अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था – मैं कुंवारा हूं, लेकिन ब्रह्मचारी नहीं, Atal Bihari Bajpayee Biography

Atal Bihari Bajpayee Biography

Atal Bihari Bajpayee Biography: सत्ता का खेल तो चलेगा, सरकारे आएंगी- जाएंगी, पार्टियां बनेंगी, बिगड़ेगी, लेकिन ये देश रहना चाहिए, देश का लोकतंत्र अमर रहना चाहिए। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की ये पंक्तियां तो आपने जरूर सुनी होगी। अटल जी सिर्फ एक पॉलिटिशियन नहीं, बल्कि लीडर ऑफ द लीडर्स थे। उनके competitors तो थे, लेकिन हेटर्स नहीं। एक ऐसे राजनेता, जिन पर दुश्मन अपने दोस्त से ज्यादा भरोसा किया करते थे।

अटल जी ने आजीवन शादी नहीं की। वो कहते थे- मैं कुंवारा हूं, लेकिन ब्रह्मचारी नहीं। करगिल वॉर में पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब देना हो या न्यूक्लियर टेस्ट कर अमेरिका के सामने सीना तानकर खड़ा होना हो, अटल जी ने कई ऐसे कार्य किए हैं, जिन्होंने देश को एक नई ऊंचाइयों पर पुहंचाया। 

उनकी आवाज में ऐसा जादू था कि डिंपल कपाड़िया के बिकनी लुक से ज्यादा रुचि लोगों को उनके भाषणों में हुआ करती थी। क्या सच में नेहरू ने अटल जी के प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाण की थी? अटल जी कई कविताएं आपने सुनी होंगी। उनकी जीवनी पर आधारित कई वीडियोज भी इंटरनेट पर मौजूद हैं, लेकिन आज हम आपको उनके जीवन से जुड़े कुछ ऐसे पहलुओं के बारे में बताएंगे, जिन्हें जानने के बाद यकीनन आपकी फेवरेट पीएम की लिस्ट में वो टॉप पर आ जाएंगे।

Atal Bihari Bajpayee Biography

शुरुआत करते हैं, उनके जन्म से। कृष्ण बिहारी वाजपेयी आगरा के पास मौजूद बटेश्वर के रहने वाले थे। वो पेशे से एक टीचर थे। कविताएं लिखने और पढ़ने का उन्हें शौक था। रोजगार की तलाश में वो ग्वालियर आ गए और ग्वालियर में ही कृष्ण बिहारी और कृष्णा देवी के घर 24 दिसंबर, 1924 के दिन अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म होता है। अटल बिहारी ने ग्वालियर के सरस्वती शिशु मंदिर स्कूल से अपनी स्कूलिंग कंप्लीट की और ग्वालियर के ही विक्टोरिया कॉलेज से अपनी ग्रैजुएशन पूरी की। 

इसी कॉलेज में अटल बिहारी की मुलाकात राजकुमारी हक्सर से होती है, जो बाद में राजकुमारी कौल के नाम से प्रसिद्ध हुईं। दोनों की पर्सनल लाइफ को लेकर हम में आगे जानेंगे। एमए की पढ़ाई के लिए अटल बिहारी कानपुर आ गए और डीएवी कॉलेज कानपुर से मास्टर्स की डिग्री हासिल की। 

केवल 15 साल की उम्र में साल 1939 में अटल बिहारी ने आरएसएस जॉइन कर ली। बचपन से ही वो एक देशभक्त थे और हमेशा कुछ अलग करने की चाह उनके अंदर रहती थी। उनकी आवाज में एक अलग ही दम था। हर कोई उनकी आवाज सुनने के लिए रुक जाया करता था। नेहरू के अपोजिशन में होने के बावजूद भी वो अटल बिहारी के भाषण खूब चाव के साथ सुना करते थे। साल 1942 में अटल बिहारी गांधी जी के क्विट इंडिया मूवमेंट के साथ जुड़े। 

देश की आजादी की इस जंग में शामिल होने पर उन्हें जेल में भी रहना पड़ा। अटल बिहारी जब युवा थे, तो बहुत शानदार लिखा करते थे। स्वाधीनता संग्राम के दौरान उन्हें राष्ट्रधर्म, पांचन्य, स्वदेश और वीर अर्जुन जैसे अखबारों का संपादक बनाया गया, जिनके एडिटोरियल की जिम्मेदारी भी उनके युवा कंधों पर डाल दी गई। 

