विश्लेषण: क्यों बॉलीवुड की फिल्मों से मौलिकता ख़त्म हो रही है, साउथ के फिल्मों की और बढ़ता हिंदी दर्शकों का रुझान, South Indian Film vs Bollywood Film

South Indian Film vs Bollywood Film

South Indian Film vs Bollywood Film: फिल्म पुष्पा देश की पहली ऐसी फिल्म बन गई है जिसके गानों को यूट्यूब पर 500 करोड़ views मिले हैं। आप सोचिए पूरी दुनिया की आबादी करीब 800 करोड़ के आसपास है और इस फिल्म के गानों को 500 करोड़ बार देखा गया है।

दक्षिण भारतीय फिल्मों की सफलता में ये एक बहुत बड़ा रिकॉर्ड है और इससे आपको पता चलेगा कि उनकी लोकप्रियता क्या है? आज हिंदी फिल्म industry को इस बात पर मंथन करना चाहिए कि आखिर पिछले कुछ वर्षों में ऐसी क्या कमियां रह गई कि साउथ की फिल्म industry इतनी विशाल हो गई।

बाहुबली, पुष्पा, आरआर और केजीएफ की सफलता ने मुंबई के हिंदी फिल्म उद्योग को बहुत छोटा बनाकर रख दिया है. दक्षिण की इन फिल्मों से दमदार action हीरो की वापसी हुई है और lover boys से भरे हमारे बॉलीवुड में असली नायक अब शायद ना के बराबर बचे हैं. ये सब देखकर ऐसा लगता है कि हिंदी सिनेमा का जो talent है, जो talent pool है वो सुख रहा है. उनके पास ना तो ऐसे नायक बचे हैं, ना निर्देशक और ना ही लेखक और आज इसके पीछे के कारणों को भी हम आपको बताना चाहेंगे।
South Indian Film vs Bollywood Film
एक कारण तो यह है कि हिंदी फिल्मों की ज्यादातर कहानियों में मौलिक विचारों की कमी दिखाई देती है. ज्यादातर डायरेक्टर्स किसी शख्सियत की बायोपिक बना रहे हैं, किसी मशहूर हिट फिल्म की रीमेक बना रहे हैं या फिर ऐतिहासिक किरदारों पर फिल्म बनाने वाले शॉर्टकट्स को अपना रहे हैं.
बॉलीवुड में दूसरी समस्या ये है कि हिंदी फिल्मों के एक्टर्स या डायरेक्टर्स रिस्क अब नहीं लेना चाहते। वो पुराने और घिसे पिटे फॉर्मूलों से बाहर निकलने से डर रहे हैं. फिल्म के ज्यादातर actors अपने किरदार को लेकर उतनी भी कोशिश नहीं करते जितनी जरूरत है. आपने इसका उदाहरण पृथ्वीराज फिल्म में अक्षय कुमार के एक्टिंग को देखकर जरूर महसूस किया होगा.
आपने देखा होगा कि दक्षिण भारत के जो ये कलाकार हैं, जो heroes हैं, ये एक फिल्म पर कई-कई वर्ष लगाते हैं। अपने आप को तैयार करते हैं उस फिल्म के किरदार के लिए और जब वो पूरी तरह से उस किरदार के लिए तैयार हो जाते हैं. उस किरदार में वो प्रवेश कर जाते हैं. तब जाकर उस फिल्म की शूटिंग होती है। साउथ में एक-एक हीरो अपने जीवन के कई-कई वर्ष सिर्फ एक फिल्म को दे रहा है जितनी जरूरत है. ये एक बहुत बड़ी जरूरत है.
इसके अलावा नए आने वाले अभिनेताओं को ये industry बहुत जल्दी स्वीकार नहीं कर रही है. कई बार रंग और भाषा के आधार पर भी अभिनेताओं से हिंदी फिल्म industry में एक सौतेला व्यवहार किया जाता है. हिंदी फिल्मों के मशहूर actor नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने एक बार कहा था कि बॉलीवुड stars और डायरेक्टर काम तो हिंदी फिल्मों में करते हैं. लेकिन बात करते हैं अंग्रेजी में, direction देते हैं अंग्रेजी में. जबकि साउथ में ऐसा बिल्कुल नहीं होता, वहां के लोग, वहां के कलाकार, वहां के technicians, वहां के डायरेक्टर, वहां के लेखक, अपनी भाषा से बहुत प्रेम करते हैं, उसका सम्मान करते हैं।
बॉलीवुड में सबसे बड़ी समस्या ये भी है कि इस industry के दिग्गज लोगों ने अपनी-अपनी एक लॉबी बनाकर रखी है। आप देखेंगे बॉलीवुड में हर बड़े superstar की अपनी एक लॉबी है. वो अपने खास पसंद के लोगों के साथ ही काम करता है। ये लोग अपनी पसंद के हीरो, हीरोइन, डायरेक्टर, म्यूजिक डायरेक्टर, लेखक के अलावा किसी और के साथ काम करना चाहते ही नहीं है।
हिंदी फिल्मों में ये भाई-भतीजावाद और मित्रता निभाने वाला रोग, बॉलीवुड के लिए असल में अब एक अभिशाप बन चुका है और हम चाहेंगे कि बॉलीवुड के जो लोग हैं वो आज हमारा ये विशेषण पढ़ रहे हो, उन्हें हो सकता है हमारी बात चुभी तो ज़रूर होगी, हमारी बात कड़वी भी लगेगी। लेकिन जो हम कह रहे हैं उस पर उन्हें गौर करना चाहिए। ये इसमें उन्हीं का भला है, उन्हीं का फायदा है।

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