं कि क्या आपको किसी पर शक है, जवाब में वो दीपू यादव का नाम लेते हैं। दीपू यादव ही इस कहानी का दूसरा सबसे अहम किरदार है। राम प्रकाश दुबे के मुताबिक दीपू यादव उन्हीं के पड़ोस में रहता है। 

पुलिस को दिए बयान में प्रकाश दुबे बताते हैं कि दीपू यादव अक्सर उनकी बेटी शिखा दुबे को परेशान किया करता था। इसलिए उन्हें शक है कि हो ना हो दीपू यादव ने ही उनकी बेटी को कहीं गायब किया है या फिर उसकी हत्या कर दी है। शक जताए जाने के बाद पुलिस तुरंत active होती है और भागते हुए दीपू यादव के घर पर आती है। यहाँ आकर पता चलता है कि दीपू यादव खुद ही लापता है। अब पुलिस वालों का शक यकीन में बदल जाता है और वो दीपू यादव को ढूंढने में लग जाते हैं। 

इधर पुलिस दुबे की भी तलाश में लगी रहती है। इसी खोजबीन के दौरान पुलिस वालों को सरयू कैनाल कॉलोनी के पास के जंगल में एक लाश मिलती है। ये लाश एक लड़की की थी। लाश का चेहरा बहुत ही भयानक तरीके से बिगाड़ दिया गया था। चेहरे से पहचान करना मुश्किल था। एक लड़की की लाश मिलते ही पुलिस वाले तुरंत राम प्रकाश दुबे के परिवार वालों को बुलाते हैं और उनसे पहचान करने के लिए कहते हैं कि कहीं ये शव गायब हुई बेटी शिखा दुबे का तो नहीं है।

खबर मिलते शिखा दुबे के परिवार वाले लाश की पहचान करने के लिए आ जाते हैं. चूँकि चेहरा पूरी तरीके से बिगाड़ दिया गया था. इसलिए चेहरे से तो पहचानना असंभव था लेकिन शरीर पर पहना हुआ कपड़ा, शव के आसपास बिखरे हुए सामान, पैरों में पहनी गई चप्पल, गले में मौजूद काला धागा तथा लड़की की कद काठी चीख-चीख कर इस बात की गवाही दे रही थी कि ये सामने मरी पड़ी हुई लड़की कोई और नहीं बल्कि शिखा दुबे हैं। परिवार आखिरकार उस शव की पहचान अपनी बेटी शिखा दुबे के तौर पर करते हैं। क्योंकि भले ही चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था. 

मगर शरीर पर जो कपड़े थे वही कपड़े पहनकर अंतिम बार शिखा दुबे अपने घर से निकली थी इसके अलावा जो चप्पल दूसरे सामान तथा गले में काला धागा मिला था वो सभी शिखा दुबे का ही था। 

पहचान होने के बाद शव को पोर्टमॉर्टम के लिए भेज दिया जाता है। पोर्टमॉर्टम में खुलासा होता है कि गला दबाकर हत्या करने के बाद लड़की के चेहरे को धारदार हथियार से काटा गया है और भारी चीज से हमला करके चेहरे को बर्बाद भी किया गया है। इसके अलावा पोस्टमॉर्टेम में सेक्सुअल हैरसमेंट की भी पुष्टि होती है। शरीर को कई जगह cigarette से जलाया भी गया था। मतलब लड़की के साथ हैवानियत की सारी हदों को पार किया गया था।

इस दरिंदगी की खबर बाहर आते ही लोगों का गुस्सा भड़क जाता है और लोग जल्द से जल्द आरोपी के गिरफ्तारी की मांग करने लगते है। इधर पोस्टमार्टम के बाद सभी जरुरी फॉर्मलिटीज पूरी करने के बाद लड़की का शव परिवार वालों को सौंप दिया जाता है। जो विधिवत तरीके उसका अंतिम संस्कार भी करते हैं। इस घटना ने बड़े स्तर पर अखबारों की सुर्खियां बटोरी थी और लोगों में बड़ा गुस्सा था. इसलिए पुलिस वाले भी तत्परता दिखाते हुए जल्द से जल्द हत्यारों की तलाश में लग जाती है। 

चूँकि शिखा दुबे के पिता ने दीपू यादव नाम के लड़के पर शिखा दुबे की हत्या का शक जताया था। इसलिए पुलिस दीपू यादव को ही प्राइम सस्पेक्ट मानते हुए हाथ-पैर मारना शुरू कर देती है और दीपू यादव से जुड़े दर्जनों लोगों को उठाया जाता है। यहाँ तक की दीपू यादव से जुड़े पचास से ज्यादा दोस्तों से पूछताछ होती है मगर कहीं से भी दीपू यादव का पता नहीं चलता है. 

