Shikar Dhawan Downfall and Success in Cricket: क्रिकेट में अक्सर कई बड़े नामों के सामने कुछ नाम दब के रह जाते हैं. जिन्हें वो इज्जत नहीं मिलती जिसके वो हकदार हैं. जिन्हें वो appreciation नहीं मिलता। जिसके वो हकदार हैं, specially उन्हें वो पहचान नहीं मिलती। जिसके वो हकदार हैं. ऐसी ही list में बहुत ही बड़ा नाम और आता है जिसका नाम है Shikhar Dhawan.
46 की average, 93 की strike rate, 36 fifties और 17 centuries. मतलब जो stats कुछ देशों के top players के भी नहीं है. उन stats को रखने के बाद भी शिखर धवन को कभी बहुत बड़े player का tag नहीं मिल पाया। वजह एक ही रही क्योंकि उन्होंने चीजों को हासिल ऐसे किया जैसे उन्हें कोई खास मेहनत ही नहीं लगी. दुनिया के सामने एक image बनी कि यार इसने ये सब बड़ी आसानी से कर लिया और लोग अक्सर उसकी मेहनत को ही मेहनत समझते है जिसकी मेहनत मेहनत लगती है.
अगर एक इंसान रात-रात तक रुक के नौकरी करता है और एक टाइम पे काम खत्म करके घर चला जाता है. फिर भले ही दोनों में से कोई कितना भी काम कर रहा हो. लेकिन मेहनती का टैग रात-रात तक रुकने वाले को ही दिया जाता है. धवन ने कभी अपना स्ट्रगल लोगों को नहीं बताया। धवन ने अपनी ट्रेजेडी लोगों को नहीं बताई। टीम से कभी बाहर हुए तो अपना दुख लोगों को नहीं बताया और टीम में वापस आए तो उसके लिए उन्होंने क्या-क्या कुर्बान करा है और क्या-क्या सहा है ये भी लोगों को नहीं बताया। कुल मिलाकर मतलब इतना है कि धवन ने कभी भी खुद को advertise नहीं करा कि वो एक मेहनती या बड़े player के रूप में दुनिया में बिक सके.
लेकिन आज इस आर्टिकल को end तक देखिएगा क्योंकि आज धवन की वो कहानी आप तक पहुँचने वाली है जो आपको कई जगह पढ़ने को तो मिल जाएगी। लेकिन धवन शायद इसको भी अपने मुँह से कभी ना बताए। अभी recently आप लोगों ने पढ़ा होगा जब वेस्टइंडीज सीरीज शुरू होने से पहले धवन से इंटरव्यू देते हुए पूछा गया था कि आपके इतने बेहतरीन स्टैट्स है. उसके बाद भी जब आप दो-तीन मैच में स्कोर नहीं कर पाते। लोग बोलने लगते हैं तो इस पे आपको कैसा लगता है? जिस पे धवन ने जो जवाब दिया वो ही आंसर आपको उनकी पर्सनैलिटी से रूबरू करा देगा. धवन ने बड़ी आसानी से कह दिया कि यार अब तो 10 साल हो गए खेलते हुए. कोई फर्क नहीं पड़ता. अपने काम से मतलब रखते हैं और अपना काम करते हैं बस. अब देखो शायद ऐसे सवाल के जवाब को बहुत ड्रामेटिक तरीके से भी दिया जा सकता था कि यार बहुत दुख होता है जब लोग बोलते हैं पर मैं दिन-रात मेहनत करता हूँ कुछ हासिल करने के लिए.और ऐसे जवाब से वो काफी लोगों की sympathy भी gain कर सकते थे. लेकिन नहीं उन्होंने कुछ ऐसा कहा कि लोगों ने सुना और भुला दिया और पता है दुनिया में इस तरीके का इंसान बनना सबसे ज्यादा मुश्किल है कि आप जानते हो आपने बहुत कुछ किया है.
आप जानते हो कि आपने जितना किया उतना आपको बदले में सामने से नहीं मिला और उसके बाद भी जब आपके पास मौका होता है. उस appreciation को पाने का आप ज्यादा कोशिश नहीं करते हो और वक्त पे छोड़ देते हो. मेरे काम से लोग मुझे पहचाने तो ठीक ना पहचाने तो कोई नहीं देखो। भले दुनिया में एक जुमला चलता है कि नेकी कर दरिया में डालो। लेकिन इसे follow कोई नहीं करता क्योंकि ये सच है कि हर इंसान चाहता है. अगर उसने कुछ achieve करा है तो लोगों को पता चले कि उसने achieve किया है. लोगों को पता चले कि उसकी मेहनत क्या है. लेकिन ऐसा इंसान बनना सबसे ज्यादा मुश्किल होता है जो बस काम से मतलब रखे. भले उसे लोग appreciate करें, hate करें या शायद भूल ही जाए.
