Chandrakant Jha Case: क्या एक आम आदमी अचानक इतना खतरनाक बन सकता है कि पुलिस को खुलेआम चुनौती देने लगे? दिल्ली का तिहाड़ जेल, जहां व्यवस्था और कानून का डर हर अपराधी को शांत करता है, उसी जेल के बाहर लाशें छोड़कर पुलिस का उपहास बना दिया गया। यह कहानी है चंद्रकांत झा की, जिसने अपने छोटे-छोटे गुस्सों को इतना बड़ा बना दिया कि वो देश के सबसे डरावने सीरियल किलर में गिना जाने लगा।
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Chandrakant Jha Case
चंद्रकांत झा की शुरुआत
चंद्रकांत झा बिहार के एक छोटे से गांव से दिल्ली अपनी किस्मत बदलने आया था। गांव से शुरुआत और दिल्ली की आज़ादपुर मंडी में सब्जी बेचने वाला यह व्यक्ति अचानक एक खतरनाक सीरियल किलर कैसे बन गया? उसकी जिंदगी में ऐसी कौन सी घटनाएं घटीं, जिन्होंने उसे मौत का सौदागर बना दिया?
उसके पिता सरकारी कर्मचारी थे और मां एक सख्त स्वभाव की शिक्षिका। परिवार में नफ़रत या गुस्सा पर शायद सही संवाद की कमी ने बचपन से ही उसे प्रभावित किया। पढ़ाई में असफलता के बाद उसने आठवीं क्लास छोड़ दी और दिल्ली आकर मजदूरी शुरू कर दी। लेकिन गलत बातों को बर्दाश्त न करने की उसकी आदत ने हिंसा के बीज बो दिए।
पहली झड़प और तिहाड़ जेल की कहानी
आजादपुर मंडी में उसके एक सुपरवाइजर के साथ पैसे को लेकर विवाद हुआ। ये झगड़ा इतना बढ़ा कि चंद्रकांत ने गुस्से में सुपरवाइजर का हाथ काट दिया। नतीजा ये हुआ कि उसे जेल जाना पड़ा। यही से उसकी कहानी में नया मोड़ आया। तिहाड़ जेल में हवलदार बलबीर सिंह का टॉर्चर झेलने वाले चंद्रकांत ने अपने गुस्से को दिल में भर लिया और जेल से बाहर आने के बाद बदला लेने की ठानी।
तिहाड़ जेल के बाहर बॉडीज और पुलिस को चुनौतियां
2003 से 2007 के बीच तिहाड़ जेल के गेट्स के बाहर लगातार तीन लाशें मिलीं। हर लाश के साथ एक चिट्ठी होती थी, जिसमें पुलिस को चैलेंज लिखा होता था। चंद्रकांत झा का मकसद सिर्फ हत्या करना नहीं था। वह सिस्टम और पुलिस का मजाक उड़ाने में ज्यादा रुचि रखता था।
सबसे हैरान करने वाली बात यह थी कि जितने लोगों की उसने हत्या की, वे सभी उसके दोस्त या करीबी थे। हर हत्या के पीछे छोटी-छोटी वजहें थीं, जो सामान्य इंसान के नजर में तुच्छ लगें।
- उसने एक दोस्त को इसलिए मारा क्योंकि उसने शराब पीने पर झूठ बोला।
- दूसरे की हत्या इसलिए की क्योंकि वह लड़कियों पर बुरी नज़र रखता था।
- एक शख्स को उसने सिर्फ इसलिए मार दिया क्योंकि उसने उसके कमरे में झूठी प्लेट छोड़ी थी।
उसकी फितरत के मुताबिक जब भी उसे गुस्सा आता, वह वारदात को अंजाम देकर शांत हो जाता।
आखिर पुलिस ने कैसे पकड़ा?
कई सालों तक पुलिस को छकाने के बाद उसका ओवरकॉन्फिडेंस उसकी सबसे बड़ी गलती बनी। उसने दिल्ली के हरिनगर एसएचओ को खुद ही कॉल किया, जिससे पुलिस को उसके बारे में अहम सुराग मिले। उसकी गलतियों ने पुलिस को जनवरी 2008 में उसके अलीपुर स्थित हाइडआउट तक पहुंचा दिया।
पकड़े जाने पर उसकी लोकेशन, उसके हथियार और उसके द्वारा छोड़ी गई चिट्ठियों की हैंडराइटिंग ने उसके जुर्म को साबित किया।
क्या चंद्रकांत झा मानसिक रूप से बीमार था?
सामान्य झगड़ों और मामूली मुद्दों पर हत्या करना उसकी दिमागी स्थिति को दर्शाता है। ये साफ था कि उसके मानसिक स्वास्थ्य को काफी समय से नजरअंदाज किया गया था। वह खुद को समाज से कटकर देखता था और सिस्टम से इतनी नफरत करता था कि उसे सबक सिखाना चाहता था।
जेल की सजा और मौजूदा स्थिति
2013 में उसे अदालत ने उम्रकैद की सजा सुनाई। अब वह उसी तिहाड़ जेल में है, जहां कभी उसने लाशें छोड़कर पुलिस को चैलेंज किया था। 2023 में उसे 90 दिन की पैरोल दी गई थी ताकि वह अपनी बेटी की शादी की तैयारी कर सके।
निष्कर्ष
चंद्रकांत झा की कहानी दिखाती है कि गुस्सा और नफरत इंसान को किस हद तक बदल सकते हैं। एक मामूली मजदूर, जिसने लोगों की मदद की, वह मानसिक समस्याओं और बच्चों की परवरिश की कमी के चलते एक सीरियल किलर बन गया। उसकी कहानी हमें चेताती है कि मानसिक स्वास्थ्य और इंसानी रिश्तों की अहमियत को नजरअंदाज करना कितनी बड़ी समस्या बन सकता है।
आप क्या सोचते हैं? क्या चंद्रकांत झा को दी गई सजा पर्याप्त थी? या उसे इससे भी कड़ी सजा मिलनी चाहिए थी? अपनी राय नीचे कमेंट करके बताएं।
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