काफी मेहनत के बाद दीपू यादव का एक करीबी दोस्त पुलिस के हाथ लगता है जो पूछताछ में खुलासा करता है कि दीपू यादव अक्सर सोनभद्र आया जाया करता था और पिछले कुछ दिनों में उसने सोनभद्र का जिक्र भी कई बार किया था. अब गोरखपुर पुलिस सीधे सोनभद्र का रुख करती है और दीपू यादव की तलाश में सोनभद्र शहर का कोना-कोना छान मारती है. तलाश कई घंटों तक होती रहती है। मगर कहीं भी दीपू यादव का पता नहीं चलता है। फिर भी पुलिस वाले हिम्मत नहीं हारते हैं और अपनी तलाश जारी रखते हैं। 

इसी तलाश के क्रम में वो एक ऐसे घर के पास पहुंचते हैं, जो अंदर से बंद था। पुलिस वाले आकर दरवाजे पर दस्तक देते हैं। कई बार knock करने के बाद एक लड़की आकर दरवाजा खोलती है। दरवाजा खोलने वाली लड़की को देखकर पुलिस वालों के पैरों तले जमीन खिसक जाती है। दरवाजा किसी और ने नहीं बल्कि उसी शिखा दुबे नाम की लड़की ने खोला था। वही शिखा जिसका अंतिम संस्कार परिवार वालों ने बस अभी-अभी किया था। जिस शिखा दुबे के कातिल को पुलिस तलाश कर रही थी. वही शिखा दुबे अब पुलिस के सामने खड़ी थी. 

आपके मन में एक सवाल आ रहा होगा कि आखिर पुलिस वालों ने शिखा दुबे को कैसे पहचाना? तो आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जब शिखा दुबे के पिता ने बेटी की missing रिपोर्ट दर्ज करवाई थी तो उन्होंने शिखा दुबे की कुछ तस्वीरें भी पुलिस वालों को दी थी. शिखा दुबे को जिन्दा देखकर हैरान होते हुए पुलिस वाले मामला समझने की कोशिश करते है और तुरंत घर के अंदर दाखिल होते है. 

घर के अंदर का नज़ारा और भी हैरान करने वाला था. कमरे में पुलिस वालों को कोई और नहीं बल्कि इस केस का प्राइम सस्पेक्ट दीपू यादव दिखता है. मतलब जिस लड़की Shikha Dubey की हत्या हुई थी वो और जिस लड़के Deepu Yadav पर हत्या का इलज़ाम लगा था वो दोनों एक ही घर में Sonbhadra में साथ रह रहे थे. यहाँ एक और बड़ा सवाल ये था कि जिस शिखा दुबे का कत्ल हुआ था वो तो पुलिस को जिंदा मिल गई थी. तो अभी-अभी परिवार वालों ने जिस लड़की को अपनी बेटी मानकर अंतिम संस्कार किया था वो कौन थी? उसकी हत्या किसने की थी? 

अब पुलिस इन सभी सवालों का जवाब तलाशने में लग जाती है. इन सभी सवालों का सटीक जवाब कोई दे सकता था तो वो शिखा दुबे और दीपू यादव ही थे इसलिए पुलिस वाले इन दोनों को सोनभद्र से गिरफ्तार करते हुए गोरखपुर लेकर आते हैं और यहाँ इन लोगों पूछताछ का सिलसिला शुरू होता है।

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अब इस पूछताछ में हिला देने वाला खुलासा होता है। शिखा दुबे पूछताछ में खुलासा करती है कि दीपू यादव भी उसी के कॉलेज में पढ़ाई करता था और उसके घर के आसपास ही रहता था। कॉलेज में इन दोनों की मुलाकात होती है और देखते ही देखते शिखा दुबे तथा दीपू यादव एक दूसरे को पसंद करने लगते हैं। दोनों एक दूसरे के साथ जीने-मरने की कसमें खाने लगते हैं। दुनिया की नजरों से बचकर दोनों एक दूसरे से मिलने भी लगते हैं। 

