Telangana Murders: ये कहावत तो आपने सुनी ही होगी कि एक झूठ छिपाने के लिए 100 झूठ और बोलने पड़ते हैं। मगर आपने शायद ही सुना हो, जहाँ एक हत्या को छुपाने के लिए किसी ने 9-9 हत्याएं कर दी हो। सुनकर थोड़ा अजीब लग सकता है, मगर ये पूरी तरह सच है। तेलंगाना काम करने गए, बिहार के संजय कुमार को वहां पर काम करने वाली रफीका नाम की महिला से प्यार होता है.
मगर कुछ समय बाद ये प्यार एक ऐसे मोड़ पर पहुँच जाता है, जहाँ एक के बाद एक, नौ लाशें गिर जाती है। तो आखिर कैसे 9 लोगों की मौत हो जाती है? इन सब मौतों के पीछे किसका हाथ था? साथ ही रफ़ीका और संजय की पूरी प्रेम कहानी क्या है? चलिए जानते हैं, पूरी कहानी जानकर आप शॉक्ड रह जाएंगे।
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Telangana Murders:जहाँ एक हत्या को छुपाने के लिए 9-9 हत्याएं कर दी
बोरी बनाने वाली फैक्ट्री की घटना
मार्च 2020 तक कोरोना वायरस ने तेजी से अपने पांव पसारने शुरू कर दिए थे। इस कारण 24 मार्च 2019 को देशभर में लॉकडाउन तक की घोषणा कर दी गई थी। लॉकडाउन लगने की वजह से जो मजदूर जहां काम कर रहे थे तो वहीं फंसकर रह गए। कुछ लोग मजबूरी में पैदल ही अपने घर की तरफ लौटने लगे। तेलंगाना के वारंगल जिले के कोडाइकनाल गांव में साईं दत्ता ट्रेडर्स के नाम से एक जूट की बोरी बनाने वाली फैक्ट्री थी.
ऑटो वाले की वजह से हुआ खुलासा
इस फैक्टरी में काम करने वाले ज्यादातर लोग बिहार और बंगाल के थे. मगर लॉकडाउन की वजह से इस फैक्ट्री का भी काम ठप हो गया था। यहाँ काम करने वाले मजदूर इसी फैक्टरी के अंदर कैद होकर रह गए थे। फैक्टरी में काम जरूर बंद हो गया था. मगर पहले का स्टॉक अभी भी फैक्टरी के अंदर था. जिसे अभी भी जरूरत के हिसाब से कस्टमर तक सप्लाई किया जा रहा था। अब मई का महीना आ चुका था।
फैक्टरी के मालिक जे भास्कर को कुछ बोरी का ऑर्डर मिलता है। ऑर्डर मिलने पर वो अपने एक ऑटो ड्राइवर को कहते हैं कि फैक्टरी में जाओ और वहाँ से बोरी लेकर कस्टमर तक पहुंचा दो। भास्कर ने ड्राइवर से ये भी कहा कि फैक्टरी में काम करने वाले कुछ वर्कर्स अभी भी फैक्टरी के अंदर ही होंगे। वो तुम्हे बोरी दे देंगे।आदेश के मुताबिक ड्राइवर ऑटो लेकर फैक्टरी के बाहर आ जाता है और दरवाजा नॉक करने लगता है, मगर अंदर से कोई ना आवाज नहीं आती है।
थोड़ी देर बाद वो दूसरे दरवाजे से अंदर जाकर लोगों को आवाज देकर बुलवाने की कोशिश करता है, मगर वहाँ चारों और बस सन्नाटा ही सन्नाटा नजर आता है। फैक्टरी के अंदर किसी को ना पाकर ड्राइवर भागते हुए फैक्टरी के मालिक भास्कर तक जाता है और उन्हें जानकारी देता है कि फैक्टरी के अंदर तो कोई भी मजदूर नहीं है. जबकि वहां पर कम से कम 10 मजदूर होने चाहिए।
भास्कर इस बात की जानकारी अपने एक और पार्टनर संतोष को देता है और फिर दोनों कुछ और लोगों को लेकर फैक्टरी की तरफ आते हैं और मज़दूरों की तलाश में लग जाते है। कई घंटे बीत जाते हैं, मगर मज़दूरों का कुछ भी अता पता नहीं चलता है। फिर भी सभी तलाश में लगे रहते हैं।
कुएं में मिली थी लाश
