भारत क्रिकेट के वर्ल्ड कप होस्ट क्यों कर रहा है, Business Model of Cricket World Cup, Dhirubhai Ambani Role in Cricket World Cup

Dhirubhai Ambani Role in Cricket World Cup

Dhirubhai Ambani Role in Cricket World Cup: सबसे पहले स्वर कोकिला के नाम से फेमस लता मंगेशकर ने 1983 वर्ल्ड कप जीत कर आई टीम इंडिया के लिए ₹20 लाख रुपये जुटाए थे. क्योंकि उस टाइम BCCI की फाइनेंशियल कंडीशन बहुत खराब थी। 1983 की सैलरी सीट के अनुसार, टीम के हर प्लेयर को सिर्फ ₹1500 की मैच फीस और ₹200 रुपये पर डे के हिसाब से भत्ता दिए जाते थे। बीसीसीआइ के पास अपने हीरोज का सम्मान करने तक के पैसे नहीं थे और इसीलिए लता मंगेशकर बीसीसीआइ के लिए फ्री कॉन्सर्ट करती है और इस कॉन्सर्ट से कुल ₹20 लाख जोड़े जाते हैं, जिनकी मदद से टीम के हर एक खिलाड़ी को एक-एक लाख का इनाम मिलता है।

अब एक वो दिन था और एक आज का दिन है, जब भारतीय क्रिकेटर्स लाखों-करोड़ों में खेलते हैं। जिन वर्ल्ड कप हीरोज का सम्मान करने के लिए बीसीसीआई के पास पैसे तक नहीं थे, वहीं वर्ल्ड कप आज भारत होस्ट करता हुआ दिखाई देता है।

World Cup Hosting | India’s Winning Strategy | Business Model of ODI Cricket World Cup 2023

Dhirubhai Ambani Role in Cricket World Cup

Dhirubhai Ambani Role in Cricket World Cup

आज के स्टोरी में हम यह जानने वाले है कि भारत क्रिकेट के वर्ल्ड कप होस्ट क्यों कर रहा है और आखिर हमें इससे फायदा क्या होने वाला है? कैसे भारत की क्रिकेट बोर्ड, बीसीसीआई जो आज पूरे वर्ल्ड क्रिकेट को डोमिनेट करती है? उसे इंग्लैंड ने मैच के सिर्फ 2 एक्स्ट्रा टिकट देने से मना कर के बेइज्जत कर दिया था और BCCI की इस सफलता में कैसे, रिलायंस और धीरूभाई अंबानी ने सबसे इम्पोर्टेन्ट रोल प्ले किया। सब कुछ डिटेल में जानेंगे, इस नए स्टोरी में.

बिज़नेस टुडे में पब्लिश एक आर्टिकल की मानें तो 2023 के क्रिकेट वर्ल्ड कप से भारत की इकॉनमी को 2.6 बिलियन डॉलर्स यानी की 22,000 करोड़ रुपये का बूस्ट मिलने वाला है। 15 अक्टूबर से 19 नवंबर 2023 के बीच चलने वाली इस टूर्नामेंट में 10 टीमें पार्टिसिपेट कर रही है जो कि भारत के 10 अलग अलग वेनुज पर 48 मैंचेस खेलेंगे और जिस देश में क्रिकेट को एक खेल नहीं बल्कि धर्म माना जाता है। वहाँ जब क्रिकेट का सबसे बड़ा टूर्नामेंट दस्तक देगा तो फिर का ऑडियंस जमावड़ा लगना तो स्वाभाविक सी बात है।

टीवी हो या फिर मोबाइल स्क्रीन, करोड़ों लोग हर बॉल को ही टकटकी लगाए देखते हैं और दोस्तों जहाँ लोगों का अटेंशन, वहाँ ब्रैन्डस तो ऑटोमैटिकली आ ही जाते है। वर्ल्ड कप के दौरान अगर कोई ब्रैंड्स सिर्फ एक सेकंड के भी ऐड लगाना चाहता है तो उसे ₹3 लाख तक खर्च करने होंगे जो कि 2019 में हुए वर्ल्ड कप से 40% ज्यादा है। सिर्फ टीवी और स्पॉन्सर राइट से ही इस वर्ल्ड कप के दौरान करीब 12000 करोड़ रुपये की कमाई हो जा रही है।