मगर इस प्यार की खबर आखिरकार शिखा दुबे के परिवार वालों को लग जाती है और वो शिखा दुबे पर कई तरह की पाबंदियां लगा देते हैं. इस कारण दीपू यादव और शिखा दुबे का मिलना-जुलना बंद हो जाता है। कुछ दिनों तक तो सब कुछ सामान्य रहता है। मगर मौका मिलते ही फिर से शिखा और दीपू मिलने-जुलने लगते हैं और मौका मिलते ही गोरखपुर के ही एक मंदिर में जाकर 18 अप्रैल 2011 को चुपचाप शादी कर लेते हैं। 

शादी करने के बाद दोनों इस बात की भनक किसी को नहीं लगने देते हैं और अपने-अपने घर पर रहने लगते हैं। अब दीपू यादव शिखा को अपने साथ रखने के प्लान पर काम करने लगता है। इन दोनों को अच्छे से पता था कि अगर परिवार वालों को बता भी दिया कि हमने शादी कर ली है तब भी परिवार वाले नहीं मानेंगे। इसलिए अब दोनों दूसरे विकल्प की तलाश में लग जाते हैं ताकि साथ रह सकें। 

दीपू यादव अपनी इस परेशानी का जिक्र अपने एक दोस्त सुग्रीव से करता है। सुग्रीव का ट्रांसपोर्ट का बिजनेस था और वो ट्रक भी चलाया करता था। दीपू यादव की सारी बातें सुनने के बाद सुग्रीव इन दोनों को बताता है कि मैं एक ऐसी लड़की को जानता हूँ. जो देखने में काफी हद तक शिखा दुबे की तरह ही है, उसकी कद काठी और लंबाई भी पूरी तरह शिखा दुबे की है, अगर हम उसकी हत्या कर दें और हत्या करने के बाद उसे शिखा दुबे का कपड़ा पहना दें और उसका चेहरा बिगाड़ दें, तो लोग शिखा दुबे को मरा हुआ समझ लेंगे और फिर तुम दोनों किसी दूसरे शहर में जाकर बड़े आराम से रह सकते हो। 

दीपू यादव और शिखा दुबे को सुग्रीव का ये idea काफी पसंद आया और दोनों इस प्लानिंग को हकीकत में बदलने के मिशन पर लग जाते हैं। प्लान बनाने के बाद अब सुग्रीव शिखा दुबे की तरह दिखने वाली पूजा कुमारी नाम की लड़की से कांटेक्ट करता है और उससे कहता है कि तुम्हारे लिए एक नौकरी मेरे पास है। अगर तुम चाहो तो मुझसे आकर मिल सकती हो. पहले महीने का पगार भी तुम्हें advance में दिया जाएगा। पूजा कुमारी की उम्र भी यही कोई 25-26 साल थी. उसकी एक 3 साल की बेटी भी थी.

क्योंकि पूजा की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और वो काम की तलाश में भी थी. इसलिए जब सामने से ऑफर आता है तो पूजा कुमारी मना नहीं कर पाती है और वो काम की तलाश में सुग्रीव से मिलने के लिए तैयार हो जाती है। सुग्रीव तुरंत इस बात की जानकारी दीपू और शिखा को देता है और तय किया जाता है कि 10 जून को प्लानिंग को हकीकत में बदला जाएगा। प्लान के तहत सुग्रीव अपना ट्रक लेकर सोनभद्र से गोरखपुर के लिए निकल जाता है ताकि वो पूजा को अपने साथ ला सके। 

इधर तय समय के मुताबिक़ शिखा दुबे भी अपने घर से निकलकर दीपू यादव से मिलती हैं और बाजार जाकर कुछ नए कपड़े खरीदती हैं। इधर सुग्रीव पूजा को लेकर वापस आने लगता है। वापस आते हुए वो पास के एक जंगल में गाड़ी रोकता है और पूजा से कहता है कि यहाँ पर कुछ लोग तुमसे मिलेंगे जो काम देंगे। इसी के बाद बहाने से गाड़ी रोक कर ये सभी पूजा को गाड़ी से उतारते हैं और जंगल में ले जाते हैं। यहाँ पर दीपू और शिखा भी आ जाते हैं। यहाँ आकर बड़ी बेरहमी से सुग्रीव और दीपू गला दबाकर पूजा की हत्या कर देते हैं। 