अब लगभग दिन के 2 बज रहे थे, तभी कुछ लोग तलाशी के क्रम में, फैक्ट्री से कुछ दूरी पर मौजूद एक कुएं तक पहुँचते हैं। उनमें से एक व्यक्ति जब कुंए के अंदर यूँ ही झांकता है तो वह अचानक ज़ोर से चिल्ला उठता है. आवाज सुनकर बाकी लोग भी कुएं की तरफ आते है। जब लोग कुएं में देखते हैं तो सभी के होश उड़ जाते हैं. क्योंकि कुएं के अंदर उन्हें चार बोरी तैरती हुई दिखाई देती है। बोरी नजर आते ही तत्काल ही पुलिस को फ़ोन किया जाता है।
मौके पर पुलिस की टीम आती है और चारों बोरियों को वहां से निकालती है। बोरी में से शक के मुताबिक ही मज़दूरों की लाश ही निकलती है। फैक्टरी के मालिक पहचान करते हैं कि ये चारों इस फैक्टरी में काम करने वाले मज़दूर और मजदूर के परिवार वाले हैं। मरने वालों की पहचान मकसूद आलम, मकसूद आलम की पत्नी निशा, बेटी बुशरा खातून और 3 साल के बेटे बबलू के रूप में होती है।
कुछ लाश तो कुएं तल में जम गए थे
5 लोग अभी भी लापता थे। उनकी भी तलाश शुरू होती है. मगर बाकियों का कहीं भी अता पता नहीं चलता। अंत में पुलिस वाले फिर से कुएं की ग़हराई में उतर कर जांच करने का फैसला करते हैं। अगले दिन जब पुलिस की 1 टीम कुएं की गहराई तक जाती है तो सभी शॉक्ड रह जाते हैं, क्योंकि कुएं के तल से एक के बाद एक 5 और शव बरामद किए जाते हैं। मतलब इस एक कुएं से अब तक 9 शव निकाले जा चुके थे। इन पांचों की पहचान 20 साल के शाहबाज आलम, 18 साल के सुहेल, 30 साल के शाकिब, 22 साल के श्याम और श्रीराम के तौर पर होती है।
पुलिस मामले की जांच में तेजी लाती है
एक साथ 9 लोगों की मौत की खबर से पूरे शहर में हंगामा मच जाता है। पुलिस प्रशासन भी हरकत में आकर तेजी से जांच शुरू करती है और ये समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर इतनी बड़ी घटना को किसने अंजाम दिया? एक साथ 9 लोग आत्महत्या कर ले। ये बात गले से उतरने वाली नहीं थी। इसलिए हत्या के सटीक कारणों का पता लगाने के लिए शव का पोस्टमार्टम करवाने का फैसला किया जाता है।
शुरुआती जांच में कहीं से भी ये संकेत नहीं मिलते हैं कि मरने वाले लोगों के साथ मारपीट की गई या फिर इनके साथ कोई जबरदस्ती की गई। फिर भी आगे की जांच के लिए कुछ नमूने बड़ी लैब में भेज दिए जाते हैं। इधर पुलिस एक साथ 9 लोगों की मौत के कारणों का पता लगाने में जुट जाती है। काफी कोशिशों के बावजूद पुलिस को कहीं से कोई कामयाबी मिलती नजर नहीं आती है।
सभी की मौत 20 मई की रात में हुई थी
लंबी जांच पड़ताल के बाद पुलिस बस इतना पता लगा पाती है कि 20 मई 2020 की रात फैक्टरी में काम करने वाले मकसूद के छोटे बेटे शाहबाज का जन्मदिन मनाया गया था। इधर जब पोस्टमार्टम रिपोर्ट आती है तो उसमें कहा जाता है कि सभी की मौत 20 मई की रात 9:30 बजे से लेकर 21 मई की सुबह 5:00 बजे के बीच हुई।
अब पुलिस कड़ी जोड़ने लगती है कि संभवत सभी की मौत इस बर्थडे पार्टी में हुई होगी। अब पुलिस अपनी जांच और तेज करती है तथा शक के आधार पर पूछ्ताछ के लिए कुछ लोगों को हिरासत में भी लेती है। मगर कहीं से कामयाबी मिलती नजर नहीं आती है।
