ओडिशा में 3 ट्रेन टकराईं, 300 से ज्यादा मौतें, 1000 से ज्यादा घायल, हादसे का जिम्मेदार कौन, Odisha Train Accident

Who caused Odisha Train Tragedy

Odisha Train Accident: उड़ीसा के बालासूर में हुई रेल दुर्घटनाओं से पूरा देश स्तब्ध है। दो यात्री गाड़ियां और एक मालगाड़ी के दुर्घटना ग्रस्त होने के कारण 300 से अधिक लोगों की मौत हो गई है और घायलों की संख्या करीब एक हजार बताई जा रही है। इनमें से कई गंभीर रूप से भी घायल हैं। कहा जा रहा है कि ये दुर्घटना भारत की रेल दुर्घटनाओं के इतिहास की सबसे भयंकर दुर्घटनाओं में से एक हो सकती है।

Odisha Train Accident

Odisha Train Accident

हावड़ा से चेन्नई जाने वाली शालीमार, Chennai Coromandel Super Fast Express शानदार ट्रेन के रूप में मानी जाती है। ये वो ट्रेन है जिसने सही मायने में पूरब और उत्तर को दक्षिण से जोड़ा है। इस ट्रेन की रफ्तार और रुट की खूबसूरती को लेकर लोग खूब बातें किया करते थे। इसलिए ये दुर्घटना केवल उस वक्त सवार लोगों की जिंदगी के साथ नहीं हुई है। उन लोगों के साथ भी घट गई है जो इस train के यात्री रहे हैं। उनकी कल्पनाओं में किसी खूबसूरत परी की तरह आबाद Coromandel Super Fast Express को इस हाल में देखना उन सभी के होश उड़ गए होंगे, जिन्होंने कभी इस super fast से सफर किया है।

बालासोर में हुई दुर्घटना में एक और train हादसे का शिकार हो गई. बालासोर के पास सर एम विश्वेश्वरैया टर्मिनल हावड़ा सुपर फ़ास्ट एक्सप्रेस बाहानगा बाजार स्टेशन पर derail हो गई. पटरी पर कोच बिखरे हुए हैं. बगल के ट्रैक पर शालीमार चेन्नई कोरुमंडल सुपरफास्ट एक्सप्रेस उल्टी दिशा से आ रही थी और इनसे टकरा गई.

कोरुमंडल एक्सप्रेस के 12 coach पटरी से उतर गए और कुछ derail coach के साथ वाले ट्रैक पर खड़ी हुई एक मालगाड़ी से जा टकराए। दोनों ट्रेनों की 17 बोगियां पटरी से उतर गयी और भयंकर रूप से क्षतिग्रस्त हो गई। यह सब शुरूआती जानकारियां हैं, अभी और जानकारी आती रहेगी। पहले से एक ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हुई तो उस समय किसी भी दिशा से आती-जाती ट्रेन को सिग्नल तो गया ही होगा।

क्या कोरोमंडल के ड्राइवर को सिग्नल नहीं गया? मालगाड़ी के ड्राइवर को सिग्नल गया था? बगल के ट्रैक से सुपर फ़ास्ट एक्सप्रेस कैसे आ गई? कितनी देर पहले हावड़ा सुपरफास्ट एक्सप्रेस दुर्घटनाग्रस्त हुई थी? मालगाड़ी क्यों खड़ी रही? इन सबकी जाँच होगी। जब तक जाँच की रिपोर्ट आएगी आप इस भयावह दुर्घटना के असर से दूर हो चुके होंगे।

प्रधानमंत्री और रेल मंत्री का दौरा हो चुका है. जाँच के आदेश दे दिए गए हैं. जो इस मौके पर ही दे दिए जाते हैं. उन परिवारों के साथ हमारी भी संवेदनाएं हैं जिनके लोग इस दुर्घटना में मारे गए हैं और घायल हुए हैं. इस दुर्घटना की खबर आते ही कवच को लेकर सवाल उठने लगे और रेल मंत्री के इस संबंध में कई वीडियो वायरल किए जाने लगे। जिसमें वे कवच के बारे में बता रहे हैं कि दो ट्रेनें जब आमने-सामने होंगी, एक ही पटरी पर तो चार सौ मीटर पहले रुक जाएंगी।