आजादी के बाद कुछ समय के लिए आरएसएस पर बैन लगा दिया जाता है। उस समय श्यामा प्रसाद मुखर्जी काफी लोकप्रिय थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी के सहायक और स्टेनोग्राफर के तौर पर अटल जी उनके साथ जुड़ते हैं। 1952 में अटल बिहारी ने उत्तर प्रदेश के लखनऊ सीट से अपने जीवन का पहला चुनाव लड़ा। इस चुनाव में वो भले ही हार गए, लेकिन 28 प्रतिशत वोटों के साथ तीसरे नंबर पर रहने के कारण उनकी प्रशंसा भी की गई। 

1953 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी का निधन हो जाता है, जिसके बाद आरएसएस की जिम्मेदारी दीन दयाल उपाध्याय के पास आ जाती है। 1957 में उपाध्याय ने अटल बिहारी पर भरोसा जताया और तीन जगह से उन्हें चुनाव लड़वाया। अटल बिहारी ने मथुरा, लखनऊ और बलरामपुर की सीट से चुनाव लड़ा। मथुरा में उनकी जमानत जब्त हो गई तो वहीं लखनऊ में वो दूसरे नंबर पर रहे। बलरामपुर से अटल बिहारी ने चुनाव जीता और लोकसभा में एंट्री ली। यहीं से उनके असली राजनीतिक करियर की शुरुआत होती है। 

संसद में जब अटल बिहारी बोलते थे तो विपक्षी नेता भी उनकी बात बड़े गौर से सुना करते थे। अक्सर अपने भाषणों में वो अपनी लिखित कविताओं का इस्तेमाल करत थे। अटल जी और नेहरू जी की जब भी बात होती है तो कहा जाता है कि नेहरू ने उनके प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी की थी, लेकिन असल में नेहरू ने ऐसा कुछ नहीं कहा था।

नेहरू ने सिर्फ इतना कहा था कि राजनीतिक क्षेत्र में इस लड़के का भविष्य उज्जवल है। 1968 में अटल बिहारी को जनसंघ का अध्यक्ष बना दिया जाता है। 1975 में इंदिरा गांधी देश में इमरजेंसी लागू कर देती हैं। 

पहले ही दिन से नेताओं की गिरफ्तारी का दौर चालू हो जाता है और सबसे पहले जेपी नारायण के साथ अटल बिहारी वाजपेयी को गिरफ्तार कर जेल में डाला जाता है। इमरजेंसी खत्म होने के बाद आम चुनाव हुए और जनता पार्टी की ओर से मोरारजी देसाई पीएम बने। आजाद भारत में पहली बार नॉन कांग्रेसी शख्स देश का प्रधानमंत्री बनता है। अटल जी को उस समय विदेश मंत्री बनाया जाता है और वो पहले ऐसे भारतीय होते हैं, जिन्होंने यूएन की जनरल असेंबली में हिंदी में संबोधन दिया था। 

भारत में इस्कॉन की स्थापना के बाद प्रभुपाद स्वामी ने एक बार अटल बिहारी वाजपेयी से मुलाकात की। स्वामी जी ने कहा कि दुनिया भर में इस्कॉन के अनुयायी फैले हैं, जो भगवद् गीता का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। वो भारत में 500 लोगों को लाना चाहते हैं और उन लोगों को पर्मानेंट वीजा चाहिए होगा।

अटल जी यह बात सुनकर काफी खुश हुए और कहा जाता है कि प्रभुपाद स्वामी ने उस समय अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री बनने की भविष्यवाणी की थी। 1977 में अटल बिहारी वाजपेयी को सुनने के लिए लोगों की भारी भीड़ उमड़ती थी। 