अभी पुलिस जांच में लगी हुई थी। तभी वारंगल पुलिस के पास एक अंजान शख्स दो मोबाइल फ़ोन के साथ आता है। वो व्यक्ति बताता है कि उसे ये दोनों मोबाइल फ़ोन पास के ही सोनालिका ट्रैक्टर के गोदाम के पास मिले हैं। पुलिस के लिए इस मामले में मोबाइल का मिलना एक बड़े ब्रेक थ्रू जैसा था। जांच में पता चलता है की ये मोबाइल किसी और का नहीं बल्कि मर चुकी मक़सूद की पत्नी निशा और दूसरा मोबाइल नौ लोगों में शामिल श्रीराम का है।
सीसीटीवी में मिलता है पहला सुराग
अब पुलिस वाले आसपास लगे सभी सीसीटीवी फुटेज को खंगालना शुरू करते हैं। शुरुआती जांच में ही पुलिस को दीखता है कि 20 मई की शाम लगभग 6:00 बजे ट्रैक्टर गोदाम की तरफ से एक व्यक्ति साइकिल से आ रहा है। फिर वही व्यक्ति 21 मई की सुबह 6:00 बजे के आसपास, फिर से इसी सीसीटीवी में घटना स्थल की तरफ जाते हुए दिखाई दे रहा है।
पुलिस वाले अब इस साइकिल सवार व्यक्ति की तलाश में लग जाते हैं और कई दिनों की मेहनत के बाद फाइनली 25 मई 2020 को सीसीटीवी में कैद उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर लेते हैं। गिरफ्तार शख्स की पहचान संजय कुमार यादव के तौर पर होती है, जो बिहार का रहने वाला था और पिछले 6 सालों से तेलंगाना में रहते हुए मजदूरी कर रहा था। गिरफ्तारी के बाद पुलिस संजय से पूछताछ शुरू करती है।
शुरुआती जांच में तो संजय किसी भी तरीके से 9 लोगों की मौत में अपना हाथ होने से इनकार कर रहा था। यहाँ तक कि वो खुद को मरने वाले लोगों का दोस्त बताता है। मगर जब पुलिस सख्ती पर आ जाती है तो संजय कुमार यादव स्वीकार कर लेता है की ये सभी हत्याएं उसने की है। संजय के कबूलनामे से हर कोई भौचक रह जाता है। हर किसी के जेहन में एक ही सवाल चलने लगता है कि आखिर इतनी बेरहमी से 9 लोगों की हत्या के पीछे की वजह क्या हो सकती है?
अब संजय से इस सवाल का जवाब जानने के लिए पुलिस पूछताछ करती है तो बेहद ही हैरान कर देने वाला खुलासा होता है। संजय द्वारा किए गए खुलासे के मुताबिक साल 2014 के आसपास संजय काम के सिलसिले में तेलंगाना आता है। यहीं उसकी मुलाकात मकसूद से होती है जो इसी बोरी की फैक्टरी में काम किया करता था। संजय मकसूद से काम दिलवाने की बात करता है।
संजय के कहने पर मकसूद उसे इस बोरी फैक्ट्री में काम दिला देता है. जिसमें वो और उसके परिवार के अन्य लोग काम किया करते थे। संजय के मुताबिक कुछ समय तक तो वो यहाँ बहुत अच्छे से काम करता है तथा मकसूद के परिवार का हिस्सा बन जाता है। मकसूद के परिवार में मकसूद के अलावा उसकी पत्नी निशा, निशा की एक रिश्तेदार रफ़ीका तथा रफ़ीका के तीन बच्चे थे।
संजय रफ़ीका से शादी के लिए मान जाता है
रफ़ीका का तलाक हो चुका था और वो बच्चो के साथ इसी फैक्टरी में रहते हुए काम करती थी तथा फैक्टरी में काम करने वाले मज़दूरों के लिए खाना बनाया करती थी। यही काम करते हुए संजय और रफ़ीका धीरे धीरे दूसरे के करीब आ जाते हैं। यहाँ तक कि दोनों एक दूसरे को दिल दे बैठते है। सच्चाई शायद कुछ अलग थी। मगर रफ़ीका ये ही समझती है की संजय उससे प्यार करता है.
