Visit Kartik Swami Temple Rudraprayag Uttarakhand: इंडिया का उत्तराखंड स्टेट असंख्य मंदिरों, देवालयों और धार्मिक स्थलों का घर है इसलिए इसे देवभूमि भी कहा जाता है. अभी हम उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में है. हम दर्शन के लिए जा रहे हैं कार्तिक स्वामी टेम्पल। कार्तिक स्वामी टेम्पल का काफी पुराना इतिहास रहा है. आगे हम आपको इस मंदिर के इतिहास के बारे में भी बताएँगे. फ़िलहाल यात्रा शुरू करते है.
रुद्रप्रयाग शहर पहाड़ियों के बीच अलकनंदा और मन्दाकिनी नदियों के संगम पर बसा है. हमारे साथ और भी लोग इस यात्रा में शामिल है और हमलोग रुद्रपप्रयाग से कनकचौरी गांव तक सड़क मार्ग से जायेंगे फिर वहां से कार्तिक स्वामी टेम्पल के लिए 3 किलोमीटर का ट्रेक होता है. रुद्रप्रयाग से कनकचौरी गांव 40 किलोमीटर दूर है.
कनकचौरी गांव से मंदिर तक ट्रैकिंग का रास्ता पहाड़ी जगलों से गुजरता है. हालांकि ट्रैकिंग तो काफी इजी है लेकिन ट्रैकिंग वाले रास्ते में आपको पानी नहीं मिलेगा. इसलिए ट्रैक शुरू करने से पहले अपने पास पानी का स्टॉक रख ले क्योंकि रास्ते में आपको पानी मिलने की संभावना कम ही है. आपको मंदिर के आश्रम में ही पानी मिलेगा। इस मंदिर तक पहुँचने का ट्रैक वाला रास्ता काफी मनोरम है और रास्ते में कई जगहों पर शेड्स बने हुए हैं ताकि बारिश हो या फिर आप थक गए हो तो आप रेस्ट कर सके.
हम लोग जल्दी में नहीं थे इसलिए आराम से ट्रैकिंग कर रहे थे और रास्तों को एन्जॉय करते हुए वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी करते हुए मंदिर की तरफ जा रहे थे. रास्ते में कई सारे व्यूपॉइंट्स भी थे जहाँ से आपको कई सारे पहाड़ी श्रंखला नजर आएगी. अपने कैमरे और मोबाइल के बैटरी को आप लोग पहले से ही चार्ज करके मंदिर के लिए ट्रैकिंग शुरू करें और ऊपर आपको खाने के लिए कुछ नहीं मिलेगा इसलिए अपने लिए खाने का इंतजाम करके चले. पानी के साथ साथ बिस्कुट, चॉकलेट, ब्रेड, बटर और चिप्स वगैरह साथ में रख ले क्योंकि पहाड़ी यात्रा और ट्रैकिंग में आपको ज्यादा एनर्जी की जरुरत पड़ती है.
हम लोग करीब 70 मिनट की ट्रैकिंग के बाद मंदिर के आश्रम पहुंच गए. 2 किलोमीटर की ट्रैकिंग के बाद से ही आपको मंदिर के घंटियों की आवाज सुनाई देने लगेगी. आमतौर पर जो बाहर से यहाँ मंदिर का दर्शन करने आते है वो लोग उसी दिन लौट कर नीचे आ जाते हैं. लेकिन हमें यहाँ रात में भी रुकना था इसलिए हम लोगों ने आश्रम पहुंचते ही वहां पर पुजारी से बात की और उनसे कहा की हमें यहाँ रात में रुकना है तो जो पुजारी वहां मौजूद थे उन्होंने हमें साफ़ मना कर दिया क्योंकि मंदिर के मुख्य पुजारी अभी मौजूद नहीं थे. पुजारी को काफी समझाने के बाद हमें उन्होंने फ़ोन पर मुख्य पुजारी से बातचीत करवाई और हमसे बात होने के बाद मुख्य पुजारी ने हमें रात में आश्रम में रुकने की परमिशन दे दी.
जब हमें वहां रुकने की परमिशन मिल गयी फिर हमने अपना सारा सामान वहां पर रखा और मंदिर की तरफ निकले दर्शन के लिए. भगवान कार्तिकेय को एक खास तरह का पत्ता चढ़ाया जाता है जो हमें पुजारी जी ने बताया तो पुजारी जी के साथ हमलोग निकले उस पत्ते को ढूंढने के लिए. जंगल में करीब आधा घंटा ढूंढने के बाद हमें वो शुभ पत्ता मिल ही गया. मंदिर में हमारा दर्शन और पूजा काफी अच्छे से हो गया. इसके बाद मंदिर कैंपस से ही हमलोगो ने सनसेट एंजॉय किया। यहाँ की सनसेट ही नहीं बल्कि आप 360 डिग्री में जिधर भी अपनी नजर ले जायेंगे वहां पर आपको एक अनोखा और आँखों को विश्वास न करने वाला नजारा दिखेगा. काफी देर हम लोग मंदिर कैंपस में ही बैठकर नजारों का आनंद लेते रहे और फिर आश्रम लौट कर आ गए. तब तक मंदिर के मुख्य पुजारी भी वापस आ गए थे.
