Best Places to Visit in Rishikesh: Rishikesh को चाहे जितनी बार और चाहे जितनी देर तक निहारिए कभी प्यास नहीं बुझती। Rishikesh में चाहे जितनी बार Ganga स्नान कीजिए एक और डुबकी लगाने की चाह शेष रह जाती है. Rishikesh के घाट पर चाहे आजन्म बैठे रहे उसका ठाट लुभाता ही रहता है. Rishikesh की आरती बार बार बुलाती रहती है. यहाँ के आश्रम, यहाँ के योग के सुयोग और यहाँ के निसर्ग पर सौंदर्य के नए नए सर्ग लिखे ही रहते है. यहाँ के मंदिरों से अव्यक्त के व्यक्त होने का स्वर सुनाई देता रहता है. यहाँ की हवाओं में Himalaya की छुवन महसूस की जा सकती है.
Rishikesh अपने हस्ताक्षर करता है तो झूला पुल बना देता है. साधना करता है तो Shivalik पर्वत की चोटियों पर चढ़ जाता है. नृत्य करता है तो माँ Ganga की लहरें बन जाता है. अपने आपको पुकारता है तो वेद की ऋचाएं गाने लगता है. भ्रमण के लिए निकलता है तो Yamunotri, Gangotri, Kedarnath और Badrinath के रूप में चारों धाम कराता है. Rishikesh श्री Vishnu की ऊर्जा का केंद्र बिंदु तो है ही हरी और हर दोनों का जीवन तो वरदान है, गीत है, संगीत है, साधना है, आराधना है, भक्ति है, मुक्ति है, राग है, वैराग्य है और स्वयं की खोज भी है.
जिस Rishikesh को युगों पहले कहा जाता था वो आज भी ऐसी परम यात्रा है जो ले जाती है अंतर्मन की ओर. तो आइए Rishikesh को जानते और जीते है. सबसे पहले Rishikesh के हस्ताक्षर Jhula पुल पर चलते है. Rishikesh में तीन पुल है जिससे Ganga मैया के एक घाट से दूसरे घाट तक जाया जा सकता है. जिन्हें पार करके Himalaya और Garhwal का दरवाजा खटखटाया जा सकता है. जिन पर खड़े होकर माया और मुक्ति के बीज तनिक देर झूल सकते है.
सबसे पुराना है Lakshman Jhula, कहा जाता है कि भगवान श्री राम के अनुज श्री Lakshman ने माँ Ganga को पार करने के लिए जूट की रस्सी से ये पुल बनाया था. उन्होंने इस पुल के सहारे स्वयं माँ Ganga को पार किया और त्रेता से कलयुग तक असंख्य लोगों को पार कराया।
1889 में महान संत स्वामी Vishudhanand जी की प्रेरणा से Kolkata के सेठ श्री Surajmal ने इसे लोहे के मजबूत तारों से बनवाया। 35 साल बाद 1924 में माँ Ganga में बाढ़ आयी और पुल बहा ले गयी. फिर इसके बाद लोहे का मजबूत और आकर्षक पुल बनाया गया जो आज भी Rishikesh का बड़ा आकर्षण है. इस पुल से गुजरने और इसे देखने वालों की संख्या बहुत है. संध्या के समय तो जैसे मेला लगता है, इसलिए इसका बोझ कम करने के लिए ठीक बगल में एक और झूला पुल बनाया जा रहा है. आने वाले दिनों में जब लोग Rishikesh पहुंचेंगे तो Laxman झूला के एक पुल से इस पार आएँगे और दूसरे से उस पार जाएँगे।
Lakshman Jhula के अलावा Rishikesh में दो और पुल है Ram Jhula और Janaki Jhula. दोनों के बीच की दूरी एक kilometre के आसपास है. इन दोनों पुलों के बीच परमार्थ निकेतन सहित कई बड़े आश्रम है और साथ ही माँ Ganga का विस्तृत घाट भी है. इन झूला पुलों से होकर गुजरना और पुल के मध्य में खड़े होकर माँ Ganga को निहारना अपने आप में एक दिव्य अनुभव है. तीनों पुलों से गंगा माई का स्वरूप अलग-अलग दिखाई देता है. सुबह से शाम तक Shivalik श्रेणी की ऊँची पहाड़ियाँ माँ Ganga के आईने में अपना रूप संवारती रहती है तो शाम से सुबह तक बिजली की रोशनी में तीनों पुल जगमगाते रहते है. दुधिया रोशनी में Ganga के घाट और भी सम्मोहित करते है. यहाँ तनिक देर मई Ganga की गोद में बैठकर इसके जादुई एहसास को जिया जा सकता है. Rishikesh हिंदू धर्म के शैव और वैष्णव दोनों संप्रदायों का महत्वपूर्ण तीर्थ है।