दोनों एक दूसरे के इतने करीब आ जाते है कि एक साथ ही रहने लगते हैं। कुछ समय तक तो रफ़ीका और संजय खुशी-खुशी एक दूसरे के साथ रहते हैं। मगर इन दोनों के रिश्तों में कड़वाहट तब आनी शुरू होने लगती है. जब रफ़ीका को शक होने लगता है की अब संजय उसकी 16 साल की बेटी पर भी गन्दी नजर रखने लगा है।
इस बारे में जब रफ़ीका संजय से बात करती है तो संजय कहता है की ऐसा कुछ नहीं। तुम्हारी बेटी मेरे लिए भी बेटी ही है। संजय के ऐसा कहने पर रफ़ीका थोड़ी इत्मीनान जरूर होती है. मगर बीतते समय के साथ संजय अपनी हरकतों से बाज नहीं आता है। इस कारण अब रफ़ीका संजय पर शादी करने के लिए दबाव बनाने लगती हैं। पहले तो संजय, अलग-अलग कारणों से शादी को टालता रहता है। मगर जब रफ़ीका जिद्द करने लगती है तो संजय शादी के लिए मान जाता है।
रफ़ीका को ट्रैन से धक्का देकर मारा जाता है
शादी से पहले रफ़ीका संजय से कहते हैं, शादी करने से पहले चलो मैं तुम्हें अपने माता पिता से मिलवाती हूँ। रफ़ीका के माता पिता बंगाल में रहते थे। सब कुछ तय होने के बाद 6 मार्च को संजय और रफ़ीका पश्चिम बंगाल जाने वाले गरीब रथ ट्रेन में सवार हो जाते हैं।
संजय के खुलासे के मुताबिक असल में संजय रफ़ीका को पसंद नहीं करता था बल्कि वो उसकी बेटी निशा को पसंद करने लगा था। मगर निशा तक जाने के लिए उसने रफ़ीका का बस इस्तेमाल किया था। अब चूँकि रफ़ीका शादी के लिए जिद करने लगी थी. इसलिए संजय रफ़ीका को रास्ते से हटाने का प्लान बना लेता है। तो साजिश के तहत पश्चिम बंगाल जाने के लिए तैयार हो जाता है. मगर उसके मन में कुछ और ही चल रहा होता है। जैसे ही संजय और रफ़ीका ट्रेन में बैठते हैं और ट्रेन कुछ दूर चलती है। संजय रफ़ीका को छाछ पीने के लिए देता है।
इस बात से अनजान की छाछ में बेहोशी की दवा मिली हुई है। रफ़ीका बड़े आराम से वो छाछ पी भी लेती है। मगर छाछ पीते ही वो बेहोश हो जाती है। रफ़ीका के बेहोश होते ही रात के अंधेरे में संजय पहले तो दुपट्टे से रफ़ीका का गला घोंट देता है और फिर जब ट्रेन आंध्र प्रदेश के वेस्ट गोदावरी जिले के तेदेपालगुलेम पहुंचती है तो यहाँ पर रफ़ीका को ट्रेन से धक्का दे देता है।
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नहीं हो पाती है रफ़ीका के लाश की पहचान
अगले दिन रेलवे पुलिस द्वारा रफ़ीका की डेड बॉडी को कब्जे में लेकर पोस्टमॉर्टम करवा दी जाती है। रफ़ीका की पहचान करवाने की भी कोशिश की जाती है. मगर रफ़ीका की कहीं पहचान नहीं हो पाती है। इधर आगे संचय रफ़ीका को ट्रेन से धक्का देने के बाद ट्रेन से उतर जाता है और वापस वारंगल वाली ट्रेन पकड़ लेता है। संजय वापस जब अकेले फैक्टरी आता है तो रफ़ीका के तीनों बच्चे उससे अपनी माँ के बारे में सवाल करने लगते हैं। इस पर संजय कहता है कि तुम्हारी माँ, तुम्हारे नाना-नानी के घर यानी पश्चिम बंगाल में ही रुक गई है।
इस पर मकसूद की पत्नी निशा रफ़ीका को फ़ोन करने की कोशिश करती है, मगर रफ़ीका का फ़ोन नहीं लगता। इस पर निशा को संजय पर शक होने लगता है और वो अपने पति से इस बारे में बात करते हैं। अब मकसूद और निशा मिलकर संजय से रफ़ीका के बारे में पूछने लगते हैं।
