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मौमिता दास मर्डर: एक भयावह दिवाली की कहानी, Maumita Das Murder Case

Maumita Das Murder Case

Maumita Das Murder Case: 2014 की दिवाली, उत्तराखंड की छुट्टियां, और दो दोस्तों की एक यादगार यात्रा एक भयानक त्रासदी में बदल गई। मौमिता दास और अविजीत पॉल, दिल्ली में रहने वाले दो युवा कलाकार, उत्तराखंड की खूबसूरत वादियों में दिवाली मनाने गए। लेकिन वे अपने घर लौटकर कभी नहीं आए। क्या हुआ था उस यात्रा में? कौन था इसके पीछे? आइए जानते हैं।

Maumita Das Murder Case

Maumita Das Murder Case

मौमिता और अविजीत: कलाकारों की दोस्ती

27 वर्षीय मौमिता दास पश्चिम बंगाल के कल्याणी की रहने वाली थीं और गुरुग्राम के एक स्कूल में आर्ट टीचर थीं। 24 वर्षीय अविजीत पॉल कोलकाता के दमदम के रहने वाले थे और पेशे से आर्टिस्ट थे। दोनों साउथ दिल्ली के लाडो सराय इलाके में किराए के मकान में रहते थे और अच्छे दोस्त थे।

इस बार उन्होंने दिवाली को खास बनाने के लिए उत्तराखंड जाने का फैसला किया। 21 अक्टूबर 2014 को वे देहरादून पहुंचे और वहां अपनी दिवाली मनाई। उनके परिवार वाले भी उनकी यात्रा के बारे में जानते थे। लेकिन दिवाली के दो दिन बाद, 23 अक्टूबर से, उनके मोबाइल स्विच ऑफ हो गए। यही वह समय था जब यह कहानी एक दर्दनाक मोड़ लेती है।

गायब होने के बाद की तलाश

23 अक्टूबर से मौमिता और अविजीत परिवारों से संपर्क नहीं कर पाए। पहले परिवार वालों ने इसे सामान्य समझा, शायद मोबाइल चार्ज खत्म हो गया होगा। लेकिन जब दिन बीत गए और कोई खबर नहीं आई, तो चिंता बढ़ी।

29 अक्टूबर 2014 को मौमिता के पिता मृणाल कृष्ण दास ने दिल्ली के साकेत पुलिस स्टेशन में मिसिंग रिपोर्ट दर्ज करवाई। दूसरी ओर, अविजीत के पिता ने कोलकाता के दमदम पुलिस स्टेशन में भी शिकायत दर्ज की। इसके बाद पुलिस ने जांच शुरू की।

कॉल डिटेल और राजू दास की खोज

पुलिस ने कॉल डिटेल्स की जांच की और पाया कि आखिरी कॉल एक नंबर पर की गई थी, जो राजू दास नामक व्यक्ति का था। राजू दास का मोबाइल भी 23 अक्टूबर से स्विच ऑफ था। दिल्ली पुलिस ने तलाश शुरू की और राजू तक पहुंचने की कोशिश की।

सच का खुलासा: राजू का बयान

राजू दास को हिरासत में लिया गया। पूछताछ के दौरान उसने स्वीकार किया कि उसने मौमिता और अविजीत को 23 अक्टूबर की शाम अपनी गाड़ी में बैठाया था। उसने अपने गांव के तीन लोगों – कुंदन दास, गुड्डू, और बबलू दास – को भी गाड़ी में बिठाया।

गाड़ी के अंदर इन तीन लड़कों ने मौमिता से अभद्र व्यवहार शुरू किया। जब अविजीत ने इसका विरोध किया, तो उन्होंने उसे मारपीट कर नायलॉन की रस्सी से गला दबाकर मार डाला। इसके बाद उन्होंने मौमिता के साथ बर्बरता की। अंत में, इन चारों ने मौमिता की भी हत्या कर दी और दोनों की लाशों को ठिकाने लगाने की कोशिश की।

लाशों का पता और जांच की आगे की कार्रवाई

31 अक्टूबर को अभिजीत की लाश एक गहरी खाई में मिली। मौमिता की लाश 13 नवंबर 2014 को यमुना नदी के पास बरामद हुई। पहचान के लिए मौमिता के परिवार को बुलाया गया।

पुलिस ने चारों आरोपियों – राजू, कुंदन, गुड्डू और बबलू – को गिरफ्तार किया। उनके पास से मौमिता और अविजीत के पर्स, कपड़े और अन्य सामान बरामद किए गए।

अदालत का फैसला और विवाद

2018 में अदालत ने चारों को दोषी ठहराया। राजू दास को मौत की सजा दी गई, जबकि अन्य तीन को उम्रकैद हुई।

लेकिन यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती। 2024 में उत्तराखंड हाई कोर्ट ने सबूतों की कमी का हवाला देते हुए सभी आरोपियों को बरी कर दिया। इस फैसले ने हर किसी को चौंका दिया।

आपकी राय क्या है?

यह मामला एक बार फिर से हमारे सिस्टम में न्याय की प्रक्रिया और उसकी निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है। क्या ऐसा फैसला सही था? आप क्या सोचते हैं? कमेंट करके साझा करें।

इस त्रासदी ने दिवाली की खुशियों को गहरे दर्द में बदल दिया। मौमिता और अविजीत जैसे मासूम लोगों के लिए न्याय की उम्मीदें आज भी जिंदा हैं।

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