George Fernandes Biography: इस आर्टिकल में तेज़ तर्रार समाजवादी नेता George Fernandes के संघर्षमय जीवन की कहानी को जानेंगे शुरू से. इनके राजनैतिक जीवन से आप और हम काफी कुछ सीख सकते है.
बात 2 मई 1974 की है, लखनऊ रेलवे स्टेशन के रिटायरिंग रूम में गहरी नींद में सो रहे जॉर्ज फर्नांडिस को पुलिस वालों ने जगाया। वो रेलवे कर्मचारियों के सामने मई दिवस का भाषण देने खासतौर से दिल्ली से वहां पहुंचे थे और रात 12 बजे के बाद सोने गए थे. उनको पहली मंजिल के अपने कमरे से नीचे प्लेटफार्म पे लाया गया. प्लेटफार्म पुलिस वालों से खचाखच भरा हुआ था और आम लोगों को पहले से ही वहां से हटा दिया गया था। लखनऊ हवाई अड्डे पर उन्हें दिल्ली ले जाने के लिए एक सरकारी विमान खड़ा था। लगभग उसी समय दिल्ली में रेल मंत्री ललित नारायण मिश्र के ड्राइवर ने जॉर्ज के घर की घंटी बजाकर जॉर्ज की वाइफ लैला फर्नांडिस को जगा दिया। ड्राइवर ने रेल मंत्री का एक पत्र उन्हें दिया जिसमें बातचीत असफल होने के लिए जॉर्ज फर्नांडिस को जिम्मेदार ठहराया गया था और ये भी बताया गया था कि इसलिए सरकार उन्हें गिरफ्तार कर रही है.
बीस दिनों तक चली अभूतपूर्व रेल हड़ताल को इंदिरा गांधी सरकार ने निर्मम तरीके से कुचला था और जॉर्ज समेत कई श्रमिक नेता हिरासत में ले लिए गए थे। हमारी टीम ने हाल में प्रकाशित जॉर्ज फर्नांडिस की जीवनी “द लाइफ एंड टाइम ऑफ जॉर्ज फर्नांडिस” के लेखक राहुल रामागुंडम से पूछा कि रेल हड़ताल कुचल दिए जाने के बावजूद जॉर्ज को उस हड़ताल के लिए आज तक क्यों याद किया जाता है?
राहुल रामागुंडम बताते हैं कि एक तो वो हड़ताल बहुत ही मोमेंट्स चीज थी. पूरे देश में रेलवे ट्रैफिक बिल्कुल रुक गया था. वो भी बीस दिन के लिए और वो बीस दिन के लिए पूरा का पूरा country ठप था. इस हड़ताल के लिए सरकार की तरफ से पूरी तैयारी थी वहीँ हड़ताल के आयोजक ने भी पूरी तैयारी कर रखी थी. सरकार ने coal mines से coal हटा करके power plants में जमा करने लगे क्योंकि उनको लगा कि power plants में coal नहीं रहेगा तो फिर पूरा देश ठप हो जायेगा। वहीं रेलवे की तरफ से अपनी coal को बचाने के लिए रेलवे रेलवे की जो ट्रेन्स हैं उनको cancel करने लगे. सौ-सौ ट्रैन daily कैंसल हो रहा था. उस हालात में और एक तो ये मामला है कि जॉर्ज ने ये जो strike थी वो workers के rights को दिलाने के लिए था.
इसका political meaning भी आया. लेकिन मेन डिमांड था कि पब्लिक सेक्टर जो कि जो wages हैं वही wages रेलवे के workers को भी दी जाए और इसके लिए कहीं ना कहीं सरकार तैयार नहीं थी. क्योंकि उसको लगा कि बीस लाख workers होंगे अगर उसको बढ़ा कर वागेस दी जाए तो हो सकता है प्रॉब्लम होगा तो जिस इंटेंसिटी से जिस लीडरशिप क्वालिटी से जॉर्ज ने रेलवे स्ट्राइक को मूव किया और लीड किया उस तरह की लीडरशिप एआईआरएफ ऑल इंडिया रेलवे फेडरेशन उसकी लीडरशिप उस तरह की कभी भी नहीं हुई थी.
एमनेस्टी इंटरनेशनल की रिपोर्ट के अनुसार हड़ताल तोड़ने के लिए 30000 से अधिक मजदूरों को जेल में डाल दिया गया. George Fernandes के साथी रहे विक्रम राव बताते हैं कि “श्रमजीवी के इतिहास में किसी हड़ताल को इतनी क्रूरता से नहीं कुचला गया है.”