यहाँ भगवान शिव के चार ऐसे मंदिर हैं जिनकी प्राचीनता पौराणिक है। इनमें नीलकंठ मंदिर सबसे प्रमुख है। नीलकंठ महादेव शिवालिक पर्वत के ऊँचे शिखर पर विराजे हैं। पैदल जाना हो तो भूतनाथ मंदिर के पीछे से रास्ता है जो 15 किलोमीटर की कठिन चढ़ाई के बाद नीलकंठ धाम तक ले जाता है। वाहन से जाएंगे तो दूरी यही कोई 27-28 kilometre के आसपास हो जाएगी। Neelkanth मंदिर वो स्थान है जहाँ भगवान Bholenath ने समुद्र मंथन से निकले कालकूट विष का पान किया था. फिर विषपान की ज्वाला शांत करने के लिए पंकजा और मधुमती नदी के संगम के समीप पंचमणि नामक वृक्ष के नीचे समाधि लगाई थी.
साठ हज़ार वर्षों की समाधि और इतने लंबे तप के बाद जब Kailash जाने लगे तो यहाँ कंठ के आकार का Shiva लिंग स्थापित किया। इसलिए यहाँ का Shiva लिंग दूसरे शिवलिंगों से बहुत अलग है. अगर ध्यान से ना देखे तो मंदिर में प्रवेश करके भी शिवलिंग को पहचान नहीं पाएँगे। मान्यता है कि वर्तमान में हम जिस शिवलिंग का दर्शन नीलकंठ मंदिर में करते हैं वो भगवान शिव द्वारा स्थापित है. Neelkanth मंदिर में भगवान Bholenath के दर्शन होंगे तो आते जाते जो प्राकृतिक सौंदर्य मिलेगा उसमें साक्षात माँ Jagdamba दिखाई देंगी।
दूसरा महत्वपूर्ण मंदिर है भगवान Virbhadra का. कहा जाता है कि कनखल, Haridwar में जब माता Sati ने पिता Daksha के यज्ञ कुंड में स्वयं को समर्पित कर दिया। तब Shiva के क्रोध का पारावार नहीं रहा उस समय वे Rishikesh के इसी स्थान पर थे उन्होंने अपनी जटाओं से एक केश तोड़ा और भूमि पर पटक दिया। इससे भगवान Virbhadra प्रकट हुए. भगवान के क्रोध की प्रतिमूर्ति Virbhadra कंखल पहुँचे और राजा Daksha का सिर काट दिया। Daksha Prajapati को मारने के बाद फिर इसी स्थान पर आए और भगवान शिव में समाहित हो गए.
यहाँ स्थित Shiva लिंग के मध्य में एक रेखा है. इस रेखा के एक हिस्से का भाग भगवान Bholenath का है और दूसरे हिस्से का Virbhadra का. ये दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है जहाँ एक ही शिवलिंग में Shiva और Virbhadra साथ साथ है.
यहाँ विराजे हुए शिवलिंग तो स्वयंभू है लेकिन बार बार बनते और गिरते मंदिर का इतिहास जानना हो तो मुख्य मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्थित खंडहरों को झाँकना होगा। 1973 से 1975 के बीच भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने यहाँ उत्खनन कराया तो पहली से लेकर आठवीं शताब्दी तक के अवशेष प्राप्त हुए। इसके पहले का इतिहास जाने किस मिट्टी में दबा हुआ है। Virbhadra मंदिर के पीछे Pipleshwar Mahadev भी है। इन्हें Pipleshwar Mahadev इसलिए कहा जाता है क्योंकि पीपल वृक्ष का तना ही मंदिर बन गया है Shivaji का. कभी यहाँ Shiva मंदिर रहा होगा और उसके ऊपर पीपल का पौधा उगा रहा होगा, पौधा विशाल पेड़ बन गया ईंट गारे से बने मंदिर का अस्तित्व समाप्त हो गया और पीपल स्वयं मंदिर बन गया इस पीपल के साथ वट और नीम के वृक्ष भी है.