मुख्य पुजारी के साथ हमारी काफी देर तक बातचीत होती रही और थोड़े समय बाद हमलोगों ने पुजारी जी से आज्ञा लेकर अपने लिए और दोनों पुजारी के लिए खाना बनाना शुरू कर दिया. सारा खाना हमलोगों ने खुद ही बनाया. हम लोग अपने साथ आटा और सब्जियां लेकर आये थे. यह एक अलग तरह का अनुभव था. आप लोगों से अनुरोध है की अगर आश्रम में रुकना चाहते हैं तो खाना बनाने का सामान साथ लेकर आएं क्योंकि यहाँ पर रहने का आपसे कोई चार्ज नहीं लिया जाता है. आश्रम तक ट्रैक करके आना होता है इसलिए नीचे से भारी सामान लाना बड़ा मुश्किल होता है.
पुजारी जी से काफी सारी बातें हुई और उन्होंने यहाँ के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व के बारे में विस्तार से बताया। दरअसल भगवान शिव ने अपने दोनों बेटों को एक टास्क दिया की जो सबसे पहले ब्रह्मांड की परिक्रमा पूरी करके आएगा उसे सभी देवताओं से पहले पूजा जायेगा. कार्तिक अपने माता पिता से आशीर्वाद लेकर ब्रह्माण्ड की परिक्रमा करने के लिए कैलाश से निकल गया और गणेश भगवान ने ये बोला की आप मेरे माता पिता हो इसलिए आप मेरे लिए ब्रह्माण्ड से ज्यादा हो इसलिए मैं आप दोनों का चक्कर लगाएंगे यह मेरे लिए ब्रह्माण्ड का चक्कर होगा. ये सुनकर भगवान शंकर और माता पार्वती काफी खुश हुए और गणेश जी को देवताओं से पहले पूजा जाने लगा.
जब भगवान कार्तिकेय ब्रह्मांड की परिक्रमा करके वापस लौटे तो उन्हें इन सब घटनाओं के बारे में पता चला तो ये सब सुनते ही भगवान कार्तिक ने अपना देह त्याग दिया. जहाँ पर उन्होंने अपना देह त्याग किया उसी जगह पर ये मंदिर बना हुआ है. इस मंदिर में भगवान कार्तिक के हड्डियों की पूजा की जाती है.
करीब 9 बजे रात में हमारा खाना तैयार हो गया था हम लोगों ने खाना खाया और फिर जल्दी से सोने चले गए क्योंकि हमें सुबह जल्दी उठकर सूर्योदय को देखना था और फिर मंदिर में भी दर्शन करना था. हम लोग सुबह 5 बजे अपने नित्यकर्मों से निबटकर और स्नान करने के बाद तैयार होकर मंदिर कैंपस में आ गए थे. सबसे पहले हम लोगों ने मंदिर में दर्शन किया फिर सूर्योदय के मनोरम एवं भव्य दृश्यों का आनंद लिया. 3050 मीटर की ऊंचाइयों से सूर्योदय और बाकी अन्य पहाड़ियों के चोटी को देखना बेहद अलग अनुभव था.
सूर्योदय होने के बाद धीरे-धीरे यहाँ पर श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ने लगी. जैसे-जैसे समय आगे बढ़ रहा था वैसे-वैसे लोग यहाँ दर्शन के लिए आ भी रहे थे और दर्शन करके जा भी रहे थे. इन्ही श्रद्धालुओं में एक ग्रुप ऐसा था जिसके पास गिटार था. हमारी जान पहचान इनसे हो गयी थी. इन लोगों से दर्शन करने के बाद हमें नाश्ता ऑफर किया। ये लोग नीचे से ब्रेड बटर लेकर आये थे. हमलोग ने साथ में ब्रेड बटर एन्जॉय किया और फिर हम लोग की बातचीत काफी देर तक चलती रही. वो लोग भी खांटी यात्री थे इसलिए हमारे पास बात करने के लिए टॉपिक की कोई कमी नहीं थी.
हमारी बातचीत खत्म होने के बाद हम लोगों ने यहाँ से नजारों को टेलिस्कोप से एन्जॉय किया। यहाँ पर आपको टेलिस्कोप की पेड सर्विस मिल जाएगी और यहाँ से आप कई सारे पहाड़ों की चोटियों को अच्छे से देख पाएंगे. टेलिस्कोप से नजारों को देखना तो बनता है.
इसके बाद शुरू हुई गिटार पर भजन सुनने की बारी। जैसे ही हम लोग भजन गाना शुरू किया वैसे ही वहां मौजूद कई सारे ट्रैवलर हमारे पास आकर बैठ गए और हमारा साथ देने लगे. भजन सुनने और सुनाने का कार्यक्रम 2 घंटे से ज्यादा तक चलता रहा. इस तरह का आध्यात्मिक अनुभव कम से कम मुझे तो आज तक नहीं मिला था.
इन्ही खूबसूरत यादों और अनुभवों के साथ हमलोग निकल पड़े अपने अगले डेस्टिनेशन के लिए. कार्तिक स्वामी टेम्पल तक पहुँचने का अपना अनुभव हमारे साथ जरूर शेयर करे.