एक और पत्रकार विजय सांगवी याद करते हैं। उन्हीं दिनों के अंदर आपने देखा होगा कि इंदिरा गांधी ने पोखरण के अंदर जो परीक्षण किया उसे दुनिया चौंक गई लेकिन हिंदुस्तान नहीं चौका था।
इंदिरा गांधी ने जब 25 जून 1975 को आंतरिक emergency लगाई तो जॉर्ज फर्नांडिस उन गिने चुने नेताओं में थे जिन्हें गिरफ्तार नहीं कर पाई थी. उन दिनों जॉर्ज अपनी पत्नी लैला के साथ उड़ीसा में गोपालपुर में छुट्टियां मना रहे थे। जैसे ही जॉर्ज को इसके बारे में पता चला उन्होंने वहां से निकल जाने का फैसला किया।
जॉर्ज फर्नांडिस के बायोग्राफी के लेखक राहुल रामागुंडम बताते हैं कि उनको तैयार किया गया और उनकी दाढ़ी बढ़ी हुई थी. एक मछुआरे के ड्रेस में वो निकले वहां से. जॉर्ज कई जानने वालों ने उस समय उनको कार देने के लिए मना कर दिए थे. तो इस तरह के हालात में, जॉर्ज अपने कुछ सोशलिस्ट साथियों के साथ मिलकर के वो लोग वहां से निकले और फिर भुवनेश्वर पहुंचे। वहां पर मीरा दास करके एक महिला थी जो politics में socialist पार्टी की वहां पर local chief भी थी.
वो एमएलए कॉलोनी में रहती थी. वहाँ पे तो उन्होंने शरण दिया और उसके बाद शाम को वो लोग फिर से नौकर का वेश बनाकर के और बस पकड़ कर के कलकत्ता गए और पूरे 400-500 किलोमीटर की जो दूरी है उसमें मुझे ये पता चला कि वो एक बार भी बस से नीचे नहीं उतरे। मतलब उनके पास वो capacity थी अपने आप को रोकने की, अपनी natural needs को रोकने की भी और वो निकल के फिर 12 बजे रात को कलकत्ता पहुंचे और एक गुप्त परिवार है वहां पे और उनके घर में गए और उन्होंने फिर उनको कार दिया और उस कार से जॉर्ज पटना तक आये.
वहां से वो उत्तरप्रदेश, दिल्ली और राजस्थान होते हुए गुजरात पहुंचे।
राहुल रामागुंडम बताते हैं कि हमेशा move करते रहे, almost every day, every night जो है वो अलग-अलग जगहों में सोते थे. अलग जगह में रहते थे और इस बीच में उन्होंने देश के सारे प्रदेशों में उन प्रदेशों के capital में नहीं बल्कि उनके छोटे छोटे town और गाँव में रहे. Karnataka में तो ये सुनने को मिला कि वो छोटे-छोटे मंदिरों में जाकर के रहे और श्रम गृह मंदिर है वहां पर, बहुत बड़ा मठ है उसमे रहे है वो. जहाँ तक वेश की बात है तो जभी भी वो travel करते थे तो वो सरदार जी का या Sikh का वेश धारण करते थे. पगड़ी उनकी एक बनाई जाती थी. पगड़ी उनके साथ रहती थी और उन्होंने कभी भी अकेला travel नहीं किया। कोई न कोई उनके साथ रहा। इसी बीच में कुछ लोग उनके साथ मर्द भी थे, औरतें भी थी, उनके परिवार के लोग भी थे और उनके political colleagues भी थे जो उनके साथ देते थे उनको।
सरकार ने उन्हें most wanted man of india घोषित कर दिया। लंबी दाढ़ी और साधु के वेश में जॉर्ज उन आनंद मार्गियों जैसे लगते थे, जिन पर सरकार ने प्रतिबंध लगाया हुआ था और जिन पर ललित नारायण मिश्रा की हत्या करने का आरोप था। जब 1977 में इंदिरा गांधी ने चुनाव कराने की घोषणा की तो जॉर्ज फर्नांडिस ने मुजफ्फरपुर से चुनाव लड़ने का ऐलान किया। इस बीच जॉर्ज को छोड़कर सभी विपक्षी नेताओं को रिहा कर दिया गया. चुनाव लड़ने के लिए पैरोल पर छोड़ने के जॉर्ज के अनुरोध को सरकार ने ठुकरा दिया।