Skanda Purana में Rishikesh में जिस एक और मंदिर का उल्लेख मिलता है वो है Someshwar महादेव मंदिर। नीलकंठ में अगर भोले नाथ ने विष पान किया तो यहाँ पर उन्होंने देवताओं को सोमरस का पान कराया और ग्यारह रुद्रों को प्रकट किया। ये ग्यारह रुद्र आज भी वटवृक्ष के रूप में यहाँ मौजूद है. पुरे विश्व में कोई भी ऐसा दूसरा मंदिर नहीं है जहाँ इस तरह ग्यारह वट वृक्ष मिलते है. कहा जाता है कि इन वृक्षों में भोलेनाथ स्वयं निवास करते है. इस स्थान के नामकरण को लेकर एक कहानी और है.
Somdev नामक ऋषि हुए उन्होंने पाँव के अँगूठे पर खड़े होकर भगवान शिव की कठोर तपस्या की. तत्पश्चात Shiva प्रकट हुए. Somdev की तपस्थली के कारण यहाँ प्रतिष्ठित Shiva Someshwar Mahadev कहलाए और पूरा क्षेत्र Someshwar नगर कहलाया। इस Someshwar नगर का नया नाम अब आदर्श नगर है. Someshwar मंदिर Rishikesh के प्राचीन शिव मंदिरों में एक है.
Virbhadra और Someshwar महादेव की तरह ही Chandreshwar महादेव की भी प्रतिष्ठा है. इसे भी सिद्ध मंदिरों में गिना जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार श्राप से मुक्त होने के लिए चंद्रमा ने यहाँ 10000 वर्ष तक शिव की साधना की. चंद्रमा के तप से प्रसन्न होकर भोलेनाथ ने दर्शन दिया और इसी स्थान पर उन्हें अपने मस्तक पर धारण किया। माँ Ganga के तट पास चंद्रभागा में ये चंद्रेश्वर मंदिर है. इन चारों शिव मंदिरों में श्रावण मास तथा शिवरात्रि पर श्रद्धालुओं का विशाल समूह उमड़ता है.
अब दर्शन करते है भगवान विष्णु के अवतारों का. प्रसिद्ध Triveni Ghat के समीप ऋषि कुंड है. माना जाता है कि कभी यहाँ सप्तर्षियों में से एक ऋषि Jamdagni ने तपस्या की थी और हवन कुंड में माँ Yamuna तथा Saraswati को प्रकट किया था. इस कुंड में आज भी Yamuna और Saraswati का जल है. इन दोनों का जल धरती के अंदर से ही जाकर माँ Ganga में मिलता है और वे Triveni बनती है. Triveni घाट में प्रत्यक्ष रूप से ना तो Yamuna है और ना Saraswati. इस ऋषि कुंड का जल थोड़ा मैला दिखता है. लेकिन इसकी पुण्य बहुत है. पितरों की मुक्ति के लिए यहाँ प्रार्थना की जाती है. मछली और कछुए तैरते हुए दिख जाएँगे। इसके तट पर बने Raghunath मंदिर की छवि भी इस कुंड में नज़र आएगी।
कुंड की तरह Raghunath अर्थात भगवान श्री Rama का मंदिर भी अत्यंत प्राचीन है. कथा है कि Ravana का वध करने से राम को ब्रह्म हत्या का दोष लगा. उससे मुक्ति पाने के लिए Rama ने इसी स्थान पर पहला तप किया। बाद में Devprayag चले गए. भगवान Ram की तपस्थली के कारण ये स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है.
