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शराबबंदी: असर, इतिहास और असलियत, History of Liquor Ban in India

History of Liquor Ban in India: अगर शराबबंदी की बात करें, तो ये एक ऐसा विषय है जिस पर पाबंदियां लगती रही हैं और बहसें होती रही हैं। इसे कभी सभ्यताओं की खलनायिका कहा गया, तो कभी सामाजिक विकास के लिए जरूरी कदम। लेकिन क्या ये सच में कारगर है? और अगर नहीं, तो क्यों नहीं?

शराबबंदी का मुद्दा सिर्फ स्वास्थ्य और अपराध से जुड़ा नहीं है, बल्कि यह राजनीति, अर्थव्यवस्था और समाज में गहरे प्रभाव छोड़ता है।

History of Liquor Ban in India

शराब और इसका इतिहास: विवादों का पानी

शराब, जिसका मतलब अरबी में “फसाद का पानी” है, हमेशा से ही दो ध्रुवीय चर्चाओं में रही है। जहां एक तरफ महफिलों की रौनक रही है, वहीं इसे समाज और स्वास्थ्य के लिए घातक माना गया।

महात्मा गांधी ने इसे सदैव निषिद्ध बताया और कई धर्मगुरुओं ने इसे पाप की श्रेणी में रखा। सरकारों ने इस पर बैन लगाया, पर इसका जादू ऐसा है कि कानून, तर्क और नैतिकता इसे रोक नहीं पाए।

शराबबंदी के पीछे के सिद्धांत

शराबबंदी को समझने के लिए दो प्रमुख आर्थिक सिद्धांत सामने आते हैं:

  1. Helping Hand Theory
    जब सरकार पब्लिक वेलफेयर के लिए बाजार में हस्तक्षेप करती है। उदाहरण के लिए, शराबबंदी का उद्देश्य लोगों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाना, परिवारों को बचाना और सड़क हादसों को कम करना होता है।
  2. Grabbing Hand Theory
    यह तब लागू होती है जब बैन का असली उद्देश्य कुछ खास वर्गों या सरकार के फायदे के लिए होता है। बड़े शराब कारोबारी देसी शराब पर बैन की मांग कर सकते हैं, या राजनेता इसे वोट पाने का जरिया बना सकते हैं।

भारत में शराबबंदी: एक नजदीकी नजर

भारत में शराबबंदी का इतिहास उतना ही पुराना है जितना खुद आजादी का। देश में 14 राज्यों ने समय-समय पर शराबबंदी लागू की, लेकिन गुजरात को छोड़कर अधिकतर जगह ये लंबे समय तक नहीं टिक पाई।

कुछ उदाहरण:

  • पंजाब (1996): मात्र एक साल में शराबबंदी खत्म हो गई।
  • आंध्र प्रदेश: 1937-1968 तक बैन रहा। 1994 में फिर शुरू किया गया लेकिन तीन साल बाद हटा दिया गया।
  • मनीपुर: 30 सालों तक बैन रहा लेकिन 2023 में खत्म कर दिया गया।
  • बिहार: यहां 2016 में शराबबंदी लागू की गई लेकिन ब्लैक मार्केट और तस्करी बड़ी चुनौती बन गई।

शराबबंदी से स्वास्थ्य और समाज पर असर

स्वास्थ्य से जुड़े बदलाव

“द लैंसेट” जर्नल की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार:

  • बिहार में शराबबंदी के बाद शराब पीने वाले पुरुषों की संख्या में लगभग 50% की कमी आई।
  • मोटापा, हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसे मामलों में बिहार ने पड़ोसी राज्यों से बेहतर प्रदर्शन किया।

महिलाओं पर प्रभाव

शराबबंदी के बाद बिहार में घरेलू हिंसा के मामले कम हुए:

  • इमोशनल वायलेंस में 17% की कमी।
  • सेक्सुअल वायलेंस में 43% की गिरावट।

हालांकि, सीमा से लगे जिलों में तस्करी के कारण ये फायदे सीमित रहे।

शराबबंदी और अर्थव्यवस्था

राजस्व हानि शराबबंदी की सबसे बड़ी चुनौती है।

  • बिहार को शराबबंदी से हर साल 4,000 करोड़ रुपये के टैक्स का नुकसान हुआ।
  • नागालैंड में हर साल 200-300 करोड़ का एक्साइज रेवेन्यू लॉस होता है।
  • ऐसे राज्यों में संगठित अपराध और काला बाजारी बढ़ी है।

शराबबंदी की सफलता पर सवाल

मध्य प्रदेश ने हाल ही में 17 जिलों में शराबबंदी लागू की। लेकिन क्या यह पूरी तरह सफल होगी?

  • क्या सरकार तस्करी और ब्लैक मार्केट पर लगाम लगा पाएगी?
  • वित्तीय घाटे की भरपाई कैसे होगी?
  • क्या शराब से जुड़े अपराधों में कमी आएगी?

इन सवालों का जवाब भविष्य ही देगा।

निष्कर्ष

शराबबंदी का लक्ष्य हमेशा जनता की भलाई रहा है। लेकिन इसका असर जटिल और बहुमुखी है। शराबबंदी से जहां स्वास्थ्य और सामाजिक सकारात्मक प्रभाव दिखते हैं, वहीं इसके कारण ब्लैक मार्केट, राजस्व हानि और तस्करी जैसे मुद्दे भी सामने आते हैं।

शराबबंदी “अच्छा कदम” हो सकता है पर “सबसे बेहतर उपाय” नहीं। किसी भी नीति की सफलता इसके निष्पादन और उससे जुड़े सभी पक्षों को ध्यान में रखने पर निर्भर करती है।

शराबबंदी का असली समाधान कानून, जागरूकता और समाज के सामूहिक प्रयास में है।

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