बीसीसीआइ अच्छे से जानती है कि वर्ल्ड कप के दौरान अपने फेवरेट सुपर स्टार्स को देखने के लिए मैदान पर भी ऑडियंस जमकर आने वाली है और इसी को ध्यान में रखते हुए ये अंदाजा लगाया गया है की वर्ल्ड कप के दौरान करीब 2200 करोड़ रूपए तो सिर्फ टिकट सेल से ही आ जाएंगे। इसके अलावा जब दर्शक मैच देखने आएँगे तो फिर वो खाने पीने और मर्चैंडाइज खरीदने पर भी स्पेंड करेंगे ही, जो कि 400 से ₹700 करोड़ तक कमा कर दे सकते हैं।

अगर आप घर बैठकर मैच देखने वाले है तो फिर मैच अकेले देखने में कहा ही मज़ा आता है। हम अक्सर अपनी फैमिली या फिर फ्रेंड्स के साथ क्रिकेट देखना पसंद करते हैं और इस दौरान अक्सर कुछ खाने पीने की चीजें तो जरूर लाई जाती है और आजकल तो लोगो के पास स्विगी और जोमैटो की भी ऑप्शन हैं तो फिर ऐसे में ऑडियंस घर बैठे ही खाना ऑर्डर कर देते हैं और दोस्तों इस दौरान हम जो भी खर्चा करते हैं वो कहीं ना कहीं भारत की इकोनॉमी को ही बूस्ट करता है।

एक शहर से दूसरे शहर ट्रैवल कर रहे टीम्स चाहे होटल में रुके या फिर प्लेन में ट्रैवल करें? हर चीज़ का बेनिफिट हमारे देश के ही लोगों को होता है, जो की वर्ल्ड कप से होने वाली कमाई में 150 से 250 करोड़ तक ऐड कर देता है। साथ ही इन प्लेयर्स को देखने विदेशों से हमारे देश आये फैंस भी होटेल बुक करते है और खाने पीने और घूमने पर भी खर्च करते हैं। इसका करीब हम ₹850 करोड़ जोड़ सकते हैं। इस तरह से अगर हम सभी चीजों को एक साथ जोड़ें तो फिर वर्ल्ड कप 2023 से भारत की इकॉनमी को 18 से 22,000 करोड़ रुपए का बूस्ट मिलने वाला है।

लेकिन दोस्तों वर्ल्ड कप होस्ट करने के पीछे किसी भी देश का मकसद सिर्फ पैसे कमाना नहीं होता। जब कोई देश वर्ल्ड कप जैसा मल्टीनैशनल इवेंट होस्ट करता है तो फिर दुनिया में उसकी सॉफ्ट पावर इन्क्रीज़ होती है। दूसरे देशों की गवर्नमेंट सिक्युरिटी के लिहाज से उस देश पर ज्यादा भरोसा करने लगती है और ग्लोबल लेवल पर उस देश का कद भी काफी ज्यादा बढ़ जाता है। साथ ही वर्ल्ड कप के दौरान अपनी टीम को चियर्स करने भारत में जो भी विदेशी दर्शक आते है वो भी हमारे देश की यादें, एक्सपीरियंस और खूबसूरत जगहों की जानकारी अपने साथ लेकर जाते हैं।

अब मान लीजिए कि ऑस्ट्रेलिया से आए टूरिस्ट का भारत में एक अच्छा एक्सपीरियंस होता है तो फिर वो अपनी फ्रेंड सर्कल में इसकी चर्चा जरूर करने वाला है और इस तरह से वर्ल्ड कप जैसे टूर्नामेंट को होस्ट करने के बाद लॉन्ग टर्म में किसी भी देश की टूरिज्म इंडस्ट्री को जबरदस्त बूस्ट मिलता है। विदेशों से आए टूरिस्ट को बेटर कन्वीनियेंट और कंफर्ट देने के लिए होस्ट नेशन अपने देश का इन्फ्रास्ट्रक्चर भी बेहतर कर लेता है। जैसे की नयी रोड्स, रेलवे ट्रैक, होटल्स और हॉस्पिटल्स बनाये जाते हैं, जो कि लॉन्ग टर्म में देश की आम जनता के लिए ही काम आते हैं।

