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अली बेदनी बुग्याल ट्रेक | लाटू देवता मंदिर और वाण गांव का सफर, Ali Bedni Bugyal Trek

Ali Bedni Bugyal Trek: क्या आपने कभी हिमालय की खूबसूरती और ऊँचाई पर फैले बुग्यालों का मनमोहक नज़ारा देखा है? अगर नहीं, तो अली बेदनी बुग्याल ट्रेक आपके लिए परफेक्ट है। उत्तराखंड में स्थित यह ट्रेक आपको प्रकृति की गोद में ले जाता है, जहां हर कदम एक नया अनुभव लेकर आता है। यह बुग्याल पहले से ही अपनी सुंदरता और लोककथाओं के लिए प्रसिद्ध है। आइए, ट्रेक के इस अद्भुत सफर को विस्तार से जानें।

Ali Bedni Bugyal Trek

Ali Bedni Bugyal Trek

अली बेदनी बुग्याल ट्रेक की शुरुआत

हमने अपनी यात्रा चमोली जिले के लोहाजुंग गांव से शुरू की। सुबह 8 बजे हम 6 किलोमीटर की ड्राइव के बाद क्यूलिंग गांव पहुंचे। यहीं से हमारे ट्रेक की असली शुरुआत हुई। पहले कुछ किलोमीटर का रास्ता ढलान वाला था, जिसने हमें धीरे-धीरे इस सफर के लिए तैयार किया। रास्ते में हमने छोटे पुल को पार किया जिसे पहले एक लोहे के पुल से बनाया गया था, लेकिन बाढ़ में टूट जाने के बाद इसे फिर से बनाया गया।

क्यूलिंग से करीब 6 किलोमीटर की ट्रेक के बाद हमने दिन का पहला ठिकाना, दीदना गांव, करीब 1 बजे दोपहर में पहुंचा। यहां के छोटे घर, आलू की खेती और सेब के पेड़ आपकी थकान को पल भर में भुला देते हैं। गांव में हमारा होमस्टे तैयार था, जहां हमें घर का बना खाना परोसा गया। शाम को गांव का भ्रमण करते हुए, हमने रंगीन फूलों और पहाड़ के शिखर पर बसे अली बुग्याल की हल्की झलक देखी।

दीदना से अली बुग्याल तक की यात्रा

अगले दिन सुबह 6 बजे उठकर हमने 12 किलोमीटर लम्बे सफर की शुरुआत की। पहले कुछ किलोमीटर घने जंगलों से होकर गुजरे, जहां सूखे पत्तों से रास्ता ढक गया था। दीदना से ढाई किलोमीटर की चढ़ाई के बाद हम टोलीपानी पहुंचे, जो एक छोटे से विश्राम स्थल के रूप में जाना जाता है। यहां भेड़-बकरियों के झुंड ने हमारी यात्रा को और मजेदार बना दिया।

कुछ किलोमीटर की ट्रेक के बाद, हम एक छोटे से ढाबे पहुंचे, जहां से पेड़ों की संख्या कम होती गई और खुले मैदानों की शुरुआत हुई। जैसे-जैसे हम ऊपर गए, अली बुग्याल की पहली झलक हमें हवा में बहते जादू जैसी लगी। यह विशाल और फैला हुआ मैदान धूप में दमक रहा था। यहां रंग-बिरंगे फूल जमीनी कैनवास पर चित्रित एक सुंदर चित्र की तरह दिखते हैं।

अली बुग्याल के शिखर से बेदनी बुग्याल तक

अली बुग्याल शिखर पर पहुंचने के बाद, हमने वहां कुछ देर आराम किया। इस क्षेत्र में रखे पत्थरों का ढेर इसकी पहचान है। इसके बाद करीब डेढ़ किलोमीटर का सफर तय करके हम अपने कैंपसाइट पहुंचे। शाम के समय कैंप एरिया के आसपास घूमते हुए छोटी-छोटी फूलों की घाटियां किसी परीकथा जैसी लगती थीं। रात का खाना खाने के बाद, हमने सुबह के रोमांच के लिए आराम किया।

अगले दिन सुबह हमने अली बुग्याल से बेदनी बुग्याल के लिए 2.5-3 किलोमीटर का सफर तय किया। इन दोनों बुग्यालों के बीच एक छोटी सी शिव-पार्वती मंदिर है, जहां हमने प्रार्थना की। बेदनी बुग्याल में पहुंचते ही बेदनी कुंड हमारी नजरों के सामने था। यहां मौजूद पुराने मंदिर और उससे जुड़ी कहानियां, जैसे देवी पार्वती द्वारा महिषासुर का वध, इस जगह को और भी पवित्र बनाते हैं।

वाण गांव का लाटू देवता मंदिर

बेदनी बुग्याल से वापसी की यात्रा में हमने वाण गांव का रुख किया। करीब 12 किलोमीटर की इस यात्रा में हमने ‘नीलगंगा’ नदी पार की। वाण गांव पहुंचने पर, हमने वहां के प्रसिद्ध लाटू देवता मंदिर का दर्शन किया। यह मंदिर साल में सिर्फ एक बार वैशाख पूर्णिमा के दिन खुलता है। मंदिर में सिर्फ पुजारी ही आंखों और मुंह पर पट्टी बांधकर प्रवेश कर सकते हैं। ऐसा माना जाता है कि देवता यहां नागराज के रूप में निवास करते हैं और उनकी महक मानव को नुकसान पहुंचा सकती है। मंदिर से जुड़ी अनोखी कहानी और इसकी पारंपरिक पूजा विधि इसे खास बनाती है।

यात्रा का सार

अली बेदनी बुग्याल ट्रेक ना सिर्फ एक प्राकृतिक सौंदर्य का अनुभव है, बल्कि यह हिमालय की लोककथाएं, पवित्र स्थल, और संस्कृति से भरा एक सफर है। जहां एक ओर विशाल बुग्याल खुले आसमान की गोद में आनंद देने वाले हैं, वहीं दूसरी ओर यहां की कहानियां और मंदिर आपको आध्यात्मिक शांति का अनुभव कराते हैं।

यह ट्रेक हर उस व्यक्ति के लिए है, जिसे प्रकृति से प्यार है और जो अपनी यात्रा में अनछुए अनुभवों की खोज करता है। आप भी इस खूबसूरत यात्रा का हिस्सा बनें और हिमालय की गोद में कुछ अनमोल पल बिताएं।

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