रफ़ीका के बारे में कुछ भी बताने की बजाय संजय चुपके से वहाँ से गायब हो जाता है. मगर लॉकडाउन की वजह से वह कई दिनों तक इधर उधर ही भटकता रहता है और फिर घूम फिर कर वापस 15 मई को वारंगल आ जाता है। यहाँ आने पर मकसूद और निशा एक बार फिर से संजय से रफ़ीका के बारे में पूछते हैं और कहते है की अगर तुमने कुछ भी नहीं बताया तो हम पुलिस में जाकर कम्प्लेन कर देंगे।
क्योंकि संजय पहले ही रफ़ीका को ट्रेन से फेंक चुका था. इसलिए उसे डर सताने लगता है की अगर मकसूद और निशा पुलिस तक गए तो वो पकड़ा जाएगा। इसलिए अब संजय, मकसूद और निशा को ही अपने रास्ते से हटाने का प्लान बनाने लगता है। अभी ये इन लोगों को खत्म करने के रास्ते ढूंढ रहा था कि संजय को पता चलता है कि 20 मई को मक़सूद फैक्टरी के अंदर ही अपने बेटे बबलू का जन्मदिन मनाने वाला है।
इसी के बाद संजय मोबाइल पर नींद की गोलियों के बारे में सर्च करता है और फिर बाजार से बड़ी संख्या में नींद की गोली खरीद कर ले आता है। और फिर जब सभी लोग जन्मदिन का जश्न मनाने में बीज़ी रहते है तभी संजय चुपके से किचन में जाकर दाल में एक साथ 60 नींद की गोलियां मिला देता है। लोगों को कुछ भी पता नहीं चलता है और सभी बड़े आराम से खाना खा लेते हैं।
मगर खाना खाते हैं सभी लोग बेहोश हो जाते हैं. जब सभी लोग लगभग मौत के मुँह में पहुँच जाते हैं. तब संजय एक एक करके सभी को पहले बोरी में भरना शुरू करता है और फिर एक एक करके उन सभी को खींचकर पास में ही मौजूद पुराने कुएं में लाकर डाल देता है।
कुएं में फेंके जाने से पहले सभी 9 लोग जिन्दा थे
पुलिस पूछताछ में संजय ये भी बताता है कि खाना खाने के बाद उनमें से कोई भी मरा नहीं था. बल्कि सभी की सांसें चल रही थी। फिर भी उसने सभी को बोरी में डालकर मरने के लिए कुएं में फेंक दिया। मरने वालों में मकसूद के परिवार के छह सदस्यों के अलावा बिहार का ही रहनेवाला श्री राम, श्याम तथा त्रिपुरा का शकील भी था जो मकसूद के साथ ही फैक्टरी में काम करता था।
पुलिस जब और आगे जांच पड़ताल करती है तो कई हैरान कर देने वाले खुलासे होते है। जैसे रफ़ीका को शक होने लगा था कि संजय उसकी बेटी के करीब जाने लगा है, रफ़ीका का ये शक पुलिस जांच में सही साबित होता है। दरअसल पुलिस जब संजय के मोबाइल की जांच पड़ताल करती है तो खुलासा होता है कि वास्तव में संजय ने रफ़ीका की 16 साल की बेटी की इज्जत लूटी थी और बजाप्ते मोबाइल में भी रिकॉर्ड किया था।
इन सभी खुलासे के बाद संजय पर पॉस्को ऐक्ट के तहत भी मामला दर्ज किया जाता है। इसके अलावा उस पर कुल 10 लोगों की हत्या का भी मुकदमा दर्ज होता है. लंबे समय तक मामले की सुनवाई चलती रहती है और फाइनली 2023 में एक निचली अदालत द्वारा संजय को धारा 302, 380 और 354 सी के तहत दोषी करार दिया जाता है और उसे मौत की सजा सुनाई जाती है.
निचली अदालत ने भले ही संजय को फांसी की सजा दे दी हो। मगर संजय के पास ऊपरी अदालत में अपील करने का रास्ता खुला हुआ है। फिलहाल संजय जेल में बंद है.
वैसे तो अपराधी को सजा देने का अधिकार अदालत को होता है, पर संजय को भी वही सजा मिलेगी जो हमारी अदालत द्वारा तय किया जाएगा। मगर आप के अनुसार क्या सजा मिलनी चाहिए कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।