हालांकि, एक वर्ल्ड कप जैसे बड़े टूर्नमेंट का होस्ट बनना इतना आसान भी नहीं होता। कहने का मतलब ये है की कोई भी देश मुंह उठाकर वर्ल्ड कप होस्ट करने की दावेदारी पेश नहीं कर सकता। अब मान लीजिये की हम 2027 के ODI वर्ल्ड कप के लिए होस्ट खोज रहें है तो एक कॉम्पिटिटिव बिडिंग प्रोसेस की जाएगी, जिसमें की 2007 का वर्ल्ड कप होस्ट करने के लिए इंटरेस्टेड कन्ट्रीज बिड करेंगे। इसके बाद से एक सब कमिटी, जिसमें दुनिया के मेजर क्रिकेट बोर्ड के फॉर्मर चीफ शामिल होते हैं। वो बीड करने वाले कैंडिडेट्स के बीच में से मोस्ट एलिजिबल कैंडिडेट को चुनते हैं और इस दौरान सबसे पहले तो ये देखना होता हैं कि क्या वो देश फाइनेंशियली इतना स्ट्रांग है की वो वर्ल्ड कप जैसे इवेंट ऑर्गनाइज कर सके?

एक्साम्प्ल के लिए अगर सिर्फ हम बांग्लादेश पर ये रिस्पॉन्सिबिलिटी डाल दे तो शायद इस देश की इकॉनमी वर्ल्ड कप के खर्चे को उठा ना कर सके। इसके अलावा देखने वाली बात ये भी होती है की उस देश का इन्फ्रास्ट्रक्चर इतना स्ट्रॉन्ग होना चाहिए की वो ना सिर्फ टीम्स के मैचेस को कंडक्ट करा पाए बल्कि उन देशों से हजारों की संख्या में आए क्रिकेट फैन्स के स्वागत में भी कोई कमी न छोड़ें। हमारा पड़ोसी देश पाकिस्तान भी पिछले कई सालों से वर्ल्ड कप की मेजबानी हासिल करने की ट्राई कर रहा है। लेकिन वहाँ के सिक्योरिटी कंसर्न की वजह से वर्ल्ड कप की मेजबानी को पाकिस्तान से दूर ही रखा गया है।

लास्ट बट नॉट डी लिस्ट, यहाँ ये भी ध्यान रखना होता है कि जिस देश में वर्ल्ड कप हो रहा है। वहाँ पर्याप्त मात्रा में क्रिकेट फैन्स भी जरूर होने चाहिए। क्योंकि अगर फैन्स ही नहीं होंगे तो फिर मैच के दौरान स्टैंडस भी खाली पड़े रहेंगे और क्रिकेट का रोमांच भी फीका नज़र आएगा। वैसे आपको बता दूँ कि साल 2027 में साउथ अफ्रीका, जिम्बाब्वे और नामीबिया मिलकर वर्ल्ड कप को होस्ट करने वाले हैं और 2031 में ये टूर्नामेंट एक बार फिर से भारत लौटेगा। जहाँ बांग्लादेश भी हमारे साथ मिलकर इसकी मेजबानी करेगा। इसके अलावा 2026 का टी20 वर्ल्ड कप भी भारत और श्रीलंका मिलकर ही होस्ट करने वाले हैं।

अब ये सब सुनने के बाद आप वर्ल्ड क्रिकेट में भारत और हमारे क्रिकेट बोर्ड बीसीसीआई के डोमिनेंस को तो अच्छी तरह से समझ चुके होंगे। चाहे आईपीएल हो या फिर इंटरनेशनल क्रिकेट, क्रिकेट का खेल भारत में इस लेवल पर पॉपुलर है कि इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल की टोटल कमाई का मेजर हिस्सा हमारे ही देश से आता है और यही कारण है कि आईसीसी यानी की इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल, जिसे एक समय इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया डोमिनेट करते थे, उस पर आज पूरी तरह से BCCI का राज है।
लेकिन क्रिकेट जगत पर भारत का ये डोमिनेंस हमेशा से ऐसा नहीं था, बल्कि आज से 40 साल पहले कंडीशन तो कुछ ऐसी थी कि 1983 के वर्ल्ड कप फाइनल में पहुंचने के बावजूद भी इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड ने बीसीसीआई को मैच के दो एक्स्ट्रा टिकट देने से भी साफ मना कर दिया था। ऐक्चूअली हुआ कुछ यूं कि जब भारत ने 1983 वर्ल्ड कप के फाइनल में अपनी जगह बनाई तो इसी दौरान हमारे देश के एक यूनियन मिनिस्टर सिद्धार्थ शंकर रे इंग्लैंड के दौरे पर आए हुए थे और मिनिस्टर साहब अपनी पत्नी के साथ उस ऐतिहासिक पल के गवाह बनना चाहते थे।

इसलिए वो उस समय की बीसीसीआई के प्रेसिडेंट एनकेपी साल्वे से उनके लिए दो टिकट्स के इंतजाम करने की गुजारिश करते हैं। लेकिन एनकेपी साल्वे जब ये मांग इंग्लैंड क्रिकेट बोर्ड के सामने रखते हैं तो फिर उनकी ये रिक्वेस्ट सिरे से खारिज कर दी जाती है। जो की सरेआम भारत को बेइज्जत करने वाली बात थी.