त्रिवेणी घाट से कुछ ही दूरी पर झंडा चौक में भरत मंदिर है। नाम से तो यही लगता है कि ये मंदिर श्री राम के अनुज परम तपस्वी श्री भरत का होगा। लेकिन यहाँ आने पर ऋषिकेश के नामकरण का रहस्य खुलता है। पुराणों में कथा है कि यहाँ पर रैभ्य ऋषि और सोम शर्मा ने कठोर तप किया। प्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और उनके आग्रह पर अपनी माया दिखाई। श्री हरी ने उन्हें वरदान दिया कि आपने अपनी हृषिक अर्थात इंद्रियों को वश में करके मेरी आराधना की है इसलिए अब ये स्थान ऋषिकेश कहलाएगा। कलयुग में भरत नाम से मैं यहीं विराजूँगा।
इस तरह ऋषिकेश भगवान श्री भरत जी महाराज राम के भाई भरत से भिन्न है। जगत के पालनहार शंख, चक्र, गदा, पद्म, धारण करने वाले भगवान विष्णु ही भरत जी महाराज हैं. यहाँ गर्भगृह में एक ही शालिग्राम से निर्मित पाँच feet से भी ऊँची Narayan की काली चतुर्भुजी प्रतिमा है. Tirupati और Badrinarayan की तरह Rishikesh का ये विग्रह भी एक ही शालिग्राम शिला से निर्मित है. गर्भगृह के गुंबद के आंतरिक भाग में अधोमुख मामलक पर शिलाखंड से निर्मित श्री यंत्र स्थापित है. अनुमान है कि विक्रमी संवत 846 और ईसवी सन 789 के आसपास आदि गुरु Shankaracharya ने बसंत पंचमी के दिन Bharata जी की मूर्ति माया कुंड से निकालकर मंदिर में पुनः स्थापित की थी. इसी समय इस श्री यंत्र की प्राण प्रतिष्ठा भी कराई गयी.
शैव, साप्त, वैष्णव, गाणपत्य और सौर, इन पाँच वैदिक उपासना पद्धतियों में समन्वय स्थापित करने का अनूठा उदाहरण है. ये श्री यंत्र इसकी प्राण प्रतिष्ठा चुने हुए साधकों के आध्यात्मिक उत्थान के लिए की गयी थी. फिलहाल गर्भगृह में जाकर श्री यंत्र के दर्शन नहीं हो सकते। बाहर लगे screen पर ही इसे देखा जा सकता है. अक्षय तृतीया अर्थात वैशाख शुक्ल पक्ष की तीसरी तिथि को सतयुग का प्रारंभ माना जाता है. माना जाता है कि इसी तिथि को मंदिर की स्थापना भी की गयी. इसी शुभ दिन भगवान के चरणों को भक्तों के दर्शनार्थ खोला जाता है. लोक मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन जो भक्त मंदिर की 108 परिक्रमा करने के बाद भगवान के चरणों का दर्शन करते है उनकी समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती है. भगवान बद्रीनारायण के दर्शन का भी पुण्य लाभ मिलता है. बसंत पंचमी के दिन नारायण माया कुंड में स्नान करने के लिए बाहर आते हैं और फिर नगर भ्रमण के लिए निकलते हैं. इन दोनों ही तिथियों में यहाँ विशेष भीड़ होती है. वामन पुराण में उल्लेख है कि भद्रिका आश्रम जाते हुए भक्त प्रह्लाद ने भी इस स्थान पर ऋषिकेश नारायण की पूजा अर्चना की थी.
Rishikesh में Ram Jhula के पास Shatrughan और Lakshman Jhula के समीप Lakshman मंदिर भी दर्शनीय है. इसके पहले कि त्रिवेणी घाट में गंगा आरती का आनंद लें. योग नगरी के कुछ आश्रम घूम लेते हैं। वैसे तो ऋषिकेश आश्रमों की ही भूमि है. थोड़ी-थोड़ी दूर पर होटल नुमा चमकदार आश्रम मिल जाएंगे। लेकिन सबसे ज्यादा भीड़ परमार्थ निकेतन के आस-पास ही होती है। इसलिए यहां के आश्रमों की पूछ परख भी कुछ ज्यादा ही है। आश्रम का नाम सुनकर अगर आप ये सोचें कि यहाँ सब कुछ निशुल्क मिलेगा तो आपको निराशा हाथ लगेगी सब सशुल्क है और सुविधा युक्त है.
