Veerappan Story: वीरप्पन, नाम सुनते ही जंगलों, हाथियों की तस्करी और खून-खराबे की कहानी याद आ जाती है। एक ऐसा अपराधी, जिसने तीन राज्य की सरकारों को नाकों चने चबवा दिए। वीरप्पन का आतंक ऐसा था कि उसे पकड़ने के लिए सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च किए गए। 100 से ज्यादा पुलिसकर्मियों ने अपनी जान गंवाई। तो आखिर ये वीरप्पन था कौन? कैसे बना वो मोस्ट वांटेड? और आखिरकार उसकी कहानी का अंत कैसे हुआ?
Veerappan Story
वीरप्पन का बचपन और अपराध की ओर पहला कदम
वीरप्पन का असली नाम कूसे मुनुस्वामी था। उनका जन्म 18 जनवरी 1952 को मद्रास राज्य (अब कर्नाटक) के चामराज नगर जिले के गोपीनाथन गांव में हुआ। कम उम्र में ही वह अपराध की दुनिया में उतर गया। अपने चाचा के साथ हाथी दांत की तस्करी शुरू की। लेकिन बाद में चाचा से अलग होकर अपने दम पर इस व्यापार को बढ़ाया।
कहा जाता है कि वीरप्पन ने 2000 से ज्यादा हाथियों को मारा। उसने केवल हाथी दांत की ही नहीं, बल्कि चंदन की तस्करी में भी कदम रखा। देखते ही देखते वो भारत का सबसे बड़ा चंदन तस्कर बन गया।
पुलिस के साथ संघर्ष और पहली गिरफ्तारी
1972 में, मात्र 17 साल की उम्र में वीरप्पन को पहली बार गिरफ्तार किया गया। लेकिन वो जल्द ही जेल से भाग निकला। भागने के बाद उसने अपनी पहली हत्या उसी पुलिसकर्मी की की, जिसने उसे पकड़ा था।
इसके बाद वीरप्पन का आतंक बढ़ता गया। पुलिस मुखबिर होने के कत्ल, वन अधिकारियों की हत्याएं, और पुलिस टीमों पर हमले उसकी पहचान बन गए।
चिदंबरम से पी. श्रीनिवास तक: वीरप्पन के खिलाफ योजनाएं
1987 में वन अधिकारी चिदंबरम ने वीरप्पन को पकड़ने की योजना बनाई। लेकिन वीरप्पन ने पहले ही उन्हें किडनैप कर मार डाला। यही वो समय था जब वीरप्पन ने पहली बार नेशनल मीडिया का ध्यान खींचा।
1991 में सीनियर आईएफएस अधिकारी पी. श्रीनिवास ने वीरप्पन को पकड़ने की जिम्मेदारी ली। वीरप्पन पकड़ा भी गया, लेकिन अपनी चालाकी से जेल से भाग निकला। बाद में उसने श्रीनिवास को धोखे से बुलाया और उनकी हत्या कर दी।
किडनैपिंग्स का धंधा
1991 से वीरप्पन ने किडनैपिंग के जरिये फिरौती वसूलना शुरू किया। सबसे बड़ा मामला था 2000 में कन्नड़ फिल्म अभिनेता राजकुमार का अपहरण। राजकुमार की रिहाई के बदले वीरप्पन को 20 करोड़ रुपये की फिरौती दी गई।
इसके अलावा, वीरप्पन ने 2002 में कर्नाटक के पूर्व मंत्री एच. नागप्पा को किडनैप किया। लेकिन फिरौती न मिलने पर नागप्पा की हत्या कर दी।
स्पेशल टास्क फोर्स और अंत का गेमप्लान
तमाम नाकाम कोशिशों के बाद, 2001 में तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने आईपीएस अधिकारी विजय कुमार को विशेष टास्क फोर्स की जिम्मेदारी सौंपी। विजय कुमार ने वीरप्पन के खिलाफ एक अलग रणनीति अपनाई। वीरप्पन का भरोसा जीतने के लिए पुलिस ने उसके गैंग में अपने लोग शामिल किए।
वीरप्पन को आंखों की समस्या थी। इसी का फायदा उठाकर उसे इलाज के बहाने जंगल से बाहर लाया गया। वीरप्पन ने भेष बदला, अपनी मूंछें तक कटवा लीं। लेकिन एंबुलेंस के जरिये एक फर्जी सेटअप में उसे पुलिस ने फंसा लिया।
फायरिंग और एनकाउंटर
18 अक्टूबर 2004 को, पुलिस ने वीरप्पन और उसके साथियों को घेर लिया। 20 मिनट की जबरदस्त फायरिंग के बाद, वीरप्पन और उसके तीन साथी मारे गए।
वीरप्पन के पीछे छूट गई विरासत
वीरप्पन पर 180 से ज्यादा हत्याओं और करीब 50 करोड़ की संपत्ति बनाने के आरोप थे। इसके अलावा, उसने जंगलों से हाथियों और चंदन का लगभग सफाया कर दिया।
आज भी, उसका नाम आते ही लोगों की रूह कांप जाती है। वीरप्पन का अंत हो गया, लेकिन उसकी कहानी भारतीय अपराध की दुनिया में हमेशा जिंदा रहेगी।
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