अगर आप धवन का domestic career उठा के देखेंगे तो वो one of the best career में से एक रहा था. वो इतनी आसानी से domestic cricket से ले के under-19 तक में dominate कर रहे थे कि हर कोई ये मान चुका था कि उनमें एक बहुत बड़ा future छुपा हुआ है. 2004 के under 19 वर्ल्ड कप में धवन 84 की औसत से जब सबसे ज्यादा run बना man of the tournament बने तो राहुल द्रविड़ ने स्टेटमेंट पास कर दिया था कि उसे एक बड़ा प्लेयर बनने से कोई नहीं रोक सकता। पर मसला ये था कि जहाँ धवन as an opener अपने आप को establish कर रहे थे तो same time पे इंडिया के पास उस समय के उनके सबसे best opening options सहवाग, गंभीर और सचिन तेंदुलकर थे. धवन चाहे बाहर कुछ भी कर लेते, सहवाग, सचिन और गंभीर के ऊपर जा के कुछ सोचना टीम के लिए मुमकिन नहीं था और असल में ये सहवाग और गंभीर के peak की कहीं ना कहीं शुरुआत थी. इसके बाद 7-8 साल तो उन्हीं का दौर चलता था। अब धवन perform तो करते थे पर जब market में demand ही पैदा नहीं हुई तो सप्लाई क्या ख़ाक होती।
जब 2005 में चैलेंजर ट्रॉफी में खेलते हुए शिखर धवन और धोनी दोनों ने ओपनिंग करी थी और जिसमें उन्होंने पहले विकेट के लिए 187 रन जोड़े थे, उसमें धोनी retired hurt हो गए थे और धवन ने उस मैच में शतक जड़ दिया था. बाद में धोनी दोबारा पिच पे आए तो उन्होंने भी शतक जड़ दिया और उस वक्त धवन मात्र 19 साल के थे और धोनी इंडिया के लिए 3 मैच खेल चुके थे. उस समय धवन भले ही धोनी से पांच साल छोटे थे. लेकिन धोनी ने उस दिन धवन से एक बात कही थी कि अगर मैं आज इंडियन टीम का कैप्टेन होता तो तुम मेरी टीम में जरूर होते और ओपनिंग कर रहे होते और अब इसे इत्तेफाक कहे या कुदरत का करिश्मा जो बात धोनी ने तब यूँ ही कह दी थी. उसे वक्त ने सच कर दिखाया क्योंकि उस वक्त उस तीन मैच खेले हुए धोनी को जिसमें भी वो बुरी तरह फेल हुए थे. उन्हें क्या ही पता था कि आने वाले टाइम में वो भारत के सबसे बड़े कप्तान बनेंगे।
उस वक्त उस 19 साल के धवन को भी क्या ही पता था कि एक दिन वो धोनी की captaincy में खेलेंगे और सिर्फ खेलेंगे ही नहीं बल्कि सबसे सफल ओपनर भी बनेंगे एंड उससे भी बड़ी बात उन दोनों को ही क्या पता था कि दोनों एक दिन साथ में भारत को चैंपियंस ट्रॉफी जीता देंगे। लेकिन अच्छा हुआ कि जो उन्होंने कहा वो सच हुआ अच्छा हुआ कि धोनी भारत के कप्तान बने और अच्छा हुआ कि धवन को वो मौका मिला। जिसकी वो तलाश में थे वरना शायद इतिहास कुछ और भी हो सकता था. लेकिन अफ़सोस इस बात का है कि जिस धवन की गाथा लोगों ने 2004 में गाना शुरू कर दी थी. उसी धवन को टीम में आने में छह साल लग गए वो भी तब जब 2010 में भारत ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ एक secondary squad उतारने की सोची और अपने main players को rest पे रखा था.