पूछा जा रहा है कि इस route पर कवच था या नहीं? जवाब आ गया है, इस route पर कवच नहीं था. रेलवे के प्रवक्ता अमिताभ शर्मा का मीडिया में बयान है कि इस रूट पर ही कवच नहीं है. बताइए ये कितना महत्वपूर्ण रूट है और यहाँ कवच तक नहीं। कोरोमंडल सुपर फास्ट एक प्रतिष्ठित ट्रेन है इसमें कवच नहीं और मंत्री जी प्रचार में लगे हैं कि कवच मिल गया है. ठीक से कवच अभी लगा नहीं कि शहर में ढिंढोरा पीटने लग गए. अगर कवच इस पर रूट पर होता तो शायद आज 300 से अधिक लोग नहीं मारे जाते।

ट्रेनों की टक्कर को रोकने के लिए दुनिया भर में कई technology है। कई साल से हम लोग इस पर सुनते आ रहे हैं कि टक्कर रोकने के यंत्र लगाए जाएंगे। इनकी कोई सूचना नहीं होती है, अब बस कवच-कवच होने लगा है। इस कवच का हाल आगे बढ़ने से हम पहले ही आपको बता देना चाहते हैं। 11 अक्टूबर 2022 के टाइम्स ऑफ इंडिया में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस की तरफ से रेल टेक्नोलॉजी के सलाहकार ललित त्रिवेदी का बयान छपा है, उन्होंने कहा है कि कुछ ट्रेनों में कवच लगा देने से नई technology पूरी तरह से काम नहीं करेगी। पूरे रेल network को इससे जोड़ना होगा।

1500 locomotive और self propel ट्रेनें हैं, 70000 किलोमीटर रेल route है, 7000 रेलवे स्टेशन है और 15000 level crossing है। इन सबको कवच system से जोड़ने में करीब एक लाख करोड़ का खर्चा आएगा। जिस route पर भारत के इतिहास के भीषण रेल दुर्घटना हुई है, उस पर कवच नहीं है। क्यों नहीं है, इसे समझना जरूरी है।

70000 किलोमीटर रेल नेटवर्क को कवच के तहत लाने में एक लाख करोड़ का खर्चा बताया जाता है। क्या आप जानते हैं कि सरकार ने अभी तक इस पर कितना पैसा दिया है? 2022-23 में कवच के लिए मात्र 273 करोड़ का बजट प्रावधान था? उसके पहले के वित्त वर्ष में 133 करोड़ का ही? जबकि इस पर खर्च आना है एक लाख करोड़ का। आप खर्च कर रहे हैं 500 करोड़ भी नहीं और दिन रात propaganda ऐसे कर रहे हैं जैसे कवच लागू हो गया है और रेल सुरक्षित हो गया।

मौजूदा केंद्र सरकार द्वारा काम शुरू होते ही प्रचार ऐसे होता है जैसे काम खत्म हो चुका है। मंजूरी की खबरों को भी हैडलाइन में ऐसे चमका दिया जाता है जैसे काम पूरा हो गया। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ने अपने ही इंजीनियर्स को इंस्पायर करके एक ऐसा सिस्टम डेवलप किया जो आज पुरे वर्ल्ड में उसकी चर्चा हो रही है, जैसे वंदे भारत की चर्चा हो रही है, वैसे ही कवच की चर्चा हो रही है।

मार्च 2022 के इस बयान में रेल मंत्री कह रहे हैं कि इंजीनियर को प्रधानमंत्री ने प्रेरित किया फिर तो patent भी उन्हीं के नाम से करवा देते। भारत की अपनी तकनीक है तो patent होनी भी चाहिए इस कवच के बजट का हाल आपने देखा। इसे मंत्री जी नहीं बता रहे है मगर इस पर ज़रूर जोर देंगे कि प्रधानमंत्री ने इंजीनियर को प्रेरित कर कवच सिस्टम बनवा दिया। पिछले साल तो कह रहे थे कि सारी दुनिया में चर्चा है लेकिन आपकी इतनी बड़ी-बड़ी ट्रेनों में अभी तक कवच भी नहीं है।

पिछले साल के बजट यानी 2022-2023 के बजट को पेश करते हुए वित्त मंत्री ने कहा कि आत्मनिर्भर भारत के तहत 2000 किलोमीटर रेल रुट को कवच के अंदर लाया जाएगा, जबकि 70000 किलोमीटर टोटल रेल रुट है। 2000 किलोमीटर तो बहुत कम हुआ। प्रचार इतना ज्यादा और काम के लिए पैसा इतना कम। कितने साल से टक्कर को रोकने के यंत्रों को लगाने की बात हो रही है। अभी चार-पांच सौ करोड़ का बजट देकर प्रचार ऐसे हो रहा है जैसे पूरे रेल नेटवर्क को कवच मिल गया है।

29 मार्च 2023 को रेल मंत्री ने लोकसभा में जवाब दिया है कि कवच के विकास पर 22 करोड़ का खर्च किया गया है और अब तक 1455 किलोमीटर के root पर कवच लगा है। 3000 किलोमीटर पर काम जारी है, ये हाल है। इसके पहले भी तो कई रेल बजट में दो ट्रेनों की टक्कर रोकने के यंत्र लगाने की बात हुई थी? उनकी रिपोर्ट कहाँ है? पीआईबी ने 2003 में anti-collision device के बारे में लिखा है. तब रेल राज्य मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने हैदराबाद में 400 किलोमीटर लंबी रेल लाइन का परीक्षण किया था। वाजपेयी सरकार की बात है। अब तो इस तरह कवच-कवच किया जा रहा है जैसे ये technology पहली बार देखी-सुनी गई है। इसके पहले कोई technology नहीं थी.

2 जून को अश्विनी वैष्णव बीजेपी के मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। कह रहे थे कि शॉर्टकट की राजनीति देश का नुकसान करती है। हम भी तो वही पूछ रहे हैं कि एक लाख करोड़ चाहिए कवच के लिए, हजार करोड़ भी ठीक से नहीं दिए गए और प्रचार करने लगे। क्या ये शॉर्टकट नहीं है? यूपीए के सरकार के दस साल को lost decade बोल रहे हैं मंत्री जी यानी हमने दस साल गवा दिए तो मोदी सरकार के दस साल में क्या हासिल कर लिया? एक वंदे भारत के अलावा उनके पास दिखाने के लिए रेलवे में और क्या है? पूछिए ये सवाल।

वन्दे भारत ट्रेन एक world class train बनी बिलकुल एक ऐसी ट्रेन जिसके बारे में कभी सोचा भी नहीं जा सकता था. 160 और 180 की जो speed होती है उस speed पे train को design करना दुनिया में केवल आठ देशों के पास ये क्षमता है. जो कि इतनी complex मशीन को डिज़ाइन कर सकते हैं, successfully डिज़ाइन कर सकते हैं। डिज़ाइन की बात एक है, आत्मनिर्भर भारत की बात है ये। साथ ही साथ जो passengers को इससे comfort आया और passengers को जिस तरह से एक नया साधन मिला वो एक बहुत बड़ी बात है।

हम मौके की संवेदनशीलता को समझते हैं, लेकिन आज राहत बचाव कार्य के नाम पर रेल मंत्री सवालों से नहीं बच सकते हैं, राहत और बचाव कार्य उनके मंत्रालय के अधिकारी और कर्मचारी कर रहे हैं, वो रात भर जागे हैं। प्रधानमंत्री का दौरा हो या उनका ही दौरा हो इसके बहाने वे सवालों से नहीं बचेंगे। क्योंकि फिर मौका नहीं मिलेगा और हम रेलवे के भीतर की हालत को समझने का एक बड़ा मौका गंवा देंगे। दुर्घटना क्यों हुई?
रेलवे की हालत क्यों खराब है?

इन सवालों से परिजनों को राहत ही मिलेगी कि कोई पत्रकार रेल मंत्री से जवाब तो मांग रहा है कि उनके अपने क्यों मरे? वंदे भारत ट्रेन को लेकर जिस तरह का प्रोपेगेंडा चल रहा है। उसे लेकर बात जरूरी है क्या यही एक ट्रेन है भारत में? क्या सारा भारत इसी से चल रहा है? आप देखिए पुराने तस्वीरें या वीडियो कि वंदे भारत नई ट्रेन है, मगर यही एक ट्रेन नहीं है, बाकी ट्रेनों में लोग कैसे सफर कर रहे हैं? इसकी रिपोर्टिंग बंद कर दी गई है. दावा किया जाता है कि 160 और 180 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से वंदे भारत चलती है, क्या चल रही है, अखबारों में तो यही छपा है कि इसकी औसत रफ़्तार 70 किलोमीटर प्रति घंटा से भी कम है.

हम वंदे भारत का जिक्र इसलिए कर रहे हैं कि पिछले एक साल से केवल इसी ट्रेन का उद्घाटन प्रधानमंत्री करने में लगे हैं। रेल मंत्री नहीं करते हैं। इंडियन एक्सप्रेस में तो खबर आई है कि 16 बोगी की एक ट्रेन होती है, लेकिन बोगियां कम है, तो उद्घाटन के लिए 8-8 बोगी की वंदे भारत लांच होने लगी है, नई ट्रेनें आती रहती हैं, आनी भी चाहिए, लेकिन इतना भी तो दिखावा नहीं होना चाहिए। हालाँकि कोई भी सरकार दुर्घटना के तुरंत बाद
मुआवजे का ऐलान कर ही देती है।

लेकिन इस तरह के भयंकर हादसों के वक्त रेल मंत्री को ट्वीट करने से बचना चाहिए था कि मृतकों को दस लाख रुपए दिए जाएंगे। गंभीर रूप से घायलों को दो लाख दिए जाएंगे। सभी सरकारें अमूमन ऐसा करती हैं। लेकिन उस वक्त जब लोग अपने परिजनों का हाल-चाल खोज रहे थे। मरने का समाचार मिल रहा था, दस लाख के ऐलान को रोका जा सकता था, यह राशि चुपचाप भी दी जा सकती थी, कहीं भी दुर्घटना घट सकती है।

लेकिन यह दुर्घटना क्यों हुई? हम जितना इस बात को लेकर में हैं, उतना ही रेलवे की हालत को लेकर अंधेरे में हैं। रेल बजट तो कब का समाप्त हो गया, खूब आप लोगों ने ताली बजाई, कम से कम उस बहाने रेलवे की कमियों पर चर्चा हो जाती थी और मीडिया में रेल बजट के आसपास तरह-तरह की रिपोर्ट आती थी, हमें याद है यूपीए के समय रेल बजट से पहले और बाद में उसी दिन लालू प्रसाद यादव का कई चैनलों पर इंटरव्यू चलता था, अलग-अलग इलाकों में रेल की उपेक्षा को लेकर उनसे सवाल पूछे जाते, तो पता चलता था कि मंत्री जी ने किस क्षेत्र पर ज्यादा ध्यान दिया और कौन सा क्षेत्र अनदेखा रह गया.

लेकिन अब तो आप देखेंगे कि रेल मंत्री ना तो उद्घाटन में नजर आते हैं, ना रेल को लेकर खुली प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवाल-जवाब तो लगता है जैसे बंधी हो चुका है, क्योंकि पार्टी कवर करने वाला रेलवे के बारे में क्या सवाल पूछेगा। अब देखिए जिस शाम बालासौर में दुर्घटना हुई, उस दिन सुबह-सुबह रेल मंत्री बीजेपी के कार्यालय में अपने मंत्रालय को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे। बेहतर ये भी होता कि अपने मंत्रालय में भी प्रेस कॉन्फ्रेंस करते। जहाँ रेल मंत्रालय कवर करने वाले पत्रकारों को सवाल पूछने का मौका मिलता क्योंकि उन्हें ज्यादा पता होता है।

बीजेपी के दफ्तर में वही पत्रकार होंगे जो दिन-रात बीजेपी कवर करते हैं। 2 जून की दुर्घटना के बाद कहा जाने लगा कि कई साल बाद दुर्घटना हुई है। बालासोर की इन तस्वीरों को देखकर हमें भी लगा कि 2017 के बाद इतनी बड़ी दुर्घटना हुई है। लेकिन दो दिन बाद यानी इकतीस मई के द हिंदू अखबार में एस विजय कुमार की एक रिपोर्ट ने ऐसी धारणाओं को गलत साबित कर दिया। इस रिपोर्ट के आधार पर रेल मंत्री से आज ही सवाल होना चाहिए था कि क्या रेलवे में लोको पायलट की कमी है? क्या ट्रेन चलाने वालों को 12 घंटे से ज्यादा की duty कराई जा रही है?

अगर हाँ तो इसका ट्रेन की सुरक्षा पर या उनकी सेहत पर क्या असर पड़ रहा है? विजय कुमार ने लिखा कि सूत्रों के अनुसार रेलवे में 2021-21 में 35 रेल दुर्घटनाएं हुई हैं. जिनमें या तो लोग मारे गए हैं या हताहत हुए हैं या जिनमें रेलवे को नुकसान हुआ है और 2022-23 में इनकी संख्या बढ़कर 48 हो गई। बिना नुकसान वाले साधारण दुर्घटनाओं की संख्या 2022-23 में 162 थी. 35 मामलों में signal देखने में चूक हुई जिसे signal passed at danger एसपीएडी कहते हैं। क्या ये छोटी-छोटी दुर्घटनाएं किसी बड़ी दुर्घटना की तरफ इशारा नहीं कर रही थी.

दी हिंदू के विजय कुमार ने इसके कारणों के बारे में लिखा है कि रेलवे में कर्मचारियों की कमी के कारण ये दुर्घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। ट्रेन चलाने वाले ड्राइवरों की संख्या कम है। loco pilot को 12 घंटे की न्यूनतम duty करनी पड़ रही है। उन्हें पहले की तरह आराम नहीं मिलता। रेलवे बोर्ड ने इन खाली पदों को तुरंत भरे जाने पर जोर दिया है। बल्कि इस रिपोर्ट के अनुसार urgent तौर पर ऐसा करने के लिए कहा है। तो लोको पायलट के काम करने के घंटे को कम किया जा सके.

इस रिपोर्ट ने इस धारणा को ध्वस्त कर दिया की दुर्घटनाएं बंद हो गई है बल्कि होती रही है. बस इतनी बड़ी दुर्घटना नहीं हुई तो हमने ध्यान देना बंद कर दिया। क्यों लोको पायलट के पद खाली है इस सवाल को इसी वक्त पूछा जाना चाहिए जब लोगों का ध्यान बालासोर की दुर्घटना को लेकर सबसे अधिक है. रेल मंत्री को अपने मंत्रालय के बारे में प्रेस कॉन्फ्रेंस तुरंत ही करनी चाहिए। इन सवालों के बारे में उनसे पूछा जाए और जवाब आए तो लोग इस घटना से जोड़कर देखें।

लोगों की जानें गई हैं, बचाव कार्य के नाम पर रेल मंत्री जवाबदेही से नहीं बच सकते। मंत्री बताए कि railway board ने कितनी बार चेतावनी दी. कब कब दी कि loco pilot के पद खाली है और इन पदों को भरने में इतना समय क्यों लग रहा है. जब railway board zonal manager ने चिंता जताई तो उन्होंने क्या action लिया Hindu की report में लिखा है कि एक उच्च स्तरीय बैठक में loco pilot की कमी को लेकर चिंता जताई गयी.

इस खबर में लिखा है कि railway board ने मैनेजरों को आदेश दिए कि loco pilot के काम के घंटों का सही से मूल्यांकन कीजिए खासकर east रेलवे और south east रेलवे के पायलट के काम के बारे में सुनिश्चित कीजिए कि किसी भी हाल में 12 घंटे से अधिक की duty ना हो. 12 घंटे की duty क्या ज्यादा नहीं है. train चलाने के लिए एकाग्रता की भयंकर जरूरत होती है. थकान के कारण उस पर असर तो पड़ता ही होगा।

हिंदू की रिपोर्ट में लिखा है कि ईस्ट कोस्ट रेलवे और साउथ ईस्ट रेलवे के लोको पायलट यानी जो ट्रेन चलाते हैं. उनके काम करने के घंटों की समीक्षा की जाए। ये कहा गया था उनसे ज्यादा काम कराया जा रहा है। इसे ध्यान से पढ़िए इसमें यही लिखा है कि साउथ ईस्ट सेंट्रल रेलवे में लोको पायलट की duty बारह घंटे से अधिक की होने लगी है। मार्च, अप्रैल और मई के पहले हिस्से में दक्षिण पूर्व मध्य रेलवे में 12 घंटे से अधिक ड्यूटी करने वाले लोको पायलट का आंकड़ा कुछ इस प्रकार है।

मार्च में 36 प्रतिशत, अप्रैल में 35 प्रतिशत और मई के पहले हिस्से में 33% loco pilot को 12 घंटे से अधिक duty करनी पड़ी। मतलब इतनी कमी है loco pilot की उनसे ज्यादा से ज्यादा duty कराई जा रही है. अगर इस दुर्घटना के पीछे pilot की चूक मानी जाती है तो इस हिंदू की रिपोर्ट से जोड़कर देखिए। हिंदू ने लिखा है कि all India loco running staff association का कहना है कि दक्षिण रेलवे लोको पायलट के 392 पद खाली हैं।

ट्विटर पर ही लोग ट्वीट करते रहते हैं कि सहायक लोको पायलट की परीक्षा पास कर ली है. मगर ट्रेनिंग का इंतजार हो रहा है। क्यों दो-दो साल लग जाते हैं. भर्ती की प्रक्रिया पूरी होने में और रेल मंत्री ट्विटर पर छात्रों को जवाब तक नहीं देते हैं। तो आज क्या देंगे जवाब? मार्च 2022 में लोकसभा में लिखित जवाब में रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया था कि शुरुआती स्तर पर रेलवे में करीब डेढ़ लाख पद खाली हैं। उत्तर रेलवे में 19000 से अधिक पद खाली दक्षिण मध्य रेलवे में 17000 से अधिक इसी साल अप्रैल में उत्तर पश्चिम रेलवे में 248 loco pilot की बहाली का विज्ञापन जारी हुआ है।

इसी साल यानी 22 मार्च 2023 को लोकसभा सांसद कड़ीमुई करुणा निधि और नटराजन पीआर के सवाल के जवाब में अश्विनी वैष्णव ने जानकारी दी है कि रेलवे में खाली non gazetted पदों की संख्या 3 लाख 11 हजार 448 है। विपक्ष की प्रतिक्रिया संयमित है। लेकिन विपक्ष को इस्तीफे से आगे की भी बात करनी चाहिए। बताना चाहिए कि उसके सांसदों ने रेल की सुरक्षा को लेकर संसद में क्या सवाल पूछे, क्या जवाब मिला, आपको लगता है कि यह सरकार 10 दिन के बाद इस मामले पर खुली प्रेस कॉन्फ्रेंस करेगी। तब सबको सवाल पूछने का मौका मिलेगा, इस भ्रम में ना रहें, तो अच्छा है।

संदीप पाठक आम आदमी पार्टी के सांसद हैं। उन्होंने ट्वीट किया है कि मैं रेलवे की स्थाई समिति का मेंबर हूँ. इसकी पिछली मीटिंग में सारी दिखावटी बातें बताई गई. मैंने मीटिंग में कहा कि सबसे पहले सेफ्टी से जुड़े हुए काम पूरे हो. मैंने कहा कि एंटी कोलिजन, एंटी डिरेलमेंट यंत्र अभी तक सभी ट्रेनों में नहीं है। पहले ट्रेन सुरक्षा के सभी यंत्र लगाइए बिना सुरक्षा यंत्र के रेलवे भगवान भरोसे चल रही है. इस तरीके से सिर्फ पीआर और दिखावे से देश बर्बाद हो जाएगा।

कम से कम सांसद संदीप के इस ट्वीट से कुछ तो दिखा कि सुरक्षा को लेकर हालत क्या है? मंत्री को आज ही इस पर जवाब देना चाहिए था। विपक्ष को आजकल ही रेलवे की हालत पर बोलना चाहिए। नहीं बोलने की अगर किसी ने इस देश में मर्यादा तोड़ी है, तो उसमें सबसे अधिक बार तोड़ने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही अव्वल आएंगे। नवंबर 2016 में कानपुर में भीषण रेल दुर्घटना हुई। तुरंत प्रधानमंत्री मोदी ने बयान दे दिया कि सीमा पार की साजिश है.

साल यूपी विधानसभा का चुनाव होने वाला था। गोंडा में भाषण देते हुए प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान की तरफ इशारा कर दिया। एनआईए को जाँच सौंप दी गई। बाद में रेलवे सुरक्षा कमिश्नर के पैनल की रिपोर्ट आई कि डिब्बे में जंग लगने के कारण वेल्डिंग कमज़ोर हो गई थी. जिसके कारण ऐसा हुआ। हालाँकि इस रिपोर्ट ने भी कहा था कि एनआईए की जाँच अगर सीमा पार साजिश को ख़ारिज कर दे तभी इस रिपोर्ट के तथ्यों को सही माना जाए। ये हालत है मंत्रालय की रिपोर्ट का.

2020 के अक्टूबर तक एनआईए की रिपोर्ट नहीं आई थी, ऐसा इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट से पता चलता है, इसके बाद रिपोर्ट आई हो ऐसी कोई खबर हमें नहीं मिली, हम पुष्टि नहीं कर सकते। यही वक्त है कि हम रेल मंत्री से सवाल करें, वरना जवाब नहीं आएगा। आधे समय तो गोदी मीडिया पर एंटी मुस्लिम डिबेट चलता है। एंटी राहुल डिबेट चलता है। रेल पर कब चर्चा आपने देखी है? पिछले एक खबर है नौ महीने में रेलवे के 77 वरिष्ठ अधिकारियों ने समय से पहले रिटायरमेंट ले लिया।

खबरों में तो यही लिखा है कि बेहतर काम का दबाव नहीं झेल पाए. कमाल है ऐसा प्रोपेगेंडा चल रहा है, 77 सीनियर ऑफिसर ज्यादा काम करने का दबाव नहीं झेल पाए। इस तरह से आँखों में धूल झोंकी जाती है। मुझे नहीं लगता कि ये बात पूरी तरह से सही है। बेहतर काम का इतना ही दबाव होता तो आज उस रूट के नेटवर्क को कवच से लैस कर दिया गया होता, जिस पर इतनी भीषण दुर्घटना हुई है। आज के दिन ये सवाल पूछना चाहिए कि क्या आप जानते हैं कि रेलवे के भीतर क्या हो रहा है, दुर्घटनाओं को रोका नहीं जा सकता है? मगर छवि चमकाने में सारा सिस्टम लगा दिया गया है? इसे तो खुले आँखों से देखा ही जा सकता है.

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