गीता भवन, वानप्रस्थ परमार्थ निकेतन जैसे आश्रम बहुत बड़े और भव्य है, शिवानंद और कैलाश आश्रम भी इसी श्रेणी में है. ऋषिकेश में माँ गंगा के तट के समीप राजा जी नेशनल पार्क में बीटल्स आश्रम है. ये भी महर्षि महेश योगी का ठिकाना हुआ करता था। उनके यहाँ से जाने के बाद 1968 में अमेरिकी रॉकबैंड के चार सदस्य जॉन लेनन, पोल मेकाटनी, जॉर्ज हेरिसन और रिंगू स्टार यहाँ आए और इसी आश्रम में रुके। यहाँ रहते हुए उन्होंने चालीस गाने लिखे और ध्यान में रमे। तब से इसी बीटल्स आश्रम कहा जाता है। स्थानीय लोग इसे चौरासी कुटिया के नाम से भी जानते हैं। तो जिस भी आश्रम में जाने का मन हो जाएं। जहाँ भी रुकने का मन हो रुकें. हाँ, अनुभव कुछ अलग ही मिलेगा.
ऋषिकेश हम जैसे यायावरों को ही अपनी और नहीं खींचता मेघों को भी मोहित करता है। वे सागर से नंगे पाँव दौड़े चले आते हैं और इन शिखरों पर आकर बैठ जाते हैं। कभी पक्षी बनकर उड़ान भरते हैं, तो कभी फुदकते रहते हैं, एक पहाड़ी से दूसरी पहाड़ी पर कभी रुई का फाहा बनकर तपते ऋषिकेश के माथे पर रखा जाते हैं, तो कभी बर्फ की डली बनकर घुलते रहते हैं, थोड़ा-थोड़ा।
मौसम विभाग के शब्दों में कहें तो ऋषिकेश में लगभग 60 इंच बारिश होती है। लेकिन ऋषिकेश की फुसफुसाहट सुने तो बादल का रूप धरकर सागर हरी और हर का अभिषेक करने के लिए हिमालय की देहरी पर धरना देता है। अपनी छम-छम और झमझम के साथ यहाँ की बारिश संसार के आसक्तों को भी नचाती है और विरक्तों को भी। अगर नाचने में अशक्त हैं, तो किसी घाट में छिपने की थोड़ी सी जगह मांग लीजिए और गंगा पर इतराती बूंदों को निहारते रहिए। बादलों के पर्दे में सामने वाले घाट को ओझल होते हुए पाइए तो उधर पहाड़ पर खड़े ग्यारह मंजिला भूतनाथ मंदिर को छू-मंतर होते हुए देखिए।
जुलाई से सितंबर तक ऋषिकेश ऐसे ही मेघों से जादूगरी कराता है. फिर भटक गए ना जाना था त्रिवेणी घाट माँ गंगा की आरती करने और इधर मेघों की पालकी पर सवार हो गए. चलिए चलिए संध्या हो रही है और गंगा माई में डुबकी लगाकर लोग आसन लगाने लगे हैं। माई से अपना मनोरथ पूरा करने की अर्जी लिखने लगे हैं। इस पल को सहेजने के लिए कैमरे भव्य बंधन से स्वतंत्र हो चुके हैं। प्रार्थनाएं सुर संगीत बनकर माँ सुरसरी के चरणों में समर्पित हो रही है. दीपों ने अर्चना शुरू कर दी है। भाव भक्ति का अद्भुत क्षण है जो मन मंदिर के कपाट खोलकर भीतर प्रवेश कर रहा है, कभी ना भूलने के लिए स्मृतियों के भंडार गृह में जा रहा है। इस घाट पर प्रतिदिन ठीक इसी तरह गंगा आरती और आस्था की नई त्रिवेणी निर्मित होती है और लोग उसमें डुबकी लगाने के लिए भागे चले आते हैं, जाने कहाँ-कहाँ जाने कितनी दूर से.