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मुगल और अंग्रेज़ों को कर्ज देने वाले कारोबारी घराने की कहानी: जगत सेठ घराना, Jagat Seth Story

Jagat Seth Story

Jagat Seth Story: 17वीं शताब्दी का हिंदुस्तान कला, व्यापार और सांस्कृतिक गतिविधियों में अपनी ऊंचाई पर था। उस समय भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक था। इस अर्थव्यवस्था का एक प्रमुख केंद्र बिहार का पटना था। पटना न केवल सिल्क, मसालों और अफीम के व्यापार का केंद्र था, बल्कि इसे गंगा के किनारे होने का भी जबरदस्त फायदा मिला।

यहां की व्यापारिक समृद्धि ने कई साहूकारों और कारोबारी घरानों को जन्म दिया। इन्हीं में से एक था, जगत सेठ घराना, जिसने अपने समय में इतना प्रभावशाली स्थान हासिल किया कि मुगलों और ईस्ट इंडिया कंपनी जैसे ताकतवर समूह भी इनसे कर्ज लेते थे। लेकिन समय के साथ ऐसा क्या हुआ कि यह घराना इतिहास के पन्नों तक ही सिमट गया? आइए, इसकी पूरी कहानी समझते हैं।

Jagat Seth Story

किस तरह शुरू हुआ जगत सेठ का सफर?

जगत सेठ घराने की शुरुआत राजस्थान के नागौर से हुए हीरानंद साहू ने की। साधारण से पारिवारिक व्यापार को छोड़ते हुए हीरानंद ने नए अवसर खोजे और 1662 में पटना पहुंचे। शाहजहां के शासनकाल में पटना व्यापार का प्रमुख केंद्र बन चुका था, जहां साहूकार, बैंक और व्यापारिक कोठियां व्यवस्थित ढंग से कार्यरत थीं।

हीरानंद ने पटना में एक छोटी सी कोठी (बैंक) की शुरुआत की, जो धीरे-धीरे व्यापारियों के बीच भरोसेमंद बन गई। इसी बीच, विदेशी कंपनियां भारत में अपने पैर जमाने की कोशिश कर रही थीं। ईस्ट इंडिया कंपनी को अपने व्यापार—विशेषकर शोरा (पोटेशियम नाइट्रेट) की खरीदारी—के लिए पैसे की जरूरत पड़ने लगी। ऐसे में कंपनी ने हीरानंद साहू से कर्ज लेना शुरू किया।

माणिक चंद और व्यापार का विस्तार

हीरानंद के बेटे माणिक चंद ने व्यापार का विस्तार किया। ढाका, जो उस समय सूती कपड़ा और अफीम व्यापार का केंद्र था, वहां माणिक चंद ने अपनी बैंकिंग प्रणाली स्थापित की। उनकी मित्रता बंगाल के दीवान मुर्शीद कुली खान से हो गई, जिससे उनकी प्रतिष्ठा और भी बढ़ी।

मुर्शीद कुली खान ने माणिक चंद को बंगाल के आर्थिक लेनदेन की ज़िम्मेदारी सौंपी। समय के साथ, मुर्शीद कुली खान और माणिक चंद ने मकसूदाबाद (अब मुर्शिदाबाद) को आर्थिक और सांस्कृतिक केंद्र बनाया।

जगत सेठ की उपाधि और प्रसिद्धि

मुगल शहजादे फरूख सियर ने माणिक चंद को “नगर सेठ” की उपाधि दी। 1714 में माणिक चंद की मृत्यु के बाद उनका पोता फतेह चंद इस घराने के कारोबार को संभालने आया। फतेह चंद को बादशाह महमूद शाह से “जगत सेठ” की उपाधि मिली, जिसका अर्थ था “दुनिया का बैंकर”।

इस दौरान फतेह चंद की भूमिका सिर्फ एक साहूकार तक सीमित नहीं रही। वे विदेशी व्यापारियों से लेकर किसानों, जमींदारों और राज्य के लेन-देन तक में शामिल थे। उनकी शक्तियां इतनी थीं कि ईस्ट इंडिया कंपनी और फ्रेंच ईस्ट इंडिया कंपनी तक उनके साथ मधुर संबंध बनाए रखते थे।

साजिशें, ईस्ट इंडिया कंपनी और पतन

जगत सेठ घराने का पतन उस समय शुरू हुआ, जब बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला ने उनसे बड़ा कर्ज मांगा। मना किए जाने पर नवाब ने महताब राय को अपने दरबार से हटा दिया। इसी वजह से महताब राय ने मीर जाफर के साथ मिलकर अंग्रेजों का समर्थन किया।

प्लासी के युद्ध (1757) में मीर जाफर ने अंग्रेजों की मदद की और सिराजुद्दौला को परास्त किया। लेकिन अंग्रेजों ने मीर जाफर को भी धोखा दिया और सत्ता पूरी तरह उनके हाथ में चली गई। इस साजिश ने न केवल बंगाल को बदल दिया, बल्कि जगत सेठ घराने पर भी गहरी चोट की।

मीर कासिम ने भी मदद के लिए जगत सेठ भाइयों के पास हाथ बढ़ाया, लेकिन जब उसे भरोसा टूटा तो उसने दोनों भाइयों की हत्या करवा दी।

आखिरकार, इतिहास का हिस्सा बना

जगत सेठ घराना, जो कभी भारत का आर्थिक स्तंभ था, कालांतर में सत्ता और राजनैतिक साजिशों का शिकार बन गया। अंग्रेजों ने उनके व्यापार और टकसाल को अपने हाथों में ले लिया। उनके वंशज पेंशन के लिए आवेदन करने को मजबूर हो गए, जो बाद में बंद कर दी गई।

आज मुर्शिदाबाद में उनकी हवेली संग्रहालय के रूप में संरक्षित है। यहां उनके समय की संपत्तियां, सिक्के, मलमल, सोने-चांदी की वस्त्र सामग्री और हथियार देखे जा सकते हैं।

निष्कर्ष

जगत सेठ घराने की कहानी सिर्फ समृद्धि की नहीं, बल्कि सत्ता, साजिशों और विदेशी हस्तक्षेप की भी है। यह घराना इतिहास के उन पन्नों में दर्ज है, जो हमें सिखाता है कि व्यापार के साथ-साथ राजनीतिक स्थिरता कितनी अहम होती है। उनकी संपत्ति और ताकत भले ही खत्म हो गई हो, लेकिन उनकी विरासत आज भी इतिहास के जिज्ञासु पाठकों के दिलों में जीवित है।

क्या आपने भी कभी ऐसे किसी घराने के बारे में सुना है? अपनी राय नीचे कमेंट्स में ज़रूर साझा करें।

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