जॉर्ज के इलेक्शन कैंपेनिंग में उनकी मां गई कुछ दिनों के लिए और वो अंग्रेजी में बोल रही थी. सुषमा स्वराज उनकी अंग्रेजी की भाषण को हिंदी में लिख के बोल रही थी. लोगों को उनके भाई जो उस समय जेल में थे उनको मार अच्छी पड़ी थी तो उनको भी वहां पे एक दो दिन के लिए ले जाया गया था. उन्होंने इलेक्शन के डेट से पांच दिन पहले ही इस बात के लिए खाना-पीना छोड़ दिया कि मैं कुछ नहीं कर सकता हूं, campaigning नहीं कर सकता हूं. पर फिर भी मैं अपने constituency के साथ हूं और इस बात को बताने के लिए मैंने खाना पीना छोड़ दिया है. बहुत सारे young लोगों ने जूता polish करके पैसा कमाया और उनको कंट्रीब्यूट किया। तो एक तरह से ये people का अपना सिलेक्शन था. जिसमें जॉर्ज के या जॉर्ज के साथियों का इलेक्शन में कोई कैंपेनिंग में कोई ज्यादा रोल नहीं रहा और जिस दिन चुनाव परिणाम आया जॉर्ज और उनके साथी दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद थे। बड़ौदा डायनामाइट केस में उनके साथी रहे विक्रम राव याद करते हुए बताते हैं।
हम लोग सब 17 नंबर वार्ड तिहाड़ जेल में थे. उस वक़्त सवाल ये था कि counting जो हो रही है 20 मार्च 1977 को उसकी खबर कैसे मिली हमको? जेल के डॉक्टर आते थे. मैंने कहा डॉक्टर साहब आप अकेले हैं जो आ सकते हैं रात को 10-11 बजे तो रात को बता दीजिए मुजफ्फरपुर में कौन जीत रहा है? तो बड़ी मेहरबानी की डॉक्टर साहब ने 11 बजे आए उनके पास 1 लाख वोट से lead कर रहे हैं और सुबह 4 बजे मैं थोड़ा छोटा सा transistor smuggle करके ले गया था जेल में। तो सुबह 4 बजे मैंने रेडियो सुनता रहा तो वॉइस ऑफ अमेरिका, वाशिंगटन से उसके न्यूज़ कास्टर ने कहा कि polling agent of इंदिरा गांधी has demanded a recount. अब मैं तो उछल पड़ा recount तो हारने वाला मांग करता है न कि जीतने वाला। तुरंत मैंने जॉर्ज को जगाया और सारे लोग जगाया इंदिरा गांधी हार गई. पूरे जेल में दिवाली का माहौल आ गया सबको जगाया।
जनता पार्टी की सरकार में जॉर्ज पहले संचार मंत्री और फिर उद्योग मंत्री बने. इस पद पर रहते हुए ही उन्होंने भारत से अमेरिकी कंपनी कोका कोला को हटाने की घोषणा की। जब जनता पार्टी में आपसी लड़ाई शुरू हुई तो उन्होंने संसद में मोरारजी देसाई सरकार का जबरदस्त बचाव किया। लेकिन 72 घंटे में वही जॉर्ज चरण सिंह के खेमे में पहुंच गए। कहा जाता है कि जॉर्ज को इस फैसले के लिए उनके दोस्त मधु लिमये ने मनाया था. इस राजनीतिक समरसॉल्ट से जॉर्ज की बहुत किरकिरी हुई और उस पर तुर्रा ये हुआ कि चरण सिंह ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल तक में नहीं लिया।
एक बार BBC से बात करते हुए George Fernandes ने कहा था.
