Kedartaal Trek: केदारताल यात्रा मेरे जीवन की सबसे चुनौतीपूर्ण और यादगार हिमालयन ट्रेक यात्रा साबित हुई। 15,500 फीट की ऊंचाई पर स्थित यह पवित्र झील ट्रेकिंग के शौकीनों के लिए एक सपने जैसा है। हालांकि, यहाँ तक पहुंचने का सफर आसान नहीं है – यह ट्रेक ऊँची चढ़ाई, भूस्खलन जोन, ऑक्सीजन की कमी और बदलते मौसम के कारण मुश्किल और रोमांचक दोनों है।
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Kedartaal Trek
गंगोत्री से शुरुआत
केदारताल ट्रेक की शुरुआत गंगोत्री से होती है। मैंने गंगोत्री पहुँचने से पहले तीन दिन भारी बारिश के चलते होटल में बिताए। चौथे दिन मौसम साफ हुआ और हमारी यात्रा शुरू हुई।
सुबह 9 बजे हमने गंगोत्री मंदिर के पास एक पुल पार करके ट्रेक की शुरुआत की। कुछ ही दूरी पर स्थित सूर्यकुंड के दर्शन हुए, जहाँ से केदारताल ट्रेक का असली सफ़र शुरू होता है। सूर्यकुंड को पवित्र माना जाता है, कहा जाता है कि सूरज की पहली किरण इस कुंड पर गिरती है।
हमारी टीम में मेरे साथ सौरव पंवार और उनकी टीम के चार सदस्य थे, जिनमें दो पोर्टर भी शामिल थे। साथ ही, ट्रेक के लिए आवश्यक परमिट, बीमा, और फिटनेस सर्टिफिकेट भी सौरव की ‘Soul Seeker’ कंपनी ने व्यवस्थित किए।
पहला दिन: भोजखरक तक का सफर
पहले दिन का लक्ष्य था भोजखरक पहुँचना। शुरुआती ट्रेक घने भोजपत्र के जंगलों, रंग-बिरंगे फूलों और जड़ी-बूटियों के बीच से होकर गुज़रता है। रास्ते में बेतरतीब छोटे जंगली फल भी दिखे, जो बेहद आकर्षक थे।
ट्रेक लगभग 6 किलोमीटर लंबा और खड़ी चढ़ाई भरा था। शुरुआती चुनौती ‘स्पाइडर वॉल’ नामक एक स्थान थी, जिसे पार करना रोमांचकारी था। इस सेक्शन में दीवार पर बहते पानी की वजह से हमें काफी झुककर पार करना पड़ा।आगे भू-स्खलन ज़ोन और संकरे रास्तों ने यात्रा को चुनौतीपूर्ण बना दिया।
भोजखरक पहुँचते-पहुँचते दिन ढल चुका था। टूटे हुए एक टिन शेड के पास हमने कुछ और दूरी पर अपनी टेंट लगाई। रात चांद के उजाले में चारों ओर की घाटी बस सपनों जैसी लग रही थी।
दूसरा दिन: केदारखरक की ओर
दूसरे दिन सुबह का नाश्ता करने के बाद हमने केदारखरक की ओर ट्रेक शुरू किया। रास्ते में लैंडस्लाइड वाले कठिन हिस्सों को हेलमेट पहनकर, सावधानीपूर्वक हमने पार किया। हिमालय के सुंदर दृश्य हर कदम पर हमारा मन मोह लेते थे।
लगभग पाँच किलोमीटर ट्रेकिंग के बाद हम केदारखरक पहुँचे। यहाँ ऊँची-ऊँची घास और फूलों के मैदान वो दृश्य प्रस्तुत कर रहे थे जो मैंने पहले कभी नहीं देखे थे। यह जगह अपने आप में अद्भुत और शांत थी।
केदारताल: प्रकृति की गोद में दिव्यता
केदारखरक पर आराम के बाद, हमने सोचा कि मौसम साफ है तो उसी दिन केदारताल चलें। यहाँ से केदारताल तक का 4 किलोमीटर का सफर, इसका सबसे कठिन हिस्सा साबित हुआ। पत्थर, बर्फ, और कमीशन ऑक्सीजन वाले इस हिस्से ने हमारी परीक्षा ली।
जब हम केदारताल पहुँचे, तो यह सब थकान गायब हो गई। यह पवित्र झील चारों ओर से ग्लेशियरों और हिमालयी चोटियों जैसे थलयसागर और भृगुपंथ से घिरी हुई थी। झील का पानी, झरने और बर्फ से निकलता है और आगे बहकर भागीरथी नदी में मिलता है। इसे भगवान शिव की झील कहा जाता है, जिनका यहां एक छोटा मंदिर भी है।
तीसरा दिन: वापसी की ओर
अगली सुबह जब सूरज निकला तो हिमालयी चोटियों का दृश्य देखने लायक था। हमने नाश्ते और सामान पैकिंग के बाद वापसी शुरू की। रास्ते में केदारखरक और भोजखरक के मैदानों से होकर गुज़रते हुए दोपहर में गंगोत्री वापस पहुँचे।
गंगोत्री पहुँचने के बाद, गंगा आरती में शामिल होकर मेरी इस अद्भुत यात्रा का समापन हुआ।
निष्कर्ष
केदारताल ट्रेक मेरे लिए केवल एक यात्रा नहीं थी, यह खुद की सीमाओं को महसूस करने और हिमालय के अद्भुत दृश्यों को जीने का मौका भी था। यह ट्रेक कठिन ज़रूर है, लेकिन जो लोग इसे पूरा करते हैं, वे प्रकृति की एक अनमोल सौगात के गवाह बनते हैं।
अगर आप भी रोमांच और प्रकृति से प्यार करते हैं, तो यह ट्रेक आपके लिए एक यादगार अनुभव साबित होगा। और हां, इस यात्रा को सुरक्षित और यादगार बनाने के लिए सही मार्गदर्शक का चुनाव करें, जैसे सौरव पंवार और उनकी टीम।
हिमालय बुला रहा है – क्या आप तैयार हैं?
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