अब इंडियन क्रिकेट टीम इंग्लैंड की जमीन पर वर्ल्ड कप जीतकर भारत का तिरंगा तो लहरा देती हैं, लेकिन बीसीसीआई को हमारे देश की वो बेइज्जती गले से नहीं उतर रही थी। एनकेपी साल्वे फैसला करते हैं कि अब वो क्रिकेट वर्ल्ड कप की होस्टिंग पर इंग्लैंड की मोनोपॉली को तोड़कर ही दम लेगी। ऐक्चूअली तो उस टाइम क्रिकेट जगत पर इंग्लैंड का डोमिनेन्स हुआ करता था और 1975 से 1983 के बीच हुए तीनों वर्ल्ड कप को इंग्लैंड ने ही होस्ट किया था।

इंग्लैंड के अलावा किसी और देश को वर्ल्ड कप जैसा मेजर टूर्नामेंट होस्ट करने के काबिल ही नहीं समझा जाता था और क्रिकेट जगत के सारे बड़े फैसले भी इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया ही मिल कर लिया करते थे। साल्वे इंग्लैंड की इसी डॉमिनेंस को ही चूर चूर करना चाहते थे. जिससे कि हर क्रिकेटिंग नेशन को वर्ल्ड कप होस्ट करने का मौका मिल सके।

इसी सिलसिले में एनकेपी साल्वे पाकिस्तानी क्रिकेट बोर्ड के साथ मिलकर एक समझौता करते हैं और आईसीसी में अपनी लॉबी बनाते हैं जो की वर्ल्ड कप को इंग्लैंड से बाहर कराना चाहती थी। ऑस्ट्रेलिया भी इस मामले में भारत और पाकिस्तान का सपोर्ट करती है और आखिरकार इंग्लैंड को भी सभी के सामने झुकना पड़ जाता है।

हालाँकि दोस्तों क्रिकेट वर्ल्ड कप को होस्ट करने के लिए बीसीसीआई के सामने सबसे बड़ी प्रॉब्लम थी पैसों की, जिस क्रिकेट बोर्ड के पास वर्ल्ड कप जीत कर आये अपने प्लेयर्स का सम्मान करने तक के पैसे नहीं थे, वो वर्ल्ड कप को होस्ट करने का खर्चा कैसे उठा सकता था? लेकिन एनकेपी साल्वे ने हार नहीं मानी और कंगाल बीसीसीआई, भारत में ये टूर्नामेंट कराने में कामयाब हो गया।

लेकिन अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर ये कैसे पॉसिबल हो सकता है. तो यही सवाल लेकर ही एनकेपी साल्वे उस टाइम की प्राइम मिनिस्टर इंदिरा गांधी के पास जाते हैं जो कि धीरूभाई अंबानी के सामने इस वर्ल्ड कप का खर्चा उठाने की सिफारिश करती है। धीरूभाई भारत में वर्ल्ड कप होने के बाद से बहुत खुश हो जाते हैं और इसके लिए वो ब्लैंक चेक देने का वादा कर देते हैं। अब जब भारत के पास वर्ल्ड कप होस्ट करने के लिए पैसे आ चुके थे तो फिर हमारे लिए भी रास्ता साफ नजर आ रहा था। इंग्लैंड इस फैसले के खिलाफ़ आईसीसी में वोटिंग कराने की मांग करती है। लेकिन बीसीसीआई सारे क्रिकेट बोर्ड को अपने देश में वर्ल्ड कप का सपोर्ट करने के बदले में पांच गुना ज्यादा पैसे देने का वादा करती है।

आपको बता दूँ कि जब दूसरे देश होस्ट कंट्री में वर्ल्ड कप खेलने आते हैं तो फिर होस्ट कंट्री को ही वर्ल्ड कप में शामिल सभी क्रिकेट टीम को एक फिक्स्ड फी देनी होती है और इसके अलावा टीम्स के रहने, खाने और यात्रा करने का पूरा खर्चा भी होस्ट कंट्री को ही उठाना पड़ता है। पांच गुना ज्यादा पैसे के लालच में ज्यादातर देश भारत को सपोर्ट करते हैं और 1987 के वर्ल्ड कप के लिए।भारत और पाकिस्तान को मेजबान के तौर पर चुन लिया जाता है।