“12 जुलाई को मैंने सरकार का बचाव किया था. वो सरकार जितनी मुराद जी भाई की थी उतनी हमारी भी थी. लेकिन लोग इस बात को भूल जाते है कि 42 लोगों के मंत्री परिषद में सिर्फ एक ही मंत्री निकला जो तीन दिन लगातार हमारे सरकार पर हल्ला होते हुए उसका बचाव के लिए खड़ा हो गया. 3 दिनों में और कोई 41 मंत्री में से कोई खड़ा नहीं हो गया था. जब मैंने मेरी सरकार का बचाव किया तब मेरी सरकार संसद में बहुमत में थी. मेरे सरकार का बहुमत बारह, तेरह, चौदह को टूट गया. ये मत टूट गया तो parliamentary बोर्ड में हमने मोरारजी भाई से कहा मोरारजी भाई बहुमत खत्म हुआ है. एक सौ वोट से हम लोग हार रहे हैं कल तो आपको इस्तीफा देना चाहिए। नया नेता चुनना चाहिए parliamentary बोर्ड में. सभी लोगों ने इसका समर्थन किया शिवाय मोरारजी भाई के. मोरारजी भाई का जवाब रहा अगर मैं अकेला भी रहूँ तो मैं इस्तीफा नहीं दूंगा। ऐसे स्थिति में जब दल हमारा अल्पमत में गया और प्रधानमंत्री ने इस्तीफा देने से इंकार किया नेतृत्व से और अपने पद से तब मैंने उचित समझा कि मैं उससे हट जाऊँ।”
जॉर्ज फर्नांडिस ने 1971 के नेहरू मंत्रिमंडल में शिक्षा मंत्री रहे हुमायूँ कबीर की बेटी लैला कबीर से शादी की थी. दिलचस्प बात ये है कि शादी में उनकी धुर विरोधी रही इंदिरा गांधी भी शामिल हुई थी. लेकिन 1984 आते-आते जॉर्ज और लैला के संबंधों में दरार आनी शुरू हो गई थी.
George Fernandes की महिला मित्रों में “गिरिजा हुयी गोल” भी थी.
राहुल रामागुंडम बताते हैं कि “जॉर्ज की सारी फीमेल फ्रेंड्स में से सबसे ज्यादा अगर कोई प्राइस पे किया उनके relationship के लिए तो वो गिरिजा ने किया। गिरजा हुल गॉल 24 साल की लड़की थी जब emergency लागू हुआ और उससे पहले वो मौलाना आजाद मेडिकल कॉलेज में पढ़ रही थी. वो पढ़ने के समय से ही जॉर्ज को जानती थी. जॉर्ज के उनके परिवार के साथ फ्रेंडशिप थी। 1971 में जॉर्ज चुनाव हारने के बाद उन्हीं के घर में रहने लगे थे और उस समय वो छोटी बच्ची थी पर उनको वो जानते थे कि डॉक्टर बनने वाली हैं तो पहले से ही without डॉक्टर degree के गिरिजा को डॉक्टर डॉक्टर बुलाया करते थे. तो वो बच्ची को भी बहुत ज्यादा मान-सम्मान बढ़ रहा था और जब emergency लागू हुआ तो जॉर्ज ने उनसे ऐसे पूछा कि तुम मेरे साथ चलोगी और गिरिजा की कुछ पारिवारिक समस्याएं थी उनके पिताजी की दो शादियां थी तो इसके कारण वो थोड़ी फ्री भी थी.
इस तरह से तो उन्होंने बात को मान लिया और वो पहली बार और बाद में बहुत बार फिर George के साथ एक तरह से उनकी दूत बनकर के दिल्ली में भी और दिल्ली से बाहर भी उनके साथ आने-जाने लगी और जब बड़ौदा डायनामाइट केस जब burst हुआ तो सबसे पहले गिरिजा के पिताजी को गिरफ्तार हुए, फिर भाई को भी गिरफ्तार किया गया और उन दोनों को मार भी पड़ी बहुत अच्छी तरह से और इनके ऊपर भी ये force किया गया कि अगर वो George के whereabouts के बारे में बताएंगी तब इनके परिवार को टार्चर नहीं किया जाएगा तो वो सारी की सारी चीजें जो थी इनके ऊपर नेगेटिव way में आया था. गिरिजा और जॉर्ज के engagement के कारण।”
दक्षिण के अभिनेत्री स्नेह लता रेड्डी भी जॉर्ज के काफी नजदीक थी. वर्ष 1977 में जॉर्ज के जीवन में जया जेटली आई थी। उस समय वो जनता सरकार में उद्योग मंत्री थे और जया के पति अशोक जेटली जॉर्ज के स्पेशल असिस्टेंट हुआ करते थे।
जया जेटली से जब एक बार किसी पत्रकार पूछा था कि जॉर्ज क्या आपके दोस्त थे या इससे भी कुछ बढ़कर? जया ने इसका सीधा जवाब नहीं दिया था लेकिन वो ये जरूर बोली थी.
“कई किस्म के दोस्त होते हैं और उसका एक लेवल ऑफ दोस्ती होती है. इसमें एक इंटेलेक्चुअल रिस्पेक्ट जो एक महिला को बहुत जरूरत होती है इसका और कोई अगर महिला काबिल भी है, सोच भी सकती है, राजनीतिक सोच भी उनके अंदर है. ये सब मुझे कहीं से नहीं मिला।”
जॉर्ज फर्नांडिस एक विद्रोही राजनेता थे। जिनका परंपराओं को मानने में यकीन नहीं था। Harry Potter की किताबों से लेकर महात्मा गांधी और विंस्टन चर्चिल की जीवनी तक उन्हें किताबें पढ़ने का शौक था। उनकी एक जबरदस्त लाइब्रेरी होती थी। जिसकी कोई भी किताब ऐसी नहीं थी जिसे उन्होंने ना पढ़ा हो। जया जेटली बताती है।
“जिंदगी भर उन्होंने कभी ना कंघी खरीदा ना इस्तेमाल किया। और कपड़ा वो एक सेल्फ डिसिप्लिन के लिए खुद धोते थे। इस्त्री तो जरूर करवाते थे. लेकिन उनको ये कलहफ डाल के ये सफ़ेद-सफ़ेद कड़क नेता है ना वो ऐसा अच्छा नहीं लगता था। लेकिन लालू यादव ने एक बार भाषण में कहा कि जॉर्ज साहब बिल्कुल बोगस है वो कपड़ा धोबी से धुलवा के फिर धोबी से जब वापिस आता था वो उसको निचोड़-निचोड़ के मिट्टी में थोड़ा सा मिला के तब पहनता था। तो उस पर कोई टीवी वाले आए और बोले कि लालू जी ने ऐसे कहा तो जॉर्ज साहब का हम एक रूबरू प्रोग्राम करना चाहते हैं जिसमें वो अगर तैयार हो जाए तो उनका कपड़ा धोते हुए हमें फिल्म कर सकते हैं तो जॉर्ज साहब ने मंजूर कर दिया। उनको मजा आया तो कपड़ा धोते हुए लुंगी पहन के बाथरूम में जमीन पे बैठ के कपड़ा धोने वाला एक सीन शायद राजीव शुक्ला के टीवी एजेंसी के लिए उन्होंने एक बार किया था.
1979 में एक बार हम लोग ट्रेड यूनियन मीटिंग के लिए बॉम्बे गए. अशोक लंच होम करके एक जगह है. वहां बोले कि बहुत अच्छा मछली मिलता है. चलो हम आप सबको खिलाएंगे। तो हम लोग गए और बहुत अच्छा लगा कि ड्राइवर भी और हम लोग भी सब एक ही मेज पे बैठे रहे. मगर बहुत कम लोग ऐसे करते हैं।”
लेकिन समाजवादी सोच रखने वाले जॉर्ज फर्नांडिस अपने राजनीतिक जीवन के अंतिम चरण में बीजेपी के साथ क्यों चले गए?
राहुल रामागुंडम बताते हैं कि “जॉर्ज एंटी कांग्रेस या नॉन कांग्रेस विचारधारा से निकल नहीं सके. उन्होंने जबकि कांग्रेस already weaken हो गई थी nineties में और फिर भी आप एंटी कांग्रेस की बात कर रहे हो और दूसरी तरफ बीजेपी strong हो रही है तब आपको भी अपनी politics को बदलना चाहिए था. पर उन्होंने उस बात को बदल नहीं सके. दूसरा ninety nineties में आते-आते बीजेपी अभी भी इतनी strong नहीं थी कि अपने आप में गवर्नमेंट बना सके और लेफ्ट का कहीं नामोनिशान नहीं था तो उनकी जो political options थे वो भी बहुत limited थी. कुछ change हो गया था उनमें जो जॉर्ज हर व्यक्ति में ये कहते थे कि मैं हर दम लोगों के साथ हूँ और सरकार और establishment के साथ नहीं हूँ वो व्यक्ति कहीं ना कहीं establishment की तरफ जाने लगा था. उसको भी अब three कृष्णा मेनन मार्ग पसंद आने लगा था. उसको भी घर चाहिए था. अब उसकी भी बुढ़ापे के समय आ गया था. वो भी चाहता था कि अच्छी जगह पे बैठे तो वो मुझे लगता है कि वो भी एक कारण रहा होगा BJP में आने का.”