एक बार संजय गांधी ने लोगों को रोकने के लिए ट्रिक इस्तेमाल की। छुट्टी वाला दिन भी नहीं था और दूरदर्शन पर ऋषि कपूर की फिल्म बॉबी टेलीकास्ट कर दी जाती है। इस फिल्म में डिंपल कपाड़िया के बिकनी सीन को लोगों ने खूब पसंद किया था। संजय को लगा कि सभी लोग घरों में फिल्म देखने के लिए रुक जाएंगे और कोई अटल बिहारी का भाषण सुनने नहीं पुहंचेगा। लेकिन संजय गांधी का यह पैंतरा पूरी तरह से फ्लॉप साबित होता है और हमेशा की तरह अटल जी को सुनने के लिए हजारों की संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं।

1980 में बीजेपी पार्टी का गठन होता है, लेकिन 1984 लोकसभा चुनाव में पार्टी को सिर्फ 2 सीटें मिलती है। वहीं 1989 में 85 सीटें और 1991 में 120 सीटें बीजेपी को मिलती हैं। अभी तक बीजेपी सरकार बनाने की जद्दोजहद कर रही होती है। 1990 के दशक में देश में उठापटक का दौर जारी रहता है। सरकार बन रही होती है, गिर रही होती है।

बाबरी मस्जिद गिराने के बाद बीजेपी पर कम्यूनल पार्टी होने के आरोप लगने शुरू हो जाते हैं, ऐसे में पार्टी को संभालने की बड़ी जिम्मेदारी अटल बिहारी वाजपेयी निभाते हैं। 

1996 में आम चुनाव में सभी को लगता है बीजेपी से लाल कृष्ण आडवाणी पीएम पद के लिए अपनी दावेदारी पेश करेंगे। लेकिन शिवाजी दादर पार्क के मंच से आडवाणी ऐलान कर देते हैं कि अटल बिहारी प्रधानमंत्री पद के लिए पार्टी का चेहरा होंगे। यह सुनकर अटल जी चौंक जाते हैं, क्योंकि इस बारे में आडवाणी ने पहले उनसे पूछा तक नहीं होता।

आडवाणी कहते हैं कि यदि मैं तुमसे पूछता तो तुम राजी नहीं होते, लेकिन अब ऐलान हो चुका है। ‘अबकी बारी अटल बिहारी’ के नारे देश में गूंजने लगते हैं। 

1996 के चुनाव के नतीजों में 161 सीटों के साथ बीजेपी सबसे बड़ी पार्टी बनकर सामने आती है, लेकिन वह बहुमत के आंकड़े से काफी दूर होती है। अन्य पार्टियां भी बहुमत जुटाने में नाकाम होती है। सबसे बड़ी पार्टी होने के कारण राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा बीजेपी को सरकार बनाने का न्यौता देते हैं। पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री बद की शपथ लेते हैं। लेकिन वो जानते थे कि संसद में बहुमत पेश नहीं कर पाएंगे और 13 दिन में ही सरकार गिर जाती है। 

इसके बाद वो संसद में अपना एतिहासिक भाषण देते हैं, जिसकी पंक्तियां हमने आपको वीडियो की शुरुआत में सुनाई थी। करीब 1.30 घंटे का उनका भाषण आपको यू-ट्यूब पर आसानी से मिल जाएगा। उनके बाद एच डी देवगौडा और आई के गुजराल देश के पीएम बनते हैं, लेकिन दोनों ही पीएम अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाते।

1998 में फिर चुनाव होते हैं और बीजेपी को 181 सीटें मिलती है और इस बार अटल बिहारी वाजपेयी को 13 पार्टियां सपोर्ट करती हैं। इनमें TMC, AIADMK और जनता दल जैसी पार्टियां भी शामिल होती है। लेकिन जयललिता बीच में ही अपना समर्थन वापस ले लेती हैं और 13 महीनों के बाद अटल जी की सरकार गिर जाती है। 

अब भी वो हार नहीं मानते और 1999 में एक बार फिर सरकार बनाते हैं। इस बार वो अपना पांच सालों का कार्यकाल पूरा करते हैं और देश के पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री बनते हैं, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। 

अटल बिहारी वाजपेयी पर दुश्मन अपने दोस्तों से ज्यादा भरोसा किया करते थे। उनका एक किस्सा काफी फेमस है। 1993 में बेनजीर भुट्टो जेनेवा के ह्यूमन राइट्स कन्वेंशन में अपना राग अलापना शुरू कर देती हैं और कहती हैं कि कश्मीर में लोगों के साथ भारत सरकार गलत बर्ताव कर रही है। वहां धारा 370 लगाकर लोगों को तंग किया जा रहा है, प्रताड़ित किया जा रहा है। उस समय नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री होते हैं।