इसे भी पढ़ें:

दशहरा मेला – तब और अब

मिलिए एमएस धोनी के दोस्त परमजीत सिंह से, जिन्होंने उन्हें अपना पहला बैट स्पॉन्सरशिप दिलवाया, Meet MS Dhoni friend Paramjit Singh

इंडियन टीम के ICC ट्रॉफी का सूखा कब ख़त्म होगा?Indian Cricket Team & Drought of ICC Trophy

हालाँकि, यहाँ बीसीसीआई की किस्मत एक और करवट खाती है और एक 31 अक्टूबर 1984 को प्राइम मिनिस्टर इंदिरा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी जाती है। इंदिरा गांधी के बाद उनके बेटे राजीव गांधी देश के अगले प्राइम मिनिस्टर बनते हैं और वी पी सिंह को अपना फाइनेंस मिनिस्टर चुनते हैं। अब होता कुछ यूं है कि वीपी सिंह अपनी कुर्सी संभालते ही धीरूभाई अंबानी पर इनकम टैक्स की रेड डलवा देते हैं, जो कि धीरूभाई अंबानी को बिल्कुल भी पसंद नहीं आता और वो वर्ल्ड कप की मेजबानी से अपने हाथ पीछे खींच लेते हैं।

वीपी सिंह की ये गलती बीसीसीआइ पर बहुत भारी पड़ती है और हम एक फाइनैंशल संकट में फंस जाते हैं। बीसीसीआई को क्रिकेट वर्ल्ड कप होस्ट करने के लिए कम से कम ₹20 करोड़ की जरूरत थी। इनमें में से ₹4 करोड़ तो बीसीसीआइ को छह महीने के अंदर ही ICC को देने थे। साथ ही आपको बता दूँ की एनकेपी साल्वे आईसीसी में सभी देशों के सामने ये वादा भी कर चूके थे कि भारत का दूरदर्शन क्रिकेट वर्ल्ड कप की ब्रॉडकास्टिंग के लिए 30 करोड़ रुपये खर्च करके अपना पूरा सिस्टम अपग्रेड करेगा।

संकट की स्थिति में बीसीसीआई अपने सारे स्पांसर के सामने हाथ फैलाती है। लेकिन उन्हें कुल मिलाकर 38 लाख रुपये ही मिलते हैं। थक हारकर बीसीसीआई एक बार फिर भारत सरकार से मदद मांगती है और प्राइम मिनिस्टर राजीव गाँधी उनके लिए ₹4 करोड़ की व्यवस्था भी कर देते हैं। लेकिन दोस्तों इसके बाद के सारे खर्चे बीसीसीआई को ही उठाने थे। हालांकि, शायद भगवान की भी यही मर्जी थी कि क्रिकेट वर्ल्ड कप भारत होस्ट करें और यही कारण है की तमाम मुश्किलों के बीच बीसीसीआई के लिए एक आशा की किरण जागृत हुई।

राजीव गांधी और वीपी सिंह के बीच मतभेद सामने आए और वीपी सिंह को यूनियन कैबिनेट से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। अब वैसे तो देश की राजनीति के लिए ही उथल-पुथल वाली स्थिति थी पर बीसीसीआई को इस बीच धीरूभाई अंबानी को मनाने का सुनहरा मौका मिल गया था। धीरूभाई अंबानी भी मान जाते हैं और बीसीसीआई के सामने पैसों की सारी दिक्कतें ही समाप्त हो जाती है।

धीरूभाई अंबानी इस वर्ल्ड कप का नाम रिलायंस कप रखते हैं, जिससे कि उनकी कंपनी की पब्लिसिटी पूरी दुनिया में हो सके। अब दोस्तों भारतीय वर्ल्ड कप तो नहीं जीत पाया। लेकिन 1983 के बाद बीसीसीआइ ने वर्ल्ड क्रिकेट पर डॉमिनेट करने के लिए जो कदम बढ़ाए थे वो आज अंगद के पैर की तरह स्थापित हो चूके हैं। एक समय कंगाल बीसीसीआई ने जिन स्पॉन्सर के सामने पैसों के लिए हाथ फैलाने को मजबूर थीं। वे स्पॉन्सर आज बीसीसीआई के ऑफिस के सामने लाइन में खड़े नजर आते हैं और आज वर्ल्ड कप के दौरान 30 सेकंड का एड स्लॉट पाने के लिए भी मुँह मांगी कीमत देने को तैयार रहते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *