सीबीआई कैसे एक सरकारी तोता बनकर रह गया, How CBI went from being a Caged Parrot to a Caged Vulture, Can CBI be Controlled in India

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Can CBI be Controlled: देखिए जब भी इंडिया के अंदर कोई गैर कानूनी activity करता है तो लॉ के हिसाब से उसको सजा होनी चाहिए और जो हमारा कोर्ट है वो decide करता है कि क्या सजा होनी चाहिए। लेकिन कोर्ट खुद से investigation नहीं करता है।

ये काम करती है investigating agencies. वो पता लगा के कोर्ट के सामने सबूत रखती है और फिर कोर्ट सजा देती है। जब किसी एरिया में कोई crime होता है तो लोकल पुलिस की जिम्मेदारी होती है कि उसको जा के देखे। लेकिन पुलिस को भी अपनी boundaries के अंदर ही रह के काम करना होता है। कोई भी पुलिस अपने jurisdiction के बाहर जा के केस नहीं उठा सकती है।

ऐसा नहीं हो सकता कि यूपी की पुलिस पंजाब में किसी को पकड़ ले या फिर inquiry शुरू कर दे इसके लिए उसको पंजाब की पुलिस से permission लेनी होगी. उनको inform करना होगा पंजाब की पुलिस को और पुलिस department के अंदर भी अलग-अलग चीजों के लिए अलग-अलग department होते हैं जैसे एटीएस, एसटीएफ, सीबीसीआईडी, सीआईडी, एलआईयू, क्राइम ब्रांच. ये अलग-अलग department होते हैं अब अगर आप इसके भी बाहर निकलते हो तो रॉ है. रॉ का काम होता है कि इंडिया की boundary जहाँ पे खत्म होती है उसके बाहर इन्वेस्टिगेशन करना।

रा (Raw) इंडिया की boundary के अंदर इन्वेस्टिगेशन नहीं करती जो भी साजिश इंडिया की boundary के बाहर होती है उसको raw देखती है और ऐसे ही अगर इंडिया के अंदर कोई साजिश होती है तो उसको आईबी देखती है। आईबी का काम होता है information निकाल के respective डिपार्टमेंट को inform करना। मान लीजिए आईबी को ढूंढते-ढूंढते पता चलता है कि महाराष्ट्र में कोई प्लान attack होने वाला है। तो आईबी खुद बंदूक ले के नहीं पहुंच जाएगी वो महाराष्ट्र की पुलिस को बताएगी और उसके बाद महाराष्ट्र की जो पुलिस होगी वो एक्शन लेगी।

आईबी इंडिया के किसी भी कोने में जा के काम कर सकती है। उसके ऊपर कोई बॉउंडेशन नहीं है। देखिए पुलिस डिपार्टमेंट जो है वो स्टेट का सब्जेक्ट है उसको स्टेट गवर्नमेंट देखती है. यूपी की जो पुलिस है वो योगी जी की गवर्नमेंट देखती है ऐसे ही राजस्थान की जो होगी उसको अशोक गहलोत जी की जो गवर्नमेंट है वो देखेगी। यूपी की पुलिस राजस्थान में नहीं घुस सकती. बिना permission के ऐसे ही राजस्थान की पुलिस यूपी में नहीं घुस सकती.

लेकिन जो सीबीआई है उसके ऊपर कोई नहीं है वो all over इंडिया में काम कर सकती है. जो सीबीआई होती है ये central गवर्नमेंट के under में आती है. अब मान लीजिए आपकी गली में कोई crime हो गया तो ऐसा नहीं है कि आप फोन घुमा के सीबीआई को बुला लोगे. आपको पुलिस को ही फोन घुमाना होगा। सीबीआई तभी आती है जब उसको recommend किया जाता है. मान लीजिए यूपी में कोई crime हुआ तो यूपी के सीएम जब तक home ministry को लेटर नहीं लिखेंगे कि इस मामले की जाँच सीबीआई को करनी चाहिए. तब तक सीबीआई उस केस में नहीं आ सकती।

होम मिनिस्ट्री सीबीआई की request को review करती है और उसके बाद सीबीआई किसी क्राइम की investigation start कर सकती है। सीबीआई तभी आती है जब सीएम लेटर लिखे होम मिनिस्ट्री को या फिर सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट को लगे कि इस केस की सीबीआई inquiry होनी चाहिए. तब आती है CBI या फिर central गवर्नमेंट को लगे कि सीबीआई की inquiry होनी चाहिए तो उस केस में आती है। ऐसे ही money laundering या फिर black money की बात आती है तो उस केस में ईडी आ जाती है। ऐसा पैसा जिसका टैक्स चुराया जा रहा हो या फिर ऐसा पैसा जिसका source का पता ना हो.

कहाँ से आया है वो उस केस में ED आ जाती है ऐसे ही कोई drugs वगैरह की बात होती है तो NCB देखती है उसको आपने देखा होगा जब सुशांत सिंह राजपूत का case हुआ था तो उसमें पहले मुंबई की पुलिस ने investigation की थी और बिहार की पुलिस चाह के भी मुंबई में investigation नहीं कर पा रही थी फिर उसके बाद सीबीआई को बुलाया गया फिर जब drugs की बात उछली तो एनसीबी आई फिर पैसे की बात उछली तो इडी आई तो इसी तरीके से हर agency काम करती है और ये जितनी भी agency है चाहे वो सीबीआई हो, एनसीबी हो, ईडी हो, पुलिस हो इनके officers को ही घपला नाकरें इन सारी चीजों को देखती है central vigilance commission ये जितने भी सरकारी employee होते हैं ये सीवीसी से बहुत डरते हैं।

देखिए इंडिया के अंदर बहुत सारी agencies हैं कोई drugs के cases को देखती है तो कोई terrorist के cases को देखती है लेकिन जितना डर एक नेता को सीबीआई और ईडी से लगता है उतना किसी और एजेंसी से नहीं लगता है। क्योंकि ये दोनों agencies corruption देखती हैं और जहाँ corruption का नाम आता है सबसे पहले हमारे दिमाग में आते हैं नेता.0 देखिए ईडी एक अलग topic है वो किसी और article में discuss
करेंगे।

लेकिन सीबीआई बहुत ही पावरफुल चीज है इसके एक action से किसी की भी जिंदगी बन सकती है और बिगड़ भी सकती है देखिए जब second world war हुआ था तो war related सामान को ले के काफी corruption की चीजें सामने आ रही थी तो पुलिस तो अपने-अपने स्टेट में investigation कर सकती है तो इस corruption की investigation के लिए एक अलग से टीम बना दी गई. जिसका नाम रखा गया स्पेशल पुलिस establishment और जब इस केस की inquiry complete हो गई तो एक दो department और थे जहाँ पे corruption हो रहा था। वहाँ पे भी इसको काम दिया गया और इसकी performance को देख के 1973 में एक legal formal structure बना दिया गया और नाम रखा गया सीबीआई ( central bureau of investigation.

देखिए एक चीज का और ध्यान रखिएगा ये जो सीबीआई बनी है ये एक्ट ऑफ़ पार्लियामेंट से नहीं बनी है मतलब कि जैसे NIA , SEBI वगैरह parliament में बिल पास हुआ उनका तब जा के बनी वो ये वैसे नहीं बनी है। ये गवर्नमेंट के एक नोटिफिकेशन से सेटअप हुई है. मतलब गवर्नमेंट ने एक resolution लाया और इनकी टीम सेटअप कर दी. अब देखिए इतना important department है सीबीआई। कायदा तो ये कहता है कि जैसे NIA, SEBI वगैरह है इनके खुद के अपने rule है वैसे ही सीबीआई का भी होना चाहिए लेकिन 1963 से इतनी गवर्नमेंट आई और किसी ने भी इसको एक legal structure में formulate करने की कोशिश नहीं की बल्कि नोटिफिकेशन निकाल-निकाल के इसको weak किया गया ताकि इसको अपने हिसाब से चलाया जा सके।

सीबीआई को आरटीआई से भी बाहर रखा गया ताकि आम जनता को पता ही ना चल पाए कि ऊपर गेम क्या चल रहा है। हमारी जो सुप्रीम कोर्ट है 1963 से लड़ाई लड़ रहे हैं। सीबीआई को एक legal और strong structure दे दिया जाए। लेकिन उसके बाद भी कुछ नहीं होता है। 2013 में जब बहुत ज्यादा अति हो गई तो गुवाहाटी हाईकोर्ट ने काफी हिम्मत का काम किया और इसपे एक action लेने की कोशिश की।

गुवाहाटी हाई कोर्ट ने कहा कि ये जो सीबीआई आप चला रहे हो अपने हिसाब से ये central गवर्नमेंट ने एक resolution निकाल के बना दी थी. rules इसमें क्या होगा ये भी आपने एक resolution निकाल के सेट कर दिया कि Delhi Special Police Establishment act जो है 1946 उसके हिसाब से जो rules होते हैं सीबीआई भी वही follow कर लेगा।

सीबीआई जा के लोगों को search कर रही है. उनको arrest करती है ये जो activity सीबीआई करती है ये article twenty-one के हिसाब से unconstitutional है. ऐसा Guwahati court का कहना है और इसके बाद कोलकाता हाईकोर्ट जो था उसने भी same चीज पे सवाल किए.

देखिए कायदा तो ये कहता है कि जब court ये सब सवाल उठा रहे हैं तो 2 मिनट का काम है इसको एक legal structure देना। लेकिन वो नहीं किया जाता है बल्कि central गवर्नमेंट क्या करती है. इस पूरे फैसले पे stay लगा देती है और इसके बाद कई गवर्नमेंट आई और गई ने भी इसके stay को हटाने की कोशिश नहीं की।1963 से लेकर आज तक सीबीआई की constitutional validity पे कोई फैसला नहीं लिया गया है क्योंकि power में आने के बाद सबको अपने हिसाब से चलाना है। अगर वो सीबीआई को independent करके एक legal structure दे देंगी तो इनके खुद के काम फंस जाएंगे। जो जुल्म इनके साथ हुए हैं उसका बदला कैसे लेंगे ये लोग.

सीबीआई एक ऐसा तोता है जो पिंजरे में बंद है. ऐसा सुप्रीम कोर्ट में ऑन रिकॉर्ड कहा है पहले इसको सरकार का तोता बोला जाता था और आजकल इसको सरकार का दामाद बोला जाता है अब क्योंकि सीबीआई पूरी तरीके से हमारे लॉ से protected नहीं है. इसलिए सीबीआई नेताओं के रहमो कर्म पे रहना पड़ता है.

सीबीआई में जो hiring होती है वो इंडियन पुलिस सर्विस से होती है. इसलिए सीबीआई को पूरी तरीके से होम मिनिस्ट्री पे डिपेंडेंट रहना पड़ता है, hiring तक के लिए. सीबीआई को आईपीएस चलाते हैं जो खुद सीबीआई में काम करने के बाद फ्यूचर पोस्टिंग के लिए सरकार पे डिपेंडेंट रहते हैं. इसके साथ-साथ सीबीआई के ऊपर अगर खुद कोई बात आ गई तो लॉयर तक के लिए उनको होम मिनिस्ट्री पे डिपेंडेंट रहना पड़ता है.

सीबीआई के शुरूआती सालों में सीबीआई पर लोगों को बहुत भरोसा था. लेकिन अब सीबीआई भी जनता की नजरों में आ गया है. सीबीआई के एक्शन और इन एक्शन की वजह से उसकी क्रेडिबिलिटी पे असर पड़ रहा है. ये मैं नहीं कह रहा हूँ, ये exact line use की थी हमारे चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया एनवी रमना ने सीबीआई के लिए।

पहले जो सीबीआई का डायरेक्टर होता था, उसको सेंट्रल गवर्नमेंट जब चाहे हटा सकती थी. मान लो कोई केस स्टार्ट कर दिया, सीबीआई के डायरेक्टर ने तो उसको fire कर दिया जाता था। तो इसको ले के बहुत हल्ला हुआ, कोर्ट ने प्रेशर बनाया तो मजबूरी में fix करना पड़ा कि जो भी सीबीआई का डायरेक्टर होगा, उसको दो साल से पहले कोई भी नहीं हटा सकता। देश का पीएम तक नहीं हटा सकता और फिर आगे चल के एक rule और लाया गया जिसमें इसको बढ़ा के 5 साल तक कर दिया गया.

ये इसलिए किया गया ताकि सीबीआई का जो अगर किसी minister पे investigation करे तो उसको कोई डर ना हो क्योंकि जैसे ही investigation start होती थी. सीबीआई के डायरेक्टर को हटा दिया जाता था. अभी rule तो बहुत ही अच्छा बनाया गया। लेकिन इसमें एक और कंडीशन लगा दी गई कि पांच साल एक साथ नहीं रखा जाएगा। सीबीआई के डायरेक्टर को पहले दो साल पूरे करने होंगे। उसके बाद एक-एक साल करके उसका tenure बढ़ाया जाएगा। अब एक साल और बढ़ाना चाहिए या नहीं बढ़ाना चाहिए ये central गवर्नमेंट decide करेगी। तो अब इसमें होता ये है कि अगर सीबीआई का डायरेक्टर सही से दो साल तक काम करता है गवर्नमेंट के हिसाब से काम करता है। तब तो उसकी term बढ़ा दी जाती है. वरना वहीं पे रोक दी जाती है।

आप एक बार अपने आप का जो डायरेक्टर है उसकी जगह पर रख के देखिये आप कैसे फैसला ले पाओगे? यही reason है कि सीबीआई के लिए तोता और दामाद जैसे word मीडिया में आने लगे हैं। रणजीत सिन्हा जो कि सीबीआई के डायरेक्टर रह चुके हैं इन्होंने on record कहा है कि सामाजिक कार्यक्रम में जब वो जाते हैं तो लोग वहाँ पे hoting करते हैं कि तोता आ गया.

सीबीआई का डायरेक्टर कैसे चुना जाएगा। इसको ले के भी rules हैं कि कोई एक आदमी decide नहीं करेगा कि सीबीआई का डायरेक्टर कौन होगा। बल्कि तीन लोग मिलकर decide करेंगे एक हमारे देश के पीएम, दूसरे opposition के leader और तीसरे सुप्रीम कोर्ट के judge और सुप्रीम कोर्ट के judge अगर busy अपनी जगह पे किसी और को भी भेज सकते हैं। मान लीजिए तीन candidates का nomination आया है सीबीआई के डायरेक्टर बनने के लिए। तो उसमें से किसी एक को ये लोग voting करके सीबीआई का डायरेक्टर बना देंगे।

लेकिन ये जो तीन candidates के nomination होंगे जिनमें voting होगी ये home ministry decide करके भेजेगी। तो घूम-फिर के बात वहीं पे आ गई कि central गवर्नमेंट के हाथ में है सारी power. ऐसे आप देखोगे कि opposition और ruling पार्टी में कितने मतभेद है। लेकिन इन सारी चीजों को लेकर दोनों के विचार same है। सीबीआई अपने हिसाब से होशियारी ना कर दे इसके लिए भी rules है.

मान लीजिए अगर सीबीआई एमएलए, एमपीज या किसी बड़े मंत्री पे इन्वेस्टीगेशन चाहती है अपनी मर्जी से तो सीबीआई को permission लेनी होगी। बिना permission के वो नहीं कर सकती। अगर सीबीआई को देश के एमपी’s पे केस करना है तो लोकसभा के स्पीकर से permission लेनी होगी। एमएलएस पे केस करना है तो स्टेट असेंबली के स्पीकर से परमिशन लेनी होगी। अगर मिनिस्टर्स पे केस करना है तो राज्यपाल से परमिशन लेनी होगी। इसमें सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि सारी permission देने वाले जो लोग हैं ये already पावर में होते हैं तो ऑन पेपर तो rules बहुत बढ़िया हैं लेकिन सारा कुछ चलता central गवर्नमेंट के हिसाब से ही है।

अगर आप rules पढ़ोगे तो आपको opposition के ऊपर दया आ जाएगी कि कितने बुरे हाल में फंसे opposition भी खुल के कुछ नहीं बोल सकता सीबीआई के working process पे क्योंकि जब वो power में थे तो वो भी यही करते थे. कुछ rules तो उनके खुद के बनाए हुए हैं. 2012 में CBI ने Maharashtra के CM को prosecute करने के लिए permission माँगी। उस particular time पे तो government ने permission नहीं दी. लेकिन जैसे ही सरकार बदली उनको permission मिल गयी.

narada sting operation case में भी जो opposition party के लोग थे उनके लिए लोकपाल ने permission दे दी थी और बाकियों के लिए permission नहीं दी गयी तो अगर कोई CBI director चाह के भी investigation करना चाहे अपने हिसाब से तो वो नहीं कर सकता।

Supreme Court ने जब ये सब देखा तो ये परमिशन लेने वाले जो rules हैं इनको हटा दिया। लेकिन ruling गवर्नमेंट ने इसके जवाब में prevention of corruption act में सेक्शन 17A amend कर दिया। जिसके बाद सीबीआई बिना सरकार की permission के किसी भी public servant की जाँच नहीं कर सकती। अब सरकार के लोग ही corruption करते हैं और वो ही अगर तय करेंगे कि सीबीआई किसकी जाँच करेगी तो कैसे काम चलेगा।

अगर आप इसको ध्यान से देखोगे तो सीबीआई जो इन्वेस्टिगेशन करती है उसका भी एक पैटर्न है। अगर रूलिंग गवर्नमेंट का आदमी है तो केस डिले हो जाता है। pending हो जाता है और जैसे ही सरकार जाती है तो इन्वेस्टिगेशन तेज हो जाती है।

इंडियन एक्सप्रेस के दीप्ति मान तिवारी ने court के record official documents agency के statements वगैरह हर चीज की research की और उसका जो data है वो मैं आपके साथ share कर देता हूँ. 18 साल के अंदर सीबीआई ने 200 बड़े नेताओं की जाँच की या arrest किया जिसमें 2004 से 2014 तक के data में ये था कि टोटल 72 बड़े नेताओं की inquiry हुई और जिसमें से 43 opposition के थे. वही 2014 से 2022 में CBI ने 124 बड़े नेताओं की inquiry की जिसमें से 118 opposition के नेता थे और ये जो भी cases मैं बता रहा हूँ. अगर इनमें से कोई नेता ऐसा कि जो अपनी पार्टी को छोड़ के जिसने ruling पार्टी join कर ली हो उसके खिलाफ जो cases थे या तो वो slow हो गए थे या खत्म कर दिए गए थे।

ये एक बार आप रुक करके देख लीजिएगा कि किस गवर्नमेंट ने किसके बड़े नेता से बदला लिया है। इससे पहले जो गवर्नमेंट थी उन्होंने इनको पकड़ा और अभी जो गवर्नमेंट है उन्होंने इनको पकड़ा लेकिन आप दोनों ही केस देखोगे तो इसमें मायावती जी दोनों ही पार्टी में common है। इनको किसी ने नहीं बख्शा। 2010 में जब पी चिदंबरम होम मिनिस्टर थे तो उन्होंने अमित शाह को जेल भिजवाया था। तब बीजेपी हल्ला करती रही कोई सुनवाई नहीं हुई। ऐसे ही 2019 में जब अमित शाह होम मिनिस्टर थे तो उन्होंने पी चिदंबरम को जेल भिजवाया था और इस बार कांग्रेस हल्ला करती रही और कुछ नहीं हुआ.

देखिए हर पार्टी का अलग style होता है सीबीआई को use करने का. इससे पहले जो गवर्नमेंट थी वो अपनी गठबंधन वाली सरकार के नेताओं को सीबीआई की धमकी देती थी. जब उनको कोई बिल पास करवाना होता था। कई नेता ऐसे भी थे जो खुल के सामने आ गए थे कि ये क्या तरीका हमसे हाँ करवाने का. हमारे ऊपर सीबीआई छोड़ दी जाती है। 2007 में जब left parties ने अपना support वापिस कर लिया था और सरकार गिरने वाली थी उस time में Mulayam Singh के ऊपर assets को लेकर सीबीआई का case डाल दिया गया था और इसके बाद मुलायम सिंह ने nuclear deal के वक्त voting की, सरकार को सपोर्ट किया और फिर आगे चल के उनका केस खत्म हो गया.

जब जगन रेड्डी ने आंध्र प्रदेश में अपने फादर की death के बाद ruling गवर्नमेंट के खिलाफ बातें शुरू कर दी थी तो उनके ऊपर भी सीबीआई का केस चालू हो गया था. 2013 में जब डीएमके ने यूपीए से अपना सपोर्ट वापस लेने का announce किया था तो सीबीआई ने दो दिन बाद ही MK Stalin के घर पे एक luxury कार के import से ले के जुड़े केस में raid डाल दी थी.

अभी जो ruling गवर्नमेंट है उनके ऊपर अलग तरीके का आरोप लगते हैं कि सीबीआई का use करके वो opposition के जो नेता हैं उनको अपनी पार्टी join करवा लेते हैं. ऐसे कई सारे cases हैं जहाँ पे opposition के जो नेता हैं उनके ऊपर सीबीआई की केस चालू होती है, जेल जाने के डर से वो फिर party छोड़ के ruling party join कर लेते है और फिर उनके खिलाफ case बंद हो जाते है. जैसे YSRCP की एक MP थी Kotapally Geeta इनके ऊपर 2015 में CBI का case file किया गया. फिर इन्होंने 2019 में party join कर
ली और case ठन्डे बस्ते में चला गया.

इसी तरीके से TDP के YS Chaudhary जो पहले union minister भी थे. 2 June 2019 को उनके ऊपर CBI की raid हुई और 19 June को उन्होंने BJP join कर ली और case hold पे चला गया. अभी recently Manish Sisodia ने भी आरोप लगाया था कि BJP ने उनको कहा है कि अगर वो बीजेपी join कर लेते हैं तो सीबीआई और ईडी की जाँच उनपे बंद कर दी जाएगी। अब देखिए सीबीआई को अगर इस पिंजरे से फ्री करना है तो इसको एक्ट ऑफ पार्लियामेंट के तहत एक लीगल structure तो देना ही होगा।

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