नरसिम्हा राव अच्छे राजनेता तो थे, लेकिन उन्हें बोलने में महारथ हासिल नहीं थी। उन्हें समझ नहीं आता कि किस शख्स को जेनेवा भेजे, जो पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दे सके। अपनी पूरी पार्टी में उन्हें कोई भी लायक शख्स नजर नहीं आता। ऐसे मे वो विपक्ष के नेता अटल बिहारी वाजपेयी को जेनेवा भेजते हैं। 

वहां पर अटल जी को देख भुट्टो हैरान हो जाती हैं कि भारत ने विपक्ष के नेता को अपना प्रतिनिधि बनाकर भेजा है और भारत को विचित्र लोकतांत्रिक देश कहती हैं। अटल बिहारी मानवाधिकार सम्मेलन में पाकिस्तान को जमकर लतड़ लगाते है। इसीलिए ही कहते है कि अटल जी का ऐसा व्यक्तित्व था, जिन पर दुश्मन भी दोस्त से ज्यादा भरोसा किया करते थे।

संसद में भले ही नरसिम्हा राव या अन्य सांसदों के साथ उनकी तीखी बहस होती थी, लेकिन संसद के बाहर उनकी सभी नेताओं के साथ अच्छी दोस्ती हुआ करती थी। 

पीवी नरसिम्हा राव के समय में मनमोहन सिंह फाइनेंस मिनिस्टर हुआ करते थे। एक बार संसद में अटल बिहारी ने मनमोहन सिंह पर सवालों की लड़ियां लगा दी, जिसका जवाब वो नहीं दे पाए। ऐसे में उन्हें बहुत बेइज्जती महसूस हुई और वो अपना इस्तीफा लेकर पीवी नरसिम्हा राव के पास पुहंचे। पीवी नरसिम्हा राव ने मनमोहन सिंह को खूब समझाया कि इस्तीफा न दे और इसमें निंदा वाली कोई बात नहीं है, लेकिन वो नहीं समझे। 

इसके बाद पीएम कहते हैं कि सिर्फ एक शख्स ही आपको समझा सकता है और वो अटल बिहारी वाजपेयी को बुलाते हैं। अटल जी मनमोहन से कहते हैं कि संसद में हम जो कर रहे हैं, वो हमारा पेशा है, हम राजनेता हैं। उनके समझाने पर मनमोहन सिंह ने अपना इस्तीफा वापस लिया। 

1998 में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में ऑपरेशन शक्ति को अंजाम दिया गया और भारत एक परमाणु संपन्न देश बना। भारत ने पोखरण में अंडरग्राउंड होकर न्यूक्यिर टेस्ट किए। अमेरिका ने भारत को परमाणु देश बनने से रोकने के लिए अपनी एड़ी चोटी तक का जोर लगा दिया। भारत पर सैटलाइट से नजर रखी गई और यहां तक कि धमकियां भी दी गई। 

लेकिन अटल बिहारी गीदड़ भभकियों से डरने वालों में से नहीं थे और परमाणु बम का सफल परिक्षण कर देश को न्यूक्लियर पावर्स वाली सूची में लाकर खड़ा कर दिया। भारत एक रेस्पॉन्सिबल न्यूक्लियर नेशन बना और नो फर्स्ट यूज की पॉलिसी पर साइन किए। संदेश साफ था कि हम पहले वार नहीं करेंगे, लेकिन यदि हमारी संप्रभुता से खिलवाड़ होता है तो हम चुप बिल्कुल भी नहीं बैठेंगे। 1999 में करगिल वॉर में भी अटल जी के मार्गदर्शन में ही भारत ने पाकिस्तानी सेना को नाको चने चबवा दिए थे। 

अटल जी का कहना था कि आपके पड़ोसी कभी नहीं बदलेंगे और उन्होंने पाकिस्तान के साथ कई बार अच्छे संबंध स्थापित करने की कोशिश की। दिल्ली से लाहौर तक उन्होंने एक बस सेवा शुरू की, लाहौर समझौता हुआ, लेकिन पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों से बिल्कुल भी बाज नहीं आया। साल 2000 में बिल क्लिंटन भारत दौरे पर आते हैं और करीब 22 सालों बाद कोई अमेरिकी राष्ट्रपति भारत की धरती पर कदम रखता है। 

अगर आपको राजनीति में दिलचस्पी है तो कभी न कभी आपने अटल बिहारी और राजकुमारी कौल का नाम साथ में जरूर सुना होगा। विक्टोरिया कॉलेज में दोनों की दोस्ती होती है, लेकिन कॉलेज के बाद दोनों की राहें अलग हो गई। कई सालों के बाद फिर एक दिन दोनों एक दूसरे से टकराते हैं। दोनों ने कभी खुलकर अपने रिश्ते को लेकर ज्यादा बातचीत नहीं की। कई लोगों ने अटल बिहारी और राजकुमारी कौल के बारे में लिखा है। राजकुमारी कौल ने बीएन कौल से शादी की। 

आपको जानकर हैरानी होगी कि बीएन कौल और राजकुमारी कौल दोनों अटल बिहारी के घर पर ही रहते थे। तीनों एक साथ एक घर में रहते थे। इस बात से आरएसएस को थोड़ी नाराजगी तो जरूर थी, लेकिन वो अटल जी को कुछ कह नहीं पाए। क्योंकि उस समय अटल बिहारी ही आरएसएस के सबसे बड़े पोस्टर ब्वॉय हुआ करते थे।

अटल बिहारी ने राजकुमारी और बीएन कौल की बेटी नमिता को गोद लिया था। कहा जाता है कि 1960 के दशक में राजकुमारी अपने पति को तलाक लेकर अटल जी के साथ विवाह करना चाहती थी, लेकिन परिस्थितियों ने साथ नहीं दिया। 

एक बार अटल बिहारी ने अपने प्यार का इजहार करने के लिए एक खत लिखा और उसे लाइब्रेरी में एक किताब के अंदर रखकर छोड़ दिया। राजकुमारी कौल ने उस पत्र का जवाब तो दिया, लेकिन वह पत्र कभी अटल जी को मिल नहीं पाया। दोनों ने पत्र में क्या लिखा था, यह तो एक राज है। एक इंटरव्यू के दौरान अटल बिहारी वायपेजी ने कहा था कि मैं कुंवारा हूं, ब्रह्मचारी नहीं। 

अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसे नेता थे, जो जातपात की राजनीति पर विश्वास नहीं किया करते थे। उन्होंने बीजेपी के तीन मुख्य बातें- धारा 370, राम मंदिर और यूनिफॉर्म सिविल कोड को साइड रखा और देश के लिए जरूरी मुद्दों पर ध्य़ान दिया। देश में अच्छी सड़कों का निर्माण कराया। प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना से लेकर सर्व शिक्षा अभियान तक उन्होंने चालू कराए, जो देश की बुनियाद को मजबूत बनाने के लिए बहुत जरूरी है। गोल्डन क्वाड्रिलेटरल प्रोजेक्ट का सपना भी पहली बार अटल जी ने ही देखा था। 

उनके बारे में एक बात और जानकर आपको हैरानी होगी कि ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखने के बावजूद उन्हें मांस मच्छी खाने का शौक था। प्रोन्स और झींगा उन्हें पसंद थे। मिठाई भी वो बड़े चाव से खाया करते थे। वो एक बड़े फूड लवर थे। वो देश के एकमात्र ऐसे नेता थे, जिन्होंने देश के चार राज्यों से लोकसभा चुनाव जीते। साल 2005 में अटल बिहारी ने सक्रीय राजनीति से संन्यास ले लिया। हालांकि उसके बाद भी कई नेता उनसे सलाह लेने आया करते थे। 16 अगस्त 2018 के दिन अटल बिहारी ने 93 की उम्र में अंतिम सांस ली। 

तो दोस्तों ये थी अटल बिहारी वाजपेयी के जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी बातें, जिनके बारे में शायद आपने पहले कभी नहीं सुना होगा। अगर आपको हमारी ये वीडियो पसंद आई हो तो इसे लाइक और शेयर अवश्य करें और कमेंट सेक्शन में अपने पसंदीदा पीएम का नाम जरूर लिखें। 

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