इसके बाद शिखा दुबे बाजार से खरीद कर लाए गए नए कपड़े खुद पहनती हैं और जो कपड़ा पहनकर वो घर से निकली थी वो कपड़े पूजा को पहना देती हैं. यहाँ तक कि जो काला धागा अक्सर शिखा अपने गले में पहना करती थी वो भी पूजा के गले में डाल देती हैं ताकि इस लाश की पहचान शिखा के तौर पर की जा सके. शिखा अपनी चप्पल भी पूजा के शव के पास ही छोड़ देती।

अपना सब कुछ पूजा को पहनाने के बाद Shikha पूजा के सब कपड़े छिपाकर अपने bag में रख लेती है. कपड़ों के आधार पर तो पूजा अब Shikha बन चुकी थी मगर चेहरे से अब भी वो पूजा के तौर पर ही पहचानी जा सकती थी. इसलिए अब Sugriv तथा Dipu मिलकर truck से लोहे का बड़ा सा rod निकालते है और बड़ी बेरहमी से पूजा के चेहरे पर मारना शुरू कर देते है और ये लोग तब तक उस rod से पूजा के face पर हमला करते रहते है जब तक की पूजा का पूरा चेहरा बिगड़ नहीं जाता। 

इसके अलावा ये लोग पूजा के शरीर को cigarette से भी बड़ी बेरहमी से जलाते है ताकि इस मामले को दूसरा रूप दिया जा सके. हत्या करने के बाद दीपू तथा शिखा दुबे तुरंत वहां से सोनभद्र की तरफ भाग जाते है. जबकि सुग्रीव अपने खलासी बलराम के साथ मिलकर शव को वहां से उठाकर सरयू कैनाल के पास के जंगलों में लाकर फेंक देता है और फिर छुप जाता है।

कुछ दिनों तक तो शिखा दुबे और दीपू का plan बहुत अच्छे से काम करता है. मगर जैसे ही शिखा दुबे पुलिस के हाथ लगती है. इनके राज से पर्दा उठ जाता है। शिखा दुबे और दीपू यादव के इस खुलासे को सुनकर हर किसी के पैरों तले जमीन खिसक जाती है। हर कोई shocked था कि मासूम सी दिखने वाली शिखा दुबे ने इतने बड़े जघन्य अपराध को अंजाम दिया है। शिखा ने अपने प्यार के साथ रहने के लिए एक 3 साल की मासूम के सर से उसकी माँ का साया छीन लिया। 

इस खुलासे के बाद जब शिखा दुबे को पिता के सामने लाया जाता है। तो एक पल के लिए तो उन्हें यकीन भी नहीं होता है कि जिस बेटी को वो मरा समझकर अंतिम संस्कार तक कर चुके थे। वही अब उनके सामने है। पिता बेटी का गाल छूकर यकीन करने की कोशिश करते हैं कि वो जिंदा हैं, वो थोड़े भावुक भी होते हैं। मगर थोड़ी देर बाद अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए कहते हैं कि जितने जघन्य अपराध को इसने अंजाम दिया है। इसे जिंदा रहने का कोई हक नहीं है। ये मेरे लिए मर चुकी है। 

इन सभी खुलासों के बाद पुलिस दीपू यादव, सुग्रीव, शिखा दुबे तथा बलराम को गिरफ्तार करते हुए जेल भेज देती है। जिस शिखा दुबे का इस कहानी की शुरुआत में कत्ल होता है। वही शिखा दुबे कहानी के अंत में कातिल निकलती है. पूजा की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में सेक्सुअल हैरेसमेंट का भी ज़िक्र था. मगर इन लोगों में से किसी ने भी पूजा के साथ sexual assault की बात नहीं स्वीकारी और police भी इस बात को साबित नहीं कर सकी. 

फिलहाल इस case की स्थिति क्या है? सुनकर शायद आपको यकीन नहीं होगा। 2011 में घटी इस घटना के कुछ साल तक तो Shikha Dubey और दूसरे आरोपी jail में रहते है. मगर कुछ साल बाद ही Shikha Dubey तथा Dipu Yadav bail लेकर jail से बाहर आ जाते है. अमर उजाला के एक रिपोर्ट के मुताबिक जेल से बाहर आने के बाद शिखा दुबे तथा दीपू यादव अलग-अलग शादी करके अपनी दुनिया बसा चुके हैं. 

वहीं कुछ खबरों के मुताबिक आज भी इस केस की फाइलें अदालत में धूल फांक रही हैं. अब तक कोई अंतिम फैसला नहीं आया है. हमें इस न्यायिक प्रक्रिया पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे। इस पूरी घटना पर आपकी क्या राय है comment box में जरूर बताएं। 

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