अक्टूबर 2010 में जब धवन को धोनी की ही कप्तानी में पहला मौका मिला और वो opening के लिए गए तो उन्हें पता था कि शायद अगले मौके के लिए ना जाने कितना इंतजार करना पड़े। क्योंकि सचिन सहवाग गंभीर टीम से बाहर नहीं थे सिर्फ रेस्ट पे थे और उनके आते ही आप कितने भी अच्छे हो आपको बाहर जाना ही था. लेकिन धवन का ये debut पूरे तरीके से भुलाने वाला रहा और वो अपनी दूसरी ही ball पे zero पे bold हो गए और कुछ वैसा ही हुआ जैसा Dhawan ने सोचा था. उन्हें अपना दूसरा match खेलने का मौका सीधे 8 महीने बाद मिला जून 2011 में जब world cup और आईपीएल के बाद main players वापस से rest पे थे। जहाँ धवन को T20 debut का भी मौका मिला और यहाँ भी वो 11 ball पे 5 run बना के आउट हो गए. धवन ने उसके बाद अपने करियर के दूसरे ODI में fifty one रन जरूर मारे। लेकिन अगले तीन ओडीआई में वो तीन, चार और ग्यारह का ही score कर पाए।
धवन ने अपनी chances ख़राब कर दी थी. लेकिन वो समझ गए थे कि वो time आ रहा था जब गंभीर सहवाग और सचिन के बाद भारत किसी और नाम की खोज में था तो वो डोमेस्टिक क्रिकेट में वापस गए और इतना शानदार performance दिया कि अगले ही साल उन्हें टेस्ट डेब्यू के लिए भी बुला दिया गया and जैसे ही सहवाग अपने बुरे form के चलते टीम से ड्राप हुए तो धवन ने अपने debut मैच में ही सबसे fastest century जड़ सिर्फ इंडियन टीम के दरवाजों पे दस्तक ही नहीं दी. बल्कि दरवाजों को तोड़ ही दिया लेकिन किस्मत इतनी खराब थी कि उसी मैच की उसी इनिंग में उन्हें hand fracture हो गया और वो ना दूसरी इनिंग में बैटिंग कर पाए ना अगले मैच में खेल पाए और साथ ही साथ अपने पहले मैच के बाद ही आने वाले 2 महीनों के लिए उन्हें टीम से बाहर जाना पड़ा। पहली बार जब उन्हें टीम बाहर करना नहीं चाहती थी तो किस्मत उनसे दगा कर बैठी थी.
लेकिन इसके बाद जो Dhawan लौटे फिर किसी माई के लाल में हिम्मत नहीं हुई कि उन्हें बाहर कर सके क्योंकि अब सीधे उनकी entry हुई 2013 champions trophy में जहाँ Dhawan ने पहले match में 114, दूसरे match में 102 not out, तीसरे match में 48 और चौथे match में 92 जड़ दिए final match में भी. जो बारिश के कारण से 20 over का हुआ था. जिसमें भारत मात्र 129 ही run बना पाया था. वहाँ भी Dhawan ने 31 run योगदान दे भारत को champions trophy का विजेता बना दिया। धवन को player of the tournament चुना गया और उस दिन भारत को अपना नया opener भी मिल गया.
उसके बाद 2015 वर्ल्ड कप में भी वो भारत के लिए सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज रहे. लेकिन यहाँ पे बात सिर्फ उनके stats की नहीं है. बात इतनी सी है जो मैंने शुरू में कही कि क्या सच में धवन को हम वो respect दे पाए. जो एक 46 की average और 93 की स्ट्राइक रेट से अपना पूरा career खेलने वाले को मिलनी चाहिए। यहाँ तक कि आपको सुनकर शायद shock लगेगा कि धवन की test average भी.
आज इंडिया के opening options केएल, राहुल, शुभमन गिल और मयंक अग्रवाल से बेहतर है. लेकिन शायद फर्क इतना है कि धवन के बाहर जाने से कभी viewers ने इतना सोचा ही नहीं कि ये बाहर आखिर हुआ क्यों? क्योंकि as I said हम धवन को वो respect दे ही नहीं पाए. जो पिछले आठ साल से हर आईपीएल में 40 के करीब average से run मारने वाले को मिलनी चाहिए। मुझे याद है एक बार किसी ने कहा था कि अगर द्रविड़ किसी और कंट्री में होते तो वो देश के लिए cricket के भगवान होते। जैसे Sachin को भारत में माना जाता है ठीक वैसे ही मैं कहूँगा शायद Dhawan अगर किसी और देश के पास होते तो वो देश Dhawan को सर आँखों पे बिठा के रखता। जिसमें हम fail हो गए क्योंकि उनके लिए Dhawan जैसे player की कीमत इतनी ज्यादा होती कि आप सोच भी नहीं सकते। लेकिन आपको वो जरूर सोचना चाहिए जो मैं आप तक पहुंचाना चाह रहा था. उम्मीद करता हूँ कि मेरी ये बात आप लोगों तक पहुँच पाई होगी। अगर हाँ तो जो भी ये आर्टिकल पढ़ रहा है, क्या आपका भी मानना है कि Dhawan को वो owner नहीं मिला जो वो deserve करते थे